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जनसंख्या की गुणवत्ता 

जनसंख्या की गुणवत्ता 

विश्व का प्रत्येक देश तीव्र आर्थिक विकास का आकांक्षी है । इस आकांक्षा की पूर्ति हेतु देश में दो तत्वों का होना आवश्यक है प्रथम प्राकृतिक संसाधन एवं द्वितीय मानवीय संसाधन । वास्तविक रूप में , आर्थिक विकास में सबसे अधिक योगदान मानवीय संसाधन अर्थात् उस देश में उपलब्ध जनसंख्या का ही होता है । जनसंख्या के सक्रिय सहयोग के बिना आर्थिक उन्नति और विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है । प्राकृतिक साधन एवं पूंजी आदि को उत्पादन कार्य में लगाने के लिए मानवीय प्रयत्नों की ही आवश्यकता होती है । मनुष्य अपनी बौद्धिक एवं शारीरिक शक्ति से भौतिक साधनों का शोषण करता है , नवप्रवर्तनों द्वारा उत्पादन प्रक्रिया को विकसित करता है और इस प्रकार आर्थिक विकास के मार्ग को प्रशस्त करता है । स्पष्टत जनसंख्या आर्थिक विकास का साधन ही नहीं वरन साध्य भी है और यह विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परन्तु वर्तमान समय में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या एवं इसकी निम्न गुणवत्ता एक प्रमुख समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है जिसे आर्थिक विकास की बाधा के रूप देखा जा रहा है । ऐसी स्थिति में , जनसंख्या आर्थिक विकास में बाधा न होकर सहयोगी की भूमिका निभायें , इसके लिए आवश्यक है कि देश की जनसंख्या के परिमाण को नियन्त्रित किये जाने के साथ ही इसकी गुणवत्ता को बढ़ाया जाये

जनसंख्या की गुणवत्ता की अवधारणा – रिचर्ड टी गिल का कथन है कि आर्थिक विकास एक यान्त्रिक प्रक्रिया ही नहीं है बल्कि एक मानवीय उद्यम भी है । इसका प्रतिफल अन्तिम रूप से मानवीय गुणों , उसकी कार्यकुशलता तथा उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है । यह कथन स्पष्ट करता है कि किसी देश का विकास मानवीय प्रयासों का फल होता है । गुणवान जनसंख्या एक देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है ।

वास्तव में , जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता का आशय व्यक्तियों एवं समाज के गुणवत्तापूर्ण जीवन यापन से लिया जाता है । व्यापक अर्थों में यह अन्तर्राष्ट्रीय विकास , स्वास्थ्य एवं राजनीति के क्षेत्रों आदि से सम्बन्धित है । स्वभाविक रूप से लोग जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता को जीवन स्तर की अवधारणा से जोड़ते हैं जबकि यह दोनों अलग – अलग अवधारणाएं हैं । जहां जीवन स्तर एक संकुचित अवधारणा है जो प्राथमिक रूप से आय पर आधारित है , वहीं जीवन की गुणवत्ता एक व्यापक अवधारणा है । जीवन की गुणवत्ता के मानक संकेतकों में केवल धन और रोजगार ही नहीं बल्कि निर्मित पर्यावरण , शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा , शिक्षा , मनोरंजन , खुशी , अवकाश का समय और सामाजिक सम्बन्धों के साथ गरीबी रहित जीवन शामिल है । विश्व में लोगों को गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों के साथ ही गैर सरकारी संस्थाएं एवं वैश्विक संगठन अपना योगदान दे रहे है ।

 विश्व बैंक ने भी दुनियां को गरीबीमुक्त करने का लक्ष्य रखा है जिससे लोगों को भोजन , वस्त्र , आवास , स्वतन्त्रता , शिक्षा तक पहुंच स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार की सुविधाएं उपलब्ध हो और उनकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो ।

जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता मापने के सूचकांक

किसी भी देश की जनसंख्या उसकी वास्तविक सम्पत्ति होती है । विकास का मूल उद्देश्य लोगों के लिए एक ऐसा वातारण तैयार करना है जिसमें वे दीर्घ , स्वस्थ एवं सृजनात्मक जीवन का आनन्द ले सकें । मनुष्यों के विकास को मापने के लिए समंकों की आवश्यकता होती है । इस सन्दर्भ में एक देश की जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता को मापने हेतु सूचकांकों का उपयोग किया जाता है , जिनमें से दो प्रमुखतः प्रचलित सूचकांक है प्रथम जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक तथा द्वितीय मानव विकास सूचकांक

जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक

 मानव विकास के सूचक के रूप में जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक ( Physical Quality of Life Index POLI ) का प्रतिपादन प्रसिद्ध समाजशास्त्री मौरिस डेविड मौरिस ने सन् 1970 में किया था । इस सूचकांक के अन्तर्गत एक देश के तीन महत्वपूर्ण बिन्दुओं की उपलब्धि के आधार पर जीवन का एक संयुक्त भौतिक गुणवत्ता सूचकांक निकाला जाता है

  1. जीवन प्रत्याशा जीवन प्रत्याशा से आशय लागों के जीवित रहने की औसत आयु से है । यह एक देश के नागरिकों के स्वास्थ्य तथा सभ्यता एवं आर्थिक विकास का सूचक है ।

  1. शिशु मृत्यु दर शिशु मृत्यु दर का तात्पर्य एक वर्ष की आयु से पूर्व प्रति हजार संजीव जन्मित बच्चों पर मृत बच्चों की संख्या से है ।

