एक छात्रा की मौत, दो नेताओं के आरोप: ओडिशा यौन उत्पीड़न मामले की पूरी कहानी
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में ओडिशा से एक हृदय विदारक घटना सामने आई, जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। एक नाबालिग छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न के बाद उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने न केवल राज्य में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और न्याय प्रणाली की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर बहस छेड़ दी। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर जहाँ एक ओर विपक्ष ने सरकार पर संवेदनहीनता और inaction का आरोप लगाया, वहीं सत्ता पक्ष ने इसे राजनीतिकरण की कोशिश करार दिया। राहुल गांधी के “बेटियां जल रहीं, PM चुप” वाले बयान और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के “कांग्रेस राजनीतिक रोटियां सेंक रही” वाले पलटवार ने इस संवेदनशील मुद्दे को एक राजनीतिक अखाड़ा बना दिया। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए यह घटना केवल एक समाचार नहीं, बल्कि भारतीय समाज, राजनीति, कानून और प्रशासन के कई आयामों को समझने का एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है।
एक छात्रा का दर्द और न्याय की अग्निपरीक्षा
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त उस गहरी समस्या का प्रतीक है जहाँ महिलाएँ, विशेषकर नाबालिग लड़कियाँ, यौन हिंसा की शिकार होती हैं और अक्सर उन्हें न्याय के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। ओडिशा की इस घटना ने समाज की उस कुरूप सच्चाई को उजागर किया है जहाँ अपराधियों में कानून का भय कम होता जा रहा है और पीड़ितों को न्याय के बजाय अपमान का सामना करना पड़ता है।
पीड़िता, एक स्कूली छात्रा, का जीवन उस वक्त दुखद अंत को प्राप्त हुआ जब उसे कथित तौर पर यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा और बाद में उसकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। इस घटना ने एक बार फिर देश में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बने कानूनों और उनके क्रियान्वयन की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। परिवार का दर्द, समाज का गुस्सा और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर—यह सब इस एक घटना के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जो हमें भारतीय न्याय प्रणाली और सामाजिक मूल्यों की एक गंभीर परीक्षा से रूबरू कराता है।
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध: एक गंभीर राष्ट्रीय परिदृश्य
ओडिशा की घटना कोई अकेली घटना नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। हर दिन बलात्कार, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज हत्या के अनगिनत मामले सामने आते हैं। ये आँकड़े सिर्फ संख्याएँ नहीं, बल्कि हर संख्या एक महिला के जीवन में आई त्रासदी का सूचक है।
- बढ़ती घटनाएँ: NCRB की रिपोर्टें बताती हैं कि यौन अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है, जिनमें नाबालिगों के साथ होने वाले अपराधों का अनुपात चिंताजनक है।
- पेंडेंसी रेट: यौन अपराधों से संबंधित मामलों में अदालतों में लंबित मामलों की संख्या (पेंडेंसी रेट) बहुत अधिक है, जिससे न्याय मिलने में अत्यधिक देरी होती है।
- रिपोर्टिंग और कनविक्शन: कई मामलों में अपराधों की रिपोर्ट ही नहीं हो पाती, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में। जिन मामलों की रिपोर्ट होती भी है, उनमें दोषसिद्धि (conviction) की दर काफी कम है।
- सामाजिक दबाव: अक्सर पीड़ितों पर सामाजिक दबाव होता है कि वे चुप्पी साधे रखें, जिससे न्याय की राह और कठिन हो जाती है।
“किसी भी समाज की प्रगति को इस बात से मापा जाना चाहिए कि वह अपनी सबसे कमजोर आबादी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की कितनी सुरक्षा करता है।” – महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित।
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा हेतु कानूनी ढाँचा और संस्थागत तंत्र
