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शैक्षणिक संस्थानों में उत्पीड़न: ओडिशा का दर्द और न्याय की पुकार

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{"prompt":"A majestic, ancient stone pillar, intricately carved with traditional Indian architectural motifs, stands as a solemn symbol of educational institutions, its lower half visibly scarred with deep fissures and spreading cracks, representing the pervasive pain and decay caused by unseen oppression. From within one of these profound fissures at the base, a single, resilient human hand, etched with determination and subtly glowing with an internal luminescence, pushes upwards with profound effort, reaching towards a powerful, ethereal beam of pure light descending from above, symbolizing the desperate call for justice and hope. The surrounding environment is a desolate, overgrown courtyard, steeped in a somber, almost oppressive quiet, with the oppressive shadows of unseen forces subtly creeping around the base of the crumbling pillar. The mood is one of profound vulnerability and injustice, yet simultaneously infused with an unyielding spirit of defiance and a desperate yearning for fairness. Dramatic chiaroscuro lighting emphasizes the struggle, with the descending light beam and the reaching hand acting as a beacon against the deep, contrasting shadows that engulf the pillar's damaged foundation. The color palette features muted, earthy tones of aged stone (grays, ochres, mossy greens) against oppressive deep blues and purples in the shadows, sharply contrasted by the pristine, almost golden luminescence of the hopeful light and the determined hand. This scene is captured in a dynamic low-angle shot, looking up at the monumental pillar and the determined hand, emphasizing the scale of the challenge and the courage required to overcome it. Photorealistic, Cinematic, Hyper-detailed, 8K resolution, professional photography.","originalPrompt":"A majestic, ancient stone pillar, intricately carved with traditional Indian architectural motifs, stands as a solemn symbol of educational institutions, its lower half visibly scarred with deep fissures and spreading cracks, representing the pervasive pain and decay caused by unseen oppression. From within one of these profound fissures at the base, a single, resilient human hand, etched with determination and subtly glowing with an internal luminescence, pushes upwards with profound effort, reaching towards a powerful, ethereal beam of pure light descending from above, symbolizing the desperate call for justice and hope. The surrounding environment is a desolate, overgrown courtyard, steeped in a somber, almost oppressive quiet, with the oppressive shadows of unseen forces subtly creeping around the base of the crumbling pillar. The mood is one of profound vulnerability and injustice, yet simultaneously infused with an unyielding spirit of defiance and a desperate yearning for fairness. Dramatic chiaroscuro lighting emphasizes the struggle, with the descending light beam and the reaching hand acting as a beacon against the deep, contrasting shadows that engulf the pillar's damaged foundation. The color palette features muted, earthy tones of aged stone (grays, ochres, mossy greens) against oppressive deep blues and purples in the shadows, sharply contrasted by the pristine, almost golden luminescence of the hopeful light and the determined hand. This scene is captured in a dynamic low-angle shot, looking up at the monumental pillar and the determined hand, emphasizing the scale of the challenge and the courage required to overcome it. Photorealistic, Cinematic, Hyper-detailed, 8K resolution, professional photography.","width":1024,"height":1024,"seed":42,"model":"flux","enhance":false,"nologo":false,"negative_prompt":"worst quality, blurry","nofeed":false,"safe":false,"quality":"medium","image":[],"transparent":false,"isMature":false,"isChild":false}

शैक्षणिक संस्थानों में उत्पीड़न: ओडिशा का दर्द और न्याय की पुकार

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में ओडिशा से आई एक हृदयविदारक खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। यौन उत्पीड़न का शिकार हुई एक छात्रा ने न्याय न मिलने और मानसिक पीड़ा से त्रस्त होकर आत्मदाह का प्रयास किया, जिसमें वह गंभीर रूप से झुलस गई और अंततः इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने एक बार फिर शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों, विशेषकर छात्राओं की सुरक्षा और यौन उत्पीड़न के खिलाफ मौजूदा तंत्र की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन यह घटना महज एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि समाज और हमारी शिक्षा प्रणाली में व्याप्त गहरी समस्याओं का प्रतीक है, जिन पर तत्काल ध्यान देने और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।

मामले का विवरण (Details of the Case)

