विशिष्ट चालक तथा भ्रान्त- तर्क
( Residues and Derivations )
मनिव मनोविज्ञान के आधार पर सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन में अतार्किक क्रियाओं के महत्त्व को स्वीकार करते हुए परेटो ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अतार्किक क्रियाएँ किन प्रेरणाओं तथा औचित्य – प्रदर्शन के प्रयत्नों से प्रभावित होती हैं । इसी सन्दर्भ में आपने विशिष्ट चालक तथा भ्रान्त तर्क की अवधारणा को प्रस्तुत किया । आरम्भ में ही यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विशिष्ट चालक तथा भ्रान्त तर्क दोनों ही अताकिक क्रियाओं की व्याख्या से सम्बन्धित हैं । एक ओर विशिष्ट चालक विभिन्न प्रेरणाओं के रूप में अतार्किक क्रियाओं के स्थिर पक्ष को स्पष्ट करते हैं तो दूसरी ओर भ्रान्त तक सैद्धान्तीकरण के रूप में इन क्रियाओं के औचित्य को प्रदर्शित करने वाला गतिशील पक्ष है । ।
यह सच है कि मानव – व्यवहार एक बड़ी सीमा तक अतार्किक होते हैं लेकिन मनुष्य जन्म से ही एक तर्क – प्रधान प्राणी रहा है । अपनी प्रत्येक क्रिया के पीछे व्यक्ति यही विश्वास करता है कि उसका व्यवहार तार्किक है तथा किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित है । वह यह कभी नहीं मानना चाहता कि उसके व्यवहार आवेग अथवा भावना पर आधारित हैं । फलस्वरूप व्यक्ति अपनी क्रिया को विवेकपूर्ण दिखाने के लिए किसी न किसी तार्किक व्याख्या का सहारा लेता है । ऐसे व्यवहारों का अध्ययन करने के लिए परेटो ने परम्परागत और आधुनिक समाजों में पाए जाने वाले बहुत से विश्वासों , सिद्धान्तों , उपासना की विधियों , प्रथाओं तथा जादुई क्रियाओं का अध्ययन किया । इससे स्पष्ट हुआ कि ऐसी सभी प्रथाओं , प्रचलनों और सिद्धान्तों के बीच इतनी समानता अवश्य मिलती है कि व्यक्ति कुछ विशेष वस्तुओं , स्थानों अथवा संख्याओं ( Numbers ) को अपने लिए ‘ शुभ ‘ अथवा ‘ अशुभ ‘ मानते आए हैं ।
व्यक्ति केवल शकुन और अपशकुन में विश्वास ही नहीं करते बल्कि व्यवहार के इन तरीकों को तर्कपूर्ण दिखाने के लिए अनेक अर्द्ध – तार्किक कारण ( Pseudo Rea sons ) भी प्रस्तुत करते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य के अतार्किक व्यवहारों में दो आधारभूत तत्त्व जरूर पाए जाते हैं : ( 1 ) पहला स्थिर तत्त्व है जिसका सम्बन्ध मनुष्य की उस प्रवृत्ति से है जिसके द्वारा वह विभिन्न वस्तुओं अथवा दशाओं के बीच एक विशेष सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न करता है , तथा ( 2 ) दूसरा तत्त्व वे विलक्षण सिद्धान्त ( Ingenious Theories ) हैं जिनके आधार पर व्यक्ति अपने व्यवहारों के औचित्य को प्रमाणित करता है । परेटो की शब्दावली में पहले तत्त्व को हम ‘ विशिष्ट चालक ‘ तथा दूसरे को ‘ भ्रान्त तर्क ‘ कहते हैं । अतार्किक क्रियाओं से सम्बन्धित इन दोनों तत्त्वों की विवेचना परेटो ने अपनी पुस्तक ‘ ट्रीटीज ऑन जनरल सोशियोलॉजी ‘ में की ।
विशिष्ट चालक
( Residues )
मानव की अतार्किक क्रियाओं का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि मनुष्य द्वारा अपने व्यवहार को तर्कसंगत प्रमाणित करने की प्रक्रिया में कुछ तत्त्व अधिक स्थिर प्रकृति के होते हैं । यही तत्त्व व्यक्ति में कुछ विशेष वस्तुओं के साथ एक विशेष ढंग से कोई सम्बन्ध जोड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न करते हैं । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की अधिकांश क्रियाएँ कुछ ऐसे चालकों पर निर्भर होती हैं जो 1 अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं । परेटो ने इन्हीं चालकों को विशिष्ट चालक कहा है । इनकी प्रकृति को स्पष्ट करते हुए परेटो ने बतलाया कि विशिष्ट चालक न तो मूलप्रवृत्तियाँ ( Instincts ) हैं और न ही यह संवेग ( Sentiments ) हैं लेकिन तो भी इनकी प्रकृति बहुत – कुछ संवेगों से मिलती – जुलती होती है । वास्तथ में विशिष्ट चालक कुछ ऐसी प्रेरणाएं हैं जो मानव मस्तिष्क में बहुत गहराई तक बैठी हुई नहीं
होतीं बल्कि सतही तौर पर व्यक्ति को अपने कथन और व्यवहार में एक सम्बन्ध जोड़ने का आधार प्रदान करती हैं । इसी कारण विशिष्ट चालकों को संदेगों की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है . यद्यपि इन्हें पूर्णतया संगों के समान नहीं कहा जा सकता । परेटो ने इसे स्पष्ट करते हए लिखा कि ” विशिष्ट चालक मूलप्रवृत्तियों तथा संवेगों के घोषित स्वरूप हैं । ” इसी आधार पर माटिन्डेल ( Martindale ) ने लिखा है कि ” विशिष्ट चालक तर्कहीन स्थिर तत्त्व हैं जो संवेग न होने पर भी संवेगों को अभिव्यक्त करते हैं । ” / परेटो ने संवेगों की अभिव्यक्ति के रूप में विशिष्ट चालकों की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए मनुष्य की व्यावहारिक क्रियाओं और एक विवेकशील व्याख्या