अदम्य साहस की गाथा: शुभांशु शुक्ला की कहानी और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका।
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक असाधारण युवा, शुभांशु शुक्ला, के अदम्य साहस की दिल खोलकर सराहना की। प्रधान मंत्री ने ट्वीट कर कहा कि शुभांशु का कार्य ‘एक अरब सपनों को प्रेरित’ करता है और उनके ‘साहस’ की सराहना की। यह प्रशंसा उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के शुभांशु शुक्ला द्वारा प्रदर्शित अद्वितीय वीरता के जवाब में आई है, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर एक गंभीर आग दुर्घटना से 12 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला था। यह घटना न केवल शुभांशु के व्यक्तिगत शौर्य को दर्शाती है, बल्कि समाज में साहस, परोपकार और नागरिक जिम्मेदारी के महत्व को भी रेखांकित करती है, जो लोक सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मूल्य हैं।
कौन हैं शुभांशु शुक्ला? (Who is Shubhanshu Shukla?)
शुभांशु शुक्ला उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले युवा हैं। उनकी पहचान एक ऐसे नायक के रूप में बनी, जिसने संकट के क्षण में असाधारण दृढ़ता और साहस का परिचय दिया। घटना उस समय हुई जब हरदोई में एक कोचिंग सेंटर में आग लग गई थी। आग इतनी भीषण थी कि अंदर फंसे बच्चों का जीवन दांव पर था। चारों ओर धुआँ और आग की लपटें थीं, और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था। ऐसे भयावह माहौल में, जहाँ सामान्य व्यक्ति घबरा कर पीछे हट जाते, शुभांशु ने अपनी परवाह न करते हुए आग की लपटों के बीच छलांग लगा दी।
उन्होंने एक-एक करके 12 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला। यह केवल शारीरिक साहस का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि तीव्र भावनात्मक बुद्धिमत्ता, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता और दूसरों के जीवन के प्रति गहरी संवेदनशीलता का भी प्रमाण था। शुभांशु का यह कार्य “आम आदमी का असाधारण कार्य” का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो दिखाता है कि नायक बनने के लिए किसी विशेष पद या शक्ति की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि केवल एक साहसी हृदय और निःस्वार्थ सेवा की भावना होनी चाहिए।
साहस की अवधारणा: एक गहन विश्लेषण (The Concept of Courage: A Deep Analysis)
शुभांशु का कार्य हमें ‘साहस’ की अवधारणा पर गहराई से विचार करने का अवसर देता है। साहस केवल भय की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि भय के बावजूद भी सही कार्य करने का संकल्प है। प्रसिद्ध अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट ने कहा था, “वीरता एक प्रकार की दृढ़ता है – एक आदत।” यह एक ऐसा गुण है जो किसी व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर अडिग रहने की शक्ति देता है।
साहस के प्रकार (Types of Courage):
साहस कई रूपों में प्रकट होता है, और शुभांशु का कार्य इनमें से कई पहलुओं को उजागर करता है:
- शारीरिक साहस (Physical Courage): इसमें शारीरिक जोखिम उठाकर किसी कार्य को अंजाम देना शामिल है। शुभांशु का जलते हुए कोचिंग सेंटर में घुसना और बच्चों को बचाना शारीरिक साहस का प्रत्यक्ष उदाहरण है। सैनिक युद्ध के मैदान में, अग्निशामक आग बुझाने में, या पर्वतारोही ऊँची चोटियों को फतह करने में इसी प्रकार के साहस का प्रदर्शन करते हैं।
