अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त

 

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त

( Theory of optimun population )

इस सिद्धान्त के समर्थकों में कार साउण्डर्स एडवर्ड प्रो . सिजविक , प्रो . एडवर्ड केनन , डाल्टन , प्रो . विन्स , आदि प्रमुख हैं । अनुकूलतम जनसंख्याका आधार क्या को लेकर इन विद्वानों में मत – मित्रता है । सिद्धान्त का तात्पर्य है कि इस जनसंख्या में प्रजननदर इतनी हो कि जनसंख्या अनुकूलतम ( आदर्श ) स्तर पर बनी रहे । यह सिद्धा यह मानता है कि देश की अनुकूलतम जनसंख्या वह आदर्श जनसंख्या होती है , जिसके परिणामस्वरूप देश में प्रति व्यक्ति आद अधिकतम होती है । यदि इस बिन्दु से जनसंख्या घटती याती है तो प्रति व्यक्ति आय में कमी आ जाती है । रविन्स के अनुकूलतम जनसंख्या वह है जो अधिकतम उत्पादन की सम्भद बनाती है । कार साउण्डर्स उस जनसंख्या को आदर्श मानते हैं जो अधिकतम आर्थिक कल्याण का उत्पादन करती है । किसी भी देश की अनुकूलतम जनसंख्या के निर्धारण में प्रति व्यक्ति आय , सम्पत्ति , वृद्धि , व्यक्तिगत कल्याण , रोजगार शक्ति , दीर्घायु , संस्कृति का ज्ञान , कल्याण वृद्धि एवं कुल संख्या , आदि को आधार माना जा सकता है । इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि किसी भी देश की अनुकूलतम जनसंख्या कमी स्थिर नहीं रहती , वस्तू परिवर्तित होती रहती है । देश के उत्पादन के साधनों में कमी और अधिकता के साथ – साथ यह भी कम – ज्यादा होती रहती है । उत्पादन की प्रविधियों में नवीन आविष्कारों , राजनीतिक दशाओं , श्रमशक्ति , प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि , आदि में परिवर्तन के साथ – साथ एक देश की अनुकूलतम या आदर्श जनसंख्या का विन्दु बदलता रहता है ।

जनसंख्या के इस सिद्धान्त को अनुकूलतम , आदर्श एवं सर्वोत्तम जनसंख्या सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है । इस सिद्धान्त में राष्ट्र के खाद्यान्न सहित समस्त आर्थिक उत्पादनों अर्थात् आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस बात के निर्धारण का प्रयत्न किया गया है कि किसी राष्ट्र की बढ़ती हुई जनसंख्या लाभदायक है या हानिकारक । सर्वोत्तम जनसंख्या से आशय किसी राष्ट्र की उस जनसंख्या से है जो न तो अधिक हो और न कम हो जनसंख्या की जिस मात्रा से प्रतिव्यक्ति आय या राष्ट्रीय आय या कुल उत्पादन या राष्ट्र में उपलब्ध आर्थिक साधनों का उपयोग अधिकतम हो ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्तः उद्भव एवं विकास

 इस सम्बन्ध में जननांकिकीविदों ने उसी दिन से चिन्तन एवं मन्थन करना शुरू कर दिया था जिस दिन मात्थस ने पूरी दुनिया को चेतावनी स्वरूप बताया था कि बढ़ती जनसंख्या हानिकारक है । यद्यपि इस सिद्धान्त के प्रतिपादन की कोई निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती पर आर्थिक विचारों के इतिहास के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सर्व प्रथम एडवर्ड वेस्ट ( Edward west ) ने सन् 1815 ई 0 में अपने ” Essay on the application of the capital to land ” नामक लेख में यह विचार प्रतिपादित किया कि जनसंख्या के बढ़ने के साथ – साथ श्रम में विशिष्टता आ जाती है जिससे उत्पादन में –

 Robbins  अनुकूलतम जनसंख्या वह है जिसमें अधिकतम उत्पादन सम्मत होता है । Optimun population is the Population which just makes the maximum returns possible )

 

 

इस सिद्धान्त के समर्थकों में कार साउण्डर्स एडवर्ड प्रो . सिजविक , प्रो . एडवर्ड केनन , डाल्टन , प्रो . विन्स , आदि प्रमुख हैं ।

 सिद्धान्त का तात्पर्य है कि इस जनसंख्या में प्रजननदर इतनी हो कि जनसंख्या अनुकूलतम ( आदर्श ) स्तर पर बनी रहे । यह सिद्धा यह मानता है कि देश की अनुकूलतम जनसंख्या वह आदर्श जनसंख्या होती है , जिसके परिणामस्वरूप देश में प्रति व्यक्ति आद अधिकतम होती है । यदि इस बिन्दु से जनसंख्या घटती याती है तो प्रति व्यक्ति आय में कमी आ जाती है । रविन्स के अनुकूलतम जनसंख्या वह है जो अधिकतम उत्पादन की सम्भद बनाती है । कार साउण्डर्स उस जनसंख्या को आदर्श मानते हैं जो अधिकतम आर्थिक कल्याण का उत्पादन करती है । किसी भी देश की अनुकूलतम जनसंख्या के निर्धारण में प्रति व्यक्ति आय , सम्पत्ति , वृद्धि , व्यक्तिगत कल्याण , रोजगार शक्ति , दीर्घायु , संस्कृति का ज्ञान , कल्याण वृद्धि एवं कुल संख्या , आदि को आधार माना जा सकता है । इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि किसी भी देश की अनुकूलतम जनसंख्या कमी स्थिर नहीं रहती , वस्तू परिवर्तित होती रहती है ।

देश के उत्पादन के साधनों में कमी और अधिकता के साथ – साथ यह भी कम – ज्यादा होती रहती है । उत्पादन की प्रविधियों में नवीन आविष्कारों , राजनीतिक दशाओं , श्रमशक्ति , प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि , आदि में परिवर्तन के साथ – साथ एक देश की अनुकूलतम या आदर्श जनसंख्या का विन्दु बदलता रहता है ।

पहला पचीस वर्ष ब्रह्मचर्य , दूसरा पचीस गृहस्थ तीसरा पचीस वानप्रस्थ तो अंतिम अवस्था सन्यास में विभाजित करती है । सामाजिक वैज्ञानिकों ने शिक्षा – दीक्षा एवं विवाह व गृहस्थी के मध्य स्पष्ट रेखा खींची है । तीसरा चरण तो मनुष्य को तो और बांधकर रख देता है । इसी प्रकार के विचार रामायण एवं महाभारत काल में देखने को मिलता है जहाँ विभिन्न आख्यानों , उपाख्यानों द्वारा नैतिक मूल्यों , ब्रह्मचर्य एवं आत्मसंयम को धर्म एवं नीति से जोड़ा गया है कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी जनसंख्या के गुणात्मक पहलू पर विचार देखने को मिलते हैं ।

भारत के अलावा जनसंख्या सम्बन्धी विचारों को अन्य देशों के सापेक्ष अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि आधुनिक विचारों के कुछ कड़ियां उस काल खण्ड में भी अवश्य दिखायी देती हैं । प्राचीन काल में भी लोगों को इस बात का ज्ञान था कि जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति उत्पादन घट सकता है तथा लोगों का जीवन स्तर ( living standard ) गिर सकता है । इस तथ्य की जानकारी प्रसिद्ध चिन्तक कन्फ्यूसियस एवं प्राचीन चीनी विचारकों के साहित्य से प्राप्त होती है इन विद्वानों ने कृषि के लिए एक आदर्श जनसंख्या की कल्पना की थी । उनका विचार था इस आदर्श अनुपात के बिगड़ने से अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है । अतः जब भी किसी स्थान में कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ जाता है तो सरकार को चाहिए कि अधिक दबाव वाले क्षेत्र से जनसंख्या को कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर स्थानांतरित कर देना चाहिए । इसके अतिरिक्त चीनी साहित्य में जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने का भी उल्लेख मिलता है ।

