उपकल्पना के प्रकार

उपकल्पना के प्रकार

( Types of Hypotheses )

 सामाजिक घटनाओं , तथ्यों एवं समस्याओं की प्रकृति अति जटिल होती है , इसलिए वैज्ञानिक शोध में अनेक प्रकार की प्राक्कल्पनाएँ प्रयोग में लाई जाती हैं । गुडे तथा हॉट के अनुसार प्राक्कल्पनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है , जोकि इस प्रकार हैं

( 1 ) आनुभविक समानताएँ बताने वाली प्राक्कल्पनाएँ ( Hypotheses stating existing empirical uniformities ) – ये वे प्राक्कल्पनाएँ हैं जोकि व्यक्ति के सामान्य दैनिक जीवन में प्रचलित विचारधाराओं , मान्यताओं , निषेधों , व्यवहार प्रतिमानों इत्यादि पर आधारित होती हैं । यद्यपि ऐसी प्राक्कल्पनाओं का आधार सामान्य ज्ञान है तथापि वैज्ञानिक परीक्षण किया जा सकता है ।

( 2 ) जटिल आदर्श – प्ररूप से सम्बन्धित प्राक्कल्पनाएँ ( Hypotheses con cerned with complex ideal – types ) – इन प्राक्कल्पनाओं का निर्माण अनुभवाश्रित एकरूपता पर आधारित विभिन्न कारकों में तार्किक अन्तर्सम्बन्धों का परीक्षण करने हेतु किया जाता है । इनमें सामग्री संकलन के पश्चात कारकों के तर्कपूर्ण क्रम को आदर्श मानकर सामान्यीकरण किया जाता है ।

 ( 3 ) विवेचनात्मक चरों में सम्बन्ध बताने वाली प्राक्कल्पनाएँ ( Hypotheses related with analytical variables ) – इस प्रकार की प्राक्कल्पनाएँ जटिल आदर्श – प्ररूपों से भी अधिक अमूर्त होती हैं । इनका प्रयोग परिवर्तन के लिए उत्तरदायी विभिन्न कारकों के तर्कपूर्ण विश्लेषण करने के साथ – साथ अनेक पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों का पता लगाने के लिए भी किया जाता है ।

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उपकल्पन के स्त्रोत

( Sources of Hypotheses )

 प्राक्कल्पना के अनेक स्त्रोत होते हैं । किसी घटना के बारे में हमारे अपने विचार , हमारे व्यक्तिगत अनुभव एवं प्रतिक्रियाएँ , सामाजिक – सांस्कृतिक पर्यावरण , सिद्धान्तों में पाए जाने वाले अपवाद , समरूपता तथा साहित्य इत्यादि प्राक्कल्पनाओं के निर्माण में सहायक हो सकते हैं । गुडे तथा हॉट ने प्राक्कल्पना के निम्नांकित चार स्त्रोत बताए हैं

1 . सामान्य संस्कृति ( General culture ) – सामान्य संस्कृति प्राक्कल्पना के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है । विभिन्न संस्कृतियों की विशेषताएँ , प्रथाएँ , माया , लोकरीतियाँ , विश्वास , कहावतें इत्यादि प्राक्कल्पनाओं के निर्माण

में सहायक स्त्रोत हैं । सामाजिक – सांस्कृतिक इकाइयों ; जैसे भारत में जाति प्रथा , संयक्त परिवार , ग्रामीण संरचना , विवाह इत्यादि में होने वाले परिवर्तन भी प्राक्कल्पनाओं के निर्माण में सहायता देते हैं । गडे तथा हॉट का कहना है कि अमेरिकी संस्कृति में व्यक्तिगत सख को बड़ा महत्त्व दिया जाता है तथा इससे सम्बन्धित अनेक कारण उपकल्पनाओं के स्त्रोत हो सकते हैं ।

