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अंतरिक्ष का गुरुत्वाकर्षण: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के अनुभव और भारत के अंतरिक्ष मिशन का भविष्य

अंतरिक्ष का गुरुत्वाकर्षण: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के अनुभव और भारत के अंतरिक्ष मिशन का भविष्य

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु ने अंतरिक्ष में अपने जीवन के अनुभवों को साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे पृथ्वी पर सामान्य वस्तुएं, जैसे कि एक मोबाइल फोन, अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में अविश्वसनीय रूप से भारी लगने लगती हैं। उन्होंने यह भी साझा किया कि कैसे उन्होंने अनजाने में अपना लैपटॉप बिस्तर से गिरा दिया, यह सोचकर कि वह हवा में तैरता रहेगा। ये अनुभव न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के जीवन की अनूठी चुनौतियों को दर्शाते हैं, बल्कि भारत के बढ़ते अंतरिक्ष कार्यक्रम और इसके भविष्य की संभावनाओं पर भी प्रकाश डालते हैं। शुभांशु के इसी महीने भारत लौटने की उम्मीद है, जिससे उनके अनुभव और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण का खेल: शुभांशु के अनुभव का गहन विश्लेषण

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के शब्दों में, “फोन भारी लगता है,” यह छोटा सा वाक्य हमें पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के महत्व का एहसास कराता है। हम अपनी दैनिक गतिविधियों में अनजाने में ही सही, गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का अनुभव करते रहते हैं। जब हम सुबह उठते हैं, कुर्सी पर बैठते हैं, या चलते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण ही हमें पृथ्वी से बांधे रखता है। यह वह अदृश्य शक्ति है जो सब कुछ ‘नीचे’ खींचती है।

अंतरिक्ष में, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) जैसी जगहों पर, अंतरिक्ष यात्री ‘माइक्रोग्रैविटी’ (microgravity) या ‘भारहीनता’ (weightlessness) का अनुभव करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण पूरी तरह से शून्य नहीं होता, बल्कि यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का केवल 10% ही होता है। लेकिन ISS पृथ्वी से इतनी तेज़ी से परिक्रमा कर रहा है कि यह निरंतर ‘मुक्त पतन’ (free fall) की स्थिति में होता है, जिससे वहां मौजूद वस्तुओं और लोगों को भारहीनता का अनुभव होता है।

“पृथ्वी पर, गुरुत्वाकर्षण हमें एक निश्चित संदर्भ देता है। अंतरिक्ष में, यह संदर्भ गायब हो जाता है, और हमें वस्तुओं के द्रव्यमान (mass) को उनके वजन (weight) से अलग समझना पड़ता है।”

जब शुभांशु कहते हैं कि फोन भारी लगता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि फोन का द्रव्यमान बढ़ गया है। बल्कि, इसका मतलब है कि बिना गुरुत्वाकर्षण के, उनके शरीर को फोन को स्थिर रखने के लिए उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती जितनी पृथ्वी पर करनी पड़ती है। पृथ्वी पर, हम फोन के वजन का अनुभव करते हैं, जो गुरुत्वाकर्षण द्वारा उस पर लगाए जाने वाले बल का परिणाम है। अंतरिक्ष में, यह बल अनुपस्थित होता है। लेकिन जब वे फोन को पकड़ने या हिलाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें फोन के जड़त्व (inertia) का अनुभव होता है – यानी, उसकी गति की स्थिति को बदलने के लिए आवश्यक बल। एक छोटी सी भी चीज को हिलाने के लिए, आपको प्रतिक्रिया बल का अनुभव होता है, और यही अनुभव शुभांशु को फोन के ‘भारी’ होने का आभास कराता है।

लैपटॉप के बिस्तर से गिरने और हवा में तैरते रहने की उनकी उम्मीद भी इसी भारहीनता का परिणाम है। पृथ्वी पर, लैपटॉप बिस्तर से गिर जाएगा क्योंकि गुरुत्वाकर्षण उसे नीचे खींचेगा। अंतरिक्ष में, यदि कोई वस्तु किसी निश्चित वेग से गति नहीं कर रही है, तो वह उसी स्थान पर तैरती रहेगी जहां उसे छोड़ा गया था। यह स्थिति अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कई मायनों में मुश्किल हो सकती है, क्योंकि उन्हें हर चीज को सुरक्षित रूप से बांधकर रखना पड़ता है, अन्यथा वह नियंत्रण से बाहर हो सकती है।

