समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

 

 

समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

(Relation of Sociology with other Social Sciences )

     समाजशास्त्र और अन्य विज्ञानों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है इस विषय में विभिन्न विद्वानों द्वारा अलग – अलग मत प्रस्तुत किए गए है । फ्रेंच विद्वान ऑगस्ट कॉम्ट समाजशास्त्र को ही समाज का एक मात्र विज्ञान मानते हैं तथा इस बात पर जोर देते है कि समाजशास्त्र का अन्य किसी भी सामाजिक विज्ञान से कोई भी सम्बन्ध नहीं है । इनके अनुसार चूंकि अन्य सामाजिक विज्ञान समाज के मात्र एक ही पहलू का अध्ययन करते हैं अतः वे समाजशास्त्र के मात्र उपभाग हैं । हरबर्ट स्पेन्सर समाजशास्त्र को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे अर्थशास्त्र , इतिहास , राजनीतिशास्त्र आदि का समन्वय मानते हैं जो एक दूसरे से जुड़े हैं तथा एक दूसरे पर निर्भर है । समाजशास्त्र तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों के बीच के सम्बनध को स्पष्ट करते हुए बार्स तथा बेकर कहते है कि ” समाजशास्त्र न तो अन्य सामाजिक विज्ञानों की गृस्वामिनी है और न ही उसकी दासी , बल्कि केवल उनकी बहिन है । ”  सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलू होते है । सभी सामाजिक विज्ञान मनुष्य के जीवन के किसी – न – किसी पहलू का अध्ययन करते हैं । सामाजिक विज्ञानों में मानवशास्त्र , मनोविज्ञान , अर्थशास्त्र , राजनीतिशास्त्र , इतिहास , समाजशास्त्र इत्यादि के नाम प्रमुख है । चूंकि मानव – जीवन के सभी पहल एक – दूसरे से सम्बन्धित होते है इसलिए उनसे सम्बद्ध विज्ञानों में भी परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है ।      

 एक सामाजिक विज्ञान पर दूसरे सामाजिक विज्ञान की निर्भरता का प्रभाव इतना अधिक होता है कि निरपेक्ष रूप से किसी एक का अध्ययन नहीं किया जा सकता । सामाजिक विज्ञानों में कुछ विज्ञान ऐसे हैं जो समाज के किसी विशेष पहलू का ही अध्ययन करते है , जैसे – अर्थशास्त्र मानव की उन क्रियाओं का अध्ययन करता है , जो धन के उपार्जन तथा व्यय से सम्बद्ध होती है । मनोविज्ञान मन की मानसिक क्रियाओ से सम्बन्धित होता है । राजनीतिशास्त्र मनुष्य के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित होता है । इसके विपरीत , समाज की विभिन्न दशाओं का अध्ययन एक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि अनेक दृष्टिकोणों से करने वाले विज्ञान को ‘ समाजशाख ‘ कहते है । इससे स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र तथा अन्य विशिष्ट सामाजिक विज्ञान समाज के ही विभिन्न पक्षों का अध्ययन करते है । फलत : इनमे पारस्परिक सम्बन्ध होना स्वाभाविक है । यहाँ हम देखेंगे कि किस प्रकार समाजशास्र अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्धित है ।

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समाजशास्त्र और इतिहास

( Sociology and History )

