StudyPoint24

बिहार चुनाव: मुद्दों का रण या नेताओं का दम? सियासी कुरुक्षेत्र की पूरी कहानी

image 73

बिहार चुनाव: मुद्दों का रण या नेताओं का दम? सियासी कुरुक्षेत्र की पूरी कहानी

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारत के चुनावी मानचित्र पर बिहार हमेशा से एक अनूठा और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह केवल एक राज्य का चुनाव नहीं होता, बल्कि देश की राजनीतिक नब्ज को समझने का एक पैमाना भी होता है। जब भी बिहार में चुनाव का बिगुल बजता है, तो यह केवल वोटों की गिनती नहीं होती, बल्कि मुद्दों की धार और नेताओं के तेज की एक सच्ची कसौटी बन जाती है। जिस तरह महाभारत के कुरुक्षेत्र में धर्म और अधर्म का निर्णय हुआ था, उसी तरह बिहार का चुनावी रण भी राज्य के भविष्य और राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस बार भी, बिहार एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ अतीत के सबक, वर्तमान की चुनौतियाँ और भविष्य की आकांक्षाएँ एक साथ मिल रही हैं।

यह लेख आपको बिहार के इस चुनावी ‘कुरुक्षेत्र’ के हर पहलू से रूबरू कराएगा – वो मुद्दे जो जनता के दिलों में घर कर चुके हैं, वो नेता जो अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, और वो समीकरण जो जीत-हार का ताना-बाना बुनेंगे। हम गहराई से समझेंगे कि क्यों बिहार का चुनाव सिर्फ बिहारियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए मायने रखता है, और कैसे यह चुनाव आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत साबित हो सकता है।

बिहार: भारतीय राजनीति का ‘लैब’ (Bihar: The ‘Lab’ of Indian Politics)

बिहार को अक्सर भारतीय राजनीति का एक ‘प्रयोगशाला’ कहा जाता है। यहाँ जाति, वर्ग, धर्म, विकास और पहचान की राजनीति इस कदर आपस में गुंथी हुई है कि इसे समझना एक जटिल पहेली सुलझाने जैसा होता है। इस राज्य ने मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद सामाजिक न्याय की राजनीति को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित होते देखा है, तो वहीं सुशासन और विकास के मॉडल को भी परखा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और बिहार की चुनावी संस्कृति:

मुद्दों की धार: जनता की कसौटी (The Edge of Issues: The Public’s Test)

किसी भी चुनाव में, मुद्दे ही वह नींव होते हैं जिन पर जनता का विश्वास टिकता है। बिहार के संदर्भ में, ये मुद्दे केवल चुनावी घोषणा पत्र तक सीमित नहीं रहते, बल्कि लोगों के दैनिक जीवन की सच्चाइयों से जुड़े होते हैं। इस बार भी कई ऐसे मुद्दे हैं जो चुनाव की दिशा तय कर सकते हैं:

1. विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर:

“सड़कें, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य – ये सिर्फ सुविधाएँ नहीं, बल्कि जनता की बुनियादी ज़रूरतें और सरकारों के लिए जनादेश का आधार हैं।”

2. बेरोज़गारी और पलायन:

बिहार में बेरोज़गारी एक स्थायी चुनौती बनी हुई है, जो राज्य से बड़े पैमाने पर पलायन का मुख्य कारण है।

3. जातीय जनगणना और आरक्षण:

हाल ही में बिहार में हुई जातीय जनगणना ने राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है।

4. भ्रष्टाचार और सुशासन:

कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार किसी भी सरकार के मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण पैमाना होते हैं।

5. महंगाई और किसानों के मुद्दे:

आम जनता के लिए महंगाई एक सीधा और तात्कालिक मुद्दा है, जबकि किसानों के मुद्दे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

नेताओं के तेज: नेतृत्व की कसौटी (The Sharpness of Leaders: The Test of Leadership)

मुद्दों की तरह ही, नेताओं का करिश्मा, उनकी क्षमता और उनकी रणनीतियाँ भी चुनाव परिणाम में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। बिहार में ऐसे कई नेता हैं जो अपनी अनूठी शैली और जनसंपर्क के लिए जाने जाते हैं।