 इन विचारकों के अनुसार खाद्यान्न की अपर्याप्तता के कारण मृत्यु दर बढ़ती है बाल विवाहों के कारण शिशु मृत्यु दर बढ़ती है । युद्ध के कारण जनसंख्या कम हो जाती है परन्तु ये विचारक यह स्पष्ट नहीं कर सके कि प्रजननशीलता मृत्युक्रम तथा प्रवास जनसंख्या तथा संसाधनों के मध्य सन्तुलन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं ।

प्राचीन यूनानी विचारको प्लेटो ( Plato ) तथा अरस्तू ( Aristotle ) ने भी जनसंख्या के आदर्श स्थिति के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । किसी भी समाज के आत्मनिर्भरता और सुरक्षा के लिए जितनी जनसंख्या की जरूरत हो उतना ही जनसंख्या बढ़नी चाहिए । अन्यथा की स्थिति में निर्धनता होगी और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होगी । दोनों ही विचारकों ने जनसंख्या कम करने के लिए आत्मसंयम पर बल दिया और उपनिवेशों की स्थापना का सुझाव दिया । अरस्तू ने जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए गर्भपात और शिशु – त्याग को उचित माना है । उनके अनुसार , उन सब राष्ट्रों में जहाँ जनसंख्या को सीमित किया जाता है . ऐसा नियम होना चाहिए कि केवल जनसंख्या को सीमित रखने के लिए प्रत्येक परिवार के लिए बच्चों की संख्या से निर्धारित किया जाना चाहिए और यदि विवाहित दम्पत्तियों के निर्धारित संख्या से अधिक बच्चे हो जाय तो गर्भगत बच्च में चेतना और जीवन संचार के पूर्व ही गर्भपात करा देना चाहिए । प्लेटो ने 5,040 नागरिको वाले नगर राज्य को आदर्श माना जबकि अरस्तू के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या एक लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

चीन के विचारकों की तरह रोम के विचारकों ने भी जनसंख्या का अध्ययन महान साम्राज्य के परिप्रेक्ष्य में किया विशालराज्य की स्थापना के लिए ये जनसंख्या वृद्धि को अधिक महत्त्व देते थे । ऐसा प्रतीत होता है कि रोम के विचारक जनसंख्या वृद्धि के प्रति उतने सचेत नहीं थे जितने की साम्राज्यवाद के लोगों के प्रति रोमन विचारक सिसरों ( Cicero ) ने जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने वाले तत्त्वों का तो उल्लेख किया लेकिन वृद्धि या कमी के निर्धारण सिद्धान्तों पर प्रकाश नहीं डाला ।

मध्यकाल में ईसाई विचारकों पर सामन्तवाद तथा चर्चप्रधानता का स्पष्ट प्रभाव दिखायी पड़ता है । उस समय के विचारकों ने जनसंख्या समस्या का अध्ययन सदाचार ( moral ) और नीतिशास्त्र ( ethics ) के आधार पर किया और भौतिकता को कोई महत्त्व नहीं दिया । हत्या , गर्भपात , शिशु हत्या , तलाक , बहुविवाह की निन्दा की और ब्रहमचर्य संयम पर बल दिया चौदहवीं शती के मुस्लिम चिन्तक इब्न खाल्दून ( Ibn Khaldun ) का जनसंख्या के संबंध में विचार उल्लेखनीय है उन्होंने जनसंख्या के चक्रीय परिवर्तन सिद्धान्त प्रतिपादित किया तथा उसका आर्थिक , राजनीतिक तथा सामाजिक मनोदशाओं से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया । खाल्दून का विचार था कि कम जनसंख्या की अपेक्षा अधिक जनसंख्या होने से साधनों का अधिक प्रभावपूर्ण उपयोग संभव हो पाता है । इटली के विचारक बटेरो ( Betero ) की धारणा थी कि साधनों तथा जनसंख्या के मध्य सन्तुलन की स्थिति आ चुकी है और अब बढ़ती जनसंख्या जीवननिर्वाह के साधनों को और नहीं बढ़ा पायेगी तथा असन्तुलन पैदा कर देगी ।

सत्रहवीं व अठारहवीं सदी के वणिकवादी अर्थशास्त्री जनसंख्या को आर्थिक विकास में सहायक , सुरक्षा करने में समर्थ एवं किसी देश की प्रभुसत्ता को बनाये रखने के लिए आवश्यक साधन मानते थे अतः उन्होंने जनसंख्या के बढ़ने को अनुचित नहीं माना । अधिक जनसंख्या अधिक परिश्रम अधिक उत्पादन से आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी । दूसरी ओर मजदूरी घटेगी फलतः लागत घटन से निर्यात बढ़ेगे और सोने – चांदी की मात्रा अधिक प्राप्त होगी जो इनका लक्ष्य था । प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मानव संख्या कितनी हो यह प्रकृति द्वारा निर्धारित होता है अतः प्रकृति के विषय में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए ।

 जनसंख्या प्रवाह में बाधा डालना प्रकृति का विरोध माना गया । मजदूरी से जोड़ा प्रो ० मजदूरी व जनसंख्या एक – दूसरे प्रकृतिवादियों के उपरान्त प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री आते हैं जिनमें एडम स्मिथ ने जनसंख्या का सम्बन्ध जे ० बी ० से का बाजार नियम इस बात पर आधारित था कि से विपरीत रूप से सम्बन्धित हैं । एडम स्मिथ ने मजदूरी के लौह सिद्धान्त की रचना कर डाली जनसंख्या सिद्धान्तों के इतिहास में सबसे प्रथम व सबसे महान विचारक माल्थस हैं जिन्हें निराशावादी अर्थशास्त्री की संज्ञा भी दी जाती हैं और जिन्हें जनांकिकी का जनक भी जाता है । माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त ने विश्व के चिन्तन जगत को झकझोर दिया तथा वैचारिक जगत में हलचल मचा दुनिया का ध्यान बढ़ती जनसंख्या की कहा दी । माल्थस ऐसे प्रथम अर्थशास्त्री बने जिन्होंने पूरी ओर खींचा । इसके बाद तो

 सिद्धान्तों की बाढ़ सी आ गय माल्थस के बाद ईष्टतम जनसंख्या सिद्धान्त जनसंख्या का जैविकीय सिद्धान्त जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त , विकसित हुए । इसके अतिरिक्त सैडलर , डबलडे रेमन्ड पर्ल , स्पैन्सर गिनी , मार्क्स , हैनरी जार्ज आदि अनेकों विचारकों ने इस क्षेत्र में अपने चिन्तन को प्रस्तुत किया ।