समाजशास्त्र तत्कालीन समाज का अध्ययन करता है और इतिहास भूतकाल की घटनाओं का वर्णन प्रस्तुत करता है । इन घटनाओं के अध्ययन के माध्यम से समयक्रम ( Time sequence ) का पता चलता है कि ये घटनाएँ कब घटी , साथ ही उनका मूल्यांकन भी किया जाता है । इस प्रकार इतिहास समाज के अतीत का क्रमबद्ध अध्ययन करता है और समाजशास्त्र अतीत की पृष्ठभूमि में वर्तमान समाज का अध्ययन करता है । समाजशास्त्रीय अध्ययनों के इतिहास द्वारा प्राप्त सूचनाओं से काफी मदद मिलती है । इनसे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर सामान्य सिद्धान्तों के प्रतिपादन में सहायता मिलती है । समाजशास्त्री ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर वर्तमान सामाजिक घटनाओं की विवेचना कर पाता है और उनमें कार्य – कारण सम्बन्ध ढूँढ कर भविष्य के सम्बन्ध में कुछ अन्दाज लगाता है । ऐतिहासिक घटनाओं एवं समस्याओं पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन करने से ही ‘ ऐतिहासिक समाजशास्त्र ‘ ( Historical Sociology ) का विकास हआ है । मैक्स वेबर , जिन्सबर्ग , रेमण्ड एरो आदि समाजशासियों ने ऐतिहासिक समस्याओं पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विचार किया । दूसरी ओर जी० जी० कौलन , जेकब – बुकहार्ट , टायनबी आदि इतिहासकारों ने सामाजिक इतिहास लिखा जो सामाजिक संबंधों , सामाजिक प्रतिमानो , रूढ़ियों , प्रथाओं एवं संस्थाओं से सम्बन्धित है तथा जो ‘ सामाजिक इतिहास ‘ ( Social History ) के रूप में विकसित हुआ । इस प्रकार आधुनिक युग में समाजशास्त्र और इतिहास निरन्तर एक दूसरे के निकट आते जा रहे है । आज अधिकांश समाजशास्त्रीय अध्ययन ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा तथा इतिहास का अध्ययन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से होने लगा है । अन्तर – इन दोनों विज्ञानो में बहुत घना सम्बन्ध है ।

 इसका अर्थ यह नहीं कि दोनों में कोई अन्तर ही नही है । समाजशास्त्र और इतिहास एक – दूसरे से भिन्न है । इनके बीच पाये जाने वाले अन्तर को इस प्रकार समझा जा सकता है

  1. इतिहास एवं समाजशास्त्र की अध्ययन – पद्धति भिन्न है । इतिहास में विवरणात्मक एवं ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा अध्ययन होता है , जबकि समाजशास्त्र में वैज्ञानिक विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धति द्वारा अध्ययन होता है ।
  2. ऐतिहासिक अध्ययन की प्रामाणिकता की जाँच संभव नहीं होती , क्योंकि इनका परीक्षण एवं पुनर्परीक्षण संभव नहीं , किन्तु समाजशास्त्रीय अध्ययन वर्तमान घटनाओ से सम्बन्धित होता है । अत : इनका परीक्षण तथा पुनर्परीक्षण किया जा सकता है । इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र इतिहास से अधिक निश्चित एवं प्रामाणिक होता है । ।

 3.इतिहास समान घटनाओं का विभिन्न समाज में अध्ययन करता है , जबकि समाजशास्त्र घटनाओ के आधार पर सामान्यीकरण करता है । बीयरस्टीड ने इसके सम्बन्ध में लिखा है कि इतिहास समान घटनाओ में विभिन्नताओं का अध्ययन प्रस्तुत करते हैं, जबकि समाजशास्त्र विभिन्न घटनाओं में समानताएं का अध्ययन करता है।  उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि इतिहास की रुचि रोमन – विजय, तीस वर्षीय युद्ध, नेपोलियन – युद्ध, विश्वयुद्ध इत्यादि सभी दृश्यों में होगी, किन्तु समाजशास्त्र का संपर्क इन से किसी से भी नहीं है, यह युद्ध को एक सामाजिक घटना के रूप में . सामाजिक समूहों के बीच संघर्ष मानकर अध्ययन करेगा।

4.समाजशास्त्र सामान्य विज्ञान है । यह समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करता है । इतिहास एक विशिष्ट विज्ञान है । यह सिर्फ ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन करता है ।

