उत्तर आधुनिकता
लेस्ली फिल्डर एवं इहाब हस्तान ने 1960 में उत्तर आधुनिकता शब्द का उपयोग किया था । इसका व्यापक रूप से प्रयोग नृत्य , संगीत एवं समाज तथा संस्कृति से जुड़े विज्ञानों ने किया । उत्तर आधुनिकता के दो अर्थ स्पष्ट रूप से बताए गए हैं । प्रथम यह एक उपागम अथवा सिद्धान्त के रूप में अध्ययन का विशिष्ट परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है । दूसरे अर्थ में , उत्तर आधुनिकता वैकल्पिक समाज व्यवस्था के स्वरूप की = पावली प्रस्तुत करती है । इस व्यवस्था के आदर्श प्रारूप के अमूर्त निर्माण का यास किया गया है ।
उत्तर आधुनिकता पूँजीवादी देशों की जीवन पद्धति से जुड़ी है । इसका एक उद्देश्य आधुनिकता के जो तथ्य और सिद्धान्त हैं , उन्हें ध्वस्त करना है । छ विद्वानों का मत है कि उत्तर आधुनिकता एक प्रकार की अराजकता है जो माज के औद्योगिक उत्पादन उपभोक्तावाद से जुड़ जाती है , इसमें मानवीय ल्य व मानक को नकार दिया जाता है तथा उत्तर आधुनिकता के रास्ते में जो आता है उसे उत्तर आधुनिकता की विचारधारा रौंद देती है ।
उत्तर आधुनिकता के आलोचकों का मत है कि यह कोई सिद्धान्त नहीं है ल्कि यह एक विचार मात्र है । वर्तमान समय में समाज विज्ञान में उत्तर आधुनिकता एक फैशन के रूप में लोकप्रिय हो रही है उत्तर आधुनिकता शब्द । प्रयोग ही व्यक्ति को आधुनिकतम बना देता है अत : उत्तर आधुनिकता उस -1 के समान है जिसे किसी भी वस्तु पर लगाया जा सकता है । वास्तविकता यह कि उत्तर आधुनिकता एक तरह का फैशन है तो दूसरी ओर एक ऐसा छलावा । भ्रमजाल है जो एक व्यक्ति को कहीं का रहने नहीं देता । उत्तर आधुनिकता में विचारधारा वह है जो आधुनिकता के साथ जुड़े हुए सम्पूर्ण सामाजिक वरूपों को ध्वस्त करती है , इस तरह से उत्तर आधुनिकता , आधुनिकता को स्वीकार करती है । विचारकों का मत है कि उत्तर आधुनिकता एक संश्लेषणात्मक सिद्धान्त है सिका प्रतिपादन समाजशास्त्र में किया गया है ।
केलनर ने उत्तर आधुनिकता को व्यक्त करते हुए कहा है कि उत्तर बाधुनिकता का कोई एकीकृत सामाजिक सिद्धान्त हो ऐसा नहीं है फिर भी इसमें तर आधुनिकता के एकाधिक विभिन्न सिद्धान्तों का समावेश है । केलीनिक्स उत्तर आधुनिकतावाद सिद्धान्तवेत्ताओं ने जो परिभाषाएँ दी हैं नमें पारस्परिक असंगति अधिक है तथा आन्तरिक विरोध है और यह अस्पष्ट नद्धान्त है ।
मदन स्वरूप के विचार
उत्तर आधुनिकता को मदन स्वरूप ने निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया है ।
- कला दिन – प्रतिदिन के जीवन से भिन्न नहीं होती । और न ही कला कोई काल्पनिक जगत है , कला और समाज विज्ञान प्रतिदिन के जीवन से जुड़े
- उत्तर आधुनिकता सोपानिक विचारधारा को स्वीकार नहीं करती है । इसकी मान्यता है कि संस्कृति , संस्कृति है । इसे वर्गों में नहीं बाँटा जा सकता । इसकी दृष्टि में अभिजात या मध्यमवर्गीय संस्कृति अभिव्यक्ति की संस्कृति के समकक्ष है ।
- लियोटार्ड एवं उनके समर्थकों का मत है कि यह विचार की आधुनिकता को अस्वीकार करती है । 4. उत्तर आधुनिकता जीवन के सभी क्षेत्रों में फैली हुई है ।
