औद्योगीकरण
SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में
औद्योगीकरण नगरीकरण का कारण और परिणाम दोनों ही हो सकता है । अक्सर यह देखा जाता है कि जहाँ पर उद्योग – धन्धे पनप जाते हैं और मशीनों के बड़े बड़े मिल व फैक्ट्रियों में उत्पादन का कार्य होता है वहाँ पर नगरीकरण की प्रक्रिया तेजी से क्रियाशील होती है , भारत में अनेक नगरों का विकास उसी प्रकार हुआ है , इस अर्थ में औद्योगीकरण नगरीकरण का कारण होता है । पर ऐसा भी होता है कि अन्य किसी कारण से नगरीकरण की प्रक्रिया सर्वप्रथम क्रियायाशील होता है और अब जब समुदाय नगर का पूर्णरूप धारण कर लेता है तो वहाँ उद्योग धन्धे का धीरे – धीरे औद्योगीकरण होता है ।
अवधारणा : मशीनों द्वारा , बड़े पैमाने में उत्पादन कार्यों का सम्पादन व उद्योग – धन्धों का एक स्थान में विकास की प्रक्रिया को औद्यीकरण कहते हैं । कुछ लेखकों का कथन है कि “ औद्योगीकरण का तात्पर्य बड़े पैमाने के नवीन उद्योगों का प्रारम्भ और छोटे उद्योगों का बड़े पैमाने के उद्योगों में बदलने से है । ”
वास्तविक अर्थ में , ओद्योगीकरण उद्योगों के बड़े पैमाने में विकास की एक प्रक्रिया है । विलबर्ट मूरे ( W.E.Moore ने औद्योगीकरण की परिभाषा अपनी पुस्तक Social Change , P – 91 में इस प्रकार की है : “ औद्योगीकरण वह शब्द है जिसका उपयोग आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में शक्ति के निर्जीव स्रोतों का व्यापक रूप से उपयोग करने के लिए किया जाता है । ” ( Industrialization in its strict sense of the term , entails the extensive use of inanimate sources of power in the production of economic goods and services . ) अतः विल्बर्ट मूरे के अनुसार , औद्योगीकरण की प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक लाभ कमाना है साथ ही औद्योगीकरण का संबंध वस्तु तथा सेवाओं दोनों से है ।
भारत में औद्योगीकरण के कारण : भारत जैसे कृषि प्रधान देश में औद्योगीकरण कारणों में सर्वप्रमुख पंचवर्षीय योजनाओं का योगदान है । दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956-61 के बीच औद्योगीकरण की शुरुआत व्यापक रूप से हुई । साथ ही अन्य कई कारणों को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है
- उत्पादन की नई तकनीक : उत्पादन की नवीन प्रविधियों के आविष्कार से औद्योगीकरण की दर में काफी वृद्धि हुई है । कृषि में नवीन संकर बीजों एवं यंत्रीकरण के फलस्वरूप ही हरित क्रांति संभव हुई । नवीन कपड़ा मिलों के आविष्कार ने औद्योगीकरण को नया रूप दिया । आज सूचना क्रांति में कम्प्यूटर , इन्टरनेट के आने से विश्व में कहीं भी सूचना भेजने एवं पाने में केवल कुछ सेकेण्ड लग रहे हैं ।
- प्राकृतिक संसाधन : औद्योगीकरण की सबसे बड़ी आवश्यकता है प्राकृतिक संसाधन । अगर देश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता न होगी तो औद्योगीकरण की गति समाप्त से ,
जाएगी । भारत में लोहे , कोयले , अभ्रक आदि खनिज सम्पत्तियों के विशाल भण्डार हैं । पेट्रोलियम भी संतोषप्रद है । जल शक्ति के क्षेत्र में भारत संसार के सबसे धनी देशों में एक है । यहाँ ऐसे वन हैं जहाँ विश्व विभिन्न बीमारियों के लिए जड़ी बूटी उपलब्ध है ।
- यातायात के साधन : औद्योगीकरण की प्रक्रिया में यातायात के साधनों की अवहेलना नहीं की जा सकती है । कच्चे माल , मशीन तथा श्रमिकों को उत्पादन केन्द्र तक पहुँचाने में , बने हुए माल को देश – विदेश के बाजारों तक ले जाने में तथा उद्योग धन्धों से सम्बन्धित सम्बन्धों को बनाये रखने में यातायात के साधनों के महत्त्व को स्वीकार करना ही पड़ता है । अतः यातायात के बिना औद्योगीकरण का कोई महत्त्व नहीं है ।
- श्रम – शक्ति की प्रचुरता : विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में श्रम – शक्ति कहीं अधिक है । गाँव में ऐसे करोड़ों भूमिहीन मजदूर हैं जो वर्ष में अधिकतर बेरोजगार रहते हैं , वे कम मजदूरी पर उद्योगों में श्रमिकों के रूप में काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं । इनके द्वारा किये जाने वाले औद्योगिक उत्पादन की लागत भी कम होती है । यह एक ऐसी दशा है जिसके फलस्वरूप यहाँ औद्योगिक विकास सरलता से सम्भव हो सका ।
- आर्थिक नीतियाँ : हमारे देश में औद्योगीकरण का एक प्रमुख कारण सरकार की अधि कि और औद्योगिक नीतियाँ हैं । भारत में स्वतन्त्रता के समय से ही एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन दिया गया । इसमें आधारभूत उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में विकसित किया गया , जबकि अन्य उद्योगों का विकास निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया गया । श्रम कल्याण एवं श्रम सुरक्षा के लिए ऐसे बहुत से कानून बनाये गये जिससे श्रमिकों के शोषण को रोका जा सके तथा उनकी कार्य – कुशलता को बढ़ाया जा सके । यह दशा भी औद्योगिकीकरण के विकास में सहायक सिद्ध हुई ।
- अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा : भारत में औद्योगीकरण के विकास का एक अन्य कारण अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भारत द्वारा हिस्सा लेना है । वर्तमान युग में कोई भी देश अपनी अर्थिक स्थिति को केवल तभी मजबूत बना सकता है जब वह दूसरे देशों से वस्तुओं का आयात करने के साथ ही स्वयं भी विभिन्न वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन करके उनका दूसरे देशों को निर्यात कर सके । आयात और निर्यात के सन्तुलन से ही हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत बनती है । स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक क्षेत्र में जैसे – जैसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेना शुरू किया , यहाँ औद्योगीकरण में वृद्धि होती गई ।
7.शैक्षणिक संस्थाएँ : भारत में औद्योगीकरण के कारणों में शिक्षण संस्थाओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण भूमिका है । शिक्षण संस्थाओं के द्वारा विभिन्न कोर्स जो कि आधुनिक उत्पादन से संबंधित है करोड़ों की संख्या में ऐसे विद्यार्थी हैं जो कि हसिल कर रहे हैं । अतः उपर्युक्त दशाओं के साथ – साथ नये आविष्कार , नगरीकरण की प्रक्रिया तथा बैंकिंग सुविधा तथा सेवा क्षेत्र का विस्तार आदि वे सहायक दशाएँ हैं जिन्होंने औद्योगीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया ।
औद्योगीकरण के फलस्वरूप सामाजिक आर्थिक परिवर्तन : आज भी भारत आधारभूत रूप में गाँवों का देश है । पर आज औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी तेजी से अपने प्रभाव का विस्तार करती जा रही है । औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने हमारे सम्पूर्ण सामाजिक संरचना में परिवर्तन ला दिया है और हमारा सामाजिक , आर्थिक , मानसिक , राजनैतिक , सांस्कृतिक , धार्मिक एवं नैतिक जीवन एक नया मोड़ ले रहा है । औद्योगीकरण के ये प्रभाव स्वस्थ भी हैं और अस्वस्थ भी । हम संक्षेप में अब दोनों प्रकार के प्रभावों की विवेचना यहाँ करेंगे । –
सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्कों का विस्तृत क्षेत्र : औद्योगीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव यह है कि इसके फल्स्वरूप सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्कों का क्षेत्र स्वतः ही बढ़ जाता है । शहरों के सामाचार पत्र – पत्रिका , पुस्तक , रेडियो , केवल नेटवर्क , इंटरनेट , टेलीफोन , मोबाइल आदि के माध्यम से दूसरे प्रातों या देशों के साथ सम्पर्क स्थापित करना सरल होता है । ये सभी तत्व सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्क के क्षेत्र को विस्तृत करने में सहायक सिद्ध होते हैं ।
- शिक्षा व प्रशिक्षण संबंधी अधिक सुविधायें : अपने बच्चों को उचित शिक्षा देने के प्रति झुकाव अधिक होता है इसलिए औद्योगीकरण के साथ साथ शिक्षा व प्रशिक्षण सम्बन्धी सुविधाओं का भी विस्तार होता जाता है । कुछ नगरों में नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में शिक्षा व प्रशिक्षण संबंधी सुविधाओं का भी विस्तार होता है । कुछ नगरों में नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में शिक्षा व प्रशिक्षण संबंध सुविधाओं का अधिक योगदान होता हैं । कम्प्यूटर तथा अनेक टेकनिकल कोर्स करके शहरों में नौकरी की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं । इन्हीं सुविधाओं के कारण नगर का महत्त्व दिन – प्रतिदिन बढ़ता जाता है ।
- व्यापार और वाणिज्य का विस्तार : नगरों के विकास के साथ – साथ व्यापार और वाणिज्य की प्रगति भी निश्चित रूप में होती है क्योंकि औद्योगीकरण के साथ – साथ आबादी बढ़ती है और आबादी बढ़ने से आवश्यकतायें बढ़ती हैं और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापार और वाणिज्य का विस्तार आवश्यक हो जाता है । इसलिए औद्योगीकरण के साथ – साथ नए बाजार , हाट , शॉपिक सेटर , सिनेमा , रेस्टोरेन्ट आदि का भी उद्भव होता जाता है ।
- यातायात व संदेशवाहन की सुविधाओं में वृद्धि : नगर के विकास के साथ – साथ यातायात व संदेशवाहन की सुविधाओं का भी प्रसार होता जाता है क्योंकि इसके बिना नगरवासियों का जीवन सुविधाजनक नहीं हो सकता । नागरिक परिस्थितियाँ यह माँग करती है । कि यातायात और संदेशवाहन के साधानों को विस्तृत किया जाय । इसलिए नगर के विकास के साथ – साथ डाकघर , टेलीफोन , रेलवे स्टेशन , केरियर सर्विस , इन्टसेट , साइबर कैफे आदि का भी विकास होता जाता है और नगर के अंदर बस तथा टैक्सी सर्विस , ऑटो रिक्शा आदि उपलब्ध होते हैं । ये सभी सुविधायें महंगी हो सकती है जो जल्दी ही नागरिक जीवन के आवश्यक अंग बन जाती हैं ।
- राजनैतिक शिक्षा ( Political Education ) : औद्योगीकरण की प्रक्रिया के साथ – साथ राजनैतिक दलों की क्रियाशीलता भी बढ़ जाती है । वास्तव में नगर राजनैतिक दलों का अखाड़ा होता है और वे अपने – अपने आदर्शों व सिद्धांतों को फैलाने के लिए न केवल अत्यन्त प्रयत्नशील रहते हैं अपितु एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने के लिए भी भरसक प्रयत्न करता रहता है । फलतः राजनैतिक दाँव – पेच सीखने का अवसर नगरों में जितना मिलता है उतना गाँवों में कदापि नहीं । यह इसलिए भी सम्भव होता है क्योंकि नगर में यातायात और संदेशवाहन के साधन उन्नत स्तर पर होते हैं और उनके व पुस्तक पत्रिका , सामाचार – पत्र , रेडियो , टीवी , पोस्टर , बैनर , स्पीकर आदि के माध्यम से अन्तरराष्ट्रीय राजनैतिक जीवन में भाग होना या कम से कम उसके सम्बन्ध में जानकारी हासिल करना हमारे लिये सम्भव होता है । यह राजनैतिक शिक्षा को व्यावहारिक स्तर पर लाने में सहायक सिद्ध होता है ।
