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साक्षात्कार विधि का महत्त्व या गुण

साक्षात्कार विधि का महत्त्व या गुण या लाभ या उपयोगिता

( Importance or Merits of Interview Method )

 

 सामाजिक अनुसंधान एवं सर्वेक्षण में साक्षात्कार विधि कई रूपों में उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है । इसके माध्यम से लोगा की मनोवृत्तियों व गुणात्मक सामाजिक तथ्यों को समझने में सरलता होती है । साथ ही इसमें अवलोकन का भी लाभ मिल जाता है । इसकी महत्ता को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है ।

 तथ्य संकलन की प्रत्यक्ष विधि ( Direct Method of Data Collection ) : साक्षात्कार मूलतः तथ्य संकलन की एक प्रत्यक्ष विधि है । इसमें अनुसंधानकर्ता एवं सचनादाता दोनों आमने – सामने के सम्बन्ध में होते हैं । अनुसंधानकत्ता प्रश्न करता जाता है और सचनादाता उत्तर देता जाता है । इस प्रकार साक्षात्कार में प्रत्यक्ष रूप से पछकर जानकारी प्राप्त की जाती है । इस रूप में इसमें अवलोकन के गुणों का भी लाभ मिल जाता है । साथ ही प्राथमिक सूचनाओं की जानकारी सम्भव हो पाती है ।

  गहन एवं विस्तृत सूचनाओं का संकलन ( Collection of Intensive and Detailed Information ) : मानव व्यवहार के गूढतम प्रक्रियाओं एवं उसके अन्तर्गत के रहस्यों को समझने के लिए साक्षात्कार एक महत्त्वपूर्ण विधि है । व्यक्ति के जीवन की बीती घटनाएं , उसकी प्रतिक्रियाएँ , अभिवृत्तियाँ , भविष्यकालीन योजनाओं , आशाओं व आकांक्षाओं आदि की जानकारी साक्षात्कारकर्ता उत्तरदाता से विशेष सम्बन्ध बनाकर व पूछकर प्राप्त कर सकता है । साथ ही यौन व्यवहार , गोपनीय एवं व्यक्तिगत जीवन के कई पक्षों की जानकारी साक्षात्कार द्वारा ही संभव है ।

 अधिक अर्थपूर्ण सूचनाएँ ( More Meaningful Information ) : साक्षात्कार में अनुसंधानकर्ता उत्तरदाता से प्रश्न का उत्तर प्राप्ति के साथ – साथ अवलोकन भी करता है । इस प्रकार इसमें सूचनाओं का संदर्भ भी देख सकता है । वह यह भी निरीक्षण करता है कि उत्तरदाता के भाव व मुद्रा आदि क्या है । जी० एच० मीड ( G . H . Mead ) ने इसीलिए साक्षात्कार को केवल वार्तालाप नहीं कहा है , बल्कि उनके अनुसार साक्षात्कार शारीरिक चेष्टाओं व मुद्राओं की अन्त : क्रिया है । इस तरह अवलोकन के साथ साक्षात्कार द्वारा संकलित तथ्य अधिक अर्थपूर्ण एवं वैध बन जाते हैं ।

लचीलापन ( Flexibility ) : साक्षात्कार का एक खास महत्त्व इसमें लचीलापन का होना है । इसमें प्रश्न करने में लचीलापन होता है यानि इसमें उपयुक्त परिस्थिति के अनुसार समायोजन किया जा सकता है । जैसे साक्षात्कारकर्ता कुछ प्रश्नों के बारे में अधिक पूछ सकता है , उसे दुहरा सकता है , भ्रम उत्पन्न होने पर या भाषा की कठिनाई होने पर , वह उसकी व्याख्या कर सकता है । वह जरूरत पड़ने पर नए प्रश्न सम्मिलित कर सकता है या कुछ प्रश्न छोड़ सकता है ।

 तथ्यों का सत्यापन ( Verification of Facts ) : साक्षात्कार द्वारा प्राप्त उत्तरों की जाँच बहुत अधिक सीमा तक सम्भव होती है । इस विधि में विषय पर स्वतंत्र रूप से खुलकर विचारों का स्पष्टीकरण किया जाता है । इसलिए एक बार कही गई बात की सत्यता उसके स्पष्टीकरण में प्रकट हो जाती है । दूसरी ओर , साक्षात्कार में उत्तरदाता जो सूचना देता है उसकी सत्यता में सन्देह होने पर साक्षात्कारकर्ता अन्य प्रश्न करके सच्चाई की जाँच कर सकता है ।

 नियंत्रण ( Control ) : साक्षात्कार में प्रश्नों और उत्तरों के संदर्भ में नियंत्रण करना सम्भव है । इसके अन्तर्गत साक्षात्कारकर्ता तथ्य – संकलन की प्रक्रिया पर नियंत्रण रख सकता है , जिसके कारण साक्षात्कार अधिक प्रामाणिक एवं एकरूप विधि हो जाती है । इसमें अनुसंधानकर्ता यह जाँच कर सकता है कि तथ्य – संकलन की प्रक्रिया सही वातावरण में गोपनीय ढंग से चल रही है , सही उत्तरदाता ही प्रश्नों का उत्तर दे रहा है आदि ।

 पारस्परिक प्रेरणा ( Mutual Motivation ) : साक्षात्कार में दो या अधिक व्यक्तियों के आमने – सामने की स्थिति में सूचना प्राप्त करना होता है । ऐसी स्थिति में एक की उपस्थिति से दूसरा प्रेरित एवं उत्साहित होता है । इस प्रेरणा के द्वारा स्वतंत्र रूप से सूचनादाता अपनी सूचनाएं सही रूप में प्रस्तुत कर सकता है । इसके चलते विषय से सम्बन्धित नए – नए पहल सामने आते जाते हैं ।

 अधिक प्रयुत्तर – दर एवं सहयोग ( High Response Rate and Co – operation ) : साक्षात्कार के माध्यम से अधिक मात्रा में उत्तरदाता प्रत्युत्तर देते हैं एवं सहयोग करते हैं । अधिकांश व्यक्ति साक्षात्कार के लिए तैयार हो जाते हैं । असहयोग की स्थिति जहाँ भी है , वहां अनुसंधानकर्ता अपनी कुशलता से स्थिति को संभाल लेता है । यही कारण है कि इसमें प्रत्युत्तर की दर अधिक होती है । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि साक्षात्कार अनेक गुणों से युक्त सामाजिक अध्ययन की एक महत्त्वपूर्ण विधि है । इसीलिए जी० ए० लुण्डबर्ग ( G . A . Lundberg ) ने इसे ‘ श्रेष्ठतम विधि ‘ ( Tool par excellence ) कहा है ।

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साक्षात्कार के दोष या सीमाएं

( Demerits or Limitations of Interview )

 

साक्षात्कार श्रष्ठतम विधि ‘ कही जाती है । इसके बावजद इस विधि की अपनी सीमाएं हैं । एक साक्षात्कारकर्ता किता हा निपुण क्यों न हो , साक्षात्कार की प्रक्रिया व निष्कर्षों को प्रभावित कर डालता है । इसी प्रकार उत्तरदाता की कमजोरियाँ साकार कनिष्का का विकृत बना देती है । अतः साक्षात्कारकर्ता एवं उत्तरदाता दोनों के द्वारा साक्षात्कार के निष्कर्षों आता हा साक्षात्कार के दोषों या सीमाओं को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है – –

