अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान को निखारें: दैनिक प्रश्नोत्तरी
प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के जिज्ञासु अभ्यर्थियों, समाजशास्त्र की दुनिया में एक और दिन, एक और बौद्धिक चुनौती! क्या आप अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल का परीक्षण करने के लिए तैयार हैं? अपनी तैयारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं, क्योंकि आज का प्रश्नोत्तरी आपके ज्ञान की गहराई और चौड़ाई को परखने के लिए तैयार है!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (social facts) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र का केंद्रीय विषय माना?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- जी.एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति ‘समाजशास्त्रीय विधि के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा को पेश किया। उनका मानना था कि सामाजिक तथ्यों को वस्तुओं की तरह अध्ययन किया जाना चाहिए, जो व्यक्ति के बाहर मौजूद होते हैं और उस पर बाह्य दबाव डालते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य वे व्यवहार के तरीके, सोचने के तरीके और महसूस करने के तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाह्य होते हैं और उसमें कुछ मजबूरी की शक्ति रखते हैं। उदाहरणों में कानून, नैतिकता, विश्वास, रीति-रिवाज और फैशन शामिल हैं।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करते थे, मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (समझ) और सामाजिक क्रिया पर जोर दिया, और जी.एच. मीड ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (symbolic interactionism) विकसित किया।
प्रश्न 2: मैकियावेली की ‘The Prince’ से प्रेरित होकर, समाजशास्त्रीय संदर्भ में ‘पॉवर’ (शक्ति) के अध्ययन के लिए ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ (Political Sociology) का विकास किस विचारक से अधिक जुड़ा है?
- चार्ल्स राइट मिल्स
- डेविड ईस्टन
- हैन्स मोर्गेन्थौ
- हैन्स केल्सन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: चार्ल्स राइट मिल्स को अक्सर अमेरिकी राजनीतिक समाजशास्त्र में शक्ति के अध्ययन के लिए प्रमुख माना जाता है, विशेषकर उनकी कृति ‘द पावर एलीट’ (The Power Elite) के लिए। उन्होंने तर्क दिया कि आधुनिक समाजों में सत्ता कुछ चुनिंदा शक्तिशाली अभिजात वर्ग के हाथों में केंद्रित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: मिल्स ने शक्ति की तीन मुख्य परतों की पहचान की: कॉर्पोरेट अभिजात वर्ग, सैन्य अभिजात वर्ग और राजनीतिक अभिजात वर्ग। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये समूह आपस में जुड़े हुए हैं और मिलकर निर्णय लेते हैं जो बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित करते हैं।
- गलत विकल्प: डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणालियों के विश्लेषण में योगदान दिया, लेकिन मिल्स की तरह अभिजात वर्ग की शक्ति पर उनका ध्यान केंद्रित नहीं था। मोर्गेन्थौ और केल्सन अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कानूनी सिद्धांत के क्षेत्र में अधिक जाने जाते हैं।
प्रश्न 3: ‘एलियनेशन’ (Alienation) या अलगाव की अवधारणा, जो व्यक्ति को उसके श्रम, स्वयं, दूसरों और प्रकृति से अलग करती है, किस शास्त्रीय समाजशास्त्री के विचारों का केंद्रीय बिंदु है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिकों के अलगाव का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने चार मुख्य प्रकार के अलगाव बताए: उत्पादन के उत्पाद से अलगाव, उत्पादन की क्रिया से अलगाव, अपनी प्रजाति-प्रकृति से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, अलगाव श्रम की प्रक्रिया में श्रमिकों के नियंत्रण के अभाव और उनके श्रम के उत्पाद के निजी स्वामित्व के कारण उत्पन्न होता है। यह उन्हें उनके सच्चे मानव सार से दूर कर देता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (anomie) की अवधारणा पर काम किया, जो सामाजिक मानदंडों की कमी से संबंधित है। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता के संदर्भ में अलगाव पर कुछ विचार व्यक्त किए, लेकिन मार्क्स का विश्लेषण अधिक गहरा और केंद्रीय था। स्पेंसर एक विकासवादी समाजशास्त्री थे।
प्रश्न 4: ‘संस्कृति’ (Culture) को ‘सामग्री’ (Material) और ‘अमूर्त’ (Non-material) संस्कृति में विभाजित करने का श्रेय किस समाजशास्त्री को दिया जाता है?
