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अनुसूची

अनुसूची

( Schedule )

अनुसूचियों ( Schedunes ) तथ्य – सामग्री को संकलित करने की एक और प्रविधि है – वह है अनुसूचियों का प्रयोग । अनुसूची प्रश्नों की एक लिखित सूची है जो अध्ययनकर्ता द्वारा अध्ययन विषय को ध्यान में रख कर बनाई जाती है । इसमें अनुसंधानकर्ता स्वयं घर – घर जाकर प्रश्नों के उत्तर अनुसूचियों द्वारा प्राप्त करता है । एम . एच . गोपाल के शब्दों में , ” अनूसूची एक ऐसी प्रविधि है जिसे विशेष रूप से सर्वेक्षण प्रणाली के अन्तर्गत क्षेत्रीय सामग्री एकत्र करने में प्रयोग किया जाता है । ”  यह सर्वाधिक प्रचलित प्रविधि है क्योंकि इसका राथार्थ एवं वास्तविक आँकड़ों को प्रत्यक्ष रूप में संकलन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है । यह प्रश्नों की एक सूची है जिसे अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता के पास लेकर जाता है तथा उससे प्रश्नों के उत्तर पूछ कर स्वयं उन्हें अनुसूची में अंकित करता है । क्योंकि इसमें साक्षात्कार तथा निरीक्षण या अवलोकन पूरक ( सहायक ) प्रविधियाँ का कार्य करती हैं , अतः यह अधिक विश्वसनीय आँकड़ों के संकलन में सहायक है ।

भारतीय समाज में हो रहे सामाजिक अनुसन्धानों में इस प्रविधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है क्योंकि के द्वारा शिक्षित तथा अशिक्षित दोनों प्रकार के सूचनादाताओं से आँकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं । अनुसूची प्रश्नों की एक सूची है अर्थात् यह अनुसन्धान समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करने के लिए बनाए गए प्रश्नों की एक तालिका है जिसे अनुसन्धानकर्ता प्रत्येक सूचनादाता के पास लेकर जाता है तथा साक्षात्कार द्वारा उन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके उन्हें स्वयं उस प्रपत्र पर अंकित करता है , जिस पर कि प्रश्न अंकित है । इसमें अनुसन्धानकर्ता को प्रत्येक सूचनादाता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करना पड़ता प्रायः लोग अनुसूची तथा प्रश्नावली ( Questionnaire ) को एक ही समझ लेते हैं क्योंकि प्रश्नावली भी प्रश्नों की एक सूची है । परन्तु प्रश्नावली को लेकर अनुसन्धानकर्ता स्वयं सूचनादाता के पास नहीं जाता अपितु इसे डाक द्वारा भेजता है जिसके कारण इसे डाक प्रश्नावली ( Mailed questionnarire ) कहते हैं ।

यदि सूचनादाता एक ही स्थान पर उपलब्ध हैं तो अनुसन्धानकर्ता प्रत्येक सूचनादाता को एक – एक प्रश्नावली दे देता है जिसका उत्तर स्वयं सूचनादाता भरते हैं । अतः अनुसूची तथा प्रश्नावली एक ही नहीं हैं वरन् इनमें उत्तर प्राप्त करने के ढंग तथा उत्तरों को अंकित करने की दृष्टि से मूलभूत अन्तर हैं । प्रमुख विद्वानों ने अनुसूची की परिभाषाएँ निम्नलिखित शब्दों में दी हैं

 गुडे तथा हॉट – “ अनुसूची प्रायः ऐसे प्रश्नों के समूह का नाम है जिन्हें एक साक्षात्कारकर्ता अन्य व्यक्ति से आमने – सामने की स्थिति में पूछता है तथा उनके उत्तर स्वयं भरता है ।

 

