सामाजिक घटनाओं की प्रकृति
( Nature of Social Phenomena )
संसार में अनेक प्रकार की घटनाएँ घटित होती हैं । इन समस्त घटनाओं को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में रखा जा सकता है – प्राकृतिक घटनाएँ ( Natural Phenomena ) तथा सामाजिक घटनाएँ ( Social Phenomena ) । प्राकृतिक घटनाओं का नियन्त्रण प्रकृति के हाथों में रहता है । प्राकृतिक घटनाएँ भौतिक और स्थूत प्रकृति की होती हैं । इनका निरीक्षण और परीक्षण वैज्ञानिक पद्धति से किया जा सकता है । प्राकृतिक घटनाओं के विपरीत जो घटनाएँ होती हैं , वे सामाजिक घटनाएँ कहलाती हैं । इन घटनाओं का सम्बन्ध मानव से है और इन घटनाओं का कारण भी मानव ही है । मानवीय व्यवहार को नियन्त्रित करने में मनुष्य को अभी तक पूर्ण सफलता नहीं मिली है ।
समाजशास्त्री मानवीय व्यवहार को स्वयं भी समझ नहीं पाता है । इसीलिए समाजशास्त्री प्राकृतिक घटनाओं की तरह वैज्ञानिक पद्धति से सामाजिक घटनाओं का निरीक्षण – परीक्षण करके भविष्यवाणी करने में पूरी तरह से असमर्थ हैं । समाज का निरन्तर विकास व प्रगति हो रही है । लोगों की जीवन शैली और आचार – विचार बदल रहे हैं । साथ ही साथ सामाजिक घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है । आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सामाजिक घटना पर वैज्ञानिक पद्धति को कैसे लागू किया जाए और इन पर इस पद्धति का कैसे प्रयोग किया जाए । इस मौलिक समस्या के अध्ययन के लिए हमें सामाजिक घटनाओं की प्रकति तथा इसके प्रकारों का आलोचनात्मक विवेचन करना होगा । यहाँ यह जानना आवश्यक है कि सामाजिक घटना की प्रकृति क्या है ? इसकी कौन – कौन सी विशेषताएँ हैं ?
कुछ विद्वानों का कथन है कि सामाजिक घटनाओं की अनोखी प्रकृति समाज – विज्ञान या समाजशास्त्र के लिए यथार्थ विज्ञान के रूप में विकसित होने के रास्ते में एक बहुत बड़ी बाधा है । इसका कारण यह है कि सामाजिक घटनाओं में पाई जाने वाली जटिलता , परिवर्तनशीलता , व्यक्तिनिष्ठता ( subjectivity ) आदि इसमें बाधक हैं । इन्हें लाँघना वैज्ञानिक पद्धति के लिए सम्भव नहीं होता । इसीलिए समाजशास्त्र के लिए यह भी सम्भव नहीं है कि वह यथार्थ सामाजिक नियमों का प्रतिपादन करे । इन भ्रान्त – धारणाओं के मुख्य स्रोत ( sources ) मुख्यतया दो हैं । पहला – सामाजिक घटनाओं की प्रकृति को तोड़ – मोड़कर देखने और उसकी प्रकृति पर नियन्त्रण पाने के सम्बन्ध में विज्ञान की शक्ति को न समझने की प्रवृत्ति ; और दूसरा – वैज्ञानिक नियम की वास्तविक प्रकृति को गलत समझना ।
सामाजिक घटनाओं में जटिलता , विविधता , व्यक्तिनिष्ठता आदि विशेषताएँ हैं , पर ये कोई ऐसी अड़चनें नहीं हैं कि जिन्हें विज्ञान कभी लाँघ ही नहीं सकता हो । समाज – विज्ञान एक प्रगतिशील विज्ञान है और अपनी प्रगति के साथ – साथ अड़चनों को दूर करना उसके लिए सरल होता जा रहा है । उसी प्रकार यह कहना भी गलत है कि सामाजिक घटनाओं की प्रकृति की विचित्रता के कारण यथार्थ वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन सम्भव नहीं है । इस प्रकार की भ्रान्ति इस कारण होती है कि लोग वैज्ञानिक नियम की यथार्थ प्रकृति को ही नहीं समझते हैं । अक्सर सिद्धान्त और नियम को एक मानने की गलती हम कर