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घटना – क्रिया – विज्ञान

घटना – क्रिया – विज्ञान

 Phenomenology 

घटना – किया – विज्ञान विशुद्ध रूप से दार्शनिक दृष्टिकोण को साथ लेकर चलता है । यह उपयोगितावाद को नकारता है । इसी कारण इसका उद्गम स्थान जर्मनी अर्थात् यूरोप है । यूरोप में इस प्रकार के विचारों को सम्मानजनक स्थान मिलता है । मैक्स वेबर इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । किन्तु अमेरिका जैसे उपयोगितावाद के पक्षधर देश में घटना – क्रिया – विज्ञान अपनी जड़ें नहीं जमा सका है । यद्यपि अमेरिका में जार्ज सन्त्याना ( George Santyana ) ने प्रघटनाशास्त्र ( घटना – क्रिया – विज्ञान ) को स्वीकार किया और उसे विकसित करने का प्रयास किया किन्तु वहाँ पर घटना – क्रिया – विज्ञान पनप नहीं सका । घटना – क्रिया – विज्ञान को परिभाषित करना या उसके अर्थ को स्पष्ट करना भी सरल नहीं है । माना जाता है कि प्रत्येक घटना – क्रिया – विज्ञानी का दृष्टिकोण अलग है अर्थात् जितने घटना – क्रिया – विज्ञानी , उतने ही घटना – क्रिया – विज्ञान ।

 घटना – क्रिया – विज्ञान के प्रवर्तक एडमंड ह्यूसर्ल हैं । यद्यपि इस उपागम के वास्तविक प्रवर्तक अल्फ्रेड शूटूज माने जाते हैं । हुआ यह कि जर्मन दार्शनिक ह्यूसर्ल ने सामाजिक यथार्थ से सम्बन्धित अनेक विचारों का सृजन किया किन्तु वे इस विचारों को व्यवस्थित रूप नहीं दे पाए । ह्यूसर्ल के शिष्य आस्ट्रिया निवासी अल्फ्रेड शूटूज ने अपने गुरु के विचारों को व्यवस्थित किया और उन्हें ‘ घटना – क्रिया – विज्ञान ‘ के रूप में प्रस्तुत किया । वैसे घटना – क्रिया – विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ह्यूसर्ल ने अपनी जर्मन भाषा में लिखी गई पुस्तक ‘ Ideas : Introduction to Pure Phenomenology ‘ में किया था । अंग्रेजी भाषा में यह पुस्तक सन् 1969 में प्रकाशित हुई । घटना – क्रिया – विज्ञान के विकास में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देने वाले समाजशास्त्रियों में ह्यूसर्ल एवं शूट्ज के अतिरिक्त पीटर बर्जर , थॉमस लॅकमेन , जार्ज पास्थस , डगलस , रोश , मैक्स वेबर , मेन्स शेलर , जॉर्ज सिमैल , कार्ल मानहीय , चार्ल्स कूले , जार्ज हरबर्ट मीड , तथा विलियम जेम्स के नाम उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त मार्टिन हेडेगर , मर्लिन पोन्टी , जीन पॉल सार्च तथा मोर्टिज गिगट भी उल्लेखनीय रूप से इस उपागम के साथ जुड़े हैं ।

घटना – क्रिया – विज्ञान कोई विचारधारा नहीं है अपितु अध्ययन की एक पद्धति है , उपागम है और कुल मिलाकर एक दर्शन है । घटना – क्रिया – विज्ञान की स्पष्ट मान्यता यही है कि वस्तु जैसी दिख रही है उसे वैसा ही मान लेना हमारी भूल हो सकती है । यदि हमें वस्तु की वास्तविकता के बारे में जानना है तो हमें उस वस्तु के मूल में जाना होगा ‘ घटना – क्रिया – विज्ञान ‘ समाजशास्त्र की पूर्व मान्यताओं के विरुद्ध वैषयिकता , चिन्तन एवं आलोचनात्मक मूल्यों को महत्त्व देता है और स्वीकारता है ।

वह हुर्सेल के विचारों को स्वीकार करता है कि मनुष्य स्वाभाविक दृष्टिकोण अपनाता है तथा जीवन – जगत् ‘ को तथ्य के रूप में स्वीकारता है । शुट ज हुसैल के इस विचार को भी पुष्टि करता है कि मनुष्य समान जीवन – जगत् को जीता है तथा अनुभूतियों एवं संवेदनानों की समान दुनिया जीने की तरह क्रिया करता है । किन्तु लोगों की चेतना को ज्ञात करने के लिए बह वेबर की सहानुभूत्यात्मक अन्त दर्णन ‘ विधि का समर्थन करता है ।