ओडिशा के बलांगीर जिले में एक दुखद घटना सामने आई, जहाँ 17 वर्षीय एक छात्रा ने कथित यौन उत्पीड़न से परेशान होकर आत्मदाह कर लिया। यह घटना तब हुई जब पीड़िता अपने स्कूल जा रही थी और उसे कथित तौर पर परेशान किया गया था। इस घटना से पहले भी छात्रा ने स्कूल प्रशासन और अपने परिवार को कई बार उत्पीड़न के बारे में बताया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उसकी शिकायतों पर उचित ध्यान नहीं दिया गया या प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई।

यह मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसे संवेदनशील मुद्दे को दर्शाता है जहाँ शैक्षणिक संस्थान, जो छात्रों के लिए दूसरा घर माने जाते हैं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहे। यह शिक्षा के अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार और न्याय तक पहुंच के अधिकार का भी उल्लंघन है।

यौन उत्पीड़न: एक गंभीर सामाजिक अभिशाप (Sexual Harassment: A Grave Social Scourge)

यौन उत्पीड़न एक व्यापक और गंभीर सामाजिक समस्या है जो व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह किसी व्यक्ति की गरिमा और सुरक्षा का उल्लंघन है।

परिभाषा और प्रकार (Definition & Types):

कानूनी रूप से, यौन उत्पीड़न को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। भारत में, ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013’ (POSH Act) इसे इस प्रकार परिभाषित करता है:

यौन उत्पीड़न में अवांछित यौन व्यवहार शामिल है, चाहे वह शारीरिक संपर्क और अग्रिम, यौन पक्ष के लिए मांग या अनुरोध, यौन रंग की टिप्पणी, अश्लील साहित्य दिखाना, या किसी भी अन्य प्रकार का अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण हो।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि उत्पीड़न सिर्फ शारीरिक नहीं होता; इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं:

व्यापकता और प्रभाव (Prevalence & Impact):

यौन उत्पीड़न की घटनाएँ समाज के हर वर्ग और हर उम्र के लोगों को प्रभावित करती हैं, लेकिन महिलाएँ और बच्चे विशेष रूप से इसके प्रति संवेदनशील होते हैं। इसके प्रभाव गहरे और दूरगामी होते हैं:

भेदभावपूर्ण माहौल (Discriminatory Environment):

यौन उत्पीड़न अक्सर एक ऐसे माहौल में पनपता है जहाँ लैंगिक असमानता और शक्ति असंतुलन मौजूद होता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था का उत्पाद है जहाँ पीड़ित को कमजोर और उत्पीड़क को शक्तिशाली माना जाता है। ऐसे माहौल में, पीड़ित अपनी शिकायत दर्ज करने में डरता है, और अक्सर उसे ही दोषी ठहराया जाता है (victim blaming), जिससे उत्पीड़न को और बढ़ावा मिलता है।

शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment in Educational Institutions)

शैक्षणिक संस्थान ज्ञान के मंदिर और भविष्य के निर्माता होते हैं। यह वह स्थान है जहाँ बच्चे और युवा अपने व्यक्तित्व का विकास करते हैं, सीखते हैं और सुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन, जब इन पवित्र स्थानों पर उत्पीड़न की घटनाएँ होती हैं, तो यह न केवल व्यक्ति के जीवन को बर्बाद करता है, बल्कि पूरे समाज के भरोसे को तोड़ता है।

विशेष भेद्यता (Special Vulnerability):

शैक्षणिक संस्थान में बच्चे और युवा विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के प्रति संवेदनशील होते हैं। इसके कई कारण हैं:

शिक्षक-छात्र संबंध (Teacher-Student Relationship):

शिक्षक को अक्सर एक मार्गदर्शक, संरक्षक और अभिभावक के रूप में देखा जाता है। यह रिश्ता भरोसे और सम्मान पर आधारित होता है। जब इस रिश्ते का दुरुपयोग होता है, तो यह छात्र के मानसिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक प्रगति पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। यौन उत्पीड़न के मामलों में, अक्सर यह देखा गया है कि शक्ति के दुरुपयोग के कारण छात्र उत्पीड़न का शिकार होते हैं और उन्हें शिकायत दर्ज करने में हिचकिचाहट होती है।

साथियों द्वारा उत्पीड़न (Peer Harassment):

यह केवल शिक्षकों या स्टाफ द्वारा नहीं होता। छात्रों द्वारा छात्रों का उत्पीड़न भी एक गंभीर समस्या है। इसमें धमकाना, यौन प्रकृति की टिप्पणियां, सोशल मीडिया पर अश्लील संदेश या तस्वीरें भेजना शामिल है। स्कूलों और कॉलेजों में बुलिंग (Bullying) अक्सर यौन उत्पीड़न का रूप ले लेती है, जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

