अग्नि परीक्षा: ओडिशा छात्रा की दर्दनाक मौत, कॉलेज में सुरक्षा पर गंभीर सवाल
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में एक छात्रा की मौत हो गई। यह छात्रा तीन दिन पहले यौन उत्पीड़न से परेशान होकर अपने कॉलेज परिसर में आत्मदाह के प्रयास के बाद गंभीर रूप से झुलस गई थी। इस हृदय विदारक घटना ने एक बार फिर शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं की सुरक्षा, यौन उत्पीड़न के खिलाफ मौजूदा तंत्रों की प्रभावशीलता और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी जैसे गंभीर मुद्दों को राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला दिया है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक और संस्थागत विफलता की ओर इशारा करती है, जिस पर तत्काल ध्यान और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।
एक जीवन की आहुति: दर्द और आक्रोश की कहानी
ओडिशा के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पढ़ने वाली एक छात्रा ने, कथित तौर पर अपने साथी छात्रों द्वारा लगातार किए जा रहे यौन उत्पीड़न से तंग आकर, एक अत्यधिक कदम उठाया। उसने कॉलेज परिसर में ही खुद को आग लगा ली। गंभीर रूप से झुलसी हुई इस छात्रा को तुरंत AIIMS, भुवनेश्वर में भर्ती कराया गया, जहाँ वह तीन दिनों तक जीवन के लिए संघर्ष करती रही, और अंततः उसने दम तोड़ दिया। उसकी मृत्यु ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है और महिला सुरक्षा तथा न्याय के मुद्दों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने एक बार फिर से इस बात पर प्रकाश डाला है कि हमारे शैक्षणिक संस्थान, जिन्हें ज्ञान और सुरक्षित वातावरण का गढ़ माना जाता है, कहीं न कहीं अपनी मूल जिम्मेदारी से चूक रहे हैं। यह सिर्फ एक कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और संस्थागत समस्या का प्रतिबिंब है।
यौन उत्पीड़न: एक मूक महामारी जो संस्थानों को जकड़ती है
यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) किसी भी अवांछित यौन प्रकृति के व्यवहार को संदर्भित करता है जो किसी व्यक्ति को असहज, अपमानित या भयभीत महसूस कराता है। यह सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मौखिक, गैर-मौखिक और मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है। शैक्षणिक संस्थानों में इसका प्रचलन विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यहाँ युवा मन विकसित होते हैं और उनके भविष्य की नींव रखी जाती है।
कल्पना कीजिए एक पौधा है, जिसे बढ़ने के लिए सुरक्षित वातावरण, सही पोषक तत्व और धूप की आवश्यकता होती है। यदि उसे लगातार कीड़े खाते रहें या उसकी जड़ों को नुकसान पहुँचाया जाए, तो वह कभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाएगा। इसी तरह, शैक्षणिक संस्थान वो उपजाऊ जमीन हैं जहाँ हमारे युवा दिमाग पनपते हैं। यौन उत्पीड़न इन पौधों पर हमला करने वाले कीड़ों की तरह है, जो उनके आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और सीखने की क्षमता को नष्ट कर देता है।
भारत में यौन उत्पीड़न एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसके पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं:
- पितृसत्तात्मक सोच: महिलाओं को अधीनस्थ या वस्तु के रूप में देखने की गहरी जड़ें जमा चुकी मानसिकता।
- शक्ति का असंतुलन: प्रोफेसरों, वरिष्ठ छात्रों, या स्टाफ सदस्यों द्वारा अपनी स्थिति का दुरुपयोग।
- सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड: ‘लड़की को चुप रहना चाहिए’, ‘इज्जत का मामला’ जैसी धारणाएं जो पीड़ितों को शिकायत करने से रोकती हैं।
- जागरूकता की कमी: पीड़ित और उत्पीड़न करने वाले, दोनों को अक्सर यह नहीं पता होता कि कौन सा व्यवहार उत्पीड़न की श्रेणी में आता है और इसके क्या कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
- प्रभावी शिकायत तंत्र का अभाव: शिकायत करने के बाद न्याय न मिलने का डर या प्रक्रिया का अत्यधिक जटिल होना।
- उत्पीड़न करने वालों के लिए दण्डमुक्ति: अक्सर प्रभावशाली व्यक्तियों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जाता।
कानूनी ढाँचा: सुरक्षा कवच कितना मजबूत?