इसके बाद 19 वीं शती के अन्त में ( Henry sidgwick ) हेनरी सिजविक ने अनुकूलतम जनसंख्या के विचार की नींव रखी । सिजविक ने अपनी पुस्तक Principles of political economey में इस प्रकार विचार व्यक्त किये है , ” जिस प्रकार एक व्यक्तिगत फर्म में एक ऐसा बिन्दु आता है जो अधिकतम प्रतिफल प्रदान करता है , यह उस समय होता है जब फर्म के अन्दर एक उचित अनुपात में सब साधनों का लगाया जाये । यह बात सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था में लागू होती है ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार फर्म या व्यक्तिगत अर्थ व्यवस्था पर । ” इस प्रकार उन्होंने बताया कि एक अनुपात में यदि सब साधनों को लगाया जाय तो एक ऐसा बिन्दु आता है जबकि उत्पादन अधिकतम होता है । यद्यपि उन्होंने अनुकूलतम शब्द का प्रयोग नहीं किया लेकिन उनका संकेत उसी तरफ था इस कथन का सहारा लेकर एडविन कैनन ( edwin Canon ) ने सन् 1924 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ” Wealth ‘ में सर्व प्रथम अनुकूलतम शब्द का प्रयोगकर अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की एक क्रमबद्ध व वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए सिद्धान्त को प्रतिपादित किया । बाद में इस सिद्धान्त को व्यापक रूप प्रदान करने वाले विद्वानों में प्रो ० डाल्टन ( Dalton ) . प्रो ० राबिन्स ( Robbins ) एवं प्रो ० कार साडण्डर्स ( Car – Saunders ) की भूमिका उल्लेखनीय रही 3.3.2 अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त मान्यताएं ( Assumptions ) जनाविकीविदों ने अपने इस सिद्धान्त को निम्न प्रमुख मान्यताओं के साथ प्रस्तुत किया है

किसी देश की जनसंख्या वृद्धि के बावजूद भी कार्यशील जनसंख्या का कुल जनसंख्या से पारस्परिक अनुपात अपरिवर्तित अर्थात् समान रहता है ।

देश की कार्यशील जनसंख्या  के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किया गया प्रति घण्टा उत्पादन तथा कार्य के घण्टे स्थिर ही रहते हैं ।

देश की जनसंख्या बढ़ने के बावजूद भी एक समय विशेष में उस देश के प्राकृतिक साधन , पूंजी की मात्रा एवं प्राविधिक अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त अर्थ एवं परिभाषाएं

( Meaning and Definitions )

अनुकूलतम जनसंख्या से अभिप्राय उस जनसंख्या से है जो किसी देश में एक निश्चित समय पर दिये हुए साधनों का अधिकतम उपयोग तथा उत्पादन के लिए आवश्यक है । जब देश की जनसंख्या का आकार आदर्श रहता है तो प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है । इस प्रकार एक विशेष समय तथा परिस्थितियों में वही जनसंख्या सर्वोत्तम होती है जिसमें प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है । सिद्धान्त की अवधारणा को स्पष्ट आवश्यक है । यथा करने के लिए विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषों को समझना कार करने के

 डाल्टन ( Dalton ) ” अनुकूलतम जनसंख्या वह होती है जो प्रति व्यक्ति अधिकतम आय प्रदान करती है । ( Optimum Population is that which gives the maximum • income per head )

बोल्डिंग ( Boulding ) – ” वह जनसंख्या जिस पर जीवन स्तर अधिकतम होता है अनुकूलतम जनसंख्या कहलाती है । ” ( The population at which the standard of life is • maximum is called the optimuun population Economic Analysk P – 658 )

 वोल्फ ( Wolf ) ” वह जनसंख्या जो अधिकतम उत्पादन सम्भव बनाती है अनुकूलतम जनसंख्या अथवा सबसे अच्छी जनसंख्या है । “

रॉबिन्स ( Robbins ) – ” अनुकूलतम जनसंख्या वह है जिसमें अधिकतम उत्पादन संम्भव होता है । ” ( Optimum population is the Population which Just makes the maximum returns possible )

 कार साण्डर्स ( Car Saunders ) ” अनुकूलतम जनसंख्या वह है जो अधिकतम आर्थिक कल्याण उत्पन्न करती है । ” ( Optimum population is that which produce maximum economic welfare . )

 जेआर हिक्स ( J.R. Hicks ) ” अनुकूलतम जनसंख्या , जनसंख्या का वह स्तर है जिस पर प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिकतम होता है । ” ( Optimum population is that level of population which would make out put per head a maximum social framework , p – 271 ) .

 एरिक रोल ( Eric Roll ) – ” अनुकूलतम जनसंख्या किसी देश की वह जनसंख्या है जो अन्य साधनों की दी हुई मात्रा के सहयोग से अधिकतम उत्पादन कर सके । ” एडविन कैनन ( Edwin Canon ) ” किसी दिये हुए समय पर किसी देश में उत्पादन का एक अधिकतम बिन्दु होता है जहां पहुंचने पर जनसंख्या तथा प्राकृतिक साधनों का पूर्ण समन्वय हो जाता है , इस स्थिति में श्रम की मात्रा ऐसी होती है कि उसमें वृद्धि तथा कमी दोनों ही उत्पत्ति में कमी लाती है । ” अपने कथन को प्रो ० कैनन ने और स्पष्ट करते हुए लिखा है कि , ” प्रत्येक उद्योग में अधिकतम उत्पादन का एक बिन्दु होता है , इसी प्रकार सभी उद्योगों को मिलाकर भी उत्पादन का एक अधिकतम बिन्दु होता है । यदि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के उत्पादन को इस बिन्दु तक लाने के लिए जनसंख्या कम हो तो यह स्थिति जनाभाव की है . अतः जनसंख्या की वृद्धि करनी होगी । इसके विपरीत यदि जनसंख्या इतनी अधिक है कि वह उस बिन्दु से आगे बढ़ गई है तो इसका तात्पर्य यह है कि देश में जनाधिक्य की स्थिति है और जनसंख्या में कमी द्वारा इसे दूर किया जा सकता है । ” की स्थिति यदि आप अनुकूलतम जनसंख्या के सम्बन्ध में व्यक्त किये गये विभिन्न विद्वानों के विचारों पर चिन्तन मनन करें तो निष्कर्षतः आप समझ गये होंगे कि डॉल्टन की परिभाषा अधिक सरल , वैज्ञानिक एवं यथार्थपरक है ।

राबिन्स का दृष्टिकोण अधिक विस्तृत है । उनके अनुसार अनुकूलतम जनसंख्या वह होगी जहां कुल उत्पादन अधिकतम होगा । इस प्रकार वे अर्थव्यवस्था की समस्त उत्पादक सेवा को लेकर चलते हैं । यद्यपि रविन्स , डाल्टन की भांति धन या कुल उत्पादन के वितरण पर बल नहीं देते परन्तु उन्होंने अनुकूलतम जनसंख्या के विचार में उपभोग को सम्मिलित करके उसे विस्तृत रूप प्रदान कर दिया । इस प्रकार रॉबिन्स का विचार जहां अधिक विस्तृत है वहीं डाल्टन का विचार व्यावहारिक है । डाल्टन की परिभाषा इस दृष्टिकोण से वैज्ञानिक है कि जनसंख्या के अनुकूलतम स्तर के लिए उत्पादन को अधिकतम बनाना ही पर्याप्त नहीं है वरन इस बात की भी आवश्यकता है कि इसका न्यायोचित वितरण भी हो । कार साण्डर्स की भी परिभाषा सर्वस्वीकार नहीं है क्योंकि कल्याण के फलस्वरूप अन्य वितरण तथा निर्गत की संरचना के सम्बन्ध में मूल्य निर्णय लेने पड़ते हैं । इस प्रकार डाल्टन की परिभाषा सर्वग्राहय है ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त व्याख्या ( Explanation )

