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2011 के अनुसार भारत की जनगणना का विस्तृत वर्णन

 

2011 के अनुसार भारत की जनगणना का विस्तृत वर्णन

 

जनसंख्या आकार एवं वृद्धि दरें

 

 ( Population Size and Growth Rates )

जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारतीय जनसंख्या का आकार बराबर बढ़ रहा है । भारत की पहली जनगणना 1872 में की गयी थी और उसके अनुसार उस समय भारत की जनसंख्या 25.4 करोड़ थी जो 140 वर्षों में बढ़कर 2011 की जनगणना के अनुसार 121.02 करोड़ हो गई है । त्रयो 1901 के उपरान्त जनसंख्या की वृद्धि इस प्रकार हुई है— 1901 में 23.8 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर शून्य ; 1911 में 25.2 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 0.56 प्रतिशत ; 1921 में 25.1 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 0.03 प्रतिशत ; 1931 में 27.9 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.04 प्रतिशत ; 1941 में 31.9 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.33 प्रतिशत ; 1951 में 36.1 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.25 प्रतिशत ; 1961 में 43.9 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.96 प्रतिशत : 1971 में 54.8 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत ; 1961 में 43.9 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.96 प्रतिशत ; 1971 में 54.8 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत ; 1981 में 68.3 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत ; 1991 में 84.64 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 2.14 प्रतिशत ; 2001 में 102.87 करोड़ , वार्षिक वृद्धि दर 1.95 प्रतिशत ; 2011 में 121.02 करोड़ । D उपर्युक्त विवरण इस बात को स्पष्ट करता है कि प्रारम्भ में जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी थी , लेकिन बाद में इसमें तीव्र गति से वृद्धि हुई है , परन्तु अब इसमें कमी होने लगी है ।

 

 

 

 भारत में जनगणना , 2011 ( Census in India , 2011 )

 

 

 

 

नगरों में जनसंख्या के स्थानान्तरण के कारण

 

 उद्योगों का विकास – उद्योग ऐसे स्थानों पर स्थापित होते हैं जहाँ पहले से विद्युत् , पानी , सड़के , रेल व संचार जैसी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं । यह सभी सुविधाएँ शहरों में या उनके आसपास होती हैं । अत : ग्रामीण उन उद्योगों में रोजगार पाने के लिए शहरों में आने लगते हैं । इससे शहरों में जनसंख्या वृद्धि होने लगती है ।

 

 

 गाँवों में सुरक्षा की कमी – गाँवों में आपसी मनमुटाव या सुरक्षा की कमी होने से डाके की आशंका के फलस्वरूप ग्रामीण गाँव से भागकर शहरों में आ जाते हैं और स्थायी रूप से बस जाते हैं । इससे शहरी जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है ।

 

 

गाँवों में स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाओं का अभाव – गाँवों में स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव पाया जाता है । अतः सम्पन्न ग्रामीण परिवार अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने व स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों

भारत में जनगणना 2011 से पलायन कर जाते हैं और शहरों में आकर बस जाते हैं । इससे भी शहरी जनसंख्या बढ़ जाती है ।

 

 

गाँवों में रोजगार सुविधाओं का अभाव- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुविधाएँ सीमित मात्रा में ही होती है । अतः ग्रामीण व्यक्ति रोजगार प्राप्त करने के लिए शहरी क्षेत्रों में आ जाते हैं । इससे भी शहरों में जनसंख्या बढ़ जाती है ।

 

 

 जमींदारी प्रथा की समाप्ति स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में जमींदारी समाप्त करने की प्रथा चलने के कारण जमींदारी ने गाँवों को छोड़कर शहरों में बसना प्रारम्भ कर दिया । इससे भी शहरी जनसंख्या की वृद्धि हुई है ।

 

 

शहरों का आकर्षण- शहरों में मनोरंजन सुविधाएँ होने तथा ग्रामीण युवकों का शहरों की ओर आकर्षण भी शहरों में जनसंख्या वृद्धि का कारण है । कोई भी ग्रामीण युवक जो थोड़ा सा भी पढ़ा – लिखा है गाँव में नहीं रहना चाहता है ।

 

 

