अनुसूचित जनजातियों के सम्बन्ध में संवैधानिक व्यवस्थाएं
( CONSTITUTIONAL PROVISIONS REGARDING SCHEDULED TRIBES ) . . . .
– पांचवीं अनुसूची में जनजातीय सलाहकार परिषद की नियुक्ति की व्यवस्था है जिसमें अधिकतम बीस सदस्य हो सकते हैं , जिनमें से तीन – चौथाई सदस्य राज्य विधान सभाओं के अनुसूचित जनजातियों के होंगे ।
-अनुच्छेद 324 एवं 244 में राज्यपालों को जनजातियों के सन्दर्भ में विशेषाधिकार प्रदान किये गये हैं ।
-संविधान में कुछ अनुच्छेद ऐसे भी हैं जो मध्य प्रदेश . छत्तीसगढ़ , असम , बिहार , झारखण्ड , ओडिशा , आदि के जनजाति – क्षेत्रों के लिए विशेष सुविधाएं देने से सम्बन्धित हैं । इन लोगों के लिए नौकरियों में प्रार्थना – पत्र देने एवं आयु सीमा है । शिक्षण संस्थाओं में भी इन्हें शुल्क से मुक्त किया गया है एवं कुछ स्थान इनके लिए सुरक्षित रखे गये हैं । स
– 93वां संवैधानिक संशोधन ( 2005 ) निजी शिक्षण संस्थानों ( अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोडकर ) में अनसचित जाति , जनजाति एवं सामाजिक व शैक्षणिक दष्टि से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ देना है । संविधान में रखे गये विभिन्न प्रावधानों का उद्देश्य जनजातियों को देश के अन्य नागरिकों के समकक्ष लाना है । उन्हें देश की मुख्य जीवनधारा के साथ जोड़ना तथा एकीकरण करना है जिससे कि वे देश की आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवसा में भागीदार बन सके । पण्डित नेहरू भी जनजातियों के विकास में काफी रुचि रखते थे । वे नहीं चाहते थे कि उन पर कोई चीज थोपी जाय । उनका कहना था कि हमें उनकी कला एवं संस्कृति के विकास को बढ़ावा देना चाहिए , उनके भू – अधिकारों का आदर करना चाहिए , उनमें स्वयं का शासन करने की क्षमता एवं मानवीय चरित्र का विकास करना चाहिए ।
-अनुसूचित जनजातियों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों की रक्षा की जाए और इन्हें सभी प्रकार के शोषण तथा सामाजिक अन्याय से बचाया जाए । ( अनुच्छेद 46 )
– सरकार द्वारा संचालित अथवा सरकारी कोष से सहायता पाने वाले शिक्षालयों में उनके प्रवेश पर कोई रुकावट न रखी जाए । ( अनुच्छेद 29 , 2 )
– दुकानों , सार्वजनिक भोजनालयों , होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों का उपयोग करने पर लगी रुकावटें हटाई जाएँ , जिनका पूरा या कुछ व्यय सरकार उठाती है अथवा जो जनसाधारण के निमित्त समर्पित हैं । ( अनुच्छेद 15 , 2 )
– हिन्दुओं के सार्वजनिक स्थानों के द्वार कानूनन समस्त हिन्दुओं के लिए खोल दिए जाएँ । ( अनुच्छेद 25 ख )
– लोकसभा तथा राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों के लिए जनसंख्या के आधार पर 25 जनवरी , सन् 2015 तक के लिए निश्चित सीटें सुरक्षित कर दी जाएँ । ( अनुच्छेद 324 , 330 तथा 342 ) ।
– यदि सार्वजनिक सेवाओं या सरकारी नौकरियों में जनजातीय लोगों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व न हो , तो सरकार को उनके लिए स्थान सुरक्षित रखने का अधिकार देना और सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों के समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करना । ( अनुच्छेद 16 और 335 ) ।
– जनजातियों के कल्याण तथा हितों के प्रयोजन से राज्यों में जनजाति सलाहकार परिषद् तथा पृथक् विभागों की स्थापना की जाए और केन्द्र में एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जाए । ( अनुच्छेद 164 , 338 तथा पाँचवी अनुसूची ) ( 8 ) अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन तथा नियंत्रण के लिए विशेष व्यवस्था की जाए । ( अनुच्छेद 224 और पाँचवी तथा छठी अनुसूचियाँ ) ।
– अनुच्छेद 244 ( 2 ) के अनुसार असम की जनजातियों के लिए जिला और प्रादेशिक परिषद् ( District and Regional Council ) स्थापित करने का विधान है ।
