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समिति

 

समिति

( Association )

 समिति किसी विशेष हित या हितों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है । परिवार , विद्यालय , व्यापार संघ , चर्च ( धार्मिक संघ ) , राजनीतिक दल , राज्य इत्यादि समितियाँ हैं । इनका निर्माण विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है । उदाहरणार्थ , विद्यालय का उद्देश्य शिक्षण तथा व्यावसायिक तैयारी हैं । इसी प्रकार , श्रमिक संघ का उद्देश्य नौकरी की सुरक्षा , उचित पारिश्रमिक दरें , कार्य की स्थितियाँ इत्यादि को ठीक रखना है । साहित्यकारों या पर्वतारोहियों के संगठन भी समिति के ही उदाहरण हैं । साधारण बोलचाल की भाषा में लोग समिति और संस्था दोनों शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ किन्त ऐसा करना गलत है ।समाजशास्त्रीय अध्ययन में ‘ समिति तथा संस्था ‘ दो महत्त्वपूर्ण प्राथमिक अवधारणा हैं । इनका वैज्ञानिक अर्थ जानना आवश्यक है मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह सदैव से प्रयत्नशील रहा है । अपनी

आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वह तरह – तरह के प्रयत्न करता रहा है ताकि उसका अस्तित्व बना रहे । मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तीन प्रकार से करता है ( i ) व्यक्तिगत प्रयास से , अर्थात् व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करना चाहता है । इसके लिए वह व्यक्तियो अथवा समूहों के साथ न तो संघर्ष करता है और न सहयोग लेता है । ( ii ) संघर्ष से , अर्थात् व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों अथवा समूहों के साथ संघर्ष करता है । ( iii ) सहयोग से , अर्थात् वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों अथवा समूहों से सहयोग लेता है तथा दूसरों को भी सहयोग देता है । यह तरीका परस्पर सहयोग की भावना पर आधारित है । इसी तरीके द्वारा समिति का निर्माण होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि जब कुछ व्यक्ति किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक संगठन का निर्माण करते हैं तब यह संगठन समिति कहलाता है ।

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समिति का अर्थ एवं परिभाषा

( Meaning and Definition of Association )

 

 अनेक समाजशास्त्रियों ने समिति के सम्बन्ध में परिभाषाएँ दी है :

 

जिन्सबर्ग ( Ginsberg ) ने लिखा है , ” समिति सामाजिक व्यक्तियों का समूह है , जो एक – दूसरे को सहयोग कर अपने विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठन बना लेते हैं ।

 ” गिलिन और गिलिन ( Gillin and Gillin ) के अनुसार , “ समिति व्यक्तियों का एक समूह है जो एक विशिष्ट उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठित होता है और जो मान्य अथवा स्वीकृत कार्य – प्रणालियों और व्यवहारों द्वारा संगठित होता है ।

 ओल्सेन ( Olsen ) ने इसकी परिभाषा देते हए लिखा है , ” समिति सामाजिक संगठन का एक विशेष रूप है , जिनका निर्माण अपेक्षाकृत कुछ विशिष्ट और सीमित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विचारपूर्वक किया जाता है ।

मेकाइवर तथा पेज के शब्दों में , ” समिति व्यक्तियों का समूह है जो किसी सामान्य उद्देश्य अथवा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता है । “

 बोगार्डस ( Bogardus ) के अनुसार , ‘ ‘ प्राय : किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए व्यक्तियों के मिलकर कार्य – करने को समिति कहते है ।