- नैतिक साहस (Moral Courage): यह सामाजिक दबाव, आलोचना, बहिष्कार या व्यक्तिगत नुकसान के डर के बावजूद सही काम करने की क्षमता है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना, अन्याय के खिलाफ खड़े होना, या अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना हो सकता है, भले ही यह unpopular हो। शुभांशु ने तुरंत निर्णय लिया कि बच्चों को बचाना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है, भले ही इसमें जान का खतरा हो।
- बौद्धिक साहस (Intellectual Courage): इसमें स्थापित धारणाओं, लोकप्रिय विचारों, या अपनी स्वयं की मान्यताओं को चुनौती देने की इच्छा शामिल है, खासकर जब नए विचारों या सत्य की तलाश की जा रही हो। वैज्ञानिक, दार्शनिक और शोधकर्ता अक्सर इस प्रकार का साहस दिखाते हैं।
- सामाजिक साहस (Social Courage): यह सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने या किसी सामाजिक कारण के लिए खड़े होने से संबंधित है, जैसे कि किसी नए विचार का समर्थन करना या किसी हाशिए पर पड़े समूह की वकालत करना।
दर्शन और विचारों में साहस (Courage in Philosophy and Thought):
“साहस भय की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह दृढ़ विश्वास है कि भय से बढ़कर कुछ और महत्वपूर्ण है।”
– नेल्सन मंडेला
प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने साहस को ‘स्वर्ण माध्य’ (Golden Mean) के रूप में देखा। उनके अनुसार, साहस न तो कायरता है (भय का अत्यधिक अभाव) और न ही उतावलापन (भय की अनावश्यक उपेक्षा), बल्कि यह इन दोनों के बीच का संतुलन है। प्लेटो ने साहस को एक आदर्श राज्य के चार मुख्य गुणों (ज्ञान, साहस, संयम और न्याय) में से एक माना है। महात्मा गांधी का ‘अहिंसक प्रतिरोध’ भी एक प्रकार का गहन नैतिक साहस था, जहाँ उन्होंने शारीरिक हिंसा का सामना करने के लिए आत्मिक शक्ति का उपयोग किया। शुभांशु के कार्य में यह ‘स्वर्ण माध्य’ स्पष्ट रूप से दिखाई देता है – उन्होंने बिना किसी उतावलेपन के, परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए, किंतु भय पर विजय प्राप्त करते हुए कार्य किया।
UPSC नैतिकता से संबंध (Connection to UPSC Ethics – GS-IV):
शुभांशु शुक्ला का मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के सामान्य अध्ययन पेपर-IV (नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि) के लिए एक उत्कृष्ट केस स्टडी है। यह निम्नलिखित नैतिक अवधारणाओं को उजागर करता है:
- परोपकार (Altruism): दूसरों की भलाई के लिए निस्वार्थ चिंता। शुभांशु ने बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की आशा के, पूरी तरह से दूसरों की जान बचाने के उद्देश्य से कार्य किया।
- करुणा और सहानुभूति (Compassion and Empathy): दूसरों के दुख को समझना और उसे कम करने की इच्छा रखना। बच्चों की जान खतरे में देखकर शुभांशु का दिल पिघल गया और उन्होंने तुरंत कार्रवाई की।
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence): संकट की स्थिति में अपनी भावनाओं (जैसे डर) को नियंत्रित करना और दूसरों की भावनाओं (बच्चों का डर) को समझना। शुभांशु ने घबराहट के बजाय त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी।
- लोक सेवा मूल्य (Public Service Values): यद्यपि शुभांशु एक सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, उनका कार्य नागरिक सेवा, कर्तव्यनिष्ठा और सार्वजनिक हित को प्राथमिकता देने जैसे मूल्यों को दर्शाता है। ये मूल्य सिविल सेवकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- निर्णय लेने की क्षमता (Decision Making): दबाव में सही और त्वरित निर्णय लेना। आग लगने की स्थिति में हर पल महत्वपूर्ण होता है, और शुभांशु ने बिना किसी हिचकिचाहट के सबसे उपयुक्त कार्रवाई की।
