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तुषार गांधी विवाद: महात्मा के नाम पर अपमान? पदयात्रा, संवैधानिक मूल्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – UPSC गाइड

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तुषार गांधी विवाद: महात्मा के नाम पर अपमान? पदयात्रा, संवैधानिक मूल्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – UPSC गाइड

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में बिहार के मोतिहारी में महात्मा गांधी की 154वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक ‘सर्वधर्म प्रार्थना सभा’ के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी को कार्यक्रम स्थल से कथित तौर पर “अपमानित कर” हटाए जाने की घटना सामने आई। तुषार गांधी एक पदयात्रा के दौरान इस कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। इस घटना ने देश भर में एक नई बहस छेड़ दी है, खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विरोध के अधिकार और गांधीवादी मूल्यों के संदर्भ में। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर II (शासन, संविधान और राजव्यवस्था – मौलिक अधिकार, लोकतंत्र, नागरिक समाज), GS पेपर I (आधुनिक भारतीय इतिहास – गांधीवादी दर्शन, स्वतंत्रता संग्राम) और GS पेपर IV (नीतिशास्त्र – नैतिक मूल्य, सार्वजनिक जीवन में सदाचार, अहिंसा) से संबंधित है।


तुषार गांधी विवाद: एक विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, अपनी जीवंत लोकतांत्रिक परंपराओं और विचारों की विविधता के लिए जाना जाता है। इस ताने-बाने में विरोध प्रदर्शन, जन आंदोलन और पदयात्राएँ हमेशा से एक अभिन्न अंग रही हैं। इन प्रथाओं की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में गहरी हैं, जिसका नेतृत्व स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। गांधी जी ने पदयात्रा को जन-जागरण, सत्याग्रह और अहिंसक प्रतिरोध के एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। उनकी दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी।

हाल ही में बिहार के मोतिहारी में घटित हुई घटना, जहाँ महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी को एक कार्यक्रम स्थल से कथित तौर पर हटा दिया गया, ने इस समृद्ध विरासत और वर्तमान लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच एक चिंताजनक विरोधाभास पैदा कर दिया है। तुषार गांधी, जो ‘भारत जोड़ो पदयात्रा’ के समानांतर ‘नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो’ यात्रा में भाग ले रहे थे, बापू की जयंती पर मोतिहारी स्थित गांधी संग्रहालय में आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना सभा में शामिल होने गए थे। प्रत्यक्षदर्शियों और स्वयं तुषार गांधी के बयानों के अनुसार, उन्हें मंच पर भाषण देने से रोका गया और फिर कार्यक्रम स्थल से जाने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने अपना “अपमान” बताया।

यह घटना केवल एक व्यक्ति के अपमान का मामला नहीं है, बल्कि यह कई गहरे सवालों को जन्म देती है: क्या भारत में विरोध के लिए लोकतांत्रिक स्थान सिकुड़ रहा है? क्या असहमति के अधिकार का सम्मान किया जा रहा है? महात्मा गांधी की विरासत और उनके सिद्धांतों के प्रति हमारा क्या दायित्व है? और सबसे महत्वपूर्ण, संवैधानिक रूप से गारंटीकृत मौलिक अधिकारों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार, की सीमाएँ क्या हैं और उन्हें कैसे लागू किया जा रहा है?

यह लेख इस घटना के विभिन्न आयामों को UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषण करेगा, जिसमें संवैधानिक प्रावधानों, गांधीवादी दर्शन की प्रासंगिकता, लोकतंत्र में विरोध के महत्व और आगे की राह पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

तुषार गांधी की घटना कई संवैधानिक और नैतिक सिद्धांतों के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। इन प्रमुख बिंदुओं को समझना UPSC उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण है:

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

इस घटना को व्यापक लोकतांत्रिक और नैतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

सकारात्मक पहलू (Positives)

हालांकि यह घटना स्वयं में नकारात्मक है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई बहस के कुछ सकारात्मक पहलू हो सकते हैं:

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

तुषार गांधी की घटना कई गंभीर चिंताओं को जन्म देती है, जो भारत के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं:

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

तुषार गांधी विवाद ने भारतीय लोकतंत्र के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी की हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन चुनौतियों का समाधान करके ही हम एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र सुनिश्चित कर सकते हैं।

चुनौतियाँ

  1. अधिकारों और प्रतिबंधों के बीच संतुलन: सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों (विशेषकर अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता) और राज्य के कानून व्यवस्था बनाए रखने के दायित्व के बीच कैसे एक नाजुक संतुलन स्थापित किया जाए। अक्सर, प्रशासन ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ के नाम पर अधिकारों को प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है, जिससे मनमानी की गुंजाइश बनती है।
  2. प्रशासनिक विवेक का दुरुपयोग: यह चिंता का विषय है कि क्या प्रशासन अपने विवेक का उपयोग संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप कर रहा है या राजनीतिक दबावों के तहत कार्य कर रहा है। शक्ति का मनमाना उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करता है।
  3. गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता: आज के समय में, जब समाज में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, गांधीवादी सिद्धांतों – अहिंसा, सत्याग्रह, संवाद, और सहिष्णुता – की प्रासंगिकता को बनाए रखना एक चुनौती है। प्रतीकात्मक सम्मान पर्याप्त नहीं है, सिद्धांतों का वास्तविक आचरण महत्वपूर्ण है।
  4. डिजिटल युग में विरोध का स्वरूप: सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विरोध और असहमति की नई चुनौतियाँ सामने आई हैं, जैसे फेक न्यूज, हेट स्पीच और ऑनलाइन भीड़ का प्रबंधन। ये भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे और सीमाओं को लेकर नए सवाल खड़े करते हैं।
  5. संवैधानिक नैतिकता का क्षरण: यदि सत्ता में बैठे लोग या प्रशासन संवैधानिक नैतिकता (संविधान के अंतर्निहित मूल्यों का पालन) से विचलित होते हैं, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाती है।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें केवल कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं, बल्कि एक नैतिक और संवैधानिक संस्कृति का विकास भी शामिल होना चाहिए:

  • संवैधानिक साक्षरता और जागरूकता बढ़ाना: नागरिकों और विशेष रूप से पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें समझना चाहिए कि असहमति लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है, दुश्मन नहीं।
  • प्रशासनिक सुधार और संवेदनशीलता प्रशिक्षण: पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भीड़ नियंत्रण, विरोध प्रदर्शनों को संभालने और मौलिक अधिकारों का सम्मान करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्हें तनावपूर्ण स्थितियों में संयम और संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
  • संवाद और सद्भाव को बढ़ावा देना: सरकार और नागरिक समाज के बीच खुले संवाद के लिए मंच तैयार किए जाने चाहिए। समस्याओं को बातचीत और विचार-विमर्श के माध्यम से हल किया जाना चाहिए, न कि बल प्रयोग से।
  • न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका: न्यायपालिका को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को सक्रिय रूप से निभाना चाहिए। जब भी अधिकारों का उल्लंघन हो, न्यायपालिका को त्वरित और प्रभावी हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि नागरिकों का न्यायपालिका पर विश्वास बना रहे।
  • नैतिक नेतृत्व और संवैधानिक नैतिकता का पालन: राजनीतिक नेतृत्व को संवैधानिक नैतिकता का अनुकरण करना चाहिए और सार्वजनिक प्रवचन में असहमति के प्रति सहिष्णुता का संदेश देना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि भारत की विविधता और लोकतांत्रिक शक्ति असहमति के सम्मान में निहित है।
  • गांधीवादी मूल्यों का पुनरुत्थान: आज के समय में गांधी के अहिंसक प्रतिरोध, संवाद और सर्वधर्म समभाव के मूल्यों को फिर से जीवित करने की आवश्यकता है। केवल उनकी जयंती मनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके सिद्धांतों को दैनिक जीवन और शासन में आत्मसात करना महत्वपूर्ण है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: प्रशासन द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई में पारदर्शिता होनी चाहिए और यदि अधिकारों का उल्लंघन होता है तो संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। यह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद करेगा।