विभिन्न विद्वानों ने अपनी – अपनी परिभाषा में कुछ बातों महत्त्व दिया है । जैसे , मेकाइवर तथा पेज ने अपनी परिभाषा में समिति को एक समूह बताया है जिसमें लोगों के उद्देश्यों की पूर्ति होती है । बोगार्डस ने अपनी परिभाषा में लोगों के मिलकर कार्य करने पर प्रकाश डाला है । अर्थात् समिति में सहयोग से कार्य किया जाता है । इसी प्रकार जिन्सबर्ग ने बताया कि समिति में सामाजिक प्राणी एक – दूसरे से सम्बन्धित होते हैं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन बनाते हैं अर्थात् यहाँ भी सहयोग को महत्त्व दिया गया है । गिलिन और गिलिन ने बताया कि समिति में लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मान्य व स्वीकृत कार्य – विधि या व्यवहार का प्रयोग किया जाता है । यानी इसे समाज द्वारा स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए । ओल्सेन ने कहा कि समिति का निर्माण उद्देश्यपूर्ण रूप से किया जाता है । अर्थात् जब लोग लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विचारपूर्वक संगठन बनाते हैं तब वह संगठन समिति कहलाता है । उपर्युक्त सभी विद्वानों के दृष्टिकोणों एवं विचारों को समझने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समिति व्यक्तियों का समूह है , इसका संगठन कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए होता है

समिति की विशेषताएँ

(CHARACTERISTICS OF ASSOCIATION)

 

  1. समिति का एक निश्चित उद्देश्य होता है ( Association has specificpurpose ) – समिति का संगठन किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है । कछ निश्चित उद्देश्यों को लेकर जब कुछ व्यक्ति एक समिति की विशेषताएँ साथ संगठित होकर कार्य करते है तो ऐसे समूह को समिति कहा जाता है । समिति का निर्माण हितों व उद्देश्यों पर आधारित है होता है । इसके अभाव में किसी भी समूह को समिति नहीं कहा जा सकता । जबतक कुछ लोगों का हित और उद्देश्य समान नहीं होगा , तबतक लोग एक साथ मिलकर कार्य नहीं करेगे । group ) उदाहरणस्वरूप जब किसी क्षेत्र में बाढ़ आती है या सूखा पड़ता है तो कुछ व्यक्ति इन लोगों की मदद करना चाहते है । इसी | उद्देश्य से एक समिति का संगठन होता है और लोग उक्त पीड़ित स्थानों में जाकर उन्हें सहायता करते हैं । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे अनेक साधनों से धन व सामान इकट्ठा करते है । है , जिससे उन पीड़ितों की रक्षा हो सके । इस प्रकार कुछ खास | उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही समिति का निर्माण होता है । purpose ) समिति की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती है । जब
  2. ऐच्छिक सदस्यता( Voluntary membership ) कुछ खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक संगठन का निर्माण होता है तब यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह उसकी सदस्यता ग्रहण करेगा अथवा नहीं । जब समिति का उद्देश्य व्यक्ति के हित एवं रुचि के अनुकूल होता है तभी वह उससमिति की सदस्यता स्वीकार करता है , अन्यथा नहीं । जब व्यक्ति समिति की सदस्यता स्वीकार करता है , तब उसे उसकी शर्तों को भी स्वीकार करना पड़ता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि समिति की सदस्यता पूर्णत : व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती.प्रत्येक समिति का अपना नियम और व्यवहार का तरीका होता है , जिसके अनुसार उसके सदस्य कार्य करते है । समिति  का संगठन सोच – विचारकर होता है और उसके सम्बन्ध में नियमबनाये जाते हैं । इनके सदस्यों को नियमों के अनुसार कार्य करना अनिवार्य होता है । इन नियमों के द्वारा सदस्यों के व्यवहारों पर नियन्त्रण रखा जाता है । समिति के नियम लिखित व अलिखित  दोनों हो सकते हैं । इन नियमों का पालन करने पर ही समिति दोना सम्भव हो पाता है । यदि सभी लोग मनमाने ढंग से कार्य करने लगे तो समिति अपने उदेश्यों को प्राप्त नहीं कर सकगा ।

