अंतिम आपातकाल का दिन: एक साक्षात्कार, एक सीख, और एक भविष्य का निर्माण

अंतिम आपातकाल का दिन: एक साक्षात्कार, एक सीख, और एक भविष्य का निर्माण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री, श्री एस. जयशंकर ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया जिसने न केवल देश की राजनीतिक चेतना को झकझोर दिया, बल्कि उन हजारों युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सबक भी बन गया जो भारत की सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने आपातकाल (Emergency) के बिल्कुल आखिरी दिन अपना यूपीएससी (UPSC) साक्षात्कार दिया था। यह अनुभव उनके लिए सिर्फ एक परीक्षा नहीं, बल्कि दबाव में बात करने, परिस्थितियों को समझने और शायद, सत्ता के गलियारों में जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता का एक कड़वा सच जानने का पहला पाठ था। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत किस्सा नहीं, बल्कि यह हमें आपातकाल के उस दौर, सिविल सेवाओं के महत्व और एक भावी प्रशासक को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, इस पर गहन चिंतन करने का अवसर देती है।

आपातकाल का दौर: एक संवैधानिक विराम (The Period of Emergency: A Constitutional Pause)

भारत के इतिहास में आपातकाल (1975-1977) का दौर एक ऐसा काला अध्याय है जिसे अक्सर लोकतंत्र पर एक ‘असाधारण आक्रमण’ के रूप में याद किया जाता है। 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर अनुच्छेद 352 के तहत ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस घोषणा ने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित किया।

क्या हुआ था उस दौरान?

  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले स्वतंत्रता के अधिकार स्वतः निलंबित हो गए। अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था।
  • प्रेस सेंसरशिप: समाचार पत्रों और अन्य मीडिया पर कठोर सेंसरशिप लागू की गई, जिससे सूचना का स्वतंत्र प्रवाह बाधित हुआ।
  • राजनीतिक गिरफ्तारियाँ: बड़े पैमाने पर विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।
  • केंद्र-राज्य संबंधों में बदलाव: केंद्र सरकार राज्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित कर सकती थी।
  • संवैधानिक संशोधन: 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 (मिनी-संविधान) पारित किया गया, जिसने संसद की सर्वोच्चता को स्थापित करने का प्रयास किया और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित किया।

यह वह समय था जब सामान्य कानूनी प्रक्रियाएं निलंबित थीं और सरकार की शक्ति लगभग असीमित थी। ऐसे माहौल में, जहाँ लोगों को बोलने की स्वतंत्रता नहीं थी, और जहाँ सरकारी तंत्र अभूतपूर्व दबाव में काम कर रहा था, एक यूपीएससी साक्षात्कार देना निश्चित रूप से एक अद्वितीय अनुभव रहा होगा।

जयशंकर का साक्षात्कार: दबाव में सीखने की कला (Jaishankar’s Interview: The Art of Learning Under Pressure)

कल्पना कीजिए: देश में आपातकाल लगा है, नागरिक स्वतंत्रताएँ सीमित हैं, अनिश्चितता का माहौल है, और आप अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा के आखिरी चरण में हैं – सिविल सेवा साक्षात्कार। श्री एस. जयशंकर ने ठीक इसी स्थिति में अपना साक्षात्कार दिया। उनका यह अनुभव हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है:

“मैंने आपातकाल के अंतिम दिन यूपीएससी का साक्षात्कार दिया था। यह मेरे लिए एक गहरा अनुभव था, क्योंकि इसने मुझे दबाव में बात करना सिखाया। मैंने ऐसे अधिकारियों से भी मुलाकात की, जो देश के वास्तविक हालात से अनजान थे।”
– श्री एस. जयशंकर

दबाव प्रबंधन का पहला पाठ: जयशंकर का यह अनुभव दर्शाता है कि कैसे उन्होंने कम उम्र में ही अत्यधिक दबाव में भी शांत और संयमित रहना सीखा। सिविल सेवा परीक्षा स्वयं में एक विशाल दबाव कुकर है – लाखों उम्मीदवारों से मुकाबला, एक विशाल पाठ्यक्रम, समय की कमी, और अनिश्चितता का सामना। साक्षात्कार विशेष रूप से दबावपूर्ण होता है, जहाँ आपके ज्ञान के साथ-साथ आपके व्यक्तित्व, आपकी सोच, और आपकी मानसिक स्थिरता का भी परीक्षण होता है। जयशंकर के मामले में, यह दबाव न केवल परीक्षा का था, बल्कि पूरे देश में व्याप्त राजनैतिक उथल-पुथल का भी था।

UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिकता:

  • मानसिक दृढ़ता: यह दिखाता है कि सिविल सेवक बनने के लिए न केवल बौद्धिक क्षमता, बल्कि असाधारण मानसिक दृढ़ता भी आवश्यक है।
  • अशांत माहौल में निर्णय: एक प्रशासक को अक्सर अशांत या अप्रत्याशित परिस्थितियों में महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं। यह अनुभव जयशंकर को भविष्य की ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार कर रहा था।
  • दबाव में संचार: अपनी बात को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से रखना, भले ही स्थिति कितनी भी तनावपूर्ण क्यों न हो, एक सिविल सेवक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कौशल है।

उन अधिकारियों से मुलाकात: जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता (Meeting Those Officials: Unawareness of Ground Realities)

जयशंकर के कथन का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि उन्होंने ऐसे अधिकारियों से मुलाकात की जो देश के वास्तविक हालात से अनजान थे। यह टिप्पणी सिविल सेवाओं के कामकाज पर एक गंभीर सवाल उठाती है और भविष्य के प्रशासकों के लिए एक चेतावनी भी है।

क्यों होती है जमीनी हकीकत से दूरी?