 गुडे तथा हॉट्ट के अनुसार , ” अनसूची उन प्रश्नों के एक समूह का नाम है जो साक्षात्कारकर्ता द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति से आमने – सामने की स्थिति में पूछे और भरे जाते हैं । ” बोगाईस के शब्दों में , ” अनुसूची तथ्यों को प्राप्त करने के लिए एक औपचारिक पद्धति का प्रतिनिधित्व करती है जो वैषयिक स्वरूप में है और जो सरलता से पता लगाने योग्य है । अनुसूची , अन्वेषणकर्ता स्वयं द्वारा भरी जाती है । “

 

 सी . ए . मोजर के अनुसार , ” चूकि यह साक्षात्कारकर्ताओं द्वारा संचालित होती है , यह स्पष्टतया एक औपचारिक प्रलेख हो सकती है जिसमें आकर्षण की बजाय क्षेत्र संचालन की कुशलता मे कार्यशील विचार है । “

 

 ” बोगार्डस – ” अनुसूची तथ्यों को एकत्रित करने के लिए एक औपचारिक प्रणाली का प्रतिनिधित्व करती है जो वस्तुनिष्ठ रूप में है एवं आसानी से प्रत्यक्ष अनुभव किए जाने योग्य है । . . . . . अनुसूची स्वयं अनुसन्धानकर्ता द्वारा भरी जाती है । “

 

पी . वी . यंग – “ अनुसूची औपचारिक तथा मानक अनुसन्धानों में प्रयोग किए जाने वाला एक ऐसा उपकरण है जिसका प्रमुख उद्देश्य बहुस्तरीय गणनात्मक आँकड़े संकलन करने में सहायता प्रदान करना है ।

 

” मेकोर्मिक – “ अनुसूची प्रश्नों की एक सूची से अधिक कुछ भी नहीं है जिनका उपकल्पना या उपकल्पनाओं की जाँच के लिए उत्तर देना आवश्यक दिखाई देता है । ” उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि अनुसूची एक ऐसा प्रपत्र या फार्म है जिस पर अनुसन्धान की समस्या से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्नों को निश्चित क्रम में लिखा हआ होता है तथा जिसे लेकर अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता के पास जाता है और औपचारिक साक्षात्कार द्वारा इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके इनके उत्तर स्वयं भरता है ।

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अनुसूची की विशेषताएँ

( Characteristics of Schedule )

 

 अनुसूची की परिभाषाओं से एक अच्छी अनुसूची की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं

 

 

  1. प्रश्नों की सूची ( Proper sequence of questions ) – अनुसूची एक प्रपत्र या फॉर्म है . जिस पर अनुसन्धान समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों को लिखा गया ( छपवाया ) होता है अर्थात यह प्रश्नों की एक सूची है । प्रश्नों की संख्या कितनी होगी . यह अनुसन्धान समस्या तथा सूचनादाताओं पर निर्भर करता है ।

 

2.प्रत्यक्ष सम्पर्क ( Easy and clear questions ) – अनुसूची में अनुसन्धानकर्ता ( या साक्षात्कारकर्ता ) को स्वयं प्रत्येक सूचनादाता से सम्पर्क स्थापित करके ही प्रश्नों को औपचारिक रूप से पूछ कर उनके उत्तर प्राप्त करने पड़ते हैं ।

 

 ( 3 ) प्रमुख क्षेत्रीय अनुसन्धान प्रविधि ( Limited size ) – अनुसूची क्षेत्रीय अनुसन्धानों में सूचना संकलन करने की एक प्रमुख प्रविधि है तथा अधिकांश सामाजिक अनुसन्धानों में तथ्यों का संकलन इसी प्रविधि द्वारा किया जाता है ।

 

