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समाजशास्त्रीय अनुसन्धान में वस्तुनिष्ठता की समस्या

समाजशास्त्रीय अनुसन्धान में वस्तुनिष्ठता की समस्या

सामाजिक शोध में कठिनाइयाँ

( Difficulties in Social Research )

 

 

 

अब तक की विवेचना से स्पष्ट है कि ‘ सामाजिक घटना ‘ समाज वैज्ञानिक के लिए सबसे बड़ी समस्या है । इससे शोध के लिए वैज्ञानिक भावना के होते हुए भी अध्ययन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । सामाजिक घटनाओं की इस प्रकति के कारण अनुसंधानकर्ता के सामने जो व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं , वे इस प्रकार है  नियन्त्रित प्रयोग की समस्या सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में दो मौलिक समस्यायें आती हैं इन पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं किया जा सकता , और

 

 इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता है । नियन्त्रण और प्रयोग विज्ञान की मौलिक विशेषताएँ हैं । चूँकि सामाजिक घटनाएँ अमूर्त और जटिल प्रकृति की हैं , इसलिए इनका वैज्ञानिक अध्ययन करना प्रायः असम्भव है ।

 

माप असम्भव – माप वैज्ञानिक पद्धति की मौलिक विशेषता है । माप के , माध्यम से तथ्यों को सही संख्या और परिणामों में प्रस्तुत किया जाता है , किन्तु समाज की घटनाओं की न तो माप की जा सकती है और न ही इन्हें संख्याओं के आधार पर – प्रस्तुत ही किया जा सकता है ।

 

 पूर्वानुमान असम्भव – वैज्ञानिक यह बता सकता है कि किस महीने की कौन सी तारीख को मौनसून उत्तर भारत में प्रवेश करेगा । वह यह भी बता सकता है कि मानसून में उस वर्ष कितना पानी गिरेगा । किन्तु समाजशास्त्री यह नहीं बता सकता कि मानव व्यवहार में किस प्रकार का परिवर्तन कब आने वाला है । सामाजिक घटनाओं के बारे में पूर्व – अनुमान नहीं लगाया जा सकता है ।

 

 वैषयिकता का अभाव – सामाजिक घटनाएं अन्तर्मुखी होती हैं । इन सामाजिक घटनाओं के पीछे व्यक्ति के लगाव और विचार होते हैं । इनका परिणाम यह होता है कि शोध तटस्थ और पक्षपातरहित नहीं हो पाता है । सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में उसके विचार और भावनाएँ मिलकर उसे घटा – बढ़ा देते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि अध्ययन से जो परिणाम निकलते हैं , उनमें वैषयिकता का अभाव पाया जाता है ।

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सामाजिक घटना और सामाजिक कानून

( Social Phenomena and Social Laws )

 

उपर्युक्त विवेचना से ऐसा स्पष्ट होता है कि सामाजिक घटना की प्रकृति की जटिलता और अमूर्तता के कारण वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया जा सकता है । आज का युग विज्ञान का युग है । प्रत्येक तथ्य और घटना को हम तभी स्वीकार करते हैं , जबकि वह विज्ञान के माध्यम से प्राप्त की गई हो । जीवन के हर क्षेत्र में वैज्ञानिक भावना को स्वीकार किया जाता है । सामाजिक शोध के द्वारा सामाजिक जीवन सामाजिक समस्याओं और सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करने का प्रयास करते हैं । सामाजिक घटनाओं की प्रकृति के कारण सामाजिक शोध में वैषयिकता और वैज्ञानिकता नहीं आ पाती है । सामाजिक शोध में कठिनाइयों के कारण जो मौलिक समस्या पैदा होती है वह है ‘ सामाजिक घटनाओं का सामान्यीकरण ‘ ( Generalization of social phenomena ) |