- सामाजिक सहनशीलता : औद्योगीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव यह है कि नगर निवासियों में सामाजिक सहनशीलता पर्याप्त मात्रा में पनप जाता है । इसका कारण भी स्पष्ट है । नगरीकरण के साथ साथ विभिन्न धर्म , सम्प्रदाय जाति , वर्ग , प्रजाति , प्रान्त तथा देश के लोग आकर बस जाते हैं और प्रत्येक को एक – दूसरे के साथ मिलने – जुलने का तथा एक दूसरे को
अधिक निकट में देखने जानने का अवसर प्राप्त होता है । इस प्रकार के सर्पक में एक – दूसरे के प्रति सहनशीलता पनपती है ।
- पारिवारिक मूल्य व संधान में परिवर्तन : नगरीकरण के साथ साथ पारिवारिक मूल्यों एवं संरचना में भी तेजी से परिवर्तन होता है । नगरों में बच्चे आज पूरी तरह अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर रहे हैं , अपनी जिद्द को ही सर्वोपरि मानते हैं , विवाह अपनी पसन्द की लकड़ी या लड़के से करते हैं , कॉलेज जाने के नाम पर रोमांस देखने को मिलता है । काम – काजी लड़कियों का एफयर तो नगरों में आम बात हो गई है । प्रेम विवाहों की संख्या में वृद्धि और तलाक की में वृद्धि भी नगरों में अधिक देखने की मिलती है । मीडिया एवं संचार क्रांति ने युवा वर्ग की अत्यधिक प्रभावित किया है । वह अपने रोल मॉडल की तरह ही बनने ( at her Social Economic effects of urbanization ) रहने की चाह में रहता है । पारिवारिक कर्तव्यों की ओर उसका ध्यान नहीं है । विवाह के बाद लड़की अपने पति को अलग घर में रहने के लिए प्रेरित करती है । एकल परिवारों की संख्या बढ़ना तथा संयुक्त परिवारों का विघटन यहाँ लगातार बढ़ रहा है ।
- गन्दी बस्तियों का विकास : औद्योगीकरण के साथ – साथ जब औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी चलती रहती है तो नगर की जनसंख्या अति तीव्र गति से बढ़ती चली जाती है । पर जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ती है उसी अनुपात में नये मकानों का निर्माण नहीं हो पाता है । इसलिए नगरीकरण का एक प्रभाव गन्दी बस्तियों का विकास होता है ।
- सामाजिक मूल्यों तथा संबंधों में परिवर्तन : औद्योगीकरण के साथ – साथ व्यक्तिवादी आदर्श पनपता है । नगरों में धन तथा व्यक्तिगत गुणों का अधिक महत्त्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी ही चिन्ता करता है और अपने स्वार्थों की रक्षा हेतु जी – जान लगा देता है । उसका प्रयत्न अपने ही व्यक्ति तत्व का विकास करना तथा अधिकाधिक धन एकत्र करना है क्योंकि इन्हीं पर उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा निर्भर करती है । इसलिए नगरीकरण का एक प्रभाव व्यक्तिगत स्वार्थ की वेदी पर सामुदायिक स्वार्थ की बलि चढ़ा देना होता है । उसी प्रकार नगरीकरण के साथ – साथ व्यक्तिगत संबंध अवैयक्तिक सामाजिक संबंधों में बदल जाता है । दिल्ली , कलकत्ता , मुम्बाई जैसे बड़े नगरों में तो आठ – दस मन्जिल वाले एक ही बिल्डिंग में रहने वाले व्यक्तियों में व्यक्तिगत संबंधों का नितान्त अभाव होता है । उसी प्रकार जाति – पाँति के आधार पर भेद – भाव छुआछूत को भावना आदि । नगरीकरण के साथ – साथ दुर्बल पड़ जाते हैं और इनसे संबंधित सामाजिक मूल्य बदल जाते हैं । सामाजिक दूरी का घटना नगरीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव कहा जा सकता है । एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने लगते हैं ।
10.मनोरंजन का व्यापारीकरण : औद्योगीकरण का एक और उल्लेखनीय प्रभाव मनोरंजन के साधनों का व्यापारीकरण है अर्थात् सिनेमा , थियेटर डिस्को क्लब , खेल कूद , केवल नेटवर्क , मोबाइल , इंटरनेट आदि मनोरंजन के सभी साधनों का आयोजन व्यापारिक संस्थाओं द्वारा किया जाता है । इसलिये इनमें शीलता या स्वस्थ प्रभाव का उतना ध्यान नहीं रखा जाता है जितना कि उन्हें दर्शकों के लिये अधिकाधिक आकर्षक बनाकर उनसे पैसा लेने के प्रति सचेत रहा जाता है ।
- दुर्घटना , बीमारी व गन्दगी : नगरों में दुर्घटनायें अधिक होती हैं । अधिक प्रदूषण के कारण बीमारियाँ भी अधिक होती हैं । विभिन्न उद्योगों से संबंधित अलग – अलग बीमारियाँ पनपती हैं । इतना ही नहीं नगरों में घनी आबादी होने के कारण गन्दगी भी अधिक होती है । गन्दगी के कारण भी अनेक प्रकार की बीमारियाँ नगर निवासियों की आ घेरती हैं । लाख प्रयत्न करने – पर भी औद्योगीकरण के परिणाम स्वरूप होने वाली दुर्घटना , बीमारी तथा गंदगी की समस्या के टाला नहीं जा सकता ।
- सामुदायिक जीवन में अनिश्चितता : नगरों की यह एक प्रमुख समस्या है और समस्या इसलिए है कि इस अनिश्चितता के कारण नगरों की सामुदयिक भावना या ‘ हम ‘ की भावना पनप नहीं पाती है । जिसके कारण नगर के जीवन में एकरूपता पनप नहीं पाती है । यहाँ कोई रात को सोता है तो कोई दिन में कोई आज रोजगार में लगा है कल बेकार है । यह अनिश्चितता हर पल पर हर क्षण है । सुबह घर से गया हुआ व्यक्ति शाम को घर लौटकर आयोग भी या नहीं , इसकी भी कोई निश्चितता नहीं है । यह अनिश्चितता सामुदायिक जीवन को विघटित करने वाले तत्वों को जन्म देती हैं ।
