Site icon NOTES POINTS

पश्चिमीकरण

पश्चिमीकरण

अवधारणा : पश्चिमीकरण परिवर्तन की उस प्रक्रिया का द्योतक है जो कि भारतीय जनजीवन , समाज व संस्कृति के विभिन्न पक्षों में उस पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न हुई जिसे कि अंग्रेज शासक अपने साथ लाए थे । डा ० एम ० एन ० श्री निवास ( Dr.M.N.Srinivas ) ने पश्चिमीकरण की व्याख्या करते हुए लिखा है , मैंने पश्चिमीकरण शब्द को ब्रिटिश राज्य के डेढ़ सौ वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्तरों जैसे प्रौद्योगिकी , संस्थाओं , विचारधारा , मूल्य आदि में घटित होने वाले परिवर्तनों का द्योतक है । ( I have used the term weternization to characterise the changes brought about in Indian and culture as a result of over 150 years of British rules and the term subsumes changes occurring at different levels , technology , institutions ideology and values : M. N. Srinivas . ” Social change in Modern Indian ” . University of California Press , 1966. P. 47 )

MUST READ THIS

MUST READ THIS

पश्चिमीकरण की विशेषताएं :

  1. एक व्यापक अवधारणा : पश्चिमीकरण की अवधारणा काफी व्यापक है । इसमें पश्चिम के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले सभी तरह के भौतिक और अभौतिक परिवर्तनों का समावेश है । इस सम्बंध में श्रीनिवास के विचारों को स्पष्ट करते हुए कुप्पूस्वामी ने लिखा है कि पश्चिमीकरण का सम्बंध मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों से है : ( a ) व्यवहार सम्बंधी पक्ष , जैसे : खान – पान , वेश भूषा , शिष्टाचार के तरीके तथा व्यवहार प्रतिमान आदि ; ( b ) ज्ञान सम्बंधी पक्ष , जैसे : विज्ञान , प्रौद्योगिकी और साहित्य आदि ; ( c ) सामाजिक मूल्य सम्बंधी पक्ष , जैसे : मानवतावाद , धर्मनिरपेक्षता तथा समताकारी विचार , पश्चिम के प्रभाव से समाज के इन सभी पक्षों में होने वाले परिवर्तन पश्चिमीकरण से सम्बन्धित हैं ।

  1. नैतिक रूप से तटस्थ : पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में नैतिकता के तत्व होना कोई जरूरी नहीं है अर्थात् पश्चिमीकरण के परिणाम अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी । भारतीय समाज में पश्चिमीकरण केवल अच्छी दिशा में ही हुआ है ; यह बात नहीं है । इस प्रकार यह प्रक्रिया 
  2. अंग्रेजों द्वारा लायी गई संस्कृति : ‘ पश्चिमी देश ‘ शब्द से जिन अनेक देशों का जैसे अमेरिका , ग्रेट ब्रिटेन , फ्रांस , जर्मनी , इटली आदि का बोध होता है । उनमें स्वयं आपस में भारी सांस्कृतिक अन्तर है । भारतवर्ष में सामाजिक परिवर्तन के एक कारक के रूप में पश्चिमीकरण की जो प्रक्रिया क्रियाशील है , वह वास्तव में पाश्चात्य संस्कृति के उस स्वरूप का प्रभाव है जिसे कि अंग्रेज शासक अपने साथ लाए और भारतवासियों को उससे परिचित कराया ।

  1. एक जटिल प्रक्रिया : पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में अनेक जटिल तत्वों का समावेश है । यह प्रक्रिया केवल प्रथाओं , जाति व्यवस्था , धर्म , परिवार और रहन – सहन में होने वाले परिवर्तनों से भी है जो पश्चिमी को वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप उत्पन्न हुए हैं । यह प्रक्रिया इसलिए भी जटिल है कि इसने सम्पूर्ण भारतीय समाज को समान रूप से प्रभावित नहीं किया । गाँवों की तुलना में नगरों में तथा निम्न वर्गों की तुलना में उच्च वर्गों में पश्चिमीकरण का अधिक प्रभाव देखने को मिलता है ।

