आगस्त कॉम्ट
(AUGUSTE COMTE 1798 – 1857 )
आगस्त कॉम्ट ने समाज के वैज्ञानिक अध्ययन से सम्बन्धित जो विचार प्रति पादित किये , उन पर कान्त ( Kant ) के विचारों का एक स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है । इसके अतिरिक्त , आगस्त कॉम्ट के चिन्तन पर सेन्ट साइमन के प्रभाव की भी अवहेलना नहीं की जा सकती । इसके पश्चात भी यह सच है कि कॉम्ट के समाजशास्त्रीय विचार एक बड़ी सीमा तक फ्रांस के मानवतावादी विचारों से प्रभावित हुए । फ्रांस की क्रान्ति ने जिन तत्कालीन सामाजिक , राजनैतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को जन्म दिया , वे एक नयी मानवतावादी विचारधारा से प्रभावित थीं तथा यही दशाएँ कॉम्ट के चिन्तन का एक दृढ़ आधार सिद्ध हुयीं । वास्तव में , उन्नीसवीं सदी को वैज्ञानिकता , मानवतावाद और प्रजातन्त्रको जन्म देने वाली सदी के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । इस सदी के प्रथम सामाजिक विचारक के रूप में आगस्त कॉम्ट का फ्रांस की तत्कालीन परिस्थितियों से प्रभावित होना स्वाभाविक था । सम्भवतः यही कारण है कि कॉम्ट वे पहले विचारक हैं जिन्होंने सामाजिक चिन्तन में वैज्ञानिकता का समावेश करने का अथक प्रयास किया । उन्होंने न केवल समाज के वैज्ञानिक अध्ययन को ‘ समाजशास्त्र ‘ का नाम दिया बल्कि विज्ञानों के संस्तरण ‘ जैसे सिद्धान्त का प्रतिपादन करके समाजशास्त्र के वास्तविक महत्त्व को भी स्पष्ट किया । कॉम्ट ने पहली बार सामाजिक चिन्तन के इतिहास को एक नया मोड़ देते हुए समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धति का उपयोग किया ।
सामाजिक घटनाओं के व्यवस्थित अध्ययन की नींव डालने में फ्रांस के दार्शनिक आगस्त कॉम्ट का नाम सर्वोपरि है कॉम्ट वह पहले विचारक थे जिन्होंने सामाजिक चिन्तन को एक व्यवस्थित क्रम बद्धता में संयोजित करके समाजशास्त्रीय चिन्तन की परम्परा आरम्भ की । यह सच है कि अपने इसी योगदान के कारण आगस्त कॉम्ट को ‘ समाजशास्त्र के जनक ‘ ( Father of Sociology ) के रूप में स्वीकार किया जाता है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि कॉम्ट से पूर्व सामाजिक चिन्तन की कोई परम्परा विद्यमान नहीं थी, वास्तविकता यह है कि भारत , बेबीलोन तथा मिस्र में हजारों वर्ष पहले ही अनेक अध्येताओं के द्वारा व्यक्ति तथा समाज के सम्बन्धों , सामाजिक श्रम – विभाजन तथा अन्तर्वैयक्तिक । सम्बन्धों की विस्तृत विवेचना के द्वारा सामाजिक व्यवस्था को एक विशेष स्वरूप देने के प्रयत्न किये गये थे ।
जहाँ तक यूरोप का प्रश्न है , टी० के० पेनिमेन ( T . K . Penniman ) ने लिखा है कि ईसा से लगभग 400 वर्ष पहले हेरोडोटस ( Herodotus 484 – 425 B . C . ) ने समाज तथा व्यक्ति के सम्बन्धों पर एक सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया । हेरोडोटस के पश्चात् उन्हीं के चिन्तन की परम्परा में डेमोक्रिटस ( Democritus 460 – 370 B . C . ) , प्रोटेगोरस ( Protegoras 480 – 410 B . C . ) , सुकरात ( Socrates 470 – 399 B . C . ) , प्लेटो ( Plato 427 – 347 B . C . ) तथा अरस्तू ( Aristotle 348 – 322 B . C . ) ने भी व्यक्ति , समाज , राज्य तथा परिवार के पारस्परिक सम्बन्धों . की विवेचना प्रस्तुत की । इतना अवश्य है