संस्थानों की भूमिका और जिम्मेदारी (Role and Responsibility of Institutions):

शैक्षणिक संस्थानों की कानूनी और नैतिक दोनों तरह की जिम्मेदारी है कि वे एक सुरक्षित और भयमुक्त वातावरण प्रदान करें। इसमें शामिल है:

ओडिशा की घटना इस बात का दुखद उदाहरण है कि जब संस्थान अपनी इन जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहते हैं, तो इसके क्या भयावह परिणाम हो सकते हैं। यह केवल कानून बनाने से नहीं, बल्कि एक प्रभावी और संवेदनशील कार्यान्वयन प्रणाली से ही संभव है।

कानूनी ढाँचा और संस्थागत तंत्र (Legal Framework and Institutional Mechanisms)

भारत में यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए कई कानून और संस्थागत तंत्र मौजूद हैं। इनका उद्देश्य पीड़ितों को न्याय दिलाना और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकना है।

भारत में संबंधित कानून (Relevant Laws in India):

  1. भारतीय दंड संहिता (IPC):
    • धारा 354: महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
    • धारा 354A: यौन उत्पीड़न के अपराध को परिभाषित करती है, जिसमें शारीरिक संपर्क, यौन संबंध बनाने की मांग, यौन रंग की टिप्पणी और अश्लील सामग्री दिखाना शामिल है।
    • धारा 354B: महिला को निर्वस्त्र करने का इरादा।
    • धारा 354C: ताक-झांक (Voyeurism)।
    • धारा 354D: पीछा करना (Stalking)।
    • धारा 509: शब्द, हावभाव या कार्य का इरादा महिला की शालीनता का अपमान करना।
    • धारा 375/376: बलात्कार और उससे संबंधित अपराध।
  2. यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 (Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 – POSH Act):
    • यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है। इसमें ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा में शैक्षणिक संस्थान भी शामिल हैं, जहाँ छात्र-छात्राएँ कर्मचारी न होते हुए भी ‘तीसरे पक्ष’ या ‘विजिटर’ के रूप में संरक्षित होते हैं।
    • यह अधिनियम एक सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिए आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) या स्थानीय शिकायत समितियों (LCC) के अनिवार्य गठन का प्रावधान करता है।
  3. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 – POCSO Act):
    • यह अधिनियम बच्चों (18 वर्ष से कम आयु) को यौन उत्पीड़न, यौन हमले और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बचाने के लिए एक व्यापक कानून है।
    • यह बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है और पीड़ितों की सुरक्षा, पुनर्वास और त्वरित न्याय सुनिश्चित करता है।
    • शैक्षणिक संस्थानों के लिए POCSO के तहत रिपोर्टिंग अनिवार्य है और लापरवाही पर दंड का प्रावधान है।
  4. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) (उच्च शैक्षणिक संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम, 2015:
    • यह विशेष रूप से उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) के लिए तैयार किया गया है।
    • यह HEIs में यौन उत्पीड़न को रोकने, प्रतिबंधित करने और उसका निवारण करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करता है।
    • यह सभी HEIs के लिए एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) और एक विशेष अपीलीय निकाय का गठन अनिवार्य करता है।

शिकायत निवारण तंत्र (Grievance Redressal Mechanisms):

उपरोक्त कानूनों के तहत, कुछ प्रमुख तंत्र स्थापित किए गए हैं:

इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) जैसी संस्थाएँ भी यौन उत्पीड़न के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती हैं और पीड़ित को सहायता प्रदान कर सकती हैं।

“कानून बनाना एक बात है, लेकिन उसका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”

ओडिशा की घटना इस बात को दर्शाती है कि कानूनों और तंत्रों की उपस्थिति के बावजूद, उनका जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन और संवेदनशीलता में कमी है, जिसके परिणामस्वरूप एक निर्दोष जीवन का नुकसान हुआ।

चुनौतियाँ और खामियाँ (Challenges and Loopholes)

भारत में यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा मौजूद होने के बावजूद, जमीनी स्तर पर इसके कार्यान्वयन में कई गंभीर चुनौतियाँ और खामियाँ हैं। ओडिशा की घटना इन्हीं खामियों का एक दुखद परिणाम है।

