अनुसूची निर्माण की प्रक्रिया

अनुसूची निर्माण की प्रक्रिया

( Process of Schedule Preparing )

 अनुसूची का निर्माण करना एक कठिन कार्य है । इसकी रचना क्योंकि अनुसन्धान की समस्या के विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रमाणित , आवश्यक एवं व्यवस्थित सूचनाएँ संकलन करने के लिए की जाती है । अतः इसका निर्माण करने से पहले समस्या की प्रकृति तथा इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है ताकि इसमें समस्या के अनुरूप प्रश्नों को सम्मिलित किया जा सके । अनसची की रचना की सम्पूर्ण प्रक्रिया को हम अपनी सुविधा के लिए निम्नलिखित चरणों में विभाजित कर सकते हैं

  1. साहा का ज्ञान ( Knowledge about problem ) – अनसची निर्माण का प्रथम चरण अनुरासाल की समस्या के बारे में जानकारी प्राप्त करना है । यदि समस्या के विभिन्न पहलू ही स्पष्ट नहीं हैं तो हो सकता है कि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्न छूट जाएँ । व अनसची की रचना करने से पहले अनुसन्धानकर्ता को यह पता होना चाहिए कि या की प्रकति कैसी है अर्थात् इसके विभिन्न पक्ष कौन – से हैं और किस पक्ष को कितना अधिक या कम महत्त्व देना है ।

  1. प्रश्नों की रचना ( Construction of questions ) – अनुसूची का दूसरा चरण सिन्धान की समस्या के विभिन्न पहलुओं के बारे में वास्तविक प्रश्नों की रचना करना है । यदि विभिन्न पहलू ही स्पष्ट नहीं हैं तो फिर अनुसन्धानकर्ता को यह निर्णय लेना चाहिए कि इन पहलुओं के बारे में किन प्रश्नों से सूचना प्राप्त की जा सकती है । इस चरण में प्रत्येक पहलू को अनेक भागों एवं उपभागों में विभाजित करके उनके बारे में जितने भी प्रश्नों का निर्माण किया जा सकता है किया जाना चाहिए । यदि कुछ पहलू ऐसे हैं जिनके बारे में प्रत्यक्ष प्रश्नों द्वारा सूचना एकत्रित करना कठिन है तो उनके बारे में अप्रत्यक्ष प्रश्नों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि जो प्रश्न ठीक नहीं लगे उन्हें इसी चरण में निकाला जा सके ।

 3 प्रश्नों की भाषा एवं क्रम ( Language and sequence of questions ) अनुसूची निर्माण का तीसरा चरण प्रश्नों की स्पष्टता एवं उनके क्रम के निर्धारण से सम्बन्धित है । प्रश्नों की भाषा यथासम्भव सरल रखनी चाहिए ताकि सूचनादाता इन्हें एक समान अर्थ में समझ सके । साथ ही , प्रश्नों को एक निश्चित क्रम में लिखा जाना चाहिए । प्रश्नों का क्रम इतना अधिक व्यवस्थित होना चाहिए कि इसमें आन्तरिक सम्बद्धता आ जाए ताकि सूचनादाता प्रत्युत्तर देते समय यह अनुभव करे कि उससे धीरे – धीरे अनुसन्धान की समस्या के बारे में सूचना एकत्रित की जा रही है ।

 4 प्रश्नों की वैधता की जाँच करना ( Testing the validity of questions ) – प्रश्नों का स्पष्ट निर्माण कर लेने तथा इन्हें एक व्यवस्थित क्रम में लिख लेने के बाद चौथा चरण प्रश्नों की वैधता की जाँच करना है । इनकी जाँच जिस समग्र का अध्ययन किया जा रहा है , उसमें से कुछ सूचनादाताओं का चयन करके की जा सकती है । जिन प्रश्नों का समझने में सूचनादाताओं को किसी प्रकार की कठिनाई हो रही हो उनको भाषा ठीक कर दी जानी चाहिए । अस्पष्ट प्रश्नों को अनुसूची से निकाल दिया जाना चाहिए तथा प्रश्नों से एकत्रित सचना का एक बार मूल्यांकन करके वह देख लेना चाहिए कि विभिन्न पहलुओं के बारे में जो आवश्यक सूचनाएँ चाहिए वह इन प्रश्नों से प्राप्त हो रही हैं या नहीं

