प्रदत्त प्रस्थिति के निर्धारण के आधार

 

प्रदत्त प्रस्थिति के निर्धारण के आधार

( Bases of determination of Ascribed Status )

 

 किसी भी व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण अनेक आधारों पर होता है । प्रदत्त प्रस्थिति निर्धारण के कुछ प्रमुख आधार इस प्रकार हैं ।

1 जन्म ( Birth ) : – व्यक्ति का जन्म किस परिवार जाति अथवा प्रजाति में हुआ है इस आधार पर भी प्रस्थिति का निर्धारण होता है । उच्च जाती में जन्म लेने वाले की सामाजिक प्रस्थिति निम्न परिवारों एवं अस्पृश्य जातियों के लोगों की तुलना में ऊंची रही है ।

2 नातेदारी ( Kindship ) : – व्यक्ति को नातेदारी के आधार पर भी अनेक प्रस्थितियां प्राप्त होती है । एक व्यक्ति का अपने माता – पिता एंव रक्त सम्बन्धियों से सम्बन्ध होता है । उनसे सम्बन्धिरा होने के कारण ही वह अनेक प्रस्थितियां प्राप्त करता है । नातेदारी से सम्बन्धित प्रस्थितियां प्रदत्त होती हैं क्योंकि हम हमारे माता – पिता एवं भाई – बहिन का चयन नहीं करते । नातेदारी जैविकीय एंव सांस्कृतिक दोनों ही तथ्यों का मिश्रित रूप है । समाज में हमें कई पद माता – पिता के द्वारा ही प्राप्त होते हैं । राजा का पुत्र राजपद ग्रहण करता है । हम अपने माता पिता का वर्ग , धर्म और कभी – कभी व्यवसाय भी प्रहण करते हैं । भारत में जाति का आधार जन्म ही होता है |

 3 आयु भेद ( Age Difference ) : – यौन भेद की भांति आयु भेद भी निश्चित एवं स्पष्ट शाररिक लक्षण है किन्तु एक परिवर्तनशील तथ्य भी है । विश्व की सभी संस्कृतियों में आयु के आधार पर प्रस्थिति भेद पाया जाता है आयु का विभाजन शिशु , बालक , युवा , प्रौढ़ एवं वृद्ध आदि स्तरों में किया जाता है । समाज में अलग – अलग आयु के लोगों को विभिन्न प्रस्थितियां प्रदान की जाती हैं तथा एक विशेष प्रस्थिति के लिए निश्चित आयु का होना भी आवश्यक है । बड़े भाई एवं छोटे भाई का भेद आयु पर निर्भर है । प्रायः बच्चों की तुलना में वृद्ध लोगों को समाज में अधिक सम्मान दिया जाता है । किन्तु सदैव ही प्रस्थिति निर्धारण में आयु ही महत्तपूर्ण नहीं होती है वरन उसके साथ लिंग , व्यक्ति के गुण , नातेदारी , क्षमता , शिक्षा , सम्पत्ति तथा सांस्कृतिक आधार भी जुड़े होते हैं ।

 4 लिंग भेद ( Sex Dichatomy ) : – शिशु का लिंग जन्मकाल में ही निश्चित तथा प्रत्यक्ष दृश्यमान शारीरिक लक्षण है जो आजीवन स्थायी बना रहता है । लगभग सभी संस्कृतियों में स्त्री एवं पुरूष की प्रस्थितियों एवं भूमिकाओं में अन्तर पाया जाता है । प्रायः स्त्रीयों की तुलना में पुरुषों की प्रस्थिति ऊंची पायी जाती है । पश्चिमी संस्कृति में स्त्रियों को कमजोर , कोमल , भावुक , सहज विश्वासी , धार्मिक तथा एक – विवाही माना जाता है । भारत में भी स्त्रियों की प्रस्थिति पुरूषों से नीची रही है और उन्हें अबला , दासी , एवं सम्पत्ति के रूप में समझा जाता रहा है ।

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5 जाति एवं प्रजाति ( Caste and Race ) : – भारत में जाति व्यक्ति की प्रस्थिति निर्धारण का प्रमुख आधार है । ऊची जातियों में जैसे ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य में जन्म लेने वाले की प्रस्थिति शूद्र एवं अछूत जातियों में जन्म लेने वाले से ऊंची समझी जाती है । इसी प्रकार काली एवं पीली प्रजाति की तुलना में गोरी प्रजाति के लोगों की सामाजिक प्रस्थिति ऊंची मानी जाती है ।

