जनांकिकी का क्षेत्र

जनांकिकी का क्षेत्र

( Scope of demography )

जनांकिकी के छात्र के रूप में इस तथ्य से आप परिचित हैं कि जनांकिकी एक गतिशील विज्ञान है । अतः इसके क्षेत्र में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है । प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ ० जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा है कि क्षेत्र ( Scope ) के अध्ययन में तीन बातें शामिल होना चाहिए

 

जनांकिकी की विषय सामग्री

जनांकिकी के विषय में अध्ययन करने पर आपको ज्ञात हो गया है कि जनांकिकी की सर्वसम्मत या सर्वमान्य परिभाषा देना बहुत की कठिन है । इसके क्षेत्र और विषय सामग्री का कोई सर्वसम्मत तथ्य प्राप्त नहीं है । इस सन्दर्भ में दो दृष्टिकोण है यथा व्यापक दृष्टिकोण जिसके अन्तर्गत प्रमुख रूप से स्पेंग्लर ( Spangler ) . वॉन्स ( Vance ) , राइडर ( Ryder ) , लोरिनेर ( Lorimer ) तथा मूरे ( Moore ) आदि के विचारों को सम्मिलित किया जा सकता है । दूसरा दृष्टिकोण संकुचित दृष्टिकोण जिसके अन्तर्गत प्रमुख रूप में हाउजर एवं डंकन ( P.H. Houser and D. Duncan ) . बर्कले ( Barclay ) , थाम्पसन तथा लेविस ( Thompson and Lewis ) व आइरीन टेउबर ( Irene Teauber ) आदि के विचारों को सम्मिलित किया जा सकता है ।

वर्तमान समय में जनांकिकी विज्ञान की व्यापकता एवं उपादेयता के आधार पर इस शास्त्र की विषय सामग्री को विद्वानों ने निम्न पांच भागों में विभाजित किया है —

जनसंख्या की संरचना अथवा गठन

( Composition of Population )

 जनसंख्या की संरचना अथवा गठन का अध्ययन करना जनांकिकी का दूसरा महत्वपूर्ण विषय है । जनसंख्या का आकार जहां परिमाणात्मक व्याख्या करता है । वहीं जनसंख्या की ” संरचना से गुणात्मक विश्लेषण संभव हो पाता है । इसके अध्ययन से हमें उस स्थान विशेष की जनसंख्या की विशेषताओं की स्पष्ट जानकारी हो पाती है । दो स्थानों की जनसंख्या का आकार समान होने पर भी उनमें आयु , लिंग , जाति , धर्म तथा निवास आदि की भिन्नता हो सकती है । सामाजिक संरचनागत विकास , भिन्नता , समानता विशेषता ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं जो गुणात्मक व्याख्या को स्पष्ट समझाते है । इस तरह जनसंख्या का आकार व्यष्टिगत व्याख्या ( Macro Analysis ) करता है तो जनसंख्या की संरचना व्यक्तिगत व्याख्या ( Micro Analysis ) करता है ।

प्रो ० हाले के अनुसार जनसंख्या की संरचना के अध्ययन से प्रमुख चार उद्देश्य प्राप्त होते

  1. इससे विभिन्न जनसमुदाय में परस्पर तुलना ( Inter Population Composition ) संभव हो पाता है ।
  2. किसी समाज में श्रमशक्ति ( Labour Force ) का अनुमान लगाया जा सकता है ।

जनसंख्या संरचना को जानने के बाद ही जनांकिकी प्रक्रिया को समझ सकते हैं । यथा जन्म दर एवं मृत्यु दर जानने के लिए आयु संरचना तथा लैंगिक संरचना जानना आवश्यक है ।

 सरचना सम्बन्धी सूचनाओं द्वारा सामाजिक व्यवस्था और उसमें संभावित परिवर्तन का अनुमान लगा सकते हैं ।

जनांकिकी विशेषताओं के आधार पर जनसंख्या का वर्गीकरण ( Classification ) किया जा सकता है जैसे 

लैंगिक संरचना ( Sex Composition )

कार्यशील जनसंख्या ( Working Population )

आयु संरचना ( Age Composition )

वैवाहिक प्रस्थिति ( Marital Status )

 शैक्षणिक स्तर ( Educational Standard )

धर्मानुसार या जाति के अनुसार वितरण ( Distribution by Religion or Caste )

 आयु एवं लैंगिक वितरण जनांकिकी में अत्यन्त महत्वपूर्ण कारक हैं । यदि समाज में बच्चों की संख्या अधिक होगी तो मृत्यु दर अधिक होगी , श्रमशक्ति कम होगी । फलतः राष्ट्रीय विकास में उत्पादन में योगदान नगण्य होगा । वृद्ध अधिक होंगे तब भी यही बात होगी । लेकिन युवा शक्ति अधिक है तो उसका योगदान विशिष्ट होगा । इसके अलावा ग्रामीण व शहरी जनसंख्या वैवाहिक स्थिति , कार्य , व्यवसाय , शिक्षा तथा धर्म जाति ऐसे घटक हैं जो जन्मदर , मृत्युदर एवं प्रवास को प्रभावित कर जनसंख्या को निर्धारित करते हैं । जनसंख्या की संरचना एवं जनसंख्या की प्रक्रिया परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं । या की प्रक्रिया पर एक थाम्पसन तथा लेविस के शब्दों में , ” जनसंख्या की संरचना तथा उसकी मृत्युदर , प्रजनन दर तथा शुद्ध प्रवास के मध्य परस्पर अनुक्रमात्मक ( Reciprocal ) सम्बन्ध पाया जाता है । अर्थात् संरचना आयु तथा लिंग की संरचना के माध्यम से प्रभावित करती है । जनसंख्या की संरचना के सम्बन्ध में डंकन तथा हाउजर कहते हैं , ” जनसंख्या संरचना के अन्तर्गत जनसंख्या की आयु लिंग तथा वैवाहिक स्थिति जैसे पहलू ही नहीं आते , बल्कि स्वास्थ्य स्तर , बौद्धिक स्तर , प्रशिक्षण से प्राप्त तकनीकि की क्षमता आदि गुण भी शामिल किये जाते हैं । “

 जनसंख्या का वितरण ( Distribution of Population )

 जनसंख्या का वितरण , जनांकिकी के अध्ययन क्षेत्र का तीसरा महत्वपूर्ण भाग है । इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि विश्व अथवा उसके किसी भू – भाग में जनसंख्या का वितरण कैसा है ? तथा इस वितरण में परिवर्तन का स्वरूप कैसा है ?