देश विभाजन व भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों का आगमन – 1947 में देश का विभाजन हुआ जिससे लाखों हिन्दू पाकिस्तान से आए और वे रोजगार की तलाश में शहरों में ही बस गए । इससे भी शहरी जनसंख्या की वृद्धि हुई । कई बार भारतीय मूल के | निवासियों को विदेशी सरकारों ने अपने देश से निकाला । वे भी भारत में आकर शहरों में ही बस गए । इससे भी जनसंख्या का शहरों में विकास हुआ । भारत में नगरों में रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ा है जो वर्तमान में 32 है जबकि रूस में 77 प्रतिशत , अमेरिका में 77 प्रतिशत जापान में 79 प्रतिशत , कनाडा में 77 प्रतिशत , ऑस्ट्रेलिया में 86 प्रतिशत व ब्रिटेन में 89 प्रतिशत व्यक्ति शहरों में रहते हैं ।

 

2011 की जनगणना के अनुसार देश में ग्रामीण जनसंख्या का सर्वाधिक भाग हिमाचल प्रदेश ( 89.96 % ) तथा सबसे कम भाग तमिलनाडु ( 51.55 % ) में है । बिहार में 88.7 % , असम में 85.92 % , उड़ीसा में 83.32 % तथा उत्तर प्रदेश में 77.72 % जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में है । मध्य प्रदेश में ग्रामीण जनसंख्या 72.37 % है । छत्तीसगढ़ में 76.76 % तथा झारखण्ड में 75.95 % जनसंख्या गाँवों में रहती है । कुल मिलाकर 2011 की जनगणना के अनुसार देश की 121.02 करोड़ की जनसंख्या में 83.31 करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में और 37.71 करोड़ शहरी क्षेत्रों में निवास करती है । भारत में कुल 6,40,867 गाँव हैं । सर्वाधिक गाँव 1,06,704 उत्तर प्रदेश में हैं । मध्य प्रदेश में 54,903 और बिहार में 44,874 गाँव हैं । सबसे कम गाँव 112 दिल्ली में हैं । इसके अतिरिक्त हरियाणा में 6,841 , महाराष्ट्र में 43,663 , राजस्थान में 44,672 , आन्ध्र प्रदेश में 27,800 , कर्नाटक में 29,340 व गुजरात में 18,539 गाँव हैं ।

 

 

नगरीकरण की समस्याएँ अथवा नगरीकरण का प्रभाव

 

नगरीकरण की गति बढ़ने के कारण देश में अनेक समस्याएँ पैदा हो गयी है जिसमें निम्न प्रमुख हैं । इन्हीं को नगरीकरण का प्रभाव भी कहते हैं ।

 

शिक्षा– तीसरी समस्या शिक्षा की है । शहरों में शिक्षा सुविधा मांगने वालों की संख्या बराबर बढ़ रही है , लेकिन स्कूल व कॉलेजों की संख्या सीमित है तथा वहाँ प्रवेश के स्थान भी सीमित हैं । इससे यहाँ अनेक युवक प्रवेश पाने से वंचित रह जाते हैं ।

 

बेरोजगारी- शहरों की चौथी समस्या बेरोजगारी की है । यहाँ बेरोजगारी भी तेज गति से बढ़ रही है । वर्ष 2007 के अन्त में शहरों के रोजगार कार्यालयों में 3 करोड़ 99 लाख से अधिक व्यक्तियों के नाम रोजगार चाहने वालों के रूप में पंजीकृत थे ।

 

 गन्दी बस्तियाँ- जनसंख्या के बढ़ने से शहरों में स्थान – स्थान पर गन्दी बस्तियाँ बन गयी हैं जहाँ न तो पीने के पानी की सुविधा है और न सड़क व सफाई , आदि की । साथ ही गन्दी बस्तियाँ विभिन्न प्रकार के अपराध करने के स्थान बन गये हैं जिससे पुलिस प्रशासन का कार्य कठिन हो गया है ।

 

शान्ति व्यवस्था – नगरों में शान्ति बनाए रखना एक समस्या बन गयी है । कभी कारखानों में हड़ताल होती है तो कभी राजनीतिक दलों की रैलियाँ या जेल भरो आन्दोलन या धरना , तो कभी मालिकों द्वारा तालेबन्दी । इन सबसे शहरों की शान्ति भंग हो जाती है । और अव्यवस्था फैल जाती है ।