3.साक्षरता- इससे आशय तात्पर्य प्रति 100 व्यक्यिों पर साक्षर लोगों की संख्या से है । सामान्यीकरण की प्रक्रिया इस सूचकांक का निर्माण करने के लिए सूचकांक के तीनों संकेतकों ( जीवन प्रत्याशा शिशु मृत्यु दर तथा साक्षरता ) की माप करके इनका सामान्यीकरण किया जाता है । चूंकि यह तीनों संकेतक एक प्रकृति के नहीं है , अतः इनको अलग – अलग मापा जाता है , जैसे- जीवन प्रत्याशा को वर्षों के रूप में शिशु मृत्यु दर को प्रति हजार जीवित जन्म के रूप में तथा साक्षरता को प्रतिशत के रूप में मापा जाता है । सामान्यीकरण हेतु मौरिस ने प्रत्येक संकेतक को अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्य प्रदान किया है । इसे तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है

 जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक का निर्माण इस सूचकांक के निर्माण हेतु निम्नलिखित दो चरण पूर्ण किये जाते हैं :

चरण संघटक सूचकांकों का निर्माण सूचकांक निर्माण के प्रथम चरण में तीन संघटक सूचकांकों का निर्माण किया जाता है । इसमें धनात्मक तथा ऋणात्मक संकेतकों के उपलब्धि स्तर को ज्ञात करने हेतु अलग – अलग सूत्रों का उपयोग किया जाता है । धनात्मक संकेतक अर्थात् जीवन प्रत्याशा तथा मौलिक साक्षरता दर की उपलब्धि स्तर को जानने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है : वास्तविक मूल्य – न्यूनतम मूल्य उपलब्धि स्तर = • उच्चतम मूल्य न्यूनतम मूल्य इसी तरह ऋणात्मक संकेतक अर्थात् शिशु मृत्यु दर के उपलब्धि स्तर को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

 उच्चतम मूल्य वास्तविक मूल्य उपलब्धि स्तर = उच्चतम मूल्य न्यूनतम मूल्य II चरण औसत निकालना PQLI निर्माण के द्वितीय चरण में उपर्युक्त तीनों संघटकों के व्यक्तिगत सूचकांक बनाने के बाद इनका औसत निकाल लिया जाता है । LEI + BLI + IMI POLI 3 6.5.12 जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक ( POLI ) के निर्माण हेतु उदाहरण मान लीजिए कि भारत में जीवन प्रत्याशी 70 वर्ष , शिशु मृत्यु दर 50 प्रति हजार तथा मौलिक साक्षरता दर 75 प्रतिशत है । इससे POLI निर्माण का निर्माण इस प्रकार होगा प्रथम चरण

 एक देश में जीवन की भौतिक गुणवत्ता सूचकांक ऊंचा होने की स्थिति में उस देश के लोगों ( जनसंख्या ) की जीवन की गुणवत्ता भी ऊंची मानी जाती है । यह सूचकांक मौरिस द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा अन्य सम्भावित संकेतकों को अनदेखा कर तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों- जीवन प्रत्याशा साक्षरता दर एवं शिशु मृत्युदर पर केन्द्रित है । यह जीवन की गुणवत्ता की अन्य मापों की तुलना में एक सरल माप है । वर्तमान में इसका स्थान मानव विकास सूचकांक ने ले लिया है ।

मानव विकास सूचकांक

 अन्तर्राष्ट्रीय विकास की माप में सामान्यतया उपयोग किये जाने वाले मानव विकास सूचकांक ( Human Development Index HDI ) का प्रतिपादन सन् 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ( UNDP ) से जुड़े प्रसिद्ध पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब – उल – हक तथा भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन आदि ने किया था । इस सूचकांक के निर्माण का उद्देश्य विकास के अर्थशास्त्र को राष्ट्रीय आय लेखांकन से जनकेन्द्रित नीतियों की ओर केन्द्रित करना था ।

यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत बनाये और प्रकाशित किये जाते हैं । सन् 1990 से प्रतिवर्ष UNDP द्वारा एक मानव विकास रिपोर्ट जारी की जाती है जिसमें विभिन्न देशों का श्रेणीकरण उनके मानव विकास सूचकांक के आधार पर किया जाता है । इस सूचकांक का उपयोग विकसित विकासशील एवं अल्पविकसित देशों का अन्तर जानने एवं आर्थिक नीतियों का जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव की माप करने के लिए भी किया जाता है । मानव विकास प्रतिवेदन 1990 के अनुसार , विकास केवल लोगों की आय तथा पूंजी का ही विस्तार नहीं बल्कि यह मानव की कार्यप्रणाली कार्य करने के तरीके तथा क्षमताओं में उन्नयन की प्रक्रिया है । विकास की इसी विचारधारा को मानव विकास का नाम दिया गया है । मानव विकास सूचकांक तीन सामाजिक अभिसूचको दीर्घायु शैक्षणिक उपलब्धि एवं जीवन निर्वाह स्तर पर आधारित है । इन अभिसूचकों को इस प्रर व्यक्त किया जा सकता  है .

  1. दीर्घायु अथवा जन्म के समय जीवन प्रत्याशा ( Longevity or Life Expectancy at Birth ) दीर्घायु अथवा जन्म के समय जीवन प्रत्याशा को वर्तमान समय में अर्थशास्त्रियों द्वारा न्यूनतम 25 वर्ष तथा अधिकतम 85 वर्ष माना जाता है ।

  1. शैक्षणिक उपलब्धि ( Educational निम्नलिखित दो घरों द्वारा की जाती है Attainment ) शैक्षणिक उपलब्धि की माप

 ( i ) प्रौढ साक्षरता दर ( Adult Literacy Ratio ALR ) 15 वर्ष या इससे अधिक आयु के 100 व्यक्तियों में से जितने व्यक्ति साधारण कथन को पढ़ तथा लिख सकते हैं , उसे प्रौढ साक्षरता दर कहा जाता हैं ।