- उत्तर आधुनिकता उन सिद्धान्तों की विरोधी है जो परम्परागत रूप में भव्य और विशाल समझे जाते हैं
उत्तर आधुनिकता के लक्षण:
वैज्ञानिक ज्ञान का विरोधी है
उत्तर आधुनिकतावादी ज्ञान का विरोध करते हैं । उनका मत है कि वैज्ञानिक मत सम्पूर्ण ज्ञान का प्रतिनिधित्व नहीं करता है । वैज्ञानिक ज्ञान मिथक की तरह सरकार को वैधता प्रदान करता है ।
वाणिज्य ज्ञान की प्रधानता
उत्तर आधुनिकता में वाणिज्य ज्ञान की प्रधानता होती है । वर्तमान समय में विज्ञान का उद्देश्य सत्य की खोज करना नहीं है । बल्कि इसका उद्देश्य निवेश की तुलना में उत्पादन के समीकरण को स्थापित करना है ।
वृतान्त ज्ञान का विरोधी
उत्तर आधुनिकता वृतान्त ज्ञान का विरोधी है । उत्तर आधुनिकतावादियों का मत है कि महान् या सत्य कहे जाने वाले वृत्तान्तों को कूड़ेदान में दो । वृत्तान्त ज्ञान उत्तर आधुनिकतावादियों को पसन्द नहीं है अत : वे उनका विरोध करते हैं । वृत्तान्त ज्ञान में कथाएँ , मिथक , लोकप्रिय कहानियाँ होती हैं । पोस्ट मॉडर्निटी कहती है कि ये वृत्तान्त समाज की रुढ़ियों , परम्पराओं तथा बुराइयों को मजबूती देते हैं ।
भाषा विज्ञान द्वारा भाषा का अध्ययन
उत्तर आधुनिकतावादियों का मत है कि भाषा एक ऐसा माध्यम है जो विचारों को अभिव्यक्ति देता है । इसलिए भाषा का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति अर्थात् भाषा विज्ञान द्वारा होना चाहिए । उत्तर आधुनिकतावादी अपना मतलब भाषा सम्बन्धी सिद्धान्तों से रखते हैं इसके पश्चात् संचार से जुड़ी समस्याओं पर विचार करते हैं । वर्तमान सन्दर्भ में भाषा का अधिकतम सम्बन्ध कम्प्यूटर से है जो एक आधुनिकतम तकनीक है वे संचार से जो सूचनाएँ मिलती है , उसका भण्डारण करते हैं । कम्प्यूटर का ज्ञान पर काफी प्रभाव पड़ा है । वर्तमान समय में कम्प्यूटर के कारण ज्ञान प्राप्त करने के ढंग तथा ज्ञान का वर्गीकरण मशीनों द्वारा होने लगा है । ज्ञान के रूपान्तरण के क्षेत्र में यह एक क्रान्तिकारी परिवर्तन है ।
मार्क्सवाद एवं प्रकार्य का विरोध
उत्तर आधुनिकतावाद मार्क्सवाद एवं प्रकार्यवाद का विरोधी है ल्योटार्ड का मत है कि आधुनिक समाज में मार्क्स के श्रमिकों की मुक्ति की बात , वर्गहीन समाज की कल्पना आदि विचार उत्तर आधुनिकतावादी युग में समाप्त हो गए हैं । मार्क्स की तरह ही पारसन्स , मर्टन तथा होमन्स के सिद्धान्त भी आज केवल वृत्तान्त मात्र हैं । मन उत्तर आधुनिकतावादी विचारक न तो मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्गहीन मासमाज में स्थापित हो सकता है और न ही पारसन्स द्वारा अपेक्षित मा सर्वसम्मति आ सकती है । लियोटार्ड तथा अन्य उत्तर आधुनिकतावादी विचारकों का मत है कि वर्तमान समाज व्यक्तिवादी और खण्डित है ।
ध्वंसात्मक प्रकृति