 5 अनुसूची की बाह्य आकति ( Lay – out of schedule ) – अनुसूची का निर्माण करत समय इसकी बाह्य आकृति का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए । प्रश्नों की COMREDMINOTE लेने के पश्चात जिन प्रश्नों को अनुसूची में सम्मिलित करना है उन्हें काज पर छपवाया जाना चाहिए । अनुसूची का आकार सामान्यरूप से 8 . 5 x 11 इंच होता है परन्त इसे सविधानुसार कम या अधिक किया जा सकता है । कागज के साथ – साथ छपाई भी अच्छी होना चाहिए ।

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अनुसूची की अन्तर्वस्तु

( Contents of a Schedue )

अनुसूची का निर्माण करते समय उसकी बाह्य आकृति के साथ – साथ इसकी अन्तर्वस्तु के बारे में भी विशेष ध्यान रखना चाहिए । अनुसूची की अन्तर्वस्तु को तीन भागों में बाँटा जा सकता है

 

 ( 1 ) प्रारम्भिक भाग ( Introductory part ) – इसमें अन्वेषण की सम्पूर्ण जानकारी होती है एवं सूचनादाता के बारे में सामान्य सूचना प्राप्त करने के बारे में कुछ प्रश्न होते हैं , जिनसे उसका नाम , आयु , लिंग , जाति , शिक्षा , पारिवारिक जीवन तथा परिवार की आर्थिक स्थिति इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सके । समाजशास्त्रीय अन्वेषणों में सभी अनुसूचियों का प्रारम्भिक भाग लगभग एक जैसा होता है ।

 ( 2 ) मुख्य भाग ( Main body ) – इसमें समस्या के विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रश्नों को सम्मिलित किया जाता है । यह अनुसूची का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है । अतः इसका निर्माण विशेष सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए । यदि विभिन्न पहलुओं के शीर्षक या उपशीर्षक लिखने जरूरी हों , उन्हें भी लिखा जा सकता है । ।

 

 ( 3 ) साक्षात्कारकर्ताओं के लिए सामान्य निर्देश ( General instructions for interviewers ) – इसमें साक्षात्कारकर्ताओं के लिए अतिरिक्त सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी सामान्य निर्देश होते हैं । यद्यपि अनुसूची द्वारा सूचना संकलन करने से पहले साक्षात्कारकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता है फिर भी इस भाग में सामान्य निर्देश दिए जा सकते हैं ताकि वह अवलोकन द्वारा प्राप्त अतिरिक्त सूचना को लेखबद्ध कर सके ।

अनुसूची निर्माण में सावधानियाँ

( Precautions for Preparing a Schedule )

 यदि अनुसूची का निर्माण करते समय कुछ सामान्य सावधानियाँ रखी जाएँ तो एक सन्तुलित एवं अच्छी अनुसूची की रचना हो सकती है । एक अच्छी अनसची का निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है

  1. भावात्मक अथवा चुनौती देने वाले प्रश्नों को यथासम्भव अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए ।

  1. पथ – प्रदर्शक एवं उत्तर का आभास देने वाले प्रश्नों को भी यथासम्भव अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए । ( 3. अनावश्यक प्रश्नों को अनुसूची में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए । इसमें केवल अनिवार्य प्रश्न ही होने चाहिए ।

 काल्पनिक परिस्थितियों , सूचनादाताओं के व्यक्तिगत जीवन एवं रहस्यमय परिस्थितियों के बारे में प्रश्न अथवा सूचनादाता के मन में किसी प्रकार का सन्देह पैदा करने वाले प्रश्नों को अनुसूची में , यदि अत्यन्त अनिवार्य न हो तो , नहीं पूछना चाहिए ।

4 प्रश्नों की रचना में अश्लील , आपत्तिजनक एवं संवेदनशील शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए ।

  1. प्रश्न ऐसे होने चाहिए कि उनके उत्तर बिना किसी पूर्वाग्रह के दिए जा सकें ।

  1. यथासम्भव ऐसे प्रश्न अनुसूची में सम्मिलित किए जाने चाहिए जिनके बारे में तुलनात्मक आँकड़े उपलब्ध हैं ।