- ई.बी. टेलर
- विलियम ग्राहम समनर
- विलियम फीडरिश ओग्बर्न
- अल्फ्रेड क्रॉएबर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: विलियम फीडरिश ओग्बर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (Social Change) में सामग्री संस्कृति (जैसे भवन, मशीनें) और अमूर्त संस्कृति (जैसे विश्वास, मूल्य, आदर्श) के बीच अंतर किया। उन्होंने तर्क दिया कि सामग्री संस्कृति अमूर्त संस्कृति की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, जिससे ‘सांस्कृतिक विलंब’ (cultural lag) की स्थिति उत्पन्न होती है।
- संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न का ‘सांस्कृतिक विलंब’ का सिद्धांत बताता है कि समाज में परिवर्तन अक्सर असमान गति से होता है, जहां तकनीकी या भौतिक नवाचार सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और संस्थाओं में अनुकूलन से आगे निकल जाते हैं, जिससे सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं।
- गलत विकल्प: ई.बी. टेलर ने ‘संस्कृति’ को एक व्यापक रूप से परिभाषित किया, समनर ने ‘लोकप्रियता’ (folkways) और ‘रूढ़ियों’ (mores) के बीच अंतर किया, और क्रॉएबर ने सांस्कृतिक पैटर्न और विकास पर काम किया।
प्रश्न 5: भारत में जाति व्यवस्था के अध्ययन में, ‘प्रभु जाति’ (Dominant Caste) की अवधारणा किसने विकसित की, जिसका तात्पर्य उस जाति से है जो किसी क्षेत्र में आर्थिक और राजनीतिक शक्ति पर नियंत्रण रखती है?
- आर.के. मुखर्जी
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने अपनी प्रसिद्ध रचनाओं, विशेषकर ‘धर्म और दक्षिण भारत के कूर्गों के बीच समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में ‘प्रभु जाति’ की अवधारणा को पेश किया। यह एक ऐसी स्थानीय जाति को संदर्भित करती है जो किसी विशेष क्षेत्र में संख्यात्मक रूप से बड़ी हो, या आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हो, और उच्च स्तर की सामाजिक प्रतिष्ठा रखती हो।
- संदर्भ और विस्तार: प्रभु जाति की अवधारणा श्रीनिवास द्वारा ग्रामीण भारतीय समाज के अध्ययन के दौरान विकसित की गई थी। यह जातिगत पदानुक्रम के भीतर शक्ति की गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: आर.के. मुखर्जी और जी.एस. घुरिये भारतीय समाजशास्त्र के प्रमुख व्यक्ति थे जिन्होंने जाति पर लिखा, लेकिन ‘प्रभु जाति’ की अवधारणा विशेष रूप से श्रीनिवास से जुड़ी है। इरावती कर्वे ने भी नातेदारी और सांस्कृतिक समूहों पर महत्वपूर्ण कार्य किया।
प्रश्न 6: ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy) के आदर्श-प्रकार (Ideal-type) का विस्तृत विश्लेषण किस जर्मन समाजशास्त्री ने प्रस्तुत किया, जिसमें पदानुक्रम, विशेषज्ञता, लिखित नियम और अवैयक्तिकता जैसी विशेषताओं पर जोर दिया गया?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज सिमेल
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: मैक्स वेबर ने ‘नौकरशाही’ को आधुनिक समाजों में संगठन का सबसे कुशल और तर्कसंगत रूप माना। उन्होंने नौकरशाही के आदर्श-प्रकार को उसकी विशिष्ट विशेषताओं जैसे पदसोपान, योग्यता-आधारित चयन, अलिखित नियम, व्यावसायिकता और अवैयक्तिकता के साथ परिभाषित किया।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही को शक्ति के प्रभुत्व (domination) के एक रूप के रूप में देखा, विशेष रूप से कानूनी-तर्कसंगत प्रभुत्व (legal-rational authority) के संदर्भ में। हालांकि उन्होंने इसकी दक्षता को स्वीकार किया, उन्होंने इसके ‘लौह पिंजरे’ (iron cage) के संभावित नकारात्मक प्रभावों के प्रति भी चेतावनी दी।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स पूंजीवाद और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और एनोमी पर काम किया। जॉर्ज सिमेल ने सामाजिक रूपों और व्यक्ति के शहर में अनुभव पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 7: ‘संस्थानीकरण’ (Institutionalization) की प्रक्रिया, जिसमें किसी व्यवहार या विचार को समाज द्वारा स्वीकृत, स्थायी और दोहराव वाले पैटर्न में बदला जाता है, समाजशास्त्र के किस उप-क्षेत्र से संबंधित है?