  1. सूचना का फ़िल्टर होना: पदानुक्रमित संरचना में, सूचना अक्सर निचले स्तर से ऊपर तक पहुँचते-पहुँचते फ़िल्टर हो जाती है। अधिकारी केवल वही सुनते हैं जो उन्हें बताया जाता है, न कि जो वास्तव में हो रहा होता है।
  2. एकांगी दृष्टिकोण: कई बार अधिकारी अपने चैंबर से बाहर निकलकर आम लोगों से सीधे जुड़ने से कतराते हैं या उनके पास ऐसा करने का समय नहीं होता। इससे उनका दृष्टिकोण सीमित हो जाता है।
  3. आत्मसंतुष्टि और जड़ता: कुछ अधिकारी अपनी स्थिति और शक्ति के कारण आत्मसंतुष्ट हो जाते हैं, जिससे वे जमीनी स्तर पर हो रहे परिवर्तनों या समस्याओं को महसूस नहीं कर पाते।
  4. राजनीतिक दबाव: कई बार राजनीतिक दबाव के कारण अधिकारी वही रिपोर्ट करते हैं जो राजनीतिक आका सुनना चाहते हैं, न कि वस्तुनिष्ठ स्थिति।

आपातकाल के दौरान यह स्थिति और भी विकट हो गई थी, क्योंकि सरकार पर कोई बाहरी निगरानी नहीं थी, और सूचना के सभी स्रोत नियंत्रित थे। ऐसे में अधिकारियों का जमीनी हकीकत से कटना स्वाभाविक था।

भविष्य के सिविल सेवकों के लिए सीख:

  • सक्रिय होकर जमीनी जुड़ाव: एक प्रभावी प्रशासक वह है जो केवल आंकड़ों और रिपोर्टों पर निर्भर न रहकर, स्वयं जमीनी स्तर पर जाकर समस्याओं को समझता है।
  • खुला दिमाग और सुनने की कला: विभिन्न दृष्टिकोणों को सुनने और स्वीकार करने की क्षमता, भले ही वे आपकी पूर्व धारणाओं के विपरीत हों।
  • सत्यनिष्ठा और साहस: सत्ता के समक्ष भी सत्य बोलने का साहस रखना, भले ही वह अप्रिय क्यों न हो। यह सिविल सेवा की नैतिक रीढ़ है।
  • सह-अनुभूति (Empathy): आम जनता की समस्याओं को केवल प्रशासनिक चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से देखने की क्षमता।

UPSC उम्मीदवारों के लिए व्यापक सीख (Comprehensive Lessons for UPSC Aspirants)

1. दबाव प्रबंधन: परीक्षा से सेवा तक (Pressure Management: From Exam to Service)

यूपीएससी की तैयारी और सिविल सेवा का जीवन दोनों ही दबावों से भरे होते हैं। जयशंकर का अनुभव हमें सिखाता है कि दबाव को कैसे एक अवसर में बदला जा सकता है।

  • परीक्षा के दौरान:
    • समय प्रबंधन: सीमित समय में विशाल पाठ्यक्रम को कवर करना।
    • परीक्षा हॉल का दबाव: अनिश्चित प्रश्नों और समय सीमा के भीतर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना।
    • साक्षात्कार का तनाव: व्यक्तित्व परीक्षण और पैनल के समक्ष अपनी बात रखना।
  • सेवा के दौरान:
    • जनता की अपेक्षाएँ: लगातार बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करना।
    • राजनैतिक हस्तक्षेप: सही निर्णय लेने पर भी राजनैतिक दबाव का सामना करना।
    • संकट प्रबंधन: आपदा, कानून-व्यवस्था, या अन्य आपात स्थितियों में त्वरित और प्रभावी निर्णय लेना।
    • सीमित संसाधन: अक्सर बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सीमित संसाधनों के साथ काम करना।

रणनीतियाँ:

  • अभ्यास और मॉक टेस्ट: वास्तविक परीक्षा के माहौल का अनुभव करने के लिए नियमित रूप से मॉक टेस्ट दें।
  • ध्यान और योग: मानसिक शांति और एकाग्रता बनाए रखने के लिए।
  • छोटे लक्ष्य निर्धारित करें: बड़े लक्ष्य को छोटे, प्रबंधनीय हिस्सों में बांटें।
  • नकारात्मक विचारों से बचें: सकारात्मक रहें और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें।
  • साक्षात्कार अभ्यास: वास्तविक साक्षात्कार से पहले कई मॉक इंटरव्यू दें ताकि आप सहज महसूस कर सकें।

2. नैतिकता, सत्यनिष्ठा और वस्तुनिष्ठता (Ethics, Integrity, and Objectivity)

जयशंकर की टिप्पणी कि “अधिकारी देश के हालात से अनजान थे” हमें सिविल सेवा की नैतिक रीढ़ की याद दिलाती है। एक सिविल सेवक का कर्तव्य केवल नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के साथ सार्वजनिक सेवा करना भी है।

  • सत्यनिष्ठा (Integrity): ईमानदारी और नैतिक सिद्धांतों का पालन करना, विशेषकर जब कोई नहीं देख रहा हो।
  • वस्तुनिष्ठता (Objectivity): व्यक्तिगत भावनाओं, पूर्वाग्रहों या राजनीतिक दबाव से प्रभावित हुए बिना तथ्यों और सबूतों के आधार पर निर्णय लेना।
  • जवाबदेही (Accountability): अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जिम्मेदार होना।
  • पारदर्शिता (Transparency): सार्वजनिक मामलों में खुलेपन का अभ्यास करना।

यह सब ‘शासन में ईमानदारी’ (Probity in Governance) के मूल सिद्धांतों का हिस्सा है, जो कि सिविल सेवा परीक्षा के GS-4 (नैतिकता) पेपर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भविष्य के प्रशासकों को यह समझना होगा कि उन्हें केवल नीति निर्माता या प्रवर्तक ही नहीं, बल्कि सत्य के संरक्षक और न्याय के संवाहक भी बनना है।

3. व्यावहारिक ज्ञान और जमीनी जुड़ाव (Practical Knowledge and Ground Connect)

किताबी ज्ञान महत्वपूर्ण है, लेकिन वह तब तक अधूरा है जब तक उसे जमीनी हकीकत से न जोड़ा जाए। जयशंकर का अनुभव बताता है कि अधिकारियों का जमीनी हकीकत से कटा होना कितना खतरनाक हो सकता है।