यह घटना सिविल सेवकों के लिए एक सबक है कि उन्हें न केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, बल्कि संकट के समय में आम जनता के लिए एक प्रेरणा स्रोत और सहायता का हाथ भी बनना चाहिए।
शुभांशु का कार्य: एक केस स्टडी के रूप में (Shubhanshu’s Act: As a Case Study)
शुभांशु शुक्ला का कार्य केवल एक बहादुर व्यक्ति की कहानी नहीं है; यह एक सामाजिक-नैतिक केस स्टडी है जो हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाती है।
- तत्काल प्रभाव (Immediate Impact): उनके कार्य का सबसे सीधा और महत्वपूर्ण परिणाम 12 मासूम बच्चों की जान बचाना था। यह एक ऐसा कार्य था जिसने कई परिवारों को तबाह होने से बचाया और समुदाय में तुरंत राहत और सुरक्षा की भावना लाई। यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति का साहस कितनी जिंदगियों को सीधे प्रभावित कर सकता है।
- दूरगामी प्रभाव (Long-term Impact):
- प्रेरणा का स्रोत: शुभांशु की कहानी पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई है। यह लोगों को याद दिलाती है कि जब भी कोई संकट आता है, तो ‘मूकदर्शक’ बने रहने के बजाय सक्रिय रूप से मदद के लिए आगे आना चाहिए। यह ‘गुड समैरिटन’ (Good Samaritan) की भावना को बढ़ावा देता है, जहाँ लोग बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करते हैं।
- सामाजिक जिम्मेदारी की याद दिलाना: यह घटना प्रत्येक नागरिक को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कराती है। हम सभी एक समाज का हिस्सा हैं, और एक-दूसरे की मदद करना, विशेष रूप से संकट के समय, एक सामूहिक जिम्मेदारी है।
- नेतृत्व का उदाहरण: शुभांशु ने एक ऐसे समय में नेतृत्व का प्रदर्शन किया जब कोई और आगे नहीं बढ़ रहा था। उनका कार्य दिखाता है कि नेतृत्व केवल पद से नहीं आता, बल्कि संकट में जिम्मेदारी लेने की इच्छा से आता है।
- नैतिक मूल्यांकन (Ethical Evaluation):
- आत्म-त्याग (Self-sacrifice): शुभांशु ने अपनी सुरक्षा को दांव पर लगाकर दूसरों की जान बचाई। यह परोपकार के उच्चतम रूपों में से एक है।
- बिना किसी स्वार्थ के परोपकार (Disinterested Altruism): उनके कार्य में कोई व्यक्तिगत लाभ या स्वार्थ नहीं था। यह शुद्ध रूप से मानवीय करुणा से प्रेरित था।
- कर्तव्य की भावना (Sense of Duty): हालांकि यह उनका औपचारिक कर्तव्य नहीं था, उन्होंने मानवीय कर्तव्य की प्रबल भावना का प्रदर्शन किया। यह एक नागरिक के रूप में उनकी अंतर्निहित नैतिकता को दर्शाता है।
प्रेरणा और रोल मॉडल्स की शक्ति: राष्ट्र निर्माण में भूमिका (The Power of Inspiration and Role Models: Role in Nation Building)
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुभांशु की सराहना केवल एक व्यक्ति को सम्मानित करना नहीं है, बल्कि यह समाज में ऐसे गुणों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
- व्यक्तिगत कार्य का सामूहिक प्रभाव (Collective Impact of Individual Acts): शुभांशु जैसे व्यक्तियों के कार्य छोटे लग सकते हैं, लेकिन उनका प्रभाव दूरगामी होता है। एक बहादुर कार्य हजारों को प्रेरित कर सकता है, जिससे सकारात्मक परिवर्तन की लहरें उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे एक छोटी सी मशाल पूरे अँधेरे को रोशन कर सकती है, वैसे ही एक व्यक्ति का साहस पूरे समुदाय को सक्रिय कर सकता है।
- समाज में रोल मॉडल्स का महत्व (Importance of Role Models in Society): रोल मॉडल्स (आदर्श) युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक होते हैं। जब बच्चे शुभांशु जैसे नायकों के बारे में सुनते हैं, तो वे उनसे प्रेरणा लेते हैं और उनके जैसा बनने की इच्छा रखते हैं। यह उन्हें सही मूल्यों और नैतिक आचरण की दिशा में आगे बढ़ाता है।