 जीवन – जगत् के बारे में व्यक्तियों के अनुभवों को आद्योपांत सूक्ष्भीकरण के द्वारा नहीं , बल्कि अन्तक्रियारत व्यक्तियों के अवलोकन के द्वारा ही ज्ञात किया जा सकता है । शुट्ज के इस दृष्टिकोण ने घटना – विज्ञान को दर्शन के क्षेत्र से मुक्त किया तथा समाज – विज्ञानियों को ‘ अन्तर्वेषयिकता के निर्माण तथा परिपालन ‘ के अध्ययन करने की प्रेरणा दी । शुट्ज इसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘ सामाजिक यथार्थ ‘ ( Social Reality ) मानता है

, ‘ फिनॉमिनॉलॅजी ‘ शब्द की रचना दो शब्दों , यथा ‘ फेनामई ‘ और ‘ लोगस ‘ ( लॅजी ) के मेल से हुई है । ‘ फेनामई ‘ का अर्थ प्रकट होना या दिखाई देने से है और ‘ लोगस ‘ ( लॅजी ) का अर्थ अध्ययन या तर्क करने से है । मानव तर्क या ज्ञान का उद्भव कैसे होता घटना – क्रिया – विज्ञान या है , घटना – क्रिया – विज्ञान या प्रघटनाशास्त्र के प्रघटनाशास्त्र क्या है ? अध्ययन या खोज का यही प्रमुख विषय है । ज्ञान को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है किसी घटना के बारे में पूर्वाग्रहों , पूर्व – मान्यताओं या तर्क का क्या स्वरूप है , इन्हें जानने की एवं दार्शनिक बोध से अप्रभावित व्यक्ति के अपेक्षा यह जानना अधिक महत्वपूर्ण है कि प्रत्यक्ष अनुभव को जानने की विद्या को मानव मस्तिष्क कैसे कार्य करता है । घटना – क्रिया – विज्ञान या प्रघटनाशास्त्र कहते वास्तव में , प्रघटनाशास्त्र मानव मस्तिष्क की हैं । एक पद्धति के रूप में , प्रघटनाशास्त्र घटना कार्यविधि को जानने की ही एक पद्धति है सम्बन्धी पूर्व – धारणाओं के स्थगन , निलम्बन या जिसके द्वारा मानव ज्ञान या तर्क की रचना त्यागने पर बल देता है । होती है । दर्शनशास्त्र की एक विधि के रूप में ‘ फिनॉमिनॉलजी ‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रघटनाशास्त्र का मूल विषय चेतना के बारे में व्यवस्थित रूप में जानकारी प्राप्त करना ‘ फिनॉमिनॉलजी ऑफ माइन्ड ‘ ( 1807 ) में हमें प्रसिद्ध दार्शनिक हीगल की कृति या गवेषणा करना है ।

दार्शनिक विधि के रूप में इसका विकास जर्मन दार्शनिक एडमंड ह्यूसर्ल ( 1964 , 1970 ) ने किया है । ह्यूसर्ल ने व्यक्तिगत चेतना की खोज को अपने प्रघटनाशास्त्र का विषय बनाया । निम्नलिखित परिभाषाओं से घटना – क्रिया – विज्ञान प्रघटनाशास्त्र का अर्थ और भी स्पष्ट हो जाएगा ज एडमंड ह्यूसर्ल- “ घटना – क्रिया – विज्ञान एक ऐसी विधा है जो व्यवस्थित रूप से अप्रत्यक्ष को प्रत्यक्ष रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखती है । यह स्वीकृत मानकों को अस्वीकार करके उसमें व्याप्त अर्थों को सामने लाती है । ” के एल्फ्रेड शूट्ज- “ घटना – क्रिया – विज्ञान वस्तुओं में रुचि नहीं रखता अपितु उनके अर्थों में रखता है । अर्थों का निर्माण मस्तिष्क करता है । ” समाज विज्ञान विश्वकोश- “ यह दर्शनशास्त्र की एक विधि है जिसका प्रारम्भ व्यक्ति से होता है तथा व्यक्ति को स्व अनुभव से जो कुछ भी प्राप्त होता है , उसे इसमें सम्मिलित किया जाता है ।

