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समाजशास्त्र में क्षेत्र – कार्य

 

समाजशास्त्र में क्षेत्र – कार्य

( Field work in Sociology )

 

समाजशास्त्रीय अध्ययनों में क्षेत्र कार्य का विशेष महत्त्व है । अधिकांश समाजशास्त्री इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि जिक घटनाओं के अध्ययन के लिए क्षेत्र – कार्य का उपयोग विशेष रूप में किए जाते हैं । क्षेत्र – कार्य के आधार पर किए वाले सामाजिक अध्ययन को आनुभविक अध्ययन कहते हैं । यह अध्ययन व्यावहारिक समाजशास्त्र ( Applied Biology ) का आधार हा व्यावहारिक समाजशास्त्र वह है जिसका उद्देश्य समहों व समदायों के जीवन से उपयोगी एकत्रित कर उसके आधार पर सामाजिक जीवन को अधिक स्वस्थ बनाए रखना है । – कार्य का अभिप्राय उन अध्ययनों से है जो अध्ययनकर्ता द्वारा अध्ययन विषय से सम्बन्धित व्यक्तियों से प्राथमिक सचनाएँ एकत्र कर किया जाता है । सूचनाओं का एकत्रीकरण एक व्यवस्थित विधि – अवलोकन व साक्षात्कार आदि के माध्यम से किया जाता है । इसके द्वारा सामाजिक घटनाओं के घटित होने के कारणों और परिणामों को ज्ञात किया जाता है । इस प्रकार समाज विज्ञानों में क्षेत्र – कार्य प्रयोग ( Experiment ) का विकल्प है ।

थोमस एवं जैननिकी ( Thomas and Znaniecki ) ने सर्वप्रथम पौलैण्ड के किसानों का अध्ययन क्षेत्र – कार्य के द्वारा या । इसीलिए थामस एवं जैननिकी को क्षेत्र – कार्य पर आधारित अध्ययन का सूत्रधार माना जाता है । आज सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अनेक विषय हैं – जनसंख्या , नगर व ग्राम से जुड़ी समस्याएँ , अपराध व शिक्षा आदि हैं जिनके सन्दर्भ में विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित सूचनाएँ क्षेत्र – कार्य द्वारा प्राप्त किए जाते हैं । क्षेत्र – कार्य की प्रकृति को निम्न रूप में समझा जा सकता है

1 . क्षेत्र – कार्य के माध्यम से व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होते हैं ।

2 . किसी समूह व समुदाय के व्यक्तियों के विचारों को क्षेत्र कार्य के माध्यम से ही जाना जा सकता है ।

 3 . क्षेत्र कार्य वह विधि है जिसके माध्यम से सामाजिक घटनाओं के कारणों व परिणामों की विवेचना सम्भव है ।

4 . क्षेत्र – कार्य का आधार अध्ययन की निगमन विधि है ।

5 . क्षेत्र – कार्य के माध्यम से किसी तथ्य का सांख्यिकीय विवेचन सम्भव है ।

 6 . क्षेत्र – कार्य ऐतिहासिक अध्ययन में विश्वास नहीं करता ।

7 . क्षेत्र – कार्य के अन्तर्गत किसी समूह के जीवन को वर्तमान में प्राप्त होने वाले तथ्यों के आधार पर ही समझा जा सकता है ।

8 . क्षेत्र – कार्य की मान्यता है कि सामाजिक घटनाएँ परिवर्तनशील होती हैं ।

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क्षेत्र कार्य के प्रकार

( Types of Field Work )

 

 क्षेत्र कार्य को दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है — क्रियात्मक क्षेत्र कार्य व बोधपूर्ण क्षेत्र – कार्य । इसे निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है

( 1 ) क्रियात्मक क्षेत्र – कार्य ( Sematic Field Work ) : क्रियात्मक क्षेत्र कार्य का अभिप्राय विभिन्न सामाजिक घर के कारणों व परिमाणों को समझने से होता है । इसकी सहायता से विभिन्न समस्याओं को समझकर उसके निदान के पास मिल पाते हैं । यह इस मान्यता पर आधारित है कि जब तक हम किसी समूह के लोगों की क्रियाओं व व्यवहारों वास्तविक अर्थ को न समझ लें , तब तक उस समूह के वास्तविक व्यवहारों की विवेचना नहीं की जा सकती ।

( 2 ) बोधपूर्ण क्षेत्र – कार्य ( Epistemic Field Work ) : जब ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से सामाजिक घटनाओं से सम्बन्धित तथ्यों के लिए क्षेत्र – कार्य किए जाते हैं , तब उसे बोधपूर्ण क्षेत्र – कार्य कहा जाता है । यह क्षेत्र – कार्य इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्यक्ष अनुभव के बिना सामाजिक घटनाओं की व्याख्या सम्भव नहीं है ।

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समाजशास्त्र में क्षेत्र – कार्य का महत्त्व

( Importance of Field Work in Sociology )

 