- सामाजिक मनोविज्ञान
- सामाजिक स्तरीकरण
- सामाजिक संरचना और संगठन
- जनसंख्या अध्ययन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: संस्थानीकरण सामाजिक संरचना और संगठन के अध्ययन का एक केंद्रीय विषय है। यह बताता है कि कैसे व्यवहार के पैटर्न, भूमिकाएं, मानदंड और मूल्य समाज में स्थापित हो जाते हैं और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: जब कोई व्यवहार बार-बार दोहराया जाता है और समूह के सदस्यों द्वारा मान्य और अपेक्षित हो जाता है, तो यह एक संस्था का रूप ले सकता है। परिवार, शिक्षा, धर्म और सरकार जैसी संस्थाएँ संस्थानीकरण की प्रक्रिया के उदाहरण हैं।
- गलत विकल्प: सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तिगत व्यवहार पर केंद्रित है, सामाजिक स्तरीकरण असमानता का अध्ययन करता है, और जनसंख्या अध्ययन जनसंख्या के आकार, घनत्व और वितरण का अध्ययन करता है। ये क्षेत्र संस्थानीकरण से संबंधित हो सकते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया मुख्य रूप से सामाजिक संरचना के विश्लेषण का हिस्सा है।
प्रश्न 8: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का अर्थ है व्यक्तियों या समूहों का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना। निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक गतिशीलता का प्रकार नहीं है?
- ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility)
- क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
- स्थानांतरण गतिशीलता (Transitional Mobility)
- अंतर-पीढ़ी गतिशीलता (Inter-generational Mobility)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: ‘स्थानांतरण गतिशीलता’ (Transitional Mobility) सामाजिक गतिशीलता का एक मान्यता प्राप्त प्रकार नहीं है। यह भ्रमित करने वाला शब्द हो सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख प्रकारों में शामिल हैं:
* ऊर्ध्वाधर गतिशीलता: व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्थिति में ऊपर या नीचे की ओर परिवर्तन (जैसे, अमीर से गरीब या गरीब से अमीर बनना)।
* क्षैतिज गतिशीलता: समान सामाजिक स्तर के भीतर स्थिति में परिवर्तन, बिना सामाजिक स्थिति में बड़े बदलाव के (जैसे, एक कंपनी से दूसरी कंपनी में समान पद पर जाना)।
* अंतर-पीढ़ी गतिशीलता: एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सामाजिक स्थिति में परिवर्तन (जैसे, पिता से पुत्र की स्थिति में बदलाव)।
* अंतः-पीढ़ी गतिशीलता: एक ही व्यक्ति के जीवनकाल में उसकी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन। - गलत विकल्प: ऊर्ध्वाधर, क्षैतिज और अंतर-पीढ़ी गतिशीलता सामाजिक गतिशीलता के महत्वपूर्ण और स्थापित प्रकार हैं।
प्रश्न 9: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के दृष्टिकोण के अनुसार, समाज मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस पर आधारित होता है?
- बड़े पैमाने पर संस्थागत संरचनाएं
- अचेतन मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं
- व्यक्तियों के बीच अर्थपूर्ण अंतःक्रियाएं और प्रतीकों का आदान-प्रदान
- संसाधनों का असमान वितरण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसके प्रमुख विचारक जी.एच. मीड, हर्बर्ट ब्लूमर और इरविंग गॉफमैन हैं, मानता है कि समाज व्यक्तियों के बीच होने वाली अंतःक्रियाओं का परिणाम है। ये अंतःक्रियाएं प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से अर्थ का निर्माण करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति समाज को अपनी अंतःक्रियाओं के माध्यम से बनाते और पुन: बनाते हैं। आत्म-चेतना, सामाजिक भूमिकाएं और सामाजिक वास्तविकता प्रतीकों के अर्थों को साझा करने से उत्पन्न होती हैं।
- गलत विकल्प: (a) संरचनात्मक कार्यात्मकता (Structural Functionalism) और (d) मार्क्सवाद बड़े पैमाने पर संस्थागत संरचनाओं और असमानता पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। (b) मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) अचेतन मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से संबंधित है।
प्रश्न 10: ‘नारीवाद’ (Feminism) के संदर्भ में, ‘पितृसत्ता’ (Patriarchy) की अवधारणा को किस रूप में समझा जाता है?