के अन्तर की चर्चा की । मानव क्रियाओं की विवेकशील व्याख्या यह मानकर चलती है कि मनुष्य पहले सोचता है , फिर विचार विकसित होते हैं और इन्ही विचारों के आधार पर अन्त में सिद्धान्तों का निर्माण होता है । यही सिद्धान्त मानवीय क्रियाओं को प्रभावित करते हैं । परेटो का कथन है कि व्यावहारिक रूप से स्थिति ठीक इसके विपरीत होती है , अर्थात् व्यक्ति कोई व्यवहार पहले कर लेता है , सोचता बाद में है और फिर किसी सिद्धान्त के सन्दर्भ में अपने व्यवहार को उचित मान लेता है । इससे स्पष्ट होता है कि ” सिद्धान्त और वास्तविक क्रिया के बीच कार्य – कारण का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता । सिद्धान्त और क्रिया दोनों ही कुछ संवेगात्मक व्यवहारों के परिणाम हैं जो समाज में सदैव से कुछ स्थिर तरीकों से होते रहे हैं । स्पष्ट है कि समाज में व्यक्ति जिन चालकों अथवा प्रेरणाओं के आधार पर विभिन्न क्रियाएँ करता है , वे चालक कहीं अधिक स्थिर प्रकृति के होते हैं । इसके बाद भी यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विशिष्ट चालक मंवेगों और सहवर्ती क्रियाओं ( Con comitant Behaviour ) के बीच की दशा को स्पष्ट करते हैं तथा यह स्वयं एक ऐसी अवधारणा है जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार के मानव व्यवहारों की व्याख्या की जा सकती है । परेटो के शब्दों में ” विशिष्ट चालक समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए विश्लेषण की एक आधारभूत अवधारणा है जबकि संवेगों का विश्लेषण ‘ विशुद्ध मनोविज्ञान ‘ से सम्बन्धित है । ” विशिष्ट चालकों की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए परेटो ने लगभग 50 विशिष्ट चालकों की चर्चा की तथा इन्हें श्रेणियों में विभाजित करके इनका व्यापकता पर प्रकाश डाला । प्रत्येक श्रेणी के विशिष्ट चालक अनेक उप – वर्गों में तथा प्रत्येक उप – वर्ग कुछ उप – खण्डों में विभाजित है । इसी कारण रेमण्ड ऐरों ने परेटो द्वारा प्रस्तुत विशिष्ट चालकों के वर्गीकरण को तु – स्तरीय वर्गीकरण कहा है । विशिष्ट चालकों की इन सभी श्रेणियों को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है
( 1 ) संयोजन के विशिष्ट चालक ( Residues of Combination )
परेर्टी ने स्वीकार किया कि संयोजन के विशिष्ट चालक मानव की एक ऐसी प्रवृत्ति में देखने को मिलते हैं जिसमें वह कुछ विशेष विचारों और वस्तुओं के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के लिए कुछ सिद्धान्त खोजने की कोशिश करता है । संयोजन की यह प्रवृत्ति विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलती है जिन्हें इस तरह के विशिष्ट चालकों के उप – वर्ग कहा जा सकता है । पहले उप – वर्ग में व्यक्ति उन विचारों और वस्तुओं के बीच संयोजन करता है जिनके गुण एक – दूसरे के लगभग समान होते हैं । दूसरे उप – वर्ग में उन वस्तुओं अथवा घटनाओं के बीच संयोजन किया जाता है जो असमान विशेषताओं से युक्त होती हैं । तीसरे प्रकार का संयोजन अज्ञात वस्तुओं अथवा अज्ञात शक्तियों से सम्बन्धित है । अन्तिम उप – वर्ग में परेटो ने एक विशेष प्रकार की प्रेरणा का कुछ अन्य प्रेरणाओं से संयोजन करने की मानव – प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है । परेटो का कथन है कि संयोज : के विशिष्ट चालक हमारे दैनिक जीवन में विद्यमान रहते हैं । उदाहरण के लिए हम कुछ विचारों और वस्तुओं में इस तरह संयोजन करते हैं कि ‘ सुन्दर और स्वच्छ घर में रहने वाला व्यक्ति भी परिष्कृत विचारों का होगा ‘ अथवा ‘ स्वप्न में कोई सुन्दर चीज देखने का अर्थ भविष्य में अच्छे भाग्य का परिचायक है । इसी तरह शव – यात्रा देखने का सम्बन्ध दीर्घायु होने से जोडना अथवा स्वप्न में सोना देखने को किसी आर्थिक विपत्ति से जोड़ना असमान विशेषताओं के संयोजन का उदाहरण है । इसके अतिरिक्त जादू – टोना और टोटका ‘ आदि भी धर्म तथा दूसरे प्रकार के संवेगों से सम्बन्धित विशिष्ट चालक हैं जो ‘ संयोजन की प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हैं । सीम हिमालपुर का
( 2 ) सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालक ( Residues of the Persistence of aggregate ) नामक परेटो के अनुसार यह विशिष्ट चालक वे हैं जो समाज में सामूहिकता को स्थायित्व प्रदान करते हैं । सामूहिकता को स्थायित्व देने वाले अथवा इसमें वृद्धि करने वाले विशिष्ट चालकों को परेटो ने 8 उप – वर्गों में विभाजित करके स्पष्ट किया । पहले वर्ग में उन विशिष्ट चालकों का समावेश है जो कुछ विशेष व्यक्तियों , स्थानों तथा सामाजिक वर्गों से व्यक्ति के सम्बन्ध को स्थायित्व प्रदान करते हैं । इन्हीं के प्रभाव से हमें अपने माता – पिता , नातेदारों या मित्रों से स्थायी सम्बन्ध रखने की प्रेरणा मिलती है । हम अपने मकान