 सामाजशास्त्रीय अध्ययनों में क्षेत्र – कार्य एक उपयोगी विधि है । अधिकांश समाजशास्त्रीय ज्ञान क्षेत्र – कार्य से प्राप्त तथ्यों पर आधारित है । सामाजिक घटनाओं व परिवर्तन का ज्ञान , सामाजिक नीतियों व सामाजिक नियोजन का निर्धारण , ग्रामीण व नगरीय अध्ययनों , तथ्यों का सत्यापन व वैज्ञानिक अनुसंधान आदि में क्षेत्र – कार्य की भूमिका विशेष रही है । समाजशास्त्र में क्षेत्र – कार्य के महत्त्व को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है

( 1 ) सामाजिक समस्याओं का ज्ञान ( Knowledge of Social Problems ) : क्षेत्र – कार्य के माध्यम से सामाजिक समस्याओं की वास्तविक प्रकृति , उनके कारणों व परिणामों को समझा जा सकता है । भारत में व्याप्त घरेलू हिंसा , अन्तर – पीढी संघर्ष , स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार व जातिवाद आदि जैसी समस्याओं की सही जानकारी क्षेत्र – कार्य से मिल सकती है । इसी के आधार पर समस्याओं का निराकरण सम्भव हो सकता है ।

( 2 ) सामाजिक परिवर्तन की जानकारी ( Understanding of Social Change ) : परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है । क्षेत्र – कार्य के माध्यम से इन परिवर्तनों की सही जानकारी मिल पाती है । भारत में एम . एन . श्रीनिवास ( M . N . Srinivas ) एस . सी . दुबे ( S . C . Dubey ) , एम . एस . ए . राव ( M . S . A . Rao ) आदि ने क्षेत्र – कार्य के माध्यम से ही अनेक प्रक्रियाओं का उल्लेख किया जिन्हें भारतीय समाज की संरचना में होनेवाले परिवर्तनों को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया । संस्कृतिकरण , पश्चिमीकरण , लौकिकीकरण , आधुनिकीकरण , नगरीकरण व औद्योगीकरण आदि इसी तरह की प्रक्रियाएं हैं ।

( 3 ) सामाजिक नीतियों के निर्धारण में सहायक ( Heipful in Determining Social Policies ) : समाज का विकास नीतियों के निर्धारण से संभव है । समाजशास्त्र में क्षेत्र – कार्य के माध्यम से तथ्य एकत्रित किए जाते हैं , फिर नीतियों का निर्धारण सरकार व प्रशासक के द्वारा किया जाता है , जिससे समाज को विकास की ओर ले जाया जा सके । भारत में क्षेत्र – कार्य के माध्यम से प्राप्त ज्ञान के आधार पर ही सामाजिक जागरूकता की नीति अपनाई गई । इसके प्रभाव में अनेक समस्याओं का समाधान सम्भव हो सका ।

( 4 ) सामाजिक नियोजन में सहायक ( Helpful in Social Planning ) : समाज को संगठित करने में सामाजिक नियोजन की विशेष भूमिका होती है । गन्दी बस्तियों का सुधार , ग्रामीण व नगरीय नियोजन , दुर्बल व पिछड़े वर्गों का कल्याण , जनसंख्या नियंत्रण आदि सामाजिक नियोजन से सम्बन्धित विभिन्न दशाएँ हैं । क्षेत्र – कार्य के माध्यम से इसे समझा जा सकता है । फिर इन दशाओं के सन्दर्भ में सामाजिक नियोजन किया जा सकता है ।

( 5 ) वैज्ञानिक खोज ( Scientific Investigation ) : सामाजिक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की वैज्ञानिक खोज में क्षेत्र – कार्य का विशेष महत्त्व है । क्षेत्र कार्य के द्वारा विभिन्न सामाजिक तथ्यों को समझना सम्भव होता है , फिर उनकी सहायता से नई अवधारणाओं का विकास सम्भव हो पाता है । इस रूप में इसकी प्रकृति वैज्ञानिक है ।

 6 ) परिमाणात्मक एवं गणात्मक तथ्यों का अध्ययन ( Study of Quantitative and Qualitative Facts ) : क्षत्र – काय के द्वारा एक ओर परिमाणात्मक तथ्यों – जिसे संख्या में बताया जा सके कि जानकारी संभव होती है , तो दूसरी और गुणात्मक तथ्यों – अभिवृत्तियों , आशाओं व आकांक्षाओं आदि की जानकारी संभव हो पाती है । ये दोनों ही तरह के तथ्य सामाजिक जीवन को समझने में सहायक होते हैं ।

( 7 ) अन्य महत्त्व ( Other Importance ) : क्षेत्र – कार्य के अन्य अनेक महत्त्व बतलाए जा सकत ह ( 1 ) के द्वारा प्राप्त उत्तरों की जाच बहुत अधिक सीमा तक सम्भव होती है । ( ii ) क्षेत्र – कार्य के माध्यम से तथ्या जानकारी सम्भव है । ( iii ) क्षेत्र – कार्य के द्वारा विभिन्न प्रकार के पर्वाग्रहों व भ्रांतियों को दूर करने की संभावना अधिक होता है । ( iv ) क्षेत्र – कार्य के माध्यम से ग्रामीण अध्ययनों का होना संभव हुआ है । अन्य अनेक महत्त्व बतलाए जा सकते हैं – ( i ) क्षेत्र – कार्य

 

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