 ( 4 ) अन्य प्रविधियों का प्रयोग ( Accurate communication ) – अनुसूची के अन्तर्गत दो अन्य प्रविधियाँ – निरीक्षण या अवलोकन तथा साक्षात्कार – सहायक अथवा पूरक प्रविधियों के रूप में प्रयोग की जाती हैं । अतः इसमें अवलोकन तथा साक्षात्कार की मुख्य विशेषताएँ भी पाई जाती हैं । एक प्रकार से इसमें तीन प्रविधियों का एक साथ प्रयोग होता है ।

 

  1. प्रश्नों का उचित क्रम ( Proper sequence of questions ) – एक अच्छी अनुसूची की पहली विशेषता प्रश्नों का उचित क्रम है । इतने क्रमबद्ध रूप से प्रश्नों को लिखा जाता है कि प्रश्नों में आन्तरिक सम्बद्धता ( Internal consistency ) आ जाती है अर्थात प्रश्न एक – दूसरे से जुड़े होते हैं जिससे कि सूचनादाता को यह अनुभव हो कि समस्या से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं के बारे में व्यवस्थित रूप से जानकारी प्राप्त की जा रही है ।

 

  1. सरल एवं स्पष्ट प्रश्न ( Easy and clear questions ) – एक अच्छी अनुसूची की दूसरी प्रमुख विशेषता प्रश्नों की इस प्रकार से रचना करना है कि वे सरल होने के साथ – साथ स्पष्ट भी हों ताकि सूचनादाता उन्हें अच्छी प्रकार से समझ सकें । यद्यपि इस प्रविधि में अनुसन्धानकर्ता स्वयं सूचनादाता के समक्ष रह कर ही प्रश्न पूछता है , फिर भी यह प्रयास किया जाना चाहिए कि सरल एवं स्पष्ट प्रश्नों का निर्माण किया जाए जिन्हें विभिन्न सूचनादाता एक ही अर्थ में समझ सकें ।

 

  1. सीमित आकार ( Limited size ) – प्रश्नों की संख्या कितनी होनी चाहिए यद्यपि यह समस्या की प्रकृति पर निर्भर करता है , फिर भी एक अच्छी अनुसूची का आकार सीमित होना चाहिए । केवल अनुसन्धान की समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों को ही इसमें सम्मिलित किया जाना चाहिए ।

 

  1. सही सन्देशवाहन ( Accurate communication ) – एक अच्छी अनुसूची में प्रश्नों की रचना इस प्रकार से करना अनिवार्य है जिससे कि सूचनादाता के मन में किसी प्रकार की गलत धारणा विकसित न हो और वह सही अर्थों में प्रश्नों को समझ सकें ।

 

  1. सही प्रत्युत्तर ( Accurate response ) – एक अच्छी अनुसूची की एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें प्रश्नों का निर्माण इस प्रकार से किया जाए कि उनसे केवल आवश्यक , उपयोगी एवं यथार्थ आँकड़े ही एकत्रित किए जा सकें ।
  2. क्रॉस – प्रश्नों की व्यवस्था ( Provision of cross – questions ) – एक अच्छी अनुसूची उसे कहा जाता है जिसमें समस्या से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं के बार म क्रॉस – प्रश्न पूछे जाने की व्यवस्था हो ताकि सूचनादाता द्वारा दी गई सूचना की जाच विभिन्न प्रश्नों के आधार पर ही की जा सके ।ओं पर प्रश्नों का लिखा अनुसूची का भौतिक स्वरूप ( Physical Features of a Schedule ) पर्यस्त विशेषताओं के अतिरिक्त अनुसूची की बाह्य आकृति अर्थात आकार . ग – रूप तथा मद्रण भी ठीक होना चाहिए । यद्यपि इसे अनसन्धानकर्ता स्वयं अपने पास रखता है फिर भी शिक्षित व्यक्ति हो सकता है एक बार इसे देखना चाहें । अतः अनुसूची का भौतिक स्वरूप इस प्रकार होना चाहिए

 

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अनुसूची के उद्देश्य

( Objectives of Schedule )

 

 