भारत में महिलाओं और बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने और उन्हें न्याय दिलाने के लिए व्यापक कानूनी ढाँचा और कई संस्थागत तंत्र मौजूद हैं। ओडिशा जैसे मामले इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता पर बल देते हैं।
महत्वपूर्ण कानून और अधिनियम:
- भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 354: महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
- धारा 376: बलात्कार (इसके विभिन्न उपखंडों में विभिन्न प्रकार के बलात्कार और उनके लिए सजा का प्रावधान है)।
- धारा 509: शब्द, हावभाव या कार्य जिससे महिला की शील का अनादर हो।
- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012):
- यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है। इसमें बच्चों की आयु सीमा 18 वर्ष से कम निर्धारित की गई है।
- इसमें यौन उत्पीड़न, यौन हमला, अश्लील साहित्य और यौन शोषण के लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
- इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह बच्चे के सर्वोत्तम हित को सर्वोपरि रखता है और बाल-मैत्रीपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
- 2019 में इसमें संशोधन कर बच्चों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न के मामलों में मृत्युदंड तक का प्रावधान किया गया।
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 और 2018:
- 2013 का संशोधन (निर्भया कांड के बाद): यौन उत्पीड़न की परिभाषा का विस्तार किया गया, स्टॉक करना और ताक-झांक करना (stalking and voyeurism) जैसे अपराधों को शामिल किया गया। सामूहिक बलात्कार के मामलों में न्यूनतम सजा बढ़ाई गई।
- 2018 का संशोधन: 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड तक का प्रावधान किया गया। 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act, 2013):
- यह विशाखा दिशानिर्देशों (Vishakha Guidelines) के आधार पर बनाया गया था, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए थे।
- यह अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम, शिकायत निवारण और समाधान के लिए एक आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) के गठन को अनिवार्य करता है।
संस्थागत तंत्र:
- राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women – NCW):
- महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा और उनके लिए प्रभावी नीतियों के निर्माण हेतु सलाह देने वाली एक वैधानिक निकाय। यह महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच करता है।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights – NCPCR):
- बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक वैधानिक निकाय, जो POCSO अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करता है।
- वन-स्टॉप सेंटर (One-Stop Centre – OSC):
- हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही छत के नीचे चिकित्सा सहायता, पुलिस सहायता, कानूनी सलाह, मनोवैज्ञानिक परामर्श और अस्थायी आश्रय प्रदान करने वाले केंद्र। ये केंद्र निर्भया फंड से वित्त पोषित हैं।
- महिला हेल्पलाइन (Women Helpline):
- राष्ट्रीय आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर (जैसे 112, 1098, 181) जो संकट में फंसी महिलाओं और बच्चों को तत्काल सहायता प्रदान करते हैं।
- फास्ट-ट्रैक कोर्ट (Fast-Track Courts – FTCs) और विशेष POCSO कोर्ट:
- यौन उत्पीड़न जैसे संवेदनशील मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतें स्थापित की गई हैं।
- पुलिस बल का संवेदीकरण:
- महिलाओं से संबंधित अपराधों को संभालने के लिए महिला पुलिस कर्मियों की नियुक्ति और पुलिस बल में लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल।
इन सभी कानूनों और संस्थानों के बावजूद, ओडिशा जैसी घटनाएँ यह दिखाती हैं कि कानूनी प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन और सामाजिक मानसिकता में बदलाव अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
सामाजिक-सांस्कृतिक कारक और चुनौतियाँ
कानूनी ढाँचा कितना भी मजबूत क्यों न हो, जब तक समाज में अंतर्निहित समस्याएँ बनी रहेंगी, तब तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों को पूरी तरह से रोकना मुश्किल होगा।
- पितृसत्तात्मक मानसिकता और लैंगिक असमानता:
- भारत में गहरे तक जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को पुरुषों से कमतर मानती है और उनके खिलाफ हिंसा को सामान्यीकरण करती है। यह मानसिकता पुरुषों में श्रेष्ठता का भाव पैदा करती है।
- पीड़ित-दोषारोपण (Victim Blaming):
- अक्सर यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है, उनकी पोशाक, उनके बाहर निकलने के समय या उनके व्यवहार को अपराध का कारण माना जाता है। इससे पीड़ित खुलकर सामने आने से डरते हैं।
- न्याय प्रणाली में देरी और पुलिस संवेदनहीनता:
- मुकदमों का वर्षों तक लंबित रहना और पुलिस द्वारा मामलों को गंभीरता से न लेना या FIR दर्ज करने में आनाकानी करना, न्याय की प्रक्रिया को बाधित करता है।
- सामाजिक शर्मिंदगी और बदनामी का डर:
- पीड़ित परिवारों को अक्सर समाज से बहिष्करण और बदनामी का डर सताता है, जिससे वे पुलिस या अदालत का दरवाजा खटखटाने से कतराते हैं।
- शिक्षा और जागरूकता की कमी:
- यौन शिक्षा का अभाव, गुड टच-बैड टच की जानकारी न होना और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता की कमी, बच्चों और अभिभावकों दोनों को कमजोर बनाती है।
- साइबर यौन उत्पीड़न और ऑनलाइन खतरे:
- इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के साथ, ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर-स्टॉकिंग और अश्लील सामग्री के माध्यम से बच्चों और महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है।
- शक्ति संतुलन का दुरुपयोग:
- शिक्षक, रिश्तेदार या जान-पहचान वाले व्यक्तियों द्वारा यौन शोषण के मामलों में, शक्ति संतुलन का दुरुपयोग होता है, जिससे पीड़ित के लिए विरोध करना और भी मुश्किल हो जाता है।
“जब तक हम सामाजिक धारणाओं को नहीं बदलते, तब तक कानूनों का प्रभावी होना मुश्किल है। कानून केवल उपकरण हैं, बदलाव की असली शक्ति समाज के भीतर है।”
राजनीति का प्रभाव: संवेदनशीलता बनाम आरोप-प्रत्यारोप
ओडिशा की घटना पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भारतीय राजनीति में एक आम प्रवृत्ति को दर्शाती है: संवेदनशील मुद्दों का राजनीतिकरण।
जब एक छात्रा की मौत जैसी गंभीर घटना घटित होती है, तो यह उम्मीद की जाती है कि सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर न्याय और पीड़ितों के अधिकारों के लिए खड़े होंगे। हालांकि, अक्सर ऐसा नहीं होता है।
- तत्काल प्रतिक्रिया और लाभ-हानि:
- विपक्ष ऐसी घटनाओं को सरकार की विफलताओं को उजागर करने के अवसर के रूप में देखता है, जबकि सत्ता पक्ष खुद को बचाने और विपक्ष पर पलटवार करने की कोशिश करता है।
- बयानबाजी में अक्सर संवेदनशीलता की कमी दिखाई देती है, और मुख्य मुद्दा (पीड़ित को न्याय दिलाना) गौण हो जाता है।
- सार्वजनिक विमर्श पर असर:
- राजनीतिक बयानबाजी अक्सर मीडिया द्वारा बढ़-चढ़कर दिखाई जाती है, जिससे जनता का ध्यान घटना के मूल कारणों और समाधानों से हटकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप पर केंद्रित हो जाता है।
- यह एक ध्रुवीकरण पैदा कर सकता है जहाँ लोग राजनीतिक संबद्धता के आधार पर घटनाओं को देखते हैं, बजाय इसके कि वे मानवीय त्रासदी के रूप में देखें।
- जांच और न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप का डर:
- राजनीतिक दबाव कभी-कभी जांच एजेंसियों को प्रभावित कर सकता है, जिससे निष्पक्ष जांच की संभावना कम हो जाती है।
- न्यायपालिका पर भी अप्रत्यक्ष दबाव पड़ सकता है, जिससे मामलों का निपटारा प्रभावित हो सकता है।
- उत्तरदायित्व का प्रश्न:
- सरकार की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। जब ऐसी घटनाएँ होती हैं, तो सरकार को जवाबदेह ठहराना स्वाभाविक है।
- हालांकि, विपक्ष का काम केवल आरोप लगाना नहीं, बल्कि रचनात्मक समाधान और सुधारों का सुझाव देना भी होना चाहिए।
राहुल गांधी का “बेटियां जल रहीं, PM चुप” और धर्मेंद्र प्रधान का “कांग्रेस राजनीतिक रोटियां सेंक रही” जैसे बयान, इस बात का प्रमाण हैं कि कैसे एक मानवीय संकट को भी राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह दर्शाता है कि हमारे नेताओं को ऐसे संवेदनशील मामलों में अधिक परिपक्वता और जिम्मेदारी दिखानी होगी।
सरकार की प्रमुख पहलें
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई महत्वपूर्ण पहल की हैं:
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP):
