विघटनकारी सामाजिक प्रक्रियाएँ

 

विघटनकारी सामाजिक प्रक्रियाएँ

(DISSOCIATIVE SOCIAL PROCESSES)

प्रतिस्पर्धा

(COMPETITION)

।  दुनिया में शायद केवल ऐसा कोई समाज नहीं है जहाँ यह नहीं पायी जाती है।  समाज सिर्फ सहयोग मात्र से नहीं चलता है।  लेस्ली ‘(लेसली) ने यह स्पष्ट किया है।  उस प्रतियोगिता के किसी उद्देश्य को बेहतर से बेहतर तरीके से हासिल करने का एक नतीजा है।  प्रतियोगिता तब पैदा होती है जब कछ सीमित लक्ष्यों को एक साथ कई लोग प्राप्त करना चाहते हैं। प्रतिस्पर्धी व प्रतियोगिता एक अलगत्वतावादी सामाजिक प्रक्रिया है।  इसके अन्तर्गत भाग लेने वाले व्यक्तियों में कम या अधिक मात्रा में एक – दूसरे के प्रति ईर्ष्या – द्वेष के भाव पाए गए है।  ख़ुशी के अन्तर्गत दो पक्ष एक ही लक्ष्य को पाने के लिए प्रयत्न करते हैं और दोनों में से कोई भी पक्ष दूसरे से प्रतिबद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता है।  वास्तव में इसमें दो पक्ष एक सामान्य उद्देश्य या वस्तु को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, लेकिन इस प्रयास में एक ही पक्ष सफल होता है।  _ _ प्रतियोगिता सहयोग की तरह एक विश्वव्यापी सामाजिक प्रक्रिया है  संघर्ष में भी ऐसा ही पाया जाता है।  किन्त संघर्ष में हिंसा की भावना होती है जबकि प्रतियोगिता एक हिंसारिट प्रक्रिया है।  प्रतियोगिता समाज के लिए काफी लाभकारी होती है। विभिन्न विद्वानों ने प्रतिस्पर्धी को परिभाषित किया है।  कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार निम्नलिखित है

बीसवें और बीसवें (Biessanzand Biessanz) के अनुसार, “भावनाओं को दो या दो से अधिक व्यक्तियों का किसी एक वस्तु को प्राप्त करने के लिए किया गया है प्रयास, जबकि वस्तु इतनी सीमित है कि सभी उसके वर्तमान नहीं बन सकते।”

 फेयर गिल (FAIR CHILD) ने इसकी परिभाषा देते हुए लिखा है, “प्रतिस्पर्धी सीमित वस्तुओं के उपयोग और अधिकार के लिए होने वाला संघर्ष है।।

 सदरलैंड, वूडवार्ड और मैक्सवेल (सदरलैंड, वुडवर्ड और मैक्सवेल) के अनु।  सार, “सीमित सन्तुष्टियों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति या समूहों के मध्य होने वाले अवैयक्तिक, अचेतन और निरन्तर संघर्ष को ही प्रतिस्पर्धी कहते हैं, क्योंकि ये संतुष्टियों को सभी व्यक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।  “

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि स्वच्छता एक अलगक्विटीवादी सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें सीमित वस्तुओं के उपयोग या अधिकार के लिए व्यक्ति या समूह प्रयोज्य करता है। उदाहरण के लिए, परीक्षा में सबसे अधिक अंक लाने के लिए छात्रों के बीच प्रतियोगिता पायी जाती है। 

प्रतियोगिता के लक्षण (CHARATERISTICS OF COMPETITION)

1.दो या दो से अधिक व्यक्ति या समूह (दो या अधिक व्यक्ति या मूह) –

2.अवैयक्तिक प्रक्रिया (इंपर्सनलप्रोसेस) –

  1. अप्रत्यक्ष प्रक्रिया (अप्रत्यक्ष प्रक्रिया) – परीक्षा एक  समूह
  2. निरन्तर प्रक्रिया (Continuousprocess) –
  3. हिंसा का अभाव (उल्लंघन का अभाव)
  4. सार्वभौमिक प्रक्रिया (सार्वभौमिक घटनाएं) –

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प्रतिस्पर्धा का महत्त्व (IMPORTANCE OF COMPETITION)

 

  जिस प्रकार के सहयोग, समायोजन और सात्मीकरण इत्यादि समाज के लिए आवश्यक है उसी प्रकार प्रतिस्पर्धी भी सामाजिक प्रगति के लिए अनिवार्य है।  इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए वीसेंज और वीसेंज ने लिखा है, “हमे पूर्ण विश्वास है कि यदि सहयोग कार्यों को पूरा करवाता है, प्रतिस्पद्र्धा यह आश्वासन देती है कि वे भली प्रकार किएगेगे।” भगवान से प्रत्येक व्यक्ति को समाज में उसका स्थान प्राप्त करना है।  है कार्य करता है।  श्रेष्ठ व्यक्ति का समाज में जो स्थान रहता है उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को प्रयत्न करना पड़ता है।  खुशियाँ के परिणामस्वरूप जो व्यक्ति आगे निकल जाता है।  वह श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त कर लेता है।  इस प्रकार मनोरंजक भावना व्यक्ति को समाज में स्थान दिलवाने का कार्य करता है।  प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति या समूह अपनी – अपनी स्थितियों और स्थितियों की रक्षा के लिए प्रयास करते है जो वास्तव में सामाजिक प्रगति का आधार बन जाता है।  सामाजिक जीवन के लिए प्रतिस्पर्धी लाभदायक है कि लेकिन इसकी सीमाओं को भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।    इससे फायदे के साथ – साथ शैतानियाँ भी हैं।  प्रतियोगिता के कारण समाज में लोगों के बीच तनाव, मानसिक असंतुलन, संघर्ष और अपराधी वारदात होते रहते हैं।  आये दिन छात्र – छात्राओं को कम अंक प्राप्त करने पर आत्महत्या कर लेते है।  यह क्या है?  इसी प्रतियोगिता का परिणाम है।  पाश्चात्य देशों के शहरी जीवन में जो वैयक्तिक और सामाजिक समस्याएं सामने आती हैं उन सभी के पीछे जीवन में प्रतियोगिता की प्रमुखता है।  किंतु इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि समाज में प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए।  केवल सहयोग से ही समाज नहीं चल सकता है।  मानव समाज सभ्यता की दौड़ में इतना आगे आया है इसमें प्रतियोगिता की महत्वपूर्ण भूमिका है।  इस संदर्भ में बोगार्डस ने बताया है कि “तर्क के अनार लिंगदा संघर्ष में विकसित हो जाता है। इन सभी सीमाओं के बावजूद उचित प्रतिस्पर्धी सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी और महत्वाकांक्षीपूर्ण होता है।

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