  1. समाजशाख तत्कालीन समाज के अध्ययन से सम्बन्धित होता है , जबकि इतिहास भूतकालीन सामाजिक घटनाओं से सम्बन्धित होता है ।
  2. इतिहास के अन्तर्गत घटनाओ को विवरणात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जबकि समाजशास्त्र के अन्तर्गत घटनाओं का विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है

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समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र

( Sociology and Economics )

 समाजशास्त्र मनुष्य की सामाजिक क्रियाओं व गतिविधियों का अध्ययन करता है तो अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं व आर्थिक व्यवहारों का अध्ययन करता है । अर्थशास्त्र में धन के उत्पादन , वितरण और उपभोग इत्यादि का अध्ययन किया जाता है और समाजशास्त्र में प्रथा , परम्परा , रूढ़ि और संस्था इत्यादि का अध्ययन किया जाता है । दोनों शास्त्रों के अन्तर्गत मानव और उनकी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ सदैव ही एक – दूसरे से जुड़ी रही हैं । यही कारण है कि अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में बहुत ही घना सम्बन्ध है । कुछ अर्थशास्त्र के महान् विद्वान समाजशास्त्र के भी विद्वान् रहे हैं । उदाहरणस्वरूप कॉम्टे , मैक्स वेबर , परेटो , मार्क्स , बैवलिन तथा मिल इत्यादि । इनमें मैक्स वेबर और परेटो ने सामाजिक कारक को प्रमुख कारक बताया तो मिल , बैवलिन तथा मार्क्स ने आर्थिक कारक को प्रमुख कारक बताया । वास्तविकता तो यह है कि दोनों ही कारक महत्त्वपूर्ण हैं । दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा दोनों एक – दूसरे को प्रभावित करते हैं । सामाजिक और आर्थिक कारक एक – दूसरे से बहुत मिले – जुले है जिसके कारण अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में कुछ सामान्य समस्याओं का अध्ययन हो रहा है , जैसे औद्योगिकीकरण , नगरीकरण , श्रम समस्या , श्रम कल्याण , बेकारी , निर्धनता , ग्रामीण समस्या तथा पुनर्निर्माण इत्यादि । अपने अध्ययनों के द्वारा मैक्स वेबर और मार्क्स इत्यादि विद्वानों ने यह साबित किया कि आर्थिक और सामाजिक कारकों में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है । ऐसा कोई समाज नहीं है , जहाँ आर्थिक दशाएँ सामाजिक दशाओं को और सामाजिक दशाएँ आर्थिक दशाओं को प्रभावित नहीं करती है । लोवी का कहना है कि ” सामाजिक कारको की अवहेलना करके अर्थशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान नहीं माना जा सकता । ‘ ‘ अनेक अर्थशास्त्रियों ने समाजशास्त्र के सामान्य सिद्धान्तों को प्रयोग में लाकर इस कथन को स्वीकार भी किया है । वर्तमान युग मे अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के बीच दिनोदिन सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ होते जा रहे है । अन्तर – अन्य विज्ञानों की

 भाँति समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है । इसका अर्थ यह नहीं है कि दोनों के बीच कोई अन्तर नहीं पाया जाता । दोनों दो स्वतंत्र विज्ञान है और इनमें निम्नलिखित अन्तर इस प्रकार पाये जाते हैं

  1. दोनों विज्ञानों में अध्ययन – पद्धति भी अलग – अलग अपनायी जाती है । समाजशास्त्र में सर्वेक्षण , वैयक्तिक जीवन अध्ययन – पद्धति तथा समाजमीति का प्रयोग होता है , तो अर्थशास्त्र में निगमन तथा आगमन पद्धति का प्रयोग होता है ।

2.समाजशास्त्र का अध्ययन – क्षेत्र काफी बड़ा है , जबकि अर्थशास्त्र का अध्ययन – क्षेत्र सीमित है । समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है तो अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक पक्ष का अध्ययन करता है ।

3.समाजशास्त्री सभी घटनाओं के सामाजिक , आर्थिक तथा अन्य कारकों का पता लगाते हैं , जबकि अर्थशास्त्री प्रत्येक घटना के सिर्फ आर्थिक कारणों को जानने का प्रयत्न करते हैं ।