- बालिकाओं के जन्म के प्रति लैंगिक पक्षपात को खत्म करने, उनकी शिक्षा को बढ़ावा देने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से शुरू की गई योजना।
- निर्भया फंड:
- महिला सुरक्षा के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू करने हेतु एक गैर-व्यपगत कोष (non-lapsable corpus fund) का गठन। वन-स्टॉप सेंटर और महिला हेल्पलाइन जैसी पहलें इसी फंड से वित्त पोषित हैं।
- वन-स्टॉप सेंटर योजना:
- ऊपर चर्चा की गई, यह हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करती है।
- महिला हेल्पलाइन (181):
- महिला आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली, जो पूरे देश में कार्य करती है।
- फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs):
- बलात्कार और POCSO अधिनियम के तहत लंबित मामलों को त्वरित रूप से निपटाने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार:
- पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना, पुलिस अधिकारियों का संवेदीकरण प्रशिक्षण।
- फोरेंसिक विज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देना।
- महिला पुलिस स्वयंसेवक (Mahila Police Volunteers – MPV) योजना:
- राज्यों में स्थानीय समुदायों और पुलिस के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करने के लिए महिला स्वयंसेवकों की नियुक्ति।
ये पहलें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें कितनी प्रभावी ढंग से जमीन पर लागू किया जाता है और क्या वे वास्तव में लक्षित आबादी तक पहुँच पाती हैं।
आगे की राह (Way Forward)
ओडिशा जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने और समाज में महिलाओं तथा बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- कानूनी सुधारों का प्रभावी क्रियान्वयन:
- POCSO और अन्य संबंधित कानूनों का सख्त और त्वरित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
- न्यायपालिका में लंबित मामलों को कम करने के लिए विशेष अदालतों की संख्या बढ़ाई जाए और पर्याप्त न्यायिक स्टाफ प्रदान किया जाए।
- पुलिस और न्यायिक प्रणाली का संवेदीकरण:
- पुलिस अधिकारियों, अभियोजकों और न्यायाधीशों को लैंगिक संवेदनशीलता का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे पीड़ितों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें और उनसे पूछताछ के दौरान उन्हें पुनः आघात न पहुँचाएँ।
- FIR दर्ज करने से लेकर जांच पूरी करने तक, हर कदम पर जवाबदेही तय की जाए।
- शिक्षा प्रणाली में सुधार:
- पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता, यौन शिक्षा और ‘गुड टच-बैड टच’ की अवधारणाओं को बचपन से ही शामिल किया जाए।
- स्कूलों में सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए सख्त नीतियां और शिकायत निवारण तंत्र हों।
- सामाजिक सोच में बदलाव:
- पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती देने के लिए व्यापक सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाए जाएं। पुरुषों को लैंगिक समानता के पैरोकार के रूप में शामिल किया जाए।
- परिवारों में बच्चों को लैंगिक समानता और आपसी सम्मान का पाठ पढ़ाया जाए।
- मीडिया की जिम्मेदारी:
- मीडिया को ऐसे संवेदनशील मामलों की रिपोर्टिंग में नैतिक मानकों का पालन करना चाहिए। सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचना चाहिए और पीड़ित की गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए।
- उन्हें समाधान-केंद्रित पत्रकारिता पर ध्यान देना चाहिए जो समस्या के मूल कारणों और समाधानों को उजागर करे।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति और उत्तरदायित्व:
- राजनीतिक दलों को ऐसे संवेदनशील मुद्दों का राजनीतिकरण करने से बचना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें एकजुट होकर महिला सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
- सरकारों को अपनी नीतियों और योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
- सामुदायिक भागीदारी:
- स्थानीय समुदाय, महिला समूह, गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और नागरिक समाज को महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और जागरूकता फैलाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- मोहल्ला समितियां और सुरक्षा दल बनाए जा सकते हैं जो ऐसे मामलों में शुरुआती चेतावनी का काम करें।