बैठते हैं । वैज्ञानिक नियम के अर्थ के सम्बन्ध में एक और गलत धारणा यह है कि वैज्ञानिक नियम समस्त अवस्थाओं में ( under all conditions ) अनियन्त्रित व्यवहार का एक यथार्थ कथन ( an exact statement ) है । पर वास्तव में वैज्ञानिक नियम इस प्रकार का कुछ भी नहीं है । वैज्ञानिक नियम केवल यह बताता है कि कोई घटना वर्णित अवस्थाओं में ( under stated conditions ) किस प्रकार का व्यवहार करती है । सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में भी इस प्रकार का कथन या नियम सम्भव है । अतः स्पष्ट है कि सामाजिक घटनाओं की प्रकृति और वैज्ञानिक अध्ययन व नियम के बीच इस प्रकार का कोई सह – सम्बन्ध नहीं है कि सामाजिक घटनाओं की प्रकृति का विशिष्टताएँ वैज्ञानिक अध्ययन या वैज्ञानिक नियमों के प्रतिपादन में अनुल्लंघनीय बाधा की सृष्टि करती हैं या कर सकती हैं । इस विषय को और भी स्पष्ट रूप से समझना लिए सामाजिक घटनाओं की प्रकृति की विशेषताओं पर ध्यान देना होगा ।
सामाजिक घटनाओं की विशेषताएँ ।
( Characteristics of the Nature of Social Phenomena )
सामाजिक घटना की प्रकृति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
पक्षपात ( Prejudices ) – भौतिक विद्वानों में पक्षपात का अभाव पाया जाता है , क्योंकि मनुष्य निर्जीव वस्तुओं का अध्ययन करता है । दूसरे शब्दों में , वह उन वस्तुओं का अध्ययन करता है , जिसका वह सदस्य नहीं होता है । सामाजिक वैज्ञानिक तटस्थ रहकर सामाजिक घटना का अध्ययन नहीं कर सकता है । इसका कारण यह है कि वह जिसका अध्ययन करता है , उस समूह और समुदाय का स्वयं सदस्य होता है और उसके सम्बन्ध में उसकी व्यक्तिगत रुचि और दृष्टिकोण होता है । एक समाजशास्त्री परिवार , समुदाय और संस्थाओं का अध्ययन इनसे अलग रहकर नहीं कर सकता है । इसका परिणाम यह होता है कि वह अध्ययन – वस्तु से अपने को स्वतन्त्र नहीं रख पाता
नियन्त्रित परीक्षण का अभाव ( Lack of controlled experiment ) सामाजिक घटना की प्रकृति की यह भी विशेषता होती है कि उसका नियन्त्रित परीक्षण नहीं किया जा सकता है । एक रसायनशास्त्री प्रयोगशाला में 100 ग्राम चीनी आधा किलो पानी में घुलने के लिए कितने डिग्री ताप की आवश्यकता होगी , बता सकता है , किन्तु कोई भी समाशास्त्री यह नहीं बता सकता कि कितने प्रतिशत परिवार का वातावरण दूषित हो जाने पर बालक अपराधी होगा ।
भविष्यवाणी का अभाव ( Lack of prediction ) – भौतिक वैज्ञानिक अपन अध्ययनों के आधार पर भविष्यवाणी कर सकता है । उदाहरण के लिए . अगर पाना का आँच पर रखा जाये तो यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि यह कितने मिनटान उबल कर भाप बन जायेगा । मोम को आग में डाल दिया जाय तो यह भविष्यवाणा का जा सकती है कि वह पिघल जायेगा , किन्तु इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकता । कि अपने पड़ौसी को गाली देने का परिणाम क्या होगा ? इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सामाजिक घटनाओं की माप नहीं की जा सकता उसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है । नाओं की माप नहीं की जा सकती है ,