  • करंट अफेयर्स: केवल परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि दुनिया और देश की वास्तविक स्थिति को समझने के लिए पढ़ें।
  • सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण: सरकार की नीतियों और उनके प्रभावों को गहराई से समझें।
  • क्षेत्रीय अध्ययन: यदि संभव हो, तो विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से समझने का प्रयास करें।
  • विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना: नीतिगत मुद्दों पर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स (सरकार, नागरिक समाज, व्यापार, आम जनता) के दृष्टिकोणों को जानें।

एक सिविल सेवक को “फिल्टर की हुई” जानकारी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे सक्रिय रूप से लोगों से जुड़ना चाहिए, उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए और उनके अनुभवों से सीखना चाहिए। यह क्षमता ही उसे एक प्रभावी और संवेदनशील प्रशासक बनाएगी।

4. अनुकूलनशीलता और परिवर्तन का सामना (Adaptability and Facing Change)

आपातकाल का दौर अप्रत्याशित और तेजी से बदलते माहौल का एक चरम उदाहरण था। एक सिविल सेवक को किसी भी स्थिति में ढलने और प्रभावी ढंग से कार्य करने में सक्षम होना चाहिए।

  • बदलते पैटर्न: यूपीएससी परीक्षा का पैटर्न लगातार बदलता रहता है। सफल होने के लिए अनुकूलनशील होना आवश्यक है।
  • नीतिगत परिवर्तन: सरकारें बदलती हैं, नीतियां बदलती हैं। एक सिविल सेवक को इन परिवर्तनों को प्रभावी ढंग से लागू करना होता है।
  • तकनीकी प्रगति: नई तकनीकों को अपनाना और उनका उपयोग सार्वजनिक सेवा में सुधार के लिए करना।
  • वैश्विक चुनौतियाँ: महामारी, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करना।

अनुकूलनशीलता केवल अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि प्रभावी शासन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

5. व्यक्तिगत विकास: समग्र व्यक्तित्व (Personal Development: Holistic Personality)

सिविल सेवा परीक्षा केवल ज्ञान का परीक्षण नहीं है, बल्कि आपके समग्र व्यक्तित्व का भी परीक्षण है। जयशंकर का अनुभव हमें बताता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

  • संचार कौशल: स्पष्ट और प्रभावी ढंग से अपनी बात रखना।
  • नेतृत्व क्षमता: टीमों का नेतृत्व करना और उन्हें प्रेरित करना।
  • समस्या-समाधान कौशल: जटिल समस्याओं का विश्लेषण करना और व्यावहारिक समाधान खोजना।
  • आत्म-जागरूकता: अपनी शक्तियों और कमजोरियों को जानना।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण: चुनौतियों को अवसरों में बदलने की क्षमता।

ये सभी गुण न केवल साक्षात्कार में मदद करते हैं, बल्कि एक सफल और प्रभावशाली सिविल सेवक बनने के लिए भी आवश्यक हैं।

बदलते समय में एक सिविल सेवक की भूमिका (Role of a Civil Servant in Changing Times)

आजादी के बाद से भारतीय सिविल सेवा ने एक लंबा सफर तय किया है। औपनिवेशिक विरासत से निकलकर, यह अब एक लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और जन-उन्मुख सेवा बनने की ओर अग्रसर है।

आज की चुनौतियाँ:

  • बढ़ती जन अपेक्षाएँ: नागरिक अब केवल अधिकारों के बारे में ही नहीं, बल्कि बेहतर सेवाओं और शासन के बारे में भी जागरूक हैं।
  • भ्रष्टाचार: यह अभी भी एक बड़ी चुनौती है जो सार्वजनिक विश्वास को कम करती है।
  • राजनीतिकरण: नौकरशाही का राजनीतिकरण इसकी निष्पक्षता और दक्षता को प्रभावित करता है।
  • तकनीकी क्रांति: डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और डिजिटल डिवाइड जैसी नई चुनौतियाँ।
  • वैश्विक interconnectedness: वैश्विक घटनाएं (जैसे महामारी, आर्थिक संकट) स्थानीय शासन को प्रभावित करती हैं।

आवश्यक गुण:

  • प्रो-एक्टिवनेस: समस्याओं के उत्पन्न होने से पहले ही उन्हें पहचानना और समाधान खोजना।
  • सहभागी शासन: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों और हितधारकों को शामिल करना।
  • डिजिटल साक्षरता: प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करना।
  • संकट प्रबंधन: अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावी ढंग से निपटना।
  • सतत सीखना: बदलते परिवेश में प्रासंगिक बने रहने के लिए लगातार ज्ञान और कौशल का उन्नयन करना।

आगे की राह: एक सिविल सेवक का निर्माण (The Way Forward: Building a Civil Servant)

श्री एस. जयशंकर का अनुभव हमें याद दिलाता है कि सिविल सेवा परीक्षा केवल एक गेटवे नहीं है, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया है जो दबाव में भी शांत रहे, जमीनी हकीकत से जुड़ा रहे, और सत्यनिष्ठा के साथ राष्ट्र की सेवा करे।

एक सिविल सेवक केवल नियमों का पालन करने वाला अधिकारी नहीं होता, बल्कि वह सामाजिक परिवर्तन का वाहक, नीतियों का क्रियान्वयनकर्ता और लाखों लोगों के लिए आशा की किरण होता है। उन्हें न केवल कानून का ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसमें मानवीय संवेदनशीलता, नैतिक साहस और नेतृत्व क्षमता भी होनी चाहिए।

जो युवा आज सिविल सेवा का सपना देख रहे हैं, उन्हें जयशंकर के इस अनुभव से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह सिर्फ एक किस्सा नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी क्षमताओं को निखारा जा सकता है और कैसे एक सच्चा प्रशासक केवल किताबी ज्ञान से नहीं, बल्कि अनुभव, संवेदनशीलता और अटूट सत्यनिष्ठा से बनता है। आपका लक्ष्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि एक ऐसा सिविल सेवक बनना होना चाहिए, जो देश के सबसे चुनौतीपूर्ण समय में भी ईमानदारी, दक्षता और लोगों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के साथ खड़ा रह सके।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(प्रत्येक प्रश्न के लिए एक सही उत्तर और संक्षिप्त व्याख्या प्रदान करें)

1. निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है?

(a) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)

(b) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)

(c) संघ बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 19)

(d) अंतःकरण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)

उत्तर: (b)

व्याख्या: 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है।

2. भारत में ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल किस वर्ष घोषित किया गया था?

