राल्फ डेहरेन्डार्फ
1929 में जन्मे जर्मन समाजशास्त्री राल्फ डेहरेन्डार्फ , मार्क्स के स्वदेशी हैं । मार्क्स की तरह वह भी द्वन्द्वादी योजना के आधार संघर्ष सिद्धांत की व्याख्या करते हैं किन्तु संघर्ष के अन्य मुद्दों पर इन दोनों के विचारों में गहरे मतभेद दिखाई पड़ते हैं । संघर्ष सिद्धांत की व्याख्या इन्होंने अपनी पुस्तक ” क्लास एण्ड क्लास कंफ्लिक्ट इन इण्डस्ट्रियल सोसायटी “(Class and Class Conflict in Industrial Society) 1959 में तथा ” टोडिस के जेनरल थ्योरी ऑफ सोशियोलॉजी में की है । उन्होंने अपने सिद्धांत को यूरोप और अमेरिका के आधुनिक औद्योगिक समाज के संदर्भ में प्रस्तुत किया है । डेहरेन्डार्फ ने कहा है कि किसी भी समाज व्यवस्था के दो पहलू होते हैं-
1.सर्वसम्मति एवं 2.संघर्ष ।
पारसन्स सहित अन्य प्रकार्यवादियों ने सहमति वाले पक्ष पर काफी प्रकाश डाला है , जबकि समाज के दूसरे पहलू संघर्ष की उपेक्षा की है ।
अपने सिद्धांत में डेहरेन्डार्फ मार्क्स से द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया तथा वेबर से सत्ता और शक्ति की अवधारणा को सम्मिलित किया है । टर्नर ने डेहरेन्डार्फ के सिद्धांत के द्वन्द्वात्मक संघर्ष सिद्धान्त नाम दिया है । द्वन्द्वात्मक इसलिए कि किसी भी समाज में संघर्ष दो वर्गों के बीच निरन्तर चलता रहता है ।
डेहराडार्फ के अनुसार वर्ग निर्माण का आधार शक्ति एवं सत्ता है । शक्ति एवं सत्ता के असमान विभाजन से ही समाज में दो वर्ग होते हैं-
1.दमनकारी या शक्तिशाली वर्ग एवं
2.दमित या शक्तिहीन वर्ग ।
दमनकारी वर्ग , वह है जो सत्ता पर काबिज होते हैं तथा यथास्थितिवाद चाहते हैं । दमित वर्ग वह है जिसके पास शक्ति एवं सत्ता का अभाव होता है तथा जो शासित होते है । ये हमेशा प्रयलशील रहते हैं कि शक्ति का पुनर्वितरण हो ।
डेहरेन्डार्फ के अनुसार किसी भी छोटे समूह औपचारिक संगठन या समुदाय अथवा पूरे समाज को “आदेश सूचक समन्वित समाज” की संज्ञा दे सकते हैं । इनका कहना है कि किसी भी आदेश – सूचक समन्वित समाज में शक्ति एवं सत्ता का न केवल असमान वितरण होता है बल्कि उस पर चलता रहता है । इस संघर्ष के फलस्वरूप शक्तिहीन वर्ग शक्तिशाली वर्ग को पराजित कर सता प्राप्त कर लेता है । इस तरह सामाजिक परिवर्तन होता है ।
अपनी पुस्तक ” क्लास एण्ड क्लास कंफ्लिक्ट ” में उन्होंने संघर्ष के बारे में निम्नलिखित प्रस्ताव दिये हैं-
1.किसी भी आदेश – सूचक समन्वयित समाज के लोगों में वास्तविक समाज के बारे में जितना अधिक चेतना होगी उतनी ही अधिक उनकी संघर्ष करने की संभावना होगी।
2.अधिक तकनीकी, राजनैतिक और सामाजिक दशाओं की आवश्यकताओं की। पूर्ति संगठन में होगा, उसी तरह संघर्ष अधिक तीव्र होगा।
3.दमनकारी और दमित समूहों में जितना कम गतिशीलता होगी उतना ही अधिक होगा।
4.संघर्ष जितना अधिक गहरा, सघन और हिंसात्मक होगा, उतना ही अधिक सामाजिक परिवर्तन होगा।
आलोचना: आर० के० मर्टन एंड अमिटाई इटज्योनी का कहना है कि उसने समाज में संघर्ष की प्रक्रिया को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है और सहयोग की भूमिका को अनदेखा कर दिया गया है।
कोजर का मानना है कि उन्होंने संघर्ष के ऐसे योगदानों की चर्चा नहीं की है जो सामाजिक स्थिति को मजबूत करता है।