या गाँव को छोड़कर नहीं जाना चाहते तथा अपने मालिक या मजदूर से स्थायी सम्बन्ध बनाए रखना चाहते हैं । दूसरे और तीसरे वर्ग में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों की चर्चा की जो हमें मृत व्यक्तियों की यादों और वस्तुओं को सुरक्षित रखने की प्रेरणा देकर उनसे हमारा भावनात्मक सम्बन्ध बनाए रखते हैं । चौथे वर्ग में वे विशिष्ट चालक आते हैं जो हमें अपनी संस्कृति , विश्वासों और मूल्यों को स्थायी बनाए रखने की प्रेरणा देकर सामूहिकता में वृद्धि करते है । पांचवें वर्ग के चालक वे हैं जो व्यक्ति को अपने आस – पास की वस्तुओं और घटनाओं से समरूपता स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं । छठे वर्ग में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों का उल्लेख किया जिनके प्रभाव से व्यक्ति अपनी भावनाओं को यथार्थ में बदलकर सामुहिक जीवन के लिए त्यागपूर्ण कार्य करता है तथा सातवें और आठवें वर्ग में उन विशिष्ट चालकों को सम्मिलित किया जा सकता है जो क्रमश : वैयक्तिक सम्बन्धों की स्थापना तथा नए विश्वासों के सृजन को प्रोत्साहन देते हैं । स्पष्ट है कि इस श्रेणी के सभी विशिष्ट चालक सामूहिक जीवन को स्थायित्व प्रदान करने में विशेष भूमिका निभाते हैं । यदि पहली श्रेणी के विशिष्ट चालकों से इनकी तुलना की जाय तो यह कहा जा सकता है कि प्रथम श्रेणी के विशिष्ट चालक जहाँ नए विचारों और सैद्धान्तिक युक्तियों में वृद्धि करते हैं , वहीं दूसरी श्रेणी के विशिष्ट चालक वे हैं जो समाज में यथास्थिति बनाए रखने रखने में योगदान करते हैं । इस प्रकार विशिष्ट चालकों की पहली श्रेणी कुछ सीमा तक परिवर्तनवादी है जबकि दूसरी जड़तावादी । इसी कारण परेटो ने लिखा कि ” समाज में परिवर्तन और क्रान्ति लाने के प्रयास तभी सफल हो सकते हैं जब दूसरी श्रेणी के विशिष्ट चालकों के प्रभाव को कम से कम किया जाय । “
- क्रियाओं द्वारा संवेगों को अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालक ( Residues of the Manifestation of Sentiments Through Exterior Acts ) इस श्रेणी में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों को सम्मिलित किया है जो व्यक्ति को अपने संवेगों को बाह्य क्रियाओं द्वारा अभिव्यक्त करने की प्रेरणा देते हैं । उन्हें दो उप – वर्गों में विभाजित किया गया है । पहले उप – वर्ग में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों का उल्लेख किया जो सामूहिक जीवन में व्यक्ति के संवेगात्मक व्यवहारों को स्पष्ट करते हैं । उदाहरण के लिए कोई कार्यक्रम पसन्द आने पर दर्शकों द्वारा ताली बजाना अथवा कॉर्यक्रम पसन्द न आने पर बीच में ही उठकर चले जाना , शोर मचाना या विरोध प्रदर्शित करना इसी तरह के विशिष्ट चालक हैं । दूसरा उप – वर्ग उन चालकों से सम्बन्धित है जिनके द्वारा व्यक्ति विभिन्न क्रियाओं के द्वारा ईश्वर के प्रति अपनी धार्मिक आस्थाओं को प्रकट करता है । स्पष्ट है कि इस श्रेणी के विशिट चालक वे हैं जो व्यक्ति को अपने संवेगों को अभिव्यक्ति के लिए कुछ बाह्य क्रियाएँ करने की प्रेरणा देते हैं । इन चालकों के प्रभाव से जो बाह्य क्रियाएँ की ८जाती हैं उनका रूप संवेगात्मक ही होता है ।
( 4 ) सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक ( Residues of Sociability ) यह वे विशिष्ट चालक हैं जो व्यक्ति को अपने विचारों और व्यवहारों को समूह के अनुरूप बनाकर उस एक सामाजिक प्राणी बनने की प्रेरणा देते हैं । इस
श्रेणी के विशिष्ट चालकों को परेटो ने 6 उप – वर्गों में विभाजित करके स्पष्ट किया । परेटो द्वारा दिए गये वर्गीकरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विभिन्न प्रेरणाओं के रूप में यह विशिष्ट चालक व्यक्ति को कुछ विशिष्ट समाजों का सदस्य बनने की प्रेरणा देते हैं ; उससे दूसरे लोगों के समरूप बनने की मांग करते हैं ; व्यक्ति में दया की भावना को प्रबल बनाते हैं । दूसरों के प्रति बलिदान और त्याग को प्रोत्साहन देते हैं । समाज के स्तरीकरण को स्वीकार करने की प्रेरणा देते हैं तथा अपने दूसरों के लिए सुखों का त्याग करने की भावना उत्पन्न करते हैं । परेटो ने इस श्रेणी के विशिष्ट चालकों के जिन उप – वर्गों और उप – खण्डों का उल्लेख किया उन्हें सरल ढंग से निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है : उप – खण्ड उप – वर्ग 12 1 . विशिष्ट समाजों की सदस्यता 2 . समरूपता की स्व – अनुशासन दूसरों पर अनु – सामाजिक नियमों आवश्यकता शासन की स्वीकारोक्ति 3 . दया अथवा निर्द – अपने तथा दूसरों करता के प्रति | यातनाओं के प्रति यता के भाव के प्रति दया विवेकपूर्ण तिरस्कार दूसरों के लिए अपने जीवन को अपनी वस्तुओं में आत्मोसर्ग खतरे में डालना दूसरों की सह भागिता 5 . संस्तरण की । अपने से उच्च के | अपने से निम्न | सामाजिक स्वी भावना प्रति के प्रति कृति की भावना घृणा 6 . पलायनवादिता YE इस श्रेणी के विशिष्ट चालकों के पहले उप – वर्ग में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों को सम्मिलित किया जो विशिष्ट समाजों के रूप में व्यक्ति को अनेक संघों का सदस्य बनने की प्रेरणा देते हैं । यह संघ अथवा समितियाँ उस समूह से भिन्न होती है जिसमें व्यक्ति जन्म लेता है । क्रीड़ा समिति तथा अनेक दूसरे संगठन इसी तरह की समितियां हैं जो व्यक्तियों के उन संवेगों को प्रभावपूर्ण बनाती हैं जो सामा जिक जीवन को निरन्तरता प्रदान करने वाली होती हैं ।