” मौरिस नेटेन्सन- ” घटना – क्रिया – विज्ञान वह सम्बोधन है जिसके द्वारा सामाजिक क्रिया के अर्थ की व्याख्या , वैयक्तिक दृष्टिकोण के आधार पर की जाती है । ” हए . ब्लूमस्टेल- “ घटना – क्रिया – विज्ञान एक ऐसी चतुराई है जिसके द्वारा स्पष्ट अर्थों को अर्थविहीन करके यह पता लगाया जाता है कि उसका क्या अर्थ है । इस प्रक्रिया के माध्यम से हम अतार्किक मस्तिष्क को समझ में न आने वाली घटना को चेतना के आधार पर स्पष्ट करते हैं । “

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि घटना – क्रिया – विज्ञान या प्रघटनाशास्त्र एक ऐसा दार्शनिक उपागम है जो घटनाओं का अध्ययन बाह्य रूप से नहीं करता बल्कि ध्यान की गहराई में जाकर वास्तविकता को खोज निकालने पर बल देता है ।

घटना – क्रिया – विज्ञान मनुष्य में अपने को तथा दूसरों के साथ अपने सम्बन्ध को जानने व समझने की एक आदिम ललक या प्रवृत्ति होती है , इस बात को ध्यान में रखते हुए घटना – क्रिया – विज्ञान तीन घटनाक्रमों को पहचानने या जानने का प्रयास करता है

( 1 ) वे अर्थ जो लोग अपनी दुनिया – वस्तु , व्यक्ति , घटना का लगाते हैं ।

 ( 2 ) वे दृष्टिकोण या संदर्श जिससे लोग अपने को तथा दूसरों को देखते हैं ।

( 3 ) वे अभिप्राय जो उनके व्यवहार में अन्तर्निहित होते हैं ।

 वास्तविकता यह है कि ये तीनों ही बातें किसी भी सामाजिक या व्यवहारात्मक विज्ञान के लिए आधारभूत हैं । चिनॉय और हीविट ने लिखा है कि , कुछ लोगों का दावा यह है कि यह समाजशास्त्र का अनिवार्य सार भाग है ।

प्रतीकात्मक अन्तक्रियावाद का प्रभाव ( Impact of Symbolic Interactionalism )

 प्रतीकात्मक अन्तक्रियावादी हरबर्ट मीड के प्रभाव में शुट्ज़ ने यह जाना कि ” मन एक सामाजिक प्रक्रिया है जो अन्तत्रिया से उत्पन्न होता है । ” मीड की अन्य अवधारणामों पर भूमिका ग्रहण ( Rol : Taking ) तथा सामान्यीकृत दूसरे का भी शुट्ज पर काफी प्रभाव पड़ा । एक अन्य प्रतीकात्मक अन्तक्रियावादी डब्ल्यू . पाई . थॉमस की स्थिति की परिभाषा ‘ की अवधारणा का स्पष्ट प्रभाव शुट्ज की ‘ अन्तर्वेषयिकता ‘ ( Inter – Subjectivity ) की प्रक्रिया पर देखा जा सकता शुट्ज की घटना वैज्ञानिक उन्मुखता ( Phenomenological Orientation of Schutz ) मुटुज की मान्यता है कि मनुष्य अपने मन में नियमों . सामाजिक रीति रिवाजो उचित व्यवहार की अवधारणाओं एवं अन्य गूचनाओं को लिए हुए चलता है जिससे उसका सामाजिक जीवन में वल पाना मम्भव हो जाता है । इन नियमों , उपकरणों , अवधारणालों तथा सुदनामों के योग को शुट ज ने व्यक्ति के ‘ जान का भण्डार ‘ को सजा दी है । यह जान – भण्डार भ्यक्ति को गन्धर्भ – गंधार या उन्मुखता प्रदान करता है जिसके सहारे वे घटनामों का विश्लेषण करते हैं । शूटज ने इस ‘ ज्ञान – भण्डार ‘ की निम्नांकित विशेषताओं का प्रमुखता में उल्लेख किया है

 लोगों का यथार्थ उनका ज्ञान – भण्डार होता है । किसी समाज के सदस्यों के लिए उनका ‘ ज्ञान – भण्डार ‘ , ‘ सर्वोच्च यथार्थ ‘ का सृजन करता है । यह परम या निपेक्ष यथार्थ होता है जो सभी सामाजिक घटनाओं को निर्देशित करता । अपने पर्यावरना में अन्य लोगों के साथ अन्तक्रिया करते समय कर्ता अपने ज्ञान भण्डार का उपयोग करता है ।