आइये सिद्धान्त को जानने के सरल तथा पहले सिद्धान्त का आधार जानने का प्रयास करते हैं । अनुकूलतम या ईस्टतम ( Optimum ) का विचार सर्वत्र स्वीकार किया जाता है । एक कक्षा में कितन छात्र होना चाहिए पहनने के लिए कितने कपड़े होने चाहिए या कमरे में पढ़ने के लिए कितनी रोशनी होनी चाहिए , आदि प्रश्न ईष्टतम के विचार से ही सम्बन्धित है । इष्टतम सर्वोत्तम तो है लेकिन अधिकतम नहीं है । उदाहरण के लिए एक श्रमिक अधिकतम मजदूरी अर्जित करने का यत्न तो कर सकता है लेकिन अधिकतम मजदूरी के लिए अन्य तत्वों को ध्यान में रखना होगा जैसे रोजगार की सुरक्षा कार्य की दशायें , धन प्राप्ति के स्रोत की वैधानिकता आदि । अतः ऊँची मजदूरी मिलने पर भी वह ऐसे स्थान पर रोजगार स्वीकार नहीं करेगा जहां असुरक्षा हो । इस प्रकार वह एक अनुकूलतम या ईष्टतम मजदूरी की तलाश में रहता है न कि अधिकतम मजदूरी की । इस प्रकार इष्टतम या अनुकूलतम स्थिति वह है जहाँ पर किसी लक्ष्य विशेष की पूर्ति सर्वोत्तम ढंग से की जा रही है । इसी परिप्रेक्ष्य में ईष्टतम या अनुकूलतम जनसंख्या की बात भी की जा सकती है । एलफ्रेड सौवे ने इसीलिए लिखा है- ” An optimum population is the one that achieves a given alm in the most satisfactory way . ” अब आपके सम्मुख प्रश्न उठता है कि कौन से लक्ष्य हैं जिन्हें हम अधिकतम करना चाहते हैं । व्यक्तिगत कल्याण , सम्पत्ति में वृद्धि , रोजगार , शक्ति , जनस्वस्थ एवं आयु – प्रत्याशा जीवनस्तर , राष्ट्रीय उत्पादन , राष्ट्रीय आय प्रति व्यक्ति आय प्रति व्यक्ति उपभोग आदि । इन विभिन्न घटकों में आर्थिक आधार सर्वाधिक स्वीकार्य आधार हो सकता है । अतः जब भी अनुकूलतम का उल्लेख होता है हम आर्थिक ईष्टतम को लेते हैं । सौवे ने लिखा है , ” The • optimum population is only a convenient phrase . When we say that , a country is economically over populated , we mean that Its populations is higher than its economic optimum at the present moment . ” यहाँ पर अनुकूलतम जनसंख्या के मापदण्डों का भी उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है । यथा

  1. जनसंख्या की संरचना ( Composition ) |
  2. प्राकृतिक संसाधन ( Natural Resources )

 प्रौद्योगिकी ( Technology ) |

  1. उत्पादन की विधियों ( Production method ) |
  2. मानवीय सुख ( Human happiness ) |
  3. व्यक्तिगत अवसर तथा सुरक्षा ( Opportunity & Security )
  4. प्रकृति के साथ सामंजस्य ।
  5. पर्यावरण संरक्षण ( Protection of Ecology )
  6. आध्यात्मिक उपलब्धि साधन को आदर्श अनुपात में नहीं

अब प्रश्न उठता है कि आर्थिक ईष्टतम या अनुकूलतम का आधार क्या हो ? उत्पत्ति के नियमों से यह आप समझ गये होंगे कि साधनों का एक ऐसा संयोग होता है कि जिस पर लागते न्यूनतम होती है । यदि उत्पत्ति के प्रत्येक मिलाया जायेगा तब प्रत्येक साधन का पूरा पूरा प्रयोग उत्पादन के क्षेत्र में नहीं किया जा सकेगा । सभी साधनों के आदर्श अनुपात में होते ही अधिकतम उत्पादन की सीमा आ जायेगी । अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त उत्पत्ति के नियमों ( Law of Returns ) पर आधारित है । जनसंख्या में वृद्धि तथा कार्यकारी जनसंख्या के मध्य फलनात्मक सम्बन्ध होता है । किसी देश के प्राकृतिक साधनों का समुचित ढंग से विदोहन करने के लिए यह आवश्यक होता है कि जनशक्ति का अन्य उत्पादन साधनों से एक निश्चित अनुषात बना रहे । यदि किसी देश की जनसंख्या कम है तो कार्यशील जनसंख्या भी कम होगी । अतः उत्पादन के साधनों का समुचित रूप से प्रयोग न हो पाने के कारण औसत उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति आय ( Per Capita Income ) कम होगी । जब जनसंख्या बढ़ती है और कार्यशील जनसंख्या बढ़ती है तो श्रम विभाजन के लाभ के फलस्वरूप देश के साधनों का अच्छी तरह से प्रयोग के साथ प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ने लगता है ।

इस तरह आप समझ गये होंगे कि प्रारम्भ में जनसंख्या वृद्धि के साथ श्रम की सीमान्त उत्पादकता तथा औसत उत्पादकता उत्पत्ति वृद्धि नियम ( Laws of Increasing Returns ) लागू होगा । उसके बिन्दु प्राप्त होगा जिस पर जनसंख्या का उत्पत्ति के अन्य साधनों के साथ इष्टतम सम्बन्ध स्थापित हो जायेगा । यहाँ औसत उत्पादन अधिकतम एवं अनुकूलतम होगी । यह अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु होगा । यह उत्पत्ति समता नियम ( Law of Constants Returns ) की अवस्था है ।

यदि जनसंख्या में वृद्धि इसके बाद भी होती है तो यह अनुकूलतम संयोग भंग हो जायेगा । फलतः सीमान्त एवं औसत उत्पादन घटने से उत्पत्ति हास नियम ( Law of Decreasing Returns ) क्रियाशील हो जायेगा , प्रति व्यक्ति आय घटने लगेगी । अब आप समझ गये होंगे कि अनुकूलतम जनसंख्या का स्तर या बिन्दु वह है जहाँ प्रति व्यक्ति औसत आय अधिकतम होगी । यदि जनसंख्या का आकार इस स्तर से कम है तो इसे न्यून जनसंख्या ( Under Population ) कहा जायेगा और जनसंख्या के आकार का इस बिन्दु से अधिक होने पर देश में अति जनसंख्या ( Over Population ) समझी जायेगी । अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को निम्न चित्र से भी आप समझ सकते हैं प्रति अधि Law of constant return . जमाभाव Law of decreasing return

AP जगाविषय अनुजम O जनसमा चित्र में AP प्रति व्यक्ति औसत आय अथवा औसत उत्पादन का वक्र है । प्रारम्भ में OM तक जनसंख्या में वृद्धि होने पर प्रति व्यक्ति वास्तविक आय तथा उत्पादकता बढ़ती है – अर्थात् उत्पत्ति वृद्धि नियम ( Law of Increasing Return ) लागू होता है । OM जनसंख्या पर प्रति व्यक्ति आय ME होती है जो अधिकतम है । इसके उपरान्त प्रति व्यक्ति आय घटने लगती है यहां उत्पत्ति इास नियम ( Law of Decreasing Return ) लागू हो जाता है । अत : OM अनुकलतम जनसंख्या है । चित्र से स्पष्ट है कि OM तक जनसंख्या वांछनीय है किन्तु M बिन्दु के बाद यह अवांछित है और इस पर रोक न लगने पर जनाधिक्य की समस्या उत्पन्न हो जायेगी । प्रो ० माल्थस का मानना था कि यदि देश में नैसर्गिक प्रतिबन्ध लागू हो जाय तो यह स्थिति अतिजनसंख्या या जनाधिक्य ( Over Population ) की स्थिति का सूचक है परन्तु यह विचार वास्तविक नहीं है । अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी देश में अनुकूलतम से कम जनसंख्या है तो जनाभाव अन्यथा अनुकूतलम से अधिक है तो -जनाधिक्य की स्थिति मानी जायेगी । डाल्टन का सूत्र- अनुकूलतम आकार से प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डाल्टन ने एक सूत्र की जनसंख्या की न्यूनता या आधिक्य मापने के लिए स्थापना की जो निम्नलिखित है