(a) 1962

(b) 1965

(c) 1971

(d) 1975

उत्तर: (d)

व्याख्या: 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था।

3. 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. इसने ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा।

2. इसने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य किया।

3. इसने न्यायिक समीक्षा की शक्ति को सीमित किया।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 42वां संशोधन अधिनियम, जिसे ‘मिनी-संविधान’ भी कहा जाता है, ने ये सभी प्रावधान किए। इसने संसद की सर्वोच्चता को बढ़ाने और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित करने का प्रयास किया।

4. सिविल सेवा में ‘निष्पक्षता’ (Impartiality) का क्या अर्थ है?

(a) सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना, भले ही परिस्थितियों में अंतर हो।

(b) किसी भी व्यक्तिगत पसंद, नापसंद या पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना।

(c) केवल कानूनों और नियमों का पालन करना, न कि मानवीय संवेदनाओं का।

(d) राजनीतिक नेतृत्व के सभी निर्देशों का आँख बंद करके पालन करना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: निष्पक्षता का अर्थ है कि सिविल सेवक को अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों, भावनाओं या राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर वस्तुनिष्ठ रूप से कार्य करना चाहिए और सभी नागरिकों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

5. सिविल सेवा में ‘जमीनी जुड़ाव’ (Ground Connect) से क्या अभिप्राय है?

1. केवल सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों पर निर्भर रहना।

2. नागरिकों से सीधे संवाद करना और उनकी समस्याओं को समझना।

3. नीति निर्माण में आम लोगों के अनुभवों को शामिल करना।

4. केवल उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना।

निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 4

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1, 2 और 3

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

व्याख्या: जमीनी जुड़ाव का अर्थ है कि सिविल सेवक को सक्रिय रूप से क्षेत्र का दौरा करना चाहिए, लोगों से सीधे संवाद करना चाहिए और उनकी वास्तविक समस्याओं और अनुभवों को नीति निर्माण और कार्यान्वयन में शामिल करना चाहिए। सरकारी रिपोर्टें उपयोगी हैं, लेकिन वे जमीनी हकीकत का एकमात्र स्रोत नहीं होनी चाहिए।

6. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद राष्ट्रीय आपातकाल के प्रावधानों से संबंधित है?

(a) अनुच्छेद 350

(b) अनुच्छेद 352

(c) अनुच्छेद 356

(d) अनुच्छेद 360

उत्तर: (b)

व्याख्या: अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित है, जो युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश में गंभीर सुरक्षा खतरे की स्थिति में घोषित किया जाता है। अनुच्छेद 356 राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (राष्ट्रपति शासन) और अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल से संबंधित है।

7. निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता एक प्रभावी प्रशासक के लिए आवश्यक नहीं है?

(a) अनुकूलनशीलता

(b) दबाव में निर्णय लेने की क्षमता

(c) व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लेना

(d) सहानुभूति और संवेदनशीलता

उत्तर: (c)

व्याख्या: एक प्रभावी प्रशासक को निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ होना चाहिए, व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लेना उसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करेगा और उसे अक्षम बनाएगा।

8. 1975 के आपातकाल के दौरान भारत के राष्ट्रपति कौन थे?

(a) वी.वी. गिरि

(b) नीलम संजीव रेड्डी

(c) फखरुद्दीन अली अहमद

(d) जाकिर हुसैन

उत्तर: (c)

व्याख्या: फखरुद्दीन अली अहमद 1975 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति थे जिन्होंने इंदिरा गांधी की सलाह पर आपातकाल की घोषणा की थी।

9. सिविल सेवा में ‘नैतिक साहस’ (Moral Courage) का क्या अर्थ है?

(a) हमेशा उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना।

(b) चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सही और नैतिक निर्णय लेने का साहस रखना।

(c) अपनी गलतियों को कभी स्वीकार न करना।

(d) केवल नियम-पुस्तिका का कठोरता से पालन करना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: नैतिक साहस का अर्थ है दबाव, प्रलोभन या खतरे के बावजूद सही और नैतिक सिद्धांतों पर डटे रहना और न्याय के लिए खड़ा होना।

10. निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम आपातकाल के तुरंत बाद प्रेस सेंसरशिप को रद्द करने और प्रेस की स्वतंत्रता को बहाल करने से संबंधित था?

(a) प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया अधिनियम

(b) समाचारपत्र (आपत्तिजनक मामले) अधिनियम, 1951

(c) प्रेस परिषद अधिनियम, 1978

(d) वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878

उत्तर: (c)

व्याख्या: प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 को आपातकाल के बाद प्रेस की स्वतंत्रता को बहाल करने और प्रेस के मानकों को बनाए रखने के लिए फिर से लागू किया गया था, क्योंकि आपातकाल के दौरान प्रेस परिषद को भंग कर दिया गया था।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “आपातकाल का दौर भारतीय नौकरशाही के लिए एक अग्निपरीक्षा थी।” इस कथन के आलोक में, तत्कालीन प्रशासनिक प्रणाली पर आपातकाल के प्रभावों का विश्लेषण करें और वर्तमान सिविल सेवकों के लिए इसके निहितार्थों की चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

2. “एक सिविल सेवक को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत और मानवीय संवेदनशीलता से भी लैस होना चाहिए।” श्री एस. जयशंकर के अनुभव के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण करें। आप एक प्रशासक के रूप में जमीनी जुड़ाव कैसे सुनिश्चित करेंगे? (10 अंक, 150 शब्द)

3. सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान दबाव प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है? एक उम्मीदवार के रूप में आप मानसिक दृढ़ता और दबाव में प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने की क्षमता कैसे विकसित कर सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

4. भारत में सुशासन (Good Governance) सुनिश्चित करने में नैतिकता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता की भूमिका का मूल्यांकन करें। उन चुनौतियों की पहचान करें जो इन मूल्यों को कमजोर करती हैं और उन्हें मजबूत करने के लिए आवश्यक कदमों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