1. नेतृत्व क्षमता और करिश्मा:

2. गठबंधन की राजनीति:

“बिहार में ‘सबका साथ’ केवल नारा नहीं, बल्कि जीत की अनिवार्य शर्त है। यहाँ गठबंधन ही शक्ति है।”

बिहार में कोई भी दल अकेले चुनाव जीतने का जोखिम नहीं उठा सकता। गठबंधन की राजनीति यहाँ की एक विशिष्ट पहचान है:

3. प्रचार शैली और संचार:

4. युवा नेतृत्व का उदय:

तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे युवा नेता अपनी पीढ़ी के मतदाताओं को आकर्षित कर रहे हैं। वे पारंपरिक राजनीतिक शैली से हटकर, आधुनिक संचार माध्यमों का उपयोग करते हुए, युवाओं की आकांक्षाओं को आवाज़ दे रहे हैं।

5. विरासत और परिवारवाद:

बिहार की राजनीति में कई ऐसे नेता हैं जिनकी राजनीतिक विरासत उनके परिवारों से जुड़ी है। यह मतदाताओं को लुभाने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन युवा पीढ़ी में परिवारवाद के प्रति कुछ हद तक नाराजगी भी देखी जा सकती है।

चुनावी समीकरण और गठबंधन का गणित (Electoral Equations and Coalition Math)

बिहार का चुनाव सिर्फ मुद्दों और नेताओं का खेल नहीं, बल्कि संख्या और समीकरणों का भी एक जटिल गणित है। यहाँ हर सीट पर जातीय, क्षेत्रीय और दलगत समीकरण बारीकी से देखे जाते हैं।

1. प्रमुख राजनीतिक धुरी:

2. जातीय समीकरणों का प्रभाव:

बिहार में, जातीय जनगणना के बाद, जातीय समीकरणों की महत्ता और बढ़ गई है।

3. क्षेत्रीय प्रभाव और भौगोलिक विभाजन:

4. वोट शेयर और सीटों का गणित:

बिहार में अक्सर वोट शेयर में मामूली अंतर भी सीटों की संख्या में बड़ा बदलाव ला सकता है। एक-एक प्रतिशत वोट के लिए घमासान होता है। छोटे दलों के साथ गठबंधन से मिलने वाले ‘ट्रांसफर ऑफ वोट’ की क्षमता निर्णायक होती है।

5. बागियों और छोटे दलों की भूमिका:

कई बार बड़े दलों से टिकट न मिलने पर नेता बागी होकर चुनाव लड़ते हैं, जिससे वोटों का विभाजन होता है और परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। इसी तरह, कुछ छोटे, क्षेत्रीय दल या नवगठित पार्टियां भी कुछ सीटों पर ‘वोट कटर’ की भूमिका निभाकर बड़े दलों के समीकरण बिगाड़ सकती हैं।

चुनौतियाँ और अवसर (Challenges and Opportunities)

हर चुनावी प्रक्रिया कुछ चुनौतियों के साथ-साथ राज्य के लिए अवसर भी लेकर आती है।

चुनौतियाँ:

अवसर:

बिहार का भविष्य और राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव (Bihar’s Future and Impact on National Politics)

बिहार का चुनावी परिणाम केवल राज्य तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसके दूरगामी राष्ट्रीय निहितार्थ होते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

बिहार का आगामी चुनाव सिर्फ विधायकों के चयन का मामला नहीं है, बल्कि यह राज्य के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भविष्य को आकार देने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह मुद्दों की धार पर नेताओं के तेज की कसौटी है, जहाँ जनता की आकांक्षाएँ और राजनीतिक दलों की रणनीतियाँ आमने-सामने होंगी। इस ‘सियासी कुरुक्षेत्र’ का परिणाम न केवल बिहार की दिशा तय करेगा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के गतिशील स्वरूप पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ेगा। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह चुनाव भारतीय राजनीति के सिद्धांतों, व्यवहारों और जटिलताओं को समझने का एक बेहतरीन केस स्टडी है। इसमें निहित सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक आयामों का विश्लेषण आपको भारतीय राजव्यवस्था और समसामयिक घटनाओं की गहरी समझ प्रदान करेगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न 1: भारत के राज्यों में विधान परिषदों (Legislative Councils) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. किसी राज्य में विधान परिषद के गठन या उन्मूलन के लिए राज्य विधानसभा को एक प्रस्ताव पारित करना होता है, जिसे संसद साधारण बहुमत से अनुमोदित करती है।
    2. भारत में सभी राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल हैं, जिसमें विधानसभा और विधान परिषद दोनों शामिल हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल (a)

