भारत की जनसंख्या नीति
( Population Policy of India )
वस्तुतः जनसंख्या नीति के माध्यम से ही जनसंख्या नियोजन का कार्य होता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि जनसंख्या नियोजन की सफलता जनसंख्या नीति की उपयुक्तता एवं उसके समुचित क्रियान्वयन पर निर्भर करती है । यह सही है कि यहाँ प्रारम्भ में जनसंख्या की समस्याओं पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया
जनसंख्या नीति से हमारा आशय उन समस्त कार्यवाहियों से है जो जनसंख्या के बढ़ते हुए परिणाम को कम करने एवं विद्यमान जनसंख्या के उत्पादक गुणों में वृद्धि करने के लिए की जाती है । राज्य द्वारा जनसंख्या की वृद्धि को रोकने एवं उसके उत्पादक गुणों में वृद्धि करने के लिए जो नीति अपनायी जाती है उसे जनसंख्या नीति कहते हैं । भारत में जनसंख्या नीति की आवश्यकता भारत में एक उपयुक्त जनसंख्या नीति की आवश्यकता के औचित्य को निम्न आधारों पर प्रमाणित किया जा सकता है
बेरोजगारी- भारत सरकार देश की बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सतत् प्रयत्नशील रही है , पर जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि के कारण बेरोजगारी में अप्रत्याशित वृद्धि होती रही है । बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है ।
आवास समस्या – भोजन , कपड़ा और मकान मानव की मूलभूत आवश्यकता है लेकिन भारत में तीनों का अभाव अपने आप में शर्मनाक एवं दुःखद है । जनसंख्या वृद्धि ने आवास समस्या को और अधिक गम्भीर बना दिया है ।
पूँजी निर्माण- भारत जैसे अर्द्ध – विकसित देश में आय और बचत का स्तर निम्न होने के कारण पूँजी निर्माण की दर बहुत कम है , जिसके कारण देश के आर्थिक विकास के लिए पूँजी का अभाव बराबर अवरोधक बना हुआ है ।
जीवन – स्तर- भारतीय जनता का जीवन – स्तर प्रति व्यक्ति आय में कमी , मूल्यों में वृद्धि , बेरोजगारी , निर्धनता , वस्तुओं के अभाव में बहुत गिरा हुआ है । यह अनुमान लगाया गया है कि भारत के 40 % से भी अधिक व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे भूख व कुपोषण का शिकार रहते हुए निर्धनता की दयनीय स्थिति में जीवन व्यतीत करते हैं ।
राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय – स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् से भारत सरकार राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए सतत् प्रयत्न करती रही है । अब तक पाँच पंचवर्षीय योजना तथा 3 वार्षिक योजनाएँ पूरी की जा चुकी हैं ।
खाद्या न अभाव – भारत में सतत् प्रयत्नों के बाद भी जनसंख्या और खाद्यपूर्ति के मध्य निरन्तर आन्तुलन बना हुआ है । जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण देश की खाद्यान्न समस्या दिनों – दिन गम्भीर होती जा रही है । देश की खाद्यान्न समस्या के समाधान के लिए भारत में एक उपयुक्त जनसंख्या नीति आवश्यक है ।
शिक्षा , चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ- भारत में शिक्षा , चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं की समस्या आज भी चिन्तनीय बनी हुई है । सरकार की आय का एक बहुत बड़ा भाग इन मदों पर व्यय किया जाता है ।