कि ईसा के जन्म के पश्चात् लगभग 1 , 400 वर्ष का एक लम्बा युग ऐसा रहा जिसमें सामा जिक चिन्तन के क्षेत्र में कोई विद्वान अपना स्मरणीय प्रभाव नहीं छोड़ सका । पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य में कुस्तुनतूनिया की पराजय के पश्चात् यूनान के बहुत – से दार्शनिक विचारक यूरोप की ओर पलायन करने लगे । इनमें से अधिकांश दार्शनिकों ने सबसे पहले इटली में प्रवेश किया जिसके फलस्वरूप उस समय इंटली में एक प्रकार की बौद्धिक क्रान्ति जन्म लेने लगी । सम्भवतः यही कारण था कि यूरोप में ‘ पूनर्जागरण ‘ इटली से ही आरम्भ हुआ । इसके पश्चात् ही जर्मनी , फ्रांस तथा इंग्लैण्ड में सामाजिक चिन्तन को स्वस्थ रूप मिलना सम्भव हो सका । इस काल में यरोप के देशों में हॉब्स ‘ , लॉक तथा रूसो जैसे महान विचारक उत्पन्न हुए जिनके विचारों में जनतन्त्र , मानवतावाद , वैयक्तिक स्वतन्त्रता तथा समानता के सिद्धान्तों की एक स्पष्ट झलक दिखाई देने लगी सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में थॉमस हॉब्स ( Thomas Hobbs ) ने सामाजिक चिन्तन के क्षेत्र में एक नवीन विचारधारा प्रस्तुत करते हए यह स्पष्ट किया कि समाज का निर्माण सामाजिक सम्पर्क से ही होता है । इसी परम्परा में बाद में , जॉन लॉक , ह्यम ( Hume ) तथा कान्त ( Kant ) आदि अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत करना आरम्भ किये ।
जीवन एवं कृतियों
( Life and Works )
समाजशास्त्र के जनक आगस्त कॉम्ट का जन्म दक्षिण फ्रांस के मान्टपेलियर ( Montpillier ) नामक स्थान में 19 जनवरी , सन् 1798 में हुआ था । यह समय फ्रांस की उथल – पुथल भरी राजनीतिक , सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का काल था । फ्रांस की क्रान्ति के अध्येताओं का कथन है कि उस समय निरंकुश सत्ता और बढ़ती हुई जनशक्ति के बीच हिंसात्मक संघर्ष होने के कारण फ्रांस का सम्पूर्ण जन – जीवन अस्त – व्यस्त होने लगा था ।
फ्रांस की क्रान्ति सन् 1789 में हुई और उसके पश्चात् उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही नैपोलियन की तानाशाही का उदय हआ । इस प्रकार कॉस्ट के बौद्धिक जीवन का प्रारम्भिक काल नैपोलियन की बढ़ती हुई सत्ता का काल था । स्पष्ट है कि आगस्त कॉम्ट ने जिन सामाजिक – राजनीतिक परिस्थितियों में जन्म लिया और जिस काल में उन्होंने अपना सामाजिक चिन्तन आरम्भ किया , बह काल मुख्यतः अराजकता और सैन्य – शक्ति के विस्तार का काल था । अगस्त कॉम्ट का जन्म एक कैथोलिक परिवार में हुआ था । कॉम्ट का पूरा नाम इसीडोर आगस्त मेरी फ्रा – कोयस जेवियर कॉम्ट ( Isidore Auguste Marie Francois Xavier Comte ) था । यद्यपि कॉम्ट के पिता राजस्व कर – विभाग में एक छोटे से अधिकारी थे लेकिन कॉम्ट में बचपन से ही ( लगभग 9 वर्ष की आयु से ) एक बहुमुखी बौद्धिक प्रतिभा परिलक्षित होने लगी थी । एक ओर कॉम्ट के शिक्षक उन पर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और अनुशासनहीन आचरण का आरोप लगाते थे जबकि कॉम्ट के सहपाठी उनकी बौद्धिक क्षमताओं और स्थापित सत्ता के प्रति उनके क्रान्ति कारी रुख के प्रशंसक थे ।