 1.प्रामाणिक अध्ययन ( Valid Study ) – प्रामाणिक उत्तर पाने के लिए , अनुसंधानकर्ता स्वयं व्यक्तिगत रूप में व्यक्तियों से सम्बन्ध स्थापित करता है । अनसंधानकर्ता वही उत्तर प्राप्त करने की कोशिश करता है जो उसकी दृष्टि में उपयोगी एवं सार्थक हैं । अतः उत्तरदाताओं को विभिन्न अर्थ लगाने का मौका नहीं | मिलता । इससे अध्ययन में प्रामाणिकता पाती है ।

  1. अनुपयोगी संकलन से बचाव ( Guard Against Useless Collection ) अनसूची का उद्देश्य विषय से सम्बन्धित प्रश्नों का क्रमबद्ध उत्तर प्राप्त करना होता है । अनुसूची के अभाव में निरर्थक बातों की जानकारी भी सम्भव होती है क्योंकि स्मरण शक्ति पर पूर्ण भरोसा नहीं किया जा सकता कि दिमाग में पहले से जो प्रश्न तय किए हैं , वे ही पूछे जाएंगे । अनुसूची में ऐसी कोई गलती नहीं हो सकती क्योंकि प्रश्न लिखिल व क्रमबद्ध है । अतः वह केवल सम्बन्धित तथ्यों को ही संकलित करेगा ।

 

  1. संख्यात्मक आंकड़ों के संकलन में उपयोगी ( Useful in Collecting Numerical Facts ) – यह प्रविधि संख्यात्मक सूचना NCES ) – यह प्रविधि संख्यात्मक सुचनामों एवं प्राँकड़ों को एकत्र करने में अधिक उपयोगी है । विचारात्मक सचनायों या भावनात्मक जानकारी के लिए यह प्रबिधि उपयुक्त नहीं है ।

 

  1. अवलोकन में सहायता प्रदान करना ( Helpful in observation ) – अनुसूची विशष रूप से अवलोकन अनसची ) का उद्देश्य अवलोकनकर्ता की निरीक्षण क्षमता को बढ़ाना तथा अवलोकन को अधिक वैज्ञानिक बनाना है क्योंकि यह प्रविधि वस्तुनिष्ठ अभिलेखन एवं अनिवा र्य सूचना संकलन करने में विशेष रूप से सहायता प्रदान करती को विभिन्न पहलुओं के बारे में अवलोकन का अवसर प्रदानकरके अध्ययन को अधिक विश्वसनीय बनाती है । अतः यह अवलोकन में निम्न प्रकार से योगदान प्रदान करती है ( i ) यह प्रविधि निरीक्षणकर्ता की अवलोकन क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्रदान करती है ; ( ii ) यह प्रविधि निरीक्षण को उद्देश्यों के अनुरूप बनाती है ; ( iii ) यह प्रविधि निरीक्षण को अधिक वस्तुनिष्ठ बनाती है ; तथा ( iv ) यह प्रविधि निरीक्षण परिणामों का प्रमापीकरण ( Standardization ) करने में सहायता प्रदान करती है ।
  2. अध्ययन को गहन एवं अधिक अर्थपूर्ण बनाना ( To make study inten sive and more meaningful ) – अनुसूची क्योंकि निरीक्षण एवं साक्षात्कार प्रविधियों को भी अपने में सन्निहित करती है । अतः यह अध्ययन को अन्य प्रविधियों की अपेक्षा अधिक गहन एवं अर्थपूर्ण बनाने में सहायक है ।

 

  1. मूल्यांकन अध्ययनों में सहायता प्रदान करना ( Helpful in evaluation studies ) – अनुसूची का उद्देश्य मूल्यांकन अध्ययनों में सहायता प्रदान करना है । इससे हम सूचनादाताओं के मतों , रायों , रुचियों , मनोवृत्तियों तथा विचारों में पाए जाने वाली भिन्नताओं एवं समानताओं का पता लगा सकते हैं अर्थात् उनके मूल्यों का मूल्यांकन कर सकते हैं ।