प्रो ० डोनाल्ड जे ० बोग का मत है कि किसी देश की जनसंख्या का अध्ययन दो प्रकार से किया जा सकता है

1 . समग्रात्मक विधि ( Aggregative Method ) इस विधि के अनुसार देश को एक समग्र इकाई मानकर उसकी जनसंख्या के आकार गठन व परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है ।

2 . वितरणात्मक विधि ( Distribution Method ) इस विधि के अनुसार किसी भी देश के छोटे – छोटे खण्डों की जनसंख्या के आकार व गठन का अध्ययन किया जाता है तदोपरान्त निष्कर्ष निकालना चाहिए । वास्तव में दोनों विधियों एक दूसरे के विरोधी नहीं वरन पूरक है ।

जनसंख्या सम्बन्धी आंकड़े दो आधार पर एकत्रित किये जाते है

( 1 ) भौगोलिक इकाई यथा महाद्वीप , रेगिस्तानी क्षेत्र , पर्वतीय तथा सम्पूर्ण विश्व का आधार मानकर तथा

( 2 ) प्रशासनिक इकाई यथा- देश प्रदेश , जिला शहर , ब्लॉक , नगर निगम , जिला परिषद , नगरपालिका , ग्राम व मुहल्ले आदि को आधार मानकर Thomptson तथा लेविस ने विश्व की जनसंख्या के वितरण का अध्ययन करने के लिए नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के आधार पर तीन श्रेणियाँ बनाई है

1.उन्नत नगरीय औद्योगिक क्षेत्र ( Advanced Urban Industrial Region )

 2 नव – नगरीय औद्योगिक क्षेत्र ( New – urban Industrial Region )

  1. नगरीय एवं औद्योगिक विकास से पूर्व की स्थिति

जनसंख्या के वितरण का अध्ययन जनघनत्व के आधार पर आसानी से किया जा सकता है । विभिन्न उद्देश्यानुसार घनत्व जानकर जनसंख्या का दबाव का अनुमान कर सकते हैं , जैसे जनघनत्व , कृषि घनत्व , आर्थिक घनत्व आदि । जन घनत्व के निर्धाय तत्वों को तीन भागों में बांट सकते हैं

 ( i ) भौगोलिक और प्राकृतिक कारक- जलवायु , वनस्पति , भू संरचना पर्वत , पठार , मैदान , हिम क्षेत्र , वन क्षेत्र , रेगिस्तानी क्षेत्र इत्यादि । ( il ) सांस्कृतिक , सामाजिक एवं आर्थिक कारक उद्योग , व्यापार व्यवसाय , शहरीकरण , रोजगार आदि । ( iii ) जनांकिकीय कारक- इसके अन्तर्गत जन्मदर , मृत्युदर तथा प्रवास दर को सम्मिलित किया जाता है ।

जनसंख्या का आकार ( Size of Population )

किसी समय , किसी स्थान विशेष में रहने वाली मानव समुदाय की सम्पूर्ण जनसंख्या को उस स्थान विशेष की जनसंख्या का आकार कहा जाता है । कहने में तो यह आसान लगता है लेकिन ऐसा है नहीं । यह एक जटिल प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है । जनसंख्या का आकार जानने के लिए पहले स्थान ( Place ) , समय ( Time ) तथा व्यक्ति ( Person ) को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है उसके बाद पंजीकरण ( Registration ) अथवा निदर्शन ( Sample ) अथवा जनगणना ( Census ) के आधार पर जनसंख्या के आकार का आकलन किया जाता है । इस प्रक्रिया में मात्र आकार ( Size ) ही जान लेना पर्याप्त नहीं होता वरन् जनसंख्या में परिवर्तन– वृद्धि , ह्रास या स्थिरता भी जानना आवश्यक होता है । परिवर्तन के साथ परिवर्तन की दर एवं भविष्य में उसके वृद्धि या घटने की दर का अनुमान भी लगाया जाता है इसके अलावा इस तथ्य का विश्लेषण करना आवश्यक होता है कि जनसंख्या परिवर्तन के लिए कौन – कौन से कारक महत्वपूर्ण हैं ? ये कारक प्रमुख रूप से जन्म ( Natality ) . मृत्यु ( Mortality ) तथा प्रवास ( Migration ) है जिन्हें जनांकिकी प्रक्रिया के रूप में अध्ययन किया जाता है । एक ओर जनसंख्या जहाँ जैविकीय तत्वों से प्रभावित होती हैं तो दूसरी ओर उस देश के सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक तत्व भी महत्वपूर्ण हो जाते है । यही कारण है कि जनांकिकीविद को जीवविज्ञानी , समाजशास्त्री अर्थशास्त्री , गणितज्ञ और सांख्यिकीवेत्ता की भी भूमिका निभानी पड़ती है ।

जनसंख्या को प्रभावित करने वाले तत्व

 ( Factors Influencing Change in Population )

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