- महिलाओं द्वारा पुरुषों पर शासन
- समाज में पुरुषों की प्राथमिक शक्ति और प्रभुत्व की व्यवस्था
- पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को बनाए रखने की प्रवृत्ति
- महिलाओं द्वारा अपनी पहचान की खोज
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पुरुषों का प्रभुत्व होता है, वे शक्ति की स्थिति में होते हैं, और महिलाओं पर नियंत्रण रखते हैं। यह व्यवस्था सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत क्षेत्रों में व्याप्त हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: नारीवादी सिद्धांतकार पितृसत्ता को लैंगिक असमानता का मूल कारण मानते हैं। वे विभिन्न प्रकार के पितृसत्तात्मक तंत्रों का विश्लेषण करते हैं जो महिलाओं के उत्पीड़न को बनाए रखते हैं।
- गलत विकल्प: (a) महिलाओं द्वारा पुरुषों पर शासन मातृसत्ता (Matriarchy) का वर्णन करेगा, जो एक सैद्धांतिक अवधारणा है जिसका वास्तविक समाजों में सीमित साक्ष्य है। (c) पारंपरिक भूमिकाओं को बनाए रखना पितृसत्ता का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं अवधारणा नहीं है। (d) यह व्यक्तिगत अनुभव से अधिक संबंधित है।
प्रश्न 11: ‘एकीकरण’ (Integration) और ‘नियमन’ (Regulation) की अवधारणाएं, जो सामाजिक व्यवस्था और व्यक्ति के समाज से जुड़ाव को समझने में महत्वपूर्ण हैं, किस समाजशास्त्री के सुसाइड (आत्महत्या) के विश्लेषण का केंद्रीय हिस्सा हैं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- ई.एफ. शूमैकर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति ‘आत्महत्या’ (Suicide) में इन अवधारणाओं का उपयोग विभिन्न प्रकार की आत्महत्याओं को समझाने के लिए किया। उन्होंने तर्क दिया कि व्यक्तिगत आत्महत्याएं भी सामाजिक कारणों से जुड़ी होती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने चार प्रकार की आत्महत्याएं बताईं:
* अहंकारी (Egoistic): जब व्यक्ति समाज से पर्याप्त रूप से एकीकृत नहीं होता है।
* अनोमिक (Anomic): जब सामाजिक नियमों का नियमन अपर्याप्त होता है, जिससे अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति होती है।
* परोपकारी (Altruistic): जब व्यक्ति समाज से अत्यधिक एकीकृत होता है और समूह के कल्याण के लिए स्वयं को बलिदान कर देता है।
* नियतिवादी (Fatalistic): जब व्यक्ति अत्यधिक दमनकारी नियमों के अधीन होता है। - गलत विकल्प: मार्क्स वर्ग संघर्ष और आर्थिक संरचना पर केंद्रित थे। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता का विश्लेषण किया। ई.एफ. शूमैकर एक अर्थशास्त्री थे।
प्रश्न 12: ‘परसंस्कृति ग्रहण’ (Acculturation) वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न संस्कृतियों के संपर्क में आने पर एक संस्कृति के तत्व दूसरी संस्कृति में समाहित हो जाते हैं। यह किस सामाजिक प्रक्रिया से संबंधित है?
- सामाजिक विघटन
- सामाजिक परिवर्तन
- सामाजिक नियंत्रण
- सामाजिक स्तरीकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: परसंस्कृति ग्रहण एक प्रकार की सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। जब दो या दो से अधिक संस्कृतियां एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं, तो वे एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जिससे एक या दोनों संस्कृतियों में बदलाव आता है।
- संदर्भ और विस्तार: परसंस्कृति ग्रहण में आत्मसात्करण (assimilation), सह-अस्तित्व (coexistence) या भिन्नता (differentiation) शामिल हो सकती है। यह अक्सर उपनिवेशवाद, प्रवास या वैश्वीकरण जैसी घटनाओं से जुड़ा होता है।
- गलत विकल्प: सामाजिक विघटन समाज के टूटने की प्रक्रिया है। सामाजिक नियंत्रण समाज द्वारा अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करने के तरीके हैं। सामाजिक स्तरीकरण समाज में असमानता का अध्ययन है।
प्रश्न 13: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) के क्षेत्र में, यह विचार कि हमारा ज्ञान सामाजिक रूप से निर्मित होता है और सामाजिक संदर्भों, शक्तियों और हितों से प्रभावित होता है, किस विचार की ओर ले जाता है?
- प्रत्यक्षवाद (Positivism)
- व्याख्यावाद (Interpretivism)
- रचनावाद (Constructivism)
- संरचनावाद (Structuralism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: ‘रचनावाद’ (Constructivism) का मूल सिद्धांत यह है कि हमारा ज्ञान, हमारी वास्तविकताएं और हमारे सामाजिक संसार ‘निर्मित’ होते हैं, न कि वे स्वाभाविक रूप से या वस्तुनिष्ठ रूप से मौजूद होते हैं। यह ज्ञान के सामाजिक निर्माण पर जोर देता है।
- संदर्भ और विस्तार: ज्ञान का समाजशास्त्र, पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन की ‘द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रियलिटी’ (The Social Construction of Reality) जैसी कृतियों के साथ, दिखाता है कि कैसे सामाजिक संस्थाएं, भाषा और सामूहिक अंतःक्रियाएं हमारे ज्ञान को आकार देती हैं।
- गलत विकल्प: प्रत्यक्षवाद वस्तुनिष्ठ, वैज्ञानिक ज्ञान पर जोर देता है। व्याख्यावाद व्यक्तियों द्वारा अपनी दुनिया को दिए गए अर्थों को समझने पर केंद्रित है। संरचनावाद अंतर्निहित, अक्सर अचेतन, पैटर्न या संरचनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
प्रश्न 14: भारत में, ‘अछूत’ (Untouchables) या दलितों के सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न को दूर करने के लिए ‘आरक्षण’ (Reservation) प्रणाली का उद्देश्य निम्नलिखित में से किस सिद्धांत पर आधारित है?