उत्तर आधुनिकता भी प्रकृति ध्वंसात्मक है और उत्तर आधुनिकतावाद का जन्म प्रतिक्रियात्मक है अत : विभिन्न सामाजिक विज्ञानों , कला , साहित्य , दर्शन आदि की जो सीमाएँ एवं उपसीमाएँ बनी हैं उसे उत्तर आधुनिकतावादी स्वीकार नहीं करते । उत्तर आधुनिकतावाद , मार्क्सवाद , नारीवाद तथा परम्परागत सिद्धान्तों को नए रूप में प्रस्तुत करता है और उत्तर आधुनिकतावाद इन सभी कृत्रिम सीमाओं को समाप्त कर समकालीन परिप्रेक्ष्य में व्यक्त करता है ।
प्रचलित सिद्धान्तों की अस्वीकृति
पोस्ट मॉडर्निटी विभिन्न ज्ञान शाखाओं में प्रचलित सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । उत्तर आधुनिकतावादियों का मत है कि इन सामाजिक विज्ञानों के प्रचलित सिद्धान्त केवल शब्दों का मायाजाल हैं । जो विचारकों की रूढ़िवादिता को बनाए रखना चाहते हैं ।
उत्तर आधुनिकतावाद आधुनिक कला को अस्वीकार करता है । कला के अनेक रूप ; जैसे – नृत्यकला , चित्रकला , संगीत , साहित्य आदि हैं । लियोटार्ड ने सम्पूर्ण कला , चित्रकला , नृत्यकला , साहित्यकला को उत्तर आधुनिकता के सन्दर्भ में देखा । वैज्ञानिक ज्ञान का विरोधी उत्तर आधुनिकतावाद
जॉर्ज रिट्जर ने सैद्धान्तिक क्षेत्र में उत्तर आधुनिकतावाद के चार प्रकार के संश्लेषण बनाए हैं
( i ) उत्तर आधुनिकतावाद विशाल एवं भव्य सिद्धान्तों को अस्वीकार करता
( ii ) उत्तर आधुनिकतावाद का प्रयास स्थानीय स्तर पर छोटे विचारों का संश्लेषण करना होता है ।
( iii ) उत्तर आधुनिकतावाद विभिन्न ज्ञान शाखाओं द्वारा बनाई गई सीमाओं का खण्डन करता है तथा एक नए विचारों को उत्पन्न
उत्तर आधुनिकता एवं आधुनिकता में अन्तर
- उत्तर आधुनिकतावादी विचारधारा आधुनिकतावादी विचारधारा के प्रतिक्रियास्वरूप पैदा हुई है । कुछ विद्वानों का मत है कि यह उत्तर आधुनिकता की ही अगली कड़ी है ।
- आधुनिकता के अन्तर्गत विशिष्टीकरण को महत्त्व दिया जाता है , जबकि आधुनिकता में सम्पूर्णवाद को महत्त्व दिया जाता है ।
- आधुनिकता में व्यक्तिवाद को महत्त्व दिया जाता है , जबकि उत्तर आधुनिकता में सामूहिकता को महत्त्व दिया जाता है । व्यक्तिवाद स्वकेन्द्रित एवं स्वार्थपरक है ।
- उत्तर आधुनिकता समाज को भिन्न विशेषताओं के आधार पर निर्मित करती है , यह विशेषताएँ आधुनिकता से भिन्न एवं विपरीत होती हैं ।
- आधुनिकता के अन्तर्गत तर्क को प्रधानता दी गई है . जबकि उत्तर आधुनिकता ने भावना को प्रधानता दी है ।
- आधुनिकता ने विज्ञान को महत्त्व दिया , जबकि उत्तर आधुनिकता मानवतावाद को महत्त्व देती है ।
- आधुनिकता को विवेकशीलता से जोड़ा जाता है , जबकि उत्तर आधुनिकता स्वविवेकी होती है तथा इसमें लचीलापन है ।
- आधुनिकता में प्रतिस्पर्द्धा को महत्त्व दिया गया , जबकि उत्तर आधुनिकता सहयोग को महत्त्व देती है
माइकल फोकाल्ट
(MICHEL FOUCAULT)
माइकल फोकाल्ट फ्रांस के विचारक हैं वह संरचनावाद एवं उत्तर संरचन आनुभविक अध्ययन किए ।
प्रमुख कृतियाँ
- The Birth of Clinic ( 1963 )
- Madness and Civilisation ( 1965 ) – The Order of Things ( 1966 ) –
The Archeology of Knowledge ( 1969 ) – Discipline and Punishment ( 1975 )
- The History of Sexuality , S2 Volts . ( 1976 )