  1. चेतन – अचेतन प्रक्रिया : पश्चिमीकरण केवल एक चेतन प्रक्रिया ही नहीं अपितु अचेतन प्रक्रिया भी है । दूसरे शब्दों में , पश्चिमीकरण की प्रक्रिया द्वारा भारत में सामाजिक परिवर्तन केवल सचेत रूप में ही हुआ है ; ऐसी बात नहीं है । अंग्रेज द्वारा लाए गए अनेक पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों को हमने अनायास ही कब ग्रहण कर लिया है यह शायद स्वयं हमें मालूम नहीं है । वे तो अचेतन रूप में हमारे जन – जीवन में समा गए हैं और परिवर्तन को घटित किया है ।

  1. एक निश्चित प्रारूप का अभाव : पश्चिमीकरण का कोई एक प्रारूप अथवा आदर्श नहीं है । ब्रिटिश शासनकाल में पश्चिमीकरण का आदर्श इंगलैण्ड का प्रभाव था । स्वतंत्रता के बाद जैसे – जैसे भारत के संबंध रूस और अमेरिका के साथ बढ़ते गए ; हमारी प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर इन देशों का प्रभाव बढ़ता गया । पश्चिमी प्रभाव से भारतीय समाज होने वाले वर्तमान परिवर्तनों में से यह बता सकना कठिन है कि यह प्रभाव इंग्लैण्ड , अमेरिका अथवा रूस आदि में से किस देश का है । स्पष्ट है कि हमारे देश में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया किसी एक देश के आदर्श पर आधारित नहीं है ।

  1. पश्चिमीकरण का सम्बंध किसी सामान्य संस्कृति से नहीं : पश्चिमीकरण का सम्बंध पश्चिमी देशों के प्रभाव अवश्य है लेकिन सभी पश्चिमी देशों की सांस्कृतिक विशेषताओं में भी कुछ मिलता है । पश्चिमी देश की कोई सामान्य संस्कृति नहीं है । इसके बाद भी डा . श्रीनिवास ने यह माना है कि भारत में होने वाले सामाजिक परिवर्तन के लिए हम पश्चिमीकरण की जिस प्रक्रिया की बात करते हैं , वह वास्तव में ब्रिटिश संस्कृति के प्रभाव से ही सम्बन्धित है । यह कथन अधिक उपयुक्त मालूम नहीं होता है क्योंकि भारतीय समाज में होने वाले परिवर्तन पश्चिम के अनेक देशों के संयुक्त प्रभाव के परिणाम हैं ।

  1. अनेक मूल्यों का समावेश : पश्चिमीकरण में अनेक ऐसे मूल्यों का समावेश है जिनकी प्रकृति भारत के परम्परागत मूल्यों से काफी भिन्न है । उदाहरण के लिए समानता , स्वतंत्रता , व्यक्तिवादिता , भौतिक आकर्षण , तार्किकता तथा मानवतावाद ऐसे मूल्य हैं जिन्हें पश्चिमी संस्कृति में अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता है । परम्परागत मूल्यों की जगह पश्चिम के इन मूल्यों को ग्रहण करने की प्रक्रिया का नाम ही पश्चिमीकरण है ।

भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव : डा ० एम ० एन ० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की विस्तृत चर्चा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Social Change in Modern India ( P – 47 ) में तथा योगेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक Modernization न .. 

 of Indian Tradition ( P – 9 ) साथ ही बी ० कुप्पूस्वामी ने अपनी पुस्तक Social Change in India ( P – 62 ) में पश्चिमीकरण के प्रभावों की चर्चा की है । पश्चिमीकरण के कारण भारतीय समाज में बहुआयामी परिवर्तन हुआ है जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं पर देखा जा सकता है

1.जाति – व्यवस्था में परिवर्तन ( Change in Caste System ) : पश्चिमीकरण का सामाजिक जीवन पर सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ कि जातिगत बन्धन , छुआछूत की भावना समाप्त हुई है । इस प्रक्रिया ने सामाजिक समानता पर अधिक बल दिया । इसके प्रभाव से व्यक्ति धीर – धीरे यह समझने लगा कि जातियों का विभाजन तथा उनके बीच ऊँच नीच की व्यवस्था कोई ईश्वरीय रचना न होकर एक योजनाबद्ध सामाजिक नीति है । इसके फलस्वरूप अधिकांश व्यक्तियों ने जातिगत नियमों का विरोध करना आरंभ कर दिया । इसी का परिणाम है कि आज जाति से संबंधित सामाजिक सम्पर्क खान – पान , छुआछूत तथा व्यवसाय से संबंधित पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं । निम्न जातियों ने उच्च जातियों के व्यवहारों का अनुकरण करके अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाना आरंभ कर दिया । आज अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों की सभी सामाजिक और आर्थिक निर्योग्यताएँ समाप्त हो जाने तथा उन्हें विशेष मताधिकार मिलने से जाति – व्यवस्था का सम्पूर्ण ढाँचा चरमराकर टूट गया है ।