कॉम्ट के जीवन का यह प्रारम्भिक काल पूर्व मान्यताओं के विरोध का काल था जिसका स्पष्ट रूप परिवार तथा स्कूल दोनों ही स्थानों पर उनके परम्परा – विरोधी आचरणों में दिखलायी देने लगा था । कॉम्द के पिता रूढ़िवादी विचारों के रोमन कैथोलिक थे जबकि कॉस्ट कैथोलिक मत की आलोचना किया करते थे । एक शासकीय अधिकारी होने के कारण कॉम्ट के पिता राजभक्ति के समर्थक थे जबकि कॉम्ट लोकतान्त्रिक प्रणाली एवं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को महत्त्वपूर्ण मानते थे । फ्रांस की क्रान्ति से लोकतन्त्र , व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और मानवतावादी विचारों को जो प्रोत्साहन मिला था , कॉम्ट उन्हीं विचारों पर अपने चिन्तन को 13 वर्ष की अल्पायु से ही विकसित करने लगे । प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात् 19 वर्ष की आयु में कॉम्ट का सम्पर्क तत्कालीन प्रमुख विचारक सेन्ट साइमन ( 1760 – 1825 ) से हुआ जो उस काल के सर्वाधिक चचित विचारक थे । कॉन्ट और उनका सम्पर्क 1818 से 1824 तक बना रहा । यह अवश्य है कि कॉम्ट के चिन्तन को प्रभावित करने में सेन्ट साइमन की एक प्रमुख भूमिका रही , किन्तु यदि यह कहा जाये कि कॉम्ट ने जो कछ भी लिखा वह केवल सेन्ट साइमन की ही देन थी , तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता । सच तो यह है कि सेन्ट साइमन के विचारों में वह बैज्ञानिकता तथा क्रमबद्धता नहीं थी जो कॉम्ट जशास्त्र को प्रदान की । सेन्ट साइमन फ्रांसीसी कुलीनतन्त्र के सीमान्त सदस्य – मार इनकी प्रतिष्ठा मुख्यतः एक कल्पनावादी समाजवादी ( Utopian socialist ) के रूप तक ही सीमित रही । कॉम्ट और सेन्ट साइमन के घनिष्ठ सम्बन्धों की समाप्ति सन् 1824 में तब हुई जब कॉम्ट ने सेन्ट साइमन के कुछ दूसरे अनुयायियों पर यह आरोप लगाया कि वे कॉम्ट के विचारों को सेन्ट ‘ साइमन के नाम से प्रचारित कर रहे है । इसके अतिरिक्त , कॉम्ट ने ‘ पाजिटिव फिजिक ‘ ( Positive Physic ) नामक अपने लेख के द्वारा भी सेन्ट साइमन के उन विचारों की आलोचना करना आरम्भ कर दी जो अतिक्रान्तिकारिता अथवा तीन परिवर्तन के पक्ष में थे । यहीं से इन दोनों विचारकों के रास्ते एक – दूसरे से अलग हो गए । फरवरी सन् 1825 में कॉम्ट का विवाह कारलोनी मेसिन ( Caroline Massin ) से हुआ । इस समय तक कॉम्ट अपने आपको समाज में एक बौद्धिक विचारक के रूप में प्रतिष्ठापित नहीं कर पाये थे । साथ ही अनेक भ्रमपूर्ण विवादों के कारण कॉम्ट का अपनी पत्नी से भी विवाह – विच्छेद हो गया । यह काल कॉम्ट के जीवन का एक दुःखद काल था । इसके पश्चात् भी कॉम्ट ने अपने आपको एक बौद्धिक विचारक के रूप में स्थापित करने हेतु एक शोध पत्रिका ‘ प्रोडक्टर ‘ ( Pro ductur ) में विचारोत्तेजक लेख लिखने प्रारम्भ किये । इसी क्रम में उन्होंने पाजिटिव फिजिक पर एक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किया । धीरे – धीरे कॉम्ट द्वारा प्रस्तुत यह पाठ्यक्रम दक्षिण फ्रांस में लोकप्रिय होता चला गया जिसके परिणामस्वरूप कॉम्ट के अनुयायियों की संख्या दिन – प्रतिदिन बढ़ने लगी । कॉम्ट ने अपने जीवन में संघर्ष करते हुए अनेक ग्रन्थों की रचना की । उनकी मृत्यु 5 सितम्बर , 1857 को हुई किन्तु उनकी रचनायें आज भी समाजशास्त्र की प्रमुख निधि हैं ।
कृतियाँ
( Works )