ज्ञान भण्डार का अस्तित्व , सामाजीकरण द्वारा उसका ग्रहण तथा कर्तामों को परिप्रेक्ष्यों की पारम्परिकता देने वाली मान्यताएँ सभी मिलकर कत्तानों को एक स्थिति में एक अर्थबोध या पूर्वधारणा प्रदान करती है कि दुनिया सभी के लिए समान है । दनिया को समान होने की यह पूर्वधारणा समाज को एक साथ बधि रहती है ।

 ज्ञान भण्डार का अस्तित्व घटनापों को यथार्थ का अर्थबोध प्रदान करता है जो सामाजिक जगत को तथ्य के रूप में स्वीकृत ‘ ( हुसैल की अवधारणा स्वभाव प्रदान करता है । ज्ञान भण्डार मान्यताप्रो एवं प्रक्रियाओं का अन्तनिहित युग्मक होता है जो अन्तक्रिया के दौरान व्यक्तियों द्वारा चुपके से प्रयोग किया जाता है ।

 ज्ञान भण्डार मीखा जाता है । यह एक सामान्य सामाजिक सांस्कृतिक जगत् में समाजीकरण द्वारा ग्रहण किया जाता है किन्तु यह दुनिया के कत्र्तायों के लिए यथार्थ बन जाता है ।

 लोग अपनी मान्यताओं के तहत कार्य करते हैं जो उन्हें ‘ परिप्रेक्ष्यों की पारस्परिकता ‘ के सृजन की अनुमति देता है ।

  समान दुनिया की धारणा कर्नामों को ‘ प्ररूपण ‘ की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देती है । व्यक्तिगत तथा गहरे सम्बन्ध को छोड़ अधिकांश स्थितियों में क्रिया परस्पर प्ररूपण से शुरू होती है । क्योंकि कर्ता एक – दूसरे के श्रेणीकरण के लिए तथा उन प्ररूपणों से अपने उत्तरों के समजन के लिए अपने ज्ञान भण्डार का प्रयोग करते हैं ।

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अल्फ्रेड शूट्स ( A. Schutz )

शूटूज ने सामाजिक सम्बन्धों की व्याख्या परम्परागत समाजशास्त्रीय आधार की जगह घटना क्रियात्मक आधार पर की है ।

शूट्ज का मत है कि मनुष्य अपने मन में नियमों , सामाजिक रीति – रिवाजों , उचित व्यवहार की अवधारणाओं एवं अन्य सूचनाओं को लेकर चलता है जिससे उसका सामाजिक जीवन व्यतीत हो पाता है ।

इन नियमों , उपकरणों , अवधारणाओं तथा सूचनाओं के योग को शूट्ज ने व्यक्ति के ज्ञान का भण्डार ( stock knowledge ) कहा है । यह ज्ञान भण्डार मनुष्य को उन्मुखता प्रदान करता है जिसके आधार पर वह घटनाओं का विश्लेषण करता है ।

ज्ञान का भण्डार जन्मजात नहीं होता है । इसे समाजीकरण द्वारा सीखा जाता है ।

 जो व्यक्ति हमारे साथ व्यवहार करता है उसे हमारे ज्ञान के भण्डार की जानकारी होती है । व्यक्ति अपनी मान्यताओं के अनुरूप व्यवहार करता है ।  ज्ञान भण्डार का अस्तित्व , समाजीकरण द्वारा उसे प्राप्त करना तथा अन्तःक्रियाओं को परिप्रेक्ष्यों की पारस्परिकता प्रदान करने वाली मान्यताएँ सभी मिलकर कर्ताओं को एक स्थिति में एक अर्थबोध या पूर्वधारणा प्रदान करती है । इसी कारण सभी कर्ताओं में समान व्यवहार मिलता है । यह पूर्वधारणा कि संसार सभी के लिए समान है , समाज में एकता बनाए रखती है

 समान संसार की धारणा कर्ताओं को ‘ प्ररूपण ‘ की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति प्रदान करती है । व्यक्तिगत तथा गहरे सम्बन्धों को छोड़कर अधिकांश स्थितियों में क्रिया परस्पर प्ररूपण से प्रारम्भ होती है ।

व्यक्तियों की वास्तविकता उनका ज्ञान भण्डार ( stock knowledge ) है । समाज के सदस्यों के लिए उनका ज्ञान भण्डार ‘ सर्वोच्च यथार्थ ( paramount reality ) का निर्माण करता है । यह वास्तविकता सभी सामाजिक घटनाओं को स्वरूप प्रदान करती है तथा उन्हें नियन्त्रित करती है । ज्ञान का भण्डार सभी सामाजिक घटनाओं को निर्देशित भी करता है ।

