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प्रत्यक्षवाद : कॉम्ट का पद्धतिशास्त्र

प्रत्यक्षवाद : कॉम्ट का पद्धतिशास्त्र

 ( Positivism : Methodology of Comte )

प्रत्यक्षवाद कॉम्ट द्वारा प्रस्तुत वह सिद्धान्त है जिसने न केवल समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक आधार प्रदान किया , बल्कि इसे सामाजिक दर्शन ( Social Philo sophy ) से भी अलग किया । कॉम्ट ने प्रत्यक्षवाद के आधार पर ही समाज के इतिहास की विवेचना की तथा विज्ञानों के संस्तरण का उल्लेख करते हुए समाजशास्त्र को महत्त्वपूर्ण स्थान पर प्रतिस्थापित किया । कॉम्ट ने बतलाया कि जीवित सत्तावाद ( Fetishism ) और प्रत्यक्षवाद चिन्तन की दो विपरीत प्रक्रियायें हैं और इन चिंतन प्रक्रियाओं की भिन्नता के आधार पर ही मानव समाज के इतिहास का निर्माण हुआ है । प्रत्यक्षवाद का उल्लेख करते हुए कॉम्ट ने बतलाया कि जिस प्रकार प्रकृति में घटित होने वली समस्त घटनायें एक निश्चित क्रम या निश्चित नियमों पर आधारित होती हैं , उसी प्रकार समाज में घटित होने वाली घटनाओं का आधार भी कुछ निश्चित नियम हैं । कॉम्ट के मतानुसार इन नियमों के अध्ययन के लिए प्रत्यक्षवादी पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिए । कॉम्ट का मत है कि गणित प्राकृतिक विज्ञानों और जीव विज्ञानों में प्रत्यक्ष वादी पद्धति का प्रयोग बहुत पहले से होता रहा है । इसी पद्धति के आधार पर सामाजिक घटनाओं का भी अध्ययन होना चाहिए । कॉम्ट ने लिखा है कि ” जो विषय सरल हैं उनकी विषय – वस्तु भी सरल होती है तथा उन पर सरलता से विचार किया जा सकता है । . . . ” ” कुछ तथ्य तो इतने सरल होते हैं कि उनके अवलोकन मात्र से ही उनकी विवेचना अपने आप हो जाती है जबकि सामाजिक तथ्य अत्यन्त जटिल होते हैं , इसीलिए सामाजिक विज्ञानों में प्रत्यक्षवादी पद्धति का प्रयोग बाद में हुआ । “

 कॉम्ट के अनुसार , ” प्रत्यक्षवाद , अवलोकन किए जाने वाले तथ्यों ( Observing Phenomena ) से सम्बन्धित वह पद्धति है जिसके द्वारा तथ्यों का विश्लेषण करके उनसे सम्बन्धित नियमों की स्थापना की जाती है । ” इस प्रकार प्रत्यक्षवादी दर्शन अवलोकन , परीक्षण , विश्लेषण और निर्णायकवाद का दर्शन है जो पूर्ण रूप से ईश्वरवाद अथवा जीवित सत्तावाद से अलग है । कॉम्ट ने बतलाया कि ईश्वरवाद या जीवित सत्तावाद के स्तर पर व्यक्ति मानव – समाज या विभिन्न समूहों के सम्बन्ध में एक कल्पनात्मक विश्लेषण करता है जो बौद्धिक तथा नैतिक रूप से उचित नहीं है । इस दृष्टिकोण से सामाजिक घटनाओं तथा मानव – समाज का विश्ले पण प्रत्यक्षवादी ( वैज्ञानिक ) आधार पर ही किया जाना चाहिए । प्रत्यक्षवादी पद्धतिके संदर्भ में चर्चा करते हुए कॉम्ट ने बतलाया कि समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धति का प्रयोग अवश्य होना चाहिए । प्रत्यक्षवादी पद्धति से कॉम्ट का तात्पर्य उस पद्धति से है जिसके द्वारा उन तथ्यों को ज्ञात किया जा सके जो सामान्य सामाजिक नियमों के लिए उत्तरदायी होते हैं । यद्यपि कॉम्ट ने मानवीय सम्बन्धों की जटिलता को स्वीकार किया है फिर भी उनका कथन है कि मानवीय व्यवहारों और प्रवृत्तियों को प्रत्यक्षवादी पद्धति के माध्यम से ही समझा जा सकता है । प्रत्यक्षवाद की स्पष्ट विवेचना करने के लिए कॉम्ट ने इसकी कुछ आधारभुत मान्यताओं का उल्लेख किया है जिनकी सहायता से प्रत्यक्षवाद की प्रकृति को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है ।