  1. प्रश्नों की भाषा सरल होनी चाहिए अर्थात् प्रश्नों की रचना इस प्रकार की जानी चाहिए कि सूचनादाता उन्हें एक ही अर्थ में समझें तथा साथ ही उन्हें सरलता से समझ सकें ।

  1. प्रश्नों का आकार सीमित होना चाहिए अर्थात् अधिक लम्बे प्रश्नों की रचना नहीं की जानी चाहिए । का व्यवस्थित क्रम में रखा जाना चाहिए ताकि सम्पूर्ण अनुसूची में सातारक सम्बद्धता आ जाए ।

  1. प्रश्न परस्पर सम्बन्धित होने चाहिए ताकि ऐसा लगे कि वे एक – दूसरे के पूरक या साथ ही ऐसे भी हैं जिनके उत्तरों की प्रामाणिकता की जाँच की जा सकती है ।

10.अधिकतर प्रश्न संरचित ( Structured ) होने चाहिए अर्थात उनके वैकल्पिक सत्तर भी साथ दिए जाने चाहिए ताकि सूचनादाता सुगमतापूर्वक उनके उत्तर दे सकें ।

 ( 6 ) प्रश्न स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष होने चाहिए अर्थात किसी चीज को घुमा फिरा कर पाने के बजाय स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष रूप से पूछा जाना चाहिए ।

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अनुसूची के प्रकार

( Types of Schedule )

सामाजिक अनुसन्धान में कई प्रकार की अनुसूचियों को प्रयोग में लाया जाता है । मुख्य रूप में सामाजिक अनुसन्धान में प्रयोग की जाने वाली अनुसूचियों को निम्नलिखित श्रेणियों या प्रकारों में विभाजित कर सकते हैं

 ( 1 ) अवलोकन – अनुसची ( Observation Schedule ) – इस प्रकार की अनुसूची के अन्तर्गत अवलोकनकर्ता स्वयं अन सूची को निरीक्षण के समय में अपने पास रखता है और स्वयं निरीक्षण कर तथ्यों को उसमें भर देता है ।

( 2 ) मूल्यांकन अनुसूची ( Rating Schedule ) – – – उत्तरदाताओं की विषय से सम्बन्धित प्रवृत्ति , पसंदगी और मत जानने के लिए इस सूची को प्रयोग में लाया जाता है ।

( 3 ) साक्षात्कार अनुसची – क्रमबद्ध रूप में साक्षात्कार लेने के लिए इस सूची को काम में लाया जाता है ।

 ( 4 ) प्रलेखीय अनुसची ( Documentary Schedule ) – – इस प्रकार की अनुसूची को तब काम में लाया जाता है जब लिखित प्रलेखों जैसे डायरियों , पत्रों , आत्मकथाओं आदि से सूचना को एकत्र करना हो ।

 (5) संस्था – सर्वेक्षण अनुसूची ( Institution – survey schedule ) – इस प्रकार का अनुसूची का प्रयोग , जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है , संस्था के सर्वेक्षण अथवा इसकी विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है । इस प्रकार की अनुसूची , वास्तव में संस्था से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए एक लम्बी प्रश्नों की सूची होती है । पी . वी . यंग के अनुसार संस्था – सर्वेक्षण अनुसूची का प्रयोग किसी संस्था के समक्ष उत्पन्न होने वाली समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है । सरकारी संस्थाओं के बारे में अध्ययन करने के लिए इस प्रकार की अनुसूचियाँ मुख्य रूप से उपयोगी हैं । अनसूची में अनेक प्रकार के प्रश्नों की रचना की जाती है तथा किसी अनुसूची में किस प्रकार के प्रश्न होने चाहिए यह अनुसन्धान की समस्या तथा प्रकृति पर तथा उत्तरदाताओं का प्रकृति पर निर्भर करता है । अनुसूची में पछे जाने वाले प्रश्नों को निम्नांकित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है

a.अप्रतिबन्धित या खुले प्रश्न ( Open – ended questions ) – ये वे प्रश्न हैं जिनके सम्भावित उत्तर प्रश्न के साथ नहीं लिखे जाते अपित जिनका उत्तर देने के बारे में उत्तरदाताओं को पूर्ण स्वतन्त्रता होती है । ऐसे प्रश्नों के उत्तर छोटे भी हो सकते हैं तथा अधिक लम्बे भी । ऐसे प्रश्नों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं 1