MUST READ ALSO

MUST READ ALSO

  1. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन : पश्चिकीकरण के कारण स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन होने लगे । इसके प्रभाव से जब वैयक्तिक स्वतंत्रता में वृद्धि हुई , तब स्त्रियों ने भी विभिन्न व्यवसायों और सेवाओं में प्रवेश करके अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने का प्रयत्न किया । परिवार विवाह तथा सार्वजनिक जीवन में स्त्रियों के बढ़ते हुए अधिकार आज इन्हीं दशाओं के परिणाम हैं । स्त्रियों के प्रति पुरुषों की मनोवृत्तियों में होने वाले परिवर्तन भी पश्चिमी संस्कृति की उस विचारधारा से प्रभावित हैं जो मानवतावादी और समतावादी मूल्यों को महत्त्व देती है ।

  1. संयुक्त परिवार में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति की आगे बढ़ाने में सहयोगात्मक है । इसी कारण संयुक्त परिवार से व्यक्ति अलग होकर नगरों में एकल परिवार की स्थापना करते हैं । इस संस्कृति ने लोगों को इस बात की प्रेरणा दी कि वे अपनी योग्यता और कुशलता को बढ़ाकर उच्च प्रस्थिति प्राप्त करें तथा अपने द्वारा उपार्जित आय का स्वतंत्रता के साथ उपयोग करें । यह विचार संयुक्त परिवार व्यवस्था के विरुद्ध होने के कारण उन व्यक्तियों ने संयुक्त परिवार को छोड़ना आरंभ कर दिया जो अधिक योग्य और साहसी थे । इसके फलस्वरूप एकाकी परिवारों में तेजी से वृद्धि हुई । पश्चिमीकरण ने समानता तथा भौतिक सुख से संबंधित जो विचारधारा प्रस्तुत की , उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और छोटे परिवार के पक्ष में होने लगी । स्त्रियों ने जब विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में प्रवेश किया तो उनके परिवार का रूप संयुक्त बने रहना संभव नहीं रह गया । इसी का परिणाम है कि आज नगरों के अतिरिक्त गाँवों में भी संयुक्त परिवारों की संरचना में निरन्तर कमी होती जा रही है ।

4.रीति – रिवाज में परिवर्तन : पश्चिमीकरण ने रीति – रिवाज , तौर – तरीके , रहन – सहन , खान – पान , उठाना – बैठना , जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित तरीकों में व्यापक परिवर्तन किया । उदाहरण के तौर पर हाथ मिलाना , गुड मार्निंग , सौरी , पैन्ट – शर्ट आदि ।

  1. विवाह में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप , सह – शिक्षा ( Co – education ) , स्त्री पुरुषों का एक साथ काम करने का अवसर , अन्तर्विवाह के नियमों के पालन करने की जगह योग्य जीवन साथी का चुनाव करना अधिक अच्छा समझा जाने लगा । इसके फलस्वरूप एक – ओर विलम्ब – विवाह का प्रचलन बढ़ा तो दूसरी ओर बहुत से शिक्षित और जागरूक व्यक्तियों ने अंतर्जातीय विवाह करना भी आरंभ कर दिया । इस समय विवाह को एक स्वस्थ्य पारिवरिक जीवन के आधार के रूप में देखा जाने लगा । फलस्वरूप एक ओर विवाह – विच्छेदों की संख्या में वृद्धि होने लगी तो दूसरी और अन्तर्विवाह तथा बहिर्विवाह से संबंधित नियम कमजोर पड़ने लगे । इसके साथ ही अपने पसन्द के व्यक्तियों के साथ विवाह का प्रचलन बढ़ा जिसे प्रेम विवाह कहते हैं ।