 A – O M = 0 जहाँ , M समायोजन अभाव की मात्रा ( Degree of Maladjustment ) A = वास्तविक जनसंख्या ( Actual Population ) 0 = अनुकूलतम जनसंख्या ( Optimum Population ) समायोजन अमाव से तात्पर्य है कि वास्तविक जनसंख्या अनुकूलतम जनसंख्या से कितनी कम या अधिक है । यदि M धनात्मक ( Positive ) है तो यह जनाधिक्य को , M ऋणात्मक है तो कम जनसंख्या अथवा जनाभाव का द्योतक है । यदि M शून्य है तो वास्तविक एवं अनुकूलतम जनसंख्या बराबर होगी ।

अनुकूलतम जनसंख्या के सम्बन्ध में डाल्टन एवं राविन्स के विचार अनुकूलतम जनसंख्या के सम्बन्ध में डाल्टन एवं रविन्स के ही विचार विशेष उल्लेखनीय है । डाल्टन ने अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त को प्रति व्यक्ति अधिकतम आय प्रदान करती है ( Optimun population is that which gives maximum income per head ) इससे स्पष्ट होता है कि डाल्टन महोदय ने जनसंख्या का अध्ययन प्रतिव्यक्ति के दृष्टिकोण से किया है और अपने अध्ययन में व्यक्ति तथा आय दोनों को ही महत्व प्रदान किया है । डाल्टन के अनुसार जनसंख्या अनुकूलतम बिन्दु पर उसी समय पहुंची हुई समझी जायेगी जबकि वह देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों , उत्पादन तकनीकि और पूंजी सहायता से प्रति व्यक्ति अधिकतम आय अर्जित कर सके । यदि देश की जनसंख्या इस अनुकूलतम स्तर से कम होगी तो इसका अर्थ है साधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाया है । इसके विपरीत यदि जनसंख्या अनुकूलतम बिन्दु से अधिक होगी तब अन्य साधनों की प्रत्येक इकाई उत्पादन के क्षेत्र में कम काम करने के कारण औसत आय कम हो जायेगी । इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि अधिकतम औसत आय तभी प्राप्त होगी जब उत्पादन के साधनों का संयोजन अनुकूलतम अनुपात में हो । इस बिन्दु से किसी भी दिशा में विचलन औसत आय में कभी ला देगा । •

 प्रो ० रविन्स के विचार डाल्टन से भिन्न है । उनके अनुसार अनुकूलतम जनसंख्या वह है जिसमें अधिकतम उत्पादन सम्भव होता है ( The population which just makes the maximum returns possible is the optimum or best population ) इस तरह सबिन्स ने अपने विश्लेषण में प्रति व्यक्ति आय के स्थान पर अधिकतम कुल उत्पादन को विशेष महत्व दिया है । रविन्स का दृष्टिकोण इसलिए थोड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि डाल्टन की तुलना में उन्होंने प्रति व्यक्ति औसत आय के स्थान पर सामाजिक उत्पादन को महत्व दिया है । रॉबिन्स के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि उस सीमा तक उचित है जिस सीमा तक कुल उत्पादन में वृद्धि पायी जाती हो । यह तभी हो सकता है जब प्रति व्यक्ति आय अधिकतम न हो । अनुकूलतम जनसंख्या तभी होगी । जब प्रत्येक व्यक्ति को जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त आय प्राप्त होती है ।

डॉल्टन एवं रॉविन्स के दृष्टिकोण में अन्तर प्रो ० डॉल्टन एवं प्रो ० रॉविन्स के दृष्टिकोणों में तुलनात्मक अध्ययन करने पर उनके दृष्टिकोण में जो अन्तर पाया जाता है निम्नवत् प्रस्तुत है 1. प्रो ० डाल्टन , आदर्श जनसंख्या के निर्धारण के प्रति व्यक्ति आय को आधार मानते हैं । आपके अनुसार आदर्श जनसंख्या वह जनसंख्या है जिसमें देश के प्राकृतिक साधनों , पूँजी , दिन कला का उपयुक्त व पूर्ण विदोहन हो सक और प्रति व्यक्ति आय अधिकतम प्राप्त • की जा सके ।

जबकि रॉबिन्स , आदर्श जनसंख्या का आधार अधिकतम कुल उत्पादन को मानते हैं । आपके अनुसार , ” अनुकूलतम जनसंख्या वह जनसंख्या है जो उत्पादन को अधिकतम बनाती है । “

प्रो 0 डाल्टन के अनुसार जनसंख्या की वृद्धि उस मात्रा तक अच्छी है जब तक प्रति व्यक्ति आय अधिकतम बिन्दु में नहीं पहुँच जाती । जबकि रॉबिन्स के अनुसार यह वृद्धि तब तक अच्छी है जब तक अधिकतम उत्पत्ति का बिन्दु नहीं आ जाता । इस दृष्टि से रॉबिन्स के अनुसार जनसंख्या का अनुकूलतम बिन्दु डाल्टन की अनुकूलतम जनसंख्या बिन्दु से कुछ आगे होगा क्योंकि रॉबिन्स की दृष्टि से जनसंख्या का वही स्तर अनुकूलतम है जहाँ पर उत्पादन तथा उपभोग दोनों बराबर हों । डाल्टन का मत है कि जनसंख्या यदि अनुकूलतम बिन्दु पर पहुँच चुकी है तो जन्म दर की मात्रा इतनी उपयुक्त होगी कि उसे मृत्यु दर को अर्थात् जनसंख्या के ह्रास को प्रतिस्थापित किया जा सके । पर रॉबिन्स का कहना है कि यह कुछ अधिक भी हो सकती है ।

दोनों विद्वानों के विचारों को यदि देखा जाये तो यह स्पष्ट होता है कि प्रो ० डाल्टन ने इस सिद्धान्त में केवल देश की उत्पत्ति को ही ध्यान में नहीं रखा बल्कि देश में धन ( उत्पादन ) के उचित वितरण पर भी पर्याप्त बल दिया है । जबकि रॉबिन्स ने केवल उत्पत्ति और उपभोग में ही अधिक ध्यान केन्द्रित किया है , उत्पत्ति और वितरण के सम्बन्ध पर नहीं ।

रॉबिन्स का विश्लेषण सैद्धान्तिक तथा डाल्टन का विचार व्यावहारिक है । रॉबिन्स के अनुसार , यदि देश में प्रति व्यक्ति लाभपूर्वण ढंग से रोजगार में लगा है , तब अति जनसंख्या का कोई भय नहीं है । ” ” ( It every person in the country is gainfully employed , there is no fear of over population )

एक दृष्टि से रॉबिन्स का दृष्टिकोण अधिक उदार व विस्तृत प्रतीत होता है । पर जब हम न्यायोचित वितरण के आधार पर सोचते हैं तो डॉल्टन का विचार ही ज्यादा उदार और उनकी परिभाषा अधिक श्रेष्ठ व व्यावहारिक दिखती है । जबकि रॉबिन्स की परिभाषा संकीर्ण प्रतीत होने लगती है । यदि गहराई से विचार किया जाये तो यह कहा जा सकता है कि इन दोनों विद्वानों के विचारों में कोई वास्तविक अन्तर नहीं है . मात्र दृष्टिकोणों में ही भिन्नता है ।

