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संस्कृति

संस्कृति

( Culture )

 

 सामान्यतः संस्कृति शब्द का प्रयोग हम दिन – प्रतिदिन के जीवन में ( अकरार ) निरन्तर करते रहते हैं । साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न – भिन्न अर्थों में भी करते हैं । उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है । समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है । अतः संस्कृति का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में ” सीखा हुआ व्यवहार ” होता है । अर्थात् कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है , उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका , बात करने का तरीका , भाषा का ज्ञान , लिखना – पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है ।

 

मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है ? मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं

( अ ) जैविक व्यवहार ( Biological behaviour ) जैसे – मूख , नींद , चलना , दौड़ना ।

( ब ) मनोवैज्ञानिक व्यवाहार ( Psychological behaviour ) जैसे – सोचना , डरना , हँसना आदि ।

( स ) सामाजिक व्यवहार ( Social behaviour ) जैसे – नमस्कार करना , पढ़ना – लिखना , बातें करना आदि ।

 

 संस्कृति के अन्तर्गत हम जैविकीय व्यवहार अथवा मनोवैज्ञानिक व्यवहार का नहीं लेते । संस्कृति मानव व्यवहार का वह पक्ष है जिसे व्यक्ति समाज क सदस्य के रूप में सीखता है जैसे – वस्त्र पहनना , धर्म , ज्ञान आदि । मानव एवं पशु समाज में एक महत्वपूर्ण अन्तर यही है कि मानव संस्कृति का निर्माण कर सका जबकि पशु समाज क पास इसका अभाव है ।

क्या आप जानते हैं कि मानव संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?

 लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White ) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया है , जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरुप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :

 पहली विशेषता है – मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है ।

दूसरा – मनुष्य के हाथों की बनावट है , जिसके फलस्वरुप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह – तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।

तीसरा – मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण एवं अवलोकन कर पाता है और तरह – तरह की खोज एवं अविष्कार करता है ।

 चौथा – विकसित मस्तिष्क , जिसकी सहायता से मनुष्य अन्य प्राणियों से अधिक अच्दी तरह सोच सकता है । इस मस्तिष्क के कारण ही वह तर्क प्रस्तुत करता है तथा कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित कर पाता है ।

पाँचवौं – प्रतीकों के निर्माण की क्षमता । इन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति अपने ज्ञान व अनुभवों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी में हस्तांतरित कर पाता है । प्रतीकों के द्वारा ही भाषा का विकास सम्भव हुआ और लोग अपने ज्ञान तथा विचारों के आदान – प्रदान में समर्थ हो पाये हैं । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रतीकों का संस्कृति के निर्माण , विकास , परिवर्तन तथा विस्तार में बहुत बड़ा योगदान है ।

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 क्या आप जानते हैं ?

 

प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832 – 1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है । टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार , ” संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है । टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है । इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है । इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है ।

 

 संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा

राबर्ट बीरस्टीड ( The Social Order ) द्वारा संस्कृति की दी गयी परिभाषा है कि ” संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है , जिसमें वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं , जिन पर हम विचार करते हैं , कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते इस परिभाषा में संस्कृति दोनों पक्षों भौतिक एवं अभौतिक को सम्मिलित किया गया है ।

 हर्षकोविट्स ( Man and His Work ) के शब्दों में ” संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है । इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के दो भाग होते हैं पहला – प्राकृतिक और दूसरा – सामाजिक । सासाजिक पर्यावरण में सारी भौमिक और अभौतिक चीजें आती हैं , जिनका निर्माण मानव के द्वारा हुआ है । उदाहरण के जिए कुर्सी , टेबुल , कलम , रजिस्टर , धर्म , शिक्षा , ज्ञान , नैतिकता आदि । हर्षकोविट्स ने इसी सामाजिक पर्यावरण , जो मानव द्वारा निर्मित है , को संस्कृति कहा है ।

 

बोगार्डस के अनुसार , ” किसी समूह के कार्य करने और विचार करने के सभी तरीकों का नाम संस्कृति है । ” इस पर आप ध्यान दें कि , बोगार्डस ने भी बीयरस्टीड की तरह ही अपनी भौतिक एवं अभौतिक दोनों पक्षों पर बल दिया है ।

 

