साक्षात्कार विधि के प्रमुख चरण
( Main Steps of Interview Method )
साक्षात्कार सम्पन्न करना एक कला है । इसके संचालन के लिए बहुत सावधानी और सतर्कता की आवश्यकता रहती है । इसके परिणामों को विश्वसनीय एवं उपयोगी बनाने के लिए , इसे ‘ विधिवत् योजना बना कर संगठित किया जाना चाहिए । इसे वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने के लिए समय – समय पर प्रयत्न किए जाते रहे हैं । इस पर काफी साहित्य भी लिखा जा चुका है । साक्षात्कार पद्धति पर लिखने बालों में हर्बर्ट हाइमन ( Herbert Hyman ) , बिंघम , वाल्टर एवं मूर ( Binghom Waiter and Moore ) , प्रोल्डफील्ड आदि प्रसुख हैं । इन सुप्रसिद्ध लेखकों से साक्षात्कार कैसे संचालित किया जाता है , साक्षात्कार का मनोविज्ञान , सामाजिक अनुसंधान में साक्षात्कार आदि विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला है । साक्षात्कार की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए इसे निश्चित चरणों पर संचालित किया जाता है , वे इस प्रकार हैं
- साक्षात्कार की तैयारी ( Preparation of Interview ) : साक्षात्कार करने के पूर्व साक्षात्कार का समस्त प्राप्रापा पर विचार किया जाना आवश्यक है । इस सन्दर्भ में चार बातें महत्त्वपूर्ण हैं –
1 समस्या की प्रारंभिक खाज – जस विषय पर साक्षात्कार करना है , उस विषय के सभी पक्षों पर पर्याप्त चिंतन कर लें ।
2.साक्षात्कार यत्र का निमाण – प्रारामक जानकारी के बाद अध्ययनकर्ता को साक्षात्कार यंत्र का निर्माण करना होता है । ये यंत्र मुख्यत : दो प्रकार के होत ह ( अ ) साक्षात्कार अनुसूची और ( ब ) साक्षात्कार निर्देशिका । कौन या यंत्र कहाँ प्रयोग किया जाएगा , यह साक्षात्कार विधि के चनाव पर निर्भर करता है । प्रायः साक्षात्कार अनसची का प्रयोग संरचित साक्षात्कार में किया जाता है और साक्षात्कार निर्देशिका का प्रयोग असरचित साक्षात्कार में किया जाता है ।
साक्षात्कारदाताओं का चयन – अध्ययनकत्ती का उन व्यक्तियों के बारे में खोज करना होता है जिनसे उसे साक्षात्कार करना है । साक्षात्कारदाता के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है । साक्षात्कारदाता की प्रकृति , व्यवसाय , दिनचर्या , सांस्कृतिक विशेषताओं की जानकारी मिल जाने से साक्षात्कार के संचालन में विशेष सुविधा हो जाती है ।
समय व स्थान का निर्धारण – साक्षात्कारदाता से टेलीफोन या स्वयं सम्पर्क के माध्यम से समय व स्थान का निर्धारण कर लेना है ।
( 2 ) साक्षात्कार का मुख्य भाग ( Main Part of Interview ) : साक्षात्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया में यह भाग सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । इसलिए इस स्तर को साक्षात्कार का मुख्य भाग कहा जाता है । इसके अन्तर्गत आते हैं –
( 1 ) सम्पर्क स्थापना – पूर्व निर्धारित समय व स्थान पर साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता पहंचता है । उसकी पोशाक सौम्य व गम्भार होनी चाहिए । उचित अभिवादन के साथ अपना परिचय देना चाहिए ।
( I ) उद्देश्य का स्पष्टीकरण – साक्षात्कारकत्तो का सम्पर्क स्थापना के बाद साक्षात्कार के उद्देश्य को समझाना चाहिए । ताकि साक्षात्कारदाता को साक्षात्कार के प्रति कोई सन्देह न उत्पन्न होने पाए ।