सामान्यीकरण का अर्थ है ‘ सामाजिक कानूनों ‘ ( Social Laws ) का निर्माण करना । सामाजिक कानून या सामाजिक नियम समाज के आधार – स्तम्भ होते हैं , इन्हीं कानूनों के आधार पर समाज के सम्बन्ध में निश्चित जानकारी प्राप्त की जा सकती है । उदाहरण के लिए , परिवार से सम्बन्धित नियम ‘ पारिवारिक विघटन , तलाक , आत्महत्या और अपराध का कारण है । इसी प्रकार सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करके समाज से सम्बन्धित नियमों का निर्माण किया जा सकता है । सामाजिक कानूनों का निर्माण तब होगा , जब समाज की घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र में विभिन्न प्रकार की पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है । ये पद्धतियाँ समाज की व्याख्या करती हैं और समाज के सम्बन्ध में नियमों का निर्माण करती हैं ।

 

 

समाजशास्त्रीय अनुसन्धान में वस्तुनिष्ठता की समस्या

( Problem of Objectivity in Sociological Enquiry )

 

सामाजिक शोध का मौलिक उद्देश्य किसी सामाजिक घटना का वैज्ञानिक अध्ययन करना है । वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य यथार्थता को सामने लाना है । इसके लिए सामाजिक अध्ययन में वस्तुनिष्ठता ( Objectivity ) लाने की आवश्यकता पड़ती है । ” वास्तव में जैसा है ” उसी रूप में एक घटना विशेष का अध्ययन करना वस्तुनिष्ठ अध्ययन ( Objective study ) कहलाता है । घटनाएं , जिनका अध्ययन वैज्ञानिक करते हैं , मूल रूप में दो श्रेणियों में विभाजित की जाती हैं – प्राकृतिक घटना ( Natural phenomena ) तथा सामाजिक घटना ( Social phenomena ) । एक शोधकर्ता जब प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करता है तो उसे वस्तुनिष्ठता कायम रखने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है । परन्तु सामाजिक घटनाओं के मामले में यह बात लागू नहीं होती हैं । उदाहरणार्थ , विद्यार्थियों में पाई जाने वाली अनुशासनहीनता की घटना को एक व्यक्ति जिस रूप में देखता है , यह जरूरी नहीं कि दूसरा व्यक्ति भी उसे उसी रूप में देखे । इसलिए सामाजिक घटना का वास्तविक अध्ययन करना बहुत ही कठिन कार्य है । लुण्डबर्ग ने लिखा है कि , “ अभिनति तथा पक्षपात सभी विज्ञानों में जटिलता उत्पन्न करने वाले तत्व हैं , परन्तु उनका महत्त्व समाज विज्ञानों की अपेक्षा भौतिक विज्ञानों में कम है । “

 

प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार और दृष्टिकोण होते हैं , उसके अपने संस्कार और प्रतीक होते हैं । ये विचार और संस्कार व्यक्ति की मानसिक स्थिति को विकत कर देते है । इसका कारण यह है कि घटनाओं के सम्बन्ध में व्यक्तियों के अलग – अलग विचार और संस्कार हैं । जो घटना एक व्यक्ति के लिए अच्छी लगती हैं , वह दसरों के लिए बहत ही दुखदायी प्रतीत होती है । ऐसी स्थिति में यह अत्यन्त ही कठिन कार्य हो जाता है कि घटना के बारे में निष्कर्ष किस प्रकार निकाले जायें । साथ ही , घटनाएँ जटिल भी होती हैं । इन घटनाओं की जटिल प्रकृति के कारण और शोधकर्ता के स्वार्थ के कारण शोध में अभिनति की सम्भावना बढ़ जाती है । इस प्रकार जब शोधकर्ता अभिनति से दूर रहकर तटस्थता के साथ सामाजिक घटना का अध्ययन करता है , तो इसे ही वस्तुनिष्ठता के नाम से पुकारा जाता है ।

 

 

-सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता सामाजिक घटनाओं और तथ्यों से सम्बन्धित सामग्री का संकलन करता है । यह संकलित सामग्री दो प्रकार की होती है सामाजिक तथ्यों से सम्बन्धित वह सामग्री जिसे शोधकर्ता ने अपने दृष्टिकोण से संकलित की है और उसकी व्याख्या अपने ढंग से की है ।

