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 परिवार के प्रकार

परिवार के प्रकार

( Types of Family )

परिवार एक सार्वभौमिक समूह है । यह प्रत्येक समाज में किसी – न – किसी रूप में अवश्य पाया जाता है ।  विभिन्न समाज में परिवार के भिन्न – भिन्न रूप देखने को मिलते है । समाज की संस्कृति के अनुसार परिवार का 48रूप निधारित होता है । समाज में विभिन्न आधार पर परिवार को विभाजित किया जा सकता है । कुछ प्रमुख प्रकारा का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है

 

सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार के भेद ( Types of Family on the basis of Number of Members )

 

केन्द्रीय अथवा मूल परिवार ( Nuclear Family ) – इस प्रकार के परिवार में पति – पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे आते हैं । आधुनिक युग में केन्द्रीय परिवार का प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है । साधारणतया इनकी सदस्य संख्या 5 – 6 तक ही सीमित होती है । इसके अन्तर्गत परिवार में अन्य रिश्तेदारों को सम्मिलित नहीं किया जाता । बच्चों के वयस्क होने पर जैसे ही उनकी शादी होती है , उनका एक पृथक् परिवार बन जाता है । केन्द्रीय परिवार वस्तुत : औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की देन है ।

संयुक्त परिवार ( Joint Family ) संयुक्त परिवार में केन्द्रीय परिवार के अतिरिक्त निकट रिश्तेदार तथा रक्त – सम्बन्धी भी सम्मिलित होते है । साधारण तौर पर इस तरह के परिवार में कई पीढ़ियों के सदस्य एक सामान्य स्थान पर ही निवास करते हैं , उनका भोजन भी एक रसोईघर में बनता है तथा उनकी सम्पत्ति भी सामूहिक होती है । संयुक्त परिवार समाजवादी विचारधारा के मुताबिक चलता है । इसके सदस्य अपनी क्षमता एवं शक्ति के अनुसार धन अर्जित करते हैं , किन्तु इसका उपभोग परिवार के सभी सदस्य समान रूप से करते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि सभी सदस्य अपनी आवश्यकता के अनुसार धन व्यय करते हैं । चाहे कोई व्यक्ति अधिक अथवा कम उत्पादन करे , पर सभी को समान रूप से उपभोग की अनुमति दी जाती है । संयुक्त परिवार भारतीय समाज की प्रमुख विशेषता है । ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के परिवार आज भी पाये जाते हैं । संयुक्त परिवार में परिवार की पूरी सत्ता मुखिया में केन्द्रित होती है । मुखिया ही हर तरह के मामले में अन्तिम निर्णय लेता है । मुखिया के निर्णय को परिवार के प्रत्येक सदस्य को मानना पड़ता है । सम्पत्ति का बँटवारा , बच्चों की शादी तथा शिक्षा के सम्बन्ध में भी माता – पिता निर्णय नहीं लेते , बल्कि परिवार के मुखिया का निर्णय अन्तिम होता है । ऐसे परिवार का आकार बड़ा होता है , क्योंकि इसमें सदस्यों की संख्या काफी अधिक होती है ।

विस्तृत परिवार ( Extended Family ) – जब संयुक्त परिवार बहुत फैल जाता है तो उसे विस्तृत परिवार कहते हैं । इसमें वंशानुक्रम एक ही रहता है । वंशानुक्रम की भावना ही उन्हें एक सूत्र में बाँधे रहती है । विस्तृत परिवार में कुछ निकट पीढ़ी वाले एक निवास तथा एक आर्थिक इकाई में भी रह सकते हैं , किन्तु कुछ पृथक् इकाई के रूप में भी बँटे रहते हैं । इस प्रकार की संरचना ढीली एवं बिखरी रहती है । यह परिवार अफ्रीका के समाज में काफी प्रचलित है ।

मिश्रित परिवार ( Mixed Family ) – मिश्रित परिवार में एकाकी परिवार और संयुक्त परिवार दोनों की विशेषताओं का मिला – जुला रूप देखने को मिलता है । औद्योगिक एवं नगरी क्षेत्रों में परिवार केन्द्रीय या एकाकी रूप में कार्य करता है । किन्तु सैद्धान्तिक रूप से वह संयुक्त परिवार से बँधा होता है । संयुक्त परिवार का सदस्य रहते हुए भी शहरों में एकाकी जीवन व्यतीत करता है । फलस्वरूप धीरे – धीरे संयुक्त परिवार से उनका लगाव कम हो जाता है । किन्तु मानसिक स्तर पर संयुक्त परिवार की चेतना रहती है । इसके कारण वे शादी – विवाह , सामाजिक , सांस्कृतिक एवं धार्मिक अवसरों पर संयुक्त रूप से हिस्सा लेते हैं । इस प्रकार मिश्रित परिवार आर्थिक स्तर पर केन्द्रीय परिवार तथा मानसिक स्तर पर संयुक्त परिवार के समान होता है । भारत के शहरी क्षेत्रों में ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है । इनका संगठन तथा आकार मध्यम स्तर का होता है ।