दूसरे उप – वर्ग के विशिष्ट चालक व्यक्ति को अपने विचारों , विश्वासों और व्यवहारों में दूसरे सदस्यों के समान बनने की आवश्यकता पर बल देते हैं । इसके लिए व्यक्ति न केवल स्वयं पर अनु शासन की भावना से प्रेरित होता है बल्कि वह दूसरों को भी अनुशासन में रखने के प्रयत्न करता है । इसके साथ ही समरूपता को बनाए रखने के लिए कुछ विशिष्ट चालक व्यक्ति को अपने समाज के आदर्श नियमो , जसे – रूढ़ियों तथा प्रथाओं अनसार व्यवहार करने की प्रेरणा देते हैं । सामाजिकता की भावना से सम्बर विशिष्ट चालकों का तीसरा उप – वर्ग वह है इसमें दया अथवा क्रूरता की भावना को प्रभावित करने वाले विशिष्ट चालक आते हैं । इन्हीं के प्रभाव से व्यक्ति दसर के प्रति दया का भाव विकसित करता है अथवा क्रूर भावनाओं के प्रति घृणा प्रदर्शित करता है । इनमें से कुछ चालक उसे क्रूर व्यवहारो का संगठित रूप से तिरस्कार करने की भी प्रेरणा देते हैं । चौथा उप – वर्ग उन विशिष्ट चालकों से सम्बन्धित है जो व्यक्ति को आत्मो गर्ग और बलिदान करने की प्रेरणा देकर सामाजिकता में वृद्धि करते हैं ।
इस तरह के चालकों के प्रभाव से व्यक्ति या तो अपने जीवन को खतरे में डालकर दूसरों के हित के कार्य करता है अथवा वह अपनी वस्तुओं में दूसरों को भागीदार बनाकर स्वयं को अधिक से अधिक सामाजिक बनाने का प्रयत्न करता है । पांचवें उप – वर्ग के विशिष्ट चालक सामाजिक संस्तरण के प्रति व्यक्ति में विश्वास उत्पन्न करते हैं । इसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने से उच्च प्रस्थिति के लोगों तथा अपने से निम्न प्रस्थिति के लोगों के प्रति कुछ विशेष भावनाएँ विकसित करता है तथा इन्हीं के अनुरूप सामाजिक रूप से स्वीकृत व्यवहार करने का प्रयत्न करता है । अन्तिम उप – वर्ग उन विशिष्ट चालकों का है जो व्यक्ति को समाज के प्रति अपने दायित्व को देखते हए समाज से पलायन करने की भावना को प्रोत्साहन देते हैं । इनके नाभाव से व्यक्ति सुखों का त्याग करके स्वयं कष्टप्रद जीवन को चनना भी बुरा नहीं समझा स्पष्ट है कि सामाजिकता से सम्बन्धित यह सभी विशिष्ट चालक समाज को स्थायी तथा सन्तुलित बनाने का प्रयत्न करते हैं ।
- व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक ( Residues of Personality Integrity )
इस श्रेणी के विशिष्ट चाल को में परेटो ने न प्रेरणाओं का उल्लेख किया जो व्यक्तित्व के विभिन्न तत्त्वों को संगठित करती हैं । इन्हीं विशिष्ट चालकों के प्रभाव से हम ऐसी सभी दशाओं का विरोध करते हैं जो व्यक्तित्व सम्बन्धी संगठन को नष्ट करने वाली होती हैं तथा उन दशाओं को स्वीकार करते हैं जिनसे व्यक्तित्व के अधिक संगठित बनने की सम्भावना हो । परेटो ने इन विशिष्ट चालकों को मुख्य रूप से चार उप – वर्गों में विभाजित करके स्पष्ट किया । पहले उप – वर्ग में वे विशिष्ट चालक आते हैं जो व्यक्तियों को सामाजिक सन्तुलन में परिवर्तन लाने वाले तत्त्वों का विरोध करने की प्रेरणा देते हैं । व्यक्ति यह विरोध इसलिए करता है जिससे उसका व्यक्तित्व परम्परागत मूल्यों के अनुकूल बना रहे । दूसरा उप – वर्ग उन चालकों का है जो हमें अपने व्यक्तित्व में नैतिक मूल्यों का समावेश करने की प्रेरणा देते हैं । इन्हीं के प्रभाव से हम किसी भी अनैतिक दबाव का विरोध करते हैं तथा उन व्यवहारों से बचने का प्रयत्न करते हैं जिन्हें अनैतिक समझा जाता है । कुछ विशिष्ट चालक इस प्रकार के होते हैं जो व्यक्ति को परिवर्तनकारी गतिविधियों के बीच इस तरह एकीकरण करने की प्रेरणा देते हैं जिससे न्यत्तित्व के विकास में बाधाएं उत्पन्न न हो सकें । चौथे उप – वर्ग में परेटो ने उन विशिष्ट चालकों का उल्लेख किया जिनके प्रभाव से व्यक्ति अपनी स्थिति में परिवर्तन करने के लिए बहुत से वास्तविक और काल्पनिक उद्देश्यों के बीच इस तरह सामंजस्य करने का प्रयत्न करता है जिससे उसका व्यक्तित्व अकि संगठित प्रतीत हो सके । परेटो का कथन है कि इस पाँचवीं श्रेणी से सम्बन्धित सभी विशिष्ट चालक व्यक्तिगत हित से सम्बन्धित है । यह सभी चालक वे हैं जो व्यक्तित्व को संगठित रजने के उद्देश्य से समाज के सन्तुलन में होने वाले किसी भी परिवर्तन का विरोध करते हैं । समाज