– सामाजिक तथ्यों से सम्बन्धित वह सामग्नी जिसे शोधकर्ता ने उसी रूप में देखा है , जिस रूप में वे वास्तव में होती हैं । ऐसा करते समय बह पहली संकलित सामग्री के अलग रखता है । – शोधकर्ता द्वारा किया गया इस प्रकार की अध्ययन वास्तविक अध्ययन कहलाता है । वास्तविक अध्ययन को ही सामाजिक शोध की भाषा में वस्तुनिष्ठता की संज्ञा दी जाती है  वस्तुनिष्ठता की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

 

 ग्रीन – ” वस्तुनिष्ठता प्रमाण का निष्पक्षता से निरीक्षण करने की इच्छा एवं योग्यता है । ” न कार – ” सत्य की वस्तुनिष्ठता से अभिप्राय यह है कि दृष्टि विषयक संसार किसी व्यक्ति के विश्वासों , आशाओं या भय से स्वतन्त्र एक वास्तविकता है , जिसे हम सहज ज्ञान एवं कल्पना से नहीं , बल्कि वास्तविक अवलोकन के द्वारा प्राप्त करते हैं । “

 

फेयरचाइल्ड – ” वस्तुनिष्ठता का अर्थ है वह योग्यता जिसमें एक शोधकर्ता स्वयं को उन परिस्थितियों से अलग रख सके , जिसमें वह सम्मिलित है और रोग – द्वेष एवं उद्वेग के स्थान पर अपक्षपात और पूर्वधारणाविहीन प्रमाणों या . उधार पर तथ्यों को उन्हीं की स्वाभाविक प्रष्ठभूमि में देख सकें । “

 

इस प्रकार ‘ वस्तुनिष्ठता को शोध करने वाले व्यक्ति की उस भावना और क्षमत के रूप में परिभाषित किया जा सकता है , जिसके द्वारा वह घटनाओं को उसी रूप देखता है , जैसा कि वे वास्तव में होती हैं ।

 

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वस्तुनिष्ठता की विशेषताएँ

( Characteristics of Objectivity )

 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर वस्तुनिष्ठता में निम्नलिखित विशेषताएं पाई

– वस्तनिष्ठता सामाजिक शोध में प्रयुक्त सामग्री संग्रहण का साधन नहीं है अपितु यह स्वयं में एक साध्य है ।

 – वस्तुनिष्ठता कोई भौतिक वस्तु न होकर इसका स्वरूप अमूर्त होता है ।

– वस्तुनिष्ठता का सम्बन्ध व्यक्ति के विचारों , भावनाओं , मनोवृत्तियों , क्षमताओं और योग्यताओं से है ।

– वस्तनिष्ठता वह शक्ति है , जिसकी सहायता से व्यक्ति घटनाओं को उनके वास्तविक स्वरूप में दिखाने का प्रयास करता है ।

– अन्त में वस्तुनिष्ठता वैज्ञानिक भावना का मख्य तत्व है ।

 

 

वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता व महत्व

( Importance and Need of Objectivity )

 

 वस्तुनिष्ठता सामाजिक शोध का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है । इसके बिना सामाजिक शोध को विज्ञान सम्मत नहीं कहा जा सकता । निम्नलिखित कारण सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता के महत्व को प्रकट करते हैं

 

वैज्ञानिक पद्धति का सफल प्रयोग ( Successful use of scientific method ) – सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है । इन पद्धतियों के प्रयोग की तभी उपयोगिता है , जबकि वस्तुनिष्टता को इसमें स्थान दिया जाय । यदि वस्तुनिष्ठता को सामाजिक शोध में स्थान प्रदान नहीं किया जाता है , तो चाहे हम कितनी ही अच्छी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग क्यों न करें , उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायेंगे वे न तो सत्य होंगे और न ही उनका सत्यापन ही किया जा सकेगा । सामाजिक शोध में वैज्ञानिक विधियों का सफल प्रयोग किया जाय , इसके लिए यह आवश्यक है कि इसमें वस्तुनिष्ठता को स्थान प्रदान किया जाए ।