3.सदस्यों के बीच औपचारिक सम्बन्ध ( Formal relations among the members ) – समिति के सदस्यों के बीच औपचारिक सम्बन्ध होता है । इसके सदस्य अपने हितों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठित होकर कार्य करते हैं तथा एक – दूसरे को सहयोग देते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि लक्ष्यों व हितों को ध्यान में रखकर ही समिति के सदस्य एक – दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करते हैं । लक्ष्यों और हितों की पूर्ति हो जाने के बाद इनके बीच सम्बन्ध नहीं रहता । एक ही व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न समितियों का सदस्य हो सकता है । लेकिन विभिन्न समितियों के विभिन्न सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होता । इनके बीच औपचारिक सम्बन्ध पाया जाता है ।

 4.अस्थायी प्रकृति ( Temporary in Nature ) समिति अस्थायी प्रकृति की होती है । कुछ खास उद्देश्यों एवं हितों की पूर्ति के लिए ही समिति का संगठन होता है । जब इन उद्देश्यों तथा हितों की पूर्ति हो जाती है तो समिति टूट जाती है । जैसे बाढ़ व सूखा के समय इनके पीड़ितों की सहायता के लिए समिति का संगठन होता है । जब इनकी कठिनाइयाँ कम हो जाती है तब इस समिति की आवश्यकता नहीं रह जाती और वह समाप्त हो जाती है । समिति के सदस्य भी स्थायी नहीं होते हैं । इनके पदाधिकारियों में परिवर्तन होता रहता है । लेकिन कुछ समितियाँ अनिश्चित काल तक कार्य करती रहती हैं । आन्तरिक व्यवस्था में परिवर्तन के बावजूद इनका ढाँचा बना रहता है । फिर भी अधिकतर समितियाँ अस्थायी प्रकृति की होती है ।

5.समिति एक संगठित समूह है ( Association is an organized group ) – समिति व्यक्तियों का एक संगठित समूह होता है । जबतक व्यक्तियों में संगठन नहीं होगा तबतक उनके समूह को समिति नहीं कहा जा सकता । इसमें प्रत्येक व्यक्ति का पद तथा कार्य निर्धारित रहता है और इससे सम्बन्धित नियम व तरीके होते हैं जिनके अनुसार उनकी गतिविधियाँ होती हैं । समिति में संगठन के गुण होने के कारण ही किसी भी उद्देश्य व लक्ष्य को प्राप्त कर सकना सम्भव हो पाता है । आधुनिक व जटिल समाज में समिति के संगठन द्वारा ही विभिन्न कार्यों को सम्पन्न किया जाता है ।

  1. विचारपूर्वक संगठन ( Consciously organised ) – समिति का संगठन अचानक या एकाएक नही ० होता । इसके संगठन के लिए कुछ लोग विचार करते हैं , उसके बाद समिति का निर्माण होता है । जब कोई समस्या – या घटना उपस्थित होती है तो उसके सम्बन्ध में कुछ लोग विचार करते हैं । विचार – विमर्श के बाद एक समिति का संगठन करते हैं , जिससे कि कार्यों व उद्देश्यों को पूरा किया जा सके । कहने का तात्पर्य यह है कि लक्ष्यों व हितों की प्राप्ति के लिए सोच – विचार कर समिति का संगठन किया जाता है ।

 7.मूर्त संगठन ( Concrete Organization ) — चकि सनिति व्यक्ति का समूह होती है इसलिए यह एक मूर्त संगठन होता है । इसके सदस्यों को प्रत्यक्ष रूप से देखा तथा स्पर्श किया जा सकता है । यह समाज का तरह अमूर्त नहीं होता । समाज सामाजिक सम्बन्धों से बनता है इसलिए उसे प्रत्यक्ष रूप से देखा व छुआ नहीं जा सकता । इसके विपरीत समिति व्यक्ति के संगठन से बनती है इसलिए यह एक मूर्त संगठन है ।