- सामाजिक एकरूपता
- सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action)
- सामाजिक नियंत्रण
- पूंजी संचय
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: आरक्षण सकारात्मक कार्रवाई का एक रूप है। इसका उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से वंचित और उत्पीड़ित समूहों (जैसे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों) को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर प्रदान करके उनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करना है।
- संदर्भ और विस्तार: भारतीय संविधान अस्पृश्यता को समाप्त करता है और ऐतिहासिक रूप से शोषित समुदायों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है। सकारात्मक कार्रवाई का सिद्धांत यह मानता है कि केवल औपचारिक समानता पर्याप्त नहीं है; समाज में ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता है।
- गलत विकल्प: सामाजिक एकरूपता का अर्थ समान बनाना है, जो सकारात्मक कार्रवाई का तत्काल लक्ष्य नहीं है। सामाजिक नियंत्रण समाज के सदस्यों के व्यवहार को विनियमित करने की प्रक्रिया है। पूंजी संचय आर्थिक विकास से संबंधित है।
प्रश्न 15: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो बताती है कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मानदंड, मूल्य) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?
- अल्बर्ट बंडुरा
- डेविड ए. नोल्स
- विलियम फीडरिश ओग्बर्न
- रॉबर्ट के. मर्टन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: विलियम फीडरिश ओग्बर्न ने अपनी 1922 की पुस्तक ‘सोशल चेंज’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की। उन्होंने तर्क दिया कि समाज में भौतिक संस्कृति, जो आविष्कार और अनुकूलन से तेज़ी से बदलती है, अक्सर अभौतिक संस्कृति (जैसे कानून, नैतिकता, सामाजिक रीति-रिवाज) से आगे निकल जाती है, जिससे समाज में तालमेल बिठाने में कठिनाई होती है।
- संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न का मानना था कि प्रौद्योगिकी और नवाचारों के कारण होने वाले परिवर्तन अक्सर सामाजिक संस्थानों और सांस्कृतिक मानदंडों के अनुकूलन की गति से तेज होते हैं। इससे सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जब समाज पुरानी विधियों से चिपका रहता है जबकि नई प्रौद्योगिकियां सामने आती हैं।
- गलत विकल्प: अल्बर्ट बंडुरा सामाजिक शिक्षण सिद्धांत से जुड़े हैं। डेविड ए. नोल्स ने ‘द पावर एलीट’ के संदर्भ में काम किया। रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘विसंगति’ (dysfunction) और ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (middle-range theories) पर काम किया।
प्रश्न 16: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) के सिद्धांत के अनुसार, पारंपरिक समाजों में होने वाले परिवर्तनों को अक्सर किन विशेषताओं के रूप में देखा जाता है?
- कृषि पर निर्भरता, बड़े परिवार, और अलौकिक शक्ति में विश्वास
- औद्योगीकरण, शहरीकरण, और तर्कसंगत-तार्किक सोच
- जटिल सामाजिक स्तरीकरण, क्षेत्रीयता, और परंपराओं का दृढ़ता से पालन
- कबीलाई संगठन, अल्पविकसित प्रौद्योगिकी, और सीमित संचार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: आधुनिकीकरण सिद्धांत पारंपरिक समाजों के उन परिवर्तनों का वर्णन करता है जो उन्हें पश्चिमी समाजों के समान बनाने की दिशा में उन्मुख होते हैं। इसमें औद्योगीकरण (फैक्ट्रियों का उदय), शहरीकरण (गांवों से शहरों की ओर पलायन), और तर्कसंगत-तार्किक सोच (धर्म और परंपरा से हटकर विज्ञान और तर्क का महत्व) जैसी विशेषताएं शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण सिद्धांत, हालांकि आलोचनाओं से ग्रस्त है, 20वीं सदी के मध्य में प्रभावशाली था। यह मानता था कि समाज विकास के एक रेखीय पथ का अनुसरण करते हैं, जहां पारंपरिक चरण आधुनिक चरण में परिवर्तित हो जाते हैं।
- गलत विकल्प: (a) और (c) पारंपरिक समाजों की विशेषताओं का वर्णन करते हैं, न कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का। (d) भी पारंपरिक समाजों की विशेषताओं का वर्णन करता है, लेकिन ‘सीमित संचार’ आधुनिकीकरण के विपरीत है, जो संचार के विस्तार पर जोर देता है।
प्रश्न 17: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो व्यक्तियों या समूहों के बीच सामाजिक संबंधों, नेटवर्क और विश्वास के महत्व पर जोर देती है, जिससे लाभ प्राप्त होता है, को किस समाजशास्त्री से सबसे अधिक जोड़ा जाता है?
