जनगणना का क्या अर्थ है

 जनगणना का क्या अर्थ है

What is the meaning of census

 जनगणना का अर्थ

आधुनिक काल में देश का कोई भी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक , नियोजन बगैर जनगणना सम्बन्धी जानकारी के पूरा नहीं हो सकता । जनगणना के आंकड़ों के अध्ययन से हमें रोजगार विनियोजन , आवास व्यवस्था , कृषि विकास , यातायात व संचार , विकास , शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं का विकास , प्रवास का नियोजन आदि समस्त कार्यों में सहायता मिलती है । परिभाषाएँ संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रलेख के अनुसार- ” एक देश या परिसीमित प्रदेश के समस्त व्यक्तियों की एक निश्चित समय से सम्बन्धित संख्या आर्थिक व सामाजिक सूचना के संग्रहण व संकलन और प्रकाशन की सम्पूर्ण विधि । “

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रकाशन के अनुसार , ” किसी निश्चित प्रदेश में एक निश्चित समय में रहने वाले सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में जनांकिकीय , आर्थिक एवं सामाजिक तथ्यों का संकलन , सम्पादन एवं प्रकाशन करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को जनगणना कहते हैं । ” स्पष्ट है कि जनगणना के अन्तर्गत मात्र स्त्री – पुरुषों की संख्या को ही नहीं गिना जाता बल्कि उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति का भी स्पष्ट चित्रण करने का प्रयास किया जाता है । किसी देश में कितने व्यक्ति रह रहे हैं । उन सबके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए सरकार एक व्यवस्थित ढंग से अनुसन्धान कराती है जिसे जनगणना कहा जाता है ।  जनगणना की विशेषताएँ- जनगणना की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. जनगणना सम्बन्धी समस्त जानकारी को प्रकाशित किया जाता है ।
  2. जनगणना में किसी भी व्यक्ति के बारे में जानकारी उसी व्यक्ति से प्रत्यक्ष रूप से ज्ञात की जाती है , अर्थात् पंजीकरण पद्धति से ज्ञात नहीं की जाती है ।
  3. प्राय : जनगणनाएँ एक निश्चित समय अन्तराल ( 10 वर्ष के बाद ) की जाती हैं ।
  4. जनगणना में जनसंख्या के बारे में जानकारी एक ही निश्चित समय बिन्दु पर इकट्ठी की जाती है ।
  5. जनगणना में देश के समस्त निवासियों को सम्मिलित किया जाता है ।
  6. जनगणना देश की सम्पूर्ण सीमा के निवासियों की होती है ।
  7. जनगणना में क्योंकि व्यापक व्यय एवं संगठन आदि की आवश्यकता पड़ती है , अतः इसे सरकार द्वारा किया जाता है । यहाँ यह दृष्टव्य है कि सामान्यतया जनगणना को प्रत्येक 10 वर्ष बाद करना पड़ता है । संयुक्त राष्ट्र संघ की सिफारिश के अनुसार विश्व के हर देश को ‘ O ‘ से समाप्त होने वाले वर्ष ( जैसे 1960 , 1970 तथा 1980 क्रमश 🙂 या उसके निकट जनगणना करना चाहिए । मौसम तथा धरातल सम्बन्धी विशेषताओं के कारण महीने या दिन में अन्तर हो सकता है ।

भारत में जनगणना जनगणना का महत्व

 

 ( क ) आर्थिक महत्त्व 1. इसके आधार पर शिक्षा , स्वास्थ्य इत्यादि पर व्यय की राशि निर्धारित की जा सकती है ।  2. इससे ही अन्न , वस्त्र मकान की आवश्यकता का ज्ञान होता है । 3. इसके आधार पर परिवार नियोजन व खाद्य समस्या का अध्ययन किया जा सकता है । 4. इससे ग्रामीण व नगरीय जनसंख्या की वृद्धि दर का पता चलता है । 5. इससे जनसंख्या का व्यावसायिक ढाँचा ज्ञात होता है । 6. इससे देश की आर्थिक प्रगति की प्रवृत्ति ज्ञात होती है । 7. इससे जनसंख्या वृद्धि का ज्ञान होता है । 8. रेल व परिवहन कम्पनियाँ सवारियों का अनुमान लगाकर विकास की योजनाएँ बनाती हैं । 9. इससे स्थानान्तरण का पता चलता है तथा शरणार्थियों के लिए योजनाएँ प्रारम्भ की जाती है । 10. इसके आधार पर बीमा कम्पनियाँ नियम और प्रीमियम की राशि निर्धारित करती है ।