    (B) केवल (b)

    (C) (a) और (b) दोनों

    (D) न तो (a) और न ही (b)

    उत्तर: (A)

    व्याख्या:
    कथन (a) सही है। संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार, किसी राज्य में विधान परिषद के गठन या उन्मूलन के लिए, राज्य विधानसभा को अपनी कुल सदस्यता के बहुमत से और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करना होता है। संसद फिर साधारण बहुमत से इस प्रस्ताव को कानून का रूप देती है।
    कथन (b) गलत है। भारत में सभी राज्यों में विधान परिषद नहीं है। केवल कुछ राज्यों (वर्तमान में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और बिहार) में द्विसदनीय विधानमंडल हैं।

  2. प्रश्न 2: भारत में चुनाव सुधारों के संदर्भ में, ‘प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985’ का उद्देश्य क्या है?

    (A) चुनाव से संबंधित विवादों के शीघ्र समाधान के लिए।

    (B) सरकारी कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों का निर्णय करने के लिए।

    (C) चुनाव में धनबल के उपयोग को रोकने के लिए।

    (D) चुनाव आयोग को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए।

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985, भारत में सरकारी कर्मचारियों के सेवा संबंधी विवादों और शिकायतों के त्वरित और प्रभावी समाधान के लिए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) और राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरणों (SAT) की स्थापना का प्रावधान करता है। इसका चुनाव सुधारों से सीधा संबंध नहीं है।

  3. प्रश्न 3: भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में से कौन-सा “राज्य के भीतर सीटों के आरक्षण” (Reservation of seats within the State) से संबंधित है, जैसा कि हाल ही में कुछ राज्यों में देखा गया है?

    (A) अनुच्छेद 15(4) और 16(4)

    (B) अनुच्छेद 330 और 332

    (C) अनुच्छेद 15(6) और 16(6)

    (D) अनुच्छेद 335

    उत्तर: (A)

    व्याख्या:
    अनुच्छेद 15(4) सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। अनुच्छेद 16(4) राज्य को सेवाओं में पिछड़े वर्गों के किसी भी नागरिक के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए कोई भी प्रावधान करने का अधिकार देता है यदि उनका राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। जातीय जनगणना और उसके आधार पर आरक्षण की चर्चा इन्हीं अनुच्छेदों के संदर्भ में होती है।
    अनुच्छेद 330 और 332 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण से संबंधित हैं, न कि राज्य के भीतर सेवाओं में।
    अनुच्छेद 15(6) और 16(6) आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण से संबंधित हैं।
    अनुच्छेद 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों से संबंधित है, लेकिन यह आरक्षण के प्रावधानों को सीधा नहीं करता।

  4. प्रश्न 4: ‘सामाजिक न्याय’ शब्द का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है, जैसा कि भारतीय राजनीति में अक्सर प्रयोग किया जाता है?

    (A) सभी नागरिकों के लिए समान आर्थिक अवसर प्रदान करना।

    (B) समाज के वंचित वर्गों को शिक्षा और रोज़गार में विशेष अवसर प्रदान करना।

    (C) समाज में सभी व्यक्तियों के साथ जाति, धर्म या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न करना।