 

 

 मकानों की समस्या – नगरीकरण तेज गति से होने कारण शहरों में मकानों की समस्या पैदा हो गयी है जिसके कारण लाखों व्यक्ति सड़कों के किनारे रह रहे हैं । इसका कारण मकानों का उस गति से न बनना है जिस गति से नगरों में जनसंख्या बढ़ रही है । इससे नगरो में मकानों का किराया कई गुना बढ़ गया है ।

 

  स्वास्थ्य सेवाएँ – नगरों में जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण दूसरी समस्या स्वास्थ्य सेवाओं की पैदा हो गयी है । यद्यपि शहरों में अस्पताल हैं लेकिन जनसंख्या को देखते हुए वहाँ पर डॉक्टरों की संख्या व अन्य सुविधाएँ कम ही हैं ।

 

 

 साक्षरता अनुपात ( Literacy Ratio ) जिस देश में साक्षरता अनुपात जितना अधिक होगा उतना ही उस देश के विकास में सुविधा मिलेगी । चेस्टर बोल्स के अनुसार , “ प्राकृतिक शक्तियों के नियन्त्रण और संरूपण तथा एक व्यवस्थित , प्रावैगिक और न्याय पर आधारित समाज के निर्माण में जो विभिन्न उपकरण सहायक होते हैं , उनमें शिक्षा सबसे शक्तिशाली उपकरण है । ” इस दृष्टिकोण से हमारे देश में स्थिति सन्तोषजनक नहीं है , यद्यपि यहाँ साक्षरता के प्रतिशत में बराबर वृद्धि हो रही है । 1951 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत 18.33 था जो 1961 में बढ़कर 28.30 , 1971 में 34.45 , 1981 में 43.57 , 1991 में 52.21 , 2001 में 64.8 और 2011 में 74.04 हो गया । इस प्रकार पिछले 50 वर्षों में साक्षरता दर में चार गुने की वृद्धि हुई है । साक्षरता के अनुपात के सम्बन्ध में अन्य विशेषताएँ निम्न प्रकार

 

स्त्रियों की साक्षरता दर पुरुषों की साक्षरता दर से कम – स्त्रियों की • साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है । 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 65.45 प्रतिशत जबकि पुरुषों की 82.14 प्रतिशत है ।

 

 ग्रामीण क्षेत्रों व शहरी क्षेत्रों की साक्षरता दर में अन्तर- ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है ।

 

 विभिन्न राज्यों की साक्षरता प्रतिशत में अन्तर- देश के भिन्न – भिन्न राज्यों में साक्षरता काप्रतिशत एक – सा नहीं है । 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में केरल राज्य ऐसा राज्य है जहाँ साक्षरता का प्रतिशत 93.91 है जो सबसे ऊँचा है । भारत में सबसे कम साक्षरता बिहार में है जिसका साक्षरता प्रतिशत 63.82 है । शेष सभी राज्यों का साक्षरता प्रतिशत इन दोनों सीमाओं के बीच है । उत्तर प्रदेश में साक्षरता दर 69.72 % है , जो पुरुषों में 79.24 % तथा महिलाओं में 59.26 % है ।

 

 प्रत्याशित आयु ( Life Expectancy ) प्रत्याशित आयु से अर्थ जीवित रहने की आयु से है जिसे देश के निवासी जन्म के समय आशा कर सकते हैं । इसी बात को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक देश में ” एक बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके कितने वर्ष तक जीवित रहने की आशा की जाती ‘ है ? इस जीवित रहने की आशा को ही प्रत्याशित आयु या औसत आयु कहते हैं । यदि मृत्यु दर ऊँची होती है या मृत्यु कम आयु पर हो जाती है तो प्रत्याशित आयु कम होती है । इसके विपरीत , यदि मृत्यु दर नीची होती है तो व्यक्तियों की आयु अधिक होती है और इस प्रकार प्रत्याशित आयु भी अधिक होती है । लगभग 100 वर्ष पूर्व भारत में प्रत्याशित आयु 24 वर्ष थी लेकिन इसमें धीरे – धीरे वृद्धि हो गयी है । गत वर्षों की प्रत्याशित आयु इस प्रकार रही— 1911 में 24 वर्ष , 1951 में 32.1 वर्ष , 1971 में 46.4 वर्ष व 1991 में 58.7 वर्ष तथा वर्तमान ( 2010-11 ) में 66.1 वर्ष ।

