अनुसन्धान प्ररचना का वर्गीकरण या प्रकार

अनुसन्धान प्ररचना का वर्गीकरण या प्रकार

 

( Classifications or Types of Research Design )

 

 

विभिन्न अनुसन्धान प्ररचनाओं को अनेक प्राधारों पर वर्गीकृत किया गया है । सामान्यतः अनुसन्धान का वर्गीकरण दो अाधारों पर किया जा सकता है

 1 . अध्ययन के उद्देश्य के आधार पर , एवं

2 . अध्ययन के उपागम ( Approach ) के आधार पर ।

  1. अध्ययन के उद्देश्य के आधार पर ( On the basis of the object of the study ) – अध्ययन के उद्देश्य के आधार पर अनुसन्धान प्ररचनायों को पून . निम्न चार उपवर्गों में विभाजित किया जा सकता है

A . अन्वेषणात्मक अनुसन्धान प्ररचना ( Exploratory Research F Design ) ;

B . विवरणात्मक या निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना ( Descriptive or Diagnostic Research Design ) ;

C . प्रयोगात्मक अनुसन्धान प्ररचना ( Experimental Research Design ) ; D . मूल्यांकनात्मक अनुसन्धान प्ररचना ( Evaluative Research Design ) .

 2 . अध्ययन के उपागम के आधार पर ( On the basis of the approach of the study ) – अध्ययन के उपागम के आधार पर भी अनुसन्धान प्ररचनामों को पाँच उपवर्गों में रखा जा सकता है A . सर्वेक्षणात्मक अनुसन्धान प्ररचना ; B . क्षेत्र अध्ययन सम्बन्धी अनुसन्धान प्ररचना C . प्रयोग सम्बन्धी अनुसन्धान प्ररचना : D . ऐतिहासिक अनुसन्धान प्ररचना ; E . वैयक्तिक अध्ययन सम्बन्धी अनुसन्धान प्ररचना । लेकिन अनेक समाज वैज्ञानिकों ने भी अनुसन्धान प्ररचना को अनेक आधारों . पर अनेक प्रकारों में वर्गीकृत किया है । क्लेयर सेलिज तथा अन्य ने अपनी कृति ‘ रिसर्च मेथड्स इन सोशल रिलेशन्स ‘ में अनुसन्धान प्ररचना का वर्गीकरण प्रमुख रूप से तीन श्रेणियों में किया है ! .

1 . प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अध्ययन ( Formulative or Exploratory Studies ) – इसका मूल उद्देश्य अधिक सूक्ष्मता के साथ अध्ययन करने , अथवा उपकल्पनाओं का विकास करने अथवा अग्रिम अनुसन्धान के लिए प्राथमिकतामों ( Priorities ) की स्थापना करना होता है ।

 2 विवरणात्मक अथवा निदानात्मक अध्ययन ( Descriptive or Diagnostic Studies ) – – इस प्रकार की प्ररचनाओं का उद्देश्य एक दी हुई परिस्थिति की विशेषताओं का वर्णन करना होता है ।

 3 . प्रयोगात्मक अध्ययन ( Experimental Studies ) – इस प्रकार की प्ररचनाओं का उद्देश्य उपकल्पनाओं का परीक्षण करना होता है ।

पाल्मड जे . कान्ह ने भी प्ररचना स्तर ( Level of Design ) के आधार पर चार प्रकार की अनुसन्धान प्ररचनाओं का उल्लेख किया है

1 . देवीय अवलोकन पूर्व – अनुसन्धान पक्ष ( Random Observation Pre – Research Phase ) ,

 2 . अन्वेषणात्मक अथवा प्रतिपादनात्मक अध्ययन ,

3 . निदानात्मक अथवा विवरणात्मक अध्ययन ,

 4 . प्रयोगात्मक प्ररचनाएँ ।

सैन्फोर्ड लेबोबिज एवं रोबर्ट हैगडोर्न के अनुसार अनुसन्धान प्ररचनाओं को तीन वर्गों में रखा जा सकता है :