13.सामाजिक विघटन : व्यक्ति तथा संस्थाओं की स्थिति व कार्यों में अनिश्चितता अथवा अधिक परिवर्तनशीलता सामाजिक विघटन को उत्पन्न करती है । नगरों में सामाजिक परिवर्तन की गति भी तेज होती है जिसके कारण सामाजिक विघटन उत्पन्न होता है । नगरों में बैंक फेल करने , विद्रोह होने , क्रांति अथवा युद्ध छिड़ने की भी सम्भावना अधिक होती है जिनके कारण भी सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है जो कि स्वस्थ सामाजिक जीवन के लिए घाटक सिद्ध होती हैं ।
14.परिवारिक विघटन : नगरों में परिवारों के सदस्यों में आपसी संबंध अधिक घनिष्ट नहीं होता है क्योंकि पढ़ने – लिखने , प्रशिक्षण प्राप्त करने , नौकरी करने , मनोरंजन प्राप्त करने आदि के लिए घर के अधिकतर सदस्यों को या तो ढंग एक दूसरे हो अलग है या परिवार से बाहर ही अधिक समय व्यतीत करना पड़ता है । इस कारण परिवार के सदस्यों का एक दूसरे पर नियंत्रण भी बहुत कम होता है जो कि परिवार को विघटित करने में प्रायः सहायक ही सिद्ध होता है ।
15.व्यक्तिगत विघटन : यह नगरों की एक अन्य उल्लेखनीय समस्या है । व्यक्तिगत विघटन के निम्नलिखित पांच स्वरूप नगरों में देखने को मिलते हैं जिनमें से प्रत्येक स्वयं ही एक गम्भीर समस्या है ( a ) अपराध तथा बाल – अपराध : नगरों में निर्धनता , मकानों की समस्या , बेरोजगारी , स्त्री पुरुष के अनुपात में भेद , नशाखोरी , व्यापारिक मनोरंजन , व्यापार चक्र , प्रतिस्पर्धा , परिवार का शिथिल नियंत्रण , विद्यमान होते हैं जिनके कारण नगरों में अपराध और बाल – अपराध अधिक देखने को मिलने हैं । ( b ) आत्महत्या : नगरों में निर्धनता , बेरोजगारी , असुखी पारिवारिक जीवन , प्रतिस्पर्धा में असफल होने पर जीवन के संबंध में घोर निराशा , रोमांस या प्रेम में असफलता , व्यापार में असफलता आदि की एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने सम्भावनायें अधिक होती हैं और इनमें से किसी भी अवस्था में व्यक्ति इस प्रकार की एक असहनीय मानसिक उलझन में फंस सकता है , जिससे घुटकारा पाने के लिए वह आत्महत्या को ही चुन लेता है । यही कारण है कि गांवों की अपेक्षा नगरों में कहीं अधिक आत्महत्यायें होती हैं । ( c ) वेश्यावृत्ति : नगरों में श्रमिक वर्ग अधिक होते हैं जो कि नगरों में मकानों की समस्या तथा मंहगाई के कारण अपने बीबी बच्चों के साथ न रहकर अकेले ही रहने को बाध्य होते हैं । इसके लिए वेश्यालय मनोरंजन का एक अच्छा स्थान होता है । नगरों में पाये जाने वाली निर्धनता तथा बेरोजगारी भी अनेक स्त्रियों को वेश्यावृत्ति को बाध्य करती हैं । ( d ) नशाखोरी : मद्यपान आदि व्यक्तिगत विघटन की ही एक अभिव्यक्ति है । नगरों में यह समस्या विशेष रूप से उग्र है । इस समस्या का चरम रूप तब देखने को मिलता है जबकि नगरों
.. नतिक रूप से तटस्थ होती है । में बड़ी – बड़ी पार्टियों , ‘ डिनरों ‘ में जहाँ की समाज के उच्चस्तरीय ‘ सज्जनों ‘ का जमघट होता है , मद्यपान को सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक और सामान्य शिष्टाचार के रूप में स्वीकार किया है । शहरों में जो अपने जीवन में असफल हुए हैं , ऐसे व्यक्तियों की भी कमी नहीं होती है । इसको शराब की दुकानों पर लगी भीड़ से हमें यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है । ( e ) भिक्षावृत्ति : नगरों में लोग न केवल नगरों की गरीबी , भुखमारी और बेरोजगारी से तंग आकर भीख मांगते है अपितु भिक्षावृत्ति को एक व्यापारिक रूप भी देते हैं । बड़े – बड़े नगरों में भिखारियों के मालिक होते हैं जिनका कि काम भिखरी बनाना , भिखारियों को भीख माँगने के तरीके सिखाना , उनके शरीर को इस भांति विकृत या जराजीर्ण कर देना होता है जिससे लोगों को दया – भाव अपने – आप उभरे । 17.औद्योगीकरण के अन्य सामाजिक – आर्थिक प्रभाव : पूँजीवादी अर्थ व्यावस्था का विकास राष्ट्रीय धन का असमान वितरण , आर्थिक संकट , बेकारी , औद्योगिक झगड़े , मानसिक चिन्ता और रोग , संघर्ष व प्रतिस्पर्धा , सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि , श्रम विभाजान व विशेषीकरण ‘ हम ‘ की भावना का प्रभाव आदि औद्योगीकरण के अन्य प्रभाव हैं जो कि भारत में देखने को मिलते हैं ।
पश्चिमीकरण
अवधारणा : पश्चिमीकरण परिवर्तन की उस प्रक्रिया का द्योतक है जो कि भारतीय जनजीवन , समाज व संस्कृति के विभिन्न पक्षों में उस पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न हुई जिसे कि अंग्रेज शासक अपने साथ लाए थे । डा ० एम ० एन ० श्री निवास ( Dr.M.N.Srinivas ) ने पश्चिमीकरण की व्याख्या करते हुए लिखा है , मैंने पश्चिमीकरण शब्द को ब्रिटिश राज्य के डेढ़ सौ वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है और यह शब्द विभिन्न स्तरों जैसे प्रौद्योगिकी , संस्थाओं , विचारधारा , मूल्य आदि में घटित होने वाले परिवर्तनों का द्योतक है । ( I have used the term weternization to characterise the changes brought about in Indian and culture as a result of over 150 years of British rules and the term subsumes changes occurring at different levels , technology , institutions ideology and values : M. N. Srinivas . ” Social change in Modern Indian ” . University of California Press , 1966. P. 47 )
पश्चिमीकरण की विशेषताएं :