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स एस. कोलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को पियरे बॉर्डियू, जेम्स एस. कोलमैन और रॉबर्ट पुटनम जैसे कई समाजशास्त्रियों ने विकसित किया है, जिन्होंने इसे विभिन्न कोणों से समझाया और इसके महत्व को उजागर किया।
- संदर्भ और विस्तार:
* पियरे बॉर्डियू ने इसे ऐसे संसाधनों के रूप में देखा जो सामाजिक नेटवर्क तक पहुंच से प्राप्त होते हैं।
* जेम्स एस. कोलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं में पाया जाने वाला एक संसाधन माना जो व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।
* रॉबर्ट पुटनम ने नागरिक जुड़ाव और समुदाय के निर्माण में इसकी भूमिका पर जोर दिया, विशेष रूप से ‘बोडिंग अलोन’ (Bowling Alone) पुस्तक में। - गलत विकल्प: तीनों समाजशास्त्रियों ने इस अवधारणा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।
प्रश्न 18: ‘ग्रामीण-शहरी सातत्य’ (Rural-Urban Continuum) का विचार, जो मानता है कि ग्रामीण और शहरी जीवन शैलियों के बीच कोई कठोर अंतर नहीं है, बल्कि एक स्पेक्ट्रम है, किस समाजशास्त्री के अध्ययन से जुड़ा है?
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- लुईस विर्थ
- ओस्कर लुईस
- गॉटफ्रीड विनर
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: रॉबर्ट रेडफील्ड, अपने मेक्सिको के ग्रामीण समुदायों के अध्ययन के आधार पर, ‘ग्रामीण-शहरी सातत्य’ (Rural-Urban Continuum) की अवधारणा को पेश करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। उन्होंने ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच अंतर को एक स्पेक्ट्रम के रूप में देखा।
- संदर्भ और विस्तार: रेडफील्ड ने ‘लोक संस्कृति’ (folk culture) और ‘महान संस्कृति’ (great culture) के बीच परिवर्तन का विश्लेषण किया, जिसमें ग्रामीण समाज लोक संस्कृति के करीब और शहरी समाज महान संस्कृति के करीब होता है, लेकिन यह एक क्रमिक संक्रमण है।
- गलत विकल्प: लुईस विर्थ शहरीकरण के प्रभावों पर अपने ‘शहरीवाद’ (Urbanism) पर लेख के लिए जाने जाते हैं, जिसमें उन्होंने शहरों की विशेषताओं का वर्णन किया। ओस्कर लुईस ने ‘संस्कृति का अभाव’ (culture of poverty) की अवधारणा विकसित की। गॉटफ्रीड विनर शहरी भूगोल में योगदान के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 19: ‘नियमन का अभाव’ (Lack of Regulation) जो समाज में अनिश्चितता, निराशा और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाई पैदा करता है, किस प्रकार की आत्महत्या से जुड़ा है, जैसा कि एमिल दुर्खीम ने अपनी कृति ‘आत्महत्या’ में वर्णित किया है?
- अहंकारी आत्महत्या (Egoistic Suicide)
- परोपकारी आत्महत्या (Altruistic Suicide)
- एनोमिक आत्महत्या (Anomic Suicide)
- नियतिवादी आत्महत्या (Fatalistic Suicide)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: एनोमिक आत्महत्या (Anomic Suicide) तब होती है जब समाज में नियमन की कमी होती है। सामाजिक मानदंडों का क्षरण, अचानक आर्थिक परिवर्तन (तेजी या मंदी), या सामाजिक व्यवस्था में बड़े बदलाव व्यक्तियों को अनिश्चितता और दिशाहीनता की भावना में छोड़ देते हैं, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: एनोमी (anomie) वह स्थिति है जब समाज के स्थापित नियमों और मूल्यों का क्षरण हो जाता है, जिससे व्यक्तियों को पता नहीं चलता कि क्या अपेक्षा की जाए या कैसे व्यवहार किया जाए। यह दुर्खीम के सामाजिक एकजुटता के विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- गलत विकल्प: अहंकारी आत्महत्या व्यक्ति के समाज से अत्यधिक अलगाव से संबंधित है। परोपकारी आत्महत्या तब होती है जब व्यक्ति समाज के लिए अत्यधिक एकीकृत होता है। नियतिवादी आत्महत्या अत्यधिक दमनकारी नियमों से जुड़ी है।
प्रश्न 20: ‘जाति-वर्ग जटिल’ (Caste-Class Nexus) की भारतीय संदर्भ में जांच करते हुए, किसने तर्क दिया कि जाति अभी भी वर्ग की तरह ही सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक बनी हुई है, भले ही आर्थिक कारक महत्वपूर्ण हों?