भारत में यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता अक्सर उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है:
1. विशाखा दिशानिर्देश (Vishaka Guidelines, 1997)
यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ऐतिहासिक दिशानिर्देश थे, जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने और उससे निपटने के लिए व्यापक फ्रेमवर्क प्रदान करते थे। इन दिशानिर्देशों ने प्रत्येक संगठन में एक आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) के गठन को अनिवार्य किया। यद्यपि ये दिशानिर्देश कार्यस्थल पर केंद्रित थे, इन्हें शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू करने की सलाह दी गई थी।
2. यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 (The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 – SHe Act)
विशाखा दिशानिर्देशों को कानून का रूप देने के लिए यह अधिनियम लाया गया था। यह अधिनियम ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा में शैक्षणिक संस्थानों को भी शामिल करता है, जिसमें छात्र, शिक्षक और कर्मचारी सभी शामिल हैं।
- मुख्य प्रावधान:
- आंतरिक शिकायत समिति (ICC): प्रत्येक संस्थान जिसमें 10 या अधिक कर्मचारी हैं, को एक ICC गठित करना अनिवार्य है। इस समिति में कम से कम आधी महिलाएं होनी चाहिए और इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ महिला अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। साथ ही, एक बाहरी सदस्य (गैर-सरकारी संगठन या महिला अधिकारों के लिए काम करने वाला व्यक्ति) का होना भी अनिवार्य है।
- शिकायत प्रक्रिया: पीड़ित को घटना के 3 महीने के भीतर लिखित शिकायत दर्ज करनी होती है। ICC को 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है।
- जांच और कार्रवाई: जांच के बाद, यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो संस्थान अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है, जिसमें नौकरी से निकालना, वेतन में कटौती या अन्य दंड शामिल हैं। ICC को सुलह का प्रयास करने का भी अधिकार है, बशर्ते पीड़ित सहमत हो।
- संस्थान की जिम्मेदारी: अधिनियम संस्थानों पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने, नीतियां बनाने और एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी डालता है।
3. भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC)
यौन उत्पीड़न के कई रूप IPC के तहत अपराध माने जाते हैं:
- धारा 354: महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग। इसमें स्पर्श, छेड़छाड़ आदि शामिल हैं। (जैसे 354A: यौन उत्पीड़न, 354B: नग्न करने का प्रयास, 354C: अश्लील दृश्यों को देखना (Voyeurism), 354D: पीछा करना (Stalking)).
- धारा 509: शब्द, हावभाव या कार्य द्वारा महिला की लज्जा का अनादर करना।
- धारा 294: अश्लील कार्य और गाने।
4. बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act, 2012)
यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए है। यदि शैक्षणिक संस्थानों में नाबालिगों के साथ ऐसा कोई अपराध होता है, तो POCSO अधिनियम लागू होता है, जिसमें कठोर दंड और विशेष न्यायालयों का प्रावधान है। हालाँकि, ओडिशा की छात्रा के मामले में, यदि वह वयस्क थी, तो SHe Act और IPC के प्रावधान अधिक प्रासंगिक होंगे।
संस्थागत जवाबदेही: खोखले वादे या मजबूत सुरक्षा?
यह दुखद घटना शैक्षणिक संस्थानों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उठाती है। एक संस्थान की प्राथमिक जिम्मेदारी केवल शिक्षा प्रदान करना नहीं है, बल्कि अपने छात्रों को एक सुरक्षित, सम्मानजनक और समावेशी वातावरण प्रदान करना भी है।
- सुरक्षा प्रोटोकॉल में कमी: क्या कॉलेज के पास यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए एक मजबूत और पारदर्शी तंत्र था? क्या छात्रा ने शिकायत दर्ज की थी और यदि हाँ, तो उस पर क्या कार्रवाई की गई?
- आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की भूमिका: क्या ICC सक्रिय थी, क्या उसके सदस्यों को उचित प्रशिक्षण मिला था? अक्सर ICC नाममात्र के लिए होती हैं और पीड़ितों को न्याय दिलाने में विफल रहती हैं। क्या यह समिति वास्तव में निष्पक्ष और संवेदनशील तरीके से काम करती है?
- जागरूकता का अभाव: क्या छात्रों और स्टाफ को यौन उत्पीड़न क्या है, इसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है, और शिकायत कहाँ करनी है, इसकी पर्याप्त जानकारी थी? अक्सर, छात्रों को यह भी पता नहीं होता कि ICC क्या है या यह कैसे काम करती है।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता: पीड़ित को न केवल शारीरिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है, बल्कि भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक सहायता भी। क्या कॉलेज में परामर्शदाता थे, और क्या पीड़ित को समय पर उचित सहायता मिली? इस मामले में, पीड़िता ने एक चरम कदम उठाया, जो दर्शाता है कि उसे मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कितनी आवश्यकता थी।
- डर और उत्पीड़न का चक्र: अक्सर पीड़ित को शिकायत करने के बाद और अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है – जैसे धमकाया जाना, अलग-थलग किया जाना, या अकादमिक रूप से नुकसान पहुँचाया जाना। संस्थान की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि शिकायतकर्ता को पूरी सुरक्षा मिले।
आगे की राह: एक सुरक्षित और न्यायसंगत भविष्य की ओर
ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी सुधार, संस्थागत परिवर्तन, सामाजिक जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य सहायता शामिल हो:
- कानूनों का सख्त कार्यान्वयन और पुनर्मूल्यांकन:
- ICC का सुदृढ़ीकरण: ICC को केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित न रखा जाए। इसके सदस्यों को नियमित रूप से लिंग संवेदनशीलता और जांच प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित किया जाए। ICC को वास्तव में स्वतंत्र और सशक्त बनाया जाए, ताकि वे बिना किसी दबाव के कार्य कर सकें।
- शिकायत प्रक्रिया का सरलीकरण और गोपनीयता: शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाया जाए। पीड़ितों की पहचान की गोपनीयता सुनिश्चित की जाए ताकि उन्हें प्रतिशोध का डर न हो। ऑनलाइन शिकायत पोर्टल भी विकसित किए जा सकते हैं।
- अधिनियम का विस्तार: SHe Act की कुछ खामियों को दूर किया जा सकता है, जैसे शिकायत दर्ज करने की समय-सीमा (जो अभी 3 महीने है) को लचीला बनाना, क्योंकि कई बार पीड़ित को सदमे या डर से उबरने में अधिक समय लग सकता है।
- शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका:
- शून्य-सहिष्णुता नीति: प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को यौन उत्पीड़न के प्रति शून्य-सहिष्णुता नीति अपनानी चाहिए और इसे स्पष्ट रूप से सभी के सामने रखना चाहिए।
- नियमित संवेदीकरण कार्यक्रम: छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए लिंग संवेदनशीलता, सम्मानजनक व्यवहार और यौन उत्पीड़न की रोकथाम पर नियमित कार्यशालाएं और सत्र आयोजित किए जाएं। यह केवल औपचारिकता न हो, बल्कि वास्तविक बदलाव लाने के उद्देश्य से हो।
- सुरक्षित रिपोर्टिंग तंत्र: ऐसे तंत्र विकसित किए जाएं जहाँ छात्र, विशेषकर लड़कियाँ, बिना किसी डर या शर्म के अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें।
- परामर्श और सहायता सेवाएँ: संस्थानों में प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की उपलब्धता अनिवार्य की जाए, जो यौन उत्पीड़न के पीड़ितों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से जूझ रहे छात्रों को सहायता प्रदान कर सकें।