अंतरिक्ष यात्रा के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के अनुभव केवल हास्यप्रद किस्से नहीं हैं, बल्कि वे अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शरीर पर पड़ने वाले गहरे प्रभावों को भी दर्शाते हैं:

  • मांसपेशियों का क्षय (Muscle Atrophy): भारहीनता की स्थिति में, मांसपेशियों का उपयोग कम हो जाता है, जिससे वे कमजोर होने लगती हैं। अंतरिक्ष यात्री को अपनी मांसपेशियों को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना पड़ता है।
  • हड्डियों का कमजोर होना (Bone Density Loss): गुरुत्वाकर्षण के अभाव में, हड्डियों पर भार नहीं पड़ता, जिससे उनकी घनत्व (density) कम हो जाती है। यह ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) के समान है।
  • हृदय प्रणाली में परिवर्तन (Cardiovascular Changes): पृथ्वी पर, गुरुत्वाकर्षण रक्त को पैरों की ओर खींचता है। अंतरिक्ष में, रक्त का वितरण शरीर के ऊपरी हिस्सों में बढ़ जाता है, जिससे हृदय पर अधिक दबाव पड़ता है और वह कमजोर हो सकता है।
  • संवेदी भटकाव (Sensory Disorientation): भारहीनता आंखों, कानों (संतुलन अंग) और प्रोप्रियोसेप्शन (शरीर के अंगों की स्थिति का ज्ञान) के बीच समन्वय को बाधित कर सकती है, जिससे मतली और भटकाव हो सकता है।
  • मानसिक प्रभाव (Psychological Effects): लंबे समय तक पृथक, सीमित स्थान में रहने का यात्रियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

शुभांशु की टिप्पणी, “सोचा हवा में तैरता रहेगा,” इस बात का एक छोटा सा उदाहरण है कि कैसे शरीर और मस्तिष्क को अंतरिक्ष के वातावरण के अनुकूल ढलने में समय लगता है। यह एक सीखने की प्रक्रिया है, जहां अनुभव और प्रशिक्षण के माध्यम से व्यक्ति नई वास्तविकताओं को स्वीकार करना सीखता है।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम: एक उभरती हुई महाशक्ति

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु का मिशन भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें शामिल हैं:

  • चंद्रयान मिशन (Chandrayaan Missions): चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास, जो भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बना सकता था।
  • मंगलयान मिशन (Mars Orbiter Mission – MOM): पहला ऐसा मिशन जिसने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया।
  • गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission): भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना है। शुभांशु जैसे यात्री इस मिशन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • सौर मिशन (Aditya-L1): सूर्य का अध्ययन करने के लिए भेजा गया पहला भारतीय मिशन।

शुभांशु जैसे अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण और अनुभव गगनयान जैसे भविष्य के मिशनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल तकनीकी ज्ञान लाते हैं, बल्कि व्यावहारिक अनुभव भी लाते हैं जो मिशन की सफलता सुनिश्चित करने में मदद करता है।

अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण और चयन की प्रक्रिया

अंतरिक्ष यात्री बनना एक अत्यंत कठिन और प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया है। इसमें कई चरण शामिल होते हैं:

  1. शैक्षणिक योग्यता (Academic Qualifications): विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्रों में मजबूत पृष्ठभूमि आवश्यक है।
  2. पेशेवर अनुभव (Professional Experience): पायलट, इंजीनियर, वैज्ञानिक या डॉक्टर के रूप में प्रासंगिक अनुभव।
  3. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Physical and Psychological Testing): इसमें अत्यधिक कठोर चिकित्सा परीक्षण, सहनशक्ति परीक्षण और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन शामिल होते हैं।
  4. बुनियादी प्रशिक्षण (Basic Training): अंतरिक्ष यान प्रणालियों, उड़ान गतिकी, कक्षीय यांत्रिकी (orbital mechanics) और अन्य महत्वपूर्ण विषयों का प्रशिक्षण।
  5. विशेष प्रशिक्षण (Specialized Training): भारहीनता का अनुभव करने के लिए पैराबोलिक उड़ानों (parabolic flights) और अंडरवाटर सिमुलेशन (underwater simulations) का प्रशिक्षण, स्पेस वॉक (spacewalks) और रोबोटिक्स का प्रशिक्षण।
  6. मिशन-विशिष्ट प्रशिक्षण (Mission-Specific Training): मिशन के उद्देश्यों के अनुरूप विशिष्ट प्रशिक्षण, जिसमें प्रयोग करना, उपकरणों का संचालन करना और आपातकालीन प्रक्रियाओं का अभ्यास शामिल है।