 ( ii ) सकल नामांकन दर ( Gross Enrolment Ratio GER ) सकल नामांकन दर देश की कुल जनसंख्या एवं समस्त नामांकित छात्रों का अनुपात होता है । दूसरे शब्दों में , सकल नामांकन दर कुल जनसंख्या का वह भाग जिसका नामांकन किसी प्राथमिक , माध्यमिक , उच्च माध्यमिक स्कूल अथवा किसी विश्वविद्यालय स्तर पर हुआ है । किसी देश में सकल नामांकन दर के अधिक होने की स्थिति में उसकी जनसंख्या की जीवन की गुणवत्ता भी अधिक होगी । इस दर को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है : शिक्षा के लिए नामांकित छात्रों की संख्या सकल नामांकन दर ( GER ) = कुल जनसंख्या शैक्षणिक उपलब्धि निर्देशांक ( EAI ) को ज्ञात करने हेतु प्रौढ़ साक्षरता दर को 2/3 भार दिया जाता है जबकि सकल नामांकन दर को 1/3 भार दिया जाता है ।

जीवन निर्वाह स्तर अथवा प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद या आय ( Subsistence Level or Per Capita Real Gross Domestic Product or Income ) इसके माध्यम से लागों की वस्तुओं तथा सेवाओं के खरीदने की क्षमता अर्थात् क्रयशक्ति अथवा लोगों के जीवन निर्वाह स्तर को ज्ञात किया जाता है । इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है : स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद = कुल जनसंख्या

मानव विकास सूचकांक ( HDI ) का निर्माण

 मानव विकास सूचकांक के निर्माण हेतु निम्नलिखित दो चरण पूर्ण किये जाते हैं : I चरण व्यक्तिगत या विमीय सूचकांकों का निर्माण मानव विकास सूचकांक के निर्माण हेतु सर्वप्रथम तीनों अभिसूचकों ( दीर्घायु शैक्षणिक उपलब्धि एवं जीवन निर्वाह स्तर अथवा प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद या आय ) के अलग – अलग विमीय सूचकांक ज्ञात किये जाते हैं । प्रत्येक विमा का अधिकतम मूल्य एक

 ( 1 ) तथा न्यूनतम मूल्य शून्य ( 0 ) होता है । व्यक्तिगत सूचकांक बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें व्यक्तिगत सूचकांक को ज्ञात करते समय दो बातों का आवश्यक रूप से ध्यान रखना होता है प्रथम अभिसूचकों का से सामान्यीकरण तथा द्वितीय वास्तविक सकल घरेलू प्रति व्यक्ति आय की गणना ।

  1. अभिसूचकों का सामान्यीकरण मानव विकास सूचकांक के सही निर्माण हेतु आवश्यक है । कि इसके निर्धारक तीनों ही अभिसूचकों के माप की इकाइयां समरूप हो । परन्तु इसके तीनों अभिसूचकों को अलग – अलग इकाइयों में मापा जाता है , जैसे- जीवन प्रत्याशा को वर्षों में मापते हैं , साक्षरता को प्रतिशत के रूप में तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद या आय को डॉलर में मापत है । इस समस्या के निराकरण हेतु तीनो अभिसूचकों को माप की एक सामान्य इकाई में परिवर्तित किया जाता है । इसी को अभिसूचकों का सामान्यीकरण कहा जाता है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानव विकास सूचकांक के निर्माण के लिए निर्धारित मूल्य निम्न तालिका

2 : मानव विकास सूचकांक के संकेतकों के न्यूनतम तथा उच्चतम मूल्य संकेतक न्यूनतम मूल्य उच्चतम मूल्य जीवन प्रत्याशा

शैक्षणिक उपलब्धि

( i ) प्रौढ़ साक्षरता दर

 ( ii ) सकल नामांकन दर

  1. क्रय शक्ति समता पर आधारित वास्तविक प्रति / व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद

वास्तविक सकल घरेलू प्रति व्यक्ति आय की गणना पूर्व में बताया जा चुका है कि इस सूचकांक के निर्माण हेतु जीवन स्तर को वास्तविक सकल घरेलू प्रति व्यक्ति आय के द्वारा मापा जाता है , परन्तु इसमें दो संशोधन करने पड़ते हैं प्रथम संशोधन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने एवं इस तुलना का तर्कपूर्ण तथा सुविधाजनक बनाने के लिए प्रति व्यक्ति आय को घूएस डॉलर में परिवर्तित किया जाता है । प्रति व्यक्ति आय के इस परिवर्तन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में प्रचलित विनिमय दर के स्थान पर क्रय शक्ति समता का उपयोग किया जाता है । क्रय शक्ति समता दर वह दर है जो कोई दो देशों की मुद्राओं के बीच उनकी मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति के आधार पर निर्धारित की जाती है । उदाहरण के लिए , अमेरिका में वस्तुओं का एक समूह 1 डॉलर में मिलता है जबकि भारत में वही समूह 10 . रूपये में उपलब्ध है तो क्रय शक्ति समता आधारित विनिमय दर 1 डॉलर = 10 रूपये होगी । जैसे – जैसे व्यक्ति की आय में वृद्धि द्वितीय संशोधन अर्थशास्त्र का एक प्रसिद्ध नियम बताता है कि किसी वस्तु की स्टॉक या बचत मात्रा बढ़ने से उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता घटती जाती है । यही नियम मुद्रा ( डॉलर ) पर भी लागू होता है । अर्थात् होती जाती है , सन्तुष्टि कम होती जाती है । धीरे – धीरे एक सीमा के बाद यह शून्य हो कि व्यक्ति के सुख या जीवन स्तर को व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा के विविध मानक द्वारा नहीं मापा जा सकता है , इसलिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम विभिन्न देशों में जीवन स्तर के सूचकों हेतु प्रति व्यक्ति आय को क्रय शक्ति समता के लिए समन्वित करने वैसे – वैसे मुद्रा की अगली प्रत्येक इकाई से मिलने वाली उपयोगिता अथवा जाता है ।