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 विवाह के आधार पर परिवार के भेद ।

( Types of Family on Marriage Basis )

 

एकविवाही परिवार ( Monogamous Family ) – इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री का एक पुरुष के साथ वैवाहिक सम्बन्ध होता है । पति या पत्नी की मृत्यु अथवा विवाह – विच्छेद के बाद ही स्त्री अथवा पुरुष को दूसरी शादी की अनुमति दी जाती है । एकविवाही परिवार का आकार काफी छोटा होता है । इसमें पति – पत्नी एवं उनके बच्चे ही सम्मिलित रहते हैं । यह परिवार सभ्य समाज में अधिक प्रचलित है । दुनिया के अधिकांश समाज में एकविवाही परिवार का रूप देखने को मिलता है । सभ्यता में उन्नति के साथ – साथ एकविवाही परिवारों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है । विधाही परिवार ( Polygamous Family ) – इस तरह के परिवार में एक स्त्री का कई पुरुषों के COस4हाथ सुस्व की कई स्त्रियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध होता है । इस दृष्टिकोण से बहुविवाही परिवार दो । प्रकार का होता है

बहुपत्नी विवाही परिवार ( Polygynous Family ) इस तरह के परिवार में एक पुरुष की कई पलियाँ होती है । अर्थात् एक समय में एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करता है । इस प्रकार के परिवार में अधिकार एवं सत्ता पुरुषो के हाथ में होती है । खियों की तुलना में पुरुषों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति उच्च होती है । साधारणतया जनजातीय समाज में स्त्रियों की संख्या अधिक होने पर इस प्रकार के परिवार दिखाई पड़ते है । मुसलमानों में ऐसे परिवार अधिक पाये जाते हैं क्योंकि उन्हें एक से अधिक पत्नियाँ रखने की धार्मिक स्वीकृति प्राप्त है । हिन्दुओं में 1955 के विवाह – कानून पारित होने के कारण ऐसे परिवारों पर रोक लग गई है । किन्तु आज भी बहुपति की अपेक्षा बहपत्नी विवाही परिवारों की संख्या अधिक है ।

बहुपति विवाही परिवार ( Polyandrous Family ) इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के कई पति होते हैं । वर्तमान समय में ऐसे परिवार का प्रचलन जौनसार बाबर क्षेत्र ( देहरादून ) की खस और नीलगिरि की टोड जनजाति में पाया जाता है । यदि स्त्री के सभी पति आपस में भाई – भाई होते हैं तो इसे घातक बहुपति विवाही परिवार ( Fraternal Polyandrous family ) कहा जाता है और यदि उनमें भाई – भाई अथवा रक्त – सम्बन्ध नहीं होता , तब इसे अभ्रातृक बहुपति विवाही परिवार ( Non – Fraternal Polyandrous family ) कहा जाता है । इस प्रकार के परिवारों में स्त्रियों अपने पतियों के घर नहीं जाती । अत : ये परिवार सामान्य तौर पर मातस्थानीय एवं मातृवंशीय भी होते है । अभातक बहपति विवाही परिवारों में पुरुष स्त्री की इच्छा पर एक साथ अथवा अलग – अलग अवसरों पर स्त्री के घर जाते हैं । बहुपति विवाही परिवार का प्रचलन उस समाज में होता है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत कम होती है ।

समूह विवाही परिवार ( Punaluan Family ) – जब कई भाई या कई पुरुष मिलकर कई स्त्रियों के साथ विवाह करते हैं तब इस तरह का परिवार समूह विवाही परिवार कहलाता है । ऐसे परिवार में सब पुरुष सभी स्त्रियों के समान रूप से पति होते हैं ।

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  सत्ता के आधार पर परिवार के भेद

( Types of Family on the basis of Authority )

 

पितृसत्तात्मक परिवार ( Patriarchal Family ) इस प्रकार के परिवार में पिता ही परिवार का प्रधान होता है । परिवार के समस्त विषयों के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय पिता एवं पुरुष लेता है । परिवार के अन्य सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं । सामान्य तौर पर पितृसत्तात्मक परिवार पितृस्थानीय एवं पितृवंशीय परिवार होता है । विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर पर निवास करती है । सम्पत्ति का अधिकार पिता से पुत्र को हस्तांतरित होता है । भारत में अधिकांश परिवार पितृसत्तात्मक ही है । हिन्दुओं में खासकर ऐसे परिवार अधिक होते हैं ।