- प्रधान मंत्री द्वारा मान्यता का महत्व (Significance of PM’s Recognition):
- सार्वजनिक रूप से अच्छे कार्यों को बढ़ावा देना: जब देश का शीर्ष नेतृत्व किसी ऐसे कार्य की सराहना करता है, तो यह पूरे समाज को संदेश देता है कि ऐसे कार्य मूल्यवान और सराहनीय हैं। यह लोगों को समान कृत्यों के लिए प्रोत्साहित करता है।
- नागरिकों को समान कृत्यों के लिए प्रोत्साहित करना: यह एक सकारात्मक सुदृढीकरण (positive reinforcement) के रूप में कार्य करता है, जो अधिक नागरिकों को संकट के समय में मदद के लिए आगे आने के लिए प्रेरित करता है।
- सरकारी स्तर पर मूल्यों को स्वीकार करना: यह दर्शाता है कि सरकार उन मूल्यों को महत्व देती है जो एक मजबूत और करुणामय समाज के लिए आवश्यक हैं। यह सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों में इन मूल्यों के समावेश को बढ़ावा दे सकता है।
- राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण (Building National Character): एक राष्ट्र केवल अपनी अर्थव्यवस्था या सैन्य शक्ति से नहीं बनता, बल्कि अपने नागरिकों के चरित्र से भी बनता है। साहस, सत्यनिष्ठा, करुणा, सेवा और नागरिक कर्तव्य जैसे गुणों का प्रसार एक मजबूत, लचीले और नैतिक राष्ट्र का निर्माण करता है। शुभांशु जैसे नायक इस राष्ट्रीय चरित्र को गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
साहस और परोपकार को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ (Challenges in Fostering Courage and Altruism)
शुभांशु का कार्य हमें प्रेरित करता है, लेकिन यह भी सच है कि समाज में हर कोई ऐसा साहस नहीं दिखा पाता। कई चुनौतियाँ हैं जो साहस और परोपकार को बाधित करती हैं:
- सामाजिक उदासीनता (Societal Apathy): अक्सर लोग ‘यह मेरा काम नहीं’ या ‘कोई और कर देगा’ की मानसिकता के कारण संकट में मदद करने से कतराते हैं। भीड़ का प्रभाव (Bystander Effect) भी एक कारण है, जहाँ अधिक लोग होने पर व्यक्ति व्यक्तिगत जिम्मेदारी महसूस नहीं करता।
- कानूनी निहितार्थों का भय (Fear of Legal Ramifications): ‘गुड समैरिटन’ (Good Samaritan) कानूनों की कमी या जागरूकता के अभाव में, लोग अक्सर पीड़ित की मदद करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें पुलिस पूछताछ, कानूनी झंझटों या अस्पताल के खर्चों में फँसने का डर रहता है। हालांकि भारत में अब गुड समैरिटन कानून लागू हो गए हैं, लेकिन इसकी व्यापक जानकारी का अभाव एक चुनौती बनी हुई है।
- व्यक्तिगत जोखिम (Personal Risk): अपनी सुरक्षा को दांव पर लगाने का डर एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है। आग, दुर्घटना या अपराध स्थल पर मदद करने से पहले लोग अपनी जान के खतरे के बारे में सोचते हैं।
- मीडिया का नकारात्मक फोकस (Negative Media Focus): कई बार मीडिया नकारात्मक खबरों, अपराधों और त्रासदियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जबकि शुभांशु जैसे सकारात्मक और प्रेरणादायक कार्यों को उतनी प्रमुखता नहीं मिलती। इससे समाज में निराशा और अविश्वास बढ़ सकता है।
- शिक्षा प्रणाली की कमी (Deficiency in Education System): हमारी शिक्षा प्रणाली अक्सर ज्ञान के बजाय अंकों पर अधिक केंद्रित होती है। नैतिक शिक्षा, मूल्य-आधारित शिक्षण और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को बचपन से ही पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता।
आगे की राह: साहसी नागरिकों का राष्ट्र कैसे बनाएँ? (Way Forward: How to Build a Nation of Courageous Citizens?)