 ज्ञान का भण्डार परम या निपेक्ष यथार्थ होता है । इस यथार्थ को व्यक्ति स्वीकृति मानकर ( Taken for granted ) चलता है । ज्ञान का भण्डार अचेतन रूप से तथा सहज रूप से व्यक्ति के व्यवहार को नियमित करता है ।

शूट्ज का घटना – क्रिया – विज्ञान यूरोप के घटना – क्रिया – विज्ञान तथा अमेरिका के अन्तःक्रियावाद का सम्मिश्रण है ।

घटना – क्रिया – विज्ञान और समाजशास्त्र का समन्वय करने के उद्देश्य से शूटूज ने मैक्स बेवर की अवधारणाओं का विश्लेषण करना प्रारम्भ किया शूट्ज के ऊपर मैक्स बेवर , ह्यूसर्ल , हरबर्ट , मीड़ तथा डब्लू . आई . थामस का प्रभाव है ।

समाज वृद्द होने के कारण इसमें अनेक विशेषताएँ एवं अनेक विभिन्नताएँ पायी जाती हैं । इन सभी को अलग – अलग श्रेणियों में रखा जाता है । श्रेणी के अनुरूप ही व्यक्ति का व्यवहार होता है । शूटूज के घटना – क्रिया – विज्ञान को देखने से हमें ज्ञात होता है कि शूट्ज ने यूरोप के घटना – क्रिया – विज्ञान और अमेरिका के अन्तःक्रियावाद का बहुत सुन्दर ढंग से मिश्रण किया है

 शूटूज के घटना – क्रिया – विज्ञान में निम्नलिखित आधारभूत अवधारणाएँ हैं

 ( 1 ) अर्थ बोध सन्दर्भ – अर्थबोध का अर्थ सार्थक अनुभवों की पृष्ठभूमि तथा उसके वे प्रसंग हैं जिसमें क्रियाओं की अभिव्यक्ति होती है ।

( 2 ) यह अनुभव बहुलवादी व्यक्ति क्रियाओं द्वारा बनते हैं ।

( 3 ) एक उच्चतर संश्लेषण का निर्माण करते हैं ।

( 4 ) उनके इस संश्लेषण को एक अद्वैतवादी दृष्टि से किसी संरचित इकाई के रूप में देखा जा सकता है । अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रत्येक सामाजिक परिस्थिति को अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखता है और समझता है । परिस्थतियों के अनूकुल या प्रतिकूल होने के आधार पर ही अपने सम्बन्धों का निर्माण करता है तथा इसी आधार पर परिस्थिति को व्यक्तिगत अर्थ ( Meaning ) प्रदान करता है ।

 इस तरह से प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति अपनी सामाजिक क्रियाओं का मूल्यांकन अपनी परिस्थिति के अनुसार करता है । पारस्परिक क्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति अन्तःक्रिया का क्या अर्थ लगाएंगे यह उनके दृष्टिकोण की पारस्परिकता पर निर्भर करता है । शूज का विचार है कि प्रत्येक सामाजिक परिस्थिति का अध्ययन अन्तर्व्यक्ति निष्ठता के आधार पर किया जाना चाहिए किन्तु उन्होंने यह नहीं बतलाया है कि इस अध्ययन विधि का प्रयोग किस तरह से किया जाए । उन्होंने यह बतलाया है कि सामाजिक परिस्थिति का अध्ययन स्वाभाविक अभिव्यक्ति के द्वारा किया जाना चाहिए ।

 स्वाभाविक अभिव्यक्ति से तात्पर्य जगत् के अस्तित्व के विषय में एक सरल विश्वास की अभिवृत्ति , जिसकी अनुभूति लोगों द्वारा की जाती है और जिसके अस्तित्व पर लोग विश्वास करते हैं शूटूज ने घटना – क्रिया – विज्ञान में तीन तत्व –

जीव जगत ( Life world ) ,

स्वाभाविक अभिवृति ( Natural attitude ) तथा

अन्तर व्यक्तिनिष्ठता ( Inter subjectivity ) बतलाए हैं ।

ये तीनों तत्त्व घटना – क्रिया – विज्ञान की आधारशिला हैं । घटनाशास्त्रीय समाजशास्त्र की रचना उपर्युक्त तीनों तत्वों के आधार पर की गई है ।

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पीटर बर्जर ( Peter Berger )

 