 

  1. सभी प्रकार के आँकड़े संकलन करने में सहायता प्रदान करना ( Helpful in collection of all types of data ) – अनुसूची केवल प्राथमिक आँकड़े संकलन करने में ही सहायक नहीं है , अपितु प्रलेखीय या ऐतिहासिक आँकड़ें संकलन करने में भी सहायक है । संस्था सर्वेक्षण अनुसूची या प्रलेख अनुसूची द्वितीयक आँकड़ों के संकलन में सहायता प्रदान करती है ।

 

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आवश्यक स्तर

   ( Necessary Sages )

 

उपर्युक्त अनुसूचियों को तथ्यों के संकलन के लिए काम में लाया जाता है । अनुसूची द्वारा सामग्री प्राप्त करने के लिए कुछ अावश्यक स्तरों ( Stages ) से गुजरना पड़ता है , जिन्हें हम इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं

 

 ( 1 ) उत्तरदाताओं का चयन ( Selection of Respondents ) – अनुसूची के प्रयोग करने में सर्वप्रथम उत्तरदाताओं का चयन किया जाता है जिनसे कि सूचना एकत्र करनी है । इसके अन्तर्गत दो प्रकार की प्रणालियों को अपनाया जा सकता है – – संगगणना पद्धति ( Census Method ) और निदर्शन पद्धति । जहाँ समूह के भी व्यक्तियों से माक्षात्कार करके अनुसूची को भरा जाय , उसमें संगणनो पद्धति को अपनाया जाता है । संगणना पद्धति को अपनाने से पूर्व अनुसंधानकर्ता देख लेता है कि अध्ययन – ममस्या की प्रकृति किस प्रकार की है । वह समूह को कई उप – समहों में भी विभाजित कर सकता है । इसके बावजूद भी उन सबके उत्तरों को अनसची में स्थान नहीं दे सकता तो निदर्शन पद्धति को काम में लाया जाता है । निदर्शन पद्धति द्वारा कर उत्तरदातायों का चयन कर उनका साक्षात्कार कर लिया जाता और उनसे प्राप्त मत्रनायों को अनुमचिया म भर दिया जाता है । चने हा व्यक्तियों का ग व्यारा अर्थात् उनके बारे म पागम्भक जानकारी को तुरन्त ही लिख लिया जाना चाहिए । इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उत्तरदाता उपलब्ध होंगे अथवा नहीं । उनसे सम्पर्क बनाए रखना चाहिए ।

 

 ( 2 ) जांचकर्ताओं का चयन एवं प्रशिक्षण ( The Selection and Training of Investigators ) – जहाँ कुछ लोगों का साक्षात्कार करना है , वहाँ अनुसंधानकर्ता स्वयं जाकर उनसे अभीष्ट सूचना प्राप्त कर उसे अनुसूची में भर सकता है । यदि साक्षात्कारदाताओं की संख्या अधिक हो तो अनुसंधानकर्ता कुछ ऐसे जाँचकर्ताओं का चयन कर सकता है जो बड़ी ही कुशलता , सूझबूझ , धैर्य और होशियारी से अनुसूची में साक्षात्कार द्वारा सूचना को भर सकता हो । उनके चयन में अनुसंधानकर्ता को बड़ी सावधानी रखनी पड़ती है क्योंकि बिना अनुभव वाले जिन जाँचकर्ताओं का चयन किया जा रहा है वे यदि अनुपयुक्त सिद्ध होते हों तो अनुसंधान कार्य सही रूप में संचालित नहीं हो सकता । अत : उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । उनके लिए प्रारम्भिक प्रशिक्षण शिविर होने चाहिएं ताकि उन्हें अध्ययन की प्रकृति , क्षेत्र , उद्देश्य , अनुसूचियों को भरने के तरीके , साक्षात्कार के तरीके , कौनसी सूचनाओं को प्राथमिकता देना आदि बातों का पूरा ज्ञान हो सके ।