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अंतिम आपातकाल का दिन: एक साक्षात्कार, एक सीख, और एक भविष्य का निर्माण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री, श्री एस. जयशंकर ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया जिसने न केवल देश की राजनीतिक चेतना को झकझोर दिया, बल्कि उन हजारों युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सबक भी बन गया जो भारत की सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने आपातकाल (Emergency) के बिल्कुल आखिरी दिन अपना यूपीएससी (UPSC) साक्षात्कार दिया था। यह अनुभव उनके लिए सिर्फ एक परीक्षा नहीं, बल्कि दबाव में बात करने, परिस्थितियों को समझने और शायद, सत्ता के गलियारों में जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता का एक कड़वा सच जानने का पहला पाठ था। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत किस्सा नहीं, बल्कि यह हमें आपातकाल के उस दौर, सिविल सेवाओं के महत्व और एक भावी प्रशासक को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, इस पर गहन चिंतन करने का अवसर देती है।

आपातकाल का दौर: एक संवैधानिक विराम (The Period of Emergency: A Constitutional Pause)

भारत के इतिहास में आपातकाल (1975-1977) का दौर एक ऐसा काला अध्याय है जिसे अक्सर लोकतंत्र पर एक ‘असाधारण आक्रमण’ के रूप में याद किया जाता है। 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर अनुच्छेद 352 के तहत ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस घोषणा ने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित किया।

क्या हुआ था उस दौरान?

  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले स्वतंत्रता के अधिकार स्वतः निलंबित हो गए। अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था।
  • प्रेस सेंसरशिप: समाचार पत्रों और अन्य मीडिया पर कठोर सेंसरशिप लागू की गई, जिससे सूचना का स्वतंत्र प्रवाह बाधित हुआ।
  • राजनीतिक गिरफ्तारियाँ: बड़े पैमाने पर विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बिना किसी मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।
  • केंद्र-राज्य संबंधों में बदलाव: केंद्र सरकार राज्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित कर सकती थी।
  • संवैधानिक संशोधन: 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 (मिनी-संविधान) पारित किया गया, जिसने संसद की सर्वोच्चता को स्थापित करने का प्रयास किया और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित किया।

यह वह समय था जब सामान्य कानूनी प्रक्रियाएं निलंबित थीं और सरकार की शक्ति लगभग असीमित थी। ऐसे माहौल में, जहाँ लोगों को बोलने की स्वतंत्रता नहीं थी, और जहाँ सरकारी तंत्र अभूतपूर्व दबाव में काम कर रहा था, एक यूपीएससी साक्षात्कार देना निश्चित रूप से एक अद्वितीय अनुभव रहा होगा।

जयशंकर का साक्षात्कार: दबाव में सीखने की कला (Jaishankar’s Interview: The Art of Learning Under Pressure)

कल्पना कीजिए: देश में आपातकाल लगा है, नागरिक स्वतंत्रताएँ सीमित हैं, अनिश्चितता का माहौल है, और आप अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा के आखिरी चरण में हैं – सिविल सेवा साक्षात्कार। श्री एस. जयशंकर ने ठीक इसी स्थिति में अपना साक्षात्कार दिया। उनका यह अनुभव हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है:

“मैंने आपातकाल के अंतिम दिन यूपीएससी का साक्षात्कार दिया था। यह मेरे लिए एक गहरा अनुभव था, क्योंकि इसने मुझे दबाव में बात करना सिखाया। मैंने ऐसे अधिकारियों से भी मुलाकात की, जो देश के वास्तविक हालात से अनजान थे।”
– श्री एस. जयशंकर

दबाव प्रबंधन का पहला पाठ: जयशंकर का यह अनुभव दर्शाता है कि कैसे उन्होंने कम उम्र में ही अत्यधिक दबाव में भी शांत और संयमित रहना सीखा। सिविल सेवा परीक्षा स्वयं में एक विशाल दबाव कुकर है – लाखों उम्मीदवारों से मुकाबला, एक विशाल पाठ्यक्रम, समय की कमी, और अनिश्चितता का सामना। साक्षात्कार विशेष रूप से दबावपूर्ण होता है, जहाँ आपके ज्ञान के साथ-साथ आपके व्यक्तित्व, आपकी सोच, और आपकी मानसिक स्थिरता का भी परीक्षण होता है। जयशंकर के मामले में, यह दबाव न केवल परीक्षा का था, बल्कि पूरे देश में व्याप्त राजनैतिक उथल-पुथल का भी था।

UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिकता:

  • मानसिक दृढ़ता: यह दिखाता है कि सिविल सेवक बनने के लिए न केवल बौद्धिक क्षमता, बल्कि असाधारण मानसिक दृढ़ता भी आवश्यक है।
  • अशांत माहौल में निर्णय: एक प्रशासक को अक्सर अशांत या अप्रत्याशित परिस्थितियों में महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं। यह अनुभव जयशंकर को भविष्य की ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार कर रहा था।
  • दबाव में संचार: अपनी बात को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से रखना, भले ही स्थिति कितनी भी तनावपूर्ण क्यों न हो, एक सिविल सेवक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कौशल है।

उन अधिकारियों से मुलाकात: जमीनी हकीकत से अनभिज्ञता (Meeting Those Officials: Unawareness of Ground Realities)

जयशंकर के कथन का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि उन्होंने ऐसे अधिकारियों से मुलाकात की जो देश के वास्तविक हालात से अनजान थे। यह टिप्पणी सिविल सेवाओं के कामकाज पर एक गंभीर सवाल उठाती है और भविष्य के प्रशासकों के लिए एक चेतावनी भी है।

क्यों होती है जमीनी हकीकत से दूरी?