स्पष्ट है वाली विधि नहीं मानता है । इसके लिए वह केन्द्रीय स्तर के लघु गुणांक रूपान्तरण को ध्यान में रखता है , जैसे = = लॉग या लघु गुणक ( PPPS में प्रति व्यक्ति आय ) • II चरण तीनों सूचकांकों का सरल औसत निकालना • जीवन स्तर जीवन प्रत्याशा , शैक्षणिक उपलब्धि तथा वास्तविक प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद सूचकांक अलग – अलग निर्मित करने के पश्चात् तीनों सूचका सरल औसत निकाल कर मानव विकास सूचकांक का निर्माण किया जाता है । इसके निर्माण हेतु निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है जीवन शैक्षणिक उपलब्धि सूचकांक — वास्तविक प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद

 मानव विकास सूचकांक ( HDI ) के निर्माण हेतु उदाहरण निम्नलिखित आंकड़ों से मानव विकास सूचकांक का निर्माण कीजिए ।

 

  1. जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
  2. शैक्षणिक उपलब्धि ( i ) प्रौढ़ साक्षरता दर ( ii ) सकल नामांकन दर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ( क्रयशक्ति समता पर आधारित ) गणना :

वास्तविक जीवन प्रत्याशा

मानव विकास सूचकांक की सीमाएं

मानव विकास सूचकांक ( HDI ) की सीमाएं निम्नलिखित हैं :

  1. सूचकांक के संकेतक जीवन प्रत्याशा साक्षरता दर ( शैक्षणिक उपलब्धि ) एवं जीवन निर्वाह स्तर तीनों ही मूल रूप से आय से सम्बन्धित हैं । एक देश में प्रति व्यक्ति आय के अधिक होने की स्थिति में वहां जीवन प्रत्याशा साक्षरता दर एवं जीवन निर्वाह स्तर तीनों ही उच्च स्तर के होते हैं । इसी कारण से उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश अधिकतर धनी देश ही होते हैं ।

2 मानव विकास सूचकांक के माध्यम से एक देश में व्याप्त विषमताओं के स्तर का ज्ञान नहीं होता है । यह उस देश में पायी जाने वाली विषमताओं को दूर करने में कोई सहायता नहीं करता है ।

3.मानव विकास सूचकांक में मात्र तीन सूचकों जीवन प्रत्याशा साक्षरता दर ( शैक्षणिक उपलब्धि ) एवं जीवन निर्वाह स्तर को ही शामिल किया जाता है , जबकि मानव विकास के अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक सूचक मातृत्व मृत्युदर , शिशु मृत्युदर पोषण आदि को छोड़ दिया जाता है ।

जनसंख्या की गुणवत्ता के प्रभावकारी कारक

 जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता व्यक्तियों एवं समाजों के गुणवत्तापूर्ण जीवन यापन से सम्बन्धित है । यह एक व्यापक अवधारणा है । इसके मानक संकेतकों में केवल धन और रोजगार ही नहीं बल्कि पर्यावरण , शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा , शिक्षा मनोरंजन , खुशी , अवकाश का समय और सामाजिक सम्बन्धों के साथ गरीबी रहित जीवन आदि शामिल हैं । जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता के प्रभावकारी कारकों को अध्ययन की दृष्टि से विभिन्न भागों में विभाजित किया जा सकता है , जैसे- आर्थिक कारक ( आय , सम्पत्ति , रोजगार , जीवन तथा गरीबी का स्तर आधारभूत संरचना आदि ) ,

सामाजिक कारक ( जीवन प्रत्याशा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य , शिक्षा एवं प्रशिक्षण , आवास , जन्म एवं मृत्यु दर , सामाजिक सम्बन्ध , अवकाश , लैंगिक समानता तथा अपराध आदि ) , मनोवैज्ञानिक कारक ( खुशी एवं सन्तुष्टि का स्तर ) तथा अन्य कारक ( मानव अधिकार , राजनीतिक स्थिरता , पर्यावरण , सुरक्षा , बाल विकास एवं कल्याण आदि ) ।

  आर्थिक कारक जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता के प्रभावकारी आर्थिक कारकों से तात्पर्य ऐसे कारकों से है जो धन से सम्बन्धित हैं । यह निम्नलिखित हैं :

आय स्तर

आय स्तर जीवन की गुणवत्ता का एक महत्वपूर्ण कारक है । सामान्यतया उस समाज , वर्ग एवं व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता का ऊँचा माना जाता है जिनका आय स्तर उच्च होता है । निम्न आय की स्थिति में एक व्यक्ति की क्रय करने की क्षमता कम होती है और वह अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है जिससे उसके गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के मार्ग बाधा उत्पन्न होती है ।

सम्पत्ति का स्तर

आय स्तर के साथ ही सम्पत्ति का स्तर भी जीवन की गुणवत्ता का एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है । सम्पत्ति का स्तर अधिक होने की स्थिति में व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता का ऊँचा होना सम्भव है क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय बनाने हेतु अधिक सुविधाओं का उपभोग कर पाने में सक्षम होता है । 7.3.1.3 रोजगार का स्तर एक व्यक्ति के जीवन में रोजगार का महत्वपूर्ण स्थान होता है । रोजगार के माध्यम से व्यक्ति अपने एवं अपने परिवार के जीवन निर्वाह हेतु साधन प्राप्त करने में सफल हो सकता है और अपने जीवन में गुणात्मक सुधार कर सकता है । रोजगार की उपलब्धता न होने की स्थिति में व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त साधनों की प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहता है ।

जीवन स्तर

एक व्यक्ति के जीवन स्तर पर भी निर्भर करता है कि उसके जीवन की गुणवत्ता किस प्रकार की है । उच्च जीवन स्तर का अर्थ है गुणवत्तापूर्ण जीवन जीवन स्तर एक व्यक्ति की आय , रोजगार एवं सम्पत्ति के स्तर तथा उसकी जीवन जीने के तरीके पर निर्भर करता है ।

गरीबी का स्तर

जिस समाज में गरीबी का स्तर अधिक होता है वहां लोगों के जीवन की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है । गरीबी की स्थिति में लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं भोजन , वस्त्र एवं आवास तक को पूरा करने में असमर्थ रहते हैं । ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण जीवन हेतु आवश्यक सुविधाओं को प्राप्त कर पाना सम्भव नहीं होता है

