A. R. Desai 

ए . आर . देसाई : राज्य देसाई ने भारतीय समाज के रूपान्तरण की व्याख्या हेतु द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त को अपनाया । उन्होंने बतलाया कि किस भांति भारत में गुणात्मक बदलाव से राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ ।  भारतीय…

G. S. Ghurye  

जी . एस . घूर्ये:    स्वतन्त्र भारत में समाजशास्त्रियों की प्रथम पंक्ति को विकसित ( खड़े ) करने का श्रेय घुरिये को ही दिया जाता है । एम ० एन ० श्रीनिवास ने उनको भीमकाय व्यक्ति ( Giant )…

भारत में समाजशास्त्र की शिक्षा

  भारत में समाजशास्त्र की शिक्षा: समाजशास्त्र की शिक्षा बम्बई विश्वविद्यालय में 1914 में शुरू हुई । इसके बाद में लखनऊ , मैसूर इत्यादि विश्वविद्यालयों में भी इस विषय की शिक्षा दी जाने लगी भारत में समाजशास्त्र का प्रारंभ एक…

जनजातीय समस्याएँ

जनजातीय समस्याएँ – जैसा हमने पहले कहा जनजातियों की समस्या भारतीय राष्ट्र की दृष्टि से उनके एकीकरण की समस्या है । जनजातियों को एकीकरण में इनकी जनजातीय पहचान , जनजातीय संवेदनशीलता एवं अलग स्वतंत्र भावना के कारण कठिनाई होती है…

दहेज

IMG 20191203 WA0049

दहेज समाज के किसी भी वर्ग की समस्याएँ अनेकमुखी होती हैं और उनके छोटे बड़े प्रमुख और गौण कितने ही रूप और प्रकार होते हैं । इन सबकी संख्या साधारणतया निश्चित नहीं की जा सकती गतिशील सामाजिक जीवन और उस…

क्षेत्रीयता

DSC 0973

क्षेत्रीयता  – आधुनिक भारत में जिन अवधारणाओं ने सामाजिक – राजनीतिक जीवन में अपना प्रभाव विस्तृत किया है उनमें क्षेत्रीयता ( Regionalism ) भी एक है । इस क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद का जन्म कब और कैसे हुआ यह बताना तो…

साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता   मोटे तौर पर साम्प्रायिकता भारतीय राजनीतिक दाँव – पेचों की ही एक उपोत्पाद ( by – product ) हैं . इसका जन्म एवं लालन – पालन भी भारतीय राजनीतिक रंगमंच पर ही हुआ है । वह रंगमंच आज…

भ्रष्टाचार के निराकरण के उपाय वे सुझाव

भ्रष्टाचार के निराकरण के उपाय वे सुझाव भ्रष्टाचार की समस्या वास्तव में एक गम्भीर समस्या है और इसके लिए बहुत से कारण जिम्मेदार हैं । अतः इसके निराकरण के लिए भी बहुमुखी प्रयत्नों की आवश्यकात है । कुछ उपाय व…

लोक जीवन में भ्रष्टाचार

2014 02 22 12.31.17

लोक जीवन में भ्रष्टाचार  वर्तमान समाज के लोक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार आधनिक परिस्थितियों का ही प्रतिफल है । सम्भया के बढ़ने के साथ – साथ सामाजिक आवश्यकताओं व अन्तः क्रियाओं का तथा प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र दिन – प्रतिदिन बढ़ता…

जातिवाद

01008 duckandfledgling 1680x1050

जातिवाद CASTEISM  जाति – प्रथा से सम्बन्धित एक सामाजिक समस्या जातिवाद है जो एक अर्थ मे विभिन्न जातियों के बीच पाई जाने वाली खाई को और भी चौड़ा करती है तथा एक – दूसरे के प्रति घृणा , द्वेष या…

बेकारी दूर करने के उपाय

179057322 c9c4d9c3a8 o

बेकारी दूर करने के उपाय  बेकारी को दूर करना कोई सरल काम नहीं है क्योंकि यह समस्या सम्पूर्ण आर्थिक तथा सामाजिक व्यवस्था से सम्बद्ध है । इसलिए देश की सम्पूर्ण व्यवस्था में सुधार लाये बिना बेकारी को दूर नहीं किया…