वस्तुतः जनसंख्या नीति के माध्यम से ही जनसंख्या नियोजन का कार्य होता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि जनसंख्या नियोजन की सफलता जनसंख्या नीति की उपयुक्तता एवं उसके समुचित क्रियान्वयन पर निर्भर करती है । यह सही है कि यहाँ प्रारम्भ में जनसंख्या की समस्याओं पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया । किन्तु इसके क्रमश : उग्र रूप धारण करने पर भारत की जनसंख्या नीति में समय – समय पर महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए । चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में तो परिवार नियोजन कार्यक्रमों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाने लगी । पाँचवीं योजना में आपातकाल में 16 अप्रैल , 1976 को भारत सरकार की ओर से एक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई जिसमें छठी योजना के अन्त तक जन्म – दर को 35 प्रति हजार से घटाकर 25 प्रति हजार रखने तथा जनसंख्या वृद्धि दर को घटाकर 1.4 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया । जनता सरकार के शासन काल में ‘ अनिवार्यता ‘ तथा ‘ बल ‘ के स्थान पर ‘ स्वेच्छा के सिद्धान्त ‘ को मान्यता प्रदान की गई । यद्यपि इन नीति में भी 1976 की नीति को ही आधार बनाया गया , किन्तु उसमें से अनिवार्यता तथा जोर – जबरदस्ती के तत्त्वों को निकालकर ” स्वेच्छा जनसहयोग एवं जनजागरण ” को विशेष महत्त्व दिया गया । वर्तमान जनसंख्या नीति की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं
वर्तमान जनसंख्या नीति एवं उसकी विशेषताएँ
( Present Population Policy and its Salient Features ) परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अब वस्तुतः परिवार कल्याण कार्यक्रमों के नाम से जाना जाता है तथा भारत की वर्तमान जनसंख्या नीति यद्यपि 1976 की नीति पर ही आधारित है , परन्तु उसमें ‘ अनिवार्यता ‘ के स्थान पर ‘ स्वेच्छा के सिद्धान्त ‘ को मान्यता दी गई है । इस नीति की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं
विवाह योग्य न्यूनतम आयु में वृद्धि – भारत सरकार ने विशेष विधान द्वारा विवाह योग्य न्यूनतम आयु लड़कों के लिए 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष निर्धारित कर दी है । इससे विवेकपूर्ण मातृ – पितृत्व के साथ – साथ बच्चों एवं माँ के स्वास्थ्य में सुधार होगा ।
नसबन्दी तथा परिवार कल्याण सुविधाओं में वृद्धि – वर्तमान जनसंख्या नीति के अन्तर्गत ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में अधिकाधिक नसबन्दी व परिवार कल्याण सुविधाओं की वृद्धि पर आवश्यक बल दिया गया है । इसके साथ ही चल – चिकित्सा नसबन्दी केन्द्रों की वृद्धि की भी व्यवस्था है ।
प्राथमिक महत्त्व – राष्ट्रीय कार्यक्रमों के अन्तर्गत परिवार कल्याण एवं परिवार नियोजन को प्राथमिक महत्व प्रदान किया गया है जिससे जनसंख्या के प्रभावी नियन्त्रण के माध्यम से विस्फोटक वृद्धि को रोका जा सके ।
व्यापक प्रचार – परिवार नियोजन के सन्देश का व्यापार प्रचार करने तथा सन्तानोत्पत्ति योग्य दम्पत्तियों को उसके प्रति जागरूक करने हेतु सरकार समाचार पत्रों , रेडियो , टेलीविजन के माध्यम से विज्ञापनों के साथ – साथ ग्रामीण क्षेत्रों में नाटकों व लोकगीतों के माध्यम से सक्रिय कार्य कर रही है । वस्तुतः भारत सरकार की नीति परिवार नियोजन की सर्वोच्च प्राथमिकता देकर गर्भ निरोध के सस्ते एवं सुगम साधनों का व्यापार प्रचार करने की है जिससे अनिवार्यता के स्थान पर स्वेच्छा का महत्त्व दिया गया है ।
लोकसभा में प्रतिनिधित्व का आधार राज्यों द्वारा जनसंख्या नियन्त्रण की प्रभावी योजनाओं को प्रोत्साहन देने के लिए इस शताब्दी के अन्त तक लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व वास्तविक जनसंख्या पर आधारित न होकर 1971 की जनसंख्या पर ही आधारित रहेगा । इससे राज्यों में जनसंख्या नियन्त्रण को बढ़ावा मिलेगा । इसके साथ ही जो राज्य जनसंख्या नियन्त्रण के प्रभावी कदम उठायेंगे , उनकी सफलता को दृष्टिगत रखते हुए केन्द्रीय सहायता में वृद्धि की जाएगी ।
अनुसन्धान को प्रोत्साहन – भारत सरकार द्वारा उद्घोषित जनसंख्या नीति के अन्तर्गत जनसंख्या नियन्त्रण एवं परिवार नियोजन सम्बन्धी शोध – कार्यों को प्रोत्साहित किया जाता है ।