 

b.प्रतिबन्धित या संरचित प्रश्न ( Closed or structured questions )

 – इन प्रश्नों में उत्तरदाताओं को उत्तर देने की स्वतन्त्रता नहीं होती क्योंकि प्रत्येक प्रश्न के वैकल्पिक प्रत्युत्तर भी प्रश्न के साथ लिखे रहते हैं तथा सूचनादाता इन्हीं प्रत्युत्तरों में से कोई उत्तर देता है । प्रतिबन्धित प्रश्न

दोहरे उत्तरों वाले ( Dichotomous ) अथवा बहु – बैकल्पिक ( Multiple choice ) हो सकते हैं । सामान्यतः दोहरे उत्तरों वाले प्रश्नों का ही निर्माण किया जाता है , जिनमें उत्तरदाता को केवल ‘ हाँ ‘ या ‘ न ‘ में उत्तर देना पड़े । ऐसे प्रश्नों के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं

c.मिश्रित प्रश्न ( Mixed questions ) – इस प्रकार के प्रश्न , जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है , प्रतिबन्धित एवं अप्रतिबन्धित प्रश्नों का मिश्रण होते हैं । इस प्रकार के प्रश्नों में कुछ वैकल्पिक प्रत्युत्तर तो दिए जाते हैं , परन्तु साथ ही सूचनादाता को अन्य कोई प्रत्युत्तर देने की स्वतन्त्रता भी रहती है । आज अधिकांश अनुसूचियों में मिश्रित प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है । प्रश्नों को इनकी प्रकति एवं उद्देश्य तथा उत्तरों के संख्या के आधार पर ही भिन्न श्रेणियों में बाँटा जा सकता है ।

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प्रकति एवं उद्देश्य के आधार पर प्रश्न तीन प्रकार के

 ( 1 ) सूचना सम्बन्धी ( Informative ) प्रश्न – ये प्रश्न सूचनादाता की राय या मत जानने के लिए निर्मित किए जाते हैं ;

( 2 ) परामर्श सम्बन्धी ( Advice seeking ) प्रश्न – इन प्रश्नों की रचना किसी समस्या के बारे में सूचनादाताओं का परामर्श माँगने के लिए की जाती है ; तथा

( 3 ) विवेचनात्मक ( Explanatory ) प्रश्न – इन प्रश्नों का प्रयोग विस्तृत सूचना प्राप्त करने के लिए किया जाता है ।

 प्रश्नों के सम्भावित उत्तरों की संख्या के आधार पर प्रश्नों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है

( 1 ) दोहरे उत्तरों वाले ( Dichotomous ) प्रश्न – इनके सम्भावित उत्तर केवल दो ही होते हैं ;

( 2 ) बहु वैकल्पिक ( Multiple choice ) प्रश्न – इनके अनेक सम्भावित उत्तर होते

 ( 3 ) श्रेणीबद्ध ( Ranking ) प्रश्न – इनमें दिए गए उत्तरों को प्राथमिकता के आधार पर पुनः लिखने के लिए कहा जाता है या उनके सामने बने कोष्ठक में प्राथमिकता को नम्बर ( 1 , 2 , 3 , 4 , 5 , . . . . . . . . ) इत्यादि लिखने के लिए कहा जाता है तथा

 ( 4 ) चेकमार्क ( Check mark ) प्रश्न – इसमें उत्तरदाता को अपने राय वाले उत्तर के सामने चेक मार्क या टिक ( V ) या विरोधी राय वाले उत्तर के सामने क्रास ( ४ ) चिन्ह लगाना पड़ता है ।

अनुसूची द्वारा आँकड़े संकलन करने की प्रक्रिया को निम्नलिखित चरणों में बाँटा जा सकता है

 उत्तरदाताओं का चयन ( Selection of respondents ) – अनुसूची की रचना कर लेने के पश्चात् पहला कार्य उन सूचनादाताओं का चयन करना है जिनसे कि इसकी सहायता से सूचना एकत्रित करनी है । सूचनादाताओं का चरण उपयुक्त निदर्शन प्रणाली द्वारा किया जाता है । _ _ _