- एक व्यापक अवधारणा : पश्चिमीकरण की अवधारणा काफी व्यापक है । इसमें पश्चिम के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले सभी तरह के भौतिक और अभौतिक परिवर्तनों का समावेश है । इस सम्बंध में श्रीनिवास के विचारों को स्पष्ट करते हुए कुप्पूस्वामी ने लिखा है कि पश्चिमीकरण का सम्बंध मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों से है : ( a ) व्यवहार सम्बंधी पक्ष , जैसे : खान – पान , वेश भूषा , शिष्टाचार के तरीके तथा व्यवहार प्रतिमान आदि ; ( b ) ज्ञान सम्बंधी पक्ष , जैसे : विज्ञान , प्रौद्योगिकी और साहित्य आदि ; ( c ) सामाजिक मूल्य सम्बंधी पक्ष , जैसे : मानवतावाद , धर्मनिरपेक्षता तथा समताकारी विचार , पश्चिम के प्रभाव से समाज के इन सभी पक्षों में होने वाले परिवर्तन पश्चिमीकरण से सम्बन्धित हैं ।
- नैतिक रूप से तटस्थ : पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में नैतिकता के तत्व होना कोई जरूरी नहीं है अर्थात् पश्चिमीकरण के परिणाम अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी । भारतीय समाज में पश्चिमीकरण केवल अच्छी दिशा में ही हुआ है ; यह बात नहीं है । इस प्रकार यह प्रक्रिया
अंग्रेजों द्वारा लायी गई संस्कृति : ‘ पश्चिमी देश ‘ शब्द से जिन अनेक देशों का जैसे अमेरिका , ग्रेट ब्रिटेन , फ्रांस , जर्मनी , इटली आदि का बोध होता है । उनमें स्वयं आपस में भारी सांस्कृतिक अन्तर है । भारतवर्ष में सामाजिक परिवर्तन के एक कारक के रूप में पश्चिमीकरण की जो प्रक्रिया क्रियाशील है , वह वास्तव में पाश्चात्य संस्कृति के उस स्वरूप का प्रभाव है जिसे कि अंग्रेज शासक अपने साथ लाए और भारतवासियों को उससे परिचित कराया ।
- एक जटिल प्रक्रिया : पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में अनेक जटिल तत्वों का समावेश है । यह प्रक्रिया केवल प्रथाओं , जाति व्यवस्था , धर्म , परिवार और रहन – सहन में होने वाले परिवर्तनों से भी है जो पश्चिमी को वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप उत्पन्न हुए हैं । यह प्रक्रिया इसलिए भी जटिल है कि इसने सम्पूर्ण भारतीय समाज को समान रूप से प्रभावित नहीं किया । गाँवों की तुलना में नगरों में तथा निम्न वर्गों की तुलना में उच्च वर्गों में पश्चिमीकरण का अधिक प्रभाव देखने को मिलता है ।
- चेतन – अचेतन प्रक्रिया : पश्चिमीकरण केवल एक चेतन प्रक्रिया ही नहीं अपितु अचेतन प्रक्रिया भी है । दूसरे शब्दों में , पश्चिमीकरण की प्रक्रिया द्वारा भारत में सामाजिक परिवर्तन केवल सचेत रूप में ही हुआ है ; ऐसी बात नहीं है । अंग्रेज द्वारा लाए गए अनेक पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों को हमने अनायास ही कब ग्रहण कर लिया है यह शायद स्वयं हमें मालूम नहीं है । वे तो अचेतन रूप में हमारे जन – जीवन में समा गए हैं और परिवर्तन को घटित किया है ।
- एक निश्चित प्रारूप का अभाव : पश्चिमीकरण का कोई एक प्रारूप अथवा आदर्श नहीं है । ब्रिटिश शासनकाल में पश्चिमीकरण का आदर्श इंगलैण्ड का प्रभाव था । स्वतंत्रता के बाद जैसे – जैसे भारत के संबंध रूस और अमेरिका के साथ बढ़ते गए ; हमारी प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर इन देशों का प्रभाव बढ़ता गया । पश्चिमी प्रभाव से भारतीय समाज होने वाले वर्तमान परिवर्तनों में से यह बता सकना कठिन है कि यह प्रभाव इंग्लैण्ड , अमेरिका अथवा रूस आदि में से किस देश का है । स्पष्ट है कि हमारे देश में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया किसी एक देश के आदर्श पर आधारित नहीं है ।
- पश्चिमीकरण का सम्बंध किसी सामान्य संस्कृति से नहीं : पश्चिमीकरण का सम्बंध पश्चिमी देशों के प्रभाव अवश्य है लेकिन सभी पश्चिमी देशों की सांस्कृतिक विशेषताओं में भी कुछ मिलता है । पश्चिमी देश की कोई सामान्य संस्कृति नहीं है । इसके बाद भी डा . श्रीनिवास ने यह माना है कि भारत में होने वाले सामाजिक परिवर्तन के लिए हम पश्चिमीकरण की जिस प्रक्रिया की बात करते हैं , वह वास्तव में ब्रिटिश संस्कृति के प्रभाव से ही सम्बन्धित है । यह कथन अधिक उपयुक्त मालूम नहीं होता है क्योंकि भारतीय समाज में होने वाले परिवर्तन पश्चिम के अनेक देशों के संयुक्त प्रभाव के परिणाम हैं ।
- अनेक मूल्यों का समावेश : पश्चिमीकरण में अनेक ऐसे मूल्यों का समावेश है जिनकी प्रकृति भारत के परम्परागत मूल्यों से काफी भिन्न है । उदाहरण के लिए समानता , स्वतंत्रता , व्यक्तिवादिता , भौतिक आकर्षण , तार्किकता तथा मानवतावाद ऐसे मूल्य हैं जिन्हें पश्चिमी संस्कृति में अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता है । परम्परागत मूल्यों की जगह पश्चिम के इन मूल्यों को ग्रहण करने की प्रक्रिया का नाम ही पश्चिमीकरण है ।
भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव : डा ० एम ० एन ० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की विस्तृत चर्चा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Social Change in Modern India ( P – 47 ) में तथा योगेन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक Modernization of Indian Tradition ( P – 9 ) साथ ही बी ० कुप्पूस्वामी ने अपनी पुस्तक Social Change in India ( P – 62 ) में पश्चिमीकरण के प्रभावों की चर्चा की है । पश्चिमीकरण के कारण भारतीय समाज में बहुआयामी परिवर्तन हुआ है जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं पर देखा जा सकता है