( II ) सहयोग की प्रार्थना – उद्देश्य के स्पष्टीकरण के बाद साक्षात्कारदाता से सहयोग की प्रार्थना की जानी चाहिए । उसे इस बात का आश्वासन दिया जाना चाहिए कि उनके द्वारा बताई गई जानकारी को पूर्णतया गुप्त रखा जाएगा ।
( IV ) प्रश्न पूछना – साक्षात्कार का प्रारंभ सरल व सामान्य प्रश्नों से किया जाना चाहिए । गम्भीर व व्यक्तिगत प्रश्नों को बाद में पूछा जाना चाहिए । दोहरे व बहुअर्थक प्रश्नों के प्रयोग से बचना चाहिए ।
( V ) सहानुभूतिपूर्वक सुनना – साक्षात्कारदाता जो कुछ बतलाना चाहे उसको बड़े धैर्य व सहानुभूति से सुनना चाहिए । यदि साक्षात्कारदाता मूल विषय से बहक जाए तो बड़ी सावधानी से उसे अपने विषय पर लाना चाहिए ।
( VI ) प्रोत्साहन – साक्षात्कारदाता को बीच – बीच में कुछ प्रेरक वाक्यों से प्रभावित किए जाने चाहिए । जैसे – आपने तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात बताई है , आप कई नई तथ्यों को प्रकाश में लाए हैं . आदि – आदि ।
( VII साक्षात्कार का नियंत्रण एवं प्रमाणीकरण – साक्षात्कार को नियंत्रित करने से तात्पर्य यह है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि साक्षात्कारदाता गलत उत्तर व विरोधी बातें आदि न बतला सकें । ऐसा करने से साक्षात्कार प्रमाणीकृत व मानव स्तर का हो जाता है ।
( 3 ) साक्षात्कार की समाप्ति ( Closing of Interview ) : साक्षात्कार की समाप्ति मधुर वातावरण में होनी चाहिए । साक्षात्कारदाता साक्षात्कार के क्रम प्रसन्नता का अनुभव करे । यदि भविष्य में पुनः साक्षात्कार करना आवश्यक हो तो मूल साक्षात्कार उस समय बन्द करना चाहिए जबकि किसी महत्त्वपूर्ण बात पर वार्तालाप करना शेष रहा हो , ताकि अगले साक्षात्कार में वहीं से आरंभ किया जा सके । साक्षात्कार की समाप्ति पर उत्तरदाता के प्रति कृतज्ञता को अवश्य प्रकट किया जाना चाहिए ।
( 4 ) आलेखन ( Recording ) : संरचित साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचनाओं को तत्काल अनुसूची में लिखता जाता है । असंरचित साक्षात्कार में सूचनाओं को संक्षेप में नोट किया जा सकता है । इस संदर्भ में संकेत लिपि का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है । आजकल वैज्ञानिक उपकरणों – टेपरिकार्डर का उपयोग होने लगा है । साक्षात्कारकर्ता को उत्तरदाता के उत्तरों को अपने प्रतिवेदन में बिल्कुल उसी रूप में देने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए । उसे सदैव यह प्रयत्नशील रहना चाहिए कि प्रतिवेदन सत्य एवं पक्षपातरहित हो ।
साक्षात्कार के उद्देश्य
( Aims or objectives or Purpose of Interview )
। सामाजिक अनुसंधान में एक विधि के रूप में साक्षात्कार के उद्देश्यों पर विभिन्न विद्वानों ने अपने राय व्यक्त किरा है । लुण्डबर्ग ( Lundberg ) ने साक्षात्कार के दो मूल उद्देश्य बताए हैं –
( 1 ) तथ्य – संकलन और ( 2 ) उत्तरदाता के जीवन के भावात्मक पक्षों का अध्ययन ।
मैकोबी एवं मैकोबी ( Maccoby and Maccoby ) ने तीन उद्देश्यों का उल्लेख किया है – ( 1 ) प्राक्कल्पना की जाँच , ( 2 ) तथ्य संकलन और ( 3 ) अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं का सत्यापन ।