1 . वैयक्तिक अध्ययन ( Case Studies ) ,

2 . सर्वेक्षण प्ररचनाएँ ( Survey Designs ) , A . सह – सम्बन्धात्मक अध्ययन ( Correlational Study ) B . पैनल प्ररचना ( Panel Design ) ,

 3 . प्रयोगात्मक प्ररचना ( Experimental Design ) , हम यहां किसी एक विद्वान् के वर्गीकरण को न प्रस्तुत कर इनके आधार पर प्रमुख प्ररचनाओं की विस्तार से व्याख्या करेंगे । हमारे अनुसार प्रमखत : अनसन्धान प्ररचनाओं को तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है , वे हैं

 1 . प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसन्धान प्ररचना ।

 2 . विवरणात्मक अथवा निदानात्मक अनुसन्धान प्ररचना ।

3 . प्रयोगात्मक अनुसन्धान प्ररचना ।

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अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक शोध अभिकल्प ( Exploratory or Formulative Research Design ) अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प वह प्ररचना है जिसका उद्देश्य अज्ञात तथ्यों की खोज करना अर्थात् तथ्यों के बारे में नवीन अन्तर्दृष्टि प्राप्त करना है ताकि यथार्थ समस्या का निर्माण किया जा सके अथवा प्राक्कल्पनाएँ बनाई जा सकें । किसी संरचनात्मक अध्ययन करने से पहले शोधकर्ता द्वारा किसी प्रकरण के बारे में जानकारी » प्राप्त करने , अवधारणाओं का स्पष्टीकरण करने , अग्रिम शोध के लिए प्राथमिकताओं का पता लगाने अथवा महत्त्वपूर्ण समस्याओं का पता लगाने इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी इस शोध अभिकल्प या प्ररचना का निर्माण किया जाता है ।

अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प या प्ररचना के निर्माण में निम्नलिखित तीन विधियाँ सहायक हो सकती हैं –

 ( 1 ) सामाजिक विज्ञान या अन्य सम्बन्धित साहित्य का पुनरीक्षण ;

( 2 ) अध्ययन समस्या से सम्बन्धित अनुभवी व्यक्तियों का सर्वेक्षण तथा

( 3 ) अन्तर्दृष्टि – प्रेरक उदाहरणों का विश्लेषण ।

 साहित्य का पुनरीक्षण सबसे सरल एवं लाभदायक विधि है जिसके द्वारा शोध समस्या को स्पष्ट किया जा सकता है तथा प्राक्कल्पनाओं का निर्माण किया जा सकता है । इससे शोधकर्ता को अन्य विद्वानों द्वारा प्रतिपादित अनेक अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों को अपने अध्ययन क्षेत्र में लागू करने का अवसर मिल जाता है । अनुभवी व्यक्तियों के सर्वेक्षण से शोधकर्ता को नवीन विचार प्राप्त होते हैं तथा विभिन्न चरों में पाए जाने वाले सम्बन्ध भी स्पष्ट होते हैं ।

यदि ऐसे अनुभवी व्यक्तियों की सहायता उपलब्ध न हो तो अन्तर्दृष्टि प्रेरक उदाहरण भी काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं । इसमें कुछ चयनित उदाहरणों का अध्ययन किया जाता है । इस कार्य हेतु उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया जा सकता है या असंरचित साक्षात्कार किया जा सकता है या किसी अन्य साधन का प्रयोग किया जा सकता है । भारत में हो रहे अधिकांश अध्ययनों की प्रकृति अन्वेषणात्मक प्रकार की है , क्योंकि उनका उद्देश्य नवीन बातों का पता लगाना है । इन अध्ययनों की सहायता से बाद में प्राक्कल्पनाओं का निर्माण किया जाता है । ऐसी शोध प्ररचनाएँ अधिक लचीली होती है तथा जैसे – जैसे शोधकर्ता को समस्या के विभिन्न पहलुओं का पता चलता रहता है वह इन्हें अपने अध्ययन में सम्मिलित करता रहता है ।