कॉम्ट ने अपने संघर्षपूर्ण बौद्धिक जीवन में जिन ग्रन्यों की रचना की वे ग्रन्थ समाजशास्त्र को एक नवीन विज्ञान के रूप में प्रतिस्थापित करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए । इनमें से कॉन्ट की कुछ प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं :
( 1 ) ए प्लान ऑफ द साइन्टिफिक आपरेशन्स नैसेसरी फॉर रीआर्गेनाइजिग सोसायटी ( A Plan of the Scientific Operations Necessary for Re organising Society ) – इस पुस्तक का प्रकाशन सन् 1822 में हआ जिसमें कॉम्ट ने समाज को पुनर्गठित एवं संचालित करने हेतु कुछ वैज्ञानिक योजनाआ का चर्चा की है । इस पुस्तक में कॉम्ट ने अपने समय के समाज की संरचना आदि का उल्लेख भी किया है । इसके प्रकाशन के पश्चात कॉम्ट ने यह अनुभव किया कि केवल सामाजिक संरचना के पुनर्गठन की योजना ही पर्याप्त नहीं है अपितु सामाजिक 13 . कल्पनावादी विचारकों में सेट
संरचना के पुनर्गठन के सन्दर्भ में सामाजिक नीति का व्यवस्थित परीक्षण भी अनिवार्य है । इस अनिवार्यता की पूर्ति हेतु कॉम्ट ने दूसरे ग्रन्थ की रचना की ।
( 2 ) सामाजिक नीति अथवा सिस्टम ऑफ पाजिटिव पालिटी ( System of Positive Polity ) – यह पुस्तक कॉम्ट के सम्पूर्ण चिन्तन की वैज्ञानिकता पर एक प्रश्न – चिन्ह लगा देती है क्योंकि कॉम्ट द्वारा लिखित यह ग्रन्थ आध्यात्मिक व नैतिक आदर्शों की आवश्यकता पर बल देता है । कॉम्ट ने इस पुस्तक में स्त्रियों से सम्बन्धित अपने विचारों को अत्यन्त उदार रूप में प्रस्तुत करते हुए स्त्रियों के दैविक गुणों को अतिवादी रूप में स्पष्ट किया है । इस प्रकार कॉम्ट ने अपनी प्रथम पुस्तक में जो विचार प्रस्तुत किये , इस दूसरी पुस्तक के विचारों से उन्होंने स्वयं ही अपने वैज्ञानिक चिन्तन पर एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया । कॉम्ट के वैज्ञानिक चिन्तन में आध्यात्मिकता का यह प्रवेश उनके जीवन की एक घटना से ही सम्बद्ध माना जाता है । सन् 1845 में कॉम्ट का परिचय एक महिला श्रीमती डी वॉक्स ( Mrs . de Vaux ) से हआ । 1846 में ही श्रीमती डी वॉक्स की मृत्यु हो जाने के कारण यह सम्पर्क तो बहुत अल्पकालिक रहा किन्तु कॉम्ट के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित अवश्य कर गया । श्रीमती डी वॉक्स के आध्यात्मिक गुणों से अभिभूत होकर ही कॉम्ट ने इस ग्रन्थ में लिखा कि “ सामाजिक पुनर्गठन या पुननिर्माण में आध्यात्मिक तथा नैतिक आदर्शो का समायोजन अत्यन्त अनिवार्य है । ” इस पुस्तक का प्रकाशन 1851 से 1854 के बीच चार खण्डों में हुआ । इसकी आलोचना करते हुए जॉन स्टुअर्ट मिल ने लिखा कि इस पुस्तक में कॉम्ट ने अपने वैज्ञानिक चिन्तन की स्वयं ही निर्ममता से हत्या कर दी ।
( 3 ) ओप्सक्यूल्स ( Opuscules ) – कॉम्ट द्वारा लिखित यह पुस्तक उनके पूर्वोक्त विचारों की पुष्टि से ही सम्बन्धित है जिसका प्रकाशन सिस्टम ऑफ पाजिटिव पालिटी ‘ के चार अध्यायों के बाद हुआ । इस पुस्तक में उन्होंने यूरोपीय समाज के इतिहास में पायी जाने वाली गतिशीलता का विश्लेषण प्रस्तुत किया है । इस पुस्तक में कॉम्ट ने पूर्ववर्ती समाज और मध्यकालीन समाज तथा आधुनिक समाज का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए आध्यात्मवादी समाज और सैनिक सत्ता आदि का उल्लेख किया है ।