  1. सूचना का फ़िल्टर होना: पदानुक्रमित संरचना में, सूचना अक्सर निचले स्तर से ऊपर तक पहुँचते-पहुँचते फ़िल्टर हो जाती है। अधिकारी केवल वही सुनते हैं जो उन्हें बताया जाता है, न कि जो वास्तव में हो रहा होता है।
  2. एकांगी दृष्टिकोण: कई बार अधिकारी अपने चैंबर से बाहर निकलकर आम लोगों से सीधे जुड़ने से कतराते हैं या उनके पास ऐसा करने का समय नहीं होता। इससे उनका दृष्टिकोण सीमित हो जाता है।
  3. आत्मसंतुष्टि और जड़ता: कुछ अधिकारी अपनी स्थिति और शक्ति के कारण आत्मसंतुष्ट हो जाते हैं, जिससे वे जमीनी स्तर पर हो रहे परिवर्तनों या समस्याओं को महसूस नहीं कर पाते।
  4. राजनीतिक दबाव: कई बार राजनीतिक दबाव के कारण अधिकारी वही रिपोर्ट करते हैं जो राजनीतिक आका सुनना चाहते हैं, न कि वस्तुनिष्ठ स्थिति।

आपातकाल के दौरान यह स्थिति और भी विकट हो गई थी, क्योंकि सरकार पर कोई बाहरी निगरानी नहीं थी, और सूचना के सभी स्रोत नियंत्रित थे। ऐसे में अधिकारियों का जमीनी हकीकत से कटना स्वाभाविक था।

भविष्य के सिविल सेवकों के लिए सीख:

  • सक्रिय होकर जमीनी जुड़ाव: एक प्रभावी प्रशासक वह है जो केवल आंकड़ों और रिपोर्टों पर निर्भर न रहकर, स्वयं जमीनी स्तर पर जाकर समस्याओं को समझता है।
  • खुला दिमाग और सुनने की कला: विभिन्न दृष्टिकोणों को सुनने और स्वीकार करने की क्षमता, भले ही वे आपकी पूर्व धारणाओं के विपरीत हों।
  • सत्यनिष्ठा और साहस: सत्ता के समक्ष भी सत्य बोलने का साहस रखना, भले ही वह अप्रिय क्यों न हो। यह सिविल सेवा की नैतिक रीढ़ है।
  • सह-अनुभूति (Empathy): आम जनता की समस्याओं को केवल प्रशासनिक चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से देखने की क्षमता।

UPSC उम्मीदवारों के लिए व्यापक सीख (Comprehensive Lessons for UPSC Aspirants)

1. दबाव प्रबंधन: परीक्षा से सेवा तक (Pressure Management: From Exam to Service)

यूपीएससी की तैयारी और सिविल सेवा का जीवन दोनों ही दबावों से भरे होते हैं। जयशंकर का अनुभव हमें सिखाता है कि दबाव को कैसे एक अवसर में बदला जा सकता है।

  • परीक्षा के दौरान:
    • समय प्रबंधन: सीमित समय में विशाल पाठ्यक्रम को कवर करना।
    • परीक्षा हॉल का दबाव: अनिश्चित प्रश्नों और समय सीमा के भीतर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना।
    • साक्षात्कार का तनाव: व्यक्तित्व परीक्षण और पैनल के समक्ष अपनी बात रखना।
  • सेवा के दौरान:
    • जनता की अपेक्षाएँ: लगातार बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा करना।
    • राजनैतिक हस्तक्षेप: सही निर्णय लेने पर भी राजनैतिक दबाव का सामना करना।
    • संकट प्रबंधन: आपदा, कानून-व्यवस्था, या अन्य आपात स्थितियों में त्वरित और प्रभावी निर्णय लेना।
    • सीमित संसाधन: अक्सर बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सीमित संसाधनों के साथ काम करना।

रणनीतियाँ:

  • अभ्यास और मॉक टेस्ट: वास्तविक परीक्षा के माहौल का अनुभव करने के लिए नियमित रूप से मॉक टेस्ट दें।
  • ध्यान और योग: मानसिक शांति और एकाग्रता बनाए रखने के लिए।
  • छोटे लक्ष्य निर्धारित करें: बड़े लक्ष्य को छोटे, प्रबंधनीय हिस्सों में बांटें।
  • नकारात्मक विचारों से बचें: सकारात्मक रहें और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें।
  • साक्षात्कार अभ्यास: वास्तविक साक्षात्कार से पहले कई मॉक इंटरव्यू दें ताकि आप सहज महसूस कर सकें।

2. नैतिकता, सत्यनिष्ठा और वस्तुनिष्ठता (Ethics, Integrity, and Objectivity)

जयशंकर की टिप्पणी कि “अधिकारी देश के हालात से अनजान थे” हमें सिविल सेवा की नैतिक रीढ़ की याद दिलाती है। एक सिविल सेवक का कर्तव्य केवल नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के साथ सार्वजनिक सेवा करना भी है।

  • सत्यनिष्ठा (Integrity): ईमानदारी और नैतिक सिद्धांतों का पालन करना, विशेषकर जब कोई नहीं देख रहा हो।
  • वस्तुनिष्ठता (Objectivity): व्यक्तिगत भावनाओं, पूर्वाग्रहों या राजनीतिक दबाव से प्रभावित हुए बिना तथ्यों और सबूतों के आधार पर निर्णय लेना।
  • जवाबदेही (Accountability): अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जिम्मेदार होना।
  • पारदर्शिता (Transparency): सार्वजनिक मामलों में खुलेपन का अभ्यास करना।

यह सब ‘शासन में ईमानदारी’ (Probity in Governance) के मूल सिद्धांतों का हिस्सा है, जो कि सिविल सेवा परीक्षा के GS-4 (नैतिकता) पेपर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भविष्य के प्रशासकों को यह समझना होगा कि उन्हें केवल नीति निर्माता या प्रवर्तक ही नहीं, बल्कि सत्य के संरक्षक और न्याय के संवाहक भी बनना है।

3. व्यावहारिक ज्ञान और जमीनी जुड़ाव (Practical Knowledge and Ground Connect)

किताबी ज्ञान महत्वपूर्ण है, लेकिन वह तब तक अधूरा है जब तक उसे जमीनी हकीकत से न जोड़ा जाए। जयशंकर का अनुभव बताता है कि अधिकारियों का जमीनी हकीकत से कटा होना कितना खतरनाक हो सकता है।

  • करंट अफेयर्स: केवल परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि दुनिया और देश की वास्तविक स्थिति को समझने के लिए पढ़ें।
  • सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण: सरकार की नीतियों और उनके प्रभावों को गहराई से समझें।
  • क्षेत्रीय अध्ययन: यदि संभव हो, तो विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से समझने का प्रयास करें।
  • विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना: नीतिगत मुद्दों पर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स (सरकार, नागरिक समाज, व्यापार, आम जनता) के दृष्टिकोणों को जानें।