 अनुसूची का पूर्व – परीक्षण ( Pre – testing of schedule ) – सूचनादाताओं का चयन कर लेने के पश्चात् इनमें से कुछ सूचनादाताओं से सम्पर्क स्थापित करके अनुसूची का पूर्व – परीक्षण किया जाना , अनुसूची प्रयोग का दूसरा मुख्य चरण है । जिनप्रश्नों या मदों को सूचनादाता नहीं समझते अथवा भिन्न अर्थों में समझते हैं , उन्हें ठीक करके अन्तिम प्रश्नों की सूची का निर्माण किया जाता है । पूर्व – परीक्षण अनुसूची में रह गई कमियों को दूर करने के लिए अनिवार्य है । यदि पहले से ही पूर्व – परीक्षण करके अनुसूची बनाई गई है तो इस चरण की आवश्यकता नहीं है ।

  कार्यकर्ताओं का चयन एवं प्रशिक्षण ( Selection and training of imestigators ) – यदि अध्ययन व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है तो अनेक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है क्योंकि एक ही व्यक्ति सभी सूचनादाताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता है । अतः तीसरा चरण कार्यकर्ताओं का चयन करके उनको प्रशिक्षण देना है । प्रशिक्षण देते समय यह बात ध्यान देने योग्य है कि सभी कार्यकर्ता निर्देशों को अच्छी तरह तथा समान रूप से समझ सकें ताकि व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना कम हो जाए । कार्यकर्ताओं को भी अनुसन्धान की समस्या का पूरा ज्ञान होना अनिवार्य है ताकि अवलोकन का जो अवसर उन्हें मिले उसका भी सदुपयोग किया जा सके । यदि अवलोकन सम्बन्धी कुछ निर्देश कार्यकर्ताओं को देने हैं तो उन्हें भी प्रशिक्षण के समय अच्छी तरह से समझा दिया जाना चाहिए ।

  उत्तरदाताओं से सम्पर्क ( Contacting respondents ) – सूचनादाताओं तथा कार्यकर्ताओं का चयन कर लेने के पश्चात् अगला चरण कार्यकर्ताओं द्वारा उत्तरदाताओं से सम्पर्क स्थापित करके उनको अपना , अपने संगठन तथा अन्वेषण का उद्देश्य बताकर साक्षात्कार के लिए राजी करना है । समय तथा स्थान का निर्धारण भी प्रारम्भिक सम्पर्क में ही हो जाना चाहिए । कुशलता , विनम्रता तथा प्रभावपूर्ण भाषा उत्तरदाताओं से अच्छा सम्पर्क स्थापित करने में सहायक है ।

  साक्षात्कार ( Interview ) – निर्धारित समय एवं स्थान पर पहुँच कर , उत्तरदाता की आयु एवं स्थिति के अनुरूप अभिनन्दन करके , औपचारिक रूप में उससे प्रश्न पूछने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है । साक्षात्कार से पहले अगर किसी प्रकार का सन्देह उत्तरदाता के मन में रह गया हो तो उसे दूर कर देना चाहिए ताकि वह बिना किसी संकोच के प्रश्नों का उत्तर दे सके । इसमें साक्षात्कार की सभी सामान्य सावधानियों का ध्यान रखा जाना भी अनिवार्य है ।

अनुसूचियों की जाँच ( Checking schedules ) – व्यापक सर्वेक्षणों में क्योंकि अनेक कार्यकर्ता अनुसूची द्वारा सूचना संकलन का कार्य करते हैं । अतः मुख्य अनुसन्धानकर्ता द्वारा स्वयं कुछ चुनी हुई अनुसूचियों की जाँच कर लेना अनिवार्य है । वह स्वयं अध्ययन – क्षेत्र में जाकर कार्यकर्ताओं के कार्य की देख – रेख कर सकता है अथवा कुछ सूचनादाताओं से स्वयं सम्पर्क स्थापित करके उनके द्वारा दी गई सूचना की पुनः जाँच कर सकता है । यदि कुछ प्रश्नों का उत्तर पूछना रह गया है ( वैसे अनुसूची में इसकी सम्भावना कम होती है , तो उसे पूछ कर अनुसूची को पूरा किया जा सकता है ।