 

 नए अनुसंधानों के लिए ( For new investigations ) – व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन ही नवीन ज्ञान से भरा पड़ा है । जीवन के बारे में जितना ज्ञान प्राप्त किया गया है , वह पर्याप्त नहीं है । जीवन के बारे में प्राप्त ज्ञान का आधार सत्यता और उसकी जाँच है । यदि सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करते हुए , उसका वास्तविक अध्ययन किया जाता है , तो उससे नवीन ज्ञान की प्राप्ति तो होती है , इसके साथ ही साथ ऐसी परिकल्पना ( Hypothesis ) भी निर्मित हो जाती है , जो सामाजिक शोध के लिए आधार प्रस्तुत करती है । इसलिए नये अनुसंधानों की सम्भावनाओं का विकास करने की दृष्टि से सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता का अत्यन्त ही महत्त्व है ।

 

 

 वास्तविक अध्ययन ( Real study ) – अध्ययनकर्ता द्वारा सामाजिक शोध को वास्तविकता की ओर ले जाने के लिए यह आवश्यक है कि इसे वस्तुनिष्ठ बनाया जाय । एक ही वस्तु या घटना का अध्ययन जब भिन्न – भिन्न व्यक्तियों द्वारा किया जाय , तो इस अध्ययन को वस्तुपरक या वास्तविक अध्ययन कहा जाता है । जब एक ही घटना के अलग – अलग निष्कर्ष निकाले जाते हैं , तो इसका तात्पर्य यह होता है कि अध्ययन में वास्तविकता की उपेक्षा की गई है । इसलिए सामाजिक शोध में घटनाओं और तथ्यों में वास्तविकता लाने के लिए दुनिष्ठता अनिवार्य है ।

 

 मालिक तथ्यों की प्राप्ति ( To get original facts ) – सामाजिक शोध म मालिक तथ्या की प्राप्ति के लिए भी वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता है । सामाजिक शाधा 29 का उद्देश्य ही यही है कि सामाजिक जीवन और घटनाओं में निहित मल तथ्यों को प्राप्त किया जाय , किन्तु उन मूल तथ्यों को प्राप्त करना बहत ही कठिन कार्य है , क्योंकि इसमें व्यक्ति अपनी ओर से थोड़ा – बहत जोड – घटाकर उसे अपने अनरूप लाने का कोशिश करता है । इसलिए वह जो अध्ययन करता है और जिन तथ्यों को प्राप्त करता । उन्हें सार्वभौमिक सत्य नहीं माना जा सकता है । अध्ययन के द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य माना जाय , इसलिए आवश्यक है कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता को स्थान दिया जाय । सामाजिक शोध को वास्तविक बनाने और इनके द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य में परिणित करने की दृष्टि से वस्तुनिष्ठता का अत्यधिक महत्व है ।

 पक्षपातरहित निष्कर्ष ( Unprejudiced conclusions ) – सामाजिक शोधों को सम्पादित करने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जो निष्कर्ष निकाले जायें , वे पक्षपातरहित हों । अर्थात् इसमें शोधकर्ता के व्यक्तिगत विचार और उसके अपने दृष्टिकोण न हों । सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करते समय व्यक्ति के लिए पक्षपात से पूरी तरह से अलग रहना बहुत ही कठिन है । ऐसा सम्भव नहीं है , जबकि वह जो भी अध्ययन करे , उसी में वस्तुनिष्ठता हो । चूँकि शोधकर्ता में पक्षपात की काफी सम्भावनाएँ रहती हैं । इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की और भी अधिक आवश्यकता है ।

 

 सत्यापन के लिए आवश्यक ( Essential for verification ) – विज्ञान का मौलिक विशेषता यह है कि उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायें , वे सत्य तो हों ही , इसके साथ ही उनकी कभी भी परीक्षा और पुनःपरीक्षा की जा सके । जब शोधकर्ता अपने विचारों और भावनाओं को अध्ययन की विषय वस्तु के साथ जोड़ देता है , तो सत्यापन सम्भव नहीं है । अर्थात् जो निष्कर्ष निकाल जायेंगे , वे परीक्षा और पुनःपरीक्षा की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे । इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता का महत्व है ।