 

6 शारीरिक विशेषताएं ( Physical Ability ) : – कई प्रस्थितियां व्यक्ति को उसकी शारीरिक विशेषताओं के आधार पर प्रदान की जाती हैं । काले एवं कुरूप की तुलना में सुन्दर , निर्बल की तुलना में शक्तिशाली तथा बीमार लूले – लगड़े एवं व्यक्ति की तुलना में स्वस्थ एवं सक्षम व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति ऊंची होती है । ।

 

 आर्जित प्रस्थिति ( Achived Status ) : – शिक्षा , व्यवसाय , सम्पत्ति संचय , विवाह श्रम विभाजन आदि का सम्बन्ध अर्जित प्रास्थितियों से ही है । व्यक्ति की सफलता एवं असफलता के आधार पर भी उसे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है । साधारणतः दयाल , बुद्धिमान , योग्य , प्रतिभाशाली , साहसी एवं शक्तिशाली व्यक्ति को सभी महत्व देते हैं । प्रो डेबिस कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति समाज में सदैव होते हैं जो इतने चतुर प्रतिभाशाली , शक्तिशाली , क्षमताशील एवं महत्तकांक्षी होते हैं कि अनेक बाधाओं पा विजय प्राप्त करके वे समाज के नेता बन जाते हैं । प्रत्येक देश एवं प्रत्येक समाज का इतिहास उनके अमर नामों से जगमगाता रहता है । वे इतिहास का निर्माण करते हैं वे अन्य व्यक्तियों पर नियन्त्रण रखने तथा समाज में परिवर्तन लाने में समक्ष होते हैं अतः समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं ।

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अजित प्रस्थिति के निर्धारण के आधार

( Basis of Determination of Achieved Status )

 

अर्जित प्रस्थिति के कछ प्रमख आधार इस प्रकार हैं –

1 शिक्षा ( Education ) : – अशिक्षित की तुलना में शिक्षित का तथा कम पढ़े लिखे व्यक्ति की तुलना में बी0 ए0 , एम0 ए0 तथा डिप्लोमा और प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति की प्रस्थिति ऊंची होती हैं ।

 2 व्यवसाय ( Occupation ) : – व्यवसाय भी व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति निर्धारित करता है । आई० ए० एस० , डाक्टर , इन्जीनियर , प्रोफेसर का पद , चपरासी , मिल मजदूर , कृषक एवं जूते ठीक करने वाले से ऊंचा माना जाता है ।

 

 3 सम्पत्ति ( Wealth ) : – व्यक्ति के पद का निर्धारण करने में सम्पत्ति एक महत्तपूर्ण कारक है । सम्पत्ति पर अधिकार होने या न होने के आधार पर ही व्यक्ति की ऊंची या नीची प्रस्थिति होती है अक्सर गरीब की तुलना में पूंजीपति की सामाजिक प्रस्थिति ऊंची होती है । आधुनिक युग में जिन लोगों के पास भौतिक सुख – सुविधाएं अधिक हैं वे ऊंचे माने जाते हैं । मात्र सम्पत्ति से ही व्यक्ति की प्रस्थिति निर्धारित नहीं होती है । वरन् यह भी देखा जाता है कि वह सम्पत्ति किस प्रकार से अर्जित की गयी है ।

4उपलब्धियाँ ( Achievements ) : – व्यक्ति द्वारा परिश्रम करने से प्राप्त विभिन्न उपलब्धियां भी उसकी सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण करती है । यह उपलब्धियां घार्मिक , सामाजिक , राजनीतिक , शैक्षणिक , आर्थिक एवं खेल – कूद आदि के क्षेत्र में हो सकती हैं ।

 5 विवाह ( Marriage ) : – विवाह भी व्यक्ति को कई प्रस्थितियां प्रदान करता है । विवाह करने पर ही पति – पत्नी , माता – पिता एवं अन्य प्रस्थितियां जैसे – जीजा , जवाई , बहू , भाभी आदि प्राप्त की जाती हैं ।

 

 6 राजनीतिक सत्ता ( Political Authority ) : – राजनीतिक सत्ता के आधार पर ही शासक एवं शासित में भेद किया जाता है । साधारण जन की अपेक्षा सत्ता एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त व्यक्ति की प्रस्थिति ऊंची होती है । प्रजातन्त्र में शासन दल से सम्बन्धित लोगों एवं विरोधी दल के प्रमुख नेताओं की सामाजिक प्रस्थिति ऊंची होती हैं । l

 

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