( ख ) सामाजिक महत्त्व 1. वैज्ञानिक व शोधकर्ता जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर अपने शोध को सफल बनाते हैं । 2. इसके हो आधार पर ग्राम व नगर के विकास की योजनाएं बनाई जा सकती हैं । 3. इससे महामारी और असन्तोषजनक स्वास्थ्य का ज्ञान करके उन्हें दूर करने की योजनाएं बनाई जा सकती हैं । 4. इससे सामाजिक कुरीतियाँ तथा बाल विवाह , सती प्रथा , विधवा समस्या , मद्यपान , भिखारियों की संख्या इत्यादि का पता चलता है । 5. इससे शिशु जन्म , मृत्यु , भाषा , धर्म लिंग , संख्या इत्यादि का पता चलता है ।

 ( ग ) राजनीतिक महत्व 1. नगरों को ‘ अ ‘ , ‘ ब ‘ और ‘ स ‘ श्रेणियों में इसी के आधार पर रखकर महँगाई की दर निर्धारित की जाती है । 2. इसके आधार पर नीतियों का निर्माण तथा संसाधन सम्बन्धी योजनाएँ बनाई जाती हैं । 3. इसके आधार पर टाउन एरिया , नोटीफाइड एरिया , नगरपालिका , निगम इत्यादि की स्थापना की जाती है ।

 प्रश्न 7. भारतीय जनगणना के दोषों व उनमें सुधार हेतु सुझाव दीजिए । Explain shortcomings of suggestions for Improvement .

 उत्तर भारतीय जनगणना के दोष ( Shortcomings of Indian Cerisuses ) भारतीय जनगणना में कुछ दोष एवं कठिनाइयाँ विद्यमान है । ये दोष निम्न प्रकार

  1. समरूपता व तुलनीयता का अभाव ( Lack of Comparability ) — पिछली जनगणनाओं में प्रयुक्त अवधारणाओं , भौगोलिक क्षेत्र तथा समकों के वर्गीकरण एवं सारणीयन के आधार भिन्न – भिन्न रहे हैं जिसके कारण उनमें तुलनीयता का अभाव बना रहा । पिछली पाँच जनगणनाओं में जनगणना मकान , भवन तथा परिवार शब्द की परिभाषा अलग – अलग की गयी है । फिर प्रत्येक जनगणना की व्यक्तिगत पर्ची में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या में भी अन्तर रहा है । 1961 की जनगणना में 13 प्रश्न पूछे गए थे , 1971 में 17 प्रश्न , 1981 में 22 प्रश्न , 1991 में 23 प्रश्न और 2001 में 23 प्रश्न शामिल किए गए । साक्षरता दर का आगणन करने हेतु कभी 0-1 वर्ष आयु वर्ग तो कभी 0-6 आयु वर्ग को आधार माना गया । किसी जनगणना में असम राज्य को छोड़ दिया गया तो अगली जनगणना में जम्मू – कश्मीर को छोड़ा गया । इस प्रकार समरूपता का अभाव इसका प्रमुख दोष है ।

  1. व्यावसायिक वर्गीकरण में एकरूपता की कमी ( Lack of Uniformity in Occupational Classification ) – व्यवसाय के अनुसार वर्गीकरण कार्यशील जनसंख्या के प्रारूप और रोजगार दशाओं को दर्शाता है परन्तु भारत की पिछली सात जनगणनाओं में व्यावसायिक वर्गीकरण के आधार पर , वर्गों की संख्या और उनके निर्वाचन आदि के मामले में काफी असमानता रही है ।

  1. जनगणना विभ्रम ( Census Errors ) – भारतीय जनगणना में दो प्रकार के विभ्रम पायी जाती हैं — व्याप्ति विभ्रम तथा विषय सामग्री विभ्रम । 1951 की जनगणना में | अल्प- प्रगणन विभ्रम 11 प्रति हजार थी , 1961 में 7 प्रति हजार , 1971 में 1.7 प्रति हजार 1981 में 1.8 प्रति हजार तथा 1991 में 2.2 प्रति हजार थी । ये विभ्रम मूलतः अशुद्ध सूचनाओं का परिणाम होते हैं जिसके लिए एक तरफ संसूचकों की अज्ञानता , अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता तो दूसरी तरफ प्रगणको की लापरवाही जिम्मेदार हैं । वैवाहिक स्तर , जाति , आय और आयु से सम्बन्धित सूचनाएं काफी त्रुटिपूर्ण होती हैं । बहुत से व्यक्तियों को अपनी सही आयु का ज्ञान नहीं होता । कुछ अन्ध – विश्वास के कारण अपनी सही आयु नहीं बताते क्योंकि उनके अनुसार आयु बताने से कम हो जाती है । अविवाहित लड़के – लड़कियाँ अपनी आयु सदैव कम बताते हैं । अधिकतर आयु 5 के गुणकों के रूप में अथवा उपसादित अंकों में बतायी जती है । 48 वर्ष आयु बताता है । व्यक्ति 50 वर्ष