– संविधान के भाग 6 , अनुच्छेद 164 में असम के अतिरिक्त बिहार , मध्य प्रदेश और उड़ीसा में जनजातीय मंत्रालय स्थापित करने का विधान है ।
संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 46 में जनजातियों की शिक्षा की उन्नति और आर्थिक हितों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान देना राज्य का कर्त्तव्य माना गया है ।
– अनुसूचित जनजातियों के हित में भारत में स्वतन्त्रतापूर्वक आने – जाने , रहने और बसने तथा सम्पत्ति खरीदने , रखने और बेचने के आम अधिकारों पर राज्य द्वारा उचित प्रतिबंध लगा सकने की कानूनी व्यवस्था । ( अनुच्छेद 19 , 5 ) ।
– संविधान के बारहवें भाग के 275 अनुच्छेद के अनुसार , केन्द्रीय सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण एवं उनके उचित प्रशासन के लिए विशेष धनराशि देगी ।
– संविधान के पन्द्रहवें भाग के 325 अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी को भी धर्म , प्रजाति , जाति एवं लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जायेगा ।
– सोलहवें भाग के 330 व 332वें अनुच्छेद में लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित किये गये हैं ।
– 335वां अनुच्छेद आश्वासन देता है कि सरकार नौकरियों में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखेगी ।
– 338वें अनुच्छेद में राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी है । यह अधिकारी प्रतिवर्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा ।
प्रशासनिक व्यवस्था ( Administrative Arrangement ) आन्ध्र प्रदेश , बिहार , गुजरात , हिमाचल प्रदेश , मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र , ओडिशा और राजस्थान के कुछ क्षेत्र अनुच्छेद 224 और संविधान की पांचवीं अनुसूची के अन्तर्गत ‘ अनुसूचित ‘ ( Scheduled ) किये गये हैं । इन राज्यों के राज्यपाल प्रति वर्ष अनुसूचित क्षेत्रों की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देते हैं । असम , मेघालय और मिजोरम का प्रशासन संविधान की छठी अनुसूची के उपबन्धों ( Provisions ) के आधार पर किया जाता है । इस अनुसूची के अनुसार उन्हें स्वायत्तशासी ( Autonomous ) जिलों में बांटा गया है । इस प्रकार के आठ जिले हैं — असम के उत्तरी कछार पहाड़ी जिले तथा मिकिर पहाड़ी जिले , मेघालय के संयुक्त खासी – जैयन्तिया , जोवाई और गारो पहाड़ी जिले तथा मिजोरम के चकमा , लाखेर और पावी जिले । प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले में एक जिला परिषद होती है जिसमें 30 से अधिक सदस्य नहीं होते । इनमें चार मनोनीत हो सकते हैं और शेष का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है । इस परिषद को कुछ प्रशासनिक , वैधानिक और न्यायिक अधिकार प्रदान किये गये हैं ।
कल्याणकारी एवं सलाहकार संस्थाएं ( Welfare and Advisory Agencies ) केन्द्र सरकार के गृह मन्त्रालय का यह दायित्व है कि वह अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण के लिए योजनाएं बनाये और उन्हें क्रियान्वित करे । अगस्त 1978 में संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए एक कमीशन का स्थापना की गयी । इसका एक चेयरमैन और चार सदस्य बनाये कमीशन 1955 के नागरिक अधिकार अधिनियम , 1955 ) के अन्तर्गत संविधान में इन के लिए सुरक्षा सम्बन्धी किये गये प्रावधानों के बारे में जांच करता है और उचित उपाय सुझाता है । संसदीय समितियां भारत सरकार ने 1968 , 1971 तथा 1973 में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संविधान में रन सरक्षा एवं उनके कल्याण की जांच के लिए तीन संसदीय समितियां भी नियुक्त की । वर्तमान में संसद की एक स्थायी समिति बनायी गयी