( 6 ) ‘ काम ‘ सम्बन्धी विशिष्ट चालक ( Residues of Sex )
परेटो का कथन है कि संसार के प्रत्येक धर्म ने काम सन्तुष्टि के लिए कुछ न कुछ निषेधौ तथा नियन्त्रणों को प्रभावपूर्ण बनाने का प्रयत्न किया है लेकिन फिर भी काम सम्बन्धी व्यवहारों का विस्तार प्रत्येक मानव – समूह की विशेषता है । इसका कारण वे विशिष्ट चालक हैं जो काम सम्बन्धी भावनाओं को उत्पन्न और प्रेरित करते हैं । साधारणतया काम सम्बन्धी विशिष्ट चालकों को वैयक्तिक समझा जाता है लेकिन परेटो ने इनसे उत्पन्न व्यवहारों के सामाजिक प्रभाव की चर्चा करते हुए इनकी व्यापकता को स्पष्ट किया । यह चालक जहाँ एक ओर यौन सम्बन्धी व्यवहारों के प्रेरक होते हैं , वहीं दूसरी ओर यह पांचवीं श्रेणी के विशिष्ट चालकों से संयुक्त होकर यौन नैतिकता को विकसित करने की भी प्रेरणा प्रदान करते हैं । छात्री विभिन्न श्रेणियों के विशिष्ट चालकों की प्रकृति को स्पष्ट करके परेटो ने यह वतलाया कि अपने व्यावहारिक जीवन में हम किसी व्यवहार को उसकी तार्किकता या अताकिकता के आधार पर नहीं करते बल्कि यह विशिष्ट चालक ही हैं जो हमें कुछ विशेष क्रियाओं या व्यवहारों को करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं । वास्तव में , प्रत्येक समाज में विशिष्ट चालक हमारे व्यवहारों का निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन विभिन्न समूहों और विभिन्न व्यक्तियों में इन विशिष्ट चालकों के प्रभाव की सीमा अलग अलग हो सकती है । इसका तात्पर्य है कि कुछ लोगों के व्यवहार संयोजन के विशिष्ट चालकों से अधिक प्रभावित होते हैं जबकि कुछ लोगो को ‘ व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक ‘ अधिक प्रभावित कर सकते है । इससे स्पष्ट होता है कि व्यक्ति के व्यवहारों पर विशिष्ट चालकों का प्रभाव बहुत – कुछ सामाजिक दशाओं तथा समय कारक ( Time Factor ) से प्रभावित होता है । प्ररेटी ने स्पष्ट किया कि यद्यपि विशिष्ट चालकों का कोई तार्किक – प्रयोगात्मक आधार नहीं होता लेकिन मानव व्यवहारों को प्रभावित करने में इनकी एक महत्त्व पूर्ण भूमिका होती है । उदाहरण के लिए सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक व्यक्ति में मानवीय गुणों को प्रोत्साहन देकर व्यक्ति को समाज के अनुरूप बनाते हैं । जबकि संयोजन के विशिष्ट चालक हमें विभिन्न घटनाओं के बीच एक ताकिक सम्बन्ध जोडने की प्रेरणा देकर मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करते हैं । सच तो यह कि इसी तरह के विशिष्ट चालक विभिन्न प्रकार के विश्वासों को प्रभावपूर्ण बनाको उनके माध्यम से घटनाओं की एक सरल व्याख्या प्रस्तुत करने का आधार प्रदान करते हैं । सामाजिक व्यवस्था के सन्तुलन को बनाये रखने में भी विशिष्ट चालकों को महत्त्व पूर्ण भूमिका होती है । सामाजिक व्यवस्था एक बड़ी सीमा तक व्यक्तित्व के संगठन पर आधारित है । जिस समाज समाज में व्यक्तियों का व्यक्तित्व अधिक संगठित होता है , वहाँ सामाजिक व्यवस्था उतनी ही सन्तुलित और प्रभावपूर्ण देखने को मिलती है । विशिष्ट चालक लोगों को अपने व्यक्तित्व में नैतिक मूल्यों का समावेश करने और सामाजिक मूल्यों से भिन्न व्यवहार का तिरस्कार करने की प्रेरणा देते हैं ।
यह कार्य तार्किक आधार पर उतने व्यवस्थित रूप से नहीं किया जा सकता जितना कि विशिष्ट चालकों से प्राप्त प्रेरणाओं की सहायता से किया जा सकता है । समाज की निरन्तरता और स्थायित्व कुछ ऐसी प्रेरणाओं पर आधारित होता है जो विभिन्न व्यक्तियों , समूहों तथा अनुभूतियों को एक – दूसरे से जोड़ते हैं । इसका तात्पर्य है कि सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालक ‘ जब हमें अपनी मात भूमि , राष्ट्र तथा संस्कृति के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देते हैं , तब इससे सामाजिक व्यवस्था अधिक दृढ़ बन जाती है । विशिष्ट चालकों के प्रभाव से ही हम महापुरुषों के व्यवहारों का अनुकरण करते हैं , अतीत के प्रति श्रद्धा रखते हैं तथा उन मूल्यों के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं जिन्हें हमारे समाज में महत्त्वपूर्ण माना जाता है । इन्हीं व्यवहारों के फलस्वरूप एक सांस्कृतिक विरासत का निर्माण होता है और उपयोगी व्यवहार परम्परा के रूप में स्थायी रूप ग्रहण कर लेते हैं । अनेक मानव – व्यवहार इस तरह के होते हैं जो ‘ बाह्य क्रियाओं द्वारा संवेगों की अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालकों से प्रभावित होते हैं लेकित जिनकी सहायता से ही समाज को अधिक उन्नत और प्रगतिशील बनाया जा सकता है । उदाहरण के लिए यदि विशिष्ट चालकों द्वारा संवेगों की अभिव्यक्ति बाह्य क्रियाओं द्वारा न की जाय तो न तो अन्ध – विश्वासों और रूढ़ियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और न ही किसी समाज को शोषणकारी व्यवस्था से मुक्त किया जा सकता है । इस आधार पर परेटो का कथन है कि अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन विशिष्ट चालकों से प्राप्त प्रेरणाओं का ही परिणाम रहे हैं । इससे स्पष्ट होता है कि विशिष्ट चालकों के पीछे कोई तार्किक आधार न होने के बाद भी इनके सामाजिक महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।