मातृसत्तात्मक परिवार ( Matriarchal Family ) – इस प्रकार के परिवार में स्त्रियाँ ही सर्वोपरि होती है । परिवार में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की स्थिति ऊँची होती है । परिवार के सम्बन्ध में सभी विषयों पर अन्तिम निर्णय स्त्रियाँ ही लेती हैं और वह निर्णय सभी सदस्यों को मान्य होता है । ऐसे परिवार में प्राय : स्त्रियों शादी के बाद अपने पति के घर नहीं जाती , बल्कि पुरुष ही पत्नी के घर आकर रहता है । किसी भी विषय में निर्देशन एवं नियन्त्रण माता के द्वारा होता है । इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पुरुष सभी अधिकारों से वंचित रहते हैं । पुरुषों के लायक जो काम होते हैं उन्हें पुरुष करते हैं । मातृसत्तात्मक परिवार मातृवंशीय एवं मातृस्थानीय परिवार भी होता है । मातृसत्तात्मक परिवार में सम्पत्ति माता से पुत्री को हस्तान्तरित होती है । पुरुष का सम्पत्ति पर हक नहीं होता । इस तरह के परिवार में पुरुष को हक मिलता है , लेकिन वह पुरुष स्त्री का पति न होकर उसका भाई होता है । पुरुष को अधिकार अपने माता – पिता से न मिलकर अपनी बहन से प्राप्त होता है । कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे परिवारों में स्त्री अथवा माता की प्रधानता होती है । असम की खासी जनजाति में मातृसत्तात्मक परिवार का प्रचलन है । गारो तथा मालाबार के नायरों में मातृसत्तात्मक परिवार पाये जाते हैं । ऐसे परिवार में स्त्रियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पुरुषों से ऊँची होती है ।

 

  वंश के आधार पर परिवार के भेद

( Types of Family on the basis of Descent)

 

पितृवंशीय परिवार ( Patrilineal Family ) – पितवंशीय परिवार पिता के वंश के नाम से चलता  है । विवाह के बाद स्त्रियाँ अपने पतियों के उपनाम को ग्रहण है । । हिन्दओं का परिवार पितृवंशीय परिवार होता है । है

 

मातृवंशीय परिवार ( Matrilineal Family ) – मातृवंशीय परिवार माता के वंश के नाम से चलता है । इसमें पिता के वंश का कोई महत्त्व नहीं होता । स्त्रियों एवं माताओं के उपनाम से उनके बच्चे जाने जाते हैं । ऐसे परिवार में स्त्रियाँ शादी के बाद अपने पति के घर नहीं जाती , बल्कि पुरुष ही पत्नी के घर पर निवास करता है । वंशनाम माँ से पुत्रियों को प्राप्त होता है । मालाबार के नायरों में ऐसे परिवार का प्रचलन है । यहाँ माता के वंश का अधिक महत्त्व होता है ।

स्थान के आधार पर परिवार के भेद ( Types of Family on the basis of Locality )

 

पितस्थानीय परिवार ( Patrilocal Family ) – पितृस्थानीय परिवार में परिवार के सभी सदस्य पिता अथवा पुरुष के निवास स्थान पर रहते है । विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर चली जाती है । परिवार की निवास – परम्परा पिता या पुरुष अधिकारी के तरफ से चलती है । हिन्दुओं , मुसलमानों एवं भील , खड़िया जनजातियों में इस तरह के परिवार का प्रचलन है । ऐसा परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय भी होता है ।

मातृस्थानीय परिवार ( Matrilocal Family ) – मातृस्थानीय परिवार में परिवार के सभी सदस्य माता अथवा स्त्री के निवास स्थान पर रहते हैं । शादी के बाद पत्नी अपने पति के घर नहीं जाती , बल्कि पति ही पत्नी के निवास स्थान पर आकर रहने लगता है , इस प्रकार का परिवार मातृवंशीय एवं मातृ – सत्तात्मक भी होता है । भारत में मालाबार के नायरों , खासी एवं गारो जनजातियों में मातृस्थानीय परिवार पाया जाता है । ( iii ) नव स्थानीय परिवार ( Neo – Local Family ) – ऐसे परिवार न तो पति के निवास स्थान पर और न पत्नी के निवास स्थान पर बसते है बल्कि ये दोनों से अलग स्थान पर बसते हैं । आधुनिक युग में रोजगार , नौकरी तथा औद्योगिक केन्द्रों में जहाँ व्यक्ति काम करता है वहाँ ऐसे परिवार बसते हैं । उदाहरणस्वरूप आजकल का शहरी परिवार , व्यक्ति को इन्हें जहाँ काम मिलता है वहीं बस जाते हैं ।

 

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 सम्बन्ध के आधार पर परिवार के भेद

( Types of Family on the basis of Relations )

 

समान रक्त परिवार ( Consanguineous Family ) – इस प्रकार के परिवार में एक ही रक्त के व्यक्ति आपस में विवाह सम्बन्ध स्थापित करते हैं । इसलिए यह समान रक्त परिवार कहा जाता है । मुसलमानों में इस प्रकार का परिवार देखने को मिलता है ।

सहयोगी परिवार ( Conjugal Family ) – सहयोगी परिवार में विभिन्न रक्त के व्यक्ति पति – पत्नी का सम्बन्ध स्थापित करते हैं । इसलिए यह सहयोगी परिवार कहलाता है । इस प्रकार का परिवार सुप्रजनन शास्त्र की दृष्टि से अच्छा माना जाता है । हिन्दुओं में ऐसे ही परिवार का प्रचलन है । अन्य सभ्य समाज में भी सहयोगी परिवार का प्रचलन है

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