  1. समाजशास्त्र सामाजिक जीवन एवं सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है तो अर्थशास्त्र आर्थिक जीवन एवं आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है

5.समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और यह सामान्य विज्ञान के रूप में सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है । दूसरी ओर अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है । विशेष विज्ञान के रूप में यह केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है ।

समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र

( Sociology and Political Science )

समाजशास्त्र व्यक्ति के सामाजिक जीवन से सम्बन्धित है तथा राजनीतिशास्त्र व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से । राजनीतिशास्त्र राज्य के स्वरूप , महत्त्व , संगठन तथा नीतियों आदि की व्याख्या करता है । गार्नर का कहना है कि राजनीतिशास्त्र केवल एक हा प्रकार के मानव – सम्बन्ध , राज्य से सम्बन्धित है . जबकि समाजशास्त्र सब प्रकार के सामाजिक सम्बन्धी स । एक के बिना दूसरे का अध्ययन पुरा नहीं हो सकता । दोनों विज्ञानों के बीच सहयोग की आवश्यकता पड़ती है । इनके सम्बन्ध में गिडिंग्स ने कहा है कि सब राजनीतिशास्त्री समाजशास्त्री और सब समाजशास्त्री राजनीतिशास्त्री होते हैं । अर्थात् समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में काफी आदान – प्रदान होता है । आजकल राजनीतिशास्त्र के अन्तर्गत समाजशास्त्र के सिद्धान्तों एवं अध्ययन – पद्धति का प्रयोग हो रहा है । समाजशास्त्र के अन्तर्गत ‘ राजनीतिक समाजशास्त्र ‘ ( Political Sociology ) एक नवीन शाखा के रूप में विकसित हुआ है । इससे राजनीतिक व्यवहारों को सामाजिक संस्थाओं के सन्दर्भ में समझने का प्रयास हो रहा है । राजनीतिशास्त्र के पर्याप्त अध्ययन के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान रहना आवश्यक है । समाजशास्त्र ही हमें राजनीतिक सत्ता , सम्प्रभुता , कानून के स्रोत और उसके पहलुओं का मूल स्रोत बतलाता है । राजनीतिक सिद्धान्तों और संगठनों का उदय सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर हुआ है । अत : राज्य और राजनीतिक संस्थाओं के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए राजनीतिशास्त्र को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है । समाजशास्त्र भी राजनीतिक पक्ष के ज्ञान के लिए राजनीतिशास्त्र पर निर्भर करता है । राजनीतिशास्त्र समाजशास्त्र को राजनीतिक पक्ष के बारे में तथ्य प्रदान करता है । राज्य की उत्पत्ति और उसके संगठन इत्यादि की जानकारी समाजशास्त्र के लिए आवश्यक है । यह जानकारी समाजशास्त्र को राजनीतिशास्त्र से ही मिलती है । अन्तर – उपर्युक्त विवरणों के आधार पर यह नहीं समझा जा सकता है कि राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र में कोई अन्तर नहीं है । निकट सम्बन्ध के बावजूद दोनों शास्त्रों में निम्नलिखित अन्तर है

 

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  1. समाजशास्त्र यथार्थ स्थिति का चित्रण करता है । यह बताता है कि समाज में क्या , क्यों और कस सामाजिक घटनाएँ घट रही हैं ? समाजशास्त्र यह नहीं बताता कि क्या होना चाहिए । किन्तु राजनीतिशास्त्र एक आदर्शात्मक विज्ञान है । यह क्या है ‘ के साथ – साथ क्या होना चाहिए ‘ का उल्लेख करता है ।
  2. समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र की अध्ययन – पद्धति भी एक – दूसरे से भिन्न है ।