 

भारत में प्रत्याशित आयु बढ़ी है जो 100 वर्षों में ढाई गुने से भी अधिक हो गयी है । इसके बढ़ने के कारण सामान्य मृत्यु दर व बाल मृत्यु दर में तेजी से कमी होना है जो शिक्षा , चिकित्सा सुविधाओं , रहन – सहन स्तर में वृद्धि , आदि का परिणाम है , लेकिन फिर भी भारत की प्रत्याशित आयु अन्य देशों की तुलना में काफी कम है , जैसे प्रत्याशित आयु जापान में 83 , स्विट्जरलैण्ड में 82 व कनाडा में 81 , अमेरिका में 78 , ब्रिटेन में 80 एवं चीन में 73 वर्ष है । 102 7. जन्म – दर व मृत्यु दर ( Birth Rate And Death Rate ) जन्म – दर ( Birth Rate ) – जन्म – दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे बच्चों के जन्म से है , भारत में जन्म – दर में बराबर कमी होती रहती है । 1910-11 के मध्य यह दर 49.2 प्रति हजार थी जो 1961-71 के मध्य होकर 41.7 प्रति हजार हो गयी , लेकिन विभिन्न परिवार नियोजन कार्यक्रमों के अपनाने से इसमें और कमी हुई है । अतः यह 1990-91 के मध्य 29.5 प्रति हजार रही है जबकि वर्तमान वर्ष 2010-11 में यह 21.8 प्रति हजार है । यह अन्य देशों की तुलना में काफी ऊँची है औसत जन्म – दर ऑस्ट्रेलिया में 15 प्रति हजार , जर्मनी में 10 प्रति हजार , ब्रिटेन में 13 प्रति हजार , अमेरिका में 16 प्रति हजार , कनाडा में 15 प्रति हजार व फ्रांस में 13 प्रति हजार है ।

 

 

भारत में ऊँची जन्म – दर के कारण

( Reasons of High Birth Rate in India )

 

विवाह की अनिवार्यता- भारत में विवाह करना एक अनिवार्यता मानी जाती है और माता – पिता इस कार्य को करना अपना सामाजिक उत्तरदायित्व मानते हैं । यहाँ विवाह एक धार्मिक क्रिया भी माना जाता है ।

 

 

 ईश्वरीय देन- भारत में सन्तान एक ईश्वरीय देन मानी जाती है और इसकी प्राप्ति को अपने भाग्य की देन मानते हैं । अतः अधिकांश जनसंख्या का सन्तान निरोधक उपायों पर विश्वास नहीं है ।

 

मनोरंजन साधनों का अभाव – अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है जहाँ मनोरंजन के साधन नहीं होते हैं अतः लोग यौन सम्पर्क को ही मनोरंजन मानते हैं , इससे जनसंख्या में वृद्धि होती है । तुलना

 

 

निम्न आय व निम्न जीवन स्तर भारत में प्रति व्यक्ति आय अन्य देशों की में काफी कम है । इसी कारण यहाँ जीवन स्तर भी निम्न है । अधिक सन्तान होने से आय वृद्धि होती है व जीवनस्तर सुधरता है क्योंकि भारत में 7-8 वर्ष का बच्चा भी अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगता है ।

 

 

जलवायु ( Climate ) – भारतीय जलवायु गरम है जिसके कारण भारतीय स्त्रियों की प्रजनन शक्ति अधिक है ।

 

 

ग्रामीण क्षेत्रों में निरोधक सुविधाओं की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भ धारण को रोकने के लिए आवश्यक चिकित्सा व अन्य सुविधाओं का अभाव है । मृत्यु दर ( Death Rate ) मृत्यु दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृत्युओं की संख्या से है । इस दर में काफी कमी हुई है । 1911-20 के मध्य यह दर 47.7 थी जो 1950-51 के बीच 27.4 व 1990-91 के बीच 12.5 रह गयी तथा जो वर्तमान ( वर्ष 2010-11 ) में 7.1 है । यह भी अन्य देशों की तुलना में ऊँची है ।