यंग ( Yound ) ने साक्षात्कार के चार उद्देश्य बताए है — ( 1 ) उत्तरदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी सूचना प्राप्त करना , ( 2 ) प्राक्कल्पना का निर्माण , ( 3 ) वैयक्तिक सूचना प्राप्त करना और ( 4 ) द्वितीयक तथ्यों का संकलन । ब्लैक एवं चैंपियन ( Black and Champion ) के अनुसार दो उद्देश्य बतलाए गए हैं – ( i ) विषय का विवरण देना और ( i ) अन्वेषण करना । विभिन्न विद्वानों की राय के आधार पर साक्षात्कार के मल उद्देश्यों को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है
आमने – सामने के सम्पर्क द्वारा सचना प्राप्त करना ( Receiving Information Through Face To Face Contact ) : साक्षात्कार का प्रथम उद्देश्य आमने – सामने के सम्पर्क के माध्यम से सूचना एकत्र करना ही इस विधि मदा या दो से अधिक व्यक्ति आमने – सामने का सम्बन्ध स्थापित करते हैं । फिर खलकर वार्तालाप करते हैं । अनुसंधानकर्ता उत्तरदाता को सचना देने के लिए प्रेरित करता है । इस प्रकार के सम्पर्क के फलस्वरूप उत्तरदाता को आन्तरिक भावना , संवेगों व धारणाओं आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
प्राक्कल्पनाओं का स्रोत ( Source of Hypothesis ) : साक्षात्कार से अनसंधानकर्ता को विभिन्न व्यक्तिया के विचारों , भावनाओं व मनोवृत्तियों आदि के बारे में जानकारी मिलती है । इससे व्यक्तिगत व सामहिक जीवन के बहुमूल्य पहलुओं का ज्ञान होता है । इस ज्ञान के आधार पर कई नई प्राक्कल्पनाओं का निर्माण करने में सफल होता है ।
गुणात्मक तथ्यों का संकलन ( Collection of Qualitative Facts ) : सामाजिक तथ्य मूल रूप से गुणात्मक होते हैं जो विचार , भावना व लोकविश्वास आदि के रूप में फैले होते हैं । ये व्यक्तिगत भी हो सकते हैं और सामूहिक भी । इसे साक्षात्कार विधि के द्वारा ही संकलित किया जा सकता है । क्योंकि अनुसंधानकर्ता अपनी उपस्थिति के कारण उत्तरदाता को सूचना देने के लिए प्रेरित करता है ।
अवलोकन का अवसर ( Opportunity for Observation ) : साक्षात्कार का उद्देश्य अवलोकन का भी अवसर प्रदान करना है । जब अध्ययनकर्ता किसी व्यक्ति के पास साक्षात्कार के लिए पहुँचता है तो वह न केवल साक्षात्कार ही लेता है , बल्कि सूचनादाता के हाव – भाव का अवलोकन भी करता रहता है ।
वर्णनात्मक उद्देश्य ( Descriptive Purpose ) : साक्षात्कार का प्रमुख उद्देश्य समस्या एवं विषय से सम्बन्धित प्राथमिक तथ्यों का संकलन करना है । इसके आधार पर विषय का विवरण प्रस्तुत किया जाता है । इसके लिए साक्षात्कार द्वारा वैयक्तिक आंकड़े , पृष्ठभूमि सम्बन्धी सूचनाएँ , व्यक्ति के जीवन का अंदरूनी तथ्य तथा राग – द्वेष आदि , सूचनाएं संकलित की जाती हैं ताकि समस्या व विषय के विभिन्न पक्षों का वर्णन किया जा सके ।
सहायक या पूरक विधि ( Supplementary Method ) : साक्षात्कार विधि का प्रयोग कभी – कभी अन्य विधियों की एक सहायक विधि के रूप में भी किया जाता है । एक सहायक विधि के रूप में साक्षात्कार का उद्देश्य अन्य विधियों से प्राप्त सामग्री का संयोजन करना तथा उनकी प्रामाणिकता की जाँच करना होता है ।
सत्यापन ( Verification ) : साक्षात्कार का उद्देश्य सत्यापन है । साक्षात्कार का प्रयोग अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं के सत्यापन के लिए भी किया जाता है ।