  पीटर बर्जर ( Peter Berger ) का जन्म 17 मार्च , 1929 को वियना ( आस्ट्रेरिया ) में हुआ था । विश्व युद्ध के तुरन्त बाद , वे अमेरिका आ गए थे । 1949 में , उन्होंने वेगनर कॉलेज से बेचलर ऑफ आर्टस् की डिग्री हासिल की । उन्होंने न्यूयार्क के दि न्यू कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी और इस प्रकार वे 1950 में एम . ए . तथा 1954 में पी.एच.डी की डिग्री से नवाजे गए । 1956 से 1958 के दौरान बर्जर ने यूनिवर्सिटी ऑफ P. Berger नार्थ कारोलिया में अस्सिटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्य किया तथा 1958 से लेकर 1963 तक एसोसियेट प्रोफेसर रहे । 1981 तक बर्जर समाजशास्त्र विभाग के यूनिवर्सिटी प्रोफेसर थे । 1985 में , वे ‘ इंस्टीट्यूट फॉर दि स्टेडी ऑफ इकोनामिक कल्चर ‘ के डायरेक्टर बने । बर्जर के लेखन का प्रमुख उद्देश्य मानवीय स्वायत्तता और दमनात्मक शक्तियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना था ।

 

 पीटर बर्जर की प्रमुख कृतियाँ

  1. ” Invitation to Sociology ‘ ( 1963 )
  2. ” The Social Construction of Reality ‘ ( 1966 )
  3. ” The Sacred Canopy ‘ ( 1967 )
  4. ” The Homeless Mind ‘ ( 1973 )
  5. ‘ Pyramids of Sacrifice ‘ ( 1974 )

वे स्लोवेन मूल के एक जर्मन समाजशास्त्री हैं । उनके पिता आस्ट्रेरिया के एक जाने – माने उद्योगपति थे तथा माता स्लोवेन परिवार से सम्बन्धि त थीं । दूसरे विश्वयुद्ध के बाद परिवार आस्ट्रेरिया चला गया था । लाकमैन ने समाजशास्त्र विषय का अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ वियना में किया । बाद में , वे पढ़ाई के लिए अमेरिका प्रस्थान कर गए । वहाँ उन्होंने न्यूयार्क के दि न्यू कॉलेज में अध्ययन किया । लाकमैन ने जर्मनी में यूनिवर्सिटी ऑफ कान्स्टेन्श के समाजशास्त्र विभाग में एक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया । लाकमैन ने जर्मनी में यूनिवर्सिटी ऑफ कान्स्टेन्श के समाजशास्त्र विभाग में एक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया । लाकमैन जर्मनी – अमेरिकी विद्वान शूटूज द्वारा स्थापित समाजशास्त्र में घटना – क्रिया – विज्ञान सम्प्रदाय के एक प्रबल समर्थक थे ।

 लाकमैन ने समाजशास्त्र में एक सिद्धान्त को विकसित किया जिसे ‘ सामाजिक निर्माणवाद ‘ के नाम से जाना जाता है । इस सिद्धान्त में यह दलील दी गयी है कि समस्त ज्ञान ( प्रतिदिन काम आने वाली कॉमन सेन्स सहित ) सामाजिक अन्तःक्रियाओं के माध्यम से ही उपजता है और उसे व्यवहार में लाया जाता है । लाकमैन की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘ The Social Construction of Reality ‘ है जो उन्होंने बर्जर के साथ मिलकर 1966 में लिखी थी । दूसरी पुस्तक ‘ Structure of the Life World ‘ है जो उन्होंने शूट्ज के Thomas Luckmann साथ मिलकर 1982 में लिखी थी ।

थामस लाकमैन की प्रमुख कृतियाँ

  1. ‘ The Social Construction of Reality ‘ ( 1966 , with Peter L. Berger )
  2. ‘ The Invisible Religion ‘ ( 1967 )
  3. ‘ The Sociology of Language ‘ ( 1975 )
  4. ‘ Structures of the Life – World ” ( 1982 , with Alfred Schütz )
  5. ‘ Life – World and Social Realities ‘ ( 1983 )

पीटर बर्जर एवं थामस लाकमैन – वास्तविकता का सामाजिक निर्माण

 ( Peter Berger and Thomas Luckmann – Social Construction of Reality )