एक सिविल सेवक को “फिल्टर की हुई” जानकारी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे सक्रिय रूप से लोगों से जुड़ना चाहिए, उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए और उनके अनुभवों से सीखना चाहिए। यह क्षमता ही उसे एक प्रभावी और संवेदनशील प्रशासक बनाएगी।

4. अनुकूलनशीलता और परिवर्तन का सामना (Adaptability and Facing Change)

आपातकाल का दौर अप्रत्याशित और तेजी से बदलते माहौल का एक चरम उदाहरण था। एक सिविल सेवक को किसी भी स्थिति में ढलने और प्रभावी ढंग से कार्य करने में सक्षम होना चाहिए।

  • बदलते पैटर्न: यूपीएससी परीक्षा का पैटर्न लगातार बदलता रहता है। सफल होने के लिए अनुकूलनशील होना आवश्यक है।
  • नीतिगत परिवर्तन: सरकारें बदलती हैं, नीतियां बदलती हैं। एक सिविल सेवक को इन परिवर्तनों को प्रभावी ढंग से लागू करना होता है।
  • तकनीकी प्रगति: नई तकनीकों को अपनाना और उनका उपयोग सार्वजनिक सेवा में सुधार के लिए करना।
  • वैश्विक चुनौतियाँ: महामारी, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करना।

अनुकूलनशीलता केवल अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि प्रभावी शासन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

5. व्यक्तिगत विकास: समग्र व्यक्तित्व (Personal Development: Holistic Personality)

सिविल सेवा परीक्षा केवल ज्ञान का परीक्षण नहीं है, बल्कि आपके समग्र व्यक्तित्व का भी परीक्षण है। जयशंकर का अनुभव हमें बताता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

  • संचार कौशल: स्पष्ट और प्रभावी ढंग से अपनी बात रखना।
  • नेतृत्व क्षमता: टीमों का नेतृत्व करना और उन्हें प्रेरित करना।
  • समस्या-समाधान कौशल: जटिल समस्याओं का विश्लेषण करना और व्यावहारिक समाधान खोजना।
  • आत्म-जागरूकता: अपनी शक्तियों और कमजोरियों को जानना।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण: चुनौतियों को अवसरों में बदलने की क्षमता।

ये सभी गुण न केवल साक्षात्कार में मदद करते हैं, बल्कि एक सफल और प्रभावशाली सिविल सेवक बनने के लिए भी आवश्यक हैं।

बदलते समय में एक सिविल सेवक की भूमिका (Role of a Civil Servant in Changing Times)

आजादी के बाद से भारतीय सिविल सेवा ने एक लंबा सफर तय किया है। औपनिवेशिक विरासत से निकलकर, यह अब एक लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और जन-उन्मुख सेवा बनने की ओर अग्रसर है।

आज की चुनौतियाँ:

  • बढ़ती जन अपेक्षाएँ: नागरिक अब केवल अधिकारों के बारे में ही नहीं, बल्कि बेहतर सेवाओं और शासन के बारे में भी जागरूक हैं।
  • भ्रष्टाचार: यह अभी भी एक बड़ी चुनौती है जो सार्वजनिक विश्वास को कम करती है।
  • राजनीतिकरण: नौकरशाही का राजनीतिकरण इसकी निष्पक्षता और दक्षता को प्रभावित करता है।
  • तकनीकी क्रांति: डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और डिजिटल डिवाइड जैसी नई चुनौतियाँ।
  • वैश्विक interconnectedness: वैश्विक घटनाएं (जैसे महामारी, आर्थिक संकट) स्थानीय शासन को प्रभावित करती हैं।

आवश्यक गुण:

  • प्रो-एक्टिवनेस: समस्याओं के उत्पन्न होने से पहले ही उन्हें पहचानना और समाधान खोजना।
  • सहभागी शासन: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों और हितधारकों को शामिल करना।
  • डिजिटल साक्षरता: प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करना।
  • संकट प्रबंधन: अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावी ढंग से निपटना।
  • सतत सीखना: बदलते परिवेश में प्रासंगिक बने रहने के लिए लगातार ज्ञान और कौशल का उन्नयन करना।

आगे की राह: एक सिविल सेवक का निर्माण (The Way Forward: Building a Civil Servant)

श्री एस. जयशंकर का अनुभव हमें याद दिलाता है कि सिविल सेवा परीक्षा केवल एक गेटवे नहीं है, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया है जो दबाव में भी शांत रहे, जमीनी हकीकत से जुड़ा रहे, और सत्यनिष्ठा के साथ राष्ट्र की सेवा करे।

एक सिविल सेवक केवल नियमों का पालन करने वाला अधिकारी नहीं होता, बल्कि वह सामाजिक परिवर्तन का वाहक, नीतियों का क्रियान्वयनकर्ता और लाखों लोगों के लिए आशा की किरण होता है। उन्हें न केवल कानून का ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसमें मानवीय संवेदनशीलता, नैतिक साहस और नेतृत्व क्षमता भी होनी चाहिए।

जो युवा आज सिविल सेवा का सपना देख रहे हैं, उन्हें जयशंकर के इस अनुभव से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह सिर्फ एक किस्सा नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी क्षमताओं को निखारा जा सकता है और कैसे एक सच्चा प्रशासक केवल किताबी ज्ञान से नहीं, बल्कि अनुभव, संवेदनशीलता और अटूट सत्यनिष्ठा से बनता है। आपका लक्ष्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि एक ऐसा सिविल सेवक बनना होना चाहिए, जो देश के सबसे चुनौतीपूर्ण समय में भी ईमानदारी, दक्षता और लोगों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता के साथ खड़ा रह सके।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(प्रत्येक प्रश्न के लिए एक सही उत्तर और संक्षिप्त व्याख्या प्रदान करें)

1. निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है?

(a) बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)

(b) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)

(c) संघ बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 19)

(d) अंतःकरण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)

उत्तर: (b)

व्याख्या: 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है।

2. भारत में ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल किस वर्ष घोषित किया गया था?