  1. धार्मिक जीवन में परिवर्तन : पश्चिमीकरण की संस्कृति के प्रभाव से अन्धविश्वासों , कर्मकाण्डों तथा धर्म पर आधारित कुप्रथाओं की मनोवृत्तियों में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलता है । ईसाई धर्म प्रचारकों ने जब हिन्दू – धर्म में व्याप्त अन्ध – विश्वासों और कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करके उन्हें ईसाई धर्म को ग्रहण करने की प्रेरणा देना आरंभ किया तब स्वयं हिन्दुओं को भी अपने धर्म पर आधारित रूढ़ियों का मूल्यांकन करने की प्ररेणा मिली । इस समय शिक्षित और विवेकशील व्यक्तियों ने धर्म द्वारा समर्पित देववासी प्रथा , अस्पृश्यता , सती – प्रथा , बाल – विवाह , विधवा – विवाह पर नियंत्रण तथा स्त्रियों की निम्न स्थिति आदि का विरोध करना आरंभ कर दिया । ईसाई मिशनरियों ने व्यक्तियों के सामने मानवतावाद तथा सामाजिक समानता का जो आदर्श प्रस्तुत किया , उससे प्रभवित होकर भारत में अनेक सुधारवादी सम्प्रदायों ने धार्मिक समानता , मानव सेवा और बन्धुत्व के महत्त्व को स्पष्ट करके हिन्दू धर्म में उपयोगी परिवर्तन लाने के प्रयत्न किये ऐसे सम्रदायों में ब्रह्मसमाज , आर्य समाज तथा रामकृष्ण मिशन की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण है । पश्चिमीकरण की विचारधारा के प्रभाव से भूत – प्रेत तथा भावातिता का प्रभाव कम होने लगा साथ ही तार्किकता तथा कर्मवाद की विचारधारा में परिवर्तन हुआ । इसके साथ ही धर्मनिरपेक्षता का विकास हुआ ।

  1. व्यक्तिवादी तथा भौतिक मूल्यों में वृद्धि : पश्चिमीकरण के प्रभाव से परिश्रम के द्वारा अथि कि विकास तथा व्यक्गिता हित में उसके उपयोग को महत्त्व दिया जाता है । यही वे दशाएँ हैं जिनके प्रभाव से हमारे समाज में प्राथमिक संबंधों की जगह द्वितीयक और हित – प्रधान सामाजिक संबंधों में वृद्धि होने लगी । आज पारिवरिक तथा मित्रता के सम्बंधों में भी प्रदर्शन और दिखावे का महत्त्व बढ़ता जा रहा है । अधिकांश व्यक्ति उन्हीं कामों में अधिक रुचि लेते हैं जिनसे उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिल सके । परम्परागत रूप से एक व्यक्ति की आय पर उसके सभी निकट रक्त – सम्बन्धियों का नैतिक अधिकार समझा जाता था लेकिन आज व्यक्ति अपनी सफलता का उपयोग केवल व्यक्तिगत हित में करना उचित मानता है । मनोवृत्तियों और विचारों के इस परिवर्तन ने भारत की सभी परम्परागत संस्थाओं के रूप को प्रभावित किया है ।

  1. राजनीति में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण ही हमारे देश में लोकतंत्रीय तथा प्रजातंत्रीय संस्थाओं का भी विकास होने लगा । ब्रिटिश शासन व्यवस्था पूँजीवादी आदर्शों पर आधारित थी जो कि स्वयं ही अनेक दो सामाजिक दोषों से संयुक्त हैं । इन दोषों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप साम्यवादी , समाजवादी और व्यक्तिवादी राजनैतिक विचारों व सिद्धांतों का प्रसार भी इस देश में हुआ ।

  1. मानवतावाद का विकास : डा ० एम ० एन ० श्रीनिवास का कथन है कि पश्चिमीकरण में कुछ विशेष मूल्यों का समावेश है जिन्हें हम ‘ मानवतावाद ‘ के नाम से सम्बोधित कर सकते हैं | ‘ मानवतावाद ‘ एक ऐसी भावना है जिसमें व्यक्ति की जाति , आर्थिक स्थिति , आयु , लिंग व धर्म पर ध्यान दिये बिना मानव मात्र के कल्पाण को विशेष महत्त्व दिया जाता है । ऐसी भावनाओं 

के फलस्वरूप समाज के सभी वर्गों में मानव अधिकारों के प्रति चेतना उत्पन्न हुई है । हमारे समाज में निम्न जातियों तथा पिछड़ी जातियों को मिलने वाले विशेष अधिकार मानवतावाद में होने वाली वृद्धि को ही स्पष्ट करते हैं । अंग्रेजों की यह मान्यता थी कि समाज के उपेक्षित और पिछड़े वर्गों में जब अपने अधिकारों की चेतना पैदा ही जाएगी तो यह वर्ग स्वयं ही समानता की माँग करने लगेंगे । यह कार्य अंग्रेजी शासनकाल में नहीं हो सका लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् नगरीय ग्रामीण तथा जनजातियों सभी क्षेत्रों में आज इन वर्गों ने अपने अधिकारों और समानता की माँग करनी आरंभ कर दी है