स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रोत्साहन – भारत सरकार द्वारा जनसंख्या नीति के अन्तर्गत परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रोत्साहन देने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं को न केवल राजकीय सहायता प्रदान की जाती है वरन् उन्हें प्राप्त उपहारों पर आयकर में छूट व अन्य प्रलोभनों से प्रोत्साहित भी किया जाता है ।
स्वेच्छा के आधार पर नसबन्दी – आपातकाल में अनिवार्यता एवं जोर जबरदस्ती के आधार पर नसबन्दी की व्यवस्था थी , किन्तु अब स्वेच्छा से नसबन्दी कराने के सिद्धान्त को मान्यता दी गई है । सरकारी कर्मचारियों को एक वेतन वृद्धि लाभ की भी व्यवस्था की गई है ।
भारत की जनसंख्या नीति की आलोचना
( Criticism of Indian Population Policy )
भारत सरकार की जनसंख्या नीति की कुछ विद्वानों ने कटु आलोचना की है । उसके कुछ तथ्य इस प्रकार हैं
यौन शिक्षा की उपेक्षा — सरकार ने अपनी जनसंख्या नीति में यौन शिक्षा की पूर्ण उपेक्षा की है जो महत्त्वपूर्ण नहीं है । वस्तुतः यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम का एक अनिवार्य अंग बनाया जाना चाहिए जिससे विवाह योग्य युवक – युवतियाँ पहले से ही सतर्क रहें ।
मौद्रिक प्रलोभनों की नीति दोषपूर्ण – मौद्रिक प्रलोभनों की नीति के परिणामस्वरूप कभी – कभी लोग आर्थिक लाभ के लिए नासमझों को धोखा दे देते हैं इससे दुष्प्रभावों का मौका मिलता है ।
अवास्तविक लक्ष्य – जनसंख्या नीति की छठी योजना के अन्त तक जन्म दर को घटाकर 25 प्रतिशत करने तथा जनसंख्या वृद्धि दर को घटाकर 1.4 प्रतिशत करने का लक्ष्य है , किन्तु वास्तविक दरें काफी ऊँची रहेंगी तथा ये लक्ष्य अपूर्ण रहेंगे ।
सैद्धान्तिक अधिक , व्यावहारिक कम – भारत सरकार की नीति सैद्धान्तिक दृष्टि से तो काफी लाभकारी प्रतीत होती है , किन्तु वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में इसे लागू करना काफी अव्यावहारिक है । लेकिन उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि यदि सरकार जनसंख्या नीति की कठोरता , कुशलता एवं सर्वोच्च प्राथमिकता के स्तर पर लागू करें तो लेकिन यदि हम उक्त परिभाषा को स्वीकार कर लें तो वास्तव में समस्त आर्थिक नीतियाँ ही ” जनसंख्या नीति ” के अन्तर्गत आयेंगी । विनियोजन वृद्धि से भी जनसंख्या लाभान्वित होती है । इन सब कार्यों को हम जनसंख्या नीति के अन्तर्गत नहीं ले सकते , अन्यथा समस्त अर्थशास्त्र ही जनसंख्या शास्त्र हो जाएगा । डॉ ० तेराव के शब्दों में , ” जनसंख्या की समस्या के निवारण हेतु उठाए गए कदमों को ही जनसंख्या नीति के अन्तर्गत लिया जा सकता है । ” यहाँ यह समझना आवश्यक है कि जब अर्थव्यवस्था के अनुरूप जनसंख्या को करना होता है तो वह जनसंख्या नीति में आएगा । श्री तेराव के शब्दों में , ” मन्दी के कारण बेरोजगारी की समस्या ‘ जनसंख्या की नीति ‘ की समस्या नहीं है , परन्तु कम विकसित देशों में अतिरिक्त जनशक्ति की बेरोजगारी की समस्या जनसंख्या की समस्या है । ” ” जे ० के ० स्पेन्गलर के शब्दों में , ” राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के ध्येयों के अन्तर्गत हम राज्य की उन समस्त नीतियों को शामिल करेंगे । ” जनसंख्या नीति के अल्पकालिक व दीर्घकालिक दोनों प्रकार के लक्ष्य हो सकते हैं । अल्पकाल में अत्यन्त आवश्यक समस्याओं का समाधान किया जाता है । फ्रेंक डब्ल्यू ० नॉटेस्टीन ( Frank W. Notestein ) के अनुसार , ” आज की जनसंख्या नीति का ( कम विकसित देशों में ) मुख्य लक्ष्य मृत्यु दर के गिरने तथा जन्म – दर के गिरने में समय – अन्तराल को कम करना है । जनसंख्या नीति के सफल होने के लिए वांछनीय आर्थिक सामाजिक परिवेश निर्मित करने होंगे । ” जनसंख्या नीति का क्षेत्र – जनसंख्या नीति के अन्तर्गत हम मुख्य रूप से जन्म , मृत्यु दर , जनसंख्या दर , वितरण जनसंख्या वितरण को नियमित करना तथा जनसंख्या की संरचना में सुधार आदि तथ्यों का अध्ययन किया जाता है ।