(a) 1962

(b) 1965

(c) 1971

(d) 1975

उत्तर: (d)

व्याख्या: 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था।

3. 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

1. इसने ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा।

2. इसने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य किया।

3. इसने न्यायिक समीक्षा की शक्ति को सीमित किया।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या: 42वां संशोधन अधिनियम, जिसे ‘मिनी-संविधान’ भी कहा जाता है, ने ये सभी प्रावधान किए। इसने संसद की सर्वोच्चता को बढ़ाने और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित करने का प्रयास किया।

4. सिविल सेवा में ‘निष्पक्षता’ (Impartiality) का क्या अर्थ है?

(a) सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना, भले ही परिस्थितियों में अंतर हो।

(b) किसी भी व्यक्तिगत पसंद, नापसंद या पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना।

(c) केवल कानूनों और नियमों का पालन करना, न कि मानवीय संवेदनाओं का।

(d) राजनीतिक नेतृत्व के सभी निर्देशों का आँख बंद करके पालन करना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: निष्पक्षता का अर्थ है कि सिविल सेवक को अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों, भावनाओं या राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर वस्तुनिष्ठ रूप से कार्य करना चाहिए और सभी नागरिकों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

5. सिविल सेवा में ‘जमीनी जुड़ाव’ (Ground Connect) से क्या अभिप्राय है?

1. केवल सरकारी रिपोर्टों और आंकड़ों पर निर्भर रहना।

2. नागरिकों से सीधे संवाद करना और उनकी समस्याओं को समझना।

3. नीति निर्माण में आम लोगों के अनुभवों को शामिल करना।

4. केवल उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना।

निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 4

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1, 2 और 3

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

व्याख्या: जमीनी जुड़ाव का अर्थ है कि सिविल सेवक को सक्रिय रूप से क्षेत्र का दौरा करना चाहिए, लोगों से सीधे संवाद करना चाहिए और उनकी वास्तविक समस्याओं और अनुभवों को नीति निर्माण और कार्यान्वयन में शामिल करना चाहिए। सरकारी रिपोर्टें उपयोगी हैं, लेकिन वे जमीनी हकीकत का एकमात्र स्रोत नहीं होनी चाहिए।

6. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद राष्ट्रीय आपातकाल के प्रावधानों से संबंधित है?

(a) अनुच्छेद 350

(b) अनुच्छेद 352

(c) अनुच्छेद 356

(d) अनुच्छेद 360

उत्तर: (b)

व्याख्या: अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित है, जो युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश में गंभीर सुरक्षा खतरे की स्थिति में घोषित किया जाता है। अनुच्छेद 356 राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (राष्ट्रपति शासन) और अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल से संबंधित है।

7. निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता एक प्रभावी प्रशासक के लिए आवश्यक नहीं है?

(a) अनुकूलनशीलता

(b) दबाव में निर्णय लेने की क्षमता

(c) व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लेना

(d) सहानुभूति और संवेदनशीलता

उत्तर: (c)

व्याख्या: एक प्रभावी प्रशासक को निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ होना चाहिए, व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लेना उसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करेगा और उसे अक्षम बनाएगा।

8. 1975 के आपातकाल के दौरान भारत के राष्ट्रपति कौन थे?

(a) वी.वी. गिरि

(b) नीलम संजीव रेड्डी

(c) फखरुद्दीन अली अहमद

(d) जाकिर हुसैन

उत्तर: (c)

व्याख्या: फखरुद्दीन अली अहमद 1975 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति थे जिन्होंने इंदिरा गांधी की सलाह पर आपातकाल की घोषणा की थी।

9. सिविल सेवा में ‘नैतिक साहस’ (Moral Courage) का क्या अर्थ है?

(a) हमेशा उच्च अधिकारियों के निर्देशों का पालन करना।

(b) चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सही और नैतिक निर्णय लेने का साहस रखना।

(c) अपनी गलतियों को कभी स्वीकार न करना।

(d) केवल नियम-पुस्तिका का कठोरता से पालन करना।

उत्तर: (b)

व्याख्या: नैतिक साहस का अर्थ है दबाव, प्रलोभन या खतरे के बावजूद सही और नैतिक सिद्धांतों पर डटे रहना और न्याय के लिए खड़ा होना।

10. निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम आपातकाल के तुरंत बाद प्रेस सेंसरशिप को रद्द करने और प्रेस की स्वतंत्रता को बहाल करने से संबंधित था?

(a) प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया अधिनियम

(b) समाचारपत्र (आपत्तिजनक मामले) अधिनियम, 1951

(c) प्रेस परिषद अधिनियम, 1978

(d) वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878

उत्तर: (c)

व्याख्या: प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 को आपातकाल के बाद प्रेस की स्वतंत्रता को बहाल करने और प्रेस के मानकों को बनाए रखने के लिए फिर से लागू किया गया था, क्योंकि आपातकाल के दौरान प्रेस परिषद को भंग कर दिया गया था।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “आपातकाल का दौर भारतीय नौकरशाही के लिए एक अग्निपरीक्षा थी।” इस कथन के आलोक में, तत्कालीन प्रशासनिक प्रणाली पर आपातकाल के प्रभावों का विश्लेषण करें और वर्तमान सिविल सेवकों के लिए इसके निहितार्थों की चर्चा करें। (15 अंक, 250 शब्द)

2. “एक सिविल सेवक को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत और मानवीय संवेदनशीलता से भी लैस होना चाहिए।” श्री एस. जयशंकर के अनुभव के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण करें। आप एक प्रशासक के रूप में जमीनी जुड़ाव कैसे सुनिश्चित करेंगे? (10 अंक, 150 शब्द)

3. सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान दबाव प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है? एक उम्मीदवार के रूप में आप मानसिक दृढ़ता और दबाव में प्रभावी ढंग से प्रदर्शन करने की क्षमता कैसे विकसित कर सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

4. भारत में सुशासन (Good Governance) सुनिश्चित करने में नैतिकता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता की भूमिका का मूल्यांकन करें। उन चुनौतियों की पहचान करें जो इन मूल्यों को कमजोर करती हैं और उन्हें मजबूत करने के लिए आवश्यक कदमों का सुझाव दें। (15 अंक, 250 शब्द)

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