 

 ( 3 ) तथ्य – सामग्री का संकलन ( Collection of Data ) – – तथ्य – सामग्री के संकलन के लिए अध्ययनकर्ता या जाँचकर्ता को साक्षात्कार करने के लिए निश्चित स्थान पर पहुंचना पड़ता है । उत्तरदाताओं से सूचना प्राप्त करके उसे अनुसूची में भरना होता है , लेकिन इसके लिए एक क्रमिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है जो इस प्रकार है – –

 

4 ) सूचनादाताओं से सम्पर्क ( Contact with Informants ) – साक्षात्कार द्वारा सूचना प्राप्त करने से पूर्व , सूचनादाताओं से सम्पर्क करना होता है । इस सम्पर्क स्थापित करने में क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को कुशलता , चतुरता , धैर्य और शान्ति से काम लेना पड़ता है । यदि प्रारम्भ में ही कार्यकर्ता , सूचनादाता को प्रभावित नहीं कर पाया तो उससे सूचना प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है । यदि सूचनादाता के मस्तिष्क में , कार्यकर्ता के प्रति कुछ गलत धारणाएँ बैठ गई या कोई संशय पैदा हो गया तो ऐसी स्थिति में सूचना प्राप्त करना बिल्कुल असम्भव है । अतः कार्यकर्ता को चाहिए कि वह बड़े प्रभावशाली ढंग से अपना परिचय दे , अपनी मधुर वाणी और सौम्य स्वभाव से उसका हृदय जीत ले । उसे बड़े ही विनम्र ढंग से अभिवादन करके उसके स्वभाव , आदतों एवं व्यवहार के साथ तारतम्य स्थापित करना चाहिए । अतः उसे ऐसी स्थिति उत्पन्न करनी चाहिए कि सूचनादाता स्वयं उत्साहित होकर . लेनी चाहिए । कार्यकर्त्ता को यह ध्यान रखना चाहिए कि उससे प्रश्न कव पूछे जाएँ । यदि सूचनादाता किसी काम में व्यस्त हो गया हो तो उसके काम में विघ्न नहीं पहुँचाना चाहिए । उसे धैर्य रखकर समयानुकूल परिस्थिति में ही प्रश्न पूछने चाहिए ।

 

 5 ) साक्षात्कार ( Interview ) — सूचनादाता से सम्पर्क स्थापित करने के पश्चात् साक्षात्कार का कार्य शुरू किया जाता है । साक्षात्कार करना भी उतना ही कठिन है जितना कि सूचनादाताओं से सम्पर्क स्थापित करना । साक्षात्कार करते समय , अनुसंधानकर्ता को यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह प्रश्नों की बौछार एकदम न कर दे । उसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता से अधिक से अधिक विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करना होता है , यह तभी सम्भव हो सकता है जब अनुसंधानकर्ता एक स्वाभाविक वातावरण में सूचनादाता के मनोभावों को ध्यान में रखते हुए , सूचना प्राप्त करता है । बीच में थोड़ा रुककर कुछ इधर – उधर की बातें करनी चाहिएँ ताकि सूचनादाता की अभिरुचि बनी रहे । साक्षात्कार को रोचक बनाने के लिए कुछ हंसी – मजाक की बात भी कर लेनी चाहिए या कोई उपयुक्त दृष्टान्त दे देना चाहिए , ताकि सूचनादाता , साक्षात्कार को कोई बोझ न समझ कर एक ‘ रुचिपूर्ण भेट ‘ समझे ।

 

