संस्कृति के प्रकार
ऑगर्बन एवं निमकॉफ ने संस्कृति के दो प्रकारों की चर्चा की है –
भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति ।
1 . भौतिक संस्कृति
-1.भौतिक संस्कृति के अर्न्तगत उन सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं का समावेश होता है जिनका निर्माण मनुष्य के लिए किया है , तथा जिन्हें हम देख एवं छू सकते हैं । भौतिक संस्कृति की संख्या आदिम समाज की तुलना में आधुनिक समाज में अधिक होती है , प्रो . बीयरस्टीड ने भौतिक संस्कृति के समस्त तत्वों को मुख्य 3 वर्गों में विभाजित करके इसे और स्पष्ट करने का प्रयास किया है iमशीनें 1 . उपकरण iii . बर्तन iv . इमारतें v . सड़कें vi . पुल vii . शिल्प वस्तुएँ viiiकलात्मक वस्तुएँ ix . वस्त्र x . वाहन xi फर्नीचर xii . खाद्य पदार्थ xiii औषधियां आदि ।
भौतिक संस्कृति की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1 . भौतिक संस्कृति मूर्त होती है ।
2 . इसमें निरन्तर वृद्धि होती रहती है ।
3 . भौतिक संस्कृति मापी जा सकती है ।
4 . मौलिक संस्कृति में परिवर्तन शीध होता है ।
5 . इसकी उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन किया जा सकता है ।
6 . भौतिक संस्कृति में बिना परिवर्तन किये इसे ग्रहण नहीं किया जा सकता है । अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने तथा उसे अपनाने में उसके स्वरूप में कोई फर्क नहीं पड़ता । उदाहरण के लिए मोटर गाड़ी , पोशाक तथा कपड़ा इत्यादि ।
अभौतिक संस्कृति – अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत उन सभी अभौतिक एवं अमूर्त वस्तुओं का समावेश होता है , जिनके कोई माप – तौल , आकार एवं रंग आदि नहीं होते । अभौतिक संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया द्वारा एक पीढी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अभौतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उस
107 पक्ष में होता है , जिसका कोई मूर्त रूप नहीं होता , बल्कि विचारों एवं विश्वासों कि माध्यम से मानव व्यवहार को नियन्त्रित , नियमित एवं प्रभावी करता है । प्रो . बीयरस्टीड ने अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत विचारों और आदर्श नियमों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया और कहा कि विचार अभौतिक संस्कृति के प्रमुख अंग है । विचारों की कोई निश्चित संख्या हो सकती है , फिर भी प्रो . बीयरस्टीड ने विचारों के कुछ समूह प्रस्तुत किये हैं वैज्ञानिक सत्य धार्मिक विश्वास पौराणिक कथाएँ iv . उपाख्यान साहित्य vi अन्ध – विश्वास vii . सूत्र viii लोकोक्तियाँ आदि । ये सभी विचार अभौतिक संस्कृति के अंग होते हैं । आदर्श नियमों का सम्बन्ध विचार करने से नहीं , बल्कि व्यवहार करने के तौर – तरीकों से होता है । अर्थात व्यवहार के उन नियमों या तरीकों को जिन्हें संस्कृति अपना आदर्श मानती है , आदर्श नियम कहा जाता है । प्रो . बीयरस्टीड ने सभी आदर्श नियमों को 14 भागों में बाँटा है 1 . कानून 2 . अधिनियम 3 . नियम 4 . नियमन 5 . प्रथाएँ 6 , जनरीतियाँ 7 . लोकाचार 8 . निषेध 9 . फैशन 10 . संस्कार 11 . कर्म – काण्ड 12 . अनुष्ठान 13 . परिपाटी 14 . सदाचार ।