कथनी व करनी में अन्तर – सरकार की कथनी व करनी में काफी अन्तर होने के कारण भी इस दिशा में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो रही ।
धीमी प्रगति- भारत सरकार की जनसंख्या नीति को क्रियान्वित करने की दृष्टि से राज्य सरकारों की प्रगति धीमी है । पर्याप्त अनुदान के अभाव में वे इसे लागू करने में विशेष रुचि नहीं लेती ।
अनिवार्य नसबन्दी की धारणा का त्याग अनुचित- भारत में तीन सन्तानों के बाद नसबन्दी अनिवार्य रूप से कानून बाध्य होनी चाहिए । सरकार की वर्तमान नीति में अनिवार्य नसबन्दी के अधिकार का त्याग करना अनुचित लगता है ।
एक विवेकपूर्ण जनसंख्या नीति के तत्त्व एक विवेकपूर्ण जनसंख्या नीति के निम्नलिखित मुख्य तत्त्व हैं
शिक्षा का प्रचार – शिक्षा के प्रचार से भी जन्म दर को कम करने में सहायता मिलती है । शिक्षा तथा प्रशिक्षण के विस्तार से श्रमिकों की कार्य क्षमता में भी वृद्धि की जा सकती है जिससे उनके शिशु उत्पन्न करने के वर्षों में कमी आ जाती है । शिक्षा के प्रसार का एक प्रमुख लाभ यह होता है कि आम लोग परिवार नियोजन की महत्ता को समझने लगते हैं । इस प्रकार शिक्षा के प्रसार से परिवार नियोजन के कार्यक्रमों के विकास एवं विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलता है ।
परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रचार व प्रसार – कम विकसित देशों में तो परिवार नियोजन की आवश्यकता आज समय की प्रमुख आवश्यकता है । वस्तुतः परिवार नियोजन के सरल उपायों का व्यापक प्रभाव प्रचार किया जाना चाहिए । वस्तुतः परिवार नियोजन की विधियों का व्यापक सामाजिक वातावरण पर निर्भर करता है । देखा जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में , निम्न आय वाले वर्गों में तथा धार्मिक कट्टरपंथियों के समाज में परिवार नियोजन का प्रसार कुछ कठिन होता है । परिवार नियोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत ऐसी वैकल्पिक गर्भ – निरोधक विधियाँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए जिससे लोग अपनी मान्यताओं , सामाजिक स्थिति एवं रुचि के अनुसार इन विधियों में से किसी एक उपयुक्त विधि का चयन कर सके । इसके अतिरिक्त परिवार नियोजन की विधियों के सम्बन्ध में निरन्तर शोध कार्य संचालित करना चाहिए जिससे कि गर्भ निरोधक की आधुनिक एवं सरल विधियों को प्रयोग में लाया जा सके । यथार्थ तो यह है कि गर्भ निरोध तथा गर्भपात की ऐसी विधियाँ ही अधिक प्रचलित होती हैं जिनमें शल्य चिकित्सा तथा चिकित्सक की अधिक सहायता की आवश्यकता नहीं होती ।
सामाजिक वातावरण में परिवर्तन- जनसंख्या की समस्या क्योंकि एक सामाजिक समस्या है , अतः इस पर सामाजिक वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है । हमारे सामाजिक वातावरण में अनेक मान्यताएँ , परम्पराएँ व रूढ़ियाँ प्रचलित हैं जिनके कारण जनसंख्या की समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है । इस दृष्टि से शिक्षा एवं परीक्षण के विस्तार के साथ जीवन को संरक्षण व श्रम की गतिशीलता को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ।
स्त्री समाज के कल्याण की व्यवस्था— जनसंख्या नीति की सफलता हेतु यह आवश्यक है कि स्त्री समाज के कल्याण की व्यवस्था की जाए । वस्तुतः जन्म दर को कम करने में स्त्रियों की जागरुकता , उनके सामाजिक स्तर में उन्नति तथा उनमें आर्थिक स्वतन्त्रता के प्रति आकर्षण आदि विशेष रूप से सहायक सिद्ध होते हैं । उन्हें रोजगार में प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए तथा उनके लिए शिक्षण एवं प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए ।