भ्रान्त- तर्क
( Derivations )
विशिष्ट चालक जहाँ मानव – व्यवहार को प्रभावित करने वाली बहुत – कुछ स्थिर प्रेरणाएं हैं , वहीं भ्रान्त तर्क अपनी प्रकृति से परिवर्तनशील , विविधतापूर्ण और अक्सर परस्पर – विरोधी होते हैं । वास्तविकता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सभी व्यवहारों और कार्यों को न केवल स्वयं उचित समझता है बल्कि वह दूसरे व्यक्तियों के सामने भी किसी न किसी तर्क के आधार पर उन व्यवहारों तथा क्रियाओं को उचित प्रमाणित करने का प्रयत्न करता रहता है । अपनी प्रत्येक क्रिया के पीछे व्यक्ति किसी न किसी ऐसे तर्क , प्रमाण अथवा सिद्धान्त को ढूंढने का प्रयत्न करता है जिसकी सहायता से वह अपने व्यवहार की उपयोगिता अथवा उसके औचित्य को प्रमाणित कर सके ।
इस तरह के तर्क या प्रमाण ताकिक – प्रयोगात्मक विज्ञान से सम्बन्धित नहीं होते लेकिन उन्हें तार्किकता के आवरण में इस तरह लपेट दिया जाता है कि वे दूसरों को तार्किक प्रतीत हो सकें । यही कारण है कि स्थान , समय और व्यक्ति के अनुसार ऐसे तर्कों में परिवर्तन किया जाता रहता है । संक्षेप में , मानव – व्यवहारों के औचित्य को प्रदर्शित करने वाले इसी प्रकार के तर्कों को परेटो ने ‘ भ्रान्त – तर्क ‘ का नाम दिया है । परेटो का कथन है , ” मनुष्य अपनी अधिकांश क्रियाएं अनुभूति , भावना और संवेगों के आधार पर करता है । इसके पश्चात् भी वह अपनी क्रियाओं की व्याख्या इस प्रकार करता है जिससे वे उचित और तार्किक प्रतीत हो सकें । यह भ्रान्त तर्क की दिशा में व्यवहारों की व्याख्या का प्रयत्न है । उदाहरण के लिए हमारा कोई व्यवहार चाहे मानवतावादी हो अथवा क्रूरता से भरा हुआ , हम उसके औचित्य को किसी न किसी आदर्श अथवा सिद्धान्त के द्वारा प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं । इस प्रकार परेटो की शब्दावली में , ” भ्रान्त – तर्क वे हैं जिन्हें सामान्य भाषा में वैचारिकी , सिद्धान्तवादिता तथा न्यायपूर्ण औचित्य कहा जाता है । ” परेटो द्वारा प्रस्तुत भ्रान्त तर्क की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए फेयर चाइल्ड ( Fairchild ) ने लिखा है , ” भ्रान्त तर्क व्यवहारों और क्रियाओं का वह व्यापक क्षेत्र है जिसके द्वारा मनुष्य अपने व्यवहारों की ताकिकता या औचित्य के सम्बन्ध में स्वयं अपने आपको और अन्य व्यक्तियों को विश्वास दिलाने का प्रयत्न करता है । ” इससे स्पष्ट होता है कि भ्रान्त तकों का उपयोग केवल अन्य व्यक्तियों के सामने ही व्यवहारों का औचित्य प्रमाणित करने के लिए नहीं किया जाता बल्कि इनके द्वारा व्यक्ति स्वयं को भी इस तरह सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करता है कि उसने जो कुछ भी व्यवहार किया है वह उचित और न्यायपूर्ण है ।
इस सम्बन्ध में माटिन्डेल ( Martindale ) ने परेटो के विचारों को संक्षेप में स्पष्ट करते हुए लिखा है , ” भ्रान्त तर्क मनुष्य के कार्यों का छद्म व्याख्या के तरीके हैं । ” इस सन्दर्भ में परेटो का यह कथन सही प्रतीत होता है कि मनुष्य के अधिकांश व्यवहार किसी तर्क या सिद्धान्त से प्रभावित नहीं होते बल्कि मनुष्य पहले व्यवहार करता है और इसके बाद अपने व्यवहार के औचित्य को सिद्ध करता है । परेटो की मान्यता है कि केवल सामान्य व्यक्ति ही अपने जीवन में प्रान्त तर्कों का सहारा नहीं लेते बल्कि राजनीति , दर्शन तथा समाज विज्ञान के क्षेत्र में भी बड़े – बड़े विद्वान अपने कार्यों और विचारों को भ्रान्त तर्कों की सहायता से उपयोगी प्रमाणित करने का प्रयत्न करते रहे हैं । इस सन्दर्भ में उन्होंने कॉम्ट की विशेष चर्चा करते हुए बतलाया कि कॉम्ट ने ‘ मानवता के धर्म ‘ ( Religion of Humanity ) के रूप में जिस अवधारणा को प्रस्तुत किया , वह मुख्यत : असत्य तथ्यों पर आधारित एक ऐसी युक्ति है जिसे भ्रान्त तर्कों द्वारा प्रमाणित करने का प्रयत्न किया गया । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपने व्यवहार को उचित सिद्ध करने के लिए जिन तर्कों का सहारा लेता है , वे ही भ्रान्त तर्क हैं । भ्रान्त तर्क की प्रकृति को इसकी दो प्रमुख विशेषताओं के आधार पर समझा जा सकता है — पहली यह कि भ्रान्त तर्क विशिष्ट चालकों से सम्बन्धित होते हैं तथा दूसरी यह कि यह अताकिक तथ्य हैं ।