1.जाति – व्यवस्था में परिवर्तन ( Change in Caste System ) : पश्चिमीकरण का सामाजिक जीवन पर सबसे बड़ा प्रभाव यह हुआ कि जातिगत बन्धन , छुआछूत की भावना समाप्त हुई है । इस प्रक्रिया ने सामाजिक समानता पर अधिक बल दिया । इसके प्रभाव से व्यक्ति धीर – धीरे यह समझने लगा कि जातियों का विभाजन तथा उनके बीच ऊँच नीच की व्यवस्था कोई ईश्वरीय रचना न होकर एक योजनाबद्ध सामाजिक नीति है । इसके फलस्वरूप अधिकांश व्यक्तियों ने जातिगत नियमों का विरोध करना आरंभ कर दिया । इसी का परिणाम है कि आज जाति से संबंधित सामाजिक सम्पर्क खान – पान , छुआछूत तथा व्यवसाय से संबंधित पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं । निम्न जातियों ने उच्च जातियों के व्यवहारों का अनुकरण करके अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाना आरंभ कर दिया । आज अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों की सभी सामाजिक और आर्थिक निर्योग्यताएँ समाप्त हो जाने तथा उन्हें विशेष मताधिकार मिलने से जाति – व्यवस्था का सम्पूर्ण ढाँचा चरमराकर टूट गया है ।
- स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन : पश्चिकीकरण के कारण स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन होने लगे । इसके प्रभाव से जब वैयक्तिक स्वतंत्रता में वृद्धि हुई , तब स्त्रियों ने भी विभिन्न व्यवसायों और सेवाओं में प्रवेश करके अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने का प्रयत्न किया । परिवार विवाह तथा सार्वजनिक जीवन में स्त्रियों के बढ़ते हुए अधिकार आज इन्हीं दशाओं के परिणाम हैं । स्त्रियों के प्रति पुरुषों की मनोवृत्तियों में होने वाले परिवर्तन भी पश्चिमी संस्कृति की उस विचारधारा से प्रभावित हैं जो मानवतावादी और समतावादी मूल्यों को महत्त्व देती है ।
- संयुक्त परिवार में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति की आगे बढ़ाने में सहयोगात्मक है । इसी कारण संयुक्त परिवार से व्यक्ति अलग होकर नगरों में एकल परिवार की स्थापना करते हैं । इस संस्कृति ने लोगों को इस बात की प्रेरणा दी कि वे अपनी योग्यता और कुशलता को बढ़ाकर उच्च प्रस्थिति प्राप्त करें तथा अपने द्वारा उपार्जित आय का स्वतंत्रता के साथ उपयोग करें । यह विचार संयुक्त परिवार व्यवस्था के विरुद्ध होने के कारण उन व्यक्तियों ने संयुक्त परिवार को छोड़ना आरंभ कर दिया जो अधिक योग्य और साहसी थे । इसके फलस्वरूप एकाकी परिवारों में तेजी से वृद्धि हुई । पश्चिमीकरण ने समानता तथा भौतिक सुख से संबंधित जो विचारधारा प्रस्तुत की , उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और छोटे परिवार के पक्ष में होने लगी । स्त्रियों ने जब विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में प्रवेश किया तो उनके परिवार का रूप संयुक्त बने रहना संभव नहीं रह गया । इसी का परिणाम है कि आज नगरों के अतिरिक्त गाँवों में भी संयुक्त परिवारों की संरचना में निरन्तर कमी होती जा रही है ।
4.रीति – रिवाज में परिवर्तन : पश्चिमीकरण ने रीति – रिवाज , तौर – तरीके , रहन – सहन , खान – पान , उठाना – बैठना , जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित तरीकों में व्यापक परिवर्तन किया । उदाहरण के तौर पर हाथ मिलाना , गुड मार्निंग , सौरी , पैन्ट – शर्ट आदि ।
- विवाह में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप , सह – शिक्षा ( Co – education ) , स्त्री पुरुषों का एक साथ काम करने का अवसर , अन्तर्विवाह के नियमों के पालन करने की जगह योग्य जीवन साथी का चुनाव करना अधिक अच्छा समझा जाने लगा । इसके फलस्वरूप एक– ओर विलम्ब – विवाह का प्रचलन बढ़ा तो दूसरी ओर बहुत से शिक्षित और जागरूक व्यक्तियों ने अंतर्जातीय विवाह करना भी आरंभ कर दिया । इस समय विवाह को एक स्वस्थ्य पारिवरिक जीवन के आधार के रूप में देखा जाने लगा । फलस्वरूप एक ओर विवाह – विच्छेदों की संख्या में वृद्धि होने लगी तो दूसरी और अन्तर्विवाह तथा बहिर्विवाह से संबंधित नियम कमजोर पड़ने लगे । इसके साथ ही अपने पसन्द के व्यक्तियों के साथ विवाह का प्रचलन बढ़ा जिसे प्रेम विवाह कहते हैं ।
- धार्मिक जीवन में परिवर्तन : पश्चिमीकरण की संस्कृति के प्रभाव से अन्धविश्वासों , कर्मकाण्डों तथा धर्म पर आधारित कुप्रथाओं की मनोवृत्तियों में व्यापक परिवर्तन देखने को मिलता है । ईसाई धर्म प्रचारकों ने जब हिन्दू – धर्म में व्याप्त अन्ध – विश्वासों और कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करके उन्हें ईसाई धर्म को ग्रहण करने की प्रेरणा देना आरंभ किया तब स्वयं हिन्दुओं को भी अपने धर्म पर आधारित रूढ़ियों का मूल्यांकन करने की प्ररेणा मिली । इस समय शिक्षित और विवेकशील व्यक्तियों ने धर्म द्वारा समर्पित देववासी प्रथा , अस्पृश्यता , सती – प्रथा , बाल – विवाह , विधवा – विवाह पर नियंत्रण तथा स्त्रियों की निम्न स्थिति आदि का विरोध करना आरंभ कर दिया । ईसाई मिशनरियों ने व्यक्तियों के सामने मानवतावाद तथा सामाजिक समानता का जो आदर्श प्रस्तुत किया , उससे प्रभवित होकर भारत में अनेक सुधारवादी सम्प्रदायों ने धार्मिक समानता , मानव सेवा और बन्धुत्व के महत्त्व को स्पष्ट करके हिन्दू धर्म में उपयोगी परिवर्तन लाने के प्रयत्न किये ऐसे सम्रदायों में ब्रह्मसमाज , आर्य समाज तथा रामकृष्ण मिशन की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण है । पश्चिमीकरण की विचारधारा के प्रभाव से भूत – प्रेत तथा भावातिता का प्रभाव कम होने लगा साथ ही तार्किकता तथा कर्मवाद की विचारधारा में परिवर्तन हुआ । इसके साथ ही धर्मनिरपेक्षता का विकास हुआ ।