मैलिनोस्की – संस्कृति मनुष्य की कृति है तथा एक साधन है , जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है । आपका कहना है कि ” संस्कृति जीवन व्यतीत करने की एक संपूर्ण विधि ( Total Way of Life ) है जो व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । “

रेडफिल्ड ने संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा कि ” संस्कृति किसी भी समाज के सदस्यों की जीवन – शैली ( Style of Life )

 उपयुक्त परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट होता है कि विभिन्न समाजशास्त्रियों एवं मानवशास्त्रियों ने अपने – अपने दृष्टिकोण के आधार पर संस्कृति की परिभाषा दी है । वास्तव में संस्कृति समाज की जीवन विधि है ( Way of Life ) और इस रूप में यह आवश्यक परिवर्तन व परिमार्जन के बाद पीढ़ी – दर पीढी हस्तांतरित होती रहती है । संस्कृति के अन्तर्गत विचार तथा व्यवहार के सभी प्रकार आ जाते हैं । अतः यह स्पष्ट होता है कि संस्कृति में भौतिक एवं अमौतिक तत्वों की वह जटिल संपूर्णता , जिसे व्यक्ति समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है तथा जिसके माध्यम से अपनी जिन्दगी गुजारता है ।

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संस्कृति की प्रकृति या विशेषताँए

( Nature or Characteristics of Culture )

 

 संस्कृति के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचारों को जानने के बाद उसकी कुछ विशेषताए स्पष्ट होती है , जो उसकी प्रकृति को जानने और समझने में भी सहायक होती है । यहाँ कुछ प्रमुख विशेषताओं का विवेचन किया जा रहा

 

1 . संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है ( Culture is learned behaviour ) – संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है । इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता , बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है । यह सीखना जीवन पर्यन्त अर्थात् जन्म से मृत्यु तक अनवरत चलता रहता है । आपको जानना आवश्यक है कि संस्कृति सीख हुआ व्यवहार है , किन्तु सभी सीखे हुए व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है । पशुओं द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृतिनहीं कहा जा सकता , क्योंकि पशु जो कुछ भी सीखते हैं उसे किसी अन्य पशु को नहीं सीखा सकते । संस्कृति के अंतर्गत वै आदतें और व्यवहार के तरीके आते है , जिन्हें सामान्य रूप से समाज के सभी सदस्यों द्वारा सीखा जाता है । इस सन्दर्भ में लुन्डबर्ग ( Lundbarg ) ने कहा है कि , ” संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा प्राणीशास्त्रीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती , वरन् यह सामाजिक सीख एवं अनुभवों पर आधरित रहती है ।

 

 ii . संस्कृति सामाजिक होती है ( Culture is Social ) – संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है । संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज एवं सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी एक या दो – चार व्यक्तियों द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता । कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहला सकता । संस्कृति एक समाज की संपूर्ण जीवन विधि ( Way of Life ) का प्रतिनिधित्व करती है । यही कारण है कि समाज का प्रत्येक सदस्यं संस्कृति को अपनाता है । संस्कृति सामाजिक इस अर्थ में भी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष या दो या चार व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं है । यह समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए होता है । अतः इसका विस्तार व्यापक और सामाजिक होता है ।

 

 iii . संस्कृति हस्तान्तरित होती है ( Culture is Transmissive ) – संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति एक पीढी से दूसरी पीढी में जाती है तो उसमें पीढ़ी – दर – पीढ़ी के अनुभव एवं सूझ जुड़ते जाते हैं । इससे संस्कृति में थोड़ा – बहुत परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है । संस्कृति के इसी गुण के कारण मानव अपने पिछले ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आगे नई – नई चीजों का अविष्कार करता है । आपको यह समझना होगा कि – पशुओं में भी कुछ – कुछ सीखने की क्षमता होती है । लेकिन वे अपने सीखे हुए को अपने बच्चों और दूसरे पशुओं को नहीं सिखा पाते । यही कारण है कि बहुत कुछ सीखने की क्षमता रहने के बाद भी उनमें संस्कृति का विकास नहीं हुआ है । मानव भाषा एवं प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही आसानी से अपनी संस्कृति का विकास एवं विस्तार करता है तथा एक पीढी से दूसरे पीढी में हस्तान्तरित भी करता है । इससे संस्कृति की निरन्तरता भी बनी रहती है ।