- सामाजिक जागरूकता और मानसिकता में बदलाव:
- घर से शुरुआत: बच्चों को बचपन से ही सम्मान, सहमति और समानता के मूल्यों के बारे में सिखाना।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया को यौन उत्पीड़न के मामलों को संवेदनशीलता से उठाना चाहिए, पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखते हुए सामाजिक परिवर्तन के लिए दबाव बनाना चाहिए।
- पुरुषों की सक्रिय भागीदारी: पुरुषों को इस लड़ाई में सहयोगी बनाना महत्वपूर्ण है। उन्हें उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने और सम्मानजनक व्यवहार के उदाहरण स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- पुलिस और न्यायपालिका की संवेदनशीलता:
- पुलिस को यौन उत्पीड़न के मामलों से संवेदनशीलता और तेजी से निपटना चाहिए। पीड़ित को बार-बार अपनी कहानी दोहराने के बजाय एक ही बार में संवेदनशील तरीके से जानकारी लेने की प्रक्रिया होनी चाहिए।
- फास्ट-ट्रैक अदालतों का उपयोग कर ऐसे मामलों में शीघ्र न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- डिजिटल सुरक्षा और ऑनलाइन उत्पीड़न:
- साइबरबुलिंग और ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को देखते हुए, छात्रों को डिजिटल सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना और ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करना भी आवश्यक है।
निष्कर्ष: हर जीवन अनमोल है
ओडिशा की छात्रा की दर्दनाक मौत हमें यह याद दिलाती है कि न्याय केवल सजा देने तक सीमित नहीं है, बल्कि सुरक्षित वातावरण बनाने और हर व्यक्ति के सम्मान की रक्षा करने तक भी है। यह घटना हमारे समाज और संस्थानों के लिए एक वेक-अप कॉल है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी छात्र को यौन उत्पीड़न के कारण अपनी जिंदगी खत्म करने का भयावह कदम न उठाना पड़े। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ हर आवाज़ सुनी जाए, हर शिकायत पर कार्रवाई हो और हर व्यक्ति को सम्मान और सुरक्षा मिले। तभी हम सही मायने में उस छात्रा को श्रद्धांजलि दे पाएंगे जिसने अपने जीवन की आहुति दी, उम्मीद है कि यह आहुति बदलाव की अग्नि प्रज्ज्वलित करेगी।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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प्रश्न 1: भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (SHe Act) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह अधिनियम केवल संगठित क्षेत्र के कार्यस्थलों पर लागू होता है।
- यह अधिनियम ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा में शैक्षणिक संस्थानों को शामिल करता है।
- इस अधिनियम के तहत गठित आंतरिक शिकायत समिति (ICC) में कम से कम आधी सदस्य महिलाएं होनी चाहिए।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: B
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है। SHe Act, 2013 असंगठित क्षेत्र सहित सभी कार्यस्थलों पर लागू होता है।
- कथन 2 सही है। अधिनियम की धारा 2(o) ‘कार्यस्थल’ को परिभाषित करती है, जिसमें शिक्षण संस्थान भी शामिल हैं।
- कथन 3 सही है। अधिनियम की धारा 4(2)(c) के अनुसार, ICC में कम से कम आधी सदस्य महिलाएं होनी चाहिए।
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प्रश्न 2: विशाखा दिशानिर्देश, जो भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित थे, निम्नलिखित में से किस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए थे?