कार साउन्डर्स एवं अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त

 कार साउन्डर्स का मानना है कि वह जनसंख्या जो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करे आदर्श जनसंख्या कहलाती है । साउण्डर्स के अनुसार जब किसी देश की जनसंख्या में वृद्धि होती है , तो इससे श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण को बल मिलता है , जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है । जनसंख्या में यह वृद्धि एक स्थिति को जन्म देती है , जिससे प्रति व्यक्ति आय अधिक हो जाती है , और जनसंख्या की इसी मात्रा को जो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करें . अनुकूलतम कहते हैं । इस बिन्दु को जो व्यक्ति की आय को अधिकतम करे , आदर्श या अनुकूलतम जनसंख्या के नाम से जानी जाती .. इस प्रकार अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की सहायता से हम किसी देश की जनसंख्या के उस आकार को जान जाते हैं , जो देश के लिए आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त होती है । संक्षेप में जनसंख्या का वह आकार अनुकूलतम होगा , जो प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि जब किसी भी देश की प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती वैसे – वैसे कम होती जाती इस आदर्श बिन्दु से ऊपर बढ़ती है तो इससे जनसंख्या बढ़ती जाती है , प्रति व्यक्ति आय इसके साथ ही जब किसी देश की जनसंख्या बढ़ती है , तो इससे भी प्रति व्यक्ति प्राकृतिक साधन और उपलब्ध पूँजी घटने लगती है , बेरोजगारी बढ़ जाती है और प्रति व्यक्ति आय कम हो आती है । साउण्डर्स ने इस स्थिति को जनाधिक्य ( Over Population ) की स्थिति कहा है ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त महत्वपूर्ण विशेषताएं

 

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित है

उत्पत्ति हास नियम पर आधारित यह सिद्धान्त परिवर्तनशील अनुपात या उत्पत्ति हास नियम पर आधारित है ।

. अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु गतिशील होता है

अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु गतिशील होता है । जिन साधनों को दिया हुआ मान लिया गया है उसमें से किसी में भी परिवर्तन होने पर , यह अनुकूलतम बिन्दु या स्तर बदल जाता है । उदाहरणार्थ , देश में वैज्ञानिक प्रगति , तकनीकी विकास प्राकृतिक साधनों की खोज , उत्पादन की नयी रीतियों के अनुसंधान से प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि होगी और अनुकूलतम बिन्दु ऊपर को खिसक जाएगा । अनुकूलतम जनसंख्या के बिन्दु की गतिशील प्रकृति को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है ० का आकार उत्पादन की तकनीक तथा वैज्ञानिक विकास की एक दी हुई स्थिति में AP , औसत उत्पाद वक्र अथवा प्रति व्यक्ति आय वक्र है जिस पर अनुकूलतम जनसंख्या स्तर OM है । उत्पादन की विधियों में सुधार तथा अनुसंधान के फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है और प्रति व्यक्ति आय EM से बढ़कर E. M हो जाती है क्योंकि अब नयी औसत उत्पादन रेखा ऊपर उठकर AP हो जाती है । फलस्वरूप , अनुकूलतम जनसंख्या का बिन्दु M से बढ़कर M हो जाता है । OM जनसंख्या जो पहले अनुकूलतम थी अब अल्प- जनसंख्या हो चुकी है ।

अनुकूलतम जनसंख्या परिमाणात्मक ही नहीं गुणात्मक विचार भी है

कुछ आधुनिक अर्थशास्त्रियों जिनमें प्रो ० बोल्डिंग प्रो ० टी ० आर ० बाई प्रो ० पेनरोज प्रमुख हैं की धारणा है कि अनुकूलतम जनसंख्या एक परिमाणात्मक विचार ही नहीं बल्कि गुणात्मक विचार भी है । यही कारण है कि बोल्डिंग प्रति व्यक्ति आय के स्थान पर जीवन स्तर शब्द का प्रयोग करते हैं । प्रो ० बाई जनसंख्या के उस आकार को अनुकूलतम मानते हैं जो ( प्रति व्यक्ति अधिकतम आय के अतिरिक्त ) सामाजिक एवं आर्थिक जीवन को भी उच्चतम बना सके । स्वभावतः जब उत्पादन या आय बढ़ती है तो लोगो आर्थिक कल्याण में भी वृद्धि होती है .

 जिससे उनका जीवन स्तर ऊँचा उठने लगता है , परन्तु चरित्र , स्वास्थ्य , आदि गुणात्मक बातों को सम्मिलित करने से किसी समय पर एक देश के लिए सही रूप से अनुकूलतम जनसंख्या को ज्ञात करना अत्यन्त कठिन हो जाता है ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त आलोचनाएं ( Criticism )

अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि यह पूर्णतया दोषमुक्त है । अनेक विद्वानों ने निम्न आधारों पर इसकी आलोचनाएँ की है

  1. इस सिद्धान्त की मान्यताएँ यथार्थ नहीं है- ( क ) यह मान्यता कि जनसंख्या वृद्धि के बावजूद जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात अपरिवर्तित रहता है , सही नहीं है । ( ख ) यह मान्यता भी त्रुटिपूर्ण है कि जनसंख्या में वृद्धि होने पर भी देश के प्राकृतिक साधन , पूँजी की मात्रा व उत्पादन प्रविधियाँ अपरिवर्तित रहती है । आज के इस प्रावैगिक समाज में इनके अपरिवर्तित रहने की कल्पना यथार्थ से परे है । ( ग ) यह कहना भी कि कार्यशील जनसंख्या के कार्य के घंटे तथा उनके द्वारा किया जाने वाला प्रति घंटा कार्य स्थिर रहता है , व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता ।

  1. यह सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं है इसमें जिस अनुकूलतम या आदर्श जनसंख्या की बात की गई है उसकी माप करना यथार्थ जगत् में अत्यन्त ही कठिन है । जैसा कि चटर्जी ने लिखा है- ” इस आकस्मिक और प्रतिक्षण परिवर्तित संसार में वस्तुतः अनुकूलतम जनसंख्या की खोज मृगतृष्णा की भाँति है । “

( 3 ) जनसंख्या का सिद्धान्त मानना ही अनुचित आलोचकों का मत है कि अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को जनसंख्या का सिद्धान्त मानना ही अनुचित है क्योंकि , यह सिद्धान्त कारण एवं परिणाम के सम्बन्धों पर समुचित प्रकाश नहीं डालता यह इस सन्दर्भ में मौन है कि जनसंख्या किस प्रकार और क्यों बढ़ती है अथवा उसके बढ़ने का नियम क्या है ? इस सिद्धान्त के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध हो । यह सिद्धान्त वस्तुतः जनसंख्या विवेचन में अनुकूलतम के प्रत्यय का प्रयोग मात्र है । यही कारण है कि जहाँ ( Benay K. Sarkar ) ने इसे स्वभाव से अवैज्ञानिक कहा है । ” बड़ी , सोरोकिन जैसे समाजशास्त्री यह कहने को मजबूर हुए हैं कि यह कुतकों का दुष्चक्र है । “

  1. यह सिद्धान्त आधुनिक परिवर्तनशील जगत के लिए अत्यन्त स्थैतिक है- अनेक विद्वानों ने सिद्धान्त की स्थिर प्रकृति के कारण इसे आधुनिक प्रगतिशील जगत् के लिए अनुपयुक्त और स्थैतिक कहा है- Alva Myrdal के अनुसार यह सिद्धान्त एक पुराना स्थैतिक विश्लेषण है । ” आज की दुनिया में तकनीकी , सामाजिक संस्थाएँ व आर्थिक संगठन एक – सी स्थिति में नहीं रहते हैं । इतना ही नहीं उत्पादन फलन में परिवर्तन होने के कारण उत्पत्ति के नियमों में परिवर्तन होता रहता है । अतः इन तथ्यों को स्थिर मान लेना अवैज्ञानिक होगा । यही कारण है कि Paul Mombert ने कहा है कि यह सिद्धान्त आधुनिक जगत के लिए केवल सैद्धान्तिक महत्व का है । अपनी स्थिर प्रकृति के कारण यह सिद्धान्त अपनी उपयोगिता ही खो बैठता है । Hauser and Duncan के अनुसार , It is static and also volatile .