यदि हम प्रश्न करें कि ऐसा क्यों है कि व्यक्ति पहले कार्य करता है और बाद में उसके लिए तर्क ढूंढता है ? तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कुछ ऐसे विशिष्ट चालक अवश्य होते हैं जो व्यक्ति को कुछ विशेष भावनाओं और संवेगों के अनुसार व्यवहार करने की प्रेरणा देते हैं । इसके बाद , व्यक्ति अपने व्यवहार के औचित्य को प्रमाणित भी करना चाहता है । ऐसा औचित्य HTS N तभी प्रमाणित हो सकता है जब व्यक्ति अपने व्यवहार की तुलना समाज द्वारा मान्यता प्राप्त कुछ अन्य व्यवहारों अथवा सिद्धान्तों से करे । यही कारण है कि मनुष्य विभिन्न श्रेणियों के विशिष्ट चालकों से सम्बन्धित विशेषताओं को ही आधार भूत तर्क के रूप में स्वीकार कर लेता है । विशिष्ट चालक स्वयं ही अतार्किक होते हैं , इसलिए इन पर आधारित तर्क भी अतार्किक हो जाते हैं । इस तरह विशिष्ट चालकों तथा भ्रान्त तर्कों के बीच एक गहरा सम्बन्ध है । प्ररेटी ने भ्रान्त तर्कों की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए इनके विभिन्न प्रकारों ( Types ) का भी उल्लेख किया । इसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना था कि विभिन्न व्यक्ति किस तरह की ताकिक अथवा मनोवैज्ञानिक विधियों की सहायता से अपने व्यवहारों के औचित्य को सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं । परेटो के अनुसार विभिन्न व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में सामान्यत : जिन भ्रान्त तर्कों का उपयोग करते है , उन्हें निम्नांकित वार श्रेणियों में विभाजित करके समझा जा सकता है |
1.लकारात्मक ब्रान्त तक ( Affirmative Derivations )
सास श्रेणी के ‘ भ्रान्त तर्कों को परेटी ने ऐसे भ्रान्त तर्क कहा है जो सरलतम प्रकार के होते हुए भी बहुत अधिक प्रभावपूर्ण होते हैं । इन तर्कों का उपयोग कुछ ऐसे कथनों , वाक्यों अथवा घोषणाओं के रूप में होता है जिनकी अनुभव या परीक्षण के द्वारा पुष्टि नहीं की जा सकती । साधारणतया इस श्रेणी के तर्कों को समाज द्वारा – एक सामान्य व्यवहार के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तथा यह इतने शक्ति शाली बन जाते हैं कि इनका विरोध करना एक सरल कार्य नहीं होता । इस तरह के भ्रान्त तर्कों को भी दो उप – वर्गों में विभाजित किया जा सकता है भावनात्मक तथा मिश्रित । ( क ) भावनात्मक आधार के सकारात्मक भ्रान्त तर्क वे हैं जिनमें भावना के आधार पर कोई तर्क इस तरह प्रस्तत किया जाता है कि साधारणतया उसका विरोध नहीं किया जाता ।
एक माँ जब अपने पुत्र को किसी व्यवहार के लिए यह आदेश देती है कि अपने से बड़े प्रत्येक व्यक्ति की आज्ञा का पालन करो क्योंकि ऐसी आज्ञा का पालन करना तुम्हारा दायित्व है ‘ / तो इस तर्क को केवल भावना की ही स्वीकृति प्राप्त होती है । ( ख ) मिश्रित रूप के सकारात्मक भ्रान्त तर्क वे होते हैं जिनमें भावनाओं के साथ तथ्यों का भी कुछ सीमा तक मिश्रण होता है । उदाहरण के लिए युद्ध के समय सैनिकों को पहले भावनात्मक आधार पर अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण की शिक्षा दी जाती है और इसके बाद उन्हें युद्ध करने का आदेश दिया जाता है । स्पष्ट है कि युद्ध के समय सैनिकों को दिए जाने वाले आदेशों में तथ्यों और भावनाओं का जो समावेश देखने को मिलता है , वह इसी तरह के भ्रान्त तर्को को स्पष्ट करते हैं । परेटो ने एक फाँसीवादी व्यवस्था ( Facism ) में शासक द्वारा किए जाने वाले प्रचार को भी इसी तरह के भ्रान्त तर्कों से सम्बन्धित माना है । ऐसे प्रचार में भावनात्मक आधार पर किसी आंशिक तथ्य को बार – बार दोहराए जाने से जनसाधारण द्वारा उसे सच मान लिया जाता है । यह कारण था कि हिटलर हथियार के साथ प्रचार को भी उतना ही महत्त्वपूर्ण मानता था
( 2 ) सत्तावादी भ्रान्त तर्क ( Authoritative Derivations )
इस श्रेणी के भ्रान्त तर्क वे होते है जिनका सम्बन्ध किसी व्यक्ति – विशेष की सत्ता , विशेष परम्परा या ईश्वरीय सत्ता से होता है । कस्यक्ति को सत्ता ( Authority Man ) समाज में प्रत्येक व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्ध किसी न किसी व्यक्ति की सत्ता से प्रभावित होते हैं । यह सत्ता चाहे वैधानिक हो अथवा प्रथागत लेकिन हम जिसे अपने से अधिक प्रतिष्ठित अथवा सत्तासम्पन्न मानते हैं , उसके द्वारा दिये गये तर्क अथवा कथन को सहज ही मान लेते हैं । पत्नी पर पति की सत्ता , बच्चों पर पिता की सत्ता , विद्यार्थी पर शिक्षक की सत्ता अथवा कार्यकर्ताओं पर नेता की सत्ता इसके विभिन्न उदाहरण हैं । इसका तात्पर्य है कि जब एक अधीन व्यक्ति के सामने सत्तासम्पन्न व्यक्ति के नाम से कोई तर्क दिया जाता है तब उसकी विश्वस नीयता को जानने का प्रयत्न नहीं किया जाता
( 3 ) परम्परा की सत्ता ( Authority of Tradition )
