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गांधी के प्रपौत्र का अपमान: क्या भारत अपनी विरासत भूल रहा है? UPSC विश्लेषण

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गांधी के प्रपौत्र का अपमान: क्या भारत अपनी विरासत भूल रहा है? UPSC विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में महाराष्ट्र में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान महात्मा गांधी के प्रपौत्र, तुषार गांधी को कार्यक्रम स्थल से हटाए जाने की घटना ने देशव्यापी बहस छेड़ दी है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति के अपमान का मामला नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध के अधिकार पर गंभीर प्रश्न उठाती है। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर I (आधुनिक भारत का इतिहास, गांधीवादी दर्शन), GS पेपर II (शासन, संविधान- मौलिक अधिकार, लोकतंत्र के मूल्य, पुलिस सुधार) और GS पेपर IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि – गांधीवादी नैतिकता, सार्वजनिक सेवा मूल्य) से संबंधित है।


विषय का विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

2022 में महाराष्ट्र के वाशिम जिले में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान एक अप्रत्याशित और दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र, तुषार गांधी को एक कार्यक्रम स्थल से कथित तौर पर हटा दिया गया, जहाँ वे यात्रा में शामिल होने वाले थे। इस घटना ने तुरंत ध्यान आकर्षित किया और राजनीतिक गलियारों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच तीव्र प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उन्हें मंच पर जगह न मिलने के कारण स्वयं हटना पड़ा, जबकि अन्य ने आरोप लगाया कि उन्हें जानबूझकर हटाया गया। इस घटना ने न केवल तुषार गांधी के व्यक्तिगत अपमान का मुद्दा उठाया, बल्कि यह भारत के उन मूलभूत सिद्धांतों पर भी सवालिया निशान लगाता है, जिनके लिए महात्मा गांधी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था – विशेषकर असहमत होने का अधिकार, शांतिपूर्ण विरोध और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान। यह घटना हमें आत्मनिरीक्षण करने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में उन आदर्शों का पालन कर रहे हैं, जिनकी हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने कल्पना की थी, और क्या आज के भारत में असहमति के लिए पर्याप्त जगह बची है?

यह लेख इस घटना का विस्तृत विश्लेषण करता है, इसके पीछे के कारणों, इसके निहितार्थों और UPSC परीक्षा के लिए इसकी प्रासंगिकता को गहराई से पड़ताल करता है। हम इस घटना को सिर्फ एक समाचार के रूप में नहीं, बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों, नैतिक दुविधाओं और सामाजिक गतिशीलता के एक अध्ययन के रूप में देखेंगे।

महात्मा गांधी की विरासत और पदयात्रा का महत्व

महात्मा गांधी को न केवल भारत का राष्ट्रपिता माना जाता है, बल्कि वे एक ऐसे दार्शनिक और आंदोलनकारी थे, जिन्होंने अहिंसा, सत्याग्रह और जनभागीदारी के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। उनकी पदयात्राएँ, जैसे कि दांडी मार्च, न केवल प्रतिरोध के प्रतीक थीं, बल्कि वे जनता से जुड़ने, उन्हें एकजुट करने और एक साझा उद्देश्य के लिए प्रेरित करने का एक शक्तिशाली माध्यम भी थीं। दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह) इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ गांधीजी ने सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ा, जिससे लाखों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध का अधिकार: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार, विशेष रूप से अनुच्छेद 19, भारतीय लोकतंत्र की आत्मा हैं। ये अधिकार नागरिकों को राज्य की मनमानी शक्ति से बचाते हैं और उन्हें एक गरिमापूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाते हैं।

लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक नैतिकता पर प्रभाव

भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, और इसकी नींव कुछ मूलभूत मूल्यों पर टिकी है जो इसके संविधान में सन्निहित हैं। तुषार गांधी की घटना इन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर खरी उतरती है।

प्रशासन की भूमिका और पुलिस जवाबदेही

सार्वजनिक कार्यक्रमों में प्रशासन और पुलिस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। उन्हें न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखनी होती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों, विशेषकर शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी सुनिश्चित करना होता है।

घटना के बहुआयामी निहितार्थ

तुषार गांधी की घटना के सिर्फ व्यक्तिगत या तात्कालिक प्रभाव नहीं हैं, बल्कि इसके दूरगामी बहुआयामी निहितार्थ हैं:

सकारात्मक पहलू (Positives)

यद्यपि यह घटना स्वयं में नकारात्मक है, फिर भी कुछ ऐसे ‘सकारात्मक’ पहलू निकाले जा सकते हैं जो इसके बाद उत्पन्न हुए हैं, और जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं:

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

तुषार गांधी के साथ हुई घटना कई गंभीर चिंताएं पैदा करती है जो भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं:

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

इस पहल/नीति/घटना के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति घटती संवेदनशीलता, प्रशासनिक जवाबदेही की कमी और राजनीतिक ध्रुवीकरण।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होना चाहिए:

  • संवैधानिक मूल्यों का सुदृढ़ीकरण:
    • शिक्षा के माध्यम से और सार्वजनिक प्रवचन में संवैधानिक नैतिकता, सहिष्णुता और विविधता के सम्मान को बढ़ावा देना।
    • राष्ट्र निर्माताओं के सपनों और आदर्शों को नियमित रूप से याद दिलाना।
  • पुलिस सुधारों का कार्यान्वयन:
    • प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन।
    • पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करना और उनकी जवाबदेही व पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • पुलिस बल के लिए मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों के सम्मान पर नियमित प्रशिक्षण।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण:
    • न्यायपालिका को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को सक्रिय रूप से निभाते रहना चाहिए।
    • सरकार को असहमति को देशद्रोही के रूप में लेबल करने से बचना चाहिए और स्वस्थ आलोचना को स्वीकार करने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सक्रिय नागरिक समाज और मीडिया:
    • नागरिक समाज संगठनों और स्वतंत्र मीडिया को लोकतांत्रिक मूल्यों के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका जारी रखनी चाहिए।
    • सार्वजनिक बहस को बढ़ावा देना और गलत सूचनाओं का खंडन करना।
  • नैतिक शासन (Ethical Governance):
    • प्रशासकों और राजनेताओं में उच्च नैतिक मानकों को बढ़ावा देना।
    • सार्वजनिक सेवा में ईमानदारी, निष्पक्षता और संवेदनशीलता को प्राथमिकता देना।
  • संवाद और सुलह:
    • समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देना, ताकि ध्रुवीकरण कम हो सके।
    • गांधीवादी सिद्धांतों – अहिंसा, सत्य और सर्वोदय – को आधुनिक संदर्भ में फिर से लागू करना।

तुषार गांधी की घटना एक वेक-अप कॉल है। यह हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र एक सतत प्रक्रिया है जिसकी रक्षा और पोषण लगातार करना पड़ता है। केवल तभी हम एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जहाँ हर आवाज का सम्मान हो और हर नागरिक सुरक्षित महसूस करे, चाहे उसकी राय कुछ भी हो।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. भारत के संविधान के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता निहित है।
    2. शांतिपूर्वक और निहत्थे सम्मेलन का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
    3. अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए अधिकारों पर केवल राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: कथन I और II सही हैं। प्रेस की स्वतंत्रता वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण पहलू है, और शांतिपूर्वक सम्मेलन का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(b) के तहत स्पष्ट रूप से दिया गया है। कथन III गलत है क्योंकि अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए अधिकारों पर उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions) लगाए जा सकते हैं, जो राष्ट्रीय आपातकाल के बाहर भी लागू होते हैं (उदाहरण के लिए सार्वजनिक व्यवस्था, भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में)।

  2. ‘संवैधानिक नैतिकता’ (Constitutional Morality) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन कौन करता है?
    • (a) संविधान में वर्णित कानूनों और नियमों का कठोरता से पालन करना।
    • (b) संविधान के आदर्शों और सिद्धांतों के प्रति गहरी निष्ठा और उनकी भावना का सम्मान।
    • (c) संविधान के प्रावधानों की व्याख्या केवल सरकार के हित में करना।
    • (d) संविधान संशोधन की प्रक्रिया का नैतिक औचित्य।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: संवैधानिक नैतिकता का अर्थ केवल संविधान के लिखित नियमों का पालन करना नहीं है, बल्कि उसके अंतर्निहित मूल्यों जैसे समानता, स्वतंत्रता, न्याय, सहिष्णुता, और समावेशिता के प्रति गहरी निष्ठा और सम्मान रखना है। यह डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा प्रतिपादित एक अवधारणा है।

  3. भारत में विरोध प्रदर्शनों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. भारत के संविधान के तहत विरोध का अधिकार एक निरपेक्ष अधिकार है।
    2. सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार है।
    3. पुलिस को विरोध प्रदर्शनों को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन यह शक्ति मनमानी नहीं हो सकती।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: कथन I गलत है क्योंकि भारत में कोई भी मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है; सभी पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। कथन II और III सही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है, और पुलिस को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए विरोध प्रदर्शनों को विनियमित करने की शक्ति है, लेकिन उन्हें आनुपातिकता और मौलिक अधिकारों का सम्मान करना होगा।

  4. गांधीजी द्वारा की गई ‘पदयात्रा’ का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
    • (a) राजनीतिक विरोधियों को डराना।
    • (b) लोगों के साथ सीधा संवाद स्थापित करना और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल करना।
    • (c) केवल शारीरिक व्यायाम को बढ़ावा देना।
    • (d) विदेशी शासकों पर सैन्य दबाव बनाना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: गांधीजी की पदयात्राओं, जैसे दांडी मार्च, का प्राथमिक उद्देश्य जनसंपर्क स्थापित करना, जनता को जागरूक करना, उनकी समस्याओं को समझना और उन्हें अहिंसक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल करना था।