1. शिकायत दर्ज करने में झिझक (Hesitancy to Report):

2. संस्थानों की निष्क्रियता/सांठगांठ (Institutional Inaction/Complicity):

3. कानूनी जागरूकता का अभाव (Lack of Legal Awareness):

4. प्रशासनिक उदासीनता (Administrative Apathy):

5. डिजिटल उत्पीड़न (Digital Harassment):

6. मानसिक स्वास्थ्य सहायता का अभाव (Lack of Mental Health Support):

7. पुरुषों और लड़कों के लिए तंत्र का अभाव:

इन चुनौतियों का समाधान किए बिना, भले ही कितने भी मजबूत कानून क्यों न हों, वे केवल कागज़ पर ही रहेंगे और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाएगा। ओडिशा की घटना इस बात की एक दर्दनाक याद दिलाती है कि हमें इन खामियों को तुरंत दूर करने की आवश्यकता है।

ओडिशा घटना से सबक और आगे की राह (Lessons from Odisha Incident and Way Forward)

ओडिशा की घटना एक अलार्मिंग कॉल है। यह हमें सिखाती है कि कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनका प्रभावी और संवेदनशील क्रियान्वयन सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है। हमें इस त्रासदी से सबक लेना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी भी बच्चे या युवा को ऐसे भयानक अनुभव से न गुजरना पड़े।

1. तत्काल और संवेदनशील प्रतिक्रिया (Immediate and Sensitive Response):

2. जागरूकता और शिक्षा (Awareness and Education):

3. सशक्त ICC/LCC (Empowered ICC/LCC):

4. सुरक्षित वातावरण निर्माण (Creating Safe Environment):

5. मनोवैज्ञानिक परामर्श और सहायता (Psychological Counseling and Support):

6. कानूनों का सख्त प्रवर्तन (Strict Enforcement of Laws):

7. सार्वजनिक जवाबदेही (Public Accountability):

8. माता-पिता और समुदाय की भूमिका (Role of Parents and Community):

9. पुलिस प्रशिक्षण और संवेदनशीलता (Police Training and Sensitivity):

भारत में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘निर्भया फंड’ जैसी योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर सुरक्षा और न्याय का माहौल नहीं होगा, तब तक ये योजनाएं अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दिखा पाएंगी। ओडिशा की घटना हमें याद दिलाती है कि हर छात्र का जीवन अनमोल है, और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा के मंदिर किसी भी बच्चे के लिए भय का नहीं, बल्कि आशा, ज्ञान और सुरक्षा का प्रतीक बनें।

निष्कर्ष (Conclusion)

ओडिशा की घटना केवल एक हेडलाइन नहीं, बल्कि हमारे समाज के भीतर गहरे तक पैठी एक भयावह बीमारी का लक्षण है: यौन उत्पीड़न और न्याय की विफलता। यह घटना हमें आत्मनिरीक्षण करने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में अपने बच्चों के लिए सुरक्षित और पोषण भरा वातावरण प्रदान कर रहे हैं, विशेषकर उन जगहों पर जहाँ वे अपना भविष्य गढ़ते हैं।

कानूनों का एक मजबूत ताना-बाना मौजूद है – IPC की धाराएँ, POSH एक्ट, POCSO एक्ट, और UGC के विस्तृत नियम। ये सभी एक सुरक्षित वातावरण का वादा करते हैं। लेकिन ओडिशा की दुखद घटना ने उजागर किया है कि कानून पर्याप्त नहीं हैं। महत्वपूर्ण है इन कानूनों का मानवीय और संवेदनशील कार्यान्वयन। यह सिर्फ सजा देने की बात नहीं है, बल्कि एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की बात है जहाँ बच्चे निडर होकर अपनी शिकायतें रख सकें, जहाँ उनकी आवाज़ सुनी जाए, और जहाँ न्याय त्वरित और निष्पक्ष रूप से मिले।

हमें एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देना होगा जहाँ यौन उत्पीड़न के प्रति शून्य सहनशीलता हो, जहाँ शिक्षा प्रणाली केवल अकादमिक उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित न करे, बल्कि छात्रों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कल्याण को भी प्राथमिकता दे। इसमें शिक्षकों, अभिभावकों, प्रशासन, पुलिस और स्वयं छात्रों की सामूहिक जिम्मेदारी शामिल है। जब तक हम सब मिलकर इस अभिशाप के खिलाफ खड़े नहीं होंगे, तब तक ऐसी घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी और समाज एक ऐसे बोझ तले दबता रहेगा जिसकी कीमत मासूम जानें होंगी।