बेकारी

174285741 c621dbc2e2 o

बेकारी   जब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कार्य करने के योग्य होता है , लेकिन फिर भी वह कार्य प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे बेरोजगारी के रूप में विवेचित किया जा सकता है । बेरोजगारी की…

निर्धनता

185565900 6f5d74c005 o

निर्धनता POVERTY निर्धनता भारतीय समाज की अत्यन्त गम्भीर आर्थिक एवं सामाजिक समस्या है । अपराध , बाल – अपराध , भिक्षावृत्ति , वेश्यावृत्ति , गन्दी बस्तियाँ जैसी सामाजिक समस्याओं का मूल कारण निर्धनता ही है । निर्धनता आर्थिक समस्या का…

 विचलन

01608

 विचलन   विचलन की परिभाषा एवं अर्थ सामाजिक परिवर्तनों से समाज की स्वीकृत प्रथाओं एवं प्रणालियों में परिवर्तन को विचलन कहा जाता है । समाज के प्रतिमान एवं सामाजिक मानदण्डों के विपरीत कार्य को विचलन के रूप में सम्बोधित किया…

सांस्कृतिक विलम्बन का सिद्धान्त

142506928 b2c08114fc o

सांस्कृतिक विलम्बन का सिद्धान्त हर समाज में परिवर्तन पाया जाता है परन्तु सभ्यता का हर पहलू एक ही मात्रा में तथा एक ही गति से नहीं बदलता । सांस्कृतिक विलम्बन के सिद्धान्त को मानने वालों का यह विश्वास है कि…

सामाजिक संगठन व विघटन में भेद

147532760 9a74e63d6a o

सामाजिक संगठन व विघटन में भेद  ( 1 ) सामाजिक संगठन की स्थिति में समाज के व्यक्ति तथा संस्थाएँ अपने – अपने पूर्व निर्धारत पदों पर रहते हुए कार्यों को करते रहते हैं , जबकि सामाजिक विघटन की स्थिति में…

भारत में सामाजिक विघटन के कारण

01017 lonelyseagull 1680x1050 1

भारत में सामाजिक विघटन के कारण   विकास और राष्ट्रीय निर्माण भारत में सामाजिक समस्याओं की स्थिति व विघटन के स्वरूप पर्याप्त गम्भीर हैं और इसका विस्तार भी इतना अधिक है कि वे एक जटिल रूप में ही आज हमारे सामने…

भारत में सामाजिक समस्याएँ

2014 02 22 12.31.17

भारत में सामाजिक समस्याएँ वर्तमान समय में भारत में अनेक सामाजिक समस्याएँ हैं । यद्यपि भारतवर्ष एक स्वतंत्र गणराज्य है जिसने धर्म निरपेक्ष , प्रजातंत्र तथा आर्थिक समानता के प्रगतिशील मूल्यों को स्वीकार किया है , परन्तु यहाँ निर्धनता पाई…

सामाजिक समस्याओं के प्रमुख कारण

सामाजिक समस्याओं के प्रमुख कारण  सामाजिक समस्याओं की उत्पत्ति के अनेक कारण हैं । सामाजिक विपन , सामाजिक आकांक्षाएँ , सामाजिक प्रथाएँ , सामाजिक गतिशीलता आदि सामाजिक समस्याओं को उत्पन्न करने के कुछ प्रमुख कारण है । अनेक विद्वानों ने…

सामाजिक समस्याएं

01017 lonelyseagull 1680x1050

सामाजिक समस्याएं सामाजिक समस्या का अर्थ एवं स्वरूप    समाज जिन परिस्थितियों को निन्दनीय अथवा अवांछनीय माने वे सामाजिक समस्याएँ मानी जाती हैं । सामाजिक समस्या के लिए यह भी आवश्यक है कि उसे समाज के अधिकाँश सदस्य आपत्तिजनक ,…

लुईस ड्यूमो

लुईस ड्यूमो   फ्रांसीसी मानवशास्त्री एवं समाजशास्त्री लुई इयूमो ( 1911-1998 ) भारत विद्याशास्त्रीय परिप्रेक्षण के प्रमुख समर्थक माने जाते हैं । इयूमो ने कई वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया । किन्तु 1955 ई . के बाद वे…