- एम.एन. श्रीनिवास
- आंद्रे बेतेइlle
- दिमित्री निकोफ
- एल.एस. शर्मा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: आंद्रे बेतेइlle (André Béteille) भारतीय समाज में जाति और वर्ग के बीच जटिल संबंधों पर अपने विस्तृत समाजशास्त्रीय विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने यह तर्क दिया कि भारत में, विशेष रूप से गांवों में, जातिगत पदानुक्रम अक्सर आर्थिक स्थिति से काफी हद तक मेल खाता है, जिससे एक ‘जाति-वर्ग जटिल’ बनता है।
- संदर्भ और विस्तार: बेतेइlle ने दिखाया कि कैसे जातिगत स्थिति केवल अनुष्ठानिक या सामाजिक नहीं है, बल्कि इसका आर्थिक शक्ति और संसाधनों तक पहुंच पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने पश्चिमी समाजों की तुलना में भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण की अनूठी प्रकृति को उजागर किया, जहां वर्ग और जाति अक्सर आपस में जुड़े होते हैं।
- गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘प्रभु जाति’ पर काम किया। दिमित्री निकोफ ने भारत में ग्रामीण समुदाय पर काम किया। एल.एस. शर्मा ने भारतीय समाजशास्त्र में विभिन्न योगदान दिए हैं, लेकिन जाति-वर्ग जटिलता पर बेतेइlle का विश्लेषण अधिक प्रसिद्ध है।
प्रश्न 21: ‘पदानुक्रमित समाज’ (Hierarchical Society) के भीतर, ‘सत्ता’ (Authority) के तीन आदर्श-प्रकार (Ideal-types) – पारंपरिक, करिश्माई और कानूनी-तर्कसंगत – का विश्लेषण किसने प्रस्तुत किया?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- ताल्कोट पार्सन्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: मैक्स वेबर ने सत्ता के इन तीन आदर्श-प्रकारों का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि सामाजिक व्यवस्था और प्रभुत्व (domination) इन विभिन्न प्रकार की सत्ता पर आधारित होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार:
* पारंपरिक सत्ता: परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित (जैसे राजतंत्र)।
* करिश्माई सत्ता: किसी नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुणों या करिश्मे पर आधारित (जैसे पैगंबर, महान युद्धनायक)।
* कानूनी-तर्कसंगत सत्ता: स्थापित नियमों, कानूनों और प्रक्रियाओं पर आधारित (जैसे आधुनिक नौकरशाही)। - गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स आर्थिक आधार और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता पर काम किया। ताल्कोट पार्सन्स ने संरचनात्मक कार्यात्मकता (structural functionalism) विकसित की, जिसमें सत्ता का विश्लेषण उनके ‘एजील’ (AGIL) मॉडल के भीतर किया गया।
प्रश्न 22: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत क्या प्रस्तावित करता है?
- सभी संस्कृतियाँ स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ होती हैं।
- किसी संस्कृति का मूल्यांकन उसी की अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं, मूल्यों और मानदंडों के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
- पश्चिमी संस्कृति को अन्य सभी संस्कृतियों का आदर्श मॉडल माना जाना चाहिए।
- केवल कुछ चुनिंदा संस्कृतियाँ ही “वास्तविक” या “उच्च” संस्कृति मानी जा सकती हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: सांस्कृतिक सापेक्षवाद यह मानता है कि किसी भी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा और मूल्यांकन किया जाना चाहिए, बजाय इसके कि उसे किसी बाहरी मानक, विशेष रूप से अपनी स्वयं की संस्कृति के मानक से मापा जाए।
- संदर्भ और विस्तार: इस दृष्टिकोण का उद्देश्य संस्कृति का वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष रूप से अध्ययन करना है, जो कि नृजातीय पूर्वाग्रह (ethnocentrism) से मुक्त हो। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी सांस्कृतिक प्रथाएं नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं, बल्कि यह कि उन्हें उनके सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में समझा जाना चाहिए।
- गलत विकल्प: (a) और (c) नृजातीय पूर्वाग्रह को दर्शाते हैं। (d) एक प्रकार का सांस्कृतिक कुलीनवाद (cultural elitism) है।
प्रश्न 23: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के अध्ययन में, ‘अधिकार’ (Prestige) का क्या अर्थ है?