सामाजिक घटना की जटिलता ( Complexity of social phenomlena ) सामाजिक घटना की प्रकृति की महत्वपूर्ण विशेषता इसकी जटिलता है । समाज सामानिक सम्बन्धों का जाल है । समाज निरन्तर परिवर्तनशील है । सामाजिक घटनाएँ एक स्थान से दूसरे स्थान में भिन्न होती हैं । समाज में अन्तःक्रियाएँ होती रहती हैं । इसके कारण भी समाज गतिशील रहता है । समाज का एक – एक भाग स्वयं में अत्यन्त जटिल है । उदाहरण के लिए , भारत में परिवार का जो रूप है वह अमेरिका , जापान और इंग्लैण्ड में नहीं है । उत्तरी भारत में विवाह की जो प्रथाएँ हैं , वे दक्षिणी भारत में नहीं हैं । इसका परिणाम यह है कि इन विविध सामाजिक घटनाओं के बीच कार्य – कारण का सम्बन्ध स्थापित करने में असुविधा होती है ।
सार्वभौमिकता का अभाव ( Lack of universality ) – समाज की प्रकृति सिर्फ जटिल ही नहीं है अपितु इसमें सार्वभौमिकता का गुण भर नहीं है । संस्कृति , व्यवहार , रीति – रिवाज और रहन – सहन के तरीके एक स्थान से दूसरे स्थान में भिन्न हैं । बोली के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह दस मील पर परिवर्तित हो जाती है । यही बात समाज पर भी लागू होती है । इन भिन्नताओं के कारण मानव में सार्वभौमिकता के गुण का अभाव पाया जाता है । सार्वभौमिकता के गुण के अभाव में समाजशास्त्र के नियम या सिद्धान्त सार्वभौमिक नहीं हो पाते हैं । इस प्रकार समाजशास्त्र में सार्वभौमिकता के गुण के अभाव में वैज्ञानिक तटस्थता नहीं पाई जाती है ।
विषयकता का अभाव ( Lack of objectivity ) – सामाजिक घटना की तीसरी विशेषता यह है कि इन्हें प्रतीकात्मक रूप से ही जाना जा सकता है । मूर्तरूप से इनका ज्ञान प्राप्त नहीं किया जाता है । इसका कारण यह है कि सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं । उन्हें न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ जा सकता है । उनका तो मात्र अनुभव किया जा सकता है ; जैसे – सामाजिक प्रक्रियाएँ , प्रथाएँ , परम्पराएँ आदि । ये मानच समाज की अन्तरंग विशेषताएँ हैं । इस कारण से समाजशास्त्र में तटस्थता का अभाव पाया जाता है ।
गुणात्मक प्रकृति ( Qualitative nature ) – सामाजिक घटना की प्रकृति की चौथी विशेषता यह है कि उसकी भाप गुण के आधार पर की जा सकती है , मात्रा ( Quantity ) के आधार पर नहीं । पति – पत्नी के सम्बन्ध , अध्यापक और विद्यार्थियों के सम्बन्ध , परिवार में सहयोग , इन्हें मात्रा के आधार पर नहीं मापा जा सकता है । पति और पत्नी के सम्बन्ध को नापकर ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि 75 प्रतिशत सम्बन्ध अच्छे हैं । इसी प्रकार किसी भी सामाजिक घटना की माप मात्रा के आधार पर नहीं कीजा सकती है , जैसा कि भौतिक विज्ञान कहते हैं । इससे भी समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग की कठिनाई होती है ।
गतिशील प्रकृति ( Dynamic nature ) – समाज निरन्तर परिवर्तनशील है । आज जो समाज है , वह कल नहीं था और आज जो है , वह कल नहीं रहेगा । मनुष्य सूचना क्राँति के युग में है पर उसने अपनी यात्रा शिकारी अवस्था से आरम्भ की थी । इसका अर्थ यह हुआ कि समाजशास्त्र में जिस समाज का अध्ययन किया जाता है , वह निरन्तर परिवर्तनशील है , गतिशील है । इस गतिशीलता के कारण समाजशाम के नियम भी परिवर्तित हो जाते हैं । इनमें स्थिरता और एकरूपता का अभाव पाया जाता है ।