- The Care of Self ( 1986 ) फोन भी
उत्तर आधुनिकतावाद एक तीव्र गति का परिवर्तन है । इसकी मान्यता है कि प्रचलित सैद्धान्तिक रचनाओं को तोड़कर नई रचनाओं को या नए सिद्धान्तों को बनाया जाए ।
उत्तर आधुनिकतावाद का उद्देश्य समाज के विषय में अधिक अच्छे विचारों को विकसित करना है ।
उत्तर आधुनिकतावाद समाजशास्त्र में प्रचलित सिद्धान्त के स्थान पर संश्लेषणात्मक सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है ।
फोकाल्ट यह जानना चाहते थे कि ज्ञान की उत्पत्ति के साथ – साथ लोग अपने तथा दूसरों पर शासन कैसे करते हैं ।
उन्होंने कहा कि ज्ञान के आधार पर ही लोग शासन करते हैं । फोकाल्ट की रुचि ज्ञान एवं शक्ति के बीच सम्बन्धों को जानने में थी ।
वह कहता है कि जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक ज्ञान है उसके पास शासन करने की भी उतनी ही शक्ति है ।
फोकाल्ट के विचारों पर वेबर के तार्किक के आर्थिक निर्धारणवाद से पूरी तरह सहमत नहीं हैं । फिर भी फोकाल्ट अनेक नाव था , विशेष रूप से उत्तर संरचनावाद पर ।
फोकाल्ट को उत्तर संरचनावादी के फोकाल्ट ने ज्ञान के समाजशास्त्र के क्षेत्र में बहुत कार्य किया । उन्होंने विचार , ज्ञान , बातचीत , वार्तालाप , प्रवचन , एवं भाषण आदि पर अनेक गवेषणात्मक कार्य किए ।
उन्होंने शक्ति के उद्गम एवं विकास पर भी कार्य किया जिसे शक्ति की वंशावली के नाम से जाना जाता है ।
फूको का उत्तर संरचनावाद व्यक्तिनिष्ठता को त्यागकर वस्तुनिष्ठता को अपनाता है । अत : यह लेवी स्ट्रॉस के संरचनावाद से भिन्न है ।
संरचनात्मक एवं उत्तर आधुनिकता अपने सिद्धान्तों में फोकाल्ट ने वेबर के लौह पिंजरे सम्बन्धी विचार को नकारा , जहाँ मार्क्स ने सम्पूर्ण समाज के स्तर पर शक्ति संरचना की बात की है , वहीं फोकाल्ट की रुचि शक्ति की सूक्ष्म स्तरीय राजनीति के अध्ययन में रही है ।
जैक्स डेरिडा
संरचनावादियों के विपरीत विशेष रूप से उन लोगों के विपरीत जिन्होंने भाषा की संरचना के आधार पर इस उपागम को स्पष्ट करने का प्रयास किया ।
फ्रांस के समाजशास्त्री जेक्यूस डेरिडा ने उत्तर संरचनावाद व उत्तर आधुनिकता के बारे में अपने महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किए । उन्होंने 1966 में इस उपागम का नेतृत्व किया ।
डेरिडा ने भाषा को लेखन तक ही सीमित किया । डेरिडा ने विविध विषयों पर ढेर सारा साहित्य सृजित किया , लेकिन उनके उत्तर संरचनावादी और विखण्डनवादी दर्शन ने पश्चिमी विचाराधारा में हलचल पैदा की ।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि डेरिडा द्वारा 1966 में दिए गए एक व्याख्यान से उत्तर संरचनावाद का जन्म हुआ । इस व्याख्या में डेरिडा ने संरचनावाद के संक्रमण को निरूपित किया था तथा एक नवीन उत्तर संरचनावादी काल के उदय को रेखांकित किया । दरअसल डेरिडा का उत्तर आधुनिकतावादी विश्लेषण उनकी विखण्डतावादी अवधारणा पर ही आधारित है ।
प्रमुख कृतियाँ
Speech and Phenomena ( 1973 ) )
Of Grammatology ( 1976 ) .