- 1992
- 1995
- 1997
- 2001
उत्तर: C
व्याख्या: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विशाखा दिशानिर्देश जारी किए थे। बाद में इन्हें SHe Act, 2013 द्वारा अधिनियमित किया गया।
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प्रश्न 3: यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून, SHe Act, 2013 के अनुसार, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) में बाहरी सदस्य की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह अनिवार्य है कि ICC में एक बाहरी सदस्य शामिल हो।
- बाहरी सदस्य को एक गैर-सरकारी संगठन या संघ से होना चाहिए जो महिला अधिकारों या यौन उत्पीड़न के मुद्दों से परिचित हो।
- बाहरी सदस्य का मुख्य कार्य पीड़ित और आरोपी के बीच सुलह कराना होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
- केवल 1
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: B
व्याख्या:
- कथन 1 सही है। अधिनियम ICC में एक बाहरी सदस्य की उपस्थिति को अनिवार्य करता है ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
- कथन 2 सही है। बाहरी सदस्य को महिला अधिकारों या यौन उत्पीड़न के मुद्दों में अनुभव वाले NGO या संघ से होना चाहिए।
- कथन 3 गलत है। बाहरी सदस्य का मुख्य कार्य निष्पक्षता सुनिश्चित करना और समिति को मार्गदर्शन देना होता है, न कि केवल सुलह कराना। सुलह ICC के कार्यों में से एक हो सकता है, लेकिन यह बाहरी सदस्य का प्राथमिक या एकमात्र कार्य नहीं है।
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प्रश्न 4: भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित में से कौन सी धारा ‘लज्जा भंग करने के इरादे से महिला पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग’ से संबंधित है?
- धारा 375
- धारा 498A
- धारा 354
- धारा 509
उत्तर: C
व्याख्या:
- धारा 354 IPC महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग से संबंधित है। इसमें 354A (यौन उत्पीड़न), 354B (नग्न करने का प्रयास), 354C (अश्लील दृश्यों को देखना), 354D (पीछा करना) जैसी उप-धाराएं भी हैं।
- धारा 375 बलात्कार से संबंधित है।
- धारा 498A पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के प्रति क्रूरता से संबंधित है।
- धारा 509 शब्द, हावभाव या कार्य द्वारा महिला की लज्जा का अनादर करना से संबंधित है।
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प्रश्न 5: यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून, SHe Act, 2013 के तहत, एक पीड़ित व्यक्ति को घटना के कितने समय के भीतर आंतरिक शिकायत समिति (ICC) में लिखित शिकायत दर्ज करनी होती है?
- 1 महीने
- 3 महीने
- 6 महीने
- 1 साल
उत्तर: B
व्याख्या: SHe Act, 2013 की धारा 9(1) के अनुसार, शिकायत घटना की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर दर्ज की जानी चाहिए। कुछ परिस्थितियों में इस अवधि को आगे बढ़ाया जा सकता है।
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प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन-सा अनुच्छेद भारतीय संविधान में ‘मानव दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध’ से संबंधित है?
- अनुच्छेद 19
- अनुच्छेद 21
- अनुच्छेद 23
- अनुच्छेद 24
उत्तर: C
व्याख्या: अनुच्छेद 23 मानव दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध करता है। यह मौलिक अधिकार है जो शोषण के विरुद्ध अधिकार के अंतर्गत आता है। यौन उत्पीड़न को भी एक प्रकार के शोषण के रूप में देखा जा सकता है, जो व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
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प्रश्न 7: बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act), 2012 के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- इस अधिनियम के तहत सभी अपराध गैर-जमानती हैं।
- यह अधिनियम विशेष न्यायालयों के गठन का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम में ‘बाल यौन उत्पीड़न’ (Child Sexual Abuse) की परिभाषा शामिल है।
उत्तर: B
व्याख्या: कथन B सही नहीं है। POCSO अधिनियम के तहत सभी अपराध गैर-जमानती नहीं हैं। कुछ छोटे-मोटे अपराध जमानती हो सकते हैं, हालांकि गंभीर अपराध गैर-जमानती होते हैं। अन्य सभी कथन सही हैं।
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प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा भारत में यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी चुनौती नहीं है?
