वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण
( Main Steps in Scientific Method )
वैज्ञानिक पद्धति एक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध पद्धति है । इसके अन्तर्गत अनेक प्रक्रियाएँ संलग्न हैं । इन प्रक्रियाओं के क्रमबद्धता के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने – अपने विचार प्रकट किये हैं । इन विद्वानों ने वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों की चर्चा की है । कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दिये गये विचार निम्नलिखित हैं
लुण्डबर्ग के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति के चार प्रमुख चरण हैं ( i ) काम चलाऊ उपकल्पना ( the working hypothesis ) , मा तथ्यों का अवलोकन , संकलन एवं अंकन ( the observation and recording of data ) , in संकलित तथ्यों का वर्गीकरण एवं संगठन ( the classification and organisation of data ) ( iv ) सामान्यीकरण ( Generalization ) ।
पी . बी . यंग ने वैज्ञानिक पद्धति के छ : चरणों की चर्चा की है ( i ) अध्ययन समस्या का चुनाव ( ii ) कार्यकारी उपकल्पना का निर्माण ( iii ) अवलोकन तथा तथ्य संकलन ( iv ) तथ्यों का आलेखन ( v ) तथ्यों का वर्गीकरण ( vi ) वैज्ञानिक सामान्यीकरण ।
एवालबर्नन ने वैज्ञानिक पद्धति के पाँच स्तरों की चर्चा की है ( 1 ) समस्या का चुनाव तथा उपकल्पना का निर्माता । ( ii ) यथार्थ तथ्यों का संग्रहण ( iii ) वर्गीकरण तथा सारणीकरण । ( iv ) निष्कर्ष निकालना ( v ) निष्कर्षों की परीक्षा एवं सत्यापन ।
विभिन्न विद्वानों द्वारा दिये गये वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न चरणों के आधार पर कुछ प्रमुख स्तरों का उल्लेख किया जा सकता है । अर्थात् भिन्न – भिन्न विद्वानों ने अपने – अपने दष्टिकोण से वैज्ञानिक पद्धति के चरणों की व्याख्या की है । सभी विद्वानों के विचारों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं
( i ) समस्या का चुनाव
( ii ) उपकल्पना का निर्माण
( iii ) अध्ययन क्षेत्र का निर्धारण
( iv ) अध्ययन यन्त्रों का चुनाव Restauी मांग
( v ) अवलोकन एवं तथ्य संकलन शाह
( vi ) वर्गीकरण एव विश्लेषण गह
( vii ) सामान्यीकरण एवं नियमों का प्रतिपादन
समस्या का चुनाव ( Selection of Problem ) – वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत सबसे पहला चरण समस्या का चुनाव होता है । अध्ययनकर्ता सबसे पहले सामयिक महत्त्व , व्यावहारिक उपयोगिता तथा जिज्ञासा के आधार पर विषय का चुनाव करता है । यही विषय वैज्ञानिक खोज का पहला आधार बनता है । समस्या का चुनाव सम्बन्धि त साहित्य एवं सूचनाओं के आधार पर होता है । इसके लिए समस्या से सम्बन्धित जितने लेख , विवरण या विचार , पुस्तकों , संदर्भ ग्रन्थों या पत्र – पत्रिकाओं से मिल सकें उसे एकत्रित किया जाता है । इससे सम्बन्धित व्यक्तियों से भी पूछताछ की जाती है । गुडे एवं हैट ने लिखा है ” किसी भी अध्ययन से सम्बन्धित समग्र में बहुत सी घटनाओं का समावेश होता है किन्तु विज्ञान इसमें से कुछ घटनाओं तक ही अपने को सीमित रखता है । ” अध्ययनकर्ता . समस्या का चुनाव जागरूकता एवं रुचि के आधार पर करता है ।
उपकल्पना का निर्माण ( Formulation of Hypothesis ) – समस्या के चुनाव के बाद अध्ययनकर्ता समस्या से सम्बन्धित उपकल्पना का निर्माण करता है । उपकल्पना अध्ययन के पहले कहा गया ऐसा प्राक्कथन है जिसके प्रामाणिकता की जाँच एकत्र की जाने वाली तथ्यों के आधार पर होती है । लुण्डबर्ग ने कहा है ” उपकल्पना एक काम चलाऊ सामान्यीकरण है , जिसकी सत्यता की जाँच करना बाकी होता है । ” उपकल्पना वैज्ञानिक अध्ययन को दिशा प्रदान करता है । उपकल्पना के निर्माण से समय , शक्ति एवं धन की बचत होती है । इसके आधार पर ही तथ्य संकलित किये जाते हैं और इन्हीं तथ्यों के द्वारा उपकल्पना के प्रामाणिकता की जाँच होती है । उपकल्पना का निर्माण अनुसंधानकर्ता अपने अनुमानों , सूझ , कल्पना तथा अनुभवों के आधार पर करता है । सामान्य संस्कृति , साहित्य , सहृदयता एवं दर्शन भी उपकल्पना के स्रोत बनते हैं ।