Writing and Difference ( 1978 )
Margins of Philosophy ( 1981 )
.Circumsfession ( 1993 )
Spectres of Marx ( 1994 ) .
उत्तर आधुनिकता के विषय में डेरिडा लिखते हैं कि पुरातन और नवीन का सम्बन्ध अनिरन्तर नहीं हो सकता । यह एक ऐसा विचार है जिसमें पुरातन और नवीन दोनों दृष्टिकोणों में ही परिवर्तन आ जाता है ।
विखण्डनवाद पर आधारित उत्तर आधुनिकता वस्तुत : एक प्रघटनाक्रियावाद है , जिसकी शुरूआत साहित्य , कला , फिल्म आदि से हुई है , किन्तु बाद में इसने समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के पक्षों को प्रभावित किया ।
डेरिडा के विखण्डनवाद ने विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों के पूर्व स्थापित पारम्परिक ग्रन्थों पर सर्वाधिक प्रहार किया है ।
विखण्डनवाद के अनुसार समाजशास्त्रीय ग्रन्थ सामाजिक यथार्थ को प्रकट नहीं करते हैं । अत : विखण्डनवाद इन सामाजिक ग्रन्थों में निहित अर्थ को खोजने और उसका विवेचन करने पर बल देता है ।
फोकाल्ट के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए अध्ययन संरचनावाद से सम्बन्धित हैं । संरचनावाद ने समाजशास्त्र में उन सिद्धान्तों को प्रवेश दिया जो भाषा विज्ञान एवं मानव विज्ञान से जुड़े हैं ।
( Jacques Derrida ) डेरिडा कहते हैं कि विखण्डनवाद न कोई विधि है और न ही कोई सुविचारित निर्णय । यह तो अनिर्मित , अशिष्ट अभिव्यक्ति तथा खुलेपन का विशिष्ट नामकरण है । जो अपनी महत्ता सन्दर्भ से ग्रहण करता है ।
डेरिडा अपने उत्तर संरचनावाद में कहते हैं कि भाषा का अर्थ किसी मूर्त वास्तविकता में नहीं खोजा जा सकता है अपितु भाषा के सन्दर्भ में खोजा जा सकता है , जिसकी रचना सामाजिक रूप से होती है ।
विखण्डन विधि द्वारा यह स्पष्ट किया जा सकता है कि किस भाषा का प्रयोग उत्पीड़न – शोषण हेतु किया जाता है ।
आलोचक कहते हैं कि डेरिडा का विखण्डनवादी विश्लेषण मार्क्सवाद को नकारता है । इस प्रकार कई बार डेरिडा को मार्क्स विरोधी कहा गया लेकिन डेरिडा का मत है कि विखण्डनवाद का उद्देश्य मार्क्सवाद तक पहुँचना हो वे मार्क्सवाद के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं ।