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समुदाय

समुदाय

 ( Community )

 

समाजशास्त्र के अन्तर्गत ‘ समुदाय ‘ शब्द का प्रयोग विशेष अर्थ में होता है । समुदाय एक वृहत् मानव समूह है जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करता है । यह एक मूर्त संगठन होता है । इसका निर्माण एकाएक या अनायास नहीं होता और न जान – बूझकर व योजना के अनुसार होता है । एक लम्बी अवधि के बाद इसका विकास अपने – आप होता है । एक स्थान पर लोग रहते है उनके बीच पारस्परिक अन्तःक्रिया होती रहती है । फलत : एक संगठन बन जाता है । लोगों को इस संगठन की आवश्यकता भी पड़ती है । समुदाय के अन्तर्गत लोगो के सामाजिक , आर्थिक , पारिवारिक , धार्मिक और मनोरंजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जिसके कारण लोग समुदाय में रहते है । समुदाय के लोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहते है , जिसके कारण उनके बीच परस्पर सम्पर्क तथा प्रत्यक्ष सम्बन्ध बना रहता है । सभी लोग एक – दूसरे को आमने – सामने के सम्बन्धों द्वारा जानते हैं । व्यक्ति के जीवन के सभी क्रिया – कलाप , सभी गतिविधियों समदाय में ही होती है । समुदाय का अपने सदस्यों के जीवन पर काफी नियंत्रण होता है । यह व्यक्ति के व्यवहारों पर प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण लगाता है । सभी सदस्यों के बीच हम की भावना होती है । वे सब एक – दूसरे को दुःख – सुख में सहयोग देते है । समुदाय का सम्बन्ध निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से होता है , किन्तु सभ्यता के विकास के साथ – साथ समुदाय की धारणा में भी विस्तार होता है । वोगार्डस का कहना है कि समुदाय का विचार पड़ोस से आरम्भ होकर सम्पूर्ण विश्व तक पहुँच जाता है । समाजशास में गौव , कस्वा , नगर , महानगर तथा देश को भी समुदाय माना जाता है । इन सभी का सम्बन्ध निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से होता है । यहाँ के निवासी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक – दूसरे पर निर्भर रहते है । उनके बीच सहयोग और सुरक्षा की भावना अन्तर्निहित होती है । ‘ समुदाय ‘ शब्द अंग्रेजी के ‘ Community का हिन्दी रूपान्तर है । इसके शाब्दिक अर्थ पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि यह शब्द ( Community ) दो लैटिन शब्दो ‘ Com ‘ तथा ‘ Munis ‘ के योग से बना है । Com का अर्थ होता है ‘ Together ‘ या एक साथ ‘ और Munis का अर्थ होता है , Serving अर्थात् ‘ सेवा करना । दोनो का मिश्रित अर्थ है साथ मिलकर सेवा करना । यहाँ कछ विद्वानों की परिभाषाओं का उल्लेख किया । जा रहा है ।

बोगार्डस ने अपनी परिभाषा में लिखा है , ” समुदाय एक निश्चित क्षेत्र में रहन वाला सामाजिक समूह है जिसमें कुछ मात्रा में हम की भावना ‘ पायी जाती है । इस परिभाषा में बोगार्डस ने तीन प्रमुख तत्त्वों पर बल दिया है — ( 1 ) सामाजिक समूह . ( i ) निश्चित क्षेत्र तथा ( iii ) हम की भावना ।

किंग्सले डेविस के अनुसार , “ समुदाय सबसे छोटा क्षेत्रीय समूह है , जिसके अन्तर्गत सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का समावेश होता है । ” डेविस ने अपनी इस परिभाषा में समुदाय को एक समूह बताया है जो खास क्षेत्र में निवास करता है । उसके अन्दर उनके सामाजिक जीवन के सभी पक्ष आ जाते हैं । इस परिभाषा के मुख्य तीन आधार हैं – ) व्यक्तियों का समूह ( त ) निश्चित क्षेत्र तथा ( iii ) सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का समादेश ।

ऑगर्न तथा निमकॉफ के शब्दों में , एक सीमित क्षेत्र के अन्तर्गत रहने वाले सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण संगठन को समुदाय कहा जाता है । इस परिभाषा से सष्ट होता है कि समुदाय का सम्बन्ध सीमित क्षेत्र या भू – भाग से होता है , जिसमें सामाजिक जीवन के समस्त संगठन आ जाते हैं ।

किम्बाल यंग के अनुसार , “ समुदाय एक समूह है , जो एक ही संस्कृति के अधीन एक क्षेत्र में रहता है और अपनी प्रमुख क्रियाओं के लिए कुछ सामान्य भौगोलिक केन्द्र रखता है । अन्य परिभाषाओं की तरह इसमें निश्चित क्षेत्र पर बल दिया गया है । इसके अतिरिक्त इस परिभाषा में समान संस्कृति की चर्चा की गई है । अर्थात् एक समुदाय में एक ही संस्कृति के लोग रहते हैं । एक ही संस्कृति के कारण उनके आदर्श और मूल्य भी समान होते है ।

मेकाइवर तथा पेज के अनुसार , “ समुदाय सामाजिक जीवन का एक क्षेत्र है जिसे सामाजिक सम्बद्धता ( Socialcoherence ) की मात्रा द्वारा पहचान जाता है । इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि समुदाय सामाजिक जीवन का एक क्षेत्र है , जिसमें लोगों के बीच विशेष सम्बन्ध पाये जाते हैं और इसी सम्बद्धता के कारण यह अन्य समूहों से पृथक् प्रतीत होता है । एक समुदाय के सदस्य समान मनोवृत्तियों , व्यवहारों तथा सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण एक – दूसरे से सम्बद्ध होते हैं ।

 

 विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गयी उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समुदाय एक समूह है ,

  1. यह एक निश्चित भू – भाग पर बसा होता है ,
  2. इनके बीच ‘ हम की भावना ‘ होती है .

3.परस्पर निर्भरता की भावना होती है .

 4 समुदाय के अन्तर्गत जीवन के समस्त पहलुओं का संगठन होता है ।

  1. इनकी एक सामान्य संस्कृति होती है .
  2. इनके आदर्श और मूल्य भी समान होते हैं ,

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समुदाय की विशेषताएँ

( Characteristics of Community )

 

विभिन्न समाजशास्त्रियो से समदाय के सम्बन्ध में भिन्न – भिन्न विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । किसी ने ‘ स्थानीय क्षेत्र ‘ और ‘ सामदायिक भावना ‘ को विशेषता के रूप में लिया तो किसी ने सामान्य जीवन को ही समुदाय की विशेषता बतलाया । कुछ लोगों ने समान संस्कृति तथा स्वत : विकास को ही विशेषता माना है । विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचारों के आधार पर समुदाय की कुछ प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया जा रहा है ।

1.निश्चित भौगोलिक क्षेत्र ( Definite Geographical Area ) समुदाय का दूसरा प्रमुख आधार निश्चित भौगोलिक क्षेत्र है । निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के बिना समुदाय की कल्पना नहीं की जा सकती । एक समूह वो भी समुदाय कहा जाता है जब वह किसी खास क्षेत्र में बसा होता है । एक खास क्षेत्र में लम्बी अवधि के साथ रहने के कारण उनके बीच बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध होता है तथा लोगों में अपनत्व की भावना पायी जाती है । उनलोगों के बीच आमने – सामने का सम्बन्ध होता है । यह सम्बन्ध अनौपचारिक होता है । लोगों में प्रत्यक्ष रूप से अन्त : क्रिया होती है । निश्चित भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत रहनेवाले व्यक्ति प्राय : अपनी हर आवश्यकता की पूर्ति में एक – दूसरे को मदद पहुँचाते है । इसके सम्बन्ध में मेकाइवर तथा पेज ने कहा है कि यह सीमित भौगोलिक क्षेत्र समुदाय के सदस्यों के लिए सम्पूर्ण जीवन – यापन का क्षेत्र होता है । भारत का गाँव इसका सबसे अच्छा उदाहरण है । इसके निवासी अपना सम्पूर्ण जीवन इसी सीमा के अन्तर्गत बिताते हैं । औद्योगीकरण तथा यातायात के साधनों में विकास होने के कारण आजकल के समाजशास्त्री समुदाय के लिए निश्चित क्षेत्र का होना आवश्यक नहीं मानते । पर यह तथ्यों द्वारा प्रमाणित नहीं हुआ है । संचार के साधनों द्वारा गांव का सम्बन्ध व्यापक क्षेत्र से जोड़ दिया गया है , किन्तु क्षेत्रीय सीमा के महत्त्व में कमी नहीं आयी है । बाहरी क्षेत्रों के साथ उनका औपचारिक सम्पर्क होता है किन्तु समुदाय के सीमित क्षेत्र में अनौपचारिक सम्बन्ध ही होते है । इससे यह स्पष्ट होता है कि निश्चित भौगोलिक क्षेत्र समुदाय का एक आवश्यक तत्त्व है । यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि सिर्फ क्षेत्रीय आधार समुदाय के लिए पर्याप्त नहीं है । इसके लिए उनमें अतिरिक्त घनिष्ठ सम्बन्ध , अपनत्व की भावना तथा सामाजिक अन्तःक्रिया आवश्यक है । एक शहर का , राज्य का और देश का निश्चित क्षेत्र होता है , किन्तु इनके सदस्यों के सामाजिक सम्बन्धों में अपनत्व तथा प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता । अत : यह समुदाय नहीं कहा जा सकता ।

2.सामुदायिक भावना ( Community Sentiment ) समुदाय का तीसरा आवश्यक तत्त्व सामुदायिक भावना है । सामदायिक भावना का तात्पर्य ‘ हम की भावना ‘ ( We feeling ) है । एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एक समह विशेष रहता हो और उनके बीच ‘ हम की भावना का अभाव हो तो वह कदापि समुदाय नहीं कहला सकता । एक निश्चित क्षेत्र में काफी दिनों से रहने के बाद उनके निवासियों में परस्पर सहानुभूति तथा सहयोग की भावना विकसित होती है । लोगों के बीच अपनत्व की भावना विकसित हो जाती है । लोग दूसरे के सुख – दुःख को अपना सुख – दु : ख मारने लगते हैं । व्यक्तियों में हम सब एक है ‘ की भावना की चेतना आती है । सामुदायिक भावना व्यक्ति को एक – दूसरे से सम्पर्क , संचार और अन्त क्रिया के लिए प्रेरित करती है । यही कारण है कि जब हम कही बाहर लम्बी अवधि के लिए चले जाते हैं और वहाँ अचानक कोई अपने समुदाय का आदमी मिल जाता है तो बहुत प्रसन्नता होती है । उससे मिलते ही अपने क्षेत्र के सब समाचार पूछते हैं तथा सहायता के लिए तैयार हो जाते है ।

सामुदायिक भावना तीन रूपों में अभिव्यक्त होती है – पहली हम की अभिव्यक्ति (हम भावना), दूसरी दायित्व की भावना (भूमिका भावना) और तीसरी निर्भरता की भावना (निर्भरता भावना)

 

  1. हम की भावना :हम भावना के अन्तर्गत ’  हम की भावना का विशेष महत्त्व होता है।  इस भावना के कारण ही समुदाय के सभी सदस्य एक – दूसरे से जुड़े होते हैं।  समुदाय की हर वस्तु को लोग अपना समझते हैं।  कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने हित की बात नहीं सोचता।  सबके हित में ही व्यक्ति विशेष का हित होता है।  समुदाय का हर व्यक्ति एक – दूसरे के सुख – दु: ख में शरीक होता है।  हम की भावना एक मनोवैज्ञानिक तत्त्व है।  इसके कारण ही लोगों में आपकी मुख्यधारा और भाईचारे की भावना होती है।  लोग एक – दूसरे के लिए जान तक देने के लिए तैयार रहते हैं।  अत: इस भावना के कारण समुदायवाद के सूत्र में बँधा रहता है।  (ii) दायित्व की भावना (भूमिका भावना) – सामुदायिक भावना के अन्तर्गत सामूहिक दायित्व की भावना निहित होती है।  किसी भी कार्य की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं होती है।  इसके लिए समुदाय के सभी सदस्य जिम्मेदार होते हैं।  इसका मूल कारण यह है कि समुदाय के सदस्यों में हम की भावना होती है।  समुदाय का कार्य सामूहिक कार्य होता है जिसे सभी सदस्य मिल – जुलकर करते हैं।  ऐसा वे लोग बाध्य नहीं करते बल्कि समुदाय में रहते हैं – रहते उनकी आदत बन जाती है।  वे बिना किसी दबाव के चेतन या अचेतन रूप से समुदाय के कार्यों में सहयोग देते हैं।  समुदाय में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी स्थिति और भूमिका (स्थिति और भूमिका) होती है और वे अपने पद के अनुसार अपनी भूमिकाओं को निभाते हैं।  अपनी – अपनी भूमिकाओं को अदा करते हुए वे सामुदायिक दायित्व को नहीं भूलते।  इससे परस्पर सहयोग, प्रेम और अपनीत्व की भावना बनी रहती है जो सामुदायिक जीवन का आधार होता है। 

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  1. निर्भरता की भावना (निर्भरता की भावना) – परस्पर निर्भरता की भावना सामुदायिक भावना का मल आधार होता है।  प्रत्येक व्यक्ति एक – दूसरे पर निर्भर और आश्रित होता है।  प्रत्येक व्यक्ति की अपनी – अपनी कंपनी होती है, जिनकी पूर्ति अकेले सम्भव नहीं है।  विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।  समुदाय के सभी सदस्य एक – दूसरे पर निर्भर रहते हैं जिससे उनकी आवश्यकताओं की पर्ति हो सके।  परस्पर निर्भरता की भावना से वे अन्य सदस्यों को सहयोग और सहायता करते हैं।  अर्थात निर्भरता की भावना उन्हें एक सूत्र में बाँधती है।  विकास के साथ – साथ मनुष्य की संस्था दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं।  इन आवश्यकताओं की पर्ति एक समदाय के अंदर सम्भव नहीं है।  अतः अब एक समुदाय को अन्य समन्स और समदायों पर निर्भर करना पड़ता है।  श्रम – विभाजन एव विशषकरण के कारण एक हा वस्तु कानमाण में कई व्यक्तियों की महसस होती है।  प्रत्येक क्षेत्र में विशेषीकरण (विशेषज्ञता) हो रहा है जिसके कारण एक व्यक्ति कई क्षेत्र में दक्षता प्राप्त नहीं कर सकता है।  फलस्वरूप व्यक्ति को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक सहास निर्भर रहना पड़ता है।  यातायात की सुविधा और संचार के साधनों में विकास होने के कारण विभिन्न समदायों के बीच भौगोलिक व स्थानीय दूरी कम हो गई है।  गाँव – गाँव के बीच, शहर – शहर के बीच, राष्ट – राष्ट्र के बीच निता बढ़ती जा रही है।  विश्व का प्रत्येक राष्ट्र अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न राष्ट्रों पर निर्भर करने लगा है।  इस दृष्टिकोण से सामुदायिक भावना का विचार पड़ोस से आरम्भ होकर सम्पूर्ण विश्व तक फैल जाता है

5.व्यक्तियों का समूह ( Group of Individuals ) – किसी भी समुदाय के लिए व्यक्तियों का होना आवश्यक है । व्यक्तियों के अभाव में किसी भी समूह का निर्माण नहीं हो सकता । समुदाय के निर्माण के लिए समूह का होना जरूरी है । समूह का आकार ऐसा होना चाहिए जिससे कि समुदाय के सदस्यों की प्रायः सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके । ये परस्पर सहयोग के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं । एक गाँव में लोगों की संख्या इतनी होती है जिससे वे प्राय : अपनी आवश्यकता की सभी चीजें तैयार कर लेते हैं । गाँव में लोगों की आवश्यकताओं की प्रकृति ऐसी होती है , जिसे वे स्वयं पैदा करते है अथवा बना लेते हैं । इनके बीच परस्पर सहयोग की भावना प्रबल होती है । अत : समुदाय का पहला प्रमुख आधार व्यक्तियों का समूह है ।

6.सामान्य जीवन ( Common Life ) – समुदाय की पहली विशेषता यह है कि इसके सदस्य एक सामान्य जीवन जीते हैं । अर्थात् उनकी भाषा , व्यवहार करने का तरीका , मनोरंजन के साधन , शिक्षा के साधन , सुरक्षा तथा मौलिक समस्याएँ सामान्य होती है । एक निश्चित क्षेत्र में बसे हुए समुदाय के लोग एक ही भाषा बोलते हैं । उनके तौर – तरीके , उठने – बैठने का ढंग , पहनावा इत्यादि भी सामान्य होता है । शिक्षा के साधन तथा उसके केन्द्र भी सामान्य होते हैं , जहाँ सभी लोग शिक्षा प्राप्त करते हैं । समुदाय की विशेषता समुदाय के लोग व्यक्तिगत सुरक्षा की बात नहीं करते हैं । आपस में कोई ( 1 ) सामान्य जीवन मतभेद या दुराव नहीं होता । यदि होता भी है तो इसका निपटारा वे सामूहिक रूप से कर लेते हैं । बाहर से जब कोई आपत्ति समुदाय के ऊपर आती है । तो हर व्यक्ति समुदाय की सुरक्षा में ही अपनी सुरक्षा समझता है । सभी पहलुओं में सामान्य जीवन व्यतीत करने के कारण उनकी मौलिक व बुनियादी समस्याएँ भी सामान्य होती है । कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी समस्या व्यक्ति विशेष की समस्या न होकर समुदाय – विशेष की समस्या होती है । इसी  के लोगों की आर्थिक स्थिति में भी विशेष फर्क होता है । उनकी आवश्यकताएँ भी लगभग सामान्य होती है और उनकी  पूर्ति के ढंग में भी विशेष अन्तर नहीं होता । इन सारी बातों से स्पष्ट होता है कि समुदाय के लोगों का एक सामान्य जीवन होता है ।

7.सामान्य नियम ( Common Norms ) – समुदाय के सभी सदस्यों के लिए सामान्य नियम होते हैं । जीवन के समस्त पहलुओं से सम्बन्धित जो नियम होते हैं वे सभी के लिए समान होते हैं । ऐसा नहीं होता कि कुछलोग उसे माने तथा उसके अनुकूल व्यवहार करें और अन्य लोग उसे नहीं अपनायें । साधारण तौर पर समुदाय के लोगों का व्यवहार प्रथा एवं परम्परा पर आधारित होता है । कोई भी व्यक्ति इसका उल्लंघन नहीं कर सकता । धर्म के प्रति इनकी गहरी आस्था होती है । धर्म के विरुद्ध ये कोई भी कार्य करते । इनके जीवन में धर्म का बहुत महत्त्व होता है । धर्म , प्रथा , परम्परा , विश्वास एवं नैतिकता के द्वारा समुदाय अपने सदस्यों के व्यवहारों पर नियंत्रण लगाता है । प्रत्येक समुदाय के अपने कुछ सामान्य नियम होते हैं और वह अपने सदस्यों से आशा करता है कि वे उनके अनुकूल ही अपना व्यवहार करें । प्राय : सभी सदस्यों के व्यवहार सामान्य नियमों के द्वारा ही निर्देशित तथा नियंत्रित होते हैं । इन्हीं सामान्य नियमों के पालन करने के कारण एक समुदाय के लोगों के जीवन में समानता देखने को मिलती है । फलस्वरूप परस्पर सहयोग की भावना में वृद्धि होती है ।

  1. विशिष्ट संस्कृति ( Specific Culture ) – समुदाय की अपनी एक विशिष्ट संस्कति होती है । इसी सांस्कृतिक विशिष्टता के कारण एक समुदाय दूसरे समुदाय से पृथक् प्रतीत होता है । प्रत्येक समुदाय की भौगोलिक एवं प्राकृतिक दशाएँ भिन्न होती है । इसके कारण उनकी आवश्यकताएँ भी एक समुदाय से दूसरे समुदाय में पृथक् – पृथक् होती है । आवश्यकताएँ भिन्न – भिन्न होने के कारण इनकी पूर्ति करने के नियम एवं तरीके भी भिन्न – भिन्न होते है । संस्कृति में आवश्यकता पूर्ति करने का गुण होता है । यही कारण है कि एक समुदाय की संस्कृति दूसरे समुदाय की संस्कृति से पृथक् एवं विशिष्ट होती है । समुदाय को प्राकृतिक एवं भौगोलिक दशाओं के अनुकूल ही वहाँ की संस्कृति होती है । संस्कृति की एक विशिष्टता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती जाती है । फलस्वरूप एक समुदाय के सभी सदस्यों के ज्ञान , विश्वास , कला , परम्परा , धर्म , व्यक्तित्व एवं आदतों में । समानता देखने को मिलती है जो सामुदायिक भावना का प्रतीक होता है ।

 

 

सीमावर्ती समुदायों के कुछ उदाहरण ( Some Examples of Borderline communities )

 

  बन्दीगृह (  Prison )

 बन्दीगृह को कुछ विद्वानों ने समुदाय माना ह । बन्दीगृह में समुदाय के कुछ प्रमुख तत्व एवं विशेषताएं पायी जाती है जिनके आधार पर उस समुदाय कहा जाता है । समुदाय की तरह बन्दीगृह एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में बसा होता है । इसके सदस्यों में सामुदायिक भावना भी पायी जाती है । ये लोग एक सामान्य जीवन व्यतीत करते है । इनके सामान्य नियम होते है तथा एक विशेष संस्कृति भी होती है । इन्ही विशेषताओं के आधार पर मेकाइवर ने भी बन्दीगृह को समुदाय माना है । लाकन इस समुदाय नहीं कहा जा सकता । बन्दीगृह में कुछ प्रमुख विशेषताओं का अभाव भी पाया जाता है जो इस प्रकार है

1 . बन्दीगृह का स्वत : विकास नहीं होता । इसका निर्माण अपराध सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है  2 . बन्दीगृह के अन्तर्गत सदस्यगण जो सामान्य जीवन बिताते है , वह उन पर थोपा गया रहता है । वे स्वेच्छा से या समानता के आधार पर ऐसा नहीं करते । सामान्य नियम पालन करने के लिए वे बाध्य किये जाते है । जो सदस्य इन सामान्य नियमों का पालन नहीं करते उसके लिए उन्हें कठोर दण्ड सहना पड़ता है ।

3 . बन्दीगृह की सदस्यता अस्थायी होती है । सजा की अवधि समाप्त होने पर इसके सदस्य वर्तमान समुदाय बन्दीगृह को छोड़ देते है ।

4 . बन्दीगृह की सदस्यता अनिवार्य नहीं होती । जो व्यक्ति अपराधी नहीं है या अपराध करने पर नहीं पकड़ा जाता है वह बन्दीगृह में नहीं रहता । कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार समदाय की सदस्यता अनिवार्य होती है तथा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी – न – किसी समुदाय का सदस्य रहता ही है उसी प्रकार से बन्दीगृह की सदस्यता अनिवार्य नहीं होती । इन सारी बातों के आधार पर बन्दीगृह को समदाय नहीं माना जा सकता । उपयुक्त विवेचनाओं एवं उदाहरणों के आधार पर किसी भी समूह को समुदाय कहना कठिन हो जाएगा ।

 

 

 

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 पड़ोस  ( Neighbourhood)

 आदिम समाज में यह सवाल ही नहीं उठता कि पास – पड़ोस समुदाय अथवा नहीं । कहने का तात्पर्य यह है कि गाँव में तथा आदिम समाज में जो पास – पड़ोस होते है उनमें समुदाय की प्रमुख विशेषता , पाया जाती है । उसके बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होता है , परस्पर अन्त : क्रिया तथा सामुदायिक भावना भी पायी जाती है । एक निश्चित है में पीढ़ी – दर – पीढी से रहते आ रहे होते है । अत : उन्हें समदाय कहा जायेगा । लेकिन वर्तमान शहरी अथवा बारिक क्षेत्रों में जो पास – पड़ोस है उन्हें समुदाय कहना कठिन हो जाता है । इसके प्रमुख कारण इस प्रकार है

 1 . शहरी एवं औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले अपने पास – पड़ोस के सम्बन्ध में जानकारी नहीं रखते । उनके बीच कोई परिचय अथवा सम्बन्ध का अभाव होता है ।

2 . इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन सामान्य नहीं होता । उनकी संस्कृति , रीति – रिवाजा , व्यवहार करने का ढंग इत्यादि में काफी फर्क होता है । इनके उद्देश्य एवं आवश्यकताएँ भी भिन्न – भिन्न होती है ।

 3 . शहरी एवं आधुनिक क्षेत्रों में जो पास – पड़ोस होते है उनका स्वतः विकास नहीं हुआ रहता । अर्थात् उत्ते इच्छा से अथवा योजना बनाकर बसाया जाता है । इस कारण उनमें घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित नहीं होता ।

 4 . उनके सम्पूर्ण जीवन की क्रियाएँ पास – पड़ोस में पूरी नहीं होती है । इसके लिए उन्हें बाहर जाना पड़ता है । वे सभी भिन्न – भिन्न जगहों में पृथक – पृथक् कार्य करते है । उनके बीच किसी तरह का सम्बन्ध नहीं होता । सभी व्यक्ति अपने हितों से सम्बन्धित कार्य करते है ।

 5 . शहरी एवं औद्योगिक क्षेत्रों के पास – पड़ोस में कोई ऐसे सामान्य नियम नहीं होते जिनके द्वारा उनके व्यवहारों को नियंत्रित किया जा सके । इसके साथ – साथ उनमें दायित्व की भावना ( Role feeling ) का अभाव पाया जाता है ।

 6 . इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में जो पास – पड़ोस होते है उनके सदस्यों की आर्थिक स्थिति एवं जीवन – स्तर में भी काफी भिन्नता पायी जाती है । बगल में एक तरफ एक परिवार काफी धनवान रहता है तो दूसरी तरफ कोई गरीब या मध्यम वर्ग । इसी प्रकार एक परिवार काफी पढ़ा – लिखा है तो दूसरी ओर कम पढ़े – लिखे लोग होते है । रहन – सहन के स्तर में भी भिन्नता होती है , क्योंकि ये लोग भिन्न – भिन्न जगहों से आकर बसे होते है । अतः उनके रहन – सहन पर पिछले इलाके की भी छाप होती है जहाँ से ये लोग आये रहते है । इस प्रकार इन विशेषताओं के आधार पर पास – पड़ोस को समुदाय नहीं कहा जा सकता है ।

 

 जाति (  Caste )

 – जाति – प्रथा भारतीय सामाजिक व्यवस्था का प्रमख आधार है । समाज में कई प्रकार की जाति के लोग पाये जाते हैं । हर जाति को अपने समाज में एक स्थान एवं पद प्राप्त होता है और उसके कुछ कार्य भी होते हैं । जाति से सम्बन्धित कछ तौर – तरीके एवं नियम भी होते है जिनका पालन इनके सदस्यों को करना पड़ता है । एक आति के सदस्य अपनी जाति के अन्य सदस्यों के साथ निकटता का अनुभव करते हैं । उनके बीच हम की भावना ‘ पायी जाती है । इसके आधार पर एक आति – विशेष का सदस्य अपनी ही जाति के लोगों का पक्ष लेता है और अन्य जातियों का विरोध करता है । अर्थात एक जाति क सदस्य अपनी जाति के हितों पर ध्यान देते है और अन्य जाति के हितों का विरोध करते है । यही भावना । जातिवाद ‘ ( Castism ) कहलाती है । इसके आधार पर जाति को समुदाय नहीं कहा जा सकता । जाति में अनेक एस गुण है जो इसे समदाय कहलाने में भ्रम उत्पन्न करते है । पहला , जाति के सदस्य एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र पर निवास करते है । एक जाति के लोग विभिन्न स्थानों में रहते है । उनमें आमने – सामने का सम्बन्ध नहीं होता । । दूसरा , एक जाति के सदस्यों के बीच आर्थिक स्थिति एवं जीवन – स्तर में काफी असर पाया जाता है । भिन्न – भिन्ननहीं पायी जा सकती । जाति समाज जो समुदाय के आदर्श उदाहरण है , वर्तमान स्थिति में उनमें भी परिवर्तन हो रहे है । नहात – से ऐसे कारक है , जिन्होंने सामुदायिक भावना में परिवतन या कमी ला दी है । गाँव या जनजाति समुदाय भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य क्षेत्रों पर निर्भर करने लगे है । इसका प्रभाव उनकी अपनत्व पर भी पड़ा है । अत : किसी भी क्षेत्र को एकाएक समुदाय है अथवा नहीं है , कहना उचित नहीं है । यह एक तलनात्मक शब्द है । कोई भी समूह विशुद्ध रूप से समुदाय नहा माना जा सकता ।

 

 

 

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