(8.Heirarchy of status and power ) – एक समिति के अन्तर्गत विभिन्न सदस्यों की अपनी सत्ता एवं हैसियत होती है । हा कार्य करता है । इनके बीच परस्पर सम्बन्ध होता है । समिति में कई तरह के पार सम्बन्ध होता है । समिति में कई तरह के पदाधिकारी होते है । इनके बीच कार्यो का बँटवारा होता है , तभी समिति प्रभावशाली ढंग से कार्य कर पाती है । इन पदाधिकारियों के कुछ नाम होते है जिससे उनके अधिकार , सत्ता एवं हैसियत का पता चलता है । इससे स्पष्ट होता है कि समिति के सदस्यों एवं पदाधिकारियों के अधिकार तथा कर्त्तव्य भिन्न – भिन्न होते हैं ।

9.नाम एवं प्रतीक ( Name and symbol ) – समिति की महत्वपूर्ण विशेषता उसका नाम एवं प्रकृति है । प्रत्येक समिति का कोई – न – कोई नाम होता है और उसके कुछ प्रतीकात्मक संकेत तथा चिह्न भी होते है । अलग – अलग नाम से अलग – अलग समिति का बोध होता है । ये समितियों अपनी पहचान के लिए झंडा , रंग , मार्का तथा सील – मोहर इत्यादि रखती हैं , जिससे उन्हें देखते ही समिति विशेष का ज्ञान होता है । जैसे जीवन – बीमा निगम का प्रतीक है , जलते हुए चिराग के दोनो ओर हाथ । अर्थात् जब हम इस प्रतीक को देखते हैं तो जीवन बीमा का बोध होता है ।

  1. साधन है , साध्य नहीं ( Association is a Means not an End ) – कुछ खास उद्देश्यों व हितों की पूर्ति के लिए समिति का निर्माण किया जाता है । अर्थात् समिति के द्वारा हम अपने लक्ष्यों व हितों की पूर्ति करते हैं । समितियों का निर्माण व्यक्ति का अन्तिम उद्देश्य नहीं होता बल्कि उसके द्वारा हम अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं । कहने का तात्पर्य है कि समिति साधन है न कि साध्य । हम किसी समिति के सदस्य इसलिए होते है कि उसके द्वारा अपने लक्ष्यों व हितो की पूर्ति कर सकें । समिति अपने आप में साध्य नहीं है ।

समिति के  उदाहरण (  Examples of Association ) समाज में अनेक तरह की समितियाँ पायी जाती हैं , जैसे – सामाजिक , राजनीमक , आर्थिक एवं सांस्कृतिक समितियाँ । कभी – कभी किसी समूह या संगठन के सम्बन्ध में द्वन्द्व उत्पन्न हो जाता है कि उसे समिति कहा जाय अथवा समुदाय । समिति और समुदाय में कुछ मौलिक अन्तर हैं । समुदाय के अन्तर्गत अनेक समितियों की स्थापना की जा सकती है । मेकाइवर ने इसके सम्बन्ध में कहा है कि समिति एक समुदाय नहीं , बल्कि समुदाय के अन्तर्गत ही एक संगठन है । ( Anassociation is not a community butanorganization withinacommunity . ) जैसे – गाँव एक समुदाय है और उसके अन्दर अनेक तरह की समितियाँ पायी जाती हैं । यहाँ कळ संगठन समह के सम्बन्ध में यह विचार किया जायेगा कि उन्हें समिति माना जाय अथवा नहीं । उदाहरण के लिए परिवार । राज्य . कॉलेज , फटबॉल टीम इत्यादि । इनमें कुछ समिति की तथा कुछ समुदाय की विशेषताएँ नजर आती है । अत : इनके विवेचन के बाद यह स्पष्ट होगा कि यह समिति है अथवा नहीं ।

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परिवार

(  Family  )

