ईमाइल दुर्शीम : सामाजिक परिवर्तन
फ्रांसीसी विचारक इमाईल दुर्शीम ( 1858 – 1917 ) ने अपनी पुस्तक ” डिविजन ऑफ लेबर इन सोसायटी ( 1893 ) में जो कि उनकी पहली कृति है – श्रम – विभाजन को समाजशास्त्रीय ढंग । से प्रस्तुत किया है । अपने इस शोध ग्रंथ में उन्होंने तुलनात्मक वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया है । दुर्शीम ने समाज में श्रम विभाजन के व्यक्तिगत , आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक कारकों का खण्डन किया है । इनके अनसार श्रम विभाजन एक सामाजिक ” नक अनुसार श्रम विभाजन एक सामाजिक तथ्य है अतः इसकी व्याख्या अन्य सामाजिक तथ्य के आधार पर ही की स्य क आधार पर ही की जा सकती है । इस पुस्तक की केन्द्रीय समस्या समाज का सया व्यक्ति और समाज के संबंध हैं । इन्होंने श्रम – विभाजनको तीन दृष्टि से देखा है-
(i)यह हमारी किन आवश्यकता की पूर्ति करता है ?
(ii) इनके कारण कौन – कौन से हैं ?
(iii) क्या यह किसी असमानता या विचलन को दर्शाता है ?
उनके अनुसार सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण श्रम – विभाजन है तथा श्रम – विभाजन के निम्नलिखित दो कारण हैं ।
1.जनसंख्या में वृद्धि एवं
2.समाज का विस्तार
श्रम- विभाजन की गतिशीलता को दर्शन के लिए उन्होंने उदविकासीय आधार पर निम्नलिखित दो प्रकार के संगठन की चर्चा की है ।
1.यांत्रिक संगठन (Mechanical Solidarity) एवं
2.सावयवी संगठन । (Organic Solidarity)
इन दोनों समाजों के संदर्भ में दुर्खीम अभिरुचि इन कारकों एवं चरों को जानने की है जिनके कारण इनके समाजों की एकता या सदृढ़ता बनी रहती है ।
Durkheim के अनसार प्रारंभिक अवस्था में लोगों की आवश्यकताएँ कम एवं एकसमान थी अतः लोगों के बीच अन्तर्निर्भरता की कोई चीज नहीं थी । परन्तु जैसे जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती , है लोग अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विभिन्न पेशों को अपनाते हैं । फलस्वरूप श्रम विभाजन स्पष्ट होने लगता है । श्रम – विभाजन की इसी गतिशीलता के कारण समाज में यांत्रिक संगठन की जगह सावयवी संगठन आया । यांत्रिक एवं सावयवी संगठन की विभिन्नताओं को निम्नलिखित रूप से देखा जा सकता है।
1.यांत्रिक समाज में भेद – भाव नहीं होता है जबकि सावयवी समाज में पर्याप्त विभेदीकरण होता है ।
2.यांत्रिक समाज में व्यक्तिवाद का अभाव होता है जबकि सावयवी समाज में वैयक्तिक चेतना को स्वतन्त्रता होती है ।
3.यांत्रिक समाज की सुदृढ़ता ” सामूहिक चेतना ” द्वारा तथा सावयवी समाज की सुदृढ़ता “ सामूहिक प्रतिनिधान ” द्वारा बनी रहती है ।
4.यांत्रिक समाज में “ दमनकारी कानूनों ” होता है जबकि सावयवी समाज में ‘ प्रतिकारी कानून ‘ होता है ।
5.यांत्रिक समाज की सुदृढ़ता नैतिकता पर आधारित होती है जबकि सावयवी समाज की सुदृढ़ता अनुबन्ध पर निर्भर करता है ।
6.यांत्रिक समाज अपने सदस्यों को प्रत्यक्ष रूप से जोड़ता है , जबकि सावयवी समाज में यह जोड़ या एक प्रकार्यात्मक निर्भरता द्वारा आती है ।
7.यांत्रिक समाज की संरचना सम्बद्धता में बंधी होती है , जबकि सावयवी समाज की व्यवस्था खण्डात्मक होती है ।
8.यांत्रिक समाज सरल होती है जबकि सावयवी समाज जटिल होता है ।
9.यांत्रिक समाज में संरचना प्रायः सामान्य होती है जबकि सावयवी समाज में संरचना असामान्य भी होती है ।
आलोचना – गैबरियल टार्ड ने कहा है कि यद्यपि दुर्शीम इसे एक सामाजिक तथा है , तथा इसका कारण भी सामाजिक तथ्य है पर अपने विश्लेषण में श्रम विभाजन का जनसंख्या वृद्धि को मानते हैं , जो एक जैविकीय तथ्य है ।