 ( 6 ) सूचना प्राप्त करना ( To Obtam Information ) – साक्षात्कार करते समय यह समस्या पैदा हो जाती है कि सूचनादाता से किस प्रकार संगतपूर्ण एवं विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त की जाएं । साक्षात्कारकर्ता को अनुसूची में से एक एक करके प्रश्न कर सूचना प्राप्त करनी चाहिए । लेकिन साक्षात्कारदाता के दिमाग में यह आशंका पैदा न हो कि अनुसंधानकर्ता उससे कोई गुप्त जानकारी प्राप्त कर रहा है या उसे किसी उलझन में डाल रहा है । यदि उत्तरदाता सूचना देते समय मुख्य विषय से हट जाता है तो ऐसी स्थिति में बड़ी सावधानीपूर्वक उसका ध्यान मुख्य विषय की ओर केन्द्रित करना चाहिए या उसे साक्षात्कार के बीच में कुछ अन्य बातें करके , बंद कर देना चाहिए । यह भी सम्भव हो सकता है कि प्रश्नों के स्पष्ट न होने के कारण सूचना पाता उसका कुछ और ही अर्थ समझ बैठे जिसके फलस्वरूप वह मुख्य विषय से विचलित हो जाता हो । अत : अनुसंधानकर्ता या अध्ययनकर्ता को चाहिए कि वे सटीक एवम् स्पष्ट प्रश्नों का निर्माण करें ।

 

 

अनुसूचियों का सम्पादन

( Editing of Schedules )

 

 जब जांचकर्ताओं से सब अनसूचियाँ प्राप्त हो जाती हैं तो उनका सम्पादन किया जाता है जिसकी प्रक्रिया इस प्रकार है

 

 ( i ) अनुसूचियों की जांच ( Checking the Schedules ) – सर्वप्रथम कार्य कर्ताओं द्वारा भेजी हुई अनुसूचियों की जांच की जाती है । वहाँ यह ध्यान रखा जाता है कि सभी अन्सचियाँ प्राप्त हुई हैं अथवा नहीं । इसके पश्चात् सचियों का वर्गीकरण किया जाता है । यह वर्गीकरण कार्यकर्ताओं या जाँचकर्ताओं के आधार पर किया जाता है । प्रत्येक जाँचकर्ता द्वारा भेजी गई अनुसूचियों की अलग – अलग फाइल तैयार की जाती है और उस फाइल पर चिट लगाकर कार्यकर्ता का नाम , क्षेत्र , सचनादातानों की संख्या ग्रादि लिख दी जाती है ।

 

( ii ) प्रविष्टियों की जांच ( Checking the Entries ) – अनुसंधानकर्ता समस्त प्रविष्टियों की जाँच करता है । यदि कोई खाना नहीं भरा गया हो या गलत खाने में उत्तर लिख दिया गया हो तो उनके कारण का पता लगाकर उस त्रुटि को दूर करने का प्रयत्न करता है । यदि वह स्वयं गलती को ठीक कर सकता है तो उसे उसी समय ठीक कर देता है , अन्यथा अनुसूची को कार्यकर्ता के पास लौटा दिया जाताहै जिसमें या तो वह स्वयं ही संशोधन कर देता है या उत्तरदाता से पुनः मिलकर सही सूचना प्राप्त करता है ।

 

 ( ii i) गंदी अनुसूचियाँ ( Dirty Schedules ) – अनुसंधानकर्ता , गंदी ‘ अनुसूचियों को अलग कर देता है । जो पढ़ने योग्य न हों या फट गई हों या अन्य किसी कारण से सूचना देने योग्य न हों , उन्हें कार्यकर्ता के पास भेज दी जाती हैं ताकि यथार्थ सूचना प्राप्त हो सके ।

 

 iv ) संकेतन ( Coding ) – अनुसंधानकर्ता सारणीयन के कार्य में प्रसुविधा दूर करने के लिए संकेतन का कार्य करता है । वह सभी उत्तरों का निश्चित भागों में वर्गीकरण कर देता है प्रत्येक वर्ग को संकेत सख्या प्रदान की जाती है ।

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