अनुसूची की उपयोगिता या गुण

( Utility or Merits of a Schedule )

 

 

  1. यथार्थ सूचनाओं की प्राप्ति ( Collection of correct information ) – अनुसूची में क्योंकि अनुसन्धानकर्ता को अवलोकन का अवसर भी मिल जाता है । अतः इस प्रविधि द्वारा सूचनाएँ अधिक यथार्थ या वास्तविक होती हैं । वास्तव में , अनुसन्धानकर्ता घनिष्ठ सम्पर्क द्वारा ऐसा पर्यावरण बना देता है जिससे कि सूचनादाता स्वयं ही यथार्थ सूचना दे देता है ।

  1. सूचना लिखने की सुविधा ( Facility for noting the information ) – इसमें क्योंकि औपचारिक रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं । अतः उनके उत्तर भी उसी समय स्वयं अनुसन्धानकर्ता द्वारा लिख लिए जाते हैं या बहुविकल्पों में से जिस विकल्प के बारे में सूचनादाता बता रहा है उसे टिक ( 1 ) कर दिया जाता है । इस सुविधा के कारण अनुसूची में सूचनादा

ता द्वारा दी गई सूचना को भूल जाने की सम्भावना पूर्णतः समाप्त हो जाती है ।

  1. अवलोकन की सुविधा ( Facility for observation ) – अनुसूची में अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करके औपचारिक साक्षात्कार द्वारा सूचनाएँ एकत्रित करता है जिसके कारण उसे अवलोकन का अवसर भी मिल जाता है । इससे एकत्रित सूचनाओं की प्रामाणिकता की जाँच का कार्य सरल हो जाता – O REDMI NOTE 8 UARY

4.निःसंकोच सूचनाओं की प्राप्ति ( Collection of data without hesitation ) – कई बार सूचनादाता अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं देना चाहते , परन्तु अनुसूची अनुसन्धानकर्ता एवं सूचनादाता में व्यक्तिगत सम्पर्क का अवसर प्रदान करके तथा अनुसन्धानकर्ता द्वारा उसके मन में उत्पन्न सन्देह समाप्त करके निःसंकोच सूचना प्राप्ति में सहायता प्रदान करती है ।

  1. सरल सांख्यिकीय विश्लेषण ( Easy statistical analysis ) – अधिकांश अनुसूचियों में संकेतन पहले से ही कर लिया जाता है अर्थात् वैकल्पिक उत्तर भी प्रश्न के साथ लिखे रहते हैं । सूचनादाताओं को इन्हीं विकल्पों में से उत्तर देने पड़ते हैं जिससे कि वर्गीकरण , सारणीयन तथा निर्वचन की प्रक्रिया अति सरल हो जाती है । अतः अनुसूची में प्रश्नों की पूर्व संरचना सांख्यिकीय विश्लेषण को अधिक सुविधाजनक बना देती है ।

6.प्रत्यक्ष सम्पर्क ( Direct contact ) – अनुसूची प्रविधि अनुसन्धानकर्ता को सूचनादाता से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करने का अवसर प्रदान करती है । इससे अनुसन्धानकर्ता के सूचनादाताओं से घनिष्ठ सम्पर्क ( Rappor ) स्थापित हो जाते हैं और इसीलिए वे सूचनाएँ छिपाने का प्रयास नहीं करते ।

 7.अधिक प्रत्युत्तर ( High response ) – क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष आमने – सामने बैठकर अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता से प्रश्न पूछता है और यदि सम्पर्क ठीक प्रकार से किया गया है तो उसे सरलता से सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है । अतः इसमें प्रत्युत्तर की अधिक ( लगभग शत पतिशत ) सम्भावना रहती है ।

 8.प्रश्नों के सही तथा स्पष्ट उत्तर ( Clear and accurate responses to questions ) – इसमें यदि प्रश्न समझने में कोई कठिनाई आ रही है तो सूचनादाता अनुसन्धानकर्ता से उसका स्पष्टीकरण प्राप्त कर सकता है । अतः इस प्रविधि द्वारा सभी प्रश्नों के सही एवं स्पष्ट उत्तर मिलने की सम्भावना अधिक है ।