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 प्रत्यक्षवाद की  मान्यताएँ , ( Basic Assumptions of Positivism )

आगस्ट कॉम्ट ने प्रत्यक्षवाद की चर्चा विभिन्न संदर्भो में की है , अतः प्रत्यक्ष वाद की अवधारणा को स्पष्ट रूप से समझने के लिए इससे सम्बन्धित मान्यताओं को जानना आवश्यक हो जाता है ।

 ( 1 ) सामाजिक घटनाएं निश्चित नियमों पर आधारित होती हैं ( Social Phenomena are based on Definite Laws ) – कॉम्ट का मत है कि जिस प्रकार प्राकृतिक घटनाओं ( पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा , ऋतुओं की आवृत्ति , भूकम्प , ज्वालामुखी का विस्फोट आदि ) का संचालन कुछ निश्चित नियमों के द्वारा होता है , उसी प्रकार सामाजिक घटनाएँ भी कुछ निश्चित नियमों में संचालित होती हैं । जिस प्रकार अवलोकन तथा परीक्षण आदि के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है , उसी प्रकार सामाजिक घटनाओं या तथ्यों से सम्बन्धित नियमों को भी अवलोकन एवं परीक्षण द्वारा ज्ञात किया जा सकता है । इस प्रकार कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित प्रत्यक्षवाद को पद्धति सर्वप्रथम इस मान्यता पर आधारित है कि सामा जिक घटनाओं का संचालन कुछ निश्चित नियमों के द्वारा होता है जिनका अध्ययन सम्भव है ।

( 2 ) वैज्ञानिक प्रणाली का प्रयोग ( Use of Scientific Method ) – कॉम्ट के मतानुसार वैज्ञानिक प्रणाली का उपयोग ही प्रत्यक्षवादी पद्धति का आधार है । उन्होंने उन्नीसवीं सदी के समाज को प्रत्यक्षवादी समाज मानते हुए कहा कि आज के युग में अवलोकन , परीक्षण एवं वर्गीकरण जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों के माध्यम से सामाजिक तथ्यों का संग्रह करने तथा उनके विश्लेषण करने का कार्य किया जा रहा है । कॉम्ट ने बतलाया कि प्रत्यक्ष वाद में वैज्ञानिकता का समावेश होने के कारण पक्षपातपूर्ण चितन निरस्त होता चला जाता है । इस प्रकार कॉम्ट प्रत्यक्षवाद को निष्पक्ष एवं पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति के रूप में स्वीकार करते हैं ।