शुभांशु जैसे अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण यह सुनिश्चित करता है कि वे अंतरिक्ष के जटिल और कभी-कभी खतरनाक वातावरण में जीवित रह सकें और अपने मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर सकें।

भारहीनता के फायदे और नुकसान

भारहीनता अंतरिक्ष यात्रा का एक अनूठा पहलू है, जिसके अपने फायदे और नुकसान हैं:

फायदे:

  • सामग्री विज्ञान (Materials Science): भारहीनता की स्थिति में मिश्र धातुओं (alloys) और क्रिस्टल (crystals) को विकसित करना आसान हो जाता है, जो पृथ्वी पर संभव नहीं है।
  • जैविक अनुसंधान (Biological Research): कोशिकाओं, पौधों और जीवों पर भारहीनता के प्रभाव का अध्ययन मानव स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
  • नई प्रौद्योगिकियों का विकास (Development of New Technologies): अंतरिक्ष में जीवन जीने और काम करने के लिए नई तकनीकों का विकास, जिनका उपयोग पृथ्वी पर भी किया जा सकता है।

नुकसान:

  • शारीरिक क्षरण (Physiological Degradation): जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, मांसपेशियों और हड्डियों का कमजोर होना, हृदय प्रणाली में परिवर्तन।
  • मनोवैज्ञानिक तनाव (Psychological Stress): सीमित स्थान, अलगाव और पृथ्वी से दूरी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
  • मिशन जटिलताएँ (Mission Complications): वस्तुओं का नियंत्रण से बाहर होना, उपकरणों की खराबी, और आपातकालीन स्थितियों से निपटना।

“अंतरिक्ष यात्रियों का जीवन जितना ग्लैमरस लगता है, उससे कहीं अधिक यह अनुशासन, कड़ी मेहनत और अविश्वसनीय अनुकूलन क्षमता का मिश्रण है।”

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का भविष्य और शुभांशु जैसे अंतरिक्ष यात्रियों की भूमिका

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से विकसित हो रहा है। गगनयान मिशन के साथ, भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास स्वतंत्र मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता है। शुभांशु का अनुभव, उनका प्रशिक्षण, और उनके द्वारा साझा की गई अंतर्दृष्टि भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों और मिशनों के लिए एक मूल्यवान संसाधन होगी।

भविष्य के मिशनों में शामिल हो सकते हैं:

  • अंतरिक्ष स्टेशन (Space Station): अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना।
  • अंतरिक्ष पर्यटन (Space Tourism): वाणिज्यिक अंतरिक्ष उड़ानों का विस्तार।
  • अंतरिक्ष खनन (Space Mining): क्षुद्रग्रहों (asteroids) और चंद्रमा से संसाधनों का निष्कर्षण।
  • अंतरिक्ष में मानव बस्तियाँ (Human Settlements in Space): चंद्रमा या मंगल पर बस्तियाँ स्थापित करना।

इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, भारत को निरंतर नवाचार, मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रतिभाशाली व्यक्तियों, जैसे शुभांशु, की आवश्यकता होगी जो अंतरिक्ष अन्वेषण की सीमाओं को आगे बढ़ा सकें।