  5. प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (2006) मामला निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
    • (a) न्यायिक सक्रियता को विनियमित करना।
    • (b) पुलिस सुधारों की आवश्यकता।
    • (c) मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन।
    • (d) चुनाव सुधारों को लागू करना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (2006) का मामला भारतीय पुलिस में व्यापक सुधारों की आवश्यकता और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में दिए गए महत्वपूर्ण निर्देशों से संबंधित है, जिसमें पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करना और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करना शामिल है।

  6. निम्नलिखित में से कौन-सा अनुच्छेद राज्य को भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है?
    • (a) अनुच्छेद 19(1)(a)
    • (b) अनुच्छेद 19(2)
    • (c) अनुच्छेद 20
    • (d) अनुच्छेद 21

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अनुच्छेद 19(2) राज्य को अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के लिए उकसाने के संबंध में उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।

  7. भारत के संविधान में ‘लोकतांत्रिक’ शब्द का अर्थ है:
    1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार।
    2. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव।
    3. कार्यपालिका की विधायिका के प्रति जवाबदेही।
    4. अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II, III और IV
    • (c) केवल I, II और III
    • (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: लोकतांत्रिक शब्द एक व्यापक अवधारणा है जिसमें सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (राजनीतिक लोकतंत्र), कार्यपालिका की विधायिका के प्रति जवाबदेही (संसदीय लोकतंत्र), और सामाजिक तथा आर्थिक न्याय के साथ-साथ अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान (सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र) शामिल है। सभी विकल्प लोकतांत्रिक व्यवस्था के आवश्यक घटक हैं।

  8. गांधीवादी दर्शन के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
    1. सत्याग्रह, जिसका अर्थ सत्य के लिए आग्रह है, गांधीवादी प्रतिरोध का एक केंद्रीय सिद्धांत था।
    2. गांधीजी ने किसी भी परिस्थिति में हिंसा के प्रयोग को पूर्णतः अस्वीकार किया।
    3. सर्वोदय, जिसका अर्थ सभी का उत्थान है, गांधीजी के सामाजिक-आर्थिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

    सही कूट चुनिए:

    • (a) केवल I
    • (b) केवल I और II
    • (c) केवल II और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: सभी कथन सत्य हैं। सत्याग्रह गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध का आधार था, वे पूर्ण अहिंसा में विश्वास करते थे, और सर्वोदय उनके उस दर्शन को दर्शाता है जहाँ समाज के सबसे कमजोर वर्ग सहित सभी के कल्याण पर जोर दिया जाता है।

  9. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ‘लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण’ का सबसे अच्छा उदाहरण है?
    • (a) मीडिया द्वारा सरकार की आलोचना।
    • (b) नागरिक समाज समूहों द्वारा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन।
    • (c) असहमति व्यक्त करने वाले व्यक्तियों को अनुचित रूप से चुप कराना या दंडित करना।
    • (d) सार्वजनिक सेवाओं में पारदर्शिता बढ़ाना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: सरकार की आलोचना, शांतिपूर्ण विरोध और पारदर्शिता लोकतंत्र के स्वस्थ लक्षण हैं। हालांकि, असहमति को अनुचित रूप से दबाना या चुप कराना लोकतांत्रिक मूल्यों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध के अधिकार, के क्षरण का एक स्पष्ट संकेत है।

  10. भारत के संविधान की प्रस्तावना में निम्नलिखित में से किन स्वतंत्रता का उल्लेख है?
    1. विचार की स्वतंत्रता
    2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    3. विश्वास की स्वतंत्रता
    4. आवागमन की स्वतंत्रता

    सही कूट चुनिए:

    • (a) केवल I, II और III
    • (b) केवल II, III और IV
    • (c) केवल I, III और IV
    • (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: भारत के संविधान की प्रस्तावना में “विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता” का उल्लेख है। आवागमन की स्वतंत्रता (Right to Movement) प्रस्तावना में नहीं बल्कि मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(d)) के रूप में वर्णित है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी के साथ हुई घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है।” इस कथन के आलोक में, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के समक्ष चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द)
  2. महात्मा गांधी की पदयात्राओं के ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक महत्व को स्पष्ट कीजिए। आधुनिक भारत में ऐसी पदयात्राओं की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए, विशेष रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों और जनभागीदारी को मजबूत करने के संदर्भ में। (250 शब्द)
  3. “संवैधानिक नैतिकता लोकतंत्र की नींव है।” तुषार गांधी की घटना के संदर्भ में इस अवधारणा के महत्व का मूल्यांकन कीजिए। क्या आपको लगता है कि प्रशासन और पुलिस की भूमिका संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांतों के अनुरूप थी? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। (250 शब्द)
  4. भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र में असहमति के महत्व पर प्रकाश डालिए। सार्वजनिक कार्यक्रमों में असहमति को संभालने में प्रशासन की भूमिका और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक पुलिस सुधारों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
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