 

 

  सामाजिक विश्वास – भारतीय समाज में विशेष रूप से हिन्दुओं में यह धारणा है कि पुत्र अवश्य होना चाहिए । अतः कई लड़कियों के जन्म के बाद भी सन्तान उत्पत्ति करते हैं । साथ ही जिस गृहिणी के कोई सन्तान नहीं होती है उसको समाज में अच्छा स्थान नहीं मिलता है ।

 

 

 पारिवारिक मान्यता- भारत में बड़ा परिवार सामाजिक सुरक्षा व समृद्धि का द्योतक माना जाताहै और समाज में ऐसे व्यक्ति को अच्छा स्थान मिलता है ।

 

 

बाल विवाह – भारत में कम उम्र में ही शादी या विवाह कर दिया जाता है । इससे छोटी उम्र में ही बच्चे पैदा होना आरम्भ हो जाता है और माँ बच्चे उत्पन्न करने की अवधि लम्बी हो जाती है ।

 

 

 

 

 मृत्यु दर की कमी के कारण

 ( Reasons of Reduction in Death Rate )

 

— भारत में मृत्यु दर में कमी के कई कारण हैं , लेकिन इनमें प्रमुख हैं-

 1 . अकालों व महामारियों में कमी , 2. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रमों का विस्तार , 3. स्त्रियों की शिक्षा में वृद्धि , 4. विवाह आयु में वृद्धि , 5. मनोरंजन साधनों का विस्तार , 6. अन्धविश्वास में कमी , 7. शहरीकरण , 8 जीवन स्तर में वृद्धि ।

 

 

 जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण

( Occupational Distribution of Population )

 

जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण से अर्थ कुल जनसंख्या के उस अनुपात से है जिसमें जनसंख्या विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगी है । दूसरे शब्दों में कुल जनसंख्या विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में किस अनुपात में लगी है इसी को जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण कहते हैं । कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात भिन्न – भिन्न देशों में भिन्न – भिन्न है तथा एक ही देश में अलग – अलग समयों पर अलग – अलग है । इसके प्रमुख कारण हैं — प्रत्याशित आयु , रोजगार अवसरों की उपलब्धि , कार्य के प्रति जनता का दृष्टिकोण , आदि । भारत की कार्यशील जनसंख्या वर्तमान में 39.2 प्रतिशत है । यह प्रतिशत पिछले दशकों में घटता – बढ़ता रहा है । 1901 में कार्यशील जनसंख्या 46.6 प्रतिशत थी जबकि 1931 में 42.4 प्रतिशत , 1961 में 43 प्रतिशत ।

यदि हम अन्य देशों से भारत की कार्यशील जनसंख्या की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि हमारा प्रतिशत जो 39.2 है , वह बहुत ही कम है ; जैसे जर्मनी की 73 प्रतिशत , जापान की 50 प्रतिशत , इंग्लैण्ड की 45 प्रतिशत तथा फ्रांस की 43 प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील 104 भारत में कुल श्रमिकों का 58.2 प्रतिशत कृषि व उससे सम्बन्धित व्यवसाय में , शेष खनन व निर्माणी उद्योग तथा सेवाओं ( जैसे- परिवहन , संचार , व्यापार , वाणिज्य व अन्य सेवाएँ , आदि ) में लगा हुआ है । भारत की जनगणना 2001 के अनुसार देश में 31.7 % काश्तकार , 26.5 % खेतिहर मजदूर , 4.2 % पारिवारिक उद्योग कर्मी तथा 37.6 % अन्य कर्मी हैं । व्यावसायिक वितरण एवं आर्थिक विकास- यदि किसी देश की कुल जनसंख्या का एक बहुत बड़ा प्रतिशत कृषि पर निर्भर रहता है तो वह देश आर्थिक विकास की निम्न अवस्था में माना जाता है । इसके विपरीत , यदि किसी देश में कृषि पर बहुत कम प्रतिशत निर्भर करता है तो वह देश विकसित माना जाता है ।

