Site icon NOTES POINTS

जनांकिकी की प्रकृति

जनांकिकी की प्रकृति

( Nature of Demography )

 वैज्ञानिकता ही इसकी प्रकृति है क्रमबद्ध अध्ययन ही विज्ञान है । विज्ञान ज्ञान का वह क्रमबद्ध रूप है जो किसी विशेष घटना या तथ्य के कारण तथा परिणामों के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करता है । यहां स्मरणीय है कि तथ्यों को केवल इकट्ठा करना ही विज्ञान नहीं है बल्कि विज्ञान होने के लिए तथ्यों का क्रमबद्ध रूप में एकत्रित करना उनका वर्गीकरण व विश्लेषण करना और उसके फलस्वरूप कुछ नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना होता है । संक्षेप में आइये जानते हैं कि विज्ञान होने के लिए निम्न बातों का ज्ञान होना आवश्यक है

जनांकिकी वह विज्ञान है जो मानव जनसंख्या के विषय में अध्ययन करता है चूँकि यह मनुष्य की संख्या एवं मानवीय विशेषताओं का अध्ययन करता है अतः यह सतत् परिवर्तनशील प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है क्योंकि किसी भी क्षेत्र यथा- देश , राज्य , जिला , नगर या गांव की जनसंख्या जन्म एवं अन्तः प्रवास ( In – migration ) से बढ़ती है और मृत्यु और वाहय प्रवास ( Out – migration ) से घटती है । इस प्रक्रिया में जनसंख्या के निर्धारक तत्व लैंगिक स्वरूप , आयु संरचना , वैवाहिक प्रस्थिति , शैक्षिक प्रगति , श्रमिकों का वर्गीकरण व आर्थिक क्रियाओं में भी परिवर्तन होता रहता है । इससे सम्बन्धित समस्त सूचनाएं या आंकड़े तभी मिलते है जब सतत् अधिकार सम्पन्न संस्थायें इस कार्य को सावधानीपूर्वक पंजीकरण करते हुए करती है । जनांकिकी विज्ञान है

  1. ज्ञान का अध्ययन क्रमबद्ध होना चाहिए ।
  2. विज्ञान के अपने नियम और सिद्धान्त होने चाहिए ।
  3. यह सिद्धान्त कारण और परिणाम के सम्बन्ध के आधार पर निर्मित होने चाहिए ।
  4. ये नियम सार्वभौमिक रूप से सत्य होने चाहिए ।

जनांकिकी को एक विज्ञान माना जाता है जिसके पक्ष में निम्न तर्क दिये जाते हैं

जनांकिकी एक स्थैतिक विज्ञान ( Static Science ) नहीं है अपितु प्रावैगिक विज्ञान है । इसमें एक अवधि के अन्तर्गत जनसंख्या में होने वाले परिवर्तनों तथा भविष्य में जनसंख्या के परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है । चूंकि यह समय एवं परिवर्तनों का अध्ययन करता है । अतः यह प्रावैगिक विज्ञान ( Dynamic Sclence ) है । अन्ततः इस तरह कहा जा सकता है कि जनांकिकी न केवल सैद्धान्तिक विज्ञान है वरन् इसे व्यावहारिक विज्ञान की भी संज्ञा प्रदान की जा सकती है ।

जनांकिकीय विश्लेषण की रीतियां

( Techniques of Demographic Analysis )

 जनांकिकी के अन्तर्गत जनसंख्या की स्थिति तथा उसमें होने वाले परिवर्तनों के माप का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है । जनांकिकी के सभी तत्व गतिशील होते हैं तथा इनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है फलतः निरन्तर आंकड़े इकट्ठा करना , वर्गीकरण , सम्पादन , विश्लेषण होता रहता है । सामान्यतया , जनांकिकी के अध्ययन हेतु दो प्रमुख रीतियों से किया जाता है-

 ( 1 ) विशिष्ट रीति ( 2 ) व्यापक रीति ।

सूक्ष्म जनांकिकी रीति

( Micro Demographic Method )

इस रीति के अन्तर्गत किसी देश के व्यष्टि या विशिष्ट समूहों , घटकों तथा उनसे सम्बन्धित समस्याओं एवं घटनाओं का अध्ययन किया जाता है । इस विश्लेषण में संरचना का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है । सूक्ष्म या व्यष्टि विश्लेषण की सहायता से एक सीमित क्षेत्र की जनांकिकीय विशेषताओं का गहनता से अध्ययन करना सम्भव हो जाता है । अनुसन्धान की दृष्टि से यह विश्लेषण अत्यन्त उपयोगी है क्योंकि इसकी सहायता से किसी छोटे से क्षेत्र की सम्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।

व्यापक या समष्टि जनांकिकीय रीति

( Macro Demographic Method )

व्यापक या समष्टि विश्लेषण जनांकिकीय रीति के अन्तर्गत किसी देश के विभिन्न समुदायों एवं क्षेत्रों की जनांकिकीय घटनाओं को पृथक – पृथक करके सामूहिक रूप से अध्ययन किया जाता है । इससे विभिन्न देशों की जनोकिकीय स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायता मिलती है । यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के समस्त देशों से जनगणना ( Census ) को एक ही समय से सम्बन्धित करने का आग्रह किया है । इस रीति से जनसंख्या की वृद्धि दर जन्म – दर , मृत्यु दर विवाह की दर , जीवन तालिका , जनसंख्या पिरामिड , राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का विश्लेषण आसान हो जाता है । इस रीति से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन सहज हो जाता है । जनांकिकीय विश्लेषण के लिए दोनों रीतियों का प्रयोग आवश्यक है वास्तव में उपर्युक्त दो रीतियाँ भिन्न – भिन्न अवश्य हैं लेकिन दोनों अन्तरविरोधी नहीं वरन एक दूसरी के पूरक हैं । विश्लेषण के लिए एक ही रीति नहीं वरन दोनों रीतियों का प्रयोग जनांकिकी के लिए श्रेयस्कर होगा । इस दृष्टि से यदि यह कहा जाय कि इन दोनों दृष्टिकोणों से तथ्य का सम्मिलित अध्ययन विषय के ज्ञान को पूर्णता प्रदान करता है तो गलत न होगा । अमेरिकी जनांकिकीविद् थाम्पसन एवं लेविस ने अपनी पुस्तक Population problems में स्पष्ट किया है कि जनसंख्या के विभिन्न पक्षों के अध्ययन को  कारण- परिणाम- इसके अन्तर्गत कारण परिणाम सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है ।

Exit mobile version