- धन और संपत्ति पर नियंत्रण।
- दूसरों को आदेश देने और नियंत्रित करने की क्षमता।
- किसी व्यक्ति या समूह को समाज द्वारा दिया जाने वाला सम्मान, आदर और मान्यता।
- जन्म या वंश के आधार पर प्राप्त विशेषाधिकार।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: अधिकार (Prestige) सामाजिक स्तरीकरण के तीन प्रमुख आयामों में से एक है (मैक्स वेबर के अनुसार, अन्य हैं वर्ग (धन) और शक्ति)। यह किसी व्यक्ति या समूह को समाज द्वारा प्रदान किए जाने वाले सामाजिक सम्मान, आदर और सार्वजनिक मान्यता को संदर्भित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: अधिकार अक्सर व्यवसाय, शिक्षा, जीवन शैली और सामाजिक नेटवर्क से जुड़ा होता है। यह धन से भिन्न हो सकता है; उदाहरण के लिए, एक शिक्षक या पादरी के पास काफी अधिकार हो सकता है, भले ही उनके पास बहुत अधिक धन न हो।
- गलत विकल्प: (a) धन और संपत्ति ‘वर्ग’ (class) से संबंधित है। (b) दूसरों को नियंत्रित करने की क्षमता ‘शक्ति’ (power) से संबंधित है। (d) जन्म या वंश के आधार पर विशेषाधिकार विरासत (inheritance) या जन्मजात स्थिति (ascribed status) से संबंधित हैं, जो स्तरीकरण के कारक हो सकते हैं।
प्रश्न 24: भारत में ‘ट्राइब’ (Tribe) या जनजाति के अध्ययन में, ‘पृथक्करण’ (Isolation) की नीति, जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को बाहरी दुनिया से अलग रखना था, ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में किसके द्वारा प्रस्तावित की गई थी?
- दादाभाई नौरोजी
- एम.एन. श्रीनिवास
- एल्बिन विंसेंट थर्स्टन
- वर्नर होफमैन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: एल्बिन विंसेंट थर्स्टन (Elwin V. Thurnston), एक ब्रिटिश मानवविज्ञानी और मिशनरी, ने भारतीय जनजातियों के संबंध में ‘पृथक्करण’ (Isolation) की नीति का समर्थन किया। उनका मानना था कि जनजातियों को उनकी अनूठी संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने के लिए बाहरी प्रभावों से बचाया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: थर्स्टन ने अपनी पुस्तक ‘द फीलिंग ऑफ द ट्राइबल’ (The Feeling of the Tribal) में जनजातीय संस्कृतियों की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। हालांकि, उनकी नीति की आलोचना भी की गई क्योंकि इसने जनजातीय समुदायों को विकास और आधुनिकीकरण के लाभों से वंचित रखा।
- गलत विकल्प: दादाभाई नौरोजी एक राष्ट्रवादी नेता थे। एम.एन. श्रीनिवास एक प्रमुख समाजशास्त्री थे। वर्नर होफमैन एक जर्मन समाजशास्त्री थे जिन्होंने ‘धर्म के समाजशास्त्र’ पर काम किया।
प्रश्न 25: ‘सार्वभौमिकता’ (Universality) और ‘विशेषता’ (Particularism) की अवधारणाएं, जो समाजशास्त्र में किसी घटना को समझने के लिए व्यापक पैटर्न और स्थानीय विशिष्टताओं के बीच संतुलन बनाने में मदद करती हैं, विशेष रूप से किस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं?
- सामाजिक अनुसंधान विधियाँ
- पारिवारिक संरचनाएँ
- शहरी समाजशास्त्र
- सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही विकल्प: सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत में सार्वभौमिकता और विशेषता की अवधारणाएं महत्वपूर्ण हैं। यह समझने के लिए कि क्या सामाजिक परिवर्तन के कुछ पैटर्न (सार्वभौमिकता) सभी समाजों में पाए जाते हैं, या क्या वे विशेष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों (विशेषता) के कारण भिन्न होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, आधुनिकीकरण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन प्रत्येक समाज इसे अलग-अलग तरीकों से अनुभव करता है, जो उसकी अपनी विशिष्टताओं से प्रभावित होता है। इसी तरह, पूंजीवाद का प्रसार सार्वभौमिक हो सकता है, लेकिन इसका प्रभाव और रूप हर समाज में भिन्न होता है।
- गलत विकल्प: सामाजिक अनुसंधान विधियाँ, पारिवारिक संरचनाएँ और शहरी समाजशास्त्र महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, लेकिन सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत विशेष रूप से ऐसे व्यापक पैटर्न (सार्वभौमिकता) को विशेष संदर्भों (विशेषता) के साथ जोड़ने की चुनौती का सामना करता है।
सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
[कोर्स और फ्री नोट्स के लिए यहाँ क्लिक करें]