  1. वैज्ञानिक सिद्धान्त ( Scientific theory ) – अनेक प्राक्कल्पनाओं का निर्माण स्वयं विज्ञान तथा वैज्ञानिक सिद्धान्तों द्वारा ही होता है । प्रत्येक विज्ञान में भिन्न विषयों के बारे में कुछ सामान्यीकरण प्रचलित होते हैं और यह सामान्यीकरण अन्य विज्ञानों में समस्याओं को भी प्रभावित करते हैं । यह सामान्यीकरण तथा इनमें पाए जाने वाले सार्वभौमिक तत्त्व प्राक्कल्पनाओं के मुख्य स्त्रोत हैं । सिद्धान्तों में पाए जाने वाले आपबाद भी प्राक्कल्पना के स्त्रोत हो सकते हैं ।

  1. समरूपताएँ ( Analogies ) – प्राक्कल्पनाओं के निर्माण में दो विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली उपमाओं का भी विशेष महत्त्व है । उपमाओं के आधार पर शोधकर्ता एक क्षेत्र में पाए जाने वाले तथ्य या व्यवहार को दूसरे क्षेत्र में ढूँढने का प्रयास करता है । यदि दो भिन्न परिस्थितियों में हमें कछ समानता दिखाई देती है तो स्वाभाविक रूप में शोधकर्ता के मन में यह प्रश्न पैदा होता है कि ऐसा क्यों है ? अतः विभिन्न व्यवहार क्षेत्रों में पाई जाने वाली समानताएँ प्राक्कल्पनाओं के उदगम में महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं ।

 4 . व्यक्तिगत अनुभव ( Personal experience ) – व्यक्तिगत अनुभव भी प्राक्कल्पनाओं के निर्माण का महत्त्वपूर्ण स्त्रोत है । एक कुशल शोधकर्ता अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर जिन सामाजिक समस्याओं को वह अपने दैनिक जीवन में देखता है , उनके प्रति अपने दृष्टिकोण के आधार पर अनेक घटनाओं के सम्बन्ध के बारे में प्राक्कल्पनाओं का निर्माण कर सकता है । परम्परागत व्यवहार में जो परिवर्तन हम देखते हैं उसके बारे में जो हम सोचते हैं या विभिन्न इकाइयों की जो परिवर्तित परिस्थितियों पाई जाती हैं उनसे भी प्राक्कल्पनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है ।

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उपकल्पना का महत्त्व

( importance of Hypotheses)

  1. अध्ययन के उद्देश्य का निर्धारण ( Stating the purpose of study ) – प्राक्कल्पना से अध्ययन के उद्देश्य का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है क्योंकि किसी अमुक घटना या समस्या के अध्ययन के पीछे अनेक उद्देश्य हो सकते हैं । प्राक्कल्पना से हमें यह पता चलता है कि हम किसकी खोज करें ।

  1. सम्बद्ध तथ्यों के संकलन में सहायक ( Helpful in collection of relevant data ) – प्राक्कल्पना अध्ययन को दिशा प्रदान करके इसमें केवल निश्चितता ही नहीं लाती अपित समस्या से सम्बन्धित तथ्यों के संकलन में भी सहायता देती है । शोधकर्ता केवल उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करता है जिनके आधार पर प्राक्कल्पना की सत्यता की जाँच हो सकती है तथा इस प्रकार वह अनावश्यक तथ्यों के संकलन से बच जाता है ।

3.निष्कर्ष निकालने में सहायक ( Helpful in drawing conclusions ) – प्राक्कल्पना द्वारा दो चरों में जिस प्रकार के सम्बन्ध का अनुमान लगाया गया है वह शोध द्वारा या तो सत्य प्रमाणित होता है या असत्य । अतः यह निष्कर्ष निकालने तथा यहाँ तक कि समस्याओं के समाधान निकालने में सहायक सिद्ध । हो सकती है ।