 

 iv . संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है ( Culture is Man – Made ) – संस्कृति का तात्पर्य उन सभी तत्वों से होता है , जिनका निर्माण स्वंय मनुष्य ने किया है । उदाहरण के तौर पर हमारा धर्म , विश्वास , ज्ञान , आचार , व्यवहार के तरीके एवं तरह – तरह के आवश्यकताओं के साधन अर्थात् कुर्सी , टेबुल आदि का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया है । इस तरह यह सभी संस्कृति हर्षकाविट्स का कहना है कि ” संस्कृति पर्यावरण का मानव – निर्मित भाग है । ।

संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है ( Culture Satisfies Human Needs ) – संस्कृति में मानव आवश्यकता पूर्ति करने का गुण होता है । संस्कृति की छोटी – से – छोटी इकाई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति करती है या पूर्ति करने में मदद करती है । कभी – कभी संस्कृति की कोई इकाई बाहरी तौर पर निरर्थक या अप्रकार्य प्रतीत होती है , लेकिन सम्पूर्ण डोंचे से उसका महत्वपूर्ण स्थान होता है ।

 

 मैलिनोस्की के विचार : – प्रसिद्ध मानवशास्त्री मैलिनोस्की का कथन है कि संस्कृति के छोटे – से – छोट तत्व का अस्तित्व उसके आवश्यकता पूर्ति करने के गुण पर निर्भर करता है । जब संस्कृति के किसी भी तत्व में आवश्यकतापूर्ति करनेका गुण नहीं रह जाता तो उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है । उदाहरण के तौर पर प्राचीनकाल में जो संस्कृति के तत्व थे वे समाप्त हो गए क्योंकि वे आवश्यकता पूति में असमर्थ रहे , इसमें सतीप्रथा को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है । इसी प्रकार , व्यवस्था में कोई इकाई कभी – कभी बहुत छोटी प्रतीत होती है मगर व्यवस्था के लिए वह इकाई भी काफी महत्वपूर्ण होती है । इस प्रकार , संस्कृति का कोई भी तत्व अप्रकार्यात्मक नहीं होता है बल्कि किसी भी रूप में मानव की आवश्यकता की पूर्ति । करती है । i

.vi प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है ( Culture is Distinctive in every Society ) – प्रत्येक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति होती है । हम जानते हैं कि कोई भी समाज एक विशिष्ट भौगोलिक एवं प्राकृतिक वातावरण लिये होता है । इसी के अनुरूप सामाजिक वातावरण एवं संस्कृति का निर्माण होता है । उदाहरण के तौर पर पहाड़ों पर जीवन यापन करने वाले लोगों का भौगोलिक पर्यावरण , मैदानी लोगों के भौगोलिक पर्यावरण से अलग होता है । इसी प्रकार , इन दोनों स्थानों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताएं अलग – अलग होती है । जैसे – खाना , रहने – सहने का तरीका , नृत्य , गायन , धर्म आदि । अतः दोनों की संस्कृति भौगोलिक पर्यावरण के सापेक्ष में आवश्यकता के अनुरूप विकसित होती है । जब समाज के व्यवहारों एवं आवश्यकताओं में परिवर्तन होते हैं तो संस्कृति में भी परिवर्तन होता है । विभिन्न समाज के लोगों के व्यवहार में परिवर्तन की दर एवं दिशा भिन्न होती है . जिसके कारण संस्कृति में परिवर्तन की दर एवं दिशा में भी भिन्नता पायी जाती है ।

 

vii . संस्कृति में अनुकूलन का गुण होता है ( Culture has Adoptive Quality ) – संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि यह समय के साथ – साथ आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित हो जाती है । संस्कृति समाज के वातावरण एवं परिस्थिति के अनुसार होती है । जब वातावरण एवं परिस्थिति में परिवर्तन होता है तो संस्कृति भी उसके अनुसार अपने का ढालती है । यदि यह विशेषता एवं गुण न रहे तो संस्कृति का अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा । संस्कृति में समय एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होने से उराकी उपयोगिता समाप्त नहीं हो पाती । प्रत्येक संस्कृति का प्रमुख उद्देश्य तथा कार्य गानव की शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है । इन आवश्यकताओं के अनुसार ही संस्कृति को ढालना पड़ता है क्या आप जानते हैं – प्रत्येक युग में लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न – भिन्न रही है । पुरानी आवश्यकताओं के स्थान के स्थान पर नई आवश्यकताओं का जन्म हुआ है तथा समय – समय पर इनमें परिवर्तन भी होते हैं । इनके साथ अनुकूलन का गुण संस्कृति में होता है । यही कारण है कि संस्कृति में परिवर्तन होता है , लेकिन संस्कृति में परिवर्तन बहुत ही धीमी गति से होता है ।