व्यक्ति अपने कार्यों अथवा व्यवहारों का औचित्य सिद्ध करने के लिए परम्पराओं के आधार पर भी तर्क प्रस्तुत करता है । जब हम यह कहते हैं कि ” विवाह अपनी जाति में करने से ही दाम्पत्य जीवन सफल हो सकता है ‘ तब यह परम्परा की सत्ता के सन्दर्भ में दिया जाने वाला भ्रान्त तर्क है । तात्पर्य यह है कि हम अक्सर परम्पराओं अथवा प्रथाओं की सत्ता के सन्दर्भ में साम्प्रदायिक झगड़ों , जातिगत हिंसाओं और क्षेत्रवाद के पक्ष में इस तरह भ्रान्त तर्क देते हैं कि उन्हें उचित मान लिया जाता है । ( ग ) ईश्वरीय सत्ता ( Devine Authority ) – परेटो ने स्पष्ट किया कि अधिकांश व्यक्ति ईश्वर अथवा एक अलौकिक सत्ता में विश्वास करते हैं । फलस्वरूप व्यक्ति जब अपने किसी विशेष व्यवहार के पक्ष में कोई ठोस तक नहीं दे पाता तब वह कोई न कोई ऐसा भ्रान्त तर्क देने लगता है जो ईश्वरीय सत्ता से सम्बन्धित होता है । किसी व्यवहार का कारण ‘ ईश्वर की इच्छा ‘ , ‘ भाग्य का परिणाम ‘ अथवा ‘ प्रारब्ध ‘ को मान लेना इसी तरह के भ्रान्त तर्कों के उदाहरण हैं । ( 3 ) भावनाओं से अनुकूलन ( Accord with Sentiments ) मानव जीवन में भावनाओं का स्थान बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस स्थिति में व्यक्ति अपनी क्रियाओं के लिए अक्सर ऐसे भ्रान्त तर्कों का सहारा लेता है जो मानव की भावनों के अनुकूल होते हैं । इसी कारण उन्हें सामान्य व्यक्तियों के द्वारा सच मान लिया जाता है । ऐसे भ्रान्त तर्कों का उपयोग व्यक्ति के स्तर से लेकर राष्ट्र के स्तर तक किया जाता है । उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति अपने पुत्र के लिए कोई अपराध करके यह तर्क दे कि ‘ पुत्र की रक्षा के लिए अपराध करना पिता का नैतिक दायित्व है ‘ अथवा सार्वजनिक रूप से अभद्रता करने वाले व्यक्ति पर आघात करके यह तर्क दे कि ‘ नैतिकता की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का नागरिक दायित्व है , तो ऐसे तर्क उन्हीं श्रान्त तर्कों को स्पष्ट करते हैं जो जनसामान्य की भावनाओं के अनुकूल होते हैं जनतान्त्रिक देशों में यदि सरकार कोई विशेष सूचना सामान्य व्यक्तियों को उपलब्ध कराना नहीं चाहती तो इस भ्रान्त तर्क का सहारा लिया जाता है कि ऐसा करना राष्ट्र हित में नहीं है . सभी जानते हैं कि उग्रवाद आज अनेक – देशों की एक प्रमुख समस्या है । इसके बाद भी जब कोई उग्रवादी हिंसात्मक गति विधियों में शामिल होता है तब वह नैतिक आधार पर ऐसे अनेक तर्क देने का प्रयत्न करता है जिससे वह स्वयं अपनी भावनाओं से अनुकूलन कर सके । इस प्रकार परेटो ने इस वर्ग में मुख्यतः उन भ्रान्त तर्कों को सम्मिलित किया है जिनके द्वारा व्यक्ति किसी व्यवहार के बाद भावनात्मक आधार पर स्वयं अपने आप को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करता है ।
( 4 ) मौखिक प्रमाण ( Verbal Proofs )
परेटो ने प्रान्त तर्कों की विवेचना में मौखिक प्रमाण देकर व्यवहारो के औचित्य को सिद्ध करना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण माना है । आपका कथन है । ऐसे भ्रान्त तकों में शब्द म शब्द तथा भाषा का महत्त्व होता है । इन भ्रान्त तर्कों के लिए
प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा न केवल भ्रमपूर्ण और दो अर्थों वाली होती है बल्कि उसे अनेक काल्पनिक प्रमाणों की सहायता से इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि उसमें सहज की विश्वास कर लिया जाय । प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में नेताओं द्वारा दिए जाने वाले भाषणों के सन्दर्भ में परेटो ने लिखा कि ‘ इन भाषणों में ताकिक उद्घोषणाओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता । ” परेटो यह भी मा भी मानते हैं कि विभिन्न धर्मों की पौराणिक गाथाओं में जिन बहत से मौखिक प्रमाणों का समावेश होता है , वे प्रमाण भी ताकिक अथवा प्रयोगसिद्ध न होकर केवल भ्रान्त तक ही होते हैं । भ्रान्त तर्कों के सम्पूर्ण विवेचन के द्वारा परेटो ने यह स्पष्ट किया कि सामा जिक घटनाओं की विवेचना में भ्रान्त तर्कों के प्रभाव से बचना सदैव आवश्यक है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सभी भ्रान्त तर्क समाज के लिए हानिकारक होते हैं अथवा सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में इनका कोई योगदान नहीं होता । वास्तविकता यह है कि हमारे बहुत से भ्रान्त तर्क समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों अथवा व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालकों से सम्बन्धित होने के कारण सामूहिकता में वृद्धि करते हैं तथा व्यक्तित्व को अधिक संगठित बनाते हैं । जिस तरह अनेक अन्धविश्वास अवैज्ञानिक होते हुए भी व्यक्तिगत जीवन को संगठित रखने का कार्य करते हैं , उसी तरह बहुत से भ्रान्त तर्क समाज की विभिन्न उप व्यवस्थाओं को एक दूसरे से जोड़े रखने में उपयोगी सिद्ध होते है । इसके पश्चात् भी समाजशास्त्रीय अध्ययनों के लिए यह आवश्यक है कि वे भ्रान्त तर्कों के प्रभाव से मुक्त रहें ।