अनुसूची की सीमाएँ या दोष

( Limitations or Demerits of a Schedule )

 

1.अधिक धन एवं समय ( More expensive and time consuming ) – प्रत्येक सूचनादाता के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करने , उनसे साक्षात्कार के लिए समय एवं स्थान का निर्धारण करने तथा फिर साक्षात्कार करने के लिए कई बार मिलना पड़ता है जिससे समय और धन अधिक खर्च होता है ।

2.सार्वभौमिक प्रश्नों के निर्माण में कठिनाई ( Problem of universal restions ) – सूचनादाता विविध प्रकार के होते हैं । उनकी शिक्षा , आर्थिक तथा सामाजिक स्तर में काफी अन्तर होता है । अतः ऐसे सार्वभौमिक प्रश्नों का निर्माण करना एक कठिन कार्य हो जाता है जिन्हें सभी सूचनादाता एक ही अर्थ में समझें । व्यक्तिगत भिन्नताओं के कारण प्रश्नों का समान रूप से समझा जाना वास्तव में सम्भव

 3.सूचनादाताओं द्वारा पक्षपात ( Bias by respondents ) – कई बार सूचनादाता । अनुसन्धानकर्ता के व्यक्तित्व द्वारा इतना अधिक प्रभावित हो जाता है कि वह प्रत्येक बात को बढ़ा – चढ़ा कर बताने लगता है या यदि उसमें हीनता की भावना आ जाए तो बहत – सी बातें छिपाने की कोशिश करता है तथा ऐसे उत्तर देता है जिससे उसकी हीनता की भावनाएँ प्रकट न हो सकें । इससे सूचनादाताओं द्वारा दी गई सूचनाओं में पक्षपात आ जाता है ।

  1. साक्षात्कारकर्ताओं ( कार्यकर्ताओं ) के चयन एवं प्रशिक्षण में कठिनाई ( Dif ficulty of appointing and training investigators ) – यदि अध्ययन व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है तो अनेक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है जोकि सूचनादाताओं से सम्पर्क स्थापित करके अनुसूची द्वारा सूचना एकत्रित कर सकें । अच्छे कार्यकर्ताओं , जोकि अपने कर्त्तव्य एवं विषय के प्रति निष्ठावान हों , का चयन करना एक कठिन कार्य है ।

5.सीमित क्षेत्र का अध्ययन ( Study of limited area ) – अनुसूची का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसका प्रयोग केवल सीमित क्षेत्र के अध्ययन के लिए ही किया जा सकता है । यदि सूचनादाता अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं तो सभी से व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना एक कठिन कार्य हो जाता है । यदि अधिक कार्यकर्ता इसे भरने के लिए नियुक्त किए जाते हैं तो उनके द्वारा व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना अधिक रहती है ।

  1. उत्तरदाताओं से सम्पर्क की समस्या ( Problem of contacting respondents ) – अनुसूची में प्रत्येक सूचनादाता से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है जोकि वास्तव में एक कठिन कार्य है । यदि सूचनादाता का जीवन बड़ा व्यस्त है या वह ऐसे व्यवसाय में लगा हुआ है कि उससे सरलता से सम्पर्क स्थापित करना कठिन है , तो इसमें काफी समय एवं धन व्यर्थ ही खर्च हो जाता है ।

अनुसूची का एक उदाहरण ( Example of a Schedule ) अनुसूची को और अधिक अच्छी तरह से समझने के लिए यहाँ नमूने के रूप में समाज के विभिन्न वर्गों में राजनीतिक चेतना का अध्ययन करने के लिए एक वास्तविक अनुसूची का निर्माण किया गया है । समाज के विभिन्न वर्गों में राजनीतिक चेतना का अध्ययन

1 . परिचयात्मक सामग्री 1 . 1 आयु समूह : 1 . 25 वर्ष तक

 2 . 26 से 34 वर्ष 3 . 35 से 44 वर्ष 4 . 45 से 54 वर्ष 5 . 55 से 65 वर्ष

3 1 . 2 वैवाहिक स्थिति : 1 . अविवाहित हैं 2 . विवाहित हैं 3 . अन्य 1 . 3 परिवार के सदस्यों के बारे में जानकारी : क्रमसंख्या | सम्बन्ध | आयु । वैवाहिक स्थिति | शिक्षा व्यवसाय 1 .