- शक्ति असंतुलन
- जागरूकता और शिक्षा की कमी
- सुलह के लिए मजबूत कानूनी प्रावधान
- शिकायतकर्ता के प्रतिशोध का डर
उत्तर: C
व्याख्या:
- शक्ति असंतुलन (जैसे वरिष्ठ-कनिष्ठ, प्रोफेसर-छात्र) एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह पीड़ितों को बोलने से रोकता है।
- जागरूकता और शिक्षा की कमी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि कई लोगों को यह नहीं पता होता कि क्या उत्पीड़न है या क्या करना है।
- शिकायतकर्ता के प्रतिशोध का डर एक बहुत बड़ी चुनौती है, जिससे कई पीड़ित शिकायत करने से कतराते हैं।
- विकल्प C – “सुलह के लिए मजबूत कानूनी प्रावधान” – चुनौती नहीं है, बल्कि एक कानूनी विकल्प है (यद्यपि कुछ मामलों में इसका दुरुपयोग भी हो सकता है)। वास्तव में, अधिनियम में सुलह का प्रावधान है, लेकिन यह केवल तभी किया जा सकता है जब पीड़ित सहमत हो। यह अपने आप में ‘चुनौती’ नहीं है, बल्कि प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
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प्रश्न 9: SHe Act, 2013 के तहत, यदि कोई संस्थान आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन करने में विफल रहता है, तो उस पर क्या दंड लगाया जा सकता है?
- केवल चेतावनी जारी की जाती है।
- रु. 10,000 का जुर्माना।
- रु. 50,000 का जुर्माना, जिसे अपराध दोहराने पर बढ़ाया जा सकता है और व्यवसाय लाइसेंस रद्द भी हो सकता है।
- केवल संस्थान के प्रमुख को कारावास।
उत्तर: C
व्याख्या: अधिनियम की धारा 26 के अनुसार, यदि कोई नियोक्ता अधिनियम के किसी भी प्रावधान का पालन करने में विफल रहता है, तो उसे 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यदि नियोक्ता उसी अपराध को दोहराता है, तो उसे दोगुना जुर्माना या उसके व्यवसाय के लिए लाइसेंस रद्द करने सहित गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा कदम शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है?
- केवल एक महिला परामर्शदाता की नियुक्ति करना।
- परिसर में सीसीटीवी कैमरों की संख्या बढ़ाना।
- छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए नियमित लिंग संवेदनशीलता और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।
- उत्पीड़न के बाद ही सख्त कानूनी कार्रवाई करना।
उत्तर: C
व्याख्या: जबकि अन्य विकल्प भी सहायक हो सकते हैं, सबसे प्रभावी तरीका रोकथाम है। नियमित लिंग संवेदनशीलता और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के बारे में शिक्षित करने, सम्मानजनक व्यवहार को बढ़ावा देने और एक सुरक्षित वातावरण बनाने में मदद करता है, जिससे ऐसी घटनाओं की संभावना कम हो जाती है। यह निवारक दृष्टिकोण है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- “ओडिशा की छात्रा की त्रासदीपूर्ण मृत्यु ने शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न की व्यापकता और मौजूदा कानूनी एवं संस्थागत तंत्रों की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।” इस कथन के आलोक में, भारत में शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न से निपटने में प्रमुख चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण करें और एक सुरक्षित तथा समावेशी वातावरण सुनिश्चित करने के लिए संभावित सुधारों का सुझाव दें। (250 शब्द)
- यौन उत्पीड़न के मामलों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर भी उनकी प्रभावशीलता पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 (SHe Act) के तहत ICC की संरचना और कार्यों का वर्णन करें। साथ ही, उनकी कार्यप्रणाली में सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, चर्चा करें। (250 शब्द)
- “यौन उत्पीड़न सिर्फ एक कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि एक गहरी सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौती है।” इस कथन की व्याख्या करें और चर्चा करें कि लैंगिक समानता और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए समाज, परिवार और मीडिया की क्या भूमिका हो सकती है। (150 शब्द)
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता और परामर्श सेवाओं की अनुपलब्धता या अक्षमता यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के लिए स्थिति को कैसे बदतर बना सकती है? शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणालियों को मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए? (150 शब्द)