एक ऐसा समाज बनाने के लिए जहाँ शुभांशु जैसे नायक सामान्य हों, हमें एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:
- शिक्षा का पुनर्गठन (Reforming Education):
- मूल्य-आधारित शिक्षा: स्कूल पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, सहानुभूति, नागरिक कर्तव्य और सामाजिक जिम्मेदारी को बचपन से ही एकीकृत किया जाना चाहिए। कहानियों, केस स्टडीज और रोल-प्ले के माध्यम से बच्चों को सही-गलत का अंतर सिखाया जाए।
- व्यवहारिक शिक्षा: बच्चों को संकट की स्थिति में त्वरित और सुरक्षित प्रतिक्रिया देने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जैसे कि प्राथमिक चिकित्सा, अग्निशमन सुरक्षा, आदि।
- कानूनी सुरक्षा और जागरूकता (Legal Protection and Awareness):
- गुड समैरिटन कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दुर्घटना या आपात स्थिति में मदद करने वाले व्यक्तियों को कानूनी उत्पीड़न या परेशानी का सामना न करना पड़े। कानूनों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि लोग बिना डरे मदद के लिए आगे आ सकें।
- नागरिकों को सशक्त बनाना: पुलिस और चिकित्साकर्मियों को ऐसे व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक और सहयोगपूर्ण तरीके से व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
- सार्वजनिक मान्यता और पुरस्कार (Public Recognition and Awards):
- नियमित सम्मान: शुभांशु जैसे व्यक्तियों को न केवल प्रधान मंत्री स्तर पर, बल्कि स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी नियमित रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी।
- प्रेरक कहानियों का प्रचार: सरकार और मीडिया को ऐसे नायकों की कहानियों को व्यापक रूप से प्रचारित करना चाहिए ताकि वे जनमानस में सकारात्मक रोल मॉडल्स बन सकें।
- मीडिया की भूमिका (Role of Media):
- सकारात्मक कहानियों को उजागर करना: मीडिया को नकारात्मक खबरों से परे जाकर शुभांशु जैसी प्रेरक कहानियों को प्रमुखता से दिखाना चाहिए। यह समाज में आशा और सकारात्मकता का संचार करेगा।
- जागरूकता अभियान: मीडिया ‘गुड समैरिटन’ कानूनों और नागरिक कर्तव्यों के बारे में जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- सामुदायिक पहल (Community Initiatives):
- पड़ोसी सहायता समूह: स्थानीय स्तर पर ऐसे समूह बनाए जा सकते हैं जो आपात स्थिति में एक-दूसरे की मदद के लिए प्रशिक्षित और तैयार रहें।
- स्वयंसेवी संगठनों को बढ़ावा: ऐसे संगठनों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो परोपकार और नागरिक सेवा के लिए लोगों को लामबंद करते हैं।
- सरकार की भूमिका (Role of Government):
- सार्वजनिक सुरक्षा को मजबूत करना: अग्निशमन सेवाओं, आपदा प्रतिक्रिया टीमों और आपातकालीन सेवाओं को मजबूत करना ताकि नागरिकों को यह विश्वास हो कि उनकी सुरक्षा के लिए मजबूत ढांचा मौजूद है।
- ‘सेवा भाव’ को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां: ऐसी नीतियां बनाना जो नागरिकों के बीच स्वयं सेवा और दूसरों की मदद करने की भावना को प्रोत्साहित करें।
- व्यक्तिगत जिम्मेदारी (Individual Responsibility):
- अंततः, परिवर्तन स्वयं से शुरू होता है। प्रत्येक व्यक्ति को ‘ bystander effect’ से ऊपर उठकर संकट के समय में मदद के लिए आगे आने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
- अपने परिवार और बच्चों में इन मूल्यों को विकसित करना।
निष्कर्ष (Conclusion)
शुभांशु शुक्ला की कहानी हमें याद दिलाती है कि सबसे बड़ी वीरता अक्सर सबसे साधारण परिस्थितियों से निकलकर आती है। उनका साहस केवल एक क्षणिक कार्य नहीं था, बल्कि यह करुणा, दृढ़ता और निस्वार्थ सेवा के गहरे मूल्यों का प्रतिबिंब था। प्रधान मंत्री द्वारा उनकी सराहना एक महत्वपूर्ण संकेत है कि राष्ट्र ऐसे गुणों को पहचानता और महत्व देता है।
UPSC उम्मीदवारों के रूप में, यह कहानी सिर्फ एक सामयिक घटना से अधिक है। यह नैतिकता, शासन और सामाजिक विकास के कई विषयों को छूती है। यह आपको न केवल अकादमिक रूप से तैयार करती है, बल्कि एक जिम्मेदार और सहानुभूतिपूर्ण नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करती है। एक सिविल सेवक के रूप में, आपको ऐसे गुणों को आत्मसात करना होगा और समाज में दूसरों को प्रेरित करने के लिए एक उदाहरण स्थापित करना होगा। याद रखें, वास्तविक नेतृत्व केवल नियमों का पालन करने में नहीं, बल्कि संकट में सही काम करने के लिए साहस दिखाने में निहित है, भले ही उसमें व्यक्तिगत जोखिम शामिल हो। शुभांशु शुक्ला जैसे अनगिनत नायक हमारे समाज की रीढ़ हैं, और उनके कार्यों को पहचानना और उनका अनुकरण करना ही एक मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण की दिशा में पहला कदम है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें और सबसे उपयुक्त विकल्प चुनें।)