पीटर बर्जर ने थामस लाकमैन के साथ ” वास्तविकता का सामाजिक निर्माण कार्य ” पुस्तक लिखी है । यह पुस्तक ज्ञान के समाजशास्त्र के नियमों को उजागर करती है । सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक आचारों के सम्बन्धों को उद्घाटित करने वाली ‘ उत्कर्ष के पिरामिड़ ‘ पुस्तक में बर्जर ने मौटे तौर पर दो आपस में गूंथे विषयों का सारगर्भित विश्लेषण किया है ये विषय हैं-

 ( 1 ) तृतीय विश्व का विकास , तथा ( 2 ) सामाजिक परिवर्तन से जुड़े आचार ।

वर्जर ने अपनी एक अन्य पुस्तक ‘ आधुनिकता से समानता ‘ में आधुनिकता की पांच प्रमुख विशेषताओं और असमंजसों की चर्चा की है । ये असमंजस हैं

( 1 ) सुगठित एवं सुसम्बद्ध समुदायों का कमजोर होना ,

 ( 2 ) समय और नौकरशाही के कार्यक्रमों के प्रति सनकपन की हद की सीमा ,

( 3 ) व्यक्ति और समाज के बीच दैधात्मक स्थिति के कारण संकट एवं अलगाव ,

 ( 4 ) मानवीय इच्छा को कमजोर बनाने वाली ‘ स्वतन्त्रीकरण ‘ की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देना ,

( 5 ) अर्थपूर्ण विश्व में विश्वास को कमजोर करता हुआ उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ लौकिकीकरण

 बर्जर की कृतियों में एक प्रमुख बात यह है कि वे अपनी व्याख्याओं द्वारा सामाजिक संरचना की दमनात्मक शक्तियों का मानवीय स्वायत्ता के साथ सामंजस्य बैठाना चाहते हैं ।

पीटर बर्जर एवं लाकमैन अमेरिकन समाजशास्त्री हैं । इन्होंने ज्ञान के समाजशास्त्र , घटना – क्रिया – विज्ञान तथा लोक – विधि – विज्ञान में काफी महत्वपूर्ण कार्य किया है । इनकी प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं

 . ‘ Invitation to Sociology ( 1963 )

. ‘ The Social Construction of Reality with Luckman ( 1966 )

 . ‘ The Sacred Canopy ( 1967 )

 . ‘ The Homeless Mind ( 1973 )

 . ‘ Pyramids of Sacrifice ( 1974 )

बर्जर एवं लाकमैन का मत है कि घटना – क्रिया – विज्ञान में वास्तविकता ( Reality ) को जानने का प्रयास किया जाता है ।

उनके अनुसार वास्तविकता वहीं है जिसकी व्याख्या समाज के लोगों द्वारा उनकी दैनिक क्रियाओं के आधार पर की जाती है । एक समाजशास्त्री के लिए आवश्यक है कि वह सामाजिक जगत की व्याख्याओं का ज्ञान रखें ।

बर्जर एवं लाकमैन का मत है कि समाज मानव द्वारा निर्मित होता है और समाज एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता है तथा मनुष्य एक सामाजिक उत्पत्ति है ।

  भूमिका को परिभाषित करते हुए बर्जर एवं लाकमैन ने लिखा है कि ये वस्तुनिष्ठ सामाजिक वास्तविकता का विशिष्ट स्वरूप है ।

भूमिका का विश्लेषण ज्ञान के समाजशास्त्र के लिए आवश्यक है

वे मानवीय तथ्यों को इस रूप में देखने का प्रयल करते हैं जैसे वे अमानवीय या मानव से परे तथ्य हो ।

बर्जर एवं लाकमैन का मत है कि मानवीय उत्पादों को इस प्रकार देखने की प्रवृति है जैसे वे कोई वस्तु या अन्य तथ्य बर्जर एवं लाकमैन के अन्य पक्षों को उपयोगी नहीं मानते हैं ।

 भूमिकाएँ एक प्रदत्त सामाजिक स्थिति में कर्ता से अपेक्षित क्रिया है ।

भूमिका इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह वृहद् एवं लघु दोनों प्रकार के समाज में मध्यस्थता करती है ।

बर्जर एवं लाकमैन के अनुसार वैधता के द्वारा संस्थात्मक व्यवस्था की व्याख्या की जाती है तथा उसकी वैधता को ज्ञात किया जाता है ।

 बर्जर एवं लाकमैन ने समाज की व्यक्तिनिष्ठ विशेषताओं का उल्लेख किया तथा ज्ञान के समाजशास्त्र को प्रस्तुत किया किन्तु वे समाज को एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता के रूप में समझाने में सफल नहीं हुए । इस कमजोरी के बावजूद बर्जर एवं लाकमैन ने घटना – क्रिया – विज्ञान को उसके परम्परागत स्वरूप के स्थान पर एक नया आयाम प्रदान किया है ।