 4 क्या आप परिवार के मुखिया हैं ? : 1 . हाँ 2 . नहीं 1 .

 5 धर्म ( आप किस धर्म को मानते हैं ? ) : 1 . हिन्दू 2 . मुस्लिम 3 . अन्य . . . . . 1 .

6 जाति ( आपकी जाति क्या है ? ) : . . . . . . . . . . . . . . 1 .

7 शिक्षा ( आप कहाँ तक पढ़े हैं ? ) : 1 . प्राइमरी 2 . मिडिल 3 . हाई स्कूल 4 . कॉलेज 1 .

8 व्यवसाय ( आप क्या धन्धा करते हैं ? ) : . . . . . . . . . . . . 1 .

 9 आपके परिवार की कुल लगभग मासिक आय क्या है ? 1 .

10 आप यहीं के रहने वाले हैं या आप यहाँ अपने व्यापार या नौकरी की खातिर रहते हैं :

1 . हाँ , यहीं का रहने वाले 2 . व्यापार की खातिर 3 . नौकरी की खातिर । 1 .

11 . क्या आप मन्दिर / मस्जिद / गिरजाघर जाते हैं ? : 2 . नहीं 1 .

 12 क्या आप अपने परिवार में परम्परागत संस्कारों को पूरा करते हैं ? : | 1 . हाँ , सभी संस्कारों को करते हैं 2 . अधिकतर संस्कारों को करते हैं । 3 . कभी – कभी संस्कार कर लेते हैं । 4 . कभी नहीं करते 2 .

 राजनीतिक चेतना 2 . 1 आपके निर्वाचन क्षेत्र ( Constituency ) से राज्य विधान सभा का सदस्य ( M . L . A . ) कौन है ? . . . 2 . 2 आपके निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य ( M . P . ) कौन हैं ? : 2 . 3 आपके प्रदेश ( प्रदेश का नाम देकर ) के मुख्यमन्त्री का क्या नाम है ? : 3 .

 4 इन राज्यों में किन दलों की सरकारें हैं ? : 1 . पंजाब . . . . . . . . . . . . . . . . 2 . तमिलनाडु 2 . 5 राज्य विधानसभा के भंग होने पर राज्य का शासन किसकी देख – रेख में होता है ? : 1 . प्रधानमन्त्री 2 . मुख्यमन्त्री 3 . राज्यपाल ७ . पता नहीं । 2 .

 6 पिछले लोकसभा के चुनाव कब हुए थे ? : 1 . 2004 2 . 1999 3 . 1989 0 . पता नहीं 2 . 7 भारत सरकार का संवैधानिक मुखिया कौन है ? : 1 .

. प्रधानमन्त्री 3 . मुख्य न्यायाधीश ( 0 . पता नहीं 2 . 8 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन हैं ? : 1 . डॉ . मनमोहन सिंह 2 . श्रीमती सोनिया गांधी 3 . श्री प्रणव मुकर्जी 0 . पता नहीं 2 . 9 वर्तमान लोकसभा में मान्यता प्राप्त विपक्षी नेता कौन है ? : 1 . श्री अटल बिहारी वाजपेयी 2 . श्री लालू प्रसाद यादव 3 . श्री प्रमोद महाजन 4 . कोई भी नहीं 0 . पता नहीं 2 . 10 किसी ऐसे देश का नाम बताइए जिसके साथ हमारे देश के सम्बन्ध अच्छे हैं या अच्छे नहीं हैं ? : – 1 . अच्छे नहीं हैं 2 . अच्छे हैं . . . 2 .

 11 संयुक्त राष्ट्र संघ ( U . N . O . ) का मुख्यालय ( Headquarter ) कहाँ है ? : 1 . न्यूयॉर्क 2 . वाशिंगटन 3 . पेरिस 0 . पता नहीं सूचनादाता का नाम . सूचनादाता का पता * साक्षात्कार स्थल . . . . . . . . . . . . . . साक्षात्कार समय . . . . . . . . . . . अन्य विवरण . . .

 

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