अभौतिक संस्कृति की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1 . अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है ।
2 . इसकी माप करना कठिन है ।
3 . अभौतिक संस्कृति जटिल होती है ।
4 . इसकी उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन करना कठिन कार्य है ।
5 अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन बहत ही धीमी गति से होता है ।
6 . अभौतिक संस्कृति को जब एक स्थान से दूसरे स्थान में ग्रहण किया जाता है , तब उसके रूप में थोड़ा – न – थोड़ा परिवर्तन अवश्य होता है ।
7 . अभौतिक संस्कृति मनुष्य के आध्यात्मिक एवं आन्तरिक जीवन से सम्बिन्धित होती है ।
भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति में अन्तर
भौतिक एवं अभौतिक पक्षों के योग से ही संस्कृति की निर्माण होता है किन्तु दोनों में कुछ अन्तर हैं , जो इस प्रकार है
1 . भौतिक संस्कृति को सभ्यता भी कहा जाता है , जबकि अभौतिक संस्कृति को केवल संस्कृति कहा जाता है ।
2 . भौतिक संस्कृति मूर्त होती है , जबकि अभौतिक अमूर्त । जैसे – रेलगाडी तथा वैज्ञानिक का विचार एवं दिमाग , जिससे रेलगाड़ी का आविष्कार हुआ । यहाँ रेलगाड़ी भौतिक संस्कृति है , जबकि वैज्ञानिक का विचार अभौतिक संस्कृति है ।
3 . अभौतिक की तुलना में भौतिक संस्कृति को ग्रहण करना आसान है । उसे कहीं भी किसी स्थान पर स्वीकार किया जा सकता है , किन्तु अभौतिक संस्कृति को ग्रहण करना आसान नहीं है । दूसरे स्थान पर स्वीकार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । बहुत आससनी से हम दूसरे स्थानों के आदर्शों एवं मूल्यों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं ।
4 . भौतिक संस्कृति की तुलना में अभौतिक संस्कृति में धीमी गति से परिवर्तन होता है । जैसे – मोटर , घडी आदि बदल जाते हैं , किन्तु मनुष्य के विश्वास जल्द नहीं बदलते । ।
5 . भौतिक संस्कृति चूँकि मूर्त होती है , अतः उसकी माप करना सरल है , किन्तु अभौतिक संस्कृति अमर्त रहने के कारण उसकी माप में कठिनाइयों आती हैं । इसकी माप तौल करना सम्भव नहीं होता ।
6भौतिक संस्कृति में वृद्धि तीव्र गति से होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति में वृद्धि बहुत ही मन्द गति से होती है । उदाहरण के लिए समाज में नई – नई खोज एवं आविष्कार से तरह – तरह की वस्तु सामने आती है , किन्तु व्यक्ति का विचार वर्षों पुराना ही पाया जाता है ।
7 . अभौतिक संस्कृति की वृद्धि एवं संचय को स्पष्ट नहीं किया जा सकता । किन्तु भौतिक संस्कृति में वृद्धि एवं संचय होता है और उसे मापा भी जा सकता है ।
8 . भौतिक संस्कृति के लाभ एवं उपयोगिता को माप कर बताया जा सकता है , किन्तु अभौतिक संस्कृति की उपयोगिता एवं लाम को मूल्यांकित नहीं किया जा सकता । इसे मात्र अनुभव किया जा सकता है ।
9 . भौतिक संरकृति मानद के दाह्मय एवं भौतिक जीवन से राम्बिन्धित होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति मानव के आध्यात्मिक एवं आन्तरिक जीवन से सम्बिन्धित होती है ।