( 4 ) द कोर्स ऑफ पाजिटिव फिलासफी ( The Course of Positives Philosophy ) – कॉम्ट द्वारा लिखित इस पुस्तक का प्रकाशन सन् 1830 से 18422 के बीच 6 खण्डों में हुआ । इस पुस्तक में कॉम्ट ने अपने वैज्ञानिक चिन्तन का उल्लेख करते हुए प्रत्यक्षवादी विश्लेषण के रूप में समाजशास्त्र के लिए एक नये पद्धतिशास्त्र को विकसित किया । इसी पुस्तक में कॉम्ट ने अन्य विज्ञानों के सन्दर्भ में समाजशास्त्र की प्रस्थिति को स्पष्ट किया । सच तो यह है कि समाजशास्त्र से सम्बन्धित कॉम्ट के सभी महत्त्वपूर्ण विचार इसी पुस्तक में संग्रहीत हैं । उन्होंने इस पुस्तक में प्रगति
का अधिक गहन अर्थ व्यक्त करते हुए प्रगति की सार्वभौमिक उपयोगिता को महत्व प्रदान किया । ओप्सक्यूल्स नामक पुस्तक में वर्णित मानव उद्विकास और विज्ञानों के संस्तरण का परिष्कृत रूप भी वास्तव में ‘ पाजिटिव फिलासफी ‘ के विभिन्न खण्डों में ही प्रस्तुत किया गया है । यही कारण है कि इस पुस्तक को समाजशास्त्र के लिए कॉम्ट के सर्वोत्तम योगदान के रूप में स्वीकार किया जाता है ।
कॉम्ट की दृष्टि में समाजशास्त्र
( Sociology as Perceived by Comte )
सामाजिक चिन्तन की दीर्घकालिक परम्परा को सर्वप्रथम एक व्यवस्थित और क्रमबद्ध विषय के रूप में प्रस्तुत करने के कारण ही कॉम्ट को समाजशास्त्र के जनक के रूप में स्वीकार किया जाता है । कॉम्ट ने तार्किक दृष्टिकोण को उपयोग में लाते हुए बतलाया कि जब प्राणियों के अध्ययन करने वाले शास्त्र को प्राणी विज्ञान या खगोल का अध्ययन करने वाले विज्ञान को खगोलशास्त्र कहा जा सकता है तब समाज के सम्पूर्ण अंगों का अध्ययन करने वाले शास्त्र को समाजशास्त्र कहना ही अधिक युक्तिसंगत होगा । सामाजिक विचारों का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले विज्ञान को पहले कॉम्ट ने सामाजिक भौतिकी ( Social Physics ) का नाम दिया किन्तु बाद में उन्होंने सन् 1838 में इसे ‘ समाजशास्त्र ‘ ( Sociology ) नाम से सम्बोधित किया जो नाम अब पूर्णतया प्रतिष्ठित हो चुका है । ‘ समाजशास्त्र ‘ विषय के उद्भव की आवश्यकता कॉम्ट बहुत लम्बे समय से महसूस कर रहे थे । उनका विचार था कि समाज के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों को धार्मिक एवं दार्शनिक चिन्तन से अलग करके एक नये विज्ञान के माध्यम से ही उनका व्यवस्थित अध्ययन किया जा सकता है । इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु उन्होंने ‘ समाजशास्त्र ‘ के नाम से एक नए वैज्ञानिक विषय को जन्म दिया । कॉम्ट ने समाज शास्त्र को जिस दृष्टिकोण से समझने और विकसित करने का प्रयास किया , उसे कॉम्ट के समाजशास्त्र सम्बन्धी अनेक विचारों की सहायता से समझा जा सकता है ।
जहाँ तक समाजशास्त्र को परिभाषित करने का प्रश्न है , एक संस्थापक के रूप में कॉम्ट को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा कॉम्ट ने जब सामाजिक चिन्तन के लिए सोशल फिजिक्स अथवा ‘ सामाजिक भौतिकी ‘ शब्द का प्रयोग किया तब उनके समकालीन विचारकों और वैज्ञानिकों ने उनकी इसलिए आलोचना की । क्योंकि इससे पहले बेल्जियम के वैज्ञानिक क्वेटलेट ( Quetelet ) ने सांख्यिकीय अध्ययनों के लिए सामाजिक भौतिकी या सोशल फिजिक्स शब्द का प्रयोग कर लिया था । इसीलिए कॉम्ट ने ‘ सामाजिक भौतिकी ‘ नाम को छोडकर लेटिन शब्द सोसियस ( Socius ) और ग्रीक