अंततः, तुषार गांधी जैसी घटनाएँ हमें अपने लोकतंत्र के स्वास्थ्य का आत्मनिरीक्षण करने का अवसर देती हैं। एक मजबूत लोकतंत्र वह नहीं है जहाँ असहमति न हो, बल्कि वह है जहाँ असहमति को सुना जाए, उसका सम्मान किया जाए और उसे संवैधानिक दायरे में रहते हुए व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो। यह सुनिश्चित करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन भारतीय संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) के संदर्भ में सही है/हैं?
    1. यह अधिकार केवल मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति तक सीमित है।
    2. इसमें प्रेस की स्वतंत्रता निहित है।
    3. इस पर सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौखिक, लिखित, मुद्रित, चित्र या किसी अन्य माध्यम से व्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है। इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है। अनुच्छेद 19(2) के तहत सार्वजनिक व्यवस्था एक उचित प्रतिबंध का आधार है। इसलिए, कथन I गलत है जबकि II और III सही हैं।

  2. भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद शांतिपूर्ण और निहत्थे सम्मेलन के अधिकार से संबंधित है?
    • (a) अनुच्छेद 19(1)(a)
    • (b) अनुच्छेद 19(1)(b)
    • (c) अनुच्छेद 19(1)(c)
    • (d) अनुच्छेद 19(1)(d)

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 19(1)(b) शांतिपूर्ण और निहत्थे सम्मेलन का अधिकार, अनुच्छेद 19(1)(c) संघ या सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(d) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार प्रदान करता है।

  3. महात्मा गांधी द्वारा आयोजित ऐतिहासिक ‘दांडी मार्च’ मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस आंदोलन का हिस्सा था?
    • (a) असहयोग आंदोलन
    • (b) सविनय अवज्ञा आंदोलन
    • (c) भारत छोड़ो आंदोलन
    • (d) खिलाफत आंदोलन

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) महात्मा गांधी द्वारा 1930 में शुरू किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

  4. निम्नलिखित में से कौन सा वाक्यांश भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित नहीं है?
    • (a) विचार की स्वतंत्रता
    • (b) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    • (c) विश्वास की स्वतंत्रता
    • (d) आर्थिक स्वतंत्रता

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता’ का उल्लेख है, लेकिन ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ का नहीं। आर्थिक न्याय का उल्लेख है।

  5. ‘संवैधानिक नैतिकता’ (Constitutional Morality) शब्द का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?
    • (a) केवल संविधान के लिखित प्रावधानों का पालन करना।
    • (b) संविधान के अंतर्निहित मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा और उनका सम्मान करना।
    • (c) संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का सख्ती से पालन करना।
    • (d) नैतिक सिद्धांतों को संविधान में जोड़ना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: संवैधानिक नैतिकता का अर्थ संविधान के मूल सिद्धांतों और मूल्यों (जैसे लोकतंत्र, समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता) के प्रति निष्ठा और उनका सम्मान करना है, भले ही वे स्पष्ट रूप से किसी विशिष्ट कानून में वर्णित न हों। यह केवल लिखित प्रावधानों से परे है।

  6. गांधीजी के सत्याग्रह दर्शन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. यह अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित है।
    2. इसका उद्देश्य विरोधी को अपमानित करना था।
    3. इसमें आत्म-कष्ट और नैतिक बल का प्रयोग शामिल था।

    ऊपर दिए गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: सत्याग्रह अहिंसक था (I सही)। इसका उद्देश्य विरोधी को सत्य और प्रेम की शक्ति से परिवर्तित करना था, न कि उसे अपमानित करना (II गलत)। इसमें आत्म-कष्ट (जैसे उपवास) और नैतिक बल का उपयोग शामिल था (III सही)।