वर्णानात्मक शोध अभिकल्प ( Descriptive Research Design ) वर्णनात्मक शोध अभिकल्प या प्ररचना वह है जिसका उद्देश्य समस्या के सम्बन्ध में पूर्ण , यथार्थ एवं विस्तृत तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना है । इसके द्वारा वास्तविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और इन तथ्यों के आधार पर समस्या का वर्णनात्मक विवरण अथवा चित्रण प्रस्तुत किया जाता है । इस प्रकार की प्ररचना की मूल आवश्यकता यथार्थता अथवा पूर्ण सूचनाएँ हैं । इसलिए इसका निमाण इस प्रकार से किया जाता है कि पक्षपात कम – से – कम हो और तथ्यों की विश्वसनीयता अधिक हो । शोध प्ररचना द्वारा समुदाय का चित्रण , इसके सदस्यों के आयु वितरण , राष्ट्रीय तथा धार्मिक पृष्ठभूमि , भौतिक तथा मानसिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा के स्तर पर अथवा 5 = सामुदायिक सुविधाओं , मकानों के प्रकार , उपलब्ध पुस्तकालयों तथा अपराधों की संख्या अथवा सामाजिक संगठन की संरचना तथा व्यवहार के प्रमुख प्रतिमानों आदि  विविध विषयों का अध्ययन किया गया है । जनजातियों के चित्रण , सामाजिक संगठन प्र की संरचना तथा अपराधों की संख्या एवं विवरण सम्बन्धी अध्ययनों में इस प्ररचना का प्रयोग किया गया है ।

 सैल्टिज , जहोदा तथा अन्य विद्वानों ने वर्णनात्मक शोध अभिकल्प या प्ररचना के निम्नलिखित चरण बताए हैं

( 1 ) अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण ;

( 2 ) तथ्यों के संकलन की विधियों की प्ररचना ;

( 3 ) निदर्शन का चयन

( 4 ) सामग्री का संकलन तथा परीक्षण तथा

( 5 ) परिणामों का विश्लेषण

इस प्रकार , वर्णनात्मक अध्ययनों का प्रथम चरण अध्ययन के उद्देश्यों को पूर्णतः स्पष्ट करना है ताकि उपयुक्त सामग्री का संकलन किया जा सके । तत्पश्चात् सामग्री संकलन हेतु प्रविधियों के चयन का प्रश्न सामने आता है । शोध की समस्या तथा समग्र की प्रकृति को सामने रखते हुए यह निर्णय लिया जाता है कि प्रस्तावित अध्ययन हेतु कौन – सी प्रविधि सर्वाधिक उपयुक्त होगी । कई बार एक से अधिक प्रविधियों को एक – साथ प्रयोग में लाया जाता है । वर्णनात्मक अध्ययन निदर्शन पर आधारित होते हैं तथा उपयुक्त निदर्शन पद्धति एवं निदर्शन के आकार के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाना अनिवार्य है ।

 निदानात्मक शोध अभिकल्प ( Diagnostic Research Design ) जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि शोध – कार्य का आधारभूत उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति तथा ज्ञान की वृद्धि है । परन्तु यह भी हो सकता है कि शोध – कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो । इसी प्रकार की शोध अभिकल्प या प्ररचना का निदानात्मक शोध – प्ररचना कहते हैं । अर्थात् विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान का खोज करने वाले शोध – कार्य को निदानात्मक शोध कहते हैं । इस प्रकार के शोधम शोधकत्ता समस्या का हल प्रस्तुत करता है , न कि स्वयं उस समस्या को हल करना प्रयास में जुट जाता है ।

समस्या को हल करना समाज – सुधारक , प्रशासक तथा नता का काम होता है । शोधकर्ता केवल वैज्ञानिक पद्धतियों के द्वारा समस्या के कारणों का लेने के बाद उसका उचित समाधान किस ढंग से सर्वोत्तम रूप में हो सकता बात की खोज करता है । इसीलिए निदानात्मक शोध – कार्य में समस्या का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से करके समस्या की गहराई में पहँचने का प्रयास किया जाता है जिससे कि समस्या के प्रत्येक सम्भावित कारण का पता ठीक ढंग से लग सका । इस प्रकार की खोज इस कारण की जाती है क्योंकि समस्या – विशेष का हल तत्काल ही करने की आवश्यकता होती है । सम्भावित हल को ध्यान में रखते हुए प्राक्कल्पना ( Hypothesis ) का निर्माण किया जाता है जिससे कि अध्ययन – काय वैज्ञानिक ढंग से किया जा सके ।