शब्द लोगस ( Logus ) की संधि के आधार पर सामाजिक चिन्तन के लिए सोशियोलॉजी ‘ ( Sociology ) शब्द का प्रयोग किया । समाजशास्त्र को परिभाषित करते हए कॉम्ट ने लिखा है कि ” समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है । ” इस परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कॉम्ट , समाजशास्त्र को सामाजिक व्यवस्था और उसमें होने वाली प्रगति के आधार पर स्पष्ट करना चाहते थे । दूसरे शब्दों में , यह भी कहा जा सकता है कि कॉस्ट के लिए समाजशास्त्र का अध्ययन – क्षेत्र सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत आने _ _ वाले तत्त्वों या अंगों और उनकी प्रगति तक सीमित है । समाजशास्त्र की उक्त परिभाषा के आधार पर समाजशास्त्र के उस अध्ययन – क्षेत्र की व्याख्या नहीं की जा सकती जो कॉम्ट के शेष चिन्तन से स्पष्ट होता है । अतः प्रस्तुत विवेचन में उन पक्षों को संक्षेप में स्पष्ट करना आवश्यक है जो कॉम्ट के मतानुसार समाजशास्त्र के अध्ययन – क्षेत्र से सम्बद्ध हैं । कॉम्ट ने अपनी पुस्तक ‘ पाजिटिव फिलासफी ( Positive Philosophy ) में समाजशास्त्र के अध्ययन – क्षेत्र की व्याख्या करते हुए लिखा है कि ” एक नये विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र मानवीय बौद्धिकता की सम्पूर्णता तथा समय अथवा काल के परिप्रेक्ष्य में उससे उत्पन्न होने वाली सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन है । ” कॉम्ट के इस कथन से स्पष्ट होता है कि व्यक्तियों की बौद्धिकता के विभिन्न पक्ष और व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों से जुड़ी सामाजिक क्रियाएँ ही समाजशास्त्र के अध्ययन की – वास्तविक विषय – वस्तु है । कॉम्ट के इस विचार की सराहना करते हुए मैक्स वेबर ( Max Weber ) ने लिखा है कि ” आगस्त कॉम्ट ही वे प्रथम विचारक हैं जिन्होंने समाजशास्त्र को मानवीय क्रियाओं के एकमात्र विज्ञान के रूप में स्वीकार किया है । ”
अपने विचारों को बाद में और अधिक स्पष्ट करते हुए कॉम्ट ने लिखा कि “ समाज शास्त्र मात्र मानवीय बौद्धिकता के अध्ययन का ही विज्ञान नहीं है बल्कि यह मानवीय मस्तिष्क द्वारा संचालित क्रियाओं या गतिविधियों के संचित परिणामों ( Cumulative results ) का अध्ययन है । इस कथन से पुनः यह स्पष्ट हो जाता है कि कॉम्ट समाजशास्त्र को मानवीय क्रियाओं के विज्ञान के रूप में विकसित करना चाहते थे । समाजशास्त्र के अध्ययन – क्षेत्र को अधिक विकसित करते हुए कॉम्ट ने मस्तिष्क और समाज ( Mind and Society ) के उद्विकास सम्बन्धी अध्ययन को भी समाज शास्त्र के अध्ययन – क्षेत्र में समाहित किया । इस सम्बन्ध में समाजशास्त्र की भूमिका को स्पष्ट करते हए कॉम्ट ने लिखा , ” समाजशास्त्र का प्राथमिक लक्ष्य मानव प्रजाति के उद्भव की प्रारम्भिक अवस्थाओं से लेकर वर्तमान यूरोपीय सभ्यता के विकास की अवस्थाओं की खोज करना है । इस कथन के आधार पर यह कहा जा सकता कॉम्ट ने समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में समाज के विकास के अध्ययन समाहित किया है । इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र की प्रकृति के सन्दर्भ में को विचार प्रस्तुत किये उन्हें कॉम्ट द्वारा विश्लेषित कुछ अन्य अवधारणाओं की सहायता से समझा जा सकता है ।