आधारभूत संरचना

 आधारभूत संचरना की पर्याप्त उपलब्धता से मनुष्यों का जीवन समृद्ध होता है । इसकी उपलब्धता अर्थव्यवस्था की उपरि – संरचना अर्थात् कृषि एवं उद्योगों की सफलता में सहायता करती है साथ ही यह जल , स्वच्छता , स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएं , ऊर्जा , आवास , परिवहन , संचार प्रौद्योगिकी आदि के माध्यम से जीवन में गुणात्मक सुधार करती है ।

सामाजिक कारक

जीवन की गुणवत्ता क के प्रभावकारी विभिन्न सामाजिक कारक निम्नलिखित है

जीवन प्रत्याशा

जीवन प्रत्याशा से आशय लागों के जीवित रहने की औसत आयु से है । यह एक देश के नागरिकों के स्वास्थ्य तथा सभ्यता एवं आर्थिक विकास का सूचक है जब देश में एक शिशु जन्म लेता है तो उसके कितने वर्ष तक जीवित रहने की आशा की जाती है . इस जीवित रहने की आशा को ही जीवन – प्रत्याशा अथवा प्रत्याशित आयु अथवा औसत आयु कहा जाता है । जीवन प्रत्याशा जीवन की गुणवत्ता का एक प्रमुख कारक है । जिस देश अथवा समाज में जीवन प्रत्याशा अधिक होती है यहां लोगों की जीवन की गुणवऊँची होती है ।

शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य

 गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए देश के लोगों का शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है । स्वस्थ जनशक्ति एक देश के लिए एक बहुत बड़ा धन होती है जिसके द्वारा अधिक मात्रा में प्रतिव्यक्ति उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है । निम्न स्तर का स्वास्थ्य और पोषण जनशक्ति की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं । जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए आवश्यक है कि लोगों को पर्याप्त तथा पौष्टिक भोजन दिया जाये । इन मदों पर किये जाने वाले व्यय को मानवीय विनियोग की तरह माना जाये क्योंकि यह विनियोग लोगों की कुशलता तथा उत्पादकता में वृद्धि करने की प्रवृत्ति रखता है ।

शिक्षा एवं प्रशिक्षण

देश में ऊँची साक्षरता दर एवं प्रशिक्षण की स्थिति लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक है । वास्तव में शिक्षा को विकास की सीढ़ी परिवर्तन का माध्यम एवं आशा का अग्रदूत माना जाता है । गरीबी एवं असमानताओं को कम करने एवं आर्थिक विकास का आधार तैयार करने में शिक्षा को सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक माना जाता है । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी माना है कि सबसे अधिक प्रगति उन देशों में होगी जहां शिक्षा विस्तृत होती है और जहां वह लोगों में प्रयोगात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करती है । विकसित देशों के विकास के सन्दर्भ में किये गये अध्ययन इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि इन देशों के विकास का एक बड़ा भाग शिक्षा के विकास , अनुसंधान तथा प्रशिक्षण का ही परिणाम है अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से शिक्षा पर किया गया व्यय वास्तव में एक विनियोग है क्योंकि वह उत्पत्ति के साधन के रूप में लोगों की कुशलता को बढ़ाती है । स्पष्ट है कि देश में उच्च साक्षरता एवं प्रशिक्षण की स्थिति लोगों की गुणवत्ता को बढ़ाती है ।

आवास सुविधा

 आवास से आशय ऐसे आश्रय से है जो व्यक्तियों के लिए आरामदायक और आवश्यकतानुरूप हो , जहां उनके परिवार के सदस्य सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें । आवास मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है । उचित आवासों की उपलब्धता लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है । इसके अभाव में व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय नहीं बना सकता है । आवासों का विकास मानवीय साधनों के विकास का एक महत्वपूर्ण भाग भी है क्योंकि सुविधापूर्ण जीवन लोगों को उत्पत्ति का अच्छा साधन बनाता है । इससे लोगों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है ।

जन्म एवं मृत्यु दरें

 एक देश में जन्म एवं मृत्यु दरें बहुत हद तक जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं । जन्म एवं मृत्यु दरों के निम्न होने की स्थिति में माना जाता है कि देश में नागरिकों को पर्याप्त मात्रा में सुविधाओं की उपलब्धता है , अतः यहां जीवन अधिक गुणवत्तापूर्ण है । जन्म एवं मृत्यु दरों के उच्च होने का अर्थ है कि देश में विभिन्न सुविधाओं की उपलब्धता निम्न स्थिति में है । ऐसे में देश के लोगों को गुणवत्तापूर्ण जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ।

सामाजिक सम्बन्ध

 मनुष्य एक एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज का एक अंग है और उसी से समाज का निर्माण भी होता है । इस सन्दर्भ में सामाजिक सम्बन्धों का विशेष महत्व होता है । जीवन की बढ़ाने के लिए मजबूत सामाजिक सम्बन्धों का होना आवश्यक है ।

अवकाश का समय

 गुणवत्ता को बिना अवकाश के निरन्तर कार्य करने से व्यक्ति की उत्पादकता कम होती है । यदि व्यक्ति को निश्चित मात्रा में अवकाश की उपलब्धता हो तो इससे उनकी कार्यकुशलता बढ़ती है और जो व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाती है । यह व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्धों को सुदृद्ध बनाने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है ।

लैंगिक समानता

 समाज में लैंगिक समानता की स्थिति लोगों के गुणवत्तापूर्ण जीवन का संकेत होता है । जिन स्थानों पर महिला एवं पुरुषों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है तथा उन्हें बिना भेदभाव अवसर की समानता होती है , वहां के लोगों का जीवन बेहतर स्थिति में होता है । लैंगिक समानता की अवधारणा संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषणा पर आधारित है ।