परीक्षणात्मक शोध अभिकल्प ( Experimental Research Design ) परीक्षणात्मक शोध प्ररचना प्रयोगशाला में प्रयोग की तरह दो चरों के परस्पर सम्बन्ध का अध्ययन करने के लिए बनाई जाती है । इसमें एक नियन्त्रित ( Controlled ) समूह बनाया जाता है तथा दूसरा प्रायोगिक ( Experimental ) समूह । नियन्त्रित समूह को जैसे वह है वैसे ही रहने दिया जाता है , जबकि प्रायोगिक समूह में जिस कारक का प्रभाव देखना है उसका प्रकाशकरण ( Exposure ) किया जाता है । अध्ययन में वैज्ञानिक विधि के सभी चरण अपनाए जाते हैं ।

 परीक्षणात्मक शोध के तीन प्रकार ( types ) होते हैं

( 1 ) पश्चात् परीक्षण ( After – only experiment ) – इसके अन्तर्गत सभी दृष्टि से प्रायः समान विशेषताओं व प्रकृति ( nature ) वाले दो समूहों को चुन लिया जाता है जिनमें से एक समूह नियन्त्रित समूह और दूसरा परीक्षणात्मक समूह कहलाता है । नियन्त्रित समूह में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाया जाता है , जबकि परीक्षणात्मक समूह में किसी एक कारक के द्वारा परिवर्तन लाने का प्रयत्न किया जाता है । इस प्रकार यदि प्रथम समूह दूसरे समूह से भिन्न हो जाता है तो उसी कारक को उस परिवर्तन का कारण मान लिया जाता है । उदाहरणार्थ , दो समान समूहों में से एक समूह में , जिसे परीक्षणात्मक समूह माना गया है , सह – शिक्षा का प्रसार किया जाए । कुछ समय के पश्चत् उस समूह की तुलना दूसरे से की जाए । यदि दोनों में कुछ अन्तर ( जैसे प्रेम – विवाह की अधिक घटनाएँ ) देखने को मिलता है तो वह सह – शिक्षा के कारण समझा जाएगा ।

( 2 ) पूर्व – पश्चात् परीक्षण ( Before – after experiment ) – इसके अन्तर्गत अध्ययन के लिए केवल एक ही समूह का चुनाव किया जाता है और उसी का अध्ययन एक अवस्था विशेष के पहले और बाद में किया जाता है । इन दोनों अध्ययनों के अन्तर को देखा जाता है और उसे परिवर्तित परिस्थिति का परिणाम मान लिया जाता है । उदाहरणार्थ , संयुक्त परिवार प्रणाली का अध्ययन औद्योगीकरण के पूर्व और फिरऔधोगीकरण के पश्चात् किया जाता है और यदि इन दोनों अध्ययनों की तुलना से यह पता चले कि औद्योगीकरण के पूर्व संयक्त परिवार संगठित अवस्था में था जबकि औद्योगीकरण के पश्चात उसमें विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो गई तो संयुक्त परिवार के विघटन को औद्योगीकरण का परिणाम मान लिया जाएगा ।

( 3 ) कार्यान्तर – तथ्य परीक्षण ( Expost – facts experiment ) – इस प्रकार का परीक्षण किसी ऐतिहासिक घटना का अध्ययन करने के लिए किया जाता है । पर ऐतिहासिक घटनाओं को दोहराना शोधकर्ता के वश में नहीं होता । अतः वह दो समूहों का चुनाव करता है जिनमें से एक में वह घटना ( जिसका कि अध्ययन उसे करना है ) घटित हो चुका ह जबकि दूसरे में नहीं । इन दोनों समूहों की पुरानी परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करके यह पता लगाने का प्रयल किया जाता है कि जिस समूह में वह घटना घटित हुई है वह किन कारणों से हई है । संक्षेप में , ऐतिहासिक घटना – चक्रों का परीक्षण कर वर्तमान घटनाओं या अवस्थाओं के कारणों की खोज कार्यान्तर – तथ्य परीक्षण कहलाता है ।