10 . भौतिक संस्कृति सरल होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति का स्वरूप जटिल होता है । ।
संस्कृति की संरचना
( The Structure of Culture )
1 . सांस्कृतिक तत्व ( Culture Traits )
2 . सांस्कृतिक संकुल ( Culture Complex )
3 . सांस्कृतिक प्रतिमान ( Culture Pattern or Culture Configuration )
1 . सास्कृतिक तत्व – सांस्कृतिक तत्व संस्कृति की लघुतम इकाईयों अथवा अकेले तत्व होते हैं । इन इकाइयों को मिलाकर संस्कृति का निर्माण होता है । इन इकाइयों को मिलाकर संस्कृति का निर्माण होता है । हर्षकोविट्स ने सांस्कृतिक तत्व को एक संस्कृति – विशेष में सबसे छोटी पहचानी जा सकने वाली इकाई कहा है । क्रोबर ने इसे ” संस्कृति का न्यून्तम परिभाष्य तत्व कहा । उदाहरण के लिए – हाथ मिलाना , चरण स्पर्श करना , टोप उतारना , गालों का चुम्बन लेना , स्त्रियों को आवास स्थान प्रदान करना , झंडे की सलामी , शोक के समय श्वेत साड़ी पहनना , शाकाहारी भोजन खाना , नंगे पाँव चलना , मूर्तियों पर जल छिड़कना । इसकी तीन प्रमुख विशेषताएं होती हैं i प्रत्येक सांस्कृतिक तत्व का उसकी उत्पत्ति विषयक इतिहास होता है , चाहे वह इतिहास छोटा हो या बड़ा । ii . सांस्कृतिक तत्व स्थिर नहीं होता । गतिशीलता उसकी विशेषता है । iii . सांस्कृतिक तत्वों में संयुक्तीकरण की प्रकृति होती है । वे फूलों के गुलदस्ते की भाँति घुल – मिलकर रहते है ।
2 . सांस्कृति संकुल – सांस्कृतिक तत्वों से मिलकर बनते है । जब कुछ या अनेक तत्व मिलकर मानव अवश्यकता की पूर्ति करते हैं । इस प्रकार , मूर्ति के सम्मुख नतमस्तक होना , उसपर पवित्र जल छिडकना , उसके मुंह में कुछ भोजन रखना , हाथ जोड़ना , पुजारी से प्रसाद लेना तथा आरती गाना आदि सभी तत्व मिलकर धार्मिक सांस्कृतिक संकुल का निर्माण करते हैं । Piddington ने सांस्कृतिक संकुल को सांस्कृतिक तत्वों का प्रकार्यात्मक सम्मिलन ( Functional Association ) कहा जाता
3 . सांस्कृतिक प्रतिमान – जब सास्कृतिक तत्व एवं संकुल मिलकर प्रकार्यात्मक भूमिकाओं में परस्पर संबंधित हो जाते हैं तो उनसे संस्कृति प्रतिमान का जन्म होता है । संस्कृति – प्रतिमान के अध्ययन से किसी संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का ज्ञान होता है । उदाहरणार्थ – गाँधीवाद , अध्यात्मवाद , जाति – व्यवस्था , संयुक्त परिवार , ग्रामीणउसद भारतीय संस्कृति के संस्कृति संकुज हैं जो भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का परिचय देते हैं ।
Clark Wissler ने 9 आधार मूलक सांस्कृतिक तत्वों का उल्लेख किया है जो संस्कृति – प्रतिमान को जन्म देते हैं
1 . वाणी एवं भाषा
2 . भौतिक तत्व – 1 भोजन की आदतें निवास iii यातायात iv . बर्तन आदि v . शस्त्र viव्यवसाय एवं उद्योग
3 . कला
4 . पुराण विद्या एवं वैज्ञानिक ज्ञान
5 . धार्मिक क्रियाएँ
6 . परिवारिक एवं सामाजिक प्रजातियाँ
7 . सम्पत्ति
8 . शासन
9 . युद्ध ।
किम्बल यंग ( Kimble Young ) ने संस्कृति के 13 तत्वों को सार्वभौमिक प्रतिमानों में सम्मिलित किया है
1 . स्चरण के प्रतिमान : संकेत एवं भाषा