ओडिशा की बेटी की पुकार, न्याय की पुकार है – ऐसी पुकार जिसे अब अनसुना नहीं किया जा सकता। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर शैक्षणिक संस्थान ज्ञान का वास्तविक मंदिर बने, न कि किसी के लिए भी डर और पीड़ा का स्थान।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह अधिनियम केवल कार्यस्थल पर कार्यरत महिला कर्मचारियों पर लागू होता है।
    2. इसमें 10 या अधिक कर्मचारी वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन अनिवार्य है।
    3. शैक्षणिक संस्थानों को इस अधिनियम के तहत ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा में शामिल किया गया है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल 1 और 2
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: कथन 1 गलत है। POSH Act न केवल महिला कर्मचारियों पर लागू होता है, बल्कि ‘कार्यस्थल’ पर आने वाली किसी भी महिला पर लागू होता है, जिसमें ग्राहक, छात्र या विजिटर भी शामिल हैं। कथन 2 और 3 सही हैं, क्योंकि अधिनियम 10 या अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों पर ICC के गठन को अनिवार्य करता है और शैक्षणिक संस्थानों को कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल करता है।

  2. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को ‘बच्चा’ मानता है।
    2. यह अधिनियम लिंग तटस्थ (gender neutral) है, यानी यह लड़कों और लड़कियों दोनों को यौन अपराधों से बचाता है।
    3. इस अधिनियम के तहत किसी भी यौन अपराध की जानकारी पुलिस को देना अनिवार्य नहीं है, यदि अपराधी नाबालिग है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल 1
    (B) केवल 1 और 2
    (C) केवल 2 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। POCSO अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के सभी व्यक्तियों को बच्चा मानता है और यह लिंग तटस्थ है, यानी यह लड़कों और लड़कियों दोनों को यौन अपराधों से बचाता है। कथन 3 गलत है। POCSO अधिनियम के तहत बच्चों के खिलाफ किसी भी यौन अपराध की जानकारी पुलिस को देना अनिवार्य है, चाहे अपराधी की आयु कुछ भी हो। ऐसा न करने पर कानूनी दंड का प्रावधान है।

  3. आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के गठन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी द्वारा की जानी चाहिए।
    2. इसके सदस्यों में से कम से कम आधे सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए।
    3. इसमें एक बाहरी सदस्य का होना अनिवार्य है जो किसी गैर-सरकारी संगठन से हो।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (A) केवल 1 और 2
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (D)
    व्याख्या: POSH Act के प्रावधानों के अनुसार, तीनों कथन सही हैं। ICC की अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी करती है, जिसमें कम से कम आधे सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए और एक बाहरी सदस्य का होना अनिवार्य है जो यौन उत्पीड़न के मामलों से परिचित किसी गैर-सरकारी संगठन से हो।

  4. भारतीय दंड संहिता (IPC) की कौन सी धारा यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जिसमें अवांछित शारीरिक संपर्क और अग्रिम, यौन पक्ष की मांग, यौन रंग की टिप्पणी और अश्लील साहित्य दिखाना शामिल है?
    (A) धारा 354
    (B) धारा 354A
    (C) धारा 376
    (D) धारा 509

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: IPC की धारा 354A यौन उत्पीड़न के विभिन्न रूपों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। धारा 354 महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल के प्रयोग से संबंधित है। धारा 376 बलात्कार से संबंधित है और धारा 509 शब्द, हावभाव या कार्य का इरादा महिला की शालीनता का अपमान करने से संबंधित है।

  5. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) (उच्च शैक्षणिक संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम, 2015 का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
    (A) केवल उच्च शिक्षा संस्थानों में महिला कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    (B) उच्च शिक्षा संस्थानों में केवल छात्रों के बीच यौन उत्पीड़न को रोकना।
    (C) उच्च शिक्षा संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों दोनों के यौन उत्पीड़न को रोकना, प्रतिबंधित करना और उसका निवारण करना।
    (D) उच्च शिक्षा संस्थानों में पुरुषों और महिलाओं दोनों के यौन उत्पीड़न से निपटना।