  1. यह सिद्धान्त मात्र भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है- इस सिद्धान्त में आदर्श जनसंख्या का माप करने के लिए भौतिक आधारों का ही अवलम्बन लिया गया है । जनसंख्या के गुणात्मक व अन्य पक्षों पर ध्यान नहीं दिया गया है । इस प्रकार यह सिद्धान्त केवल प्रति व्यक्ति आय और उत्पादन पर ध्यान देता है जो कि अपने आप में संकुचित दृष्टिकोण का परिचायक है । वास्तव में जनसंख्या केवल आर्थिक आधारों से ही प्रभावित नहीं होती , बल्कि देश की सामाजिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक व सैनिक शक्तियों से भी प्रभावित होती है । अतः जनसंख्या के निर्धारण में इन तथ्यों पर ध्यान दिया जाना चाहिए था ।

 यह सिद्धान्त आय के वितरण पक्ष पर ध्यान नहीं देता- इस सिद्धान्त की इस बात पर भी आलोचना की जाती है कि यह राष्ट्रीय आय के वितरण पक्ष की उपेक्षा करता है । केवल उत्पादन पक्ष पर ही ध्यान देता है । प्रति व्यक्ति अधिकतम औसत आय का तब तक कोई महत्व नहीं जब तक कि राष्ट्रीय आय का समान वितरण नहीं होता । यदि कुल राष्ट्रीय आय कुछ गिने – चुने धनी व्यक्तियों के हाथों में ही केन्द्रित हो जाय तो समाज के आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं हो सकती । इस प्रकार , यह सिद्धान्त राष्ट्रीय आय के समान वितरण जैसे महत्वपूर्ण पक्ष की उपेक्षा करता है ।

अनुकूलतम जनसंख्या ज्ञात करना कठिन अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की एक महत्वपूर्ण आलोचना यह है कि किसी निश्चित अवधि में अनुकूलतम जनसंख्या का पता लगाना ही कठिन है । किसी देश में अनुकूलतम जनसंख्या स्तर के बारे में कोई प्रमाण नहीं मिलता । उसकी माप करना इसलिए सम्भव नहीं है क्योंकि अनुकूलतम जनसंख्या से तात्पर्य है देश के लिए परिमाणात्मक ( Quantitative ) तथा गुणात्मक ( Qualitative ) आदर्श जनसंख्या गुणात्मक आदर्श जनसंख्या में जनसंख्या का न केवल शारीरिक गठन , ज्ञान तथा प्रज्ञान बल्कि उसकी श्रेष्ठतम आयु संरचना ( Age – Composition ) भी सम्मिलित रहती है । ये चर ( Variable ) परिवर्तित होते रहते हैं और वातावरण से सम्बद्ध हैं । इस प्रकार जनसंख्या के अनुकूलतम स्तर की अवधारणा अस्पष्ट रहती है ।

 यह सिद्धान्त आर्थिक नीति निर्धारण में सहायक नहीं यह सिद्धान्त आर्थिक नीति ( Economic Policy ) के मार्ग प्रदर्शन की दृष्टि से बेकार साबित होता है । जब वित्तीय नीति का उद्देश्य देश में रोजगार उत्पादन तथा आय के स्तर को बढ़ाना है या स्थिर करना है , तो जनसंख्या के अनुकूलतम स्तर की बात ही नहीं होती है । अतः इस सिद्धान्त का कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है और इसे बेकार समझा जाता है ।

सिद्धान्त का दृष्टिकोण संकुचित है- यह सिद्धान्त जनसंख्या के प्रश्न पर संकुचित दृष्टि से विचार करता है । मात्र प्रति व्यक्ति आय ही प्रगति का सूचक नहीं है । नागरिकों का स्वास्थ्य , शिक्षा , सभ्यता , निर्माण कौशल तथा नैतिक दृष्टि से उन्नत होना भी आवश्यक है । इस प्रकार , आदर्श जनसंख्या के आकार पर विचार करते समय केवल आर्थिक उन्नति पर ही ध्यान देना पर्याप्त नहीं है बल्कि सामाजिक , राजनीतिक , नैतिक तथा सैनिक परिस्थितियों पर भी ध्यान देना चाहिए । के सामाजिक , राजनीतिक , नैतिक माप सम्भव नहीं प्रति

प्रति व्यक्ति आय का ठीक – ठाक व्यक्ति आय की माप में कठिनाई होती है । इस सम्बन्ध में आंकड़े प्रायः गलत , अमोत्पादक तथा अविश्वसनीय होते हैं जो अनुकूलतम जनसंख्या की धारणा के प्रति सन्देह उत्पन्न करते हैं । शायद इसीलिए Brinley Thomas ने भी कहा है , ” यह धुंधला पकड़ में न आने वाला विचार है । ” उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त का जनांकिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है । इस सिद्धान्त के प्रतिपादन से लोगों में सामान्य माल्यूसियन भूत ( Malthusian Devil ) का डर कम हो गया । इस सिद्धान्त ने यह स्पष्ट किया कि जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक नहीं होती । यदि जनसंख्या वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तो उसका बढ़नी हितकर नहीं होता । अतः इस सिद्धान्त को ध्यान में रखकर जनसंख्या वृद्धि को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित किया जा सकता है ।

अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त महत्व ( Importance )

अनेक आधारों पर इस सिद्धान्त की आलोचनाएं की गई है पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं ***

है कि इस सिद्धान्त की कोई उपयोगिता या महत्व ही नहीं है । संक्षेप में सिद्धान्त के महत्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

आदर्श जनसंख्या के सिद्धान्त का महत्व इसलिए है क्योंकि इसने जनसंख्या का खाद्य सामग्री के बीच कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं किया है । इसके विपरीत इस सिद्धान्त में जनसंख्या को पूंजी , उत्पादन प्रविधि और प्राकृतिक साधनों से सम्बन्धित करने का प्रयास किया है ।

 जनसंख्या के अन्य सिद्धान्तों की तुलना में आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त अधिक वैज्ञानिक , वास्तविक और न्यायसंगत प्रतीत होता है । इस प्रकार राष्ट्र के दृष्टिकोण से भी आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त सत्य के अधिक नजदीक प्रतीत होता है ।

आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त समाज में श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण को प्रोत्साहित करता है । उत्पादन वृद्धि को बढ़ाता है । आविष्कारों तथा वैज्ञानिक खोजों को मान्यता प्रदान करता है और इस प्रकार औद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है । आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त मानव समाज के नैराश्यों का मात्र दस्तावेज नहीं है । इस सिद्धान्त में जनसंख्या की वृद्धि को भावी सुख और समृद्धि के साथ जोड़ा गया है ।