निष्कर्ष: भारहीनता से सीख और आगे का रास्ता

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के अनुभव हमें याद दिलाते हैं कि ब्रह्मांड की यात्रा कितनी असाधारण और चुनौतीपूर्ण है। फोन का भारी लगना या लैपटॉप का हवा में तैरता रहना, ये सब भारहीनता के ऐसे छोटे-छोटे उदाहरण हैं जो उस दुनिया की झलक देते हैं जहां हमारे परिचित नियम लागू नहीं होते। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए, शुभांशु का मिशन न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह देश की वैज्ञानिक आकांक्षाओं का प्रतीक है। उनके लौटने पर, उनके अनुभव निश्चित रूप से भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के चयन, प्रशिक्षण और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भारत का अंतरिक्ष में भविष्य उज्ज्वल है, और शुभांशु जैसे नायक इसे आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अंतरिक्ष यात्री जिस अनुभव का अनुभव करते हैं, उसे आमतौर पर क्या कहा जाता है?
    (a) गुरुत्वाकर्षण (Gravity)
    (b) भारहीनता (Weightlessness)
    (c) अति-गुरुत्वाकर्षण (Hypergravity)
    (d) शून्य-गुरुत्वाकर्षण (Zero-gravity)
    उत्तर: (b) भारहीनता (Weightlessness)
    व्याख्या: ISS पर अंतरिक्ष यात्री ‘माइक्रोग्रैविटी’ या ‘भारहीनता’ का अनुभव करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे निरंतर मुक्त पतन में होते हैं, न कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में।
  2. अंतरिक्ष यात्री द्वारा “फोन भारी लगता है” कहने का सबसे संभावित कारण क्या है?
    (a) फोन का द्रव्यमान (mass) बढ़ गया है।
    (b) फोन पर गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ गया है।
    (c) वस्तु के जड़त्व (inertia) के कारण उसे हिलाने में अधिक बल लगता है।
    (d) स्पेस स्टेशन के अंदर हवा का घनत्व (density) अधिक है।
    उत्तर: (c) वस्तु के जड़त्व (inertia) के कारण उसे हिलाने में अधिक बल लगता है।
    व्याख्या: भारहीनता में, वस्तु का वजन (weight) महसूस नहीं होता, लेकिन उसके द्रव्यमान (mass) का जड़त्व (inertia) अभी भी बना रहता है। किसी वस्तु की गति को बदलने के लिए लगने वाले प्रतिरोध को जड़त्व कहते हैं, और यही अनुभव भारीपन का कराता है।
  3. अंतरिक्ष यात्रियों में मांसपेशियों के क्षय (muscle atrophy) का मुख्य कारण क्या है?
    (a) पर्याप्त प्रोटीन का सेवन न करना।
    (b) अंतरिक्ष में उच्च विकिरण स्तर।
    (c) भारहीनता के कारण मांसपेशियों का कम उपयोग।
    (d) रात में कम नींद आना।
    उत्तर: (c) भारहीनता के कारण मांसपेशियों का कम उपयोग।
    व्याख्या: पृथ्वी पर, हमारी मांसपेशियां गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करती हैं। अंतरिक्ष में, इस प्रतिरोध की अनुपस्थिति में, मांसपेशियों का उपयोग कम हो जाता है, जिससे वे कमजोर हो जाती हैं।
  4. चंद्रयान मिशन का संबंध किस भारतीय अंतरिक्ष संगठन से है?
    (a) रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
    (b) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
    (c) भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)
    (d) विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC)
    उत्तर: (b) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
    व्याख्या: चंद्रयान मिशन भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसका संचालन ISRO द्वारा किया जाता है।
  5. गगनयान मिशन का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
    (a) मंगल ग्रह पर मानव भेजना।
    (b) भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन।
    (c) सूर्य का अध्ययन करने के लिए एक उपग्रह भेजना।
    (d) चंद्रमा के चारों ओर एक कृत्रिम उपग्रह स्थापित करना।
    उत्तर: (b) भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन।
    व्याख्या: गगनयान भारत का महत्वाकांक्षी मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है।
  6. अंतरिक्ष में हड्डियों का घनत्व कम होने की स्थिति को क्या कहा जाता है?
    (a) ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)
    (b) ऑस्टियोजेनेसिस (Osteogenesis)
    (c) ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)
    (d) ऑस्टियोस्क्लेरोसिस (Osteosclerosis)