 

 

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वस्तनिष्ठता की प्राप्ति में कठिनाइयाँ

( Difficulties in achieving Objectivity )

 

_ _ _ सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता आवश्यक है । वस्तुनिष्ठता के अभाव में सामाजिक शोध को वैज्ञानिकता की ओर ले जाना असम्भव है । वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति कैसे की जाय ? अनेक ऐसी व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं , जो वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के मार्ग में बाधा उपस्थित करती हैं । यहाँ सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में जो व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं , वे इस प्रकार हैं

 

 

शोधकर्ता के निजी स्वार्थ ( Vested interest of researcher ) – शोधकर्ता के निजी स्वार्थ भी सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं । सामाजिक शोध के द्वारा व्यक्ति जो निष्कर्ष निकालता है , उसमें ऐसा प्रयास करता है करता ही उसके स्वार्थो को आघात न पहुंचे । जो निष्कर्ष उसके स्वार्थों के विपरीत होते न्हें स्वीकार नहीं करता है । साथ ही ऐसे तथ्यों को प्राप्त करने का प्रयास जोकि उस व्यक्ति के हितों और स्वार्थों के अनुकूल होते हैं । ऐसी स्थिति में वस्तनिष्ठता को रख सकना , उस व्यक्ति के लिए असम्भव होता है ।

 

 विरोधी पक्षपातों की सम्भावना ( Possibility of counter – prejudices ) – यदि भकर्ता सामाजिक शोध में पक्षपात से बचने का प्रयास करता है , तो उसे बाध्य होकर उनका विरोध या उनकी आलोचना करनी पड़ती है । इन दो सीमाओं में व्यक्ति यदि किसी का भी चुनाव करता है , तो उसका अध्ययन वैज्ञानिक नहीं हो पाता है । यदि वह पक्षपात न करना चाहे , तो इतना सतर्क रहता है और इतनी तीव्र द्रष्टि रखता है कि आलोचना करना उस व्यक्ति के लिए अनिवार्य हो जाता है । ऐसी स्थिति में वस्तुनिष्ठता का प्रश्न ही नहीं उठता है ।

 

 शीघ्र निर्णय ( Immediate decision ) – सामाजिक शोध का सम्पादन वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा होता है । इसलिए इसमें समय और साहस की आवश्यकता होती है । शोधकर्ता को अत्यन्त ही धैर्य के साथ निष्कर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है । सामाजिक जीवन से सम्बन्धित सभी शोध ज्ञान की प्राप्ति के लिए ही नहीं किये जाते हैं । कुछ क , उद्देश्य तो किसी विशिष्ट समस्या का समाधान करना होता है । ऐसे शोधों का निपटारा शीघ्र करना पड़ता है । निष्कर्षों की शीघ्रता के कारण भी सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता नहीं आ पाती है ।

 

 बाह्य हितों द्वारा बाधा ( Difficulties due to external interests ) – शोधकर्ता के निजी स्वार्थ ही वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित नहीं करते हैं , अपितु बाह्य कारण और परिस्थितियाँ भी बाधा उपस्थित करती हैं । जब शोधकर्ता अपने ही समूह का अध्ययन कर रहा होता है , तो अनेक बातों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर वस्तुस्थिति को टालने का प्रयास करता है ; जैसे – विवाह के पूर्व लिंग सम्बन्धों की स्थापना , विवाह से पूर्व मातृत्व आदि । इस प्रकार बाह्य हित भी सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता के मार्ग में बाधा उपस्थित करते हैं ।

 