3.समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र की तुलना में अधिक प्राचीन है , क्योंकि समाज का विकास राज्य के पहले हुआ है । समाज व्यावहारिक रूप से प्राचीन होते हुए भी समाजशास्त्र एक विज्ञान के रूप में नवीन है ।

4.समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीतिशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है ।

5.समाजशास्त्र मानव समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करता है । किन्तु राजनीतिशास्त्र केवल समाज की राजनीतिक स्थितियों एवं परिवर्तनों का ही अध्ययन करता है । समाजशास्त्र के अध्ययन की इकाई समाज है । पर राजनीतिशास्त्र की अध्ययन इकाई राज्य है ।

6.राजनीतिशास का एक सम्बन्ध केवल संगठित समुदायों और व्यक्तियो से है जबकि समाजशास्त्र संगठित और असंगठित दोनो प्रकार के समुदायों और व्यक्तियों से सम्बन्धित है

  1. समाजशास्त्र विषय – वस्तु के दृष्टिकोण से एक सामान्य विज्ञान है किन्तु राजनीतिशास्त्र एक विशेष विज्ञान है ।

 

 निष्कर्ष : समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ सम्बन्ध की विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र का अन्य विज्ञानों से घनिष्ठ सम्बन्ध है । सभी सामाजिक विज्ञान एक – दूसरे के पूरक हैं । इन्हें एक – दूसरे से पृथक् करके नहीं समझा जा सकता । सामाजिक जीवन एवं सामाजिक घटनाओं के विभिन्न पहलुओं के बीच पारस्परिक सम्बन्ध इतना घनिष्ठ है कि इनकी महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि आजकल अन्तरानुशासनीय अध्ययन ( Interdisciplinary Approach ) का महत्त्व बढ़ गया है । विभिन्न सामाजिक विज्ञानों का दृष्टिकोण भिन्न होने के कारण उनमें कुछ अन्तर पाये जाते हैं । किन्तु इनका आपस में आदान – प्रदान होता रहता है ।

 

 

समाजशास्त्र और मानवशास्त्र

( Sociology and Anthropology )

 समाजशास्त्र और मानवशास्त्र ( Sociology and Anthropology ) एक – दूसरे के काफी करीब है । कभी – कभी इन दोनों में भेद करना कठिन हो जाता है । कोयर ने इन्हें जड़वाँ बहनें ( Twin sisters ) कहा है । ऐसा इसलिए कहा गया है कि दोनों विज्ञानों में समान समस्याओं का अध्ययन किया जाता है और दोनों का अन्तिम लक्ष्य समाज की वास्तविक स्थिति को ज्ञात, मानवशाख की तीन प्रमुख शाखाएँ हैं –

  1. शारीरिक मानवशास्त्र ( Physical Anthropology )

2.प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र ( Prehistoric Anthropology ) और

  1. सामाजिक मानवशास्त्र ( Social Anthropology ) | शारीरिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत मानव की शारीरिक विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है । समाजशास्त्र के अन्तर्गत इन विशेषताओं के कारण सामाजिक सम्बन्धों पर जो प्रभाव पड़ता है उसका अध्ययन किया जाता है । प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र – इसमें ऐतिहसिक युग में संस्कृति की उत्पत्ति तथा उसके विकास का अध्ययन किया जाता है । इसके अध्ययन से समाज में होनेवाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है जो समाजशास्त्र के अध्ययन का विषय है ।

सामाजिक मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र – दोनों में मानव समाज का अध्ययन किया जाता है । सामाजिक मानवशास्त्र में आदिम समाज का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में आधनिक जटिल समाज का अध्ययन किया जाता है । आदिम समाज के आधार पर आधुनिक समाज को समझने में आसानी होती है । समाजशास्त्र आदिम समाज के अध्ययन के आधार पर ही आधुनिक समाज की व्याख्या करता है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक मानवशास्त्र मानवशास्त्र और समाजशास्त्र को जोड़ने वाली की है । इसी क्षेत्र में मानवशास्त्र से समाजशास्त्र बहुत अधिक सम्बन्धित हो जाता है ।