 राधाकमल मुखर्जी

 राधाकमल मुखर्जी पिछली शताब्दी के समाज सुधारक तथा समाज चिन्तकों की एक कतार मौजूद थी , जिसने बाद में भारतीय समाजशास्त्र की उत्पत्ति और उसके विस्तार में अपना योगदान दिया था । उनमें कुछ धार्मिक आधार के लोग भी थे…

डॉ ०  भीमराव अम्बेडकर

00943 hanginout 1680x1050

डॉ ०  भीमराव अम्बेडकर अधीनस्थ परिप्रेक्ष्य भारत में हुए समाजशास्त्रीय अध्ययनों में अनेक परिप्रेक्ष्यों को अपनाया गया है । इन परिप्रेक्ष्यों में अधीनस्थ परिप्रेक्ष्य , जिसे दलितोद्वार परिप्रेक्ष्य भी कहा जाता है , प्रमुख परिप्रेक्ष्य है । इस परिप्रेक्ष्य को…

एस ० सी ० दुबे

एस ० सी ० दुबे  जीवन – चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ: श्यामा चरण दुबे देश के प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों एवं मानवशास्त्रियों में से एक हैं । उन्होंने जनजातियों , ग्रामीण जीवन , सामाजिक परिवर्तन , सामुदायिक विकास इत्यादि जैसे अनेक विषयों…

प्रभु जाति

The Legends of Ener II by Suirebit

प्रभु जाति एम ० एन ० श्रीनिवास के संस्कृतिकरण की व्याख्या के संदर्भ में प्रभु जाति की अवधारणा का उल्लेख किया जा सकता है । इस अवधारणा को उन्होंने 1959 मे मैसूर के रामपुरा गांव के अध्ययन के दौरान विकसित…

एम . एन . श्रीनिवास : गाँव

01026

एम . एन . श्रीनिवास : गाँव भारतीय समाजशास्त्री मैसूर नरसिम्हाचार श्रीनिवास ( एम . एन . श्रीनिवास : M. N. Srinivas ) का समाजशास्त्रीय अवधारणाओं एवं प्रक्रियाओं के विकास में विशेष योगदान रहा है । इन्होंने बीसवीं शताब्दी के…

ए . आर . देसाई : राज्य

01017 lonelyseagull 1680x1050

ए . आर . देसाई : राज्य देसाई ने भारतीय समाज के रूपान्तरण की व्याख्या हेतु द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त को अपनाया । उन्होंने बतलाया कि किस भांति भारत में गुणात्मक बदलाव से राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ । भारतीय…

डी . पी . मुकर्जी : परम्परा एवं परिवर्तन

00939 mirror 1680x1050

  भारतीय समाजशास्त्रीयों में ध्रुजटि प्रसाद मुकर्जी ( डी . पी . मुखर्जी ) का नाम विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है । 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में समाजशास के स्वतंत्र स्वरूप का निर्धारण करने में इनका योगदान…

डी . पी . मुकर्जी : परम्परा एवं परिवर्तन

DSC02513

डी . पी . मुकर्जी : परम्परा एवं परिवर्तन भारतीय समाजशास्त्रीयों में ध्रुजटि प्रसाद मुकर्जी ( डी . पी . मुखर्जी ) का नाम विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है । 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में समाजशास के…

जी . एस . घूर्ये

Image0507

जी . एस . घूर्ये स्वतन्त्र भारत में समाजशास्त्रियों की प्रथम पंक्ति को विकसित ( खड़े ) करने का श्रेय घुरिये को ही दिया जाता है । एम ० एन ० श्रीनिवास ने उनको भीमकाय व्यक्ति ( Giant ) कहा…

समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य

Image0526

समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य उपागम का शाब्दिक अर्थ उप + आगमन है अर्थात् वास्तविकता के ” नजदीक ले जाना है । इसे किसी समस्या का अध्ययन करने की विधि अथवा उपाय ( Strategy ) भी कहा जा सकता है जिसके आधार पर…