    उत्तर: (c) ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)
    व्याख्या: अंतरिक्ष में भारहीनता के कारण हड्डियों पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है, जिससे उनकी घनत्व कम होने लगती है, जो पृथ्वी पर ऑस्टियोपोरोसिस के समान है।
  7. मंगलयान मिशन (Mars Orbiter Mission – MOM) की मुख्य उपलब्धि क्या थी?
    (a) मंगल पर मानव को सफलतापूर्वक उतारना।
    (b) मंगल की कक्षा में पहली ही कोशिश में प्रवेश करने वाला पहला एशियाई अंतरिक्ष यान बनना।
    (c) मंगल ग्रह से पानी के नमूने वापस लाना।
    (d) मंगल पर एक रोवर (rover) उतारना।
    उत्तर: (b) मंगल की कक्षा में पहली ही कोशिश में प्रवेश करने वाला पहला एशियाई अंतरिक्ष यान बनना।
    व्याख्या: MOM ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करके भारत को यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बनाया।
  8. भारहीनता की स्थिति में, अंतरिक्ष यात्री अपनी शारीरिक फिटनेस बनाए रखने के लिए मुख्य रूप से किस पर निर्भर करते हैं?
    (a) विशेष आहार (Special Diet)
    (b) नियमित व्यायाम (Regular Exercise)
    (c) दवाएं (Medications)
    (d) अत्यधिक आराम (Ample Rest)
    उत्तर: (b) नियमित व्यायाम (Regular Exercise)
    व्याख्या: मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को विशेष व्यायाम उपकरण (जैसे ट्रेडमिल, प्रतिरोध प्रशिक्षण उपकरण) का उपयोग करके नियमित रूप से व्यायाम करना पड़ता है।
  9. अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘भारहीनता का अनुभव’ करना है। इसके लिए आमतौर पर किस तकनीक का उपयोग किया जाता है?
    (a) उच्च-जी सिमुलेटर (High-G Simulators)
    (b) पैराबोलिक उड़ानें (Parabolic Flights)
    (c) वैक्यूम चैंबर (Vacuum Chambers)
    (d) चुंबकीय क्षेत्र जनरेटर (Magnetic Field Generators)
    उत्तर: (b) पैराबोलिक उड़ानें (Parabolic Flights)
    व्याख्या: पैराबोलिक उड़ानें ‘वोमिट कॉमेट’ (vomit comet) के रूप में भी जानी जाती हैं, जो लगभग 20-30 सेकंड के लिए भारहीनता की स्थिति प्रदान करती हैं, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को इसका अनुभव मिलता है।
  10. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संदर्भ में, आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन का क्या उद्देश्य है?
    (a) पृथ्वी के वायुमंडल का अध्ययन करना।
    (b) सूर्य का अध्ययन करना।
    (c) शुक्र (Venus) ग्रह की सतह का अध्ययन करना।
    (d) अंतरिक्ष में रोबोटिक भुजाओं का परीक्षण करना।
    उत्तर: (b) सूर्य का अध्ययन करना।
    व्याख्या: आदित्य-एल1 भारत का पहला समर्पित सौर वेधशाला मिशन है, जिसका उद्देश्य सूर्य के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर भारहीनता के विभिन्न शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का विस्तार से वर्णन कीजिए। भारत जैसे देश के लिए, जो मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान मिशनों में निवेश कर रहा है, इन प्रभावों को कम करने के लिए क्या रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं? (लगभग 250 शब्द)
  2. अंतरिक्ष यात्री शुभांशु के अनुभव, जैसे “फोन भारी लगता है” और “लैपटॉप बिस्तर से गिरा दिया, सोचा हवा में तैरता रहेगा,” भारहीनता के भौतिकी को समझने में कैसे मदद करते हैं? इस संदर्भ में जड़त्व (inertia) और वजन (weight) के बीच के अंतर को स्पष्ट कीजिए। (लगभग 150 शब्द)
  3. भारत के बढ़ते अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर चर्चा करें, जिसमें चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान जैसे मिशनों का उल्लेख हो। शुभांशु जैसे अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण और अनुभव भविष्य के राष्ट्रीय अंतरिक्ष लक्ष्यों को प्राप्त करने में कैसे योगदान देगा? (लगभग 250 शब्द)
  4. अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की भूमिका और क्षमताएं तेजी से बढ़ रही हैं। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रमुख उपलब्धियों और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण करते हुए, इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (self-reliance) और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। (लगभग 250 शब्द)

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