 सामाजिक घटना की प्रकृति ( Nature of social phenomena ) – अन्त में , सामाजिक घटना की प्रकृति वस्तुपरक अध्ययन के मार्ग में बाधा उपस्थित करती है । सामाजिक घटनाओं की प्रकृति गुणात्मक होती है । उसमें सामाजिक मूल्य , आदर्श , धर्म , नैतिकता आदि तत्व जुड़े रहते हैं । शोधकर्ता इन तत्त्वों के बारे में वस्तुपरक मत प्राप्त नहीं करता है । इस प्रकार वस्तुनिष्ठता के मार्ग में बाधा उपस्थित होती है ।

 

विशिष्ट मूलक भ्रान्ति – डब्लू . आई . थामस के अनुसार , सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में एक कठिनाई विशिष्ट मूलक भ्रान्ति भी है । विशिष्ट मूलक भ्रान्ति के कारण शोधकर्ता सामाजिक घटना के किसी एक कारण को आवश्यकता सा

 

अधिक महत्त्व देता है तथा घटना के किसी एक पक्ष को सबसे महत्वपूर्ण मानकर अपर्याप्त तथा असम्बद्ध तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेता है , जिससे वस्तनिष्ठता प्राप्ति में कठिनाई आती है । _ _ _

 

  असत्य प्रतिमाएँ ( False idols ) – फ्रांसिस बेकन ने विशिष्ट वाक्यांश के द्वारा शोधकर्ता द्वारा किसी शोध में की जाने वाली गलतियों को बतलाया है । फ्रांसिस बेकन के अनुसार , ” ये प्रतिमाएँ अनेक प्रकार की होती हैं ; जैसे – गुफा की प्रतिमा ( Idols of Cave ) अर्थात् वे गलतियाँ , जिन्हें शोधकर्ता अपने संकीर्ण तथा असम्बद्ध विचारों के फलस्वरूप एक घटना या व्यक्ति के सम्बन्ध में कर बैठता है , ये विचार उसके अपने विचार होते हैं अथवा ऐसे होते हैं , जिनके विषय में कोई दूसरा नहीं जानता है । न्यायालय या वादपीठ की प्रतिमाएँ ( Idols of Forum ) अर्थात् शोधकर्ता केवल शब्दों पर अनावश्यक भरोसा करने की गलती कर बैठता है । बाजार की प्रतिमाएँ ( Idols of the Market place ) अर्थात् प्रथा , परम्परा , रूढ़ि इत्यादि पर अनावश्यक बल देने और उसी के आधार पर निष्कर्षों को निकालने की गलती । जनजाति की प्रतिमाएँ ( The Idols of the Tribe ) अर्थात् शोधकर्ता किसी वस्तु या घटना को अपने ही ढंग से देखने या विचारने की गलती करता है । अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण या जीवन के सम्बन्ध में अपने सीमित ज्ञान के बाहर निकलकर कुछ निष्कर्ष निकालना अक्सर शोधकर्ता के लिए कठिन होता है । इस असत्य प्रतिमाओं के कारण वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में मुश्किल होती है ।

 

 

 

 अभिनति के विभिन्न स्रोत ( Various sources of bias ) – अभिनति की एक कृत्रिम स्थिति बनावटी स्थिति है । इसके कारण सामाजिक शोधकर्ता अध्ययन विषय की घटना को उसके वास्तविक रूप ( Real Form ) में न देखकर पहले से ही निर्धारित उसके काल्पनिक रूप में देखता है । अभिनति वे स्थितियाँ और कारक हैं , जिनके द्वारा घटनाओं को उनके वास्तविक रूप में देखने में बाधा उपस्थित होती है । ‘ जब किसी घटना को उसके वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत न करके बाह्य प्रभावों से उसे रंग कर प्रस्तुत किया जाता है , तो ऐसा करने की क्रिया को ही अभिनति के नाम से जाना जाता है । इसलिए सामाजिक शोध में अभिनति के समावेश के कारण वस्तुनिष्ठता नहीं आ पाती है । परिणामस्वरूप अध्ययन में वैज्ञानिकता का अभाव पाया जाता है और जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं , उनमें सत्यापन की कमी पाई जाती है । इस प्रकार अभिनति सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है । अभिनति अनेक स्रोतों से आकर शोध में बाधा उपस्थित करती है । अभिनति के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