1. शुभांशु शुक्ला के कार्य के संदर्भ में, ‘साहस’ की अवधारणा के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- साहस केवल शारीरिक जोखिम उठाने की क्षमता है।
- नैतिक साहस में सामाजिक दबाव के बावजूद सही कार्य करना शामिल है।
- अरस्तू के अनुसार, साहस कायरता और उतावलेपन के बीच का ‘स्वर्ण माध्य’ है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 गलत है क्योंकि साहस के कई प्रकार होते हैं, जिनमें शारीरिक, नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक साहस शामिल हैं। कथन 2 और 3 सही हैं, क्योंकि नैतिक साहस सामाजिक दबाव के बावजूद सही कार्य करने को संदर्भित करता है, और अरस्तू ने साहस को ‘स्वर्ण माध्य’ के रूप में परिभाषित किया था।
2. ‘गुड समैरिटन’ (Good Samaritan) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- ‘गुड समैरिटन’ वह व्यक्ति होता है जो संकट में फंसे व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के मदद करता है।
- भारत में ‘गुड समैरिटन’ को कानूनी प्रक्रियाओं से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
- ‘गुड समैरिटन’ कानूनों का उद्देश्य लोगों को निडर होकर दूसरों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। कथन 2 गलत है क्योंकि भारत में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों और बाद में सड़क सुरक्षा अधिनियम के तहत ‘गुड समैरिटन’ को कानूनी प्रक्रियाओं से बचाने के प्रावधान किए गए हैं।
3. नैतिक मूल्य ‘परोपकार’ (Altruism) का सबसे अच्छा वर्णन कौन सा विकल्प करता है?
(a) व्यक्तिगत लाभ के लिए दूसरों की मदद करना।
(b) दूसरों की भलाई के लिए निस्वार्थ चिंता और कार्य।
(c) केवल अपने परिवार और दोस्तों की मदद करना।
(d) समाज में अपनी स्थिति सुधारने के लिए अच्छे कार्य करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: परोपकार (Altruism) का अर्थ है दूसरों की भलाई के लिए निस्वार्थ रूप से कार्य करना, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ या अपेक्षा के।
4. शुभांशु के कार्य में निम्नलिखित में से कौन सा नैतिक गुण सबसे प्रमुख रूप से प्रदर्शित होता है?
(a) पक्षपात
(b) स्वार्थ
(c) आत्म-त्याग
(d) भयभीत होना
उत्तर: (c)
व्याख्या: शुभांशु ने अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जान बचाई, जो आत्म-त्याग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
5. निम्नलिखित में से कौन सा कारक समाज में ‘सामाजिक उदासीनता’ (Societal Apathy) को बढ़ावा दे सकता है?
- ‘यह मेरा काम नहीं’ की मानसिकता।
- भीड़ का प्रभाव (Bystander Effect)।
- सकारात्मक रोल मॉडल्स का अभाव।
- कानूनी संरक्षण का अत्यधिक प्रचार।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)
व्याख्या: कथन 1, 2 और 3 सामाजिक उदासीनता को बढ़ावा दे सकते हैं। कथन 4 गलत है, क्योंकि कानूनी संरक्षण का प्रचार लोगों को मदद करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, उदासीनता को नहीं।
6. ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ (Emotional Intelligence) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह केवल दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता है।
- यह संकट की स्थिति में अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने और उचित प्रतिक्रिया देने की क्षमता है।
- शुभांशु शुक्ला का कार्य भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उदाहरण नहीं है क्योंकि वह डर के बावजूद आगे बढ़े।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: भावनात्मक बुद्धिमत्ता में अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझना और नियंत्रित करना दोनों शामिल है (कथन 1 अपूर्ण है)। शुभांशु का कार्य भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उत्कृष्ट उदाहरण है क्योंकि उन्होंने डर के बावजूद शांत रहकर सही निर्णय लिया (कथन 3 गलत है)।
7. राष्ट्र निर्माण में रोल मॉडल्स की भूमिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक है?
(a) रोल मॉडल्स का राष्ट्र निर्माण पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता है।
(b) वे केवल मनोरंजन के लिए होते हैं और उनका कोई वास्तविक सामाजिक महत्व नहीं होता।
(c) वे व्यक्तिगत आचरण और सामाजिक मूल्यों को आकार देने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं।
(d) वे केवल विशिष्ट क्षेत्रों के विशेषज्ञों को प्रेरित करते हैं, आम जनता को नहीं।
उत्तर: (c)
व्याख्या: रोल मॉडल्स समाज में व्यक्तिगत आचरण और मूल्यों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे राष्ट्र निर्माण में योगदान मिलता है।
8. प्रधान मंत्री द्वारा शुभांशु जैसे नागरिक के कार्य को सार्वजनिक रूप से मान्यता देने का प्राथमिक उद्देश्य क्या हो सकता है?