 डॉ० श्री निवास ने कहा है कि समाजशास्त्र तथा सामाजिक मानवशास्त्र में अन्तर मिटा देना ठीक रहेगी । समाजशास्त्र के लिए हितकर भी है । श्री निवास ने इस बात पर जोर देते हए कहा है कि समाजशाल विद्यार्थी को पहले दो वर्ष तक सामाजिक मानवशास्त्र का अध्ययन करना चाहिए

         

डॉ ० दुखे (DUBE)ने भी समाजशाला और सामाजिक मानवशास्त्र में कोई अन्तर नहीं माना।  हॉवेल ने इसके सम्बन्ध में कहा कि विस्तृत अर्थों में समाजशास्त्र और मानवशास्त्र बिल्कुल एक समान हैं।  वर्तमान युग में जैसे – जैसे आदिम समाज आधुनिक समाज और सभ्य समाज में संशोधित हो रहा है वैसे ही – वैसे मनोभाव और समाजशास्त्र एक – दूसरे के करीब आने वाले हैं।  – अन्तर – दोनों विज्ञानों में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी कुछ अन्तर हैं। 

 कुछ प्रमुख अन्तर इस प्रकार हैं

  1. समाजशास्त्र एक ओर सामाजिक दर्शन (सामाजिक दर्शन) और दूसरी ओर सामाजिक नियोजन (सामाजिक योजना) से संबंधित है।  वह भविष्य की योजना के लिए सुझाव भी देता है।  सामाजिक मानवविज्ञान इस प्रकार का कोई सुझाव नहीं देता है। 

2.ये दोनो विज्ञानों की अध्ययन – विधि भिन्न है।  समाजशास्त्रीय अध्ययन में अनुसूची प्रश्नावली, प्रलेख।  सांख्यिकी इत्यादि का प्रयोग होता है।  मानवशास्त्र में प्रमुख रूप से भागीदारी संबंधी अवलोकन पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है।  (समाजशास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान) (शुद्ध विज्ञान) है, जबकि मानवशास्त्र एक व्यावहारिक सामाजिक विज्ञान (एप्लाइड सोशल साइंस)

3.समाजशास्त्र वर्तमान और सभ्य समाज का अध्ययन करता है जबकि सामाजिक मानवशास्त्र आदिम समाज का अध्ययन करता है। 

4.सामाजिक मानवविज्ञान सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है।  वह एक समाज की आर्थिक व्यवस्था, राजनैतिक और विधि सम्बन्धी समस्याओं, पारिवारिक संगठन, धर्म, कला और उद्योग – व स्थितियों इत्यादि का लाभ लेता है।  समाजशास्त्र समाज के विशिष्ट भागों का अध्ययन करता है, जैसे – विवाह, परिवार,

 

 समाजशास्त्र और मनोविज्ञान

( Sociology and Psychology )

 मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं एवं विचारों का अध्ययन है तो समाजशाख समाज का अध्ययन करता है । समाज सामाजिक सम्बन्धो का जाल है । ये सम्बन्ध मानसिक स्थिति से प्रभावित होते हैं । इसका मतलब यह नहीं है कि केवल मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ ही व्यक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है बल्कि मनोवैज्ञानिक दशाओं का प्रभाव मानव – मस्तिष्क पर पड़ता है । व्यक्ति की मानसिक स्थिति और सामाजिक दशाओं को एक – दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । इस आधार पर समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच कोई सीमा रेखा नहीं खीची जा सकती । मनोविज्ञान मुख्य रूप से व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है । इसके अन्तर्गत संवेगों ( Emotions ) . प्रेरकों ( Motions ) , सीखना ( Learning ) , प्रत्यक्षीकरण ( Perception ) इत्यादि का अध्ययन होता है । इन्हीं प्रक्रियाओं के द्वारा व्यक्ति एक खास तरह का व्यवहार करता है । इन्ही प्रक्रियाओ के द्वारा व इनके संगठित रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण होता है , जिसका अध्ययन मनोविज्ञान करता है । समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है । इसके अन्तर्गत सामाजिक सम्बन्धों , सामाजिक प्रकियाओं , समूहों , संस्थाओं , प्रथाओं . सामाजिक नियंत्रण , सामाजिक परिवर्तन इत्यादि का अध्ययन किया जाता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि मनोविज्ञान और समाजशाख व्यक्ति और समाज की तरह आपस में जुड़े हुए हैं ।