    (D) केवल कानूनी समानता सुनिश्चित करना, सामाजिक और आर्थिक नहीं।

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    भारतीय राजनीति में ‘सामाजिक न्याय’ का अर्थ केवल भेदभाव की अनुपस्थिति या कानूनी समानता नहीं है, बल्कि यह सक्रिय रूप से समाज के उन वर्गों को विशेष अवसर (जैसे आरक्षण) प्रदान करने पर केंद्रित है जो ऐतिहासिक रूप से या संरचनात्मक रूप से वंचित रहे हैं, ताकि वे मुख्यधारा में आ सकें और समानता प्राप्त कर सकें। यह अवधारणा सकारात्मक भेदभाव (affirmative action) को बढ़ावा देती है।

  5. प्रश्न 5: भारत के निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) के निम्नलिखित कार्यों पर विचार करें:
    1. चुनाव की अधिसूचना जारी करना।
    2. चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित करना और उसकी निगरानी करना।
    3. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना।
    4. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और चुनाव चिह्न आवंटित करना।

    उपरोक्त में से कौन-से कार्य निर्वाचन आयोग द्वारा किए जाते हैं?

    (A) केवल 1, 2 और 3

    (B) केवल 2, 3 और 4

    (C) केवल 1, 2 और 4

    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    चुनाव की अधिसूचना (notification) जारी करना राष्ट्रपति (लोकसभा और राज्य सभा चुनाव के लिए) या राज्यपाल (राज्य विधानसभा चुनाव के लिए) का कार्य है। निर्वाचन आयोग चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करता है, लेकिन अधिसूचना जारी नहीं करता।
    बाकी सभी कार्य (चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित करना और निगरानी करना, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना, राजनीतिक दलों को मान्यता देना और चुनाव चिह्न आवंटित करना) निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्य हैं।

  6. प्रश्न 6: भारतीय लोकतंत्र में ‘वोट कटर’ की भूमिका निभाने वाले छोटे राजनीतिक दलों या निर्दलीय उम्मीदवारों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है?

    (A) वे हमेशा सत्तारूढ़ दल के वोटों को विभाजित करते हैं।

    (B) वे केवल राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में ही महत्वपूर्ण होते हैं।

    (C) वे मुख्य रूप से एक विशेष क्षेत्र या समुदाय के वोटों को विभाजित करके प्रमुख उम्मीदवारों की जीत-हार को प्रभावित कर सकते हैं।

    (D) वे कभी भी किसी बड़े दल का समर्थन नहीं करते।

    उत्तर: (C)

    व्याख्या:
    ‘वोट कटर’ ऐसे उम्मीदवार या छोटे दल होते हैं जो स्वयं जीतने की स्थिति में न होते हुए भी, किसी प्रमुख उम्मीदवार या पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाकर उसके जीतने की संभावनाओं को कम कर देते हैं। वे अक्सर एक विशेष क्षेत्र, जाति, धर्म या मुद्दे पर आधारित होते हैं और संबंधित प्रमुख पार्टी के वोटों को विभाजित करते हैं, जिससे दूसरे प्रमुख पार्टी को फायदा हो सकता है। वे किसी भी बड़े दल के वोटों को काट सकते हैं, न कि हमेशा सत्तारूढ़ दल के। वे क्षेत्रीय और स्थानीय चुनावों में भी महत्वपूर्ण होते हैं और कुछ मामलों में बड़े दलों का समर्थन भी कर सकते हैं (जैसे गठबंधन में शामिल होकर)।

  7. प्रश्न 7: भारत में दलबदल विरोधी कानून (Anti-defection Law) का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    (A) राजनीतिक दलों को अधिक धन इकट्ठा करने से रोकना।

    (B) सरकार में स्थिरता सुनिश्चित करना और सदस्यों को अपने दल बदलने से रोकना।

    (C) चुनाव में धांधली को रोकना।

    (D) राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना।

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    भारत में दलबदल विरोधी कानून, जिसे 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा 10वीं अनुसूची में जोड़ा गया था, का मुख्य उद्देश्य सांसदों और विधायकों को एक दल से दूसरे दल में दल बदलकर सरकार को अस्थिर करने से रोकना है। इसका लक्ष्य राजनीतिक अस्थिरता को कम करना और सांसदों/विधायकों को उनके मूल दल के प्रति जवाबदेह बनाना है।

  8. प्रश्न 8: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत राज्यों में राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है?