 

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 viii . संस्कृति अधि – सावयवी ह ( Culture is Super – organic ) – मानव ने अपनी मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं के प्रयोग द्वारा संस्कृति का निर्माण किया , जो सावयव से ऊपर है । संस्कृति में रहकर व्यक्ति का विकास होता है और फिर मानव संस्कृति का निर्माण करता है जो मानव से ऊपर हो जाता है । मानव की समस्त क्षमताओं का आधार सावयवी होता है , किन्त इस संस्कृति को अघि – सावयवी से ऊपर हो जाती है । इसी अर्थ में संस्कृति को अधि – सावयवी ( Super – Organic ) कहा गया है ।

 

 ix . संस्कृति अधि – वैयक्तिक है ( Culture is Super – individual ) – संस्कृति की रचना और निरन्तरता दोनों ही किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं है । इसलिए यह अधि – वैयक्तिक ( Super – individual ) है । संस्कृति का निर्माण किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं किया गया है बल्कि संस्कृति का निर्माण सम्पूर्ण समूह द्वारा होता है । प्रत्येक सांस्कृतिक इकाई का अपना एक इतिहास होता है , जो किसी एक व्यक्ति से परे होता है । संस्कृति सामाजिक अविष्कार का फल है , किन्तु यह अविष्कार किसी एक व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है । इस प्रकार कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण संस्कृति का निर्माता नहीं हो सकता । इसमें परिवर्तन एवं परिमार्जन करने की भी क्षमता किसी व्यक्ति विशेष के वश की बात नहीं है । इस प्रकार संस्कृति अधि – वैयक्तिक है ।

x संस्कृति में संतुलन तथा संगठन होता है ( Culture has The Integrative ) – संस्कृति के अन्तर्गत अनेक तत्व एवं खण्ड होते हैं किन्तु ये आपस में पृथक नहीं होते , बल्कि इनमें अन्तः सम्बन्ध तथा अन्तः निर्भरता पायी जाती है । संस्कृति की । प्रत्येक इकाई एक – दूसरे से अनग हटकर कार्य नहीं करती , बल्कि सब सम्मिलित रूप से कार्य करती है । इस प्रकार के संतुलन एवं संगठन से सांस्कृतिक ढाँचे का निर्माण होता है । इस ढाँचे के अन्तर्गत प्रत्येक इकाई की एक निश्चित स्थिति एवं कार्य होता है , किन्तु यह सभी एक – दूसरे पर आधारित एवं सम्बन्धित होती है । संस्कृति के किसी एक अंग में या इकाई में । परिवर्तन होने पर दूसरे पक्ष या दूसरी इकाई पर भी प्रभाव पड़ता है ।

 

  1. संस्कृति समूह का आदर्श होती है ( Culture is Ideal for The Croup ) – प्रत्येक समूह की संस्कृति उस समूह के लिए आदर्श होती है । इस तरह की धारण सभी समाज में पायी जाती है । सभी लोग अपनी ही संस्कृति को आदर्श समझते हैं तथा अन्य संस्कृति की तुलना में अपनी संस्कृति को उच्च मानते हैं । संस्कृति इसलिए भी आदर्श होती है कि इसका व्यवहार – प्रतिमान किसी व्यक्ति – विशेष का न होकर सारे समूह का व्यवहार होता है ।

 

आपको यह समझना आवश्यक है कि – इमाइल दुर्थीम के अनुसार , संस्कृति सामूहिक – चेतना का प्रतीक है अर्थात किसी व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि समूह को प्रतिनिधित्व करती है , इसलिए यह आदर्श मानी जाती है , यही कारण है कि इसकी अवहेलना सामूहिक चेतना के विरूद्ध होती है तथा उस व्यक्ति की निंदा होती है मगर जो इसका सम्मान करते हैं उसकी प्रशंसा होती है ।

 

 

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