- डिजिटल सुरक्षा:
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मजबूत साइबर सुरक्षा कानून और उनके प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
- इंटरनेट साक्षरता और डिजिटल नागरिकता पर जागरूकता बढ़ाई जाए।
संक्षेप में, यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे केवल कानून के डंडे से नहीं जीता जा सकता। इसके लिए सामाजिक चेतना में एक मौलिक परिवर्तन, शिक्षा प्रणाली में क्रमिक बदलाव और राजनीतिक वर्ग की परिपक्वता की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
ओडिशा में छात्रा की मौत का मामला भारतीय समाज में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा की गंभीर चुनौती को फिर से रेखांकित करता है। यह एक मार्मिक अनुस्मारक है कि कानूनी ढाँचा कितना भी मजबूत क्यों न हो, उसका प्रभावी क्रियान्वयन और सामाजिक मानसिकता में सकारात्मक बदलाव के बिना वास्तविक न्याय और सुरक्षा दूर की कौड़ी रहेगी। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल सिर्फ समस्या को और जटिल बनाता है, जबकि आवश्यकता एक संयुक्त और संवेदनशील दृष्टिकोण की है।
एक सभ्य समाज के रूप में हमारी यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बेटी ऐसी भयावह त्रासदी का शिकार न बने। न्याय की प्रक्रिया तेज हो, अपराधियों को कठोरतम दंड मिले और सबसे महत्वपूर्ण, समाज में एक ऐसा माहौल बने जहाँ हर बच्ची सुरक्षित महसूस करे, बिना किसी डर के अपने सपनों को पूरा कर सके। यह तभी संभव होगा जब हम “बेटी बचाओ” को सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक जीवन शैली और एक सामूहिक प्रतिबद्धता के रूप में अपनाएंगे।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें और फिर दिए गए उत्तरों और व्याख्या से अपने उत्तरों की जांच करें)
- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act), 2012 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को ‘बच्चा’ मानता है।
- यह अधिनियम यौन उत्पीड़न, यौन हमला और अश्लील साहित्य से संबंधित अपराधों को कवर करता है।
- इस अधिनियम के तहत बच्चों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान केवल 2019 के संशोधन द्वारा जोड़ा गया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल a और b
(B) केवल b और c
(C) केवल a और c
(D) a, b और c
उत्तर: (D)
व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। POCSO अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु को बच्चा मानता है, यौन उत्पीड़न सहित विभिन्न अपराधों को कवर करता है, और 2019 के संशोधन में गंभीर मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान जोड़ा गया। - निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय संविधान का/के अनुच्छेद महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को रोकता/रोकते है/हैं?
- अनुच्छेद 14
- अनुच्छेद 15(1)
- अनुच्छेद 21
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(A) केवल a
(B) केवल b
(C) केवल a और b
(D) a, b और c
उत्तर: (D)
व्याख्या: अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है। अनुच्छेद 15(1) धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है, जिसमें गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार भी शामिल है, जो महिलाओं के लिए यौन हिंसा से मुक्ति का अधिकार भी सुनिश्चित करता है। - निर्भया फंड के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत एक गैर-व्यपगत कोष है।
- वन-स्टॉप सेंटर योजना को इसी फंड से वित्त पोषित किया जाता है।
- इसका उद्देश्य महिला सुरक्षा से संबंधित विभिन्न योजनाओं को लागू करना है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल a और b
(B) केवल b और c
(C) केवल a और c
(D) a, b और c
उत्तर: (D)
व्याख्या: निर्भया फंड महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत एक गैर-व्यपगत कोष है, जिसका उपयोग महिला सुरक्षा से संबंधित विभिन्न योजनाओं, जैसे वन-स्टॉप सेंटर को वित्त पोषित करने के लिए किया जाता है। तीनों कथन सही हैं। - ‘विशाखा दिशानिर्देश’ निम्नलिखित में से किससे संबंधित हैं?