  7. भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकारों पर ‘उचित प्रतिबंध’ (Reasonable Restrictions) लगाने का अधिकार किसे है?
    • (a) केवल राष्ट्रपति को
    • (b) केवल सर्वोच्च न्यायालय को
    • (c) संसद को कानून बनाने के माध्यम से
    • (d) राज्य सरकारों को आदेश जारी करने के माध्यम से

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार संसद के पास है, जो कानून बनाकर ऐसा कर सकती है। हालांकि, इन प्रतिबंधों की ‘उचितता’ की न्यायिक समीक्षा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा की जा सकती है।

  8. निम्नलिखित में से कौन-सा एक लोकतांत्रिक समाज में असहमति (Dissent) का महत्वपूर्ण कार्य नहीं है?
    • (a) सरकार को उसकी नीतियों के प्रति जवाबदेह बनाना।
    • (b) सार्वजनिक नीतियों पर विचार-विमर्श को बढ़ावा देना।
    • (c) समाज में विभाजन और अस्थिरता को बढ़ाना।
    • (d) नागरिकों को अपनी शिकायतों को शांतिपूर्वक व्यक्त करने का अवसर देना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: असहमति का उद्देश्य समाज में विभाजन या अस्थिरता पैदा करना नहीं है, बल्कि सरकार को जवाबदेह बनाना, संवाद को बढ़ावा देना और नागरिकों को अपनी बात रखने का अवसर देना है। स्वस्थ असहमति लोकतंत्र को मजबूत करती है।

  9. ‘चिलिंग इफेक्ट’ (Chilling Effect) शब्द निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
    • (a) जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में गिरावट।
    • (b) सरकार की नीतियों के डर से नागरिकों का अपनी राय व्यक्त करने से डरना।
    • (c) आर्थिक मंदी के कारण निवेश में कमी।
    • (d) अपराध दर में अचानक गिरावट।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘चिलिंग इफेक्ट’ एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ लोग सरकार की कार्रवाइयों या संभावित दंड के डर से अपनी वैध संवैधानिक अधिकारों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने से कतराते हैं।

  10. भारत में ‘पदयात्रा’ को जन-जागरण और सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रयोग करने वाले कुछ प्रमुख व्यक्तियों में शामिल हैं:
    1. महात्मा गांधी
    2. विनोबा भावे
    3. चंद्रशेखर

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और II
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: महात्मा गांधी (दांडी मार्च, ग्राम स्वराज), विनोबा भावे (भूदान आंदोलन) और चंद्रशेखर (कन्याकुमारी से राजघाट तक भारत यात्रा) तीनों ने भारत में जन-जागरण और सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों के लिए पदयात्रा का प्रभावी ढंग से उपयोग किया।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “लोकतंत्र में असहमति एक ‘सुरक्षा वाल्व’ का कार्य करती है, जो सरकार को जवाबदेह बनाती है और समाज में तनाव को कम करती है।” तुषार गांधी विवाद के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और चर्चा कीजिए कि कैसे एक संतुलन सुनिश्चित किया जा सकता है, जहाँ राज्य कानून व्यवस्था बनाए रखते हुए असहमति के अधिकार का सम्मान करता है।
  2. महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिरोध और पदयात्रा के दर्शन की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में क्या प्रासंगिकता है? हाल की घटनाओं के आलोक में चर्चा कीजिए कि क्या गांधीवादी आदर्शों का केवल प्रतीकात्मक सम्मान किया जा रहा है या उन्हें वास्तविक अर्थों में आत्मसात किया जा रहा है।
  3. भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सम्मेलन के अधिकार की सीमाएँ क्या हैं? उदाहरणों सहित समझाइए कि इन सीमाओं का उपयोग कब उचित है और कब यह लोकतांत्रिक स्थान को संकुचित कर सकता है। प्रशासन की भूमिका पर विशेष ध्यान दें।
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