    उत्तर: (C)
    व्याख्या: UGC विनियम, 2015 विशेष रूप से उच्च शैक्षणिक संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों दोनों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण के लिए विस्तृत दिशानिर्देश प्रदान करता है। विकल्प A और B अधूरे हैं, जबकि D गलत है क्योंकि ये विनियम मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित हैं, हालांकि संस्थानों को सभी के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना चाहिए।

  6. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिनियम या विनियमन भारत में शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के खिलाफ यौन उत्पीड़न को सीधे संबोधित करता है?
    1. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act)
    2. कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act)
    3. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2015

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
    (A) केवल 1
    (B) केवल 1 और 2
    (C) केवल 2 और 3
    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (D)
    व्याख्या: तीनों अधिनियम/विनियम शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के खिलाफ यौन उत्पीड़न को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित करते हैं। POCSO एक्ट नाबालिग छात्रों के लिए प्राथमिक सुरक्षा है। POSH एक्ट में ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा में शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं, और छात्र ‘विजिटर’ या ‘तीसरे पक्ष’ के रूप में इसके दायरे में आते हैं। UGC विनियम विशेष रूप से उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों (और कर्मचारियों) के लिए बनाए गए हैं।

  7. “विक्टिम ब्लेमिंग” (Victim Blaming) से आप क्या समझते हैं, विशेषकर यौन उत्पीड़न के मामलों में?
    (A) पीड़ित द्वारा अपनी शिकायत में देरी करना।
    (B) पीड़ित को ही उत्पीड़न के लिए आंशिक या पूर्ण रूप से जिम्मेदार ठहराना।
    (C) उत्पीड़न के बाद पीड़ित को सामाजिक समर्थन देना।
    (D) उत्पीड़न की घटना का गलत आरोप लगाना।

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ का अर्थ है, यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों में पीड़ित को ही घटना के लिए दोषी ठहराना या उसे आंशिक रूप से जिम्मेदार मानना (जैसे उसके पहनावे, व्यवहार, या उपस्थिति के आधार पर)। यह सामाजिक कलंक और न्याय की प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा है।

  8. POCSO अधिनियम के तहत ‘बच्चा’ की आयु सीमा क्या है?
    (A) 14 वर्ष से कम
    (B) 16 वर्ष से कम
    (C) 18 वर्ष से कम
    (D) 21 वर्ष से कम

    उत्तर: (C)
    व्याख्या: POCSO अधिनियम के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति ‘बच्चा’ माना जाता है।

  9. यौन उत्पीड़न के मामलों में, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को शिकायत प्राप्त होने के कितने दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है?
    (A) 30 दिन
    (B) 60 दिन
    (C) 90 दिन
    (D) 120 दिन

    उत्तर: (C)
    व्याख्या: POSH Act के अनुसार, ICC को शिकायत प्राप्त होने की तारीख से 90 दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करनी होती है।

  10. निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन यौन उत्पीड़न के मनोवैज्ञानिक प्रभावों को सबसे अच्छे से दर्शाता है/दर्शाते हैं?
    1. आत्म-सम्मान में वृद्धि और आत्मविश्वास में सुधार।
    2. तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ।
    3. सामाजिक अलगाव और रिश्तों में कठिनाइयाँ।
    4. शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
    (A) केवल 1 और 4
    (B) केवल 2 और 3
    (C) केवल 1, 2 और 3
    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (B)
    व्याख्या: कथन 2 और 3 यौन उत्पीड़न के सामान्य मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों को दर्शाते हैं। यौन उत्पीड़न से आत्म-सम्मान में कमी आती है और शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट आ सकती है, इसलिए कथन 1 और 4 गलत हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न एक गंभीर चुनौती है जो छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। इस संदर्भ में, भारत में मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढाँचे की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक परीक्षण करें और इस संदर्भ में ओडिशा की हालिया घटना से क्या सबक सीखे जा सकते हैं, चर्चा करें। (250 शब्द)
  2. “ज्ञान के मंदिर के रूप में, शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे छात्रों के लिए एक सुरक्षित और भयमुक्त वातावरण प्रदान करें।” इस कथन के प्रकाश में, शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करें और इस समस्या के समाधान हेतु कुछ ठोस उपायों का सुझाव दें। (150 शब्द)
  3. POCSO अधिनियम और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के मुख्य प्रावधानों पर चर्चा करें। क्या आपको लगता है कि ये कानून छात्रों, विशेषकर नाबालिगों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें। (200 शब्द)
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