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अन्वेषणात्मक एवं वर्णनात्मक शोध प्रारूप में तुलना अन्वेषणात्मक एवं वर्णनात्मक शोध

 – प्रारूपों में निम्नलिखित आधारों पर तुलना की जा सकती है अन्वेषणात्मक शोध पारूप की तुलना में वर्णनात्मक शोध प्रारूप ज्यादा संरचित होता है ।

1.अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप में उपकल्पना का निर्माण अध्ययन के अंत में किया जाता है जबकि वर्णनात्मक शोध – प्रारूप में उपकल्पना का निर्माण प्रथम चरण में ही कर लिया जाता है और तब इसकी जाँच की जाती है ।

 2.अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप की तुलना में वर्णनात्मक शोध प्रारूप में उपकल्पना ज्यादा विशेषीकृत होती है । दोनों ही शोध प्रारूपों का प्रयोग एक ही अध्ययन में भी संभव है , जैसे – पहले अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप का प्रयोग कर समस्या के विषय में जानकारी हासिल करके अंत में उपकल्पना का निर्माण कर लिया जाएऔर तब इस उपकाल्पता को जाँच वर्णनात्मक शोध बाका के द्वारा की जाए ।

 3.अन्वेषधायक शोध रूप का प्रयोग तब किया जाता जल अनुसंधानकता के लिए समस्या बिल्कुल नई होती है । बुसरी तरफ वर्णनात्मक शोधप्रारूप का प्रयोग कत्र किया जाता है जन अनुसंधानको समस्या से पूरी तरह अबात रक्तता है । गुणात्मक एवं मात्रात्मक पद्धतियां समाजशास्त्र आपूत घतचाओं के अध्ययन के लिए गुणात्मक पद्धतियों का जच्या कूतं घनाओं के अध्ययन के लिए परिमाणात्मक – पद्धतियों का प्रयोग करता है । कहाँ कौन सी पद्धति का प्रयोग किया जायेगा , यह विषय की प्रकृति पर निर्भर करता है । कहीं किसी विषय के अध्ययन हेतु गुणात्मक एवं परिणात्मक दोनों ही पजातियों का साथ साथ प्रयोग किया जाता है । यहां हम इन्हीं पर विचार करेंगे । गुणात्मक पद्धतिया जन पजातियों को सहायता से अमूर्त तथ्यों का अध्ययन किया जाता है उन्हें ही गुणात्मक पद्धतिया कहा जाता है ।

 समाजशास्त्र म अमत तथ्यों या घटनाओ . जैसे सामाजिक सम्बन्धों सामाजिक मूल्यों , धारणाओं , विश्वासों , प्रवृत्तियों आदि का अध्ययन करने के लिए गुणात्मक पद्धतियों का ही प्रयोग प्रमुखतः किया जाता है । समाजशास्त्र में प्रयुक्त गुणात्मक पद्धतिया निम्नांकित हैं –

1आगमन एवं निगमन विधि ,

 2वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति ,

 3 . समाजमिति ,

 4 . सामाजिक दूरी का पैमाना , तथा

  1. सामुदायिक अध्ययन पद्धति ।

परिमाणात्मक पद्धतियां मूर्त तथ्यों या घटनाओं का अध्ययन करने के लिए जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है , उन्हें परिमाणात्मक पद्धतिया कहते हैं । समाजशास्त्र में इनका प्रयोग भी काफी मात्रा में किया जाता है । ये पद्धतियां निम्नलिखित है

1सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति ,

2 सांख्यिकी पद्धति

3 . ऐतिहासिक पद्धति .

4 . तुलनात्मक पद्धति तथा

 5 . संरचनात्मक – प्रकार्यात्मक पद्धति ।

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