अपराध

किसी समाज में अधिक मात्र में अपराध घटित होने पर वहां के लोग अपने जीवन एवं सम्पत्ति की सुरक्षा के प्रति निश्चित नहीं होंगे और ऐसी स्थिति में लोगों के गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने की कल्पना नहीं की जा सकती है । अति अपराध एवं अराजकता की स्थिति में लोग स्वतंत्रता पूर्ण ढंग से अपने कार्यों को नहीं कर पाते हैं । अपराधमुक्त समाज की स्थिति लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है ।

मनोवैज्ञानिक कारक

 जीवन की गुणवत्ता के प्रभावकारी विभिन्न मनोवैज्ञानिक कारक वे हैं जो व्यक्ति के आन्तरिक तत्वों पर निर्भर करते हैं और इन्हें आसानी से मापा नहीं जा सकता है । यह कारक निम्नलिखित हैं

खुशी जीवन की गुणवत्ता के प्रभावकारी मनोवैज्ञानिक कारकों में खुशी एक महत्वपूर्ण कारक है । यह व्यक्तिपरक कारक है तथा इसकी माप करना कठिन होता है । व्यक्ति के जीवन में इसका बहुत महत्व है । इसके अभाव में व्यक्ति अपने कार्यों को पूरे मनोयोग से सम्पन्न नहीं कर सकता है । व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता तभी बढ़ेगी जब उसके आसपास का वातावरण इस प्रकार का हो कि वह आनन्द ( खुशी ) का अनुभव कर सके । यहां उल्लेखनीय है कि यह आवश्यक नहीं है कि आय में वृद्धि के साथ व्यक्ति की खुशी के स्तर में भी वृद्धि हो ।

सन्तुष्टि का स्तर

व्यक्ति के सन्तुष्टि का स्तर भी जीवन की गुणवत्ता का एक प्रभावकारी कारक है । यदि व्यक्ति अथवा समाज का सन्तुष्टि स्तर ऊँचा है तो उनका जीवन गुणवत्तापूर्ण होगा और सन्तुष्टि का स्तर निम्न होने पर विपरीत स्थिति होगी । सन्तुष्टि का स्तर एक आन्तरिक कारक है जो अलग – अलग व्यक्तियों में अलग – अलग हो सकता है

अन्य कारक जीवन की गुणवत्ता के अन्य प्रभावकारी कारकों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है

मानव अधिकार गुणात्मक ● जीवन के लिए आवश्यक है कि व्यक्तियों को विभिन्न मानव अधिकार प्राप्त हो । मानव अधिकारों से तात्पर्य मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मनुष्य हकदार हैं । इनमें जीवन जीने का अधिकार , स्वतंत्रता का अधि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कानून की समानता का अधिकार के साथ ही भोजन काम करने एवं शिक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं । मानव अधिकार मनुष्य के मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं जिनसे मनुष्य का लिंग , जाति , नस्ल , धर्म , राष्ट्रीयता जैसे किसी भी आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है । जिन देशों में लोगों को मानव अधिकार प्राप्त होते हैं , यहां के लोगों की जीवन की गुणवत्ता अधिक होती है ।

राजनीतिक स्थिरता

राजनीतिक स्थिरता जीवन की गुणवत्ता का एक प्रभावी कारक है । ऐसे देश , जहां पर राजनीतिक स्थिरता की स्थिति होती है , वहां जनता का विश्वास सरकार पर बना रहता है । यहां नागरिकों के विकास की योजनाएं सुचारू रूप से संचालित होती हैं । ऐसे में लोगों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है । राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है ।

पर्यावरण शुद्ध

पर्यावरण की उपलब्धता जीवन को उन्नत बनाने में सहायक है । प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यावरणीय संसाधनों जैसे ताजा पानी , स्वच्छ वायु वन आदि मानव की आजीविका एवं सामाजिक आर्थिक विकास के लिए एक आधार प्रदान करते हैं । शुद्ध पर्यावरण के साथ व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ रहकर अधिक उत्पादक हो सकते हैं ।

सुरक्षा

सुरक्षित जीवन उच्च गुणवत्ता एवं विकास का आधार है । बिना सुरक्षा के देश , समाज एवं व्यक्ति विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकते हैं । जीवन , सम्पत्ति एवं विभिन्न प्रकार की सुरक्षा के साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार आ सकता है ।

बाल विकास एवं कल्याण

बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं । वही राष्ट्र की उन्नति के वास्तविक आधारस्तम्भ भी हैं । प्रत्येक बच्चे का जन्म कुछ उम्मीदों , आकांक्षाओं और दायित्वों के निर्वाह के लिए होता है , परन्तु यदि इन बच्चों को विकास की आवश्यक सुविधाओं से वंचित कर दिया जाये तो इनके साथ ही देश की भी भावी बेहतरी की सम्भावनाएं कम हो जाती हैं । जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु आवश्यक है कि देश में बच्चों के कल्याण और विकास को समुचित दिशा प्रदान की जाये । श्यक है कि देश में बच्चों के क

यूनाईटेड नेशन्स यूनीवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ हूमन राइट्स 1948 द्वारा जीवन की गुणवत्ता के मूल्यांकन हेतु बताये गये विभिन्न कारक यूनाईटेड नेशन्स यूनीवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ हूमन राइट्स 1948 में जीवन की गुणवत्ता के मूल्यांकन हेतु विभिन्न कारकों को बताया गया । यह कारक जीवन की गुणवत्ता के मापन में उपयोग किये जा सकते हैं । यह कारक निम्नलिखित हैं

 रोजगार का मुक्त चयन उचित भुगतान का अधिकार समान कार्य के लिए समान भुगतान मतदान का अधिकार आराम का अधिकार शिक्षा का अधिकार ● मानवीय आत्मसम्मान का अधिकार ।