    (A) अनुच्छेद 123

    (B) अनुच्छेद 213

    (C) अनुच्छेद 161

    (D) अनुच्छेद 356

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    अनुच्छेद 213 राज्यपाल को तब अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है जब राज्य विधानसभा सत्र में न हो और ऐसी परिस्थितियाँ मौजूद हों जिनमें तत्काल कार्रवाई आवश्यक हो।
    अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
    अनुच्छेद 161 राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से संबंधित है।
    अनुच्छेद 356 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है।

  9. प्रश्न 9: भारत में स्थानीय स्वशासन (Local Self-Governance) के संदर्भ में, ‘ग्राम सभा’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह पंचायत क्षेत्र के भीतर मतदाता सूची में पंजीकृत सभी व्यक्तियों से मिलकर बनती है।
    2. ग्राम सभा की शक्तियाँ और कार्य राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल (a)

    (B) केवल (b)

    (C) (a) और (b) दोनों

    (D) न तो (a) और न ही (b)

    उत्तर: (C)

    व्याख्या:
    कथन (a) सही है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा ग्राम सभा को परिभाषित किया गया है। यह पंचायत क्षेत्र के भीतर मतदाता सूची में पंजीकृत सभी वयस्क व्यक्तियों की सभा होती है।
    कथन (b) सही है। संविधान के अनुच्छेद 243-ए के अनुसार, राज्य का विधानमंडल ग्राम सभा की शक्तियों और कार्यों का प्रावधान कानून द्वारा कर सकता है।

  10. प्रश्न 10: भारत में चुनाव के दौरान ‘आदर्श आचार संहिता’ (Model Code of Conduct) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह कानून द्वारा बाध्यकारी है और इसका उल्लंघन करने पर कानूनी दंड का प्रावधान है।
    2. यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को नियंत्रित करने के लिए एक आम सहमति वाला दस्तावेज है।
    3. यह निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल 1 और 2

    (B) केवल 2 और 3

    (C) केवल 1 और 3

    (D) 1, 2 और 3

    उत्तर: (B)

    व्याख्या:
    कथन (a) गलत है। आदर्श आचार संहिता कानून द्वारा बाध्यकारी नहीं है; यह राजनीतिक दलों की आपसी सहमति पर आधारित है और नैतिक दिशानिर्देशों का एक समूह है। इसका उल्लंघन करने पर सीधे कानूनी दंड का प्रावधान नहीं है, हालांकि निर्वाचन आयोग अपनी शक्तियों का उपयोग करके कार्रवाई कर सकता है।
    कथन (b) सही है। यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा चुनावों के दौरान पालन किए जाने वाले मानदंडों और दिशानिर्देशों का एक समूह है, जिसे सर्वसम्मति से विकसित किया गया है।
    कथन (c) सही है। आदर्श आचार संहिता निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तारीख से लागू हो जाती है और चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों का ऐतिहासिक महत्व रहा है। हाल ही में हुई जातीय जनगणना ने इन समीकरणों को कैसे प्रभावित किया है और यह आगामी चुनावों में किस प्रकार निर्णायक भूमिका निभा सकता है? विश्लेषण करें।
  2. पलायन और बेरोज़गारी बिहार के समक्ष दो प्रमुख सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा अपनाई गई प्रमुख नीतियाँ क्या हैं? क्या इन नीतियों ने वास्तविक रूप से अपेक्षित परिणाम दिए हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  3. ‘गठबंधन की राजनीति’ आधुनिक भारतीय लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग बन गई है। बिहार के विशेष संदर्भ में, गठबंधन सरकारें राज्य के शासन और विकास को कैसे प्रभावित करती हैं? क्या गठबंधन की स्थिरता सुशासन के लिए हमेशा अनुकूल होती है? चर्चा करें।
  4. भारत में राज्य विधानसभा चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है? बिहार जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से जागरूक राज्य के चुनाव परिणाम आगामी राष्ट्रीय चुनावों के लिए किस प्रकार एक बैरोमीटर का काम कर सकते हैं? विस्तृत चर्चा करें।
Exit mobile version