  परिवार के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का कहना है कि यह एक समुदाय है और कुछ लोगों ने इसे समिति दा समदाय मानने वालों का कहना है कि परिवार में व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन बिताता है । व्यक्ति जन्म से लेकर मत्य तक परिवार में ही रहता है । इस दृष्टिकोण से परिवार एक समुदाय है । आदिकालीन पर परिवार में समुदाय के तत्त्व स्पष्ट नजर आते हैं । जनजातीय समाजों में सम्पूर्ण जीवन की कार होती हैं । लेकिन यह सिर्फ आदिकालीन या पिछड़े समाज के लिए ही सही है । आधनिक के परिवार के लिए यह सही नहीं है । कताएँ इतनी अधिक हो गई है कि उनकी पूर्ति एक परिवार में होना आधुनिक युग में व्यक्ति की आवश्यकताएँ इतनी अधिक हो गई है कि उनकी पात्रों की पर्ति के लिए अन्य समितियों का सदस्य बनना पड़ता है । सम्भव नहीं है । व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं का पूति के लिए अन्य समितियों का समय वर्तमान युग में कछ खास उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही परिवार को मान्यता दी गई है । परिवार इसके अनेक कार्य अन्य संस्थाओं और समितियों के द्वारा सम्पन्न किये जा रहे हैं । लोगों को अन्य समितियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है । अतः आज परिवार कुछ खास ही उद्देश्यों की पर्ति कर रहा है । इस दृष्टिकोण से परिवार एक समिति है ।

राज्य (  State)

 राज्य समिति है अथवा नहीं इसके सम्बन्ध में भी भ्रम उत्पन्न हो जाता है । कुछ विद्वानों का कहना है कि राज्य एक समुदाय है । राज्य का एक निश्चित भू – भाग होता है । इसकी सदस्यता अनिवार्य होती है । राज्य के अन्तर्गत व्यक्ति का सारा जीवन व्यतीत होता है । लेकिन कुछ विद्वान इस दृष्टिकोण को नहीं मानते । इन लोगों का कहना है कि राज्य एक समिति है । राज्य की स्थापना विचारपूर्वक की जाती है । सरकार चलाने के लिए राज्य को कानून व नियमों को बनाना पड़ता है । राज्य नियमों एवं कानूनों के द्वारा व्यक्तियों के व्यवहार को नियन्त्रित करता है तथा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करता है । राज्य व्यक्ति के राजनैतिक जीवन से सम्बन्धित होता है । मेकाइवर का कथन है कि ‘ राज्य सामाजिक संगठन के एक स्वरूप के रूप में चर्च व व्यापारिक क्लब के समान एक समिति है । ‘ इन सारी बातों से स्पष्ट होता है कि राज्य एक समिति है । लेकिन यह भी सत्य है कि राज्य अन्य समितियों से भिन्न है ।

 

 समिति और समुदाय में अन्तर ( Distinction between Association and Community )

समिति और समुदाय दो महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ हैं । दोनों का सम्बन्ध मनुष्य के सामाजिक जीवन से है । किन्तु दोनों में कुछ अन्तर भी हैं । यहाँ कुछ प्रमुख अन्तरों को प्रस्तुत किया जा रहा है

 

 1.समिति के अन्तर्गत लोगों के बीच औपचारिक सम्बन्ध पाये जाते हैं , समदाय के अन्तर्गत लोगों के बीच अनौपचारिक सम्बन्ध होते हैं ।

2.समिति में लोग सिर्फ व्यक्तिगत हित की बात समुदाय के अन्तर्गत सामान्य हितों पर बल दिया जाता है ।

 3.समिति का आकार अपेक्षाकत छोटा होता है ।  समुदाय का आकार तुलनात्मक रूप से बड़ा होता सदस्यों की संख्या भी सीमित होती है । है । एक समुदाय के अन्तर्गत कई समितियाँ हो सकती है ।

 4.समिति के सदस्यों में एक निश्चित संस्तरण पाया समुदाय के अन्तर्गत ऐसी बात नहीं है । एक समुदाय जाता है । लोगों को उनके पद के अनुसार कार्य व में सभी व्यक्तियों की स्थिति करीब – करीब समान भूमिकाओं को निभाना पड़ता है । होती है ।