जनसंख्या की गुणवत्ता के प्रभावकारी कारक एवं भारत

भारत में जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता के प्रमुख प्रभावकारी कारकों की स्थिति का मूल्यांकन निम्न प्रकार किया जा सकता है • आय स्तर जीवन की गुणवत्ता का एक महत्वपूर्ण कारक है । भारत में लोगों का आय स्तर निम्न है । वर्ष 2011 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1.509 यू एस . डॉलर थी , जबकि , नीदरलैण्ड में 50,085 , यू.एस.ए. में 48,112 , जापान में 45,903 तथा चीन 5.445 यू एस . डॉलर थी । ऐसी सम्भावना व्यक्त की गयी है कि भारत में 2011-20 की अवधि में प्रति व्यक्ति आय 13 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर प्राप्त करेगी और 2020 तक यह 4,200 डॉलर तक पहुंच जायेगी ।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स ( Global Hunger Index – GHI ) के मामले में भारत सन् 1996 से 2012 के बीच 226 से228 पर चला गया है , जबकि पाकिस्तान , नेपाल , बांग्लादेश , वियतनाम , केन्या , नाइजीरिया , म्यांमार , युगांडा , जिम्बाब्वे और मलावी जैसे देश भूख की स्थिति में सुधार लाने में सफल रहे हैं ।

 भारत में केरल 93.91 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक साक्षरता दर वाला राज्य है जबकि सबसे कम साक्षरता दर बिहार में है जहां यह दर मात्र 63.82 प्रतिशत है । • एक देश में जन्म एवं मृत्यु दरें बहुत हद तक जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं । भारत में 70 के दशक तक जन्म दर में वृद्धि दर्ज की गई थी परन्तु अब इसमें लगातार कमी आ रही है । भारत में 1901-10 में यह 49.2 प्रति हजार थी जो 1951-80 में 41 : 7 प्रति हजार हो गयी । इसके पश्चात् जनसंख्या के नियोजन पर ध्यान देने के कारण यह वर्ष 1991 में कम होकर 29.5 प्रति हजार हो गयी । वर्तमान में यह 2222 प्रति हजार है ।

भारत में विकास प्रक्रिया के कारण जन्म दर के साथ ही मृत्यु दर में कमी आ रही है । 1941-50 की अवधि में यह 274 थी जो वर्तमान में घटकर 64 प्रति हजार हो गयी । विभिन्न मृत्यु दरों में शिशु एवं मातृ मृत्यु दरें अति महत्वपूर्ण है । भारत में शिशु मृत्यु दर वर्ष 1960 में अपने उच्चतम स्तर 159.3 प्रति हजार जीवित जन्म थी जो वर्ष 2010 में अब तक के अपने न्यूनतम् स्तर 48.2 प्रति हजार जीवित जन्म पर आ गई है । विकास के साथ इसके भविष्य में और भी कम होने की सम्भावना है । विकसित देशों में यह दर काफी कम है । उदाहरण के लिए वर्ष 2010 में संयुक्त राज्य अमेरिका में यह दर 6.15 प्रति हजार जीवित जन्म थी । इसी प्रकार भारत में वर्ष 2010 में मातृत्व मृत्यु दर 2 प्रति हजार जीवित जन्म थी । यह दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है • मानव अधिकार मनुष्य के मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार है । भारत में इस सम्बन्ध में स्वतंत्रता पूर्व एवं पश्चात विभिन्न प्रयास किये जाते रहे हैं । जैसे- राजा राम मोहन राय द्वारा ब्रिटिश राज के दौरान चलाये गये सुधार आन्दोलन के बाद सती प्रथा को समाप्त कर दिया गया .

1950 में भारतीय संविधान के लागू होने पर नागरिकों को विभिन्न अधिकारों की प्राप्ति हुई , 1992 में संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती राज की स्थापना की गयी जिसमें महिलाओं एवं अनुसूचित जाति / जनजाति को प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया . 1993 में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गयी . 2005 में सार्वजनिक अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में संघटित सूचना तक नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सूचना का अधिकार कानून पास हुआ , 2005 में रोजगार की समस्या को हल करने हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी एक्ट पारित हुआ आदि ।

सकारात्मक प्रभावशाली प्रयास किये जाने 1 जनसंख्या के जीवन की के जीवन की गुणवत्ता के प्रभावकारी कारकों को भारत के सन्दर्भ में विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि भारत में जीवन की गुणवत्ता अभी निम्न स्थिति में है । देश में नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न स्तर पर सरकारी प्रयास किये जा रहे हैं और उन प्रयासों के परिणाम भी आ रहे हैं परन्तु अभी इस दिशा में और अधिक एवं की आवश्यकता है । विश्व स्तर पर भी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हेतु विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठन प्रयासरत हैं । जैसे प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विश्व बैंक ” विश्व को परीबी मुक्त करने का लक्ष्य घोषित किया है जिससे लोगों को भोजन , वस्त्र , आवास , न्त्रता शिक्षा तक पहुंच स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार की सुविधाएं उपलब्ध हो और उनकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो । विश्व बैंक नवउदारवादी साधनों द्वारा गरीबी में कमी लाने एवं लोगों को बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने में सहायता प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील है ।

जनसंख्या की गुणवत्ता एवं जीवन स्तर में अन्तर

 

जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता एवं जीवन स्तर की अवधारणा को प्रायः एक देश एवं उसके निवासियों की आर्थिक और सामाजिक समृद्धि के रूप में एक ही प्रकार से देखा जाता है जबकि यह दोनों अलग – अलग अवधारणाएं हैं और इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है । एक ओर , जीवन स्तर सामान्यतया एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में लोगों को धन , आराम , भौतिक वस्तुएं और आवश्यकताओं की उपलब्धता से सम्बन्धित है । इसके अन्तर्गत वे तत्व सम्मिलित होते हैं जिनकी माप आसानी से की जा सकती है और जिन्हें संख्या में व्यक्त किया जा सकता है , जैसे सकल घरेलू उत्पाद , गरीबी की दर जीवन प्रत्याशा मुद्रा स्फीति की दर , श्रमिकों को प्रतिवर्ष दिये जाने वाले अवकाश की औसत संख्या आदि । जीवन स्तर प्राय : भौगोलिक क्षेत्रों की तुलना करने के लिए उपयोग किया जाता है । जैसे दो देशों अथवा दो शहरों में जीवन स्तर का अन्तर दूसरी ओर , जीवन की गुणवत्ता जीवन स्तर की तुलना में अधिक व्यक्तिपरक है । इसमें धन और रोजगार के साथ ही निर्मित पर्यावरण , शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा , शिक्षा , मनोरंजन , खुशी , अवकाश का समय और सामाजिक सम्बन्ध एवं गरीबी रहित जीवन शामिल है । इसके अन्तर्गत ऐसे तत्व भी शामिल होते हैं जो विशिष्टतः गुणात्मक हैं और उनकी माप करना कठिन है , जैसे कानून का समान संरक्षण , भेदभाव से मुक्ति , धार्मिक स्वतंत्रता आदि । इस प्रकार , जीवन स्तर एक वस्तुपरक एवं संकुचित अवधारणा है जबकि जीवन की गुणवत्ता एक व्यक्तिपरक एवं व्यापक अवधारणा है । परन्तु , दोनों ही एक विशेष समय में एक विशेष क्षेत्र में जीवन की एक सामान्य तस्वीर प्रस्तुत करने में सहायता करते हैं , जिससे नीति निर्माताओं को नीतियों के निर्माण एवं इनमें परिवर्तन करने में मदद मिलती है ।

जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता व्यक्तियों एवं समाजों के गुणवत्तापूर्ण जीवन यापन से सम्बन्धित है । यह एक व्यापक अवधारणा है । इसके प्रभावकारी कारकों में परिमाणात्मक के साथ ऐसे कारक भी सम्मिलित किये जाते हैं जो विशिष्टत गुणात्मक है और जिनकी साप करना कठिन है । इनको अध्ययन की दृष्टि से विभिन्न भागों में विभाजित किया जा सकता है , जैसे- आर्थिक कारक ( आय , सम्पत्ति , रोजगार , जीवन तथा गरीबी का स्तर आधारभूत संरचना आदि ) , सामाजिक कारक ( जीवन प्रत्याशा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य , शिक्षा एवं प्रशिक्षण , आवास , जन्म एवं मृत्यु दर सामाजिक सम्बन्ध , अवकाश , लैंगिक समानता तथा अपराध आदि ) , मनोवैज्ञानिक कारक ( खुशी एवं सन्तुष्टि का स्तर ) तथा अन्य कारक ( मानव अधिकार , राजनीतिक स्थिरता पर्यावरण सुरक्षा बाल विकास एवं कल्याण आदि ) ।

यूनाईटेड नेशन्स यूनीवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ हूमन राइट्स 1948 में जीवन की गुणवत्ता के मूल्यांकन हेतु विभिन्न कारकों जैसे गुलामी एवं उत्पीड़न से मुक्ति कानून का समान संरक्षण , भेदभाव से मुक्ति , समान व्यवहार का अधिकार निजता का अधिकार विचारों की स्वतंत्रता धार्मिक स्वतंत्रता रोजगार का मुक्त चयन , शिक्षा का अधिकार मानवीय आत्मसम्मान का अधिकार आदि को बताया गया है । भारत में जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता के प्रमुख प्रभावकारी कारकों की स्थिति का मूल्यांकन करने पर ज्ञात होता है कि भारत में जीवन की गुणवत्ता अभी निम्न स्थिति में है । देश में नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए । विभिन्न स्तर पर सरकारी प्रयास किये जा रहे है और उन प्रयासों के सकारात्मक परिणामभी आ रहे हैं परन्तु अभी इस दिशा में और अधिक एवं प्रभावशाली प्रयास किये जाने की आवश्यकता है । विश्व स्तर पर भी इसके लिए विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठन प्रयासरत हैं । भारत भी इन प्रयासों से लाभान्वित हो रहा है । जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता एवं जीवन स्तर की अवधारणाओं को प्रायः एक ही प्रकार से देखा जाता है , परन्तु इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है । जीवन स्तर एक संकुचित अवधारणा है जिसके अन्तर्गत ऐसे तत्व सम्मिलित होते हैं जिनकी माप आसानी से की जा सकती है और जिन्हें संख्या में व्यक्त किया जा सकता है , जबकि जीवन की गुणवत्ता एक व्यापक अवधारणा है जिसमें परिमाणात्मक के साथ गुणात्मक कारक भी आते हैं जिनकी माप करना कठिन है । परन्तु दोनों ही एक विशेष समय में एक विशेष क्षेत्र में जीवन की एक सामान्य तस्वीर प्रस्तुत करने में सहायता करते हैं , जिससे नीति – निर्माताओं को नीतियों के निर्माण में मदद मिलती है ।

बेरोजगारी की दर : बेरोजगारी की दर के अन्तर्गत देश की कुल शक्ति एवं जीविकोपार्जन हेतु रोजगार न मिलने वाले लोगों के सम्बन्ध को देखा जाता है । ऐसे लोग जो रोजगार की तलाश कर रहे हैं . उनकी संख्या को देश की कुल श्रम शक्ति से भाग देकर इस दर को प्राप्त किया जाता है । इस दर में परिवर्तन मुख्यतः वर्तमान में कार्य की तलाश कर रहे . कार्य से अलग हुए एवं कार्य की तलाश में शामिल हुए नये लोगों पर निर्भर करता है । गरीबी रेखा : यू.एन.डी.पी. के अनुसार वे परिवार गरीब हैं जिन्हें प्रतिदिन एक डॉलर पर गुजारा करना पड़ता है । भारत में गरीबी की परिभाषा के अन्तर्गत वे परिवार , जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी का भोजन या खाद्य पदार्थ मिल जाते हैं , गरीब नहीं है ।

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