आर्थिक विकास की उपलब्धि का असमान वितरण — विकासशील राष्ट्रों में आर्थिक विकास की उपलब्धियों का अत्यधिक असमान वितरण पाया जाता है तथा देश के अधिकांश निर्धन व्यक्ति इन लाभों से वंचित रह जाते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि अधिकांश विकासशील राष्ट्रों में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने पर भी निर्धन वर्ग निर्धन ही बना रहता है ।
स्थानान्तरित कर दिया जाए तो इससे निश्चित ही व्यक्तिवादी व्यवस्था को प्रोत्साहन मिलेगा ।
जनसंख्या का सन्तुलित क्षेत्रीय वितरण – जनसंख्या नीति के अन्तर्गत इस • बात का प्रयास किया जाता है कि जनसंख्या का क्षेत्रीय असन्तुलन कम हो । वस्तुतः जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का भार अधिक होता है , वहाँ पर श्रम शक्ति का अधिकांश भाग बेरोजगार या अर्द्ध – बेरोजगार रहता है । यदि श्रम के इस आधिक्य को घनी आबादी वाले क्षेत्रों में स्थानान्तरित कर दिया जाए तो यह अतिरिक्त श्रम शक्ति उपयोगी सिद्ध हो सकती है । इससे अर्थव्यवस्था के कम भार वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक साधनों का उचित विदोहन किया जा सकता है । राज्य द्वारा कम घनत्व वाले क्षेत्रों में आकर्षक सुविधाएँ प्रदान करके जनसंख्या के क्षेत्रीय असन्तुलन को कम अवश्य किया जा सकता है ।
भारतीय जनसंख्या नीति के तत्त्व –
गतिशीलता को प्रोत्साहन – भारत में लोग अपने – अपने गाँव या शहर तथा अपने परिवारजनों एवं सम्बन्धियों से बिछुड़ने से कतराते हैं । लोगों की यह अगतिशीलता देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है । जनसंख्या नीति में इस अगतिशीलता को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है । इस प्रकार भारतीय जनसंख्या नीति का एक आवश्यक तत्त्व जनसंख्या अथवा श्रम की गतिशीलता को प्रेरित करता है ।
औद्योगीकरण- आधुनिक काल में औद्योगीकरण भारत की एक अनिवार्य आवश्यकता है । भारत में औद्योगीकरण की आवश्यकता के सम्बन्ध में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं ( i ) नियोजन तथा सफल औद्योगीकरण के कारण नए उद्योगों का विकास होता है । नगरीय ढाँचों का निर्माण होता है । इसके परिणामस्वरूप शिक्षा , प्रशिक्षण तथा छोटे नियोजित परिवारों आदि का विकास व विस्तार होता है । ( ii ) श्रमिकों तथा मशीनों के सहयोग से विशाल स्तर पर आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन सम्भव होता है । ( iii ) विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगारों , अर्द्ध – बेरोजगारों तथा अदृश्य बेरोजगारों को कारखानों में रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है । ( iv ) औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप जन्म – दर में भी कमी आती है । स्पष्ट है कि आज भारत में औद्योगीकरण जनसंख्या नीति का एक आवश्यक अंग है ।
कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु प्रयास – भारत की अधिकांश जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन हेतु कृषि पर निर्भर है , अतः कृषि उत्पादन में वृद्धि यहाँ की जनसंख्या नीति का एक आवश्यक तत्त्व है । भारतवर्ष में कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अकृषि जोतों पर कृषि करने के प्रयास किए जा रहे हैं तथा व्यपड़ी भूमि पर कृषि करने के प्रयास किए जा रहे हैं ।