 

शोधकर्ता की अभिनति ( Bias of researcher ) – सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में जो महत्त्वपूर्ण अभिनति बाधा उपस्थित करती है , उसमें शोधकर्ता की स्वयं की अपनी अभिनति महत्त्वपूर्ण है इसका मौलिक कारण यह है कि अध्ययनकर्ता अपने को अध्ययन से अलग रखने में असमर्थ होता है । पी . वी . यंग का विचार है कि सामाजिक घटनाओं का शुद्ध अवलोकन सम्भव नहीं है , इसका कारण यह है कि शोधकर्ता की ज्ञानेन्द्रियाँ धोखा खा जाती हैं । शोधकर्ता के अपने संस्कार , विचार , पर्यावरण , संस्कृति , उसकी सामाजिक विरासत , दृष्टिकोण , मनोवृत्तियाँ और राग – द्वेष होते हैं , जो वस्तुनिष्ठता के प्राप्ति के मार्ग में बाधा उपस्थित करते हैं ।

सूचनाओं की अभिनति ( Bias of informants ) – वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में जो दूसरी अभिनति महत्वपूर्ण होती है , उसका सम्बन्ध सूचनादाताओं से है । सामाजिक शोधों की सत्यता सूचनादाताओं के उत्तर पर ही आधारित होती है । यदि उत्तर है , उन्हें सार्वभौमिक सत्य नहीं माना जा सकता है । अध्ययन के द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य माना जाय , इसलिए आवश्यक है कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता को स्थान दिया जाय । सामाजिक शोध को वास्तविक बनाने और इनके द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य में परिणित करने की दृष्टि से वस्तुनिष्ठता का अत्यधिक महत्व है । (

 

पक्षपातरहित निष्कर्ष ( Unprejudiced conclusions ) – सामाजिक शोधों को सम्पादित करने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जो निष्कर्ष निकाले जायें , वे पक्षपातरहित हों । अर्थात् इसमें शोधकर्ता के व्यक्तिगत विचार और उसके अपने दृष्टिकोण न हों । सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करते समय व्यक्ति के लिए पक्षपात से पूरी तरह से अलग रहना बहुत ही कठिन है । ऐसा सम्भव नहीं है , जबकि वह जो भी अध्ययन करे , उसी में वस्तुनिष्ठता हो । चूँकि शोधकर्ता में पक्षपात की काफी सम्भावनाएँ रहती हैं । इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की और भी अधिक आवश्यकता है ।

 

 सत्यापन के लिए आवश्यक ( Essential for verification ) – विज्ञान का मौलिक विशेषता यह है कि उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायें , वे सत्य तो हों ही , इसके साथ ही उनकी कभी भी परीक्षा और पुनःपरीक्षा की जा सके । जब शोधकर्ता अपने विचारों और भावनाओं को अध्ययन की विषय वस्तु के साथ जोड़ देता है , तो सत्यापन सम्भव नहीं है । अर्थात् जो निष्कर्ष निकाल जायेंगे , वे परीक्षा और पुनःपरीक्षा की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे । इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता का महत्व है ।

 

वैज्ञानिक पद्धति का सफल प्रयोग ( Successful use of scientific method ) – सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है । इन पद्धतियों के प्रयोग की तभी उपयोगिता है , जबकि वस्तुनिष्टता को इसमें स्थान दिया जाय । यदि वस्तुनिष्ठता को सामाजिक शोध में स्थान प्रदान नहीं किया जाता है , तो चाहे हम कितनी ही अच्छी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग क्यों न करें , उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायेंगे वे न तो सत्य होंगे और न ही उनका सत्यापन ही किया जा सकेगा । सामाजिक शोध में वैज्ञानिक विधियों का सफल प्रयोग किया जाय , इसके लिए यह आवश्यक है कि इसमें वस्तुनिष्ठता को स्थान प्रदान किया जाए ।

 