(A) बाल श्रम निषेध
(B) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न
(C) महिला आरक्षण
(D) दहेज प्रथा पर रोक
उत्तर: (B)
व्याख्या: विशाखा दिशानिर्देश 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए जारी किए गए थे, जिसके आधार पर बाद में POSH अधिनियम, 2013 बनाया गया। - राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह एक संवैधानिक निकाय है।
- इसका मुख्य कार्य महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा करना है।
- यह महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच कर सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(A) केवल a और b
(B) केवल b और c
(C) केवल a और c
(D) a, b और c
उत्तर: (B)
व्याख्या: राष्ट्रीय महिला आयोग एक वैधानिक निकाय है, संवैधानिक नहीं (यह संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है)। बाकी दोनों कथन सही हैं। - भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 किससे संबंधित है?
(A) बलात्कार
(B) महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग
(C) दहेज हत्या
(D) अपहरण
उत्तर: (B)
व्याख्या: IPC की धारा 354 महिला की गरिमा को भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल के प्रयोग से संबंधित है। बलात्कार धारा 376 के तहत आता है। - निम्नलिखित में से कौन-सी पहल भारत में महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण से संबंधित है/हैं?
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
- वन-स्टॉप सेंटर
- महिला पुलिस स्वयंसेवक योजना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(A) केवल a और b
(B) केवल b और c
(C) केवल a और c
(D) a, b और c
उत्तर: (D)
व्याख्या: तीनों पहलें भारत में महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण से संबंधित हैं। - POCSO अधिनियम की कौन-सी विशेषता इसे बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में विशेष रूप से प्रभावी बनाती है?
(A) यह केवल शारीरिक उत्पीड़न को कवर करता है।
(B) यह बच्चे के सर्वोत्तम हित को सर्वोपरि रखता है और बाल-मैत्रीपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करता है।
(C) यह केवल 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर लागू होता है।
(D) यह केवल लैंगिक भेदभाव को संबोधित करता है।
उत्तर: (B)
व्याख्या: POCSO अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह बच्चे के सर्वोत्तम हित को सर्वोपरि रखता है और एक बाल-मैत्रीपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया पर जोर देता है। - आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान क्या है?
(A) कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को अपराध घोषित करना।
(B) 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान।
(C) घरेलू हिंसा को अपराध घोषित करना।
(D) यौन उत्पीड़न के सभी मामलों को फास्ट-ट्रैक अदालतों में स्थानांतरित करना अनिवार्य करना।
उत्तर: (B)
व्याख्या: आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड तक का प्रावधान किया। - निम्नलिखित में से कौन-सा तंत्र हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही छत के नीचे चिकित्सा, कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है?
(A) राष्ट्रीय महिला आयोग
(B) महिला पुलिस स्टेशन
(C) वन-स्टॉप सेंटर
(D) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
उत्तर: (C)
व्याख्या: वन-स्टॉप सेंटर (OSC) विशेष रूप से हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही छत के नीचे विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- ओडिशा में हाल ही में घटी यौन उत्पीड़न की घटना के राजनीतिकरण की प्रवृत्ति का विश्लेषण कीजिए। क्या राजनीतिक हस्तक्षेप आपराधिक न्याय प्रणाली को बाधित करता है? आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- भारत में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों के सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों का विश्लेषण कीजिए। इन अपराधों को रोकने के लिए कानूनी प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार में किन मौलिक परिवर्तनों की आवश्यकता है?
- भारत में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढाँचा पर्याप्त है, फिर भी ऐसी घटनाएँ क्यों बार-बार होती हैं? इसकी चुनौतियों की पहचान कीजिए और ‘आगे की राह’ के रूप में ठोस उपाय सुझाइए।
- “नैतिक प्रशासन के लिए संवेदनशीलता और जवाबदेही आवश्यक है।” ओडिशा में हाल की घटना के संदर्भ में, महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकारी मशीनरी और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।