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समाजशास्त्र एक विज्ञान है

 

समाजशास्त्र एक विज्ञान है

( Sociology is a Science )

अगस्त कॉम्ट ने समाजशास्त्र को ‘ मानवता के वास्तविक विज्ञान ‘ (  Science of Humanity ) के नाम से सम्बोधित किया है । उनके मतानुसार , समाज शास्त्र सामाजिक घटनाओं के अध्ययन का विज्ञान है तथा यह अवलोकन और तुलनात्मक पद्धतियों के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है । कॉम्ट ने बतलाया कि विज्ञान की आधारभूत आवश्यकता उसकी वैज्ञानिक पद्धतियाँ हैं जिनमें अवलोकन एवं परीक्षण अथवा तुलनात्मक अध्ययन की पद्धतियाँ ही महत्त्वपूर्ण हैं । समाज की दो विभिन्न स्थितियों ( सामाजिक स्थितिकी एवं सामाजिक गत्यात्मकता ) का उल्लेख करते हुए कॉम्ट ने बतलाया कि समाजशास्त्र सामाजिक स्थितिकी ( Social Statics ) से सम्बद्ध सामाजिक संरचना के विभिन्न तत्त्वों ( अंगों ) का अवलोकन ( Observation ) करता है तथा सामाजिक , गत्यात्मकता ( Social Dynamics ) के अध्ययन के समय अवलोकन और तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग करता है । कम्टि ने उन्नीसवीं सदी के समाज को प्रत्यक्षवादी समाज के रूप में स्वीकार करते हुए इसे एक बेहतर समाज ( Better Society ) की संज्ञा दी है । उन्होंने बतलाया कि समाजशास्त्र भी प्रत्यक्षवादी पद्धति से समाज की घटनाओं का अध्ययन करता है , इसीलिए समाजशास्त्र एक विज्ञान है । ‘ विज्ञानों के संस्तरण ‘ ( Hierarchy of the Sciences ) को स्पष्ट करने के लिए आगस्त कॉम्ट ने ‘ बढ़ती हुई निर्भरता ‘ ( Increasing Dependence ) और ‘ घटती हुई सामान्यता ‘ ( Decreasing Genera lity ) के नियम का प्रतिपादन किया । इस नियम के आधार पर उन्होंने विज्ञानों के संस्तरण में समाजशास्त्र के आधारभूत स्थान एवं प्राथमिकता को प्रमाणित करके इसे एक प्रतिष्ठित स्थान देने में विशेष योगदान किया । समाजशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए कॉम्ट ने समाजशास्त्र आर प्राणी – विज्ञान की तुलनात्मक विवेचना प्रस्तुत की । कॉम्ट ने बतलाया कि जिस प्रकार प्राणी – विज्ञान , जीवित प्राणियों ( सावयव ) का अध्ययन करता है उसी प्रकार समाज

शास्त्र सामाजिक सावयव अथवा समाज की सावयवी संरचना ( Organic Structure of Scciety ) का अध्ययन करता है । कॉम्ट ‘ ने प्राणिशास्त्र की तुलना में समाजशास्त्र को एक अमूर्त विज्ञान ( Abstract Science ) के रूप में स्पष्ट किया । उन्होंने यह स्वीकार किया कि समाजशास्त्र में आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक एवं वैधानिक सभी प्रकार की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है । कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित इस मान्यता के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आगस्त कॉम्ट के अनुसार समाज शास्त्र एक समन्वयात्मक विज्ञान ( Synthetic Science ) है । समन्वयात्मक विज्ञान से यहाँ कॉम्ट का तात्पर्य यह है कि समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के किसी एक पक्ष का अध्ययन नहीं करता बल्कि यह मानव जीवन के समस्त सामाजिक पक्षों का अध्ययन समग्र रूप में करता है । विज्ञानों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कॉम्ट ने लिखा है विज्ञान की । एक प्रमुख विशेषता इसमें भविष्यवाणी करने की क्षमता का होना है । समाजशास्त्र की विशेषताओं की चर्चा करते हुए कॉम्ट ने बतलाया कि प्रत्यक्षवादी पद्धति के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करके समाजशास्त्र जिन नियमों का निर्धारण करता है , वे वैज्ञानिक नियम ही समाजशास्त्र को भविष्यवक्ता विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं । कॉम्ट समाजशास्त्र को केवल ज्ञान वृद्धि का विज्ञान नहीं मानते हैं बल्कि उन्होंने समाजशास्त्र को एक व्यावहारिक विज्ञान ( Applied Science ) के रूप में स्वीकार किया है । उनका कथन है कि समाजशास्त्र का उपयोग समाज के विकास और मानवता के कल्याण के लिए होना चाहिए । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने समाजशास्त्र को व्यावहारिक विज्ञान बनाने का सुझाव दिया और इसे सामाजिक दर्शन ( Social Philosophy ) से अलग माना । . . . कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित उक्त मान्यताओं के आधार पर हम उनके समाजशास्त्र सम्बन्धी विचारों को समझ सकते हैं । समाजशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट करने एवं इसे एक वैज्ञानिक रूप देने के लिए कॉम्ट ने जिन प्रमुख अवधारणाओं एवं पद्धति शास्त्रीय विचारों को स्पष्ट किया , प्रस्तुत विवेचन में उनके संक्षिप्त विवेचन द्वारा ही समाजशास्त्र के लिए कॉम्ट के वास्तविक योगदान को समझा जा सकता है ।

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समाज  की सावयवी संरचना  की अवधारणा

( Concept of Organic Structure of Society )