नए अनुसंधानों के लिए ( For new investigations ) – व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन ही नवीन ज्ञान से भरा पड़ा है । जीवन के बारे में जितना ज्ञान प्राप्त किया गया है , वह पर्याप्त नहीं है । जीवन के बारे में प्राप्त ज्ञान का आधार सत्यता और उसकी जाँच है । यदि सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करते हुए , उसका वास्तविक अध्ययन किया जाता है , तो उससे नवीन ज्ञान की प्राप्ति तो होती है , इसके साथ ही साथ ऐसी परिकल्पना ( Hypothesis ) भी निर्मित हो जाती है , जो सामाजिक जीवन और घटनाओं से सम्बन्धित होता है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । इसलिए इन सामाजिक घटनाओं से व्यक्ति का लगाव और पूर्वाग्रह स्वाभाविक होते हैं । समाज की घटनाएँ सामाजिक मूल्यों ( Social values ) और आदर्शों ( Norms ) से सम्बन्धित होती हैं । इन मूल्यों के प्रति व्यक्ति का लगाव उसकी भावनाएँ होती हैं । घटनाएँ गणात्मक प्रकृति ( Qualitative Nature ) की होती हैं । इनका संख्यात्मक अध्ययन ( Quantitative Study ) करना कठिन होता है । भावनात्मक प्रवृत्तियाँ व्यक्ति को बाध्य करती हैं और इस प्रकार वस्तुपरकता की प्राप्ति में बाधा उपस्थिति होती है ।

 

  नैतिक पक्षपात ( Moral prejudices ) – प्रत्येक व्यक्ति के कुछ अपने नैतिक मूल्य होते हैं । ये नैतिक मूल्य व्यक्ति के जीवन और कार्यों के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं । व्यक्ति इन मूल्यों की रक्षा करता है तथा इनके अनुकूल आचरण करता है । इतना ही नहीं , जो व्यक्ति इन नैतिक मूल्यों की उपेक्षा करता है , उसके बारे में विरोधी दृष्टिकोण को जन्म देते हैं । यदि कोई ऐसा तथ्य है , जो नैतिक मूल्यों से मेल नहीं खाता है , तो व्यक्ति उस ओर उदासीन दृष्टिकोण अपना लेता है । ऐसी स्थिति में जो सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं , वे एकांगी होती हैं और वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करती हैं ।

 

 सामान्य समझ ( General understanding ) – प्रत्येक व्यक्ति का ज्ञान और उसकी समझ सीमित होती है । एक व्यक्ति की समझ और ज्ञान को सामान्य समाज की समझ और ज्ञान नहीं माना जा सकता है । जो तथ्य हमारे सामान्य समझ के अनुकूल होते हैं , उन्हें अपना लिया जाता है और जो तथ्य मेल नहीं खाते हैं , उन्हें गलत मान लिया जाता है । ऐसी स्थिति में वास्तविक तथ्यों की जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है और जो सामग्री संकलित की जाती है , उसमें वस्तुनिष्ठता का अभाव पाया जाता है ।

 

 सांस्कृतिक पर्यावरण ( Cultural environment ) – प्रत्येक व्यक्ति का अपना सांस्कृतिक वातावरण होता है । व्यक्ति जिस सांस्कृतिक वातावरण में पलता है उसी के अनुरूप अपने विचार और दृष्टिकोण निर्मित कर लेता है । सामाजिक शोध के दौरान व्यक्ति जिन तथ्यों को एकत्रित करता है , उन्हें अपनी संस्कृति के अनुरूप समझने का प्रयास करता है । ऐसी स्थिति में वह समाज की घटनाओं का अध्ययन अपने सांस्कृतिक पर्यावरण में करने का प्रयास करता है । वह अनेक प्रयासों के बावजूद भी अपने सांस्कृतिक प्रतिमानों में और आदर्शों को सामाजिक घटनाओं से अलग करने में असमर्थ रहता है । ऐसी स्थिति में , वह जो अध्ययन करता है , उसमें वस्तुनिष्ठता नहीं आ पाती

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