- व्यक्तिवादी तथा भौतिक मूल्यों में वृद्धि : पश्चिमीकरण के प्रभाव से परिश्रम के द्वारा अथि कि विकास तथा व्यक्गिता हित में उसके उपयोग को महत्त्व दिया जाता है । यही वे दशाएँ हैं जिनके प्रभाव से हमारे समाज में प्राथमिक संबंधों की जगह द्वितीयक और हित – प्रधान सामाजिक संबंधों में वृद्धि होने लगी । आज पारिवरिक तथा मित्रता के सम्बंधों में भी प्रदर्शन और दिखावे का महत्त्व बढ़ता जा रहा है । अधिकांश व्यक्ति उन्हीं कामों में अधिक रुचि लेते हैं जिनसे उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिल सके । परम्परागत रूप से एक व्यक्ति की आय पर उसके सभी निकट रक्त – सम्बन्धियों का नैतिक अधिकार समझा जाता था लेकिन आज व्यक्ति अपनी सफलता का उपयोग केवल व्यक्तिगत हित में करना उचित मानता है । मनोवृत्तियों और विचारों के इस परिवर्तन ने भारत की सभी परम्परागत संस्थाओं के रूप को प्रभावित किया है ।
- राजनीति में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण ही हमारे देश में लोकतंत्रीय तथा प्रजातंत्रीय संस्थाओं का भी विकास होने लगा । ब्रिटिश शासन व्यवस्था पूँजीवादी आदर्शों पर आधारित थी जो कि स्वयं ही अनेक दो सामाजिक दोषों से संयुक्त हैं । इन दोषों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप साम्यवादी , समाजवादी और व्यक्तिवादी राजनैतिक विचारों व सिद्धांतों का प्रसार भी इस देश में हुआ ।
- मानवतावाद का विकास : डा ० एम ० एन ० श्रीनिवास का कथन है कि पश्चिमीकरण में कुछ विशेष मूल्यों का समावेश है जिन्हें हम ‘ मानवतावाद ‘ के नाम से सम्बोधित कर सकते हैं | ‘ मानवतावाद ‘ एक ऐसी भावना है जिसमें व्यक्ति की जाति , आर्थिक स्थिति , आयु , लिंग व धर्म पर ध्यान दिये बिना मानव मात्र के कल्पाण को विशेष महत्त्व दिया जाता है । ऐसी भावनाओं
के फलस्वरूप समाज के सभी वर्गों में मानव अधिकारों के प्रति चेतना उत्पन्न हुई है । हमारे समाज में निम्न जातियों तथा पिछड़ी जातियों को मिलने वाले विशेष अधिकार मानवतावाद में होने वाली वृद्धि को ही स्पष्ट करते हैं । अंग्रेजों की यह मान्यता थी कि समाज के उपेक्षित और पिछड़े वर्गों में जब अपने अधिकारों की चेतना पैदा ही जाएगी तो यह वर्ग स्वयं ही समानता की माँग करने लगेंगे । यह कार्य अंग्रेजी शासनकाल में नहीं हो सका लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् नगरीय ग्रामीण तथा जनजातियों सभी क्षेत्रों में आज इन वर्गों ने अपने अधिकारों और समानता की माँग करनी आरंभ कर दी है
- राष्ट्रीयता का विकास : पाश्चात्य संस्कृति , शिक्षा और विचारधाराओं ने हमें न केवल दुनिया के राष्ट्रीय जीवन के सम्पर्क में ही ला दिया बल्कि देश के अन्दर विभिन्न विपरीत समूहों में एक सांस्कृतिक समानता को भी उत्पन्न किया । इस सांस्कृतिक समानता और अन्य विदेशी राष्ट्रों को देखकर भारतीय जीवन में एकता और राष्ट्रीयता की नवीन लहर दिखायी दी ।
- आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन : पश्चिमीकरण के फलस्वरूप यातायात के साधनों में उन्नति हुई और औद्योगीकरण बढ़ता गया जिसके कारण गाँव की आर्थिक आत्मनिर्भरता धीर – धीरे समाप्त होने लगी और खेती का व्यापारीकरण शुरू हो गया । गाँव के आर्थिक जीवन पर दूसरा प्रभाव ग्रामीण उद्योगों का विनाश था , क्योंकि गृह – उद्योग मशीन उद्योग की प्रतियोगिता में न टिक सके । साथ ही गाँव में प्रचलित पुरानी भूमि – प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और जमींदारी प्रथा का विकास किया गया । इस प्रकार गाँव में एक शोषणकारी व्यवस्था शुरू हुई । दूसरी ओर नगर में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास तेज हुआ । बड़ी – बड़ी मिलों और फैक्ट्रियों की स्थापना हुई , मशीनों का प्रयोग दिन – प्रतिदिन बढ़ता गया तथा उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा । यातायात के साधनों में उन्नति होने के कारण न केवल अन्तर्राज्यीय व्यापार बढ़े अपितु अन्तर्राज्यीय व्यापार भी बढ़ा इससे देश के व्यापार और वाणिज्य में भी उन्नति हुई । आज व्यापार में वैश्वीकरण तथा उदारीकरण की सरकारी नीति भी एक तरह से पश्चिमीकरण का ही परिणाम है