  1. समिति में लोगों के बीच स्वार्थ की भावना पायी समुदाय के सदस्यों के बीच ‘ हम की भावना ‘ पायी जाती है । जाती है । दूसरे शब्दों में , लोगों के बीच अपनापन की भावना होती है । | समिति के लिए निश्चित क्षेत्र होना अनिवार्य नहीं

6.समिति साधन ( Means ) है ।  समुदाय साध्य ( end ) है । समिति के द्वारा यह अपने के हितो व उद्देशों की पूर्ति की जाती है । हितों व उद्देश्यों की पूर्ति करता है । 

7.समिति में विशेष नियमों को पालन करने का  समुदाय के अन्तर्गत रीति – रिवाज , प्रथा तथा आदेश दिया जाता है । उल्लंघन करने वाले के परम्पराओं पर अधिक बल दिया जाता है । इन्हीं लिए दंड की भी व्यवस्था होती है । के द्वारा उल्लंघन करने वाले को दंड दिया जा सकता है ।

8.समुदाय के लिए निश्चित भू – भाग का होना आवश्यक होता । होता है ।

9.समिति का निर्माण विचारपूर्वक होता है ।  समुदाय स्वत : विकसित होता है ।

10.समिति का संगठन विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के समुदाय मनुष्य की सभी प्रकार की आवश्यकताओं लिए किया जाता है । की पूर्ति करता है ।

11.समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है ।समुदाय की सदस्यता अनिवार्य होती है ।

12.समिति तुलनात्मक रूप से अस्थायी होती है ।  समदाय एक स्थायी समूह होता है । इसके अन्तर्गत बहुत धीमी गति से कोई परिवर्तन होता है ।

 13.एक व्यक्ति एक समय में अनेक समितियों का  एक समय में एक व्यक्ति एक ही समुदाय का । सदस्य हो सकता है ।

 

 समिति और समाज में अन्तर ( Distinction between Association and Society )

इन दोनों अवधारणाओं में कुछ समानताएँ है । और कुछ असमानताएँ भी । यहाँ कुछ प्रमुख अन्तरों को प्रस्तुत किया जा रहा है

1.समिति व्यक्तियों का समूह है । अतः यह मूर्त होता , समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है । अत : यह अमूर्त है ।

2.समिति की स्थापना विचारपूर्वक की जाती है , समाज का विकास अपने – आप होता है ।

3.समिति का संगठन विशिष्ट उद्देश्यों को ध्यान में ,समाज का विकास जीवन की सम्पूर्णता के लिए रखकर ही किया जाता है । होता है । इसका उद्देश्य सामान्य होता है ।

4.समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है , समाज में लोगों का रहना अनिवार्य होता है । समाज के बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं है ।

5.समिति अस्थायी प्रकृति की होती है । उद्देश्य की  समाज स्थायी प्रकृति का होता है । व्यक्तियों के बीच पूर्ति होने के बाद यह भंग हो जाती है । सामाजिक सम्बन्ध सदैव बना रहता है ।

6.समाज सहयोग और संघर्ष दोनों की प्रक्रिया पर । आधारित होता है । अर्थात् समाज में सहयोग और संघर्ष दोनों ही पाये जाते है इनके सदस्यों के बीच परस्पर सहयोग की भावना

7.समिति समाज के अंदर एक छोटी – सी इकाई है।   समाज एक बड़ी इकाई है।  इसके अन्तर्गत अनेक _ समितियों का संगठन हो सकता है। 

 

  1. एक व्यक्ति एक समय में कई समितियों का , एक व्यक्ति एक समय में एक ही समाज की सदस्य हो सकता है।  प्राप्त प्राप्त कर सकता है। 

 9, समिति के लिए सामान्य नियमों का होना अनिवार्य ,समाज के लिए सामान्य नियमों की आवश्यकता नहीं होती है।  | 

10, समिति एक कृत्रिम संगठन है।  व्यक्ति अपने मूल्यों (x) समाज एक प्राकृतिक क्रम है।  इसका विकास स्वतः: को ध्यान में रखते हुए इसका संगठन करता है।  होता है। 

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