- व्यक्तिगत नागरिक को प्रसिद्धि दिलाना।
- चुनावों में राजनीतिक लाभ प्राप्त करना।
- समाज में ऐसे सकारात्मक मूल्यों और कृत्यों को प्रोत्साहित करना।
- अन्य नागरिकों के प्रति ईर्ष्या की भावना पैदा करना।
उपरोक्त में से कौन सा/से उद्देश्य सबसे अधिक संभावित है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
व्याख्या: ऐसे कार्यों को सार्वजनिक मान्यता देने का प्राथमिक उद्देश्य समाज में सकारात्मक मूल्यों और नागरिक जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करना है। अन्य विकल्प द्वितीयक या गलत उद्देश्य हो सकते हैं।
9. अरस्तू के ‘स्वर्ण माध्य’ (Golden Mean) के सिद्धांत के अनुसार, साहस किसके बीच का मध्य मार्ग है?
(a) ज्ञान और अज्ञान
(b) उदारता और कंजूसी
(c) कायरता और उतावलापन
(d) क्रोध और शांति
उत्तर: (c)
व्याख्या: अरस्तू के ‘स्वर्ण माध्य’ के सिद्धांत में, साहस को कायरता (भय का अत्यधिक अभाव) और उतावलेपन (भय की अनावश्यक उपेक्षा) के बीच का मध्य मार्ग माना जाता है।
10. लोक सेवा मूल्यों के संदर्भ में, शुभांशु का कार्य किस मूल्य का सबसे अच्छा उदाहरण है, भले ही वह सरकारी कर्मचारी न हों?
(a) तटस्थता
(b) निष्पक्षता
(c) कर्तव्यनिष्ठा और सार्वजनिक हित को प्राथमिकता
(d) गुमनामी
उत्तर: (c)
व्याख्या: शुभांशु ने अपनी जान जोखिम में डालकर बच्चों को बचाया, जो कर्तव्यनिष्ठा और सार्वजनिक हित को निजी हित से ऊपर रखने का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो लोक सेवा का एक प्रमुख मूल्य है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
(निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 150-250 शब्दों में दें।)
1. “साहस केवल भय की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि भय पर विजय है।” शुभांशु शुक्ला के हालिया कार्य के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण करें। साथ ही, राष्ट्र निर्माण में नागरिक साहस (Civic Courage) की भूमिका पर प्रकाश डालें और ऐसे गुणों को बढ़ावा देने के लिए तीन प्रमुख उपायों का सुझाव दें। (15 अंक)
2. शुभांशु शुक्ला का कार्य सिविल सेवा नैतिकता (GS-IV) के कई सिद्धांतों का एक उत्कृष्ट केस स्टडी है। भावनात्मक बुद्धिमत्ता, परोपकार और सार्वजनिक सेवा मूल्यों के संदर्भ में उनके कार्यों का मूल्यांकन करें। सिविल सेवकों के लिए ऐसे गुणों को आत्मसात करना क्यों आवश्यक है? (10 अंक)
3. प्रधान मंत्री द्वारा शुभांशु जैसे व्यक्तियों को मान्यता देना समाज में सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा देने में कैसे सहायक हो सकता है? समाज में ‘गुड समैरिटन’ की भावना को प्रोत्साहित करने में ‘गुड समैरिटन’ कानूनों की भूमिका पर चर्चा करें और इस संबंध में मीडिया की जिम्मेदारी भी बताएं। (15 अंक)
4. “एक राष्ट्र केवल अपनी अर्थव्यवस्था या सैन्य शक्ति से नहीं बनता, बल्कि अपने नागरिकों के चरित्र से भी बनता है।” इस कथन के आलोक में, शुभांशु शुक्ला जैसे आम व्यक्तियों के असाधारण कार्य किस प्रकार राष्ट्रीय चरित्र को गढ़ने में योगदान करते हैं? शिक्षा प्रणाली और सामुदायिक पहलों की भूमिका पर भी चर्चा करें। (10 अंक)