  1. सत्यता की खोज करने में सहायक ( Helpful in searching the : truth ) – प्राक्कल्पना अध्ययन को स्पष्ट एवं निश्चित बनाकर तथा प्रमाणित आँकडों के कारण सत्यता की खोज में सहायता देती है क्योंकि प्राक्कल्पना की जाँच वास्तविक तथ्यों के आधार पर ही की जाती है ।

  1. अध्ययन – क्षेत्र को सीमित करना ( Delimiting the scope of study ) – शोधकत्ता किसी घटना , इकाई या समस्या का अध्ययन सभी पहलुओं को सामने रखकर नहीं कर सकता । अतः गहन एवं वास्तविक अध्ययन के लिए अध्ययन – क्षेत्र को सीमित करना अनिवार्य है । प्राक्कल्पना इस कार्य में हमारी सहायता करती है । इससे हमें यह पता चलता है कि किसी वस्तु का क्या , कितना और कैसे अध्ययन करना है । शोध क्षेत्र जितना सीमित होगा , त्रुटियों की सम्भावना उतनी ही कम होती जाएगी ।

  1. अध्ययन को उचित दिशा प्रदान करना ( Providing suitable direction to the study ) – प्राक्कल्पना केवल अध्ययन क्षेत्र को सीमित करने में ही सहायक नहीं है अपितु यह अध्ययन को उचित दिशा भी प्रदान करती है । पी . वी . यंग का कहना है कि प्राक्कल्पना दृष्टिहीन खोज ( Blind search ) से हमारी रक्षा करती है । यह हमें पहले से ही इस बात की ओर इशारा करने में सहायता देती है कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है । इससे व्यर्थ का परिश्रम बच जाता है और व्यय भी कम होता है ।

  1. अध्ययन में निश्चितता लाना ( Bringing definiteness in the study ) – प्राक्कल्पना शोध को सुनियोजित एवं सुनिश्चित बनाने में सहायता देती है । इससे हमें यह पता चल जाता है कि कौन सी सूचनाएँ , कहाँ से तथा कब प्राप्त करनी हैं । अतः इससे अनुसन्धान में अस्पष्टता एवं अनिश्चितता की सम्भावना प्रायः समाप्त हो जाती है ।

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उपकल्पनाओं की सीमाएँ

 ( Limitations of Hypotheses )

  1. प्राक्कल्पना में अटूट विश्वास ( Perfect confidence in hypothesis ) प्राक्कल्पना क्योंकि शोधकर्ता के अपने अनुभव पर आश्रित है तथा कई बार उसे प्रारम्भ में ही प्राक्कल्पना में अटूट विश्वास हो जाता है । अतः वह सभी तथ्यों को तोड़ – मरोड़ कर प्राक्कल्पना को सत्य साबित करने का प्रयास करता है जोकि हो सकता है कि वास्तविकता के विपरीत हो ।

  1. तथ्य संकलन की सीमित प्रकृति ( Limited nature of data collection ) – यदि अनुभवहीनता के कारण प्राक्कल्पना का निर्माण ठीक प्रकार से नहीं किया गया है तो हो सकता है कि घटना की वास्तविकता का कभी भी पता न चले , क्योंकि प्राक्कल्पना तो शोधकर्ता को केवल सीमित ( अर्थात् प्राक्कल्पना से सम्बन्धित ) तथ्यों के संकलन करने पर ही बल देती है ।

  3 ,.पक्षपात ( Bias ) – प्राक्कल्पना के निर्माण में पक्षपात या अभिनति हो सकती है । यदि शोधकर्ता को किसी विशेष प्रकार के सम्प्रदाय के प्रति रुचि है तो हो सकता है कि प्राक्कल्पनाओं का निर्माण , सामग्री संकलन एवं निष्कर्ष पक्षपातपूर्ण हो । प्राक्कल्पना के महत्त्व तथा दोषों की विवेचना से स्पष्ट हो जाता है कि यदि प्राक्कल्पना का निर्माण सावधानीपूर्वक किया जाता है तो यह निश्चित रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण का एक महत्त्वपूर्ण चरण हो सकती है ।

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