 उनके विचार में ज्ञान का समाजशास्त्र असाधारण है और उसका सम्बन्ध वास्तविकता के सामाजिक निर्माण से है ।

बर्जर एवं लाकमैन ने घटना – क्रिया – विज्ञान की व्याख्या करने के लिए कुछ विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया है । ये शब्द हैं

बर्जर एवं लाकमैन ने वैयक्तिक स्तर पर विश्लेषण दैनिक जीवन में व्याप्त वास्तविकता से प्रारम्भ करते हैं । उनका मत हैं कि वस्तुनिष्ठता की प्रवृति भाषा में निहित है जो लगातार दैनिक जीवन को अर्थ प्रदान करती है ।

 बर्जर एवं लाकमैन का मत है कि सामाजिक जगत् चेतन प्रक्रिया की सांस्कृतिक उपज है ।

बर्जर एवं लाकमैन ने आमने – सामने की अन्तः क्रिया को ” हम सम्बन्ध ( we relationship ) ” का नाम दिया है । आमने – सामने के सम्बन्धों का अर्थ लोगों के बीच के ऐसे सम्बन्ध जिनसे हमारी घनिष्ठता कम होती है या वे अजनबी होते हैं ।

सामाजिक संरचना को परिभाषित करते हुए बर्जर एवं लाकमैन ने लिखा है कि यह अन्तर्किया के बार – बार दोहराए जाने तथा उनके प्रकारों द्वारा निर्मित होते हैं । उनका यह भी मत है कि भाषा मौखिक संकेतों की व्यवस्था है जो कि समाज में काफी महत्वपूर्ण संकेत व्यवस्था है । भाषा व्यवस्था एक प्रमुख सामाजिक संरचना है ।

  वर्जर एवं लाकमैन के अनुसार सामाजिक वास्तविकता का निर्माण लोगों के जीवित रहने तथा दूसरों के साथ अन्तक्रिया करने के लिए आवश्यक है । व्यक्ति क्रिया के आदतन प्रतिमानों का निर्माण करता है । बर्जर एवं लाकमैन का मत है कि आदत के अभाव में जीवन असम्भव हो जाएगा तथा यह कार्य काफी कठिन है कि हम प्रत्येक नई परिस्थिति में यही क्रिया का निर्धारण करें । क्रियाओं का आदतीकरण संस्था के विकास का प्रथम चरण है । बर्जर एवं लाकमैन ने संस्था को वर्गीकरण की पारस्परिक क्रिया माना है । उनका मत है कि मनुष्य के व्यवहार को संस्थाओं के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है ।

घटना – क्रिया – विज्ञान के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपना योगदान दिया है । आलोचकों का मत है कि इन विद्वानों के विचारों में बहुत अधिक भिन्नता है तथा इन विद्वानों ने अपने विचारों को एक मंच पर लाने का कोई प्रयास नहीं किया है । इस कारण घटना – क्रिया – विज्ञान के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना सम्भव नहीं है ।

इर्विंग जैटलिन का मत है कि घटना – क्रिया – विज्ञान स्वयं में एक उलझा हुआ शब्द है । इसके अनेक अर्थ निकलते हैं यह जटिलता घटना – क्रिया – विज्ञान को स्पष्ट करने में आड़े आती है ।

 स्टीफन स्ट्रासर का मत है कि समाजशास्त्रीय अनुसन्धानों में स्वेच्छापूर्ण एवं गैर अनुशासित व्यवहार इसकी वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विरोध में कार्य करते हैं । घटना – क्रिया – विज्ञान इन दोनों खतरों की ओर कोई ध्यान नहीं देता ।

 हेबरमास का मानना है कि घटना क्रियावाद कोई सैद्धान्तिक उपागम नहीं अपितु संकीर्ण रूप से निरीक्षण की पद्धति मात्र है ।

 आलोचकों का यह भी मत है कि घटना – क्रिया – विज्ञान का अध्ययन करने का तरीका विश्वसनीय एवं वैज्ञानिक नहीं है ।

 घटना – क्रिया – विज्ञान की अध्ययन पद्धति बहुत कुछ नृजाति – पद्धतिशास्त्र के अनुरूप है । इस उपागम के माध्यम से भी सूक्ष्म तथा लघु स्तरीय अध्ययन ही संभव है , वृहतस्तरीय अध्ययन नहीं ।

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