 आदर्श जनसंख्या सिद्धान्त के समर्थकों का विचार है कि जनसंख्या कम करने की अपेक्षा यह अधिक सरल है कि समाज को अति जनसंख्या की स्थिति में पहुँचने से रोका जाय । 6 यह सिद्धान्त जनसंख्या को नियन्त्रित कर कम करने पर बल देता है । इस प्रकार परिवार नियोजन की सफलता के लिए भी यह सिद्धान्त उपयोगी है ।

यह सिद्धान्त प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि पर भी बल देता है क्योंकि प्रति व्यक्ति आय वृद्धि से ही किसी देश के नागरिकों की समृद्धि और सुख सम्भव है । यह सिद्धान्त अपने वातावरण में परिवर्तन पर भी बल देता है । समय और परिस्थिति के अनुसार अपने वातावरण में परिवर्तन करने से समाज और राष्ट्र का सन्तुलन बना रहता है ।

अनुकूलतम जनसंख्या का सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि को आर्थिक वृद्धि के साथ सम्बन्धित करता है ।

 इस सिद्धान्त में जनसंख्या को उत्पादनकर्ता के रूप में देखा गया है और स्पष्ट किया गया है कि किसी देश के लिए न तो जनसंख्या की कमी ही अच्छी होती और न ही इसकी वृद्धि म . इस सिद्धान्त के समर्थकों ने प्रति व्यक्ति आय को ही जनसंख्या निर्धारण का आधार माना है जो अधिक उचित है

यह सिद्धान्त इस बात का खंडन करता है कि मानव परिस्थितियों का दास नहीं अपितु वह परिस्थितियों को अपना दास बना सकता है । माल्थस के सिद्धान्त से तुलना एवं श्रेष्ठता

अनेक आलोचनाओं के बावजूद अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त को माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त के श्रेष्ठतर समझा जाता है । इसका कारण अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त की अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिन्हें निम्नवत वर्णित किया जा सकता है

माल्यास का जनसंख्या सिद्धान्त मानव समाज को एक नराश्य जीवन एवं नैराश्य चिन्तन की ओर अग्रसर करता है । साथ ही दुःखद भविष्य की चेतावनी भी देता है ।

इसके विपरीत आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त सुखद भविष्य का संकेत देता है तथा मानव समाज में आशावादी चिन्तन को महत्व प्रदान करता है ।

 माल्थस के सिद्धान्त में जड़ता एवं स्थायित्व है । माल्थस का यह सिद्धान्त गतिशील चिन्तन से परे है । इसके विपरीत आदर्श जनसंख्या सिद्धान्त में गतिशीलता को महत्व प्रदान किया गया है ।

माल्थस के जनसंख्या के सिद्धान्त में देश की भावी प्रगति की रूपरेखा नहीं है , जबकि आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त देश की भावी प्रगति पर आधारित है । माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त में मानवीय संभावनाओं का गलत अनुमान लगाया गया है , जबकि आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त मानवीय संभावनाओं पर आधारित है ।

 माल्थस अपने सिद्धान्त में जनसंख्या को केवल खाद्य पूर्ति से सम्बन्धित करता है जबकि अनुकूलतम जनसंख्या के सिद्धान्त में जनसंख्या को देश के समस्त साधनों , कुल उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित किया गया है जो कि अधिक उपयुक्त है ।

माल्थस जनसंख्या  हर एक वृद्धि को सदैव हानि मानता है । अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त में हर वृद्धि को हानिकारक नहीं माना गया । केवल वही जनसंख्या की वृद्धि व स्थिति हानिकारक है जो आदर्श जनसंख्या बिन्दु से अधिक हो । माल्थस अपने सिद्धान्त में यह नहीं बतलाता है कि एक समय विशेष में किसी देश में वास्तव में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए जबकि अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त आदर्श जनसंख्या की मात्रा को निश्चित करता है , जो अधिक उपयुक्त है । माल्थस का सिद्धान्त अपने आप में निराशावाद को लिये हुए है जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि को चिन्ताजनक न मानते हुए आशाबादी है ।

 माल्थस ने किसी भी देश में प्राकृतिक प्रकोपों जैसे अकाल , अनावृष्टि , अतिवृष्टि , भूकम्प , महामारी आदि जिन्हें उसने नैसर्गिक अवरोध कहा है कि क्रियाशीलता को जनाधिक्य का प्रतीक माना है । जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त इन्हें जनाधिक्य के प्रतीक के रूप में नहीं मानता यह तो प्रति व्यक्ति आय को ही वास्तविक कसौटी मानता है ।

माल्थस का सिद्धान्त केवल पिछड़े तथा अति जनसंख्या वाले देशों में ही लागू होता है । जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त हर स्थिति व जनसंख्या वाले देशों पर लागू होता है ।

माल्थस का सिद्धान्त जनसंख्या का मात्र संख्यात्मक विश्लेषण ही करता है गुणात्मक नहीं । जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त माल्थस की तरह जनसंख्या के गुणात्मक पहलू की पूर्णतया अवहेलना नहीं करता ।

माल्थस ने जनसंख्या को प्रमुख रूप से उपभोक्ता के रूप में ही देखा है जबकि अनुकूलतम सिद्धान्त उसे उत्पादनकर्ता के रूप में भी देखता है ।

माल्थस का सिद्धान्त जहाँ पूर्णतया स्थैतिक है वहाँ अनुकूलतम सिद्धान्त स्थैतिक ही नहीं प्रावैगिक भी है ।

माल्थस का सिद्धान्त वैज्ञानिक नहीं है क्योंकि वह जनसंख्या की मात्रा को भी निश्चित नहीं करता , साथ ही इसमें अनेक नैतिक और धार्मिक बातों का उल्लेख करता है , पर अनकुलतम सिद्धान्त इन दोषों से मुक्त है ।

 माल्थस का सिद्धान्त सैद्धान्तिक अधिक और व्यावहारिक कम है । वह जनसंख्या में होने वाली प्रत्येक वृद्धि को बुरा मानते थे क्योंकि वे लोगों पर कठिन विपत्तियां लाती है । माल्थस लिखते हैं कि प्रकृति की मेज कुछ इन – गिने अतिथियों के लिए बिछाई गयी है और वे जो बिना बुलाए आते है उन्हें भूखे रहना पड़ेगा ( The table of nature is laid for a limited number of guests and those who come uninvited

must starve ) । दूसरी ओर अनुकूलतम सिद्धान्त यह मानता है कि देश के प्राकृतिक साधनों का अधिकतम विदोहन करने के लिए जनसंख्या में वृद्धि केवल वांछित ही नहीं आवश्यक भी है ।

 माल्थस का सिद्धान्त इस अवास्तविक अवधारणा पर आधारित है कि प्रकृति कृपण है क्योंकि कृषि में घटते प्रतिफल का नियम कार्यशील रहता है । परन्तु इस दृष्टि से अनुकूलतम सिद्धान्त की अवधारणा वास्तविक है । क्योंकि , यह सिद्धान्त मानता है कि पहले अनुकूलतम बिन्दु तक बढ़ते प्रतिफल का नियम कार्य करता है और उसके उपरान्त घटते प्रतिफल का नियम । उपर्युक्त तथ्यों की विवेचना से यह निष्कर्ष निकलता है कि अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त माल्थस के सिद्धान्त से श्रेष्ठतर है ।

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