मनोविज्ञान की एक प्रमुख शाखा है ‘ सामाजिक मनोविज्ञान ‘ ( Social Psychology ) | सामाजिक नोविज्ञान मनोविज्ञान और समाजशाख के बीच सम्बन्ध जोड़ने वाली महत्त्वपूर्ण कड़ी है । कछ लोग सामाजिक मनोविज्ञानको मनोवैज्ञानिक समाजशास्त्र भी कहते हैं । सामाजिक मनोविज्ञान में व्यक्ति ( मनोविज्ञान का अध्ययन – विषय ) ( समाजशास्त्र का अध्ययन – विषय ) दोनों का अध्ययन किया जाता है ।

 कार्ल पियर्सन ( Kari Pearson ) दोनों के बीच कोई अन्तर नहीं माना । सामाजिक मनोविज्ञान और समाजशास्त्र एक ही सिक्के के दो पक्ष है । एक – दसरे से अलग नहीं किया जा सकता । व्यक्तियों के बिना सामाजिक सम्बन्धों को नहीं समझा जा सामाजिक सम्बन्धों के बिना व्यक्तियों को नहीं समझा जा सकता ।

 वार्ड ( Ward ) ने भी इसे अत्यधिक समान बताया है । कुछ ऐसे विषय है जिनका अध्ययन सा कळ ऐसे विषय है जिनका अध्ययन समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान समान रूप से करते है ; जैसे – समाजीकरण , व्यक्तित्व विकास , संस्कृति और व्यक्तित्व , भीड़ नेतृत्व इत्यादि । अतः दोनो के बीच सीमा – रेखा खींचना एक कठिन कार्य है । मेकाडवर तथा पेज ने लिखा है – दोनों विज्ञान अविभाजित वास्तविकता के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित है । व्यक्ति को बिना अन्य व्यक्तियों के साथ नहीं समझा जा सकता तथा सम्बन्धी को उनकी इकाई से अलग करके नहीं समझा जा सकता । इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों विज्ञानी में आदान – प्रदान का सम्बन्ध पाया जाता है । अत : मनोविज्ञान और समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक मनोविज्ञान के सन्दर्भ में घनिष्ठ हो जाता है ।

अन्तर – मनोविज्ञान और समाजशास्त्र में अत्यधिक सम्बन्ध होते हुए भी अध्ययन के दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाया जाता है । कुछ प्रमुख अन्तर निम्नलिखित है जो दोनों विज्ञानों को एक – दूसरे से अलग कर देते है

1.समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है । यह सम्पूर्ण समाज का सामान्य रूप से अध्ययन करता है । मनोविज्ञान एक विशिष्ट विज्ञान है । विशिष्ट विज्ञान के रूप में यह व्यक्ति की मानसिक दशाओं का अध्ययन करता है ।

2.) समाजशास्त्र का अध्ययन – क्षेत्र मनोविज्ञान की तुलना में विस्तृत है । समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है , जबकि मनोविज्ञान सिर्फ व्यक्ति की मानसिक दशाओं व प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है ।

3.अध्ययन – पद्धतियों के आधार पर भी दोनों विज्ञानों में अन्तर पाया जाता है । मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि तथा विकास सम्बन्धी पद्धति का प्रयोग होता है , जबकि समा

4.समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज तथा सामाजिक प्रक्रियाओं से है , जबकि मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति तथा उसकी मानसिक प्रक्रियाओं से है ।

 

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