- साहित्य में परिवर्तन : विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य पर भी पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव पड़ा है । अंग्रेजी साहित्य संसार के सब आधुनिक साहित्यों में काफी समृद्ध माना जाता है । इन अंग्रेजी साहित्य तथा यूरोप की अन्य भाषाओं के साहित्य को पढ़ने तथा समझने एवं उससे लाभ उठाने का अवसर भारतीय विद्वानों तथा लेखकों को अंग्रेजी भाषा ने प्रदान किया । इससे हिन्दी के साथ – साथ अन्य सभी प्रान्तीय भाषाओं के साहित्य में पाश्चात्य साहित्यिक शैली , सामग्री तथा विचारों का समावेश होने लगा और उनका आधुनिकीकरण हुआ । प ० ईश्वरचन्द्र विद्यासागर , रवीन्द्रनाथ टैगोर , बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास तथा कहानियों में हिन्दू समाज की प्रमुख समस्याओं को स्थान मिला जो कि अंग्रेजी शासन साहित्य का ही प्रभाव था । 19 णीं शताब्दी के अंतिम चरण में अंग्रेजी शासन तथा शिक्षा से प्रभावित होकर बंगाल के कुछ लेखकों ने समाज – सुधार और राष्ट्रीय जोश की बातें अपने साहित्य में लिखी । उनमें बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित ‘ आनन्द मठ ‘ को भारतीय राष्ट्रीयता का बाइबिल कहा जाता है । इसी पुस्तक में उसने ‘ वन्दे मातरम् ‘ का राष्ट्रीय गीत 1 लिखा । इस प्रकार पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में बहुआयायी परिवर्तन लाया है जो कि परिवार , विवाह , नातेदारी , धर्म , शिक्षा , साहित्य , कला , संगीत , रीति – रिवाज , अर्थव्यवस्था , राजनीतिक व्यवस्था सभी क्षेत्र को प्रभावित किया है ।
संस्कृतिकरण तथा पश्चिीकरण में अंतर :
- पश्चिमीकरण भारतीय समाज में होने 1. संस्कृतिकरण भारतीय समाज में होने वाली एक अन्तःजनित प्रक्रिया है । इसका वाली एक बाह्यजनित प्रक्रिया है । इसका स्रोत स्वयं भारतीय समाज में ही विद्यामन स्रोत भारतीय समाज के बाहर अर्थात् होता है । कोई पश्चिमी देश होता है ।
- संस्कृतिकरण एक अत्यन्त प्राचीन प्रक्रिया 2. पश्चिरीकरण अपेक्षाकृत एक आधुनिक प्रक्रिया है ।
- संस्कृतिकरण एक संकुचित प्रक्रिया 3. पश्चिमीकरण एक विस्तृत प्रक्रिया है । है क्योंकि इसका सम्बन्ध केवल निम्न क्योंकि इनका सम्बन्ध सभी जातियों एवं जातियों से है । वर्गों से है ।
- संस्कृतिकरण में निम्न जाति किसी 4. पश्चिमीकरण में सभी जातियाँ पश्चिमी उच्च जाति का अनुकरण करके अपना संस्कृति का अनुकरण करने का प्रयास परम्परागत सामाजिक स्तर ऊँचा करने का करती हैं । प्रयास करती है ।
- श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण | 5. पश्चिमकरण से पदमूलक तथा संरचनात्मक से केवल पदमूलक परिवर्तन होते हैं , दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं । संरचनात्मक नहीं ।
- संस्कृतिकरण में आदर्श प्रतिमान उच्च 6. पश्चिमीकरण में आदर्श प्रतिमान कोई वर्ण अथवा स्थानीय प्रभु जाति होती है । पश्चिमी देश होता है ।
- संस्कृतिकरण में शुद्धतावादी आदर्शों को | 7. पश्चिमीकरण में लौकिक आदर्शों को महत्त्व दिया जाता है । महत्त्व दिया जाता है ।
- संस्कृतिकरण द्वारा अपेक्षाकृत 8. पश्चिमीकरण से अपेक्षाकृत अधिक गतिशीलता आती है गतिशीलता आती है ।
- संस्कृतिकरण की विपरीत प्रक्रिया को | 9. पश्चिमीगरण की कोई विपरीत प्रक्रिया असंस्कृतिकरण कहते हैं । नहीं है यद्यपि पश्चिमी देश गैर – पश्चिमी देश से प्रभावित होते हैं ।
- आर्थिक सम्पन्नता तथा राजनीतिक शक्ति 10. पश्चिमीकरण में सहायक कारकों का संस्कृतिकरण में प्रमुख सहायक कारक हैं । पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है ।
संस्कृतिकरण तथा आधुनिकीकरण में अंतर :
- संस्कृतिकरण भारतीय समाज में होने | 1. संस्कृतिकरण भारतीय समाज में होने वाली एक अन्तःजनित प्रक्रिया है । वाली एक बाह्यजनित प्रक्रिया है । इसका इसका स्रोत स्वयं भारतीय समाज में ही स्रोत भारतीय समाज के बाहर अर्थात् विद्यमान होता है । कोई पश्चिमी देश होता है ।
- संस्कृतिकरण एक अत्यन्त प्राचीन प्रक्रिया | 2. आधुनिकीकरण अपेक्षाकृत एक नवीन कम प्रक्रिया है ।
संस्कृतिकरण एक संकुचित प्रक्रिया | 3. आधुनिकीकरण एक विस्तृत प्रक्रिया है है क्योंकि इसका सम्बन्ध केवल निम्न क्योंकि इसका सम्बन्ध सभी क्षेत्रों में जातियों से है । परिवर्तन से है ।- संस्कृतिकरण में निम्न जाति किसी 4. आधुनिकीकरण में सभी जातियाँ उच्च जाति का अनुकरण करके अपना परम्परागत सामाजिक स्तर ऊँचा करने आधुनिक मूल्यों का अनुकरण करने का प्रयास करती हैं । का प्रयास करती है ।
- श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण 5. आधुनिकीकरण से पदमूलक तथा से केवल पदमूलक परिवर्तन होते हैं , संरचनात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन संरचनात्मक नहीं । होते हैं ।
- संस्कृतिकरण में आदर्श प्रतिमान उच्च 6. आधुनिकीकरण में आदर्श प्रतिमान कोई वर्ण अथवा स्थानीय प्रभु जाति होती है । भी पश्चिमी देश , अमेरिका अथवा अन्य आधुनिक देश हो सकता है
- संस्कृतिकरण में शुद्धतावादी आदर्शों को 7. आधुनिकीकरण में लौकिक आदर्शों को महत्त्व दिया जाता है । महत्त्व दिया जाता है ।
- संस्कृतिकरण द्वारा अपेक्षाकृत कम 8. आधुनिकीकरण से अपेक्षाकृत अधिक गतिशीलता आती है । गतिशीलता आती है ।
- संस्कृतिकरण की विपरीत प्रक्रिया को 9. आधुनिकीकरण की कोई विपरीत प्रक्रिया असंस्कृतिकरण कहते हैं । नहीं है यद्यपि कुछ देशों में परम्परावाद एवं कट्टरवादिता को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ।
- आर्थिक सम्पन्नता तथा राजनीतिक | 10. आधुनिकीकरण में विविध सहायक शक्ति संस्कृतिकरण में प्रमुख सहायक कारक होते हैं जिसका पूर्वानुमान नहीं कारक हैं । लगाया जा सकता है ।
SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
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