2 . मनुष्य तक कल्याण हेतु वस्तुएँ एवं दंग
3 . मात्रा एवं यातायात के साधन एवं ढंग
4 , वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय – व्यापार वाणिज्य
5 . सम्पत्ति के प्रकार – वास्ततिक एवं व्यक्तिक
6 . लगिक एवं पारिवारिक प्रतिमान – विवाह एवं तलाक नातेदारी सम्बन्धों के प्रकार अत्तराधिकारिता संरक्षकता ।
7 . सामाजिक नियंत्रण तथा शासकीय संस्थाएं – लोकाचार जनमत कानून युद्ध
8 . कलात्मक अभिव्यक्तिः निर्माण कला , चित्रकला , संस्कृति
9 . विश्राम के समय गतिविधि
10 . धार्मिक एवं जादूई विचार
11 . पुराण शास्त्र एवं दर्शनशास्त्र
12 . विज्ञान
13 . मूलाधार अंतक्रियात्मक प्रक्रियाओं की सांस्कृतिक संरचना ।
संस्कृति के प्रकार्य
( Function of Culture )
1 . व्यक्ति के लिए
2 समूह के लिए
1 . व्यक्ति के लिए
i संस्कृति मनुष्य को मानव बनाती है ।
- जटिल स्थितियों का समाधान ।
iiiमानव आवश्यकताओं की पूर्ति
iv . व्यक्तित्व निर्माण
V : मानव को मूल्य एवं आदर्श प्रदान करती है ।
vi मानव की आदतों का निर्धारण करती है ।
vii . नैतिकता का निर्धारण करती है ।
viiiव्यवहारों में एकरूपता लाती हैं ।
ixअनुभव एवं कार्यकुशलता बढ़ाती है ।
x . व्यक्ति की सुरक्षा प्रदान करती है ।
xi . समस्याओं का समाधान करती है ।
xii . समाजीकरण में योग देती है ।
xiii प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्धारण करती है ।
xiv . सामाजिक नियन्त्रण में सहायक
. 2 समूह के लिए
iसामाजिक सम्बन्धों को स्थिर रखती है ।
iiव्यक्ति के दृष्टिकोण को विस्तृत करती है ।
iiiनई आवश्यकताओं को उत्पन्न करती है ।
Phase of Culture
Dr . Dube ने संस्कृति की छः अवस्थाओं की चर्चा की है ।
1 . आदि पाषाण युग
2 . पुरापाषाण युग
3 . नवपाषाण युग
4 . ताम्रयुग
5 . कॉस्य युग
6 . लौह युग
संस्कति के नियामक आधार ( Normative Bases of Culture )
Emile Durkhim ने समाज की एकता और स्थिरता को बनाये रखने के लिए नियामक आधारों की आवश्यकता के सम्बन्ध में कहा | W . G . Sumner ने समाज के प्रभावशाली संचालन के लिए नियामक आधारों की आवश्यकता पर बल दत जब हम सस्कृति के नियामक आधारों की बात करते हैं तब हम उन सभी अमूर्त स्वरूपों की चर्चा करते है जो किसी – न – किसी रूप से सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं , निर्देशित करते हैं एवं प्रभावित करत हो । उदाहरण – नियम – मूल्य , जनरीतियों , रूद्वियों , कानून , प्रथा आदि । करते है ।
सामाजिक अनुशास्ति ( Social Sanction ) सामाजिक अनुशास्ति दो प्रकार की होती है
1 . सकारात्मक अनुशास्ति ( Possitive Sanction )
2 . नकारात्मक अनुशास्ति ( Negative Sanction ) सकारात्मक अनुशास्ति वह है जो किसी कार्य को अपेक्षित सानता है और जिसके करने पर सामाजिक सम्मान में वृद्धि होती है । उदाहरण के लिए कार्यालय में समय पर पहुँचना एक अच्छी बात है और जो ऐसा करते हैं उन्हें अच्छा माना जाता है । नकारात्मक अनुशास्ति , ऐसे कार्य जिसके करने पर प्रतिष्ठा गिरती है , दण्ड मिलता है । उदाहरण के लिए , भारत में स्त्रियों पर हाथ उठाना बुरा माना जाता है , एवं जिससे प्रतिष्ठा गिरती है ।