जन्म – दर को नियन्त्रित करना- भारत की जनसंख्या नीति का एक आवश्यक अंग यहाँ जन्म दर को नियन्त्रित करना भी है । भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत स्वैच्छिक परिवार परिसीमन की नीति अपनाई । इस पर 65 लाख रुपए व्यय किए जाने का प्रावधान था किन्तु अवधि में वास्तव में 18.5 लाख रुपए ही व्यय किए जा सके । द्वितीय पंचवर्षीय योजना में 5 करोड़ रुपए व्यय किए जाने का प्रावधान था लेकिन वास्तव में 2.3 करोड़ रुपए ही परिवार नियोजन पर व्यय किए गए । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में इस पर 497.4 करोड़ रुपये का व्यय करने का प्रावधान था जिसमें सन् 1977-78 तक 409 करोड़ रुपए व्यय किए जा चुके थे । सातवीं योजना में परिवार कल्याण कार्यक्रम पर 3256 करोड़ का व्यय करने का प्रावधान रखा गया था ।
जनसंख्या नीति के उद्देश्य
( Objectives of Population Policy )
जनसंख्या नीति के उद्देश्यों का दो रूपों में अध्ययन किया जा सकता है
- गुणात्मक दृष्टिकोण
- परिमाणात्मक दृष्टिकोण
- गुणात्मक दृष्टिकोण- प्रत्येक देश की जनसंख्या में गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन होते रहते हैं , परन्तु ये परिवर्तन धीरे – धीरे होते हैं जिसका आभास कुछ वर्षों के पश्चात् और अगली जनगणना के आँकड़ों से होता है । जनसंख्या में होने वाले ऐसे परिवर्तन जो देश की जनसंख्या में गुणात्मक परिवर्तन लाते हैं उन्हें जनसंख्या का गुणात्मक पक्ष कहा जाता है । गुणात्मक मूल्यों में सुधार को ‘ मानव पूँजी निर्माण ‘ भी कहा जाता है , अतः मानव संसाधन विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मानव जीवन के मूल्यों एवं शक्ति के विकास हेतु भारी मात्रा में निवेश किया जाता है ताकि देश की जनशक्ति तकनीकी योग्यता एवं कुशलता की दृष्टि से विशेष हो सके । जनसंख्या के गुणात्मक पहलू में निम्न विषयों का समावेश रहता है ( i ) प्रत्याशित आयु , ( ii ) साक्षरता , ( iii ) स्वास्थ्य , ( iv ) श्रम की उत्पादकता , ( v ) जोखिम लेने की क्षमता ।
- परिमाणात्मक दृष्टिकोण – जनसंख्या के परिमाणात्मक दृष्टिकोण में निम्न तत्वों पर ध्यान दिया जाता है
( i ) प्रजनन दर अथवा जन्म दर – इसमे देश की वर्तमान प्रजनन दर का अध्ययन एवं विश्लेषण करके इस तथ्य का मूल्यांकन किया जाता है कि देश में उपलब्ध संसाधनों की दृष्टि से वर्तमान जन्म दर और इस तरह जनसंख्या का आकार उपयुक्त है अथवा नहीं । इसी आधार पर प्रजनन दर को कम या अधिक करने का प्रयास किया जाता है । उदाहरण के लिए , कुछ विकसित देशों में जहाँ जनसंख्या कम है वहाँ प्रजननशीलता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है । जबकि अर्द्धविकसित देशों में जहाँ जनसंख्या बढ़ रही है वहाँ प्रजननशीलता को घटाने का प्रयास किया जा रहा है ।
( ii ) मृत्यु तथा अस्वस्थता को कम करना- आज प्रत्येक देश की जनसंख्या नीति का प्रमुख उद्देश्य मृत्यु दर में कमी लाना और देशवासियों के स्वास्थ्य सुधार में वृद्धि करना है । इससे प्रत्याशित आयु में वृद्धि होती हैं और श्रमशक्ति एवं उत्पादक आयु बढ़ती है ।
( iii ) देशान्तरण का निर्धारण- देश में आन्तरिक व बाह्य प्रवास को देशवासियों के हितों के अनुरूप तय करना जनसंख्या नीति का एक प्रमुख अंग होता है । इस तरह जनसंख्या नीति में निम्न बातों का समावेश रहता है ( i ) जन्म एवं मृत्यु दरों पर नियन्त्रण रखना , ( ii ) संसाधनों के अनुरूप जनसंख्या के आकार एवं वृद्धि दर का नियमन , ( iii ) जनसंख्या के भौगोलिक वितरण में सन्तुलन लाना , ( iv ) जनसंख्या की संरचना एवं गुणवत्ता में सुधार लाना , ( v ) आर्थिक विकास की वांछित गति के अनुरूप जनसंख्या का नियमन करना , ( vi ) विवाह की आयु एवं प्रवास को वांछित जनसंख्या के अनुरूप निर्धारित एवं व्यवस्थित करना आदि ।