पूण स्मरण – शक्ति ( Faulty Memory ) : स्मरण शक्ति सम्बन्धी यह दोष साक्षात्कारकर्ता और उत्तरदाता दोनों पर समान रूप से चरितार्थ होता है । असंरचित साक्षात्कारों में साक्षात्कारकर्ता द्वारा लम्बी वार्ता के कुछ अंशों के मूलन का सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता । परानी घटनाओं के वर्णन – विश्लेषण में उत्तरदाता द्वारा कुछ बातों काभुलाया जाना सम्भव है । अत : दोषपूर्ण स्मति के कारण संकलित सुचनाओं में विकृति आना स्वाभाविक है ।

 

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भावना ( Feeling of Inferiority Complex ) : साक्षात्कार विधि में साक्षात्कारकर्ता को विभिन्न व्याक्तया से सम्पर्क करना होता है । इस सन्दर्भ में कछ व्यक्तियों ( उत्तरदाताओं ) का व्यवहार कट्पूर्ण व अवहेलनापूर्ण होता है । इससे साक्षात्कारकर्ता के अन्दर हीन भावना का विकास होता है । फलस्वरूप वह जैसे – तैसे साक्षात्कार का काम पूरा कर लेता है । यह स्थिति अपूर्ण सूचनाओं की प्राप्ति में सहायक होता है , जो निष्कर्ष को प्रभावित करता है ।

  साक्षात्कारकर्ता का पूर्वाग्रह ( Interviewer ‘ s Bias ) : अक्सरहाँ साक्षात्कारकर्ता अनुसंधान के निष्कर्षों के विषय में पहले से ही कुछ मान्यताएं बना लेते हैं । इससे अनुसंधान की प्रक्रिया विकृत हो जाती है क्योंकि एक ओर अनुसंधानकर्ता ऐसा प्रश्न पूछता है जो उसके पूर्वाग्रह के अनुकूल हो और दूसरी ओर वह मिली हुई सूचनाओं की व्याख्या अपने पूर्वाग्रह के अनुसार करता है । _

अत्यधिक समय , धन व श्रम की आवश्यकता ( Need of Much Time , Cost and Energy ) : साक्षात्कार विधि के द्वारा सूचनाओं के संकलन में समय , धन व श्रम तीनों अधिक लगते हैं । इसमें अनेक उत्तरदाताओं से निजी स्तर पर मिलना होता है । फिर कई से सम्पर्क करने के लिए कई बार जाना पड़ता है जिसमें अधिक समय व श्रम की आवश्यकता होती है । कार्यकत्ताओं के प्रशिक्षण , वेतन एवं यात्रा व्यय आदि के लिए विशेष धन की जरूरत होती है ।

 अप्रामाणिक सूचनाएँ ( Invalid Information ) : साक्षात्कार के द्वारा प्राप्त सूचनाओं की प्रामाणिकता संदेहजनक होती है । उत्तरदाता जानकारी को छिपा सकते हैं या गलत जानकारी दे सकते हैं । इस प्रकार के दोष को रोकने के लिए साक्षात्कार विधि में कोई महत्त्वपूर्ण नियंत्रण सम्भव नहीं है ।

  सामाजिक पृष्ठभूमि की भिन्नता ( Difference in Social Background ) : साक्षात्कारकर्ता और उत्तरदाता की भिन्न सामाजिक – सांस्कृतिक पृष्ठभूमि साक्षात्कार में महत्त्वपूर्ण व्यवधान उत्पन्न करती है । भिन्न भाषा , हाव – भाव तथा आचार – विचार के कारण घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं बन पाते । फलस्वरूप उत्तरदाताओं द्वारा साक्षात्कारकर्ता को सही सचना नहीं पाता । कई समाज वैज्ञानिकों ने इस कठिनाई का उल्लेख किया है । _ _ _ टम प्रकार साक्षात्कार विधि की अपनी कुछ खास सामाए व दाष है । परन्तु इन दोषों के बावजद यह सामाजिक न की एक महत्त्वपूर्ण विधि है । इसके द्वारा जो स्वाभाविक एवं बहुमूल्य सूचनाएं प्राप्त होती हैं , वह अन्य विधियों से सम्भव नहीं है ।

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