 ( 3 ) वास्तविक ज्ञान ( Exact Knowledge ) – कॉम्ट का कथन है कि प्रत्यक्षवाद का सम्बन्ध केवल वास्तविक ज्ञान से है जिसे यह अवलोकन एवं परीक्षण के माध्यम से प्राप्त करता है । उनके मतानुसार प्रत्यक्षवादी पद्धति में विश्वास ,अनुभव या अनुमान के आधार पर घटनाओं का विश्लेषण नहीं किया जाता । इस सन्दर्भ में कॉम्ट ने ईश्वरीय तथा तात्विक स्तर का विवरण देते हुए बतलाया कि जहाँ ईश्वरीय अथवा धार्मिक स्तर में सामाजिक घटनाओं का विश्लेषण विश्वास के आधार पर एवं तात्विक अवस्था में संयोग या अनुमान के आधार पर किया जाता है , वहीं प्रत्यक्षवाद वह विधि है जिसमें यह विश्लेषण वैज्ञानिक चिन्तन और अवलोकन के आधार पर वास्तविक तथ्यों के संकलन तथा परीक्षण द्वारा किया जाता है । प्रत्यक्षवाद की यह मान्यता स्पष्ट करती है कि प्रत्यक्षवादी चिन्तन में कल्पना तथा अनुमान का कोई स्थान नहीं है । यह पद्धति पूर्ण रूप से परीक्षणों पर आधारित निष्कर्ष प्रस्तुत करती है ।

 ( 4 ) प्रत्यक्षवाद और अनीश्वरवाद ( Positivism and Atheism ) – – आगस्त कॉम्ट ने अपनी पुस्तक ‘ पाजिटिव पालिटी ‘ में प्रत्यक्षवाद और ईश्वरीय अवस्थाओं में पाये जाने वाले चिन्तन के स्तर की भिन्नता को भी स्पष्ट किया है । वे यह मानते हैं कि प्रत्यक्षवादी चिन्तन या पद्धति ईश्वरीय चिन्तन की पद्धति के विपरीत है किन्तु वे इस बात को मानने से इन्कार करते हैं कि प्रत्यक्षवाद अनीश्वर वादी है । उनका कथन है कि जब प्रत्यक्षवाद का अलौकिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है तब ईश्वरीय विश्वासों से इसकी तुलना करने का कोई औचित्य ही नहीं है । स्पष्ट है कि कॉम्ट के लिए प्रत्यक्षवाद ‘ पूर्णत : यथार्थ से सम्बन्ध रखने वाली पद्धति है जिसका कल्पनाओं , ईश्वरवाद , आशावाद या भाग्यवाद से कोई सम्बन्ध नहीं है ।

 ( 5 ) प्रत्यक्षवाद एवं ऐतिहासिक पद्धति ( Positivism and Historical Method ) – कॉम्ट ने बतलाया कि प्रत्यक्षवाद मुख्यतः ऐतिहासिक पद्धति पर आधारित है । इसे स्पष्ट करते हुए कॉस्ट ने बतलाया कि समाजशास्त्रीय अध्ययनों में प्रत्यक्षवादी पद्धति तीन चरणों में पूर्ण होती है । इसका पहला चरण अवलोकन ( Observation ) है तथा दूसरा चरण परीक्षण ( Experimentation ) है । इन दोनों चरणों को संयुक्त रूप से ‘ नियन्त्रित अवलोकन ‘ कहा जा सकता है । प्रत्यक्षवादी पद्धति के तीसरे चरण का उल्लेख करते हुए कॉम्ट ने कहा कि इसका सम्बन्ध व्याधिकीय प्रकरणों से है जिसमें सतर्कता से तथ्यों का सम्पादन किया जाता है । सम्पादन की इस प्रक्रिया को कॉम्ट ने तुलनात्मक पद्धति या ‘ शुद्ध परीक्षण ‘ कहा है । कॉस्ट का कथन है कि अवलोकन , परीक्षण एवं तुलनात्मक पद्धति के आधार पर ही तथ्यों की ऐतिहासिक विवेचना सम्भव है , अतः प्रत्यक्षवाद ऐतिहासिक पद्धति को मान्यता प्रदान करता है । आगस्त कॉम्ट द्वारा प्रतिपादित उक्त मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कॉम्ट की दृष्टि में प्रत्यक्षवाद वह पद्धति है जिसमें अवलोकन , परीक्षण एवं तुलनात्मकता के आधार पर सामाजिक तथ्यों को वास्तविक विश्लेषण किया जाता है और यह विश्लेषण पूर्णतया निष्पक्ष तथा वैज्ञानिक होता है ।

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