अध्ययन – क्षेत्र का निर्धारण ( Determination of Universe ) – अध्ययन – क्षेत्र से तात्पर्य वैसे क्षेत्र से है जिसे अध्ययन से सम्बन्धित तथ्य संकलित करने के लिए चिन्हित किये जाते हैं । अर्थात् अध्ययनकर्ता स्वयं यह निश्चित करता है कि उसे किस क्षेत्र का अध्ययन करना है । अध्ययन – क्षेत्र निश्चित रहने पर अध्ययनकर्ता । का प्रयास एक सीमा के अन्दर होता है , वह अनावश्यक प्रयासों से बच जाता है । अध्ययन – क्षेत्र यदि बड़ा होता है तब प्रतिनिधि इकाइयों से तथ्य संकलित किये जाते हैं । प्रतिनिधि इकाइयों को चनने के लिए निदर्शन पद्धति का प्रयोग किया जाता है ।
. अध्ययन यंत्रों एवं विधि का चुनाव ( Selection of Tools & Techniques ) – उपकल्पना एवं अध्ययन क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए यंत्रों एवं प्रविधियों का चुनाव किया जाता है । वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा अध्ययन करने के लिए उपर्यक्त यंत्रों एवं प्रविधियों का चुनाव बहत ही महत्वपूर्ण होता है । विश्वसनाय कर के सकलन के लिए अध्ययनकर्ता विभिन्न पद्धतियों एवं यंत्रों का चनाव करता है । अर्थात् यह निश्चित करता अवलोकन , प्रश्नावली , अनुसूची , वैयक्तिक अध्ययन विधि , साक्षात्कार अथवा अन्य विधियों में से किसके सहारे तथ्य संकलित करेगा । इन यंत्रों एवं प्रविधियों के सम्बन्ध में रूप रेखा तैयार करता है । उदाहरणस्वरूप साक्षात्कार निर्देशिका , प्रश्नावली तथा अनुसूची इत्यादि को तैयार करना ।
. अवलोकन एवं तथ्य संकलन ( Observation and Data Collection ) — वैज्ञानिक अध्ययन अवलोकन से भी प्रारम्भ होता है । साधारणत : अवलोकन का तात्पर्य देखना होता है । किन्तु वैज्ञानिक पद्धति में अवलोकन का अर्थ होता है किसी भी वस्तु व घटना को उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से निरीक्षण परीक्षण करना । अवलोकन में समस्त मानव इन्द्रियों को यथासम्भव प्रयोग में लाया जाता है तत्पश्चात् तथ्य संकलित किये जाते है । तथ्य सकलन में अवलोकन के अतिरिक्त अन्य विधियों जैसे साक्षात्कार , प्रश्नावली , अनुसूची व वैयक्तिक अध्ययन विधि के द्वारा भी तथ्य संकलित किये जाते हैं । उपकल्पना के प्रामाणिकता की जाँच से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किये जाते हैं । इनके आधार पर कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं तथा उपकल्पना के सत्यता की जाँच की जाती है ।
वर्गीकरण तथा विशेषता ( Classification and Interpretation ) – वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत तथ्य संकलन के बाद उन तथ्यों का वर्गीकरण किया जाता है । अर्थात् तथ्यों को उनकी समानता , असमानता एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों अथवा श्रेणियों में बाँटा जाता है । इस प्रक्रिया से एकत्रित तथ्य सरल , स्पष्ट एवं अर्थपूर्ण बन जाते हैं । जब तथ्यों को विभिन्न वर्गों में बाँट दिया जाता है तत्पश्चात् उनका विश्लेषण किया जाता है । संकलित तथ्यों का पूर्वाग्रह रहित एवं निष्पक्ष भाव से विश्लेषण किया जाता है ताकि कार्य – कारण सम्बन्धों की जानकारी हो ।
सामान्यीकरण तथा नियमों का प्रतिपादन ( Generalization and formation of Law ) – प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर सामान्यीकरण किया जाता है । अर्थात् सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं । इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर उपकल्पनाएँ सत्यापित अथवा असिद्ध होती हैं । यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि इन दोनों ही स्थितियों ( सत्यापित अथवा असिद्ध ) में निष्कर्ष वैज्ञानिक होता है । उपकल्पनाएँ सत्यापित नहीं होने पर अध्ययन का वैज्ञानिक महत्त्व कम नहीं होता । तथ्यों के वर्गीकरण , विश्लेषण एवं सामान्यीकरण के द्वारा जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं वे ही सामान्य नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार बनते हैं । अर्थात् निष्कर्षों के आधार पर ही नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन होता है । वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न चरणों में अन्त : सम्बन्ध होता है । अत : विभिन्न चरणों से गुजरने के बाद ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है । इस सन्दर्भ में कार्ल पियर्सन ने कहा है ” सत्य के लिए कोई संक्षिप्त मार्ग नहीं है विश्व का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति से गुजरने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है ।