  1. राष्ट्रीयता का विकास : पाश्चात्य संस्कृति , शिक्षा और विचारधाराओं ने हमें न केवल दुनिया के राष्ट्रीय जीवन के सम्पर्क में ही ला दिया बल्कि देश के अन्दर विभिन्न विपरीत समूहों में एक सांस्कृतिक समानता को भी उत्पन्न किया । इस सांस्कृतिक समानता और अन्य विदेशी राष्ट्रों को देखकर भारतीय जीवन में एकता और राष्ट्रीयता की नवीन लहर दिखायी दी ।

MUST READ ALSO

MUST READ ALSO

  1. आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के फलस्वरूप यातायात के साधनों में उन्नति हुई और औद्योगीकरण बढ़ता गया जिसके कारण गाँव की आर्थिक आत्मनिर्भरता धीर – धीरे समाप्त होने लगी और खेती का व्यापारीकरण शुरू हो गया । गाँव के आर्थिक जीवन पर दूसरा प्रभाव ग्रामीण उद्योगों का विनाश था , क्योंकि गृह – उद्योग मशीन उद्योग की प्रतियोगिता में न टिक सके । साथ ही गाँव में प्रचलित पुरानी भूमि – प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और जमींदारी प्रथा का विकास किया गया । इस प्रकार गाँव में एक शोषणकारी व्यवस्था शुरू हुई । दूसरी ओर शहर में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास तेज हुआ । बड़ी – बड़ी मिलों और फैक्ट्रियों की स्थापना हुई , मशीनों का प्रयोग दिन – प्रतिदिन बढ़ता गया तथा उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा । यातायात के साधनों में उन्नति होने के कारण न केवल अन्तर्राज्यीय व्यापार बढ़े अपितु अन्तर्राज्यीय व्यापार भी बढ़ा इससे देश के व्यापार और वाणिज्य में भी उन्नति हुई । आज व्यापार में वैश्वीकरण तथा उदारीकरण की सरकारी नीति भी एक तरह से पश्चिमीकरण का ही परिणाम है

  1. साहित्य में परिवर्तन : विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य पर भी पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव पड़ा है । अंग्रेजी साहित्य संसार के सब आधुनिक साहित्यों में काफी समृद्ध माना जाता है । इन अंग्रेजी साहित्य तथा यूरोप की अन्य भाषाओं के साहित्य को पढ़ने तथा समझने एवं उससे लाभ उठाने का अवसर भारतीय विद्वानों तथा लेखकों को अंग्रेजी भाषा ने प्रदान किया । इससे हिन्दी के साथ – साथ अन्य सभी प्रान्तीय भाषाओं के साहित्य में पाश्चात्य साहित्यिक शैली , सामग्री तथा विचारों का समावेश होने लगा और उनका आधुनिकीकरण हुआ । प ० ईश्वरचन्द्र विद्यासागर , रवीन्द्रनाथ टैगोर , बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास तथा कहानियों में हिन्दू समाज की प्रमुख समस्याओं को स्थान मिला जो कि अंग्रेजी शासन साहित्य का ही प्रभाव था । 19 णीं शताब्दी के अंतिम चरण में अंग्रेजी शासन तथा शिक्षा से प्रभावित होकर बंगाल के कुछ लेखकों ने समाज – सुधार और राष्ट्रीय जोश की बातें अपने साहित्य में लिखी । उनमें बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित ‘ आनन्द मठ ‘ को भारतीय राष्ट्रीयता का बाइबिल कहा जाता है । इसी पुस्तक में उसने ‘ वन्दे मातरम् ‘ का राष्ट्रीय गीत 1 लिखा । इस प्रकार पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में बहुआयायी परिवर्तन लाया है जो कि परिवार , विवाह , नातेदारी , धर्म , शिक्षा , साहित्य , कला , संगीत , रीति – रिवाज , अर्थव्यवस्था , राजनीतिक व्यवस्था सभी क्षेत्र को प्रभावित किया है । 
Exit mobile version