आगस्त कॉम्ट ने अपनी पुस्तक पाजिटिव फिलॉसफी में समाज की सावयवी सरचना को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । तत्कालीन दशाओं में इंग्लैण्ड में उपयोगितावादी सिद्धान्त ( Dectrine of Utilitarianism ) के द्वारा जिस व्यक्तिवाद ( Individualism ) को अत्यधिक महत्त्व दिया जा रहा था , उसका विरोध करते हुए कॉम्ट ने समूहवादी दर्शन ( Collective Philosophy ) को स्थापित किया । रूसो ( Roussean ) और सेण्ट साइमन ( Saint Simon ) ने जिस समूहवादी विचार का आरम्भ किया था , कॉम्ट ने उसे विकसित करते हुए सामाजिक चेतना ( S Consensus ) की व्याख्या के आधार पर समाज की संरचना को स्पष्ट किया , उन्होंने बतलाया कि समाज का निर्माण क्योकि सामाजिक चेतना के आधार पर होता है , इसीलिए समाज एक सामूहिक सावयव है ।

कॉम्ट ने समाजशास्त्र और जीवशास्त्र के बीच अनेक समानताओं का उल्लेख किया । इस सम्बन्ध में टर्नर ( Turner ) ने लिखा है कि ” सावयवी शरीर की अव धारणा को कॉम्ट ने समाजशास्त्र और जीवशास्त्र में सामान्य रूप से देखा है । ”  कॉम्ट ने सामाजिक संरचना और जैविक संरचना के बीच पायी जाने वाली समरूपता को स्वीकार करते हुए लिखा है कि “ मैं सामाजिक सावयव को परिवारों के एक ऐसे संयोजन के रूप में स्वीकार करता हूँ जो समाज के वास्तविक तत्त्व अथवा कोशिकाएँ ( Cells ) हैं । इस संरचना के अगले क्रम में वर्ग अथवा जातियों को रखा जा सकता है जो वास्तव में इसके तन्तु ( Tissues ) हैं और अन्त में , मैं नगरों और समुदायों को सामाजिक संरचना में समाहित करता हूँ जो समाज के वास्तविक अंग ( Organs ) हैं । ” कॉस्ट के इन विचारों को सरल शब्दों में समझने के लिए हमें इस व्याख्या में प्रयुक्त शब्दों को ‘ सावयवी शरीर ‘ की अवधारणा के आधार पर समझना होगा । वास्तव में प्रत्येक जीवित शरीर में बहुत – सी सूक्ष्म कोशिकाएँ पाई जाती हैं । ये कोशिकाएँ जीवित शरीर की सरलतम संरचना होती है । जीव – विज्ञानियों के मतानुसार इन कोशाओं अथवा कोशिकाओं में जीवन द्रव्य होता है तथा प्रत्येक कोशिका के अन्दर एक नाभिक ( Nucleus ) पाया जाता है । जीवित शरीर में ये कोशिकाएँ एक निरन्तर क्रमवद्धता में संयोजित होकर तन्तुओं का निर्माण करती हैं और बहुत से तन्त मिलकर जीवित शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण करते हैं ।  कॉम्ट ने जीव – विज्ञान की उक्त अवधारणा के आधार पर ही सामाजिक मावयव ( Social Organism ) की व्याख्या करते हुए बतलाया कि परिवार समाज की इकाई है जिसका सामाजिक सावयव में वही महत्त्व है जो महत्त्व जीवित शरीर में कोशिका का होता है । कॉम्ट के मतानुसार समाज के विभिन्न वर्गों अथवा जातियों में बहत – से परिवारों का समावेश होता है । इस प्रकार यही वर्ग तथा जातियाँ समाज के विभिन्न अंगों में पाये जाने वाले तन्तुओं के समान हैं ।

सामाजिक सावयव के अंगों की विवेचना करते हुए कॉम्ट ने बतलाया कि किसी समाज से सम्बन्धित विभिन्न नगर अथवा समुदाय ही समाज के अंग हैं ।: नगर अथवा जाति अथवा परिवार वर्ग समुदाय समाज सामाजिक सावयव को उपर्युक्त अर्थों में स्पष्ट करने के बाद कॉम्ट ने सामाजिक संरचना के व्याधिकीय पक्ष की भी चर्चा की । कॉस्ट ने बतलाया कि जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर या किसी जीवित शरीर में कोशिकाएँ कमजोर होकर शरीर के अंगों को कमजोर बना देती हैं , उसी प्रकार परिवारों तथा वर्गों का विघटन भी सामाजिक संरचना के विभिन्न अंगों को कमजोर बनाता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक जीवन की छोटी – बड़ी इकाइयों का विघटन ही सामाजिक विघटन का प्रमुख कारण है । इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कॉम्ट ने सामाजिक सावयव और जैविक सावयव की समरूपता की चर्चा करने के साथ ही इन दोनों सावयवों के बीच पाये जाने वाले अन्तर को भी स्पष्ट किया है । कॉम्ट ने बतलाया कि जैविक सावयव ( Biological Organs ) में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि सामाजिक सावयव के अंगों में परिवर्तनशीलता पाई जाती है तथा यह परि वर्तनशीलता भी अनेक वैज्ञानिक नियमों के द्वारा संचालित होती है ।

सामाजिक संरचना के सावयवी सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए  आगस्त कॉम्ट  ने इसे दो प्रमुख खण्डों में विभक्त किया है । पहले खण्ड में उन्होंने सामाजिक संरचना की स्थितिकी और दूसरे खण्ड में सामाजिक संरचना की परिवर्तनशीलता व्याख्या की है । उनके द्वारा प्रस्तुत इस अवधारणा को ‘ सामाजिक स्थितिकी ‘ सामाजिक गत्यात्मकता ‘ के नाम से जाना जाता है

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