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 परिवार की समस्याएँ

 

 

 परिवार की समस्याएँ

 ( Problems of Family )

 वर्तमान समय में परिवार में कुछ ऐसे परिवर्तन हुए हैं जिससे इसके सामने कई समस्याएँ उत्पन्न हुई है । ये समस्याएँ सिर्फ सामाजिक जीवन को ही नहीं , बल्कि परिवार के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है । परिवार के सदस्यों के बीच बन्धन कमजोर पड़ने लगे है । ये लोग बाहरी तौर पर साथ दिखते हुए भी आन्तरिक रूप से दूर हो जाते हैं । इन सब बातों से परिवार के सदस्यों के दृष्टिकोणों , मूल्यों तथा विचारों में परिवर्तन हुआ है । परिणामस्वरूप , परिवार बिखर रहा है , यही पारिवारिक विघटन सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न करता है । इलियट एवं मेरिल ने लिखा है – पारिवारिक विघटन में परिवार के सदस्यों के मध्य पाये जाने वाले बन्धना का शिथिलता , असामंजस्यता एवं पृथक्करण संभव होता है । अर्थात परिवार के लोगों के बीच अल्बाद की भावना उभरने लगती है तथा असामंजस्य की स्थिति उत्पन्न होती है , जो पारिवारिक विघटन कहलाती है ।

मार्टिन न्यूमेयर ने बताया कि पारिवारिक विघटन एक स्थिति है , जिसमें परिवार के सदस्यों के बाच एकमत समाप्त हो जाता है , आत्मत्याग , सहयोग तथा प्रेम जैसी भावनाएँ नहीं पायी जाती । वे लोग एक – दूसरे स । अलग महसूस करते हैं । उनके बीच पारिवारिक सजगता समाप्त हो जाती है । आज परिवार के सामने कुछ प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार है

  व्यक्तिवादिता एवं स्वार्थ की भावना में वृद्धि – आधुनिक युग व्यक्तिवादिता एवं स्वार्थ का युग है । पारिवारिक जीवन का आधार स्वार्थ नहीं , बल्कि त्याग एवं बलिदान होता है । आज लोग स्वार्थी हो गये हैं । लोग सामान्य हित तथा लाभ की बात न सोचकर व्यक्तिगत हित और लाभ की बात सोचते हैं । ऐसे में परिवार में सदस्यों के बीच अपनापन एवं घनिष्ठता में कमी आने लगी है , पारिवारिक बन्धन कमजोर पड़ने लगे हैं , साथ – साथ नातेदारी का भी बन्धन ढीला पड़ता जा रहा है । परिणामस्वरूप परिवार में विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो रही है । व्यक्ति संयुक्त परिवार से अलग होकर एकाकी परिवार में रुचि लेने लगा है ।

 भौतिक सुख – सुविधाओं की होड़ – नगरीकरण , औद्योगीकरण तथा व्यवसायों की बहुलताओं ने लोगों के सामने विभिन्न प्रकार के अवसर प्रदान किये है वहीं दूसरी ओर सामान्य जीवन – शैली को भी प्रभावित किया है । आज पति – पत्नी कॉरपोरेट हाउस में काम करते हैं । वहाँ उनके काम करने की कोई अवधि निश्चित नहीं होती । देर शाम या रात तक जब वे घर वापस आते हैं तब आपस में तथा बच्चों के साथ संवाद पर्याप्त नहीं हो पाता । बच्चों को अपने माता – पिता से जो देखभाल एवं लाड़ – प्यार मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता । इनके बच्चे आया . . क्रेच , बेबी सिटिंग तथा बोर्डिंग स्कूलों के सहारे पलते एवं बड़े होते हैं । ऐसे बच्चों में उस तरह के भावनात्मक । सम्बन्धों का विकास नहीं होता जैसा कि परिवार के सदस्यों के बीच पलो वाले बच्चों में होता है ।

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तलाक की समस्या – वर्तमान परिवार में विवाह के आधार में मौलिक परिवर्तन हुआ है । पहले विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जाता था . किन्त आज यह समझौता बन गया है । इससे विवाह सम्बन्ध कमजोर पड़न लगा है और पति – पत्नी के बीच विवाह – विच्छेद की सम्भावनाएँ बढ़ गई है । जनगणना के आँकड़े बताते है कि भारत में विवाह विच्छेद की प्रक्रिया में तेजी आयी है । पहले तलाक निम्न जातियों तक सीमित था किन्तु आज यह समाज के हर वर्ग में पाया जा रहा है । विवाह – विच्छेद से परिवार का संगठन कमजोर हो जाता है और अन्त में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

 परिवार का सीमित आकार दिनोदिन परिवार का आकार छोटा होता जा रहा है । प्राचीन एवं ग्रामीण भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था । औद्योगीकरण , नगरीकरण , आधुनिक शिक्षा तथा नारी मुक्ति आन्दोलन के फलस्वरूप संयुक्त परिवार प्रणाली के प्रति लोगों की आस्था में कमी आने लगी है । रोजगार एवं व्यवसाय के अवसरों में बहुलता होने से लोग विभिन्न क्षेत्रों में जाकर काम करने लगे । इस प्रकार के गतिशीलता के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार टूटने लगा है और परिवार का स्वरूप पति – पत्नी और उनके बच्चे तक सीमित हो गया ।

वैकल्पिक संस्थाओं का विकास समाज में आज ऐसी बहुत – सी संस्थाओं का उदय हुआ है जो परिवार के परम्परागत कार्यों को बाखूबी करती हैं । यौन सम्बन्धी इच्छाओं की पूर्ति , बच्चों का लालन – पालन तथा सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यकताओं की पूर्ति अब सिर्फ परिवार में न होकर परिवार से बाहर भी हो रहे हैं । इससे परिवार के सदस्यों के बीच संवेगात्मक व भावनात्मक सम्बन्धों का अभाव होता है । अन्त में यह पारिवारिक विघटन की स्थिति उत्पन्न कर देता है ।

 सामाजिक मूल्यों की भिन्नता परिवार के विभिन्न सदस्यों के जब मूल्य अलग – अलग होते है तब पारिवारिक विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । वर्तमान युग में प्रत्येक परिवार में नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच सामाजिक मूल्यों के सम्बन्ध में संघर्ष देखने को मिलता है । घर के बड़े – बुजुर्ग अपने समय के पुरानी परम्पराओं , आदर्शों एवं मूल्यों को मानने पर बल देते हैं , जबकि नई पीढ़ी के युवा इन्हें बेकार , अतार्किक एवं अनुपयोगी समझते हैं । इस प्रकार के संघर्ष पारिवारिक विघटन की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं ।

उपर्युक्त समस्याओं के अलावे आज के परिवार के सामने एक और गंभीर समस्या है – वृद्धावस्था और = विकलांगता । बड़े परिवार में बीमार , लाचार , अपाहिज , अनाथ , विधवा एवं बेसहारा व्यक्तियों की देखभाल की जिम्मेदारी व्यक्ति विशेष पर न होकर सामूहिक जिम्मेदारी समझी जाती थी । वृद्ध व्यक्ति और विकलांग सभी 2 लोगों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करते थे । उनके जीवन में सूनापन , खालीपन तथा तिरस्कार की भावना का  अभाव पाया जाता था । वे सदस्यों से अपने प्रति प्रेम एवं सहानुभूति की भावना का अनुभव करते थे जो उन्हें जीने के लिए , खुश रहने के लिए तथा व्यस्त रहने के लिए प्रेरणा देते है

 

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