 

गैर – कृषि क्षेत्रों में रोजगार की कमी होना – यह भी एक तथ्य है कि गैर – कृषि क्षेत्रों में रोजगार की कमी होने से लोगों को कृषि पर ही निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि गैर – कृषि क्षेत्रों में रोजगार सुविधाओं का अभाव ही रहता है । किन्तु आर्थिक विकास के साथ – साथ दशाएँ बदलने लगती हैं । प्राथमिक क्षेत्र में उत्पादन बढ़ने लगता है । श्रमिक निर्माण उद्योगों की ओर जाने लगते हैं क्योंकि विकास के साथ – साथ उनकी आय बढ़ती है । इससे उद्योग – निर्मित वस्तुओं के लिए माँग भी तेजी से बढ़ती है , जिससे उद्योगों का विस्तार होकर वहाँ रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं । निर्माण क्षेत्र की उन्नति के साथ – साथ बैकिंग , बीमा , परिवहन , आदि क्षेत्रों का भी तेजी से विकास होने लगता है , फलस्वरूप इस क्षेत्र में संलग्न कार्यशील जनसंख्या का अनुपात बढ़ने लगता है ।

 

कुछ विद्वानों का कहना है कि भारत में कृषि क्षेत्र से श्रमिकों को हटाकर उद्योगों व सेवाओं में लगाया जाना चाहिए क्योंकि कृषि में लगभग एक – चौथाई व्यक्ति फालतू है जो कृषि उत्पादन में कोई महत्त्वपूर्ण योगदान नहीं देते हैं । ऐसा होने से प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी , राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी , उत्पादन बढ़ेगा , जीवन – स्तर में वृद्धि होगी , देश में गरीबी व बेरोजगारी कम होगी । भारत में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और अनुमान है कि लगभग 60 लाख व्यक्ति प्रति वर्ष श्रम – बाजार में प्रवेश करते हैं । देश की प्रत्याशित आयु बराबर बढ़ रही है । इन सबसे रोजगार चाहने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है । अतः उद्योगों व सेवाओं के क्षेत्र में विस्तार किया जाना चाहिए । इससे कृषि क्षेत्र में श्रमिकों का अनुपात धीरे – धीरे कम हो जाएगा ।

. मनोरंजन साधनों का अभाव – अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है जहाँ मनोरंजन के साधन नहीं होते हैं अतः लोग यौन सम्पर्क को ही मनोरंजन मानते हैं , इससे जनसंख्या में वृद्धि होती है । तुलना

 

 

निम्न आय व निम्न जीवन स्तर भारत में प्रति व्यक्ति आय अन्य देशों की में काफी कम है । इसी कारण यहाँ जीवन स्तर भी निम्न है । अधिक सन्तान होने से आय वृद्धि होती है व जीवनस्तर सुधरता है क्योंकि भारत में 7-8 वर्ष का बच्चा भी अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगता है ।

 

 

 

 

इसी प्रकार यदि कोई देश विकास की ओर अग्रसर होता है तो उसकी जनसंख्या का कृषि व अन्य प्राथमिक व्यवसायों पर प्रतिशत कम होता जाता है । आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कार्यशील जनसंख्या का सर्वाधिक अनुपात प्राथमिक क्षेत्र में संलग्न होने के कई कारण हैं , जैसे-

 

 

अविकसित या अल्प – विकसित देशें में खाद्य सामग्री का उत्पादन कम होना इसलिए यहाँ अधिकांश जनसंख्या न्यूनतम भोजन आवश्यकता को ही पूरा करने हेतु कृषि कार्य में संलग्न रहने के लिए विवश होती है ।

 

 

 

 आवश्यक आयातों के भुगतान के लिए कच्चे पदार्थों का निर्यात किया जाना— अनेक अल्प – विकसित देशों को अपने आयातों का भुगतान करने के लिए कृषि उपज व खनिज पदार्थों का निर्यात करना पड़ता है । इस कारण से भी वहाँ जनसंख्या का अधिकतर भाग प्राथमिक क्षेत्रों में ही लगा रहता है ।

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