  1. अपर्याप्त पारिश्रमिक ( Insufficient Remuneration ) – भारत में प्रगणन – कार्य अधिकतर स्कूल अध्यापकों , लेखपालों व छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारियों द्वारा कराया जाता है । इन्हें न तो पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही पारिश्रमिक दिया जाता है । सन् 1961 में पहली बाहर एक प्रगणक को 24 रुपए , सन् 1971 में 40 रुपए , सन् 1981 में 100 रुपए और 1991 में 325 रुपए का भुगतान किया गया । उचित पारिश्रमिक के अभाव में उत्तरदायित्व , कुशलता बनाये रखना सम्भव नहीं है ।

  1. प्रगणकों का प्रशिक्षण ( Training of the Enumerators ) – जनगणना की परिशुद्धता प्रगणकों की कुशलता पर निर्भर करती है । प्रगणकों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक होती है जिन्हें इस काम में न तो कोई रुचि होती है और न ही वे पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं जिससे कि परिणाम अशुद्ध निकलते हैं । 6. जनता की उदासीनता ( Indifference of the People ) – सूचना देने वाले व्यक्तियों द्वारा प्रश्नों के उत्तर बिना सोचे – समझे ही दिए जाते हैं अथवा दिए ही नहीं जाते । संसूचकों की उदासीनता के मुख्य कारण उनकी अज्ञानता , आशंकाएँ , टैक्स का डर , परिवार नियोजन , आय का असमान वितरण व साम्प्रदायिकता हैं ।

सुधार हेतु आवश्यक सुझाव ( Suggestions for Improvement )

आगामी जनगणनाओं में सुधार के लिए कुछ आवश्यक सुझाव निम्न हैं

  1. जन सहयोग ( Public Participation ) जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि निरन्तर प्रचार व प्रसारण द्वारा जागरुकता लायी जाए और जनसम्पर्क को बढ़ावा दियाजाए । जनजागरण कार्य से पूर्व जनता के सुझाव आमन्त्रित किए जाने चाहिए , ताकि आम आदमी उससे जुड़ सके । प्रगणन – कार्य में गैर – सरकारी संस्थाओं का सहयोग लेने से भी जन सहयोग मिलता है ।

  1. प्रगणकों की नियुक्ति एवं प्रशिक्षण ( Appointment and Training of Enumerators ) – प्रगणकों एवं गणना निरीक्षकों की नियुक्ति स्थायी रूप से होनी चाहिए और उनके प्रशिक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए । उन्हें पर्याप्त पारिश्रमिक का भुगतान भी होना चाहिए । इससे वे लगन , निष्ठा के साथ कार्य कर सकें ।

  1. समंक विधान ( Data Processing ) समंकों के विधायन के लिए यान्त्रिक सारणीयन तथा कम्प्यूटर प्रणाली का प्रयोग आवश्यक करना चाहिए ताकि जनगणना परिणामों का शीघ्र विश्लेषण एवं प्रकाशन किया जा सके । 2001 की जनगणना में समक विधायन का कार्य कम्प्यूटर प्रणाली द्वारा ही किया गया है ।

  1. जनगणना शोध ( Census Research ) – जनगणना अत्यन्त व्यापक तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है । इसके उच्च स्तरीय अध्ययन के लिए जनगणना शोध अनुभाग की स्थापना की जानी चाहिए ।

  1. योजनाओं का स्थायी अंग ( Permanent Part of the India Plan ) – जनसंख्या वृद्धि भारत की प्रमुख समस्या है । इसलिए जनसंख्या नियन्त्रण अथवा परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए प्रजननशीलता तथा प्रजनन सम्बन्धी सूचना को जनगणना में शामिल करना आवश्यक है । अतः जनगणना जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य को योजनाओं का स्थायी अंग बना दिया जाना चाहिए ।

  1. स्त्री प्रगणक ( Female Enumerators ) – पर्दानशीन तथा निरक्षर स्त्रियों से पूछताछ के लिए स्त्री प्रगणकों की नियुक्ति की जानी चाहिए ।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय तुलनीयता ( International Comparability ) — जनसंख्या समंकों में अन्तर्राष्ट्रीय तुलनीयता बनाये रखने के लिए पारिभाषिक शब्दों में समरूपता रहनी चाहिए और अन्तर्राष्ट्रीय मानक व्यावसायिक औद्योगिक वर्गीकरण को आधार बनाया जाना चाहिए ।

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