है जिसके सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष रखा गया है । इस समिति के 30 सदस्य होते हैं जिनमें से 2 लोकसभा और 10 राज्यसभा में से लिये जाते है । राज्यों में कल्याण विभाग राज्य सरकारों एवं केन्द्रशासित क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की देख – रेख एवं कल्याण के लिए पृथक् विभागों की स्थापना की गयी है । प्रत्येक राज्य का अपना विशिष्ट प्रशासन का तरीका है । बिहार , मध्य प्रदेश और ओडिशा में संविधान के अनुच्छेद 164 के अन्तर्गत अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु अलग मन्त्री नियुक्त किये जाते हैं । कुछ राज्यों में केन्द्र की भांति संसदीय समितियों के समान विधानमण्डलीय समितियां बनायी गयी हैं ।
विधानमण्डलों में प्रतिनिधित्व ( Representation in Legislatures ) संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के द्वारा लोकसभा तथा राज्यों के विधानमण्डलों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान सुरिक्षत किये गये हैं । प्रारम्भ में यह व्यवस्था 10 वर्षों के लिए थी , जो 95वें संवैधानिक संशोधन ( 2009 ) के अन्तर्गत बढ़ाकर 25 जनवरी , 2020 तक कर दी गयी है । संसदीय अधिनियम कद्वारा उन केन्द्रशासित क्षेत्रों में जहां विधानसभाएं है , इस प्रकार का आरक्षण किया गया है । वर्तमान में लोकसभा में 47 और विधानसभाओं में 557 स्थान अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित किये गये हैं । पंचायती राज व्यवस्था के लागू होने लोगों के लिए ग्राम पंचायतों एवं अन्य स्थानीय निकायों में भी स्थान सरक्षित किये गये हैं ।
राजकीय सेवाओं में आरक्षण ( Reservations in Government Services ) अखिल भारतीय आधार पर खुली प्रतियोगिता द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों या अन्य प्रकार से की जाने वाले नियुक्तियों में अनुसूचित जनजातियों के 7 . 5 स्थान सुरक्षित किये गये हैं । ग्रुप ‘ सी ‘ और ‘ डी ‘ के पदों के लिए जिनमें स्थानीय और प्रान्तीय आधार पर नियुक्तियां की जाती हैं , प्रत्येक प्रान्त और केन्द्रशासित प्रदेश अनुसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुपात में ही स्थान सुरक्षित रखता है । ग्रुप ‘ बी ‘ , ‘ सी ‘ और ‘ डी ‘ में होने वाली विभागीय परीक्षाओं के आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों तथा ग्रुप ‘ बी ‘ , ‘ सी ‘ , ‘ डी ‘ , और ‘ ए ‘ में पदोन्नति में भी अनुसूचित जनजातियों के लिए 7 % स्थान सुरक्षित किये गये हैं , यदि उनमें 66 – % से अधिक सीधी भर्ती न की जाती हो । ग्रुप ‘ ए ‘ जिनमें 2 , 250 रु . या इससे कम वेतन वाले पदों पर की जाने वाली पदोन्नतियों में भी स्थान सुरक्षित किये गये हैं । जनजातियों के लोगों को नौकरियों में प्रतिनिधित्व देने के लिए कई प्रकार की छूट दी गयी है जैसे आयु – सीमा में छूट , उपयुक्तता के मानदण्ड में छूट , चयन सम्बन्धी अनुपयुक्तता में छूट , अनुभव सम्बन्धी योग्यता में छूट तथा ग्रुप ‘ ए ‘ के अनुसन्धान , वैज्ञानिक तथा तकनीकी सम्बन्धी स्तरों में छूट । राज्य सरकारों ने भी अनुसूचित जातियों को राजकीय सेवाओं में भर्ती करने और उन्हें पदोन्नतियां देने के सम्बन्ध में कई प्रावधान किये हैं । केन्द्र सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों से सम्पर्क करने के लिए कुछ अधिकारियों की नियुक्तियां की गयी है जो यह देखेंगे कि इनके लिए स्थान सुरक्षित रखने के आदेशों का पालन हुआ है या नहीं । केन्द्र सरकार ने 25 फरवरी , 2007 को अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के माध्यम से स्नातक स्तर के मेडिकल और